उत्तराखंड : बढ़ती सांप्रदायिकता और कश्मीरी छात्र
उत्तराखंड : बढ़ती सांप्रदायिकता और कश्मीरी छात्र
Author: प्रेम पुनेठा Edition : March 2013
राजनीति ने हमारे पूरे समाज को किस तरह से सांप्रदायिक और जुनूनी बना दिया है देहरादून की घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं। यहां याद रखने की बात यह है कि यह क्षेत्र उत्तरभारत के उन इलाकों में से है जो सांप्रदायिक रूप से कई गुना शांत है। सांप्रदायिकता विवेकहीन, असहिष्णु और हिंसक समाज ही नहीं पैदा कर रही है बल्कि हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं को भी नष्ट कर रही है उसका प्रमाण 12 फरवरी की घटनाएं हैं।
उस दिन देहरादून के घंटाघर में प्रदर्शन कर रहे 16 कश्मीरी छात्रों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इनको पुलिस थाने ले जाया गया। इस बीच थाने के बाहर हिंदूवादी संगठनों के सदस्य थाने पर इकट्ठा होने लगे। वे बाहर नारे लगा रहे थे कि ये देशद्रोही हैं। इन लोगों ने प्रदर्शन के दौरान भारत विरोधी नारे लगाए। इधर, थाने में यह कार्रवाई चल रही थी कि घंटाघर से थोड़ी दूरी पर इंदिरा मार्केट में दो कश्मीरी छात्रों को हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने पकड़ लिया और बुरी तरह से पीट कर थाने पहुंचा दिया। पुलिस ने अपनी पड़ताल की तो कश्मीरी छात्रों के खिलाफ ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला जिससे यह कहा जा सके कि उन्होंने देश विरोधी नारे लगाए थे। कश्मीरी छात्रों पर सिर्फ यह आरोप लगा कि उन्होंने बिना अनुमति के जुलूस निकाला। इसलिए पुलिस ने कश्मीरी छात्रों को शांतिभंग की धाराओं में चालान कर निजी मुचलके पर छोड़ दिया। लेकिन बीच बाजार में कश्मीरी छात्रों से मारपीट करने वालों को पुलिस अभी खोज ही रही है। इसके अगले दिन एक कश्मीरी छात्र डीएवी कॉलेज में प्रिंसिपल के पास अपने रिजल्ट के बारे में पूछने गया था, प्रिंसिपल के कमरे से बाहर निकलते ही कुछ छात्रों ने उसकी यह कहकर पिटाई कर दी कि वह प्रदर्शन में शामिल था। शिक्षकों के बीच-बचाव के बाद उसे अस्पताल ले जाया गया।
ये घटनाएं साबित करती हैं कि अफजल गुरू की फांसी के बाद कश्मीरियों को लेकर कुछ लोग किस तरह के सांप्रदायिक उन्माद को हवा दे रहे हैं। इन घटनाओं ने कश्मीरी छात्रों में असुरक्षा को जन्म दे दिया। देहरादून में कश्मीर के काफी छात्र पढ़ाई के लिए आते हैं। वे सामान्य कॉलेजों और दूसरे तकनीकी संस्थानों में हैं। सामान्य तौर पर यहां आने वाले छात्र किसी भी विवाद में नहीं पडऩा चाहते हैं। इस घटना से पहले शायद शहर को यह पता भी नहीं था कि यहां कश्मीरी छात्र भी पढ़ते हैं। वे अपना ध्यान सिर्फ पढ़ाई तक रखना चाहते हैं और शायद इनको घरों से भी यही समझा कर भेजा जाता है कि किसी तरह की गतिविधि में भाग नहीं लेना है, सिर्फ पढ़ाई करनी है। इन घटनाओं के बाद कुछ पत्रकारों ने कश्मीरी छात्रों से बात करनी चाही और उनके बारे में जानना चाहा तो बड़ी मुश्किल से ही कुछ बात करने को राजी हुए। वह भी तब जब उन्हें इस बात का विश्वास हो गया कि इनसे बात करके हमें कोई खतरा नहीं है और कम से कम ये हमारी बात को गलत तरीके से पेश नहीं करेंगे।
इन छात्रों से मिलने गई पत्रकार सुनीता भास्कर ने बताया कि जब उन्होंने मिलने के लिए कहा तो छात्रों ने कहा नहीं मैम कमरे में मत आइए। आपके यहां आने पर मकान मालिक और अन्य लोगों को परेशानी हो सकती है। मैं आपसे मिलने बाहर ही आ जाता हूं। इस पर मिलने का स्थान पार्क में तय किया गया। जैसे ही पार्क में वे लोग आए तो आते-जाते लोग अजीब-सी नजरों से देखने लगे कि ये लड़के किन से बात कर रहे हैं। इस स्थिति से बचने के लिए उन्हें पार्क से दूर अपनी गाड़ी के पास ले गए। उनकी बातों से लग रहा था कि वे राज्य की राजधानी में रहते हुए भी खुद को कितना असुक्षित और अलगाव में महसूस करते हैं। बातचीत में उन्होंने बताया कि 12 तारीख को हमने प्रदर्शन के दौरान कोई भी भारत विरोधी नारा नहीं लगाया। हमने सिर्फ 'वी वांट जस्टिस' और 'स्टाप जीनोसाइट' के नारे ही लगाए। उनका कहना था कि पिछले तीन दिनों से हम अपने घर बात नहीं कर पाए हैं। पूरे कश्मीर में कफ्र्यू है। फोन और इंटरनेट की सुविधाएं बंद हैं। बैंक बंद होने के कारण हमें घर वाले पैसे नहीं भेज पा रहे हैं। हम तो अपनी बात कहना चाहते हैं। हम आतंकवादी नहीं हैं। हमारा अपराध सिर्फ इतना है कि हम कश्मीरी मुसलमान हैं। हमारे घर वाले कहते हैं कि यहां हालात ठीक नहीं हैं, तुम बाहर जा कर पढ़ो। इन छात्रों का कहना है कि वे देहरादून इसलिए आना चाहते है कि यह एक शांत जगह है और यहां दंगे या उपद्रव होने की बात भी कभी नहीं सुनाई दी। लेकिन इन घटनाओं के बाद तो स्थितियां अलग हैं। एक छात्र ने बताया कि उसका छोटा भाई इंटर करने के बाद यहां आ गया था और किसी कोर्स में एडमिशन लेने की सोच रहा था लेकिन इस घटना के बाद वह घबराया हुआ है।
12 फरवरी के प्रदर्शन की घटना को लेकर राजनीतिक कार्यकर्ता मालती हलदार ने बताया कि उस दिन की घटना को लेकर उनकी कश्मीरी छात्रों से बात हुई तो छात्रों ने बताया कि कोई भी भारत विरोधी नारा नहीं लगाया गया था। वे परेड ग्राउंड में एकत्रित हुए थे और नमाज पढऩे के बाद जुलूस में घंटाघर की ओर जा रहे थे। वहां हम अपना प्रदर्शन खत्म करने ही वाले थे कि कुछ अखबारों के फोटोग्राफर आ गए और उन्होंने कहा नारे लगाओ हम तुम्हारा फोटो खींचते हैं। वे फोटो खींच रहे थे कि पुलिस आ गई और हमें थाने ले आई। इतना ही नहीं इस घटना के बाद स्थानीय पुलिस और खुफिया तंत्र की सक्रियता बढ़ गई है। इन लोगों को चेतावनी देकर छोड़ा गया कि वे आवश्यक काम से ही बाहर निकलें। उनकी वजह से इतना बवाल हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि मकान मालिकों की निगाह भी उन पर सख्त हो गई है।
इस घटना के इतर भी कश्मीरी छात्रों के साथ कम समस्या नहीं है। यहां आने पर भी वे समाज में किसी से मिलते नहीं है। शायद इसका कारण यह है कि जिन परिस्थितियों से वे आए हैं उन्हें यहां किसी पर विश्वास नहीं है। पूरे देश में कश्मीर को लेकर जो वातावरण है उसमें स्थानीय छात्र भी कश्मीरियों को शक की निगाह से देखते हैं और उनसे किसी तरह के संपर्कों से बचना चाहते हैं। एक कश्मीरी छात्र ने कहा भी कि उसकी दोस्ती एक स्थानीय छात्र से हो गई थी लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि वह कश्मीरी है उसने दूरी बना ली। कितनी अजीब बात है कि एक ही कक्षा में पढऩे वाले बच्चों के बीच मनोवैज्ञानिक रूप से जबरदस्त अलगाव है। न कश्मीरियों को यहां के छात्रों पर विश्वास है और न यहां के छात्रों को कश्मीरियों पर। सबसे बुरा यह है कि शिक्षकों के स्तर पर भी कश्मीरियों से संवाद स्थापित करने के प्रयास नहीं किए गए। एक कश्मीरी छात्र ने तो यह कहते हुए भेदभाव करने की शिकायत भी की कि उसके काम में हमेशा गलती निकाली जाती है। एक अन्य कश्मीरी छात्र ने बताया कि उसके वाल पर कई बार टेरेरिस्ट लिख दिया जाता है।
अफजल गुरू की फांसी को लेकर भी छात्रों में सांप्रदायिक और उग्र राष्ट्रवाद दिखाई दिया। नौ तारीख को कश्मीरी छात्रों को मैसेज भेजे गए, 'कांग्रेचुलेशन अफजल हैंग्ड' (मुबारक अफजल फांसी पर लटकाया गया)। यह एक विजेता की भाषा है जो कमजोर और उपेक्षित लोगों को यह बताने के लिए भेजी जाती है कि देखो हम कितने ताकतवर हैं और हम क्या कर सकते हैं। इस तरह की घटनाएं तो और ज्यादा अलगाव ही लाएंगी। प्रदर्शन की घटना के बाद पुलिस ने इन छात्रों के नाम कश्मीर पुलिस को भेज दिए हैं। इससे ऐसा लगता है कि जैसे देहरादून में प्रदर्शन कर वे अपराधी हो गए। इससे तो ऐसा संदेश गया कि ये लड़के दून आकर भी बवाल ही कर रहे थे। जिस पुलिस के दुष्चक्र से वे बचकर कश्मीर से यहां आए वे वहां जाकर उसी चक्र में नहीं फंसेंगे क्या?
उत्तराखंड : बढ़ती सांप्रदायिकता और कश्मीरी छात्र
Author: प्रेम पुनेठा Edition : March 2013
राजनीति ने हमारे पूरे समाज को किस तरह से सांप्रदायिक और जुनूनी बना दिया है देहरादून की घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं। यहां याद रखने की बात यह है कि यह क्षेत्र उत्तरभारत के उन इलाकों में से है जो सांप्रदायिक रूप से कई गुना शांत है। सांप्रदायिकता विवेकहीन, असहिष्णु और हिंसक समाज ही नहीं पैदा कर रही है बल्कि हमारी लोकतांत्रिक परंपराओं को भी नष्ट कर रही है उसका प्रमाण 12 फरवरी की घटनाएं हैं।
उस दिन देहरादून के घंटाघर में प्रदर्शन कर रहे 16 कश्मीरी छात्रों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। इनको पुलिस थाने ले जाया गया। इस बीच थाने के बाहर हिंदूवादी संगठनों के सदस्य थाने पर इकट्ठा होने लगे। वे बाहर नारे लगा रहे थे कि ये देशद्रोही हैं। इन लोगों ने प्रदर्शन के दौरान भारत विरोधी नारे लगाए। इधर, थाने में यह कार्रवाई चल रही थी कि घंटाघर से थोड़ी दूरी पर इंदिरा मार्केट में दो कश्मीरी छात्रों को हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं ने पकड़ लिया और बुरी तरह से पीट कर थाने पहुंचा दिया। पुलिस ने अपनी पड़ताल की तो कश्मीरी छात्रों के खिलाफ ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला जिससे यह कहा जा सके कि उन्होंने देश विरोधी नारे लगाए थे। कश्मीरी छात्रों पर सिर्फ यह आरोप लगा कि उन्होंने बिना अनुमति के जुलूस निकाला। इसलिए पुलिस ने कश्मीरी छात्रों को शांतिभंग की धाराओं में चालान कर निजी मुचलके पर छोड़ दिया। लेकिन बीच बाजार में कश्मीरी छात्रों से मारपीट करने वालों को पुलिस अभी खोज ही रही है। इसके अगले दिन एक कश्मीरी छात्र डीएवी कॉलेज में प्रिंसिपल के पास अपने रिजल्ट के बारे में पूछने गया था, प्रिंसिपल के कमरे से बाहर निकलते ही कुछ छात्रों ने उसकी यह कहकर पिटाई कर दी कि वह प्रदर्शन में शामिल था। शिक्षकों के बीच-बचाव के बाद उसे अस्पताल ले जाया गया।
ये घटनाएं साबित करती हैं कि अफजल गुरू की फांसी के बाद कश्मीरियों को लेकर कुछ लोग किस तरह के सांप्रदायिक उन्माद को हवा दे रहे हैं। इन घटनाओं ने कश्मीरी छात्रों में असुरक्षा को जन्म दे दिया। देहरादून में कश्मीर के काफी छात्र पढ़ाई के लिए आते हैं। वे सामान्य कॉलेजों और दूसरे तकनीकी संस्थानों में हैं। सामान्य तौर पर यहां आने वाले छात्र किसी भी विवाद में नहीं पडऩा चाहते हैं। इस घटना से पहले शायद शहर को यह पता भी नहीं था कि यहां कश्मीरी छात्र भी पढ़ते हैं। वे अपना ध्यान सिर्फ पढ़ाई तक रखना चाहते हैं और शायद इनको घरों से भी यही समझा कर भेजा जाता है कि किसी तरह की गतिविधि में भाग नहीं लेना है, सिर्फ पढ़ाई करनी है। इन घटनाओं के बाद कुछ पत्रकारों ने कश्मीरी छात्रों से बात करनी चाही और उनके बारे में जानना चाहा तो बड़ी मुश्किल से ही कुछ बात करने को राजी हुए। वह भी तब जब उन्हें इस बात का विश्वास हो गया कि इनसे बात करके हमें कोई खतरा नहीं है और कम से कम ये हमारी बात को गलत तरीके से पेश नहीं करेंगे।
इन छात्रों से मिलने गई पत्रकार सुनीता भास्कर ने बताया कि जब उन्होंने मिलने के लिए कहा तो छात्रों ने कहा नहीं मैम कमरे में मत आइए। आपके यहां आने पर मकान मालिक और अन्य लोगों को परेशानी हो सकती है। मैं आपसे मिलने बाहर ही आ जाता हूं। इस पर मिलने का स्थान पार्क में तय किया गया। जैसे ही पार्क में वे लोग आए तो आते-जाते लोग अजीब-सी नजरों से देखने लगे कि ये लड़के किन से बात कर रहे हैं। इस स्थिति से बचने के लिए उन्हें पार्क से दूर अपनी गाड़ी के पास ले गए। उनकी बातों से लग रहा था कि वे राज्य की राजधानी में रहते हुए भी खुद को कितना असुक्षित और अलगाव में महसूस करते हैं। बातचीत में उन्होंने बताया कि 12 तारीख को हमने प्रदर्शन के दौरान कोई भी भारत विरोधी नारा नहीं लगाया। हमने सिर्फ 'वी वांट जस्टिस' और 'स्टाप जीनोसाइट' के नारे ही लगाए। उनका कहना था कि पिछले तीन दिनों से हम अपने घर बात नहीं कर पाए हैं। पूरे कश्मीर में कफ्र्यू है। फोन और इंटरनेट की सुविधाएं बंद हैं। बैंक बंद होने के कारण हमें घर वाले पैसे नहीं भेज पा रहे हैं। हम तो अपनी बात कहना चाहते हैं। हम आतंकवादी नहीं हैं। हमारा अपराध सिर्फ इतना है कि हम कश्मीरी मुसलमान हैं। हमारे घर वाले कहते हैं कि यहां हालात ठीक नहीं हैं, तुम बाहर जा कर पढ़ो। इन छात्रों का कहना है कि वे देहरादून इसलिए आना चाहते है कि यह एक शांत जगह है और यहां दंगे या उपद्रव होने की बात भी कभी नहीं सुनाई दी। लेकिन इन घटनाओं के बाद तो स्थितियां अलग हैं। एक छात्र ने बताया कि उसका छोटा भाई इंटर करने के बाद यहां आ गया था और किसी कोर्स में एडमिशन लेने की सोच रहा था लेकिन इस घटना के बाद वह घबराया हुआ है।
12 फरवरी के प्रदर्शन की घटना को लेकर राजनीतिक कार्यकर्ता मालती हलदार ने बताया कि उस दिन की घटना को लेकर उनकी कश्मीरी छात्रों से बात हुई तो छात्रों ने बताया कि कोई भी भारत विरोधी नारा नहीं लगाया गया था। वे परेड ग्राउंड में एकत्रित हुए थे और नमाज पढऩे के बाद जुलूस में घंटाघर की ओर जा रहे थे। वहां हम अपना प्रदर्शन खत्म करने ही वाले थे कि कुछ अखबारों के फोटोग्राफर आ गए और उन्होंने कहा नारे लगाओ हम तुम्हारा फोटो खींचते हैं। वे फोटो खींच रहे थे कि पुलिस आ गई और हमें थाने ले आई। इतना ही नहीं इस घटना के बाद स्थानीय पुलिस और खुफिया तंत्र की सक्रियता बढ़ गई है। इन लोगों को चेतावनी देकर छोड़ा गया कि वे आवश्यक काम से ही बाहर निकलें। उनकी वजह से इतना बवाल हो गया। इसका परिणाम यह हुआ कि मकान मालिकों की निगाह भी उन पर सख्त हो गई है।
इस घटना के इतर भी कश्मीरी छात्रों के साथ कम समस्या नहीं है। यहां आने पर भी वे समाज में किसी से मिलते नहीं है। शायद इसका कारण यह है कि जिन परिस्थितियों से वे आए हैं उन्हें यहां किसी पर विश्वास नहीं है। पूरे देश में कश्मीर को लेकर जो वातावरण है उसमें स्थानीय छात्र भी कश्मीरियों को शक की निगाह से देखते हैं और उनसे किसी तरह के संपर्कों से बचना चाहते हैं। एक कश्मीरी छात्र ने कहा भी कि उसकी दोस्ती एक स्थानीय छात्र से हो गई थी लेकिन जैसे ही उसे पता चला कि वह कश्मीरी है उसने दूरी बना ली। कितनी अजीब बात है कि एक ही कक्षा में पढऩे वाले बच्चों के बीच मनोवैज्ञानिक रूप से जबरदस्त अलगाव है। न कश्मीरियों को यहां के छात्रों पर विश्वास है और न यहां के छात्रों को कश्मीरियों पर। सबसे बुरा यह है कि शिक्षकों के स्तर पर भी कश्मीरियों से संवाद स्थापित करने के प्रयास नहीं किए गए। एक कश्मीरी छात्र ने तो यह कहते हुए भेदभाव करने की शिकायत भी की कि उसके काम में हमेशा गलती निकाली जाती है। एक अन्य कश्मीरी छात्र ने बताया कि उसके वाल पर कई बार टेरेरिस्ट लिख दिया जाता है।
अफजल गुरू की फांसी को लेकर भी छात्रों में सांप्रदायिक और उग्र राष्ट्रवाद दिखाई दिया। नौ तारीख को कश्मीरी छात्रों को मैसेज भेजे गए, 'कांग्रेचुलेशन अफजल हैंग्ड' (मुबारक अफजल फांसी पर लटकाया गया)। यह एक विजेता की भाषा है जो कमजोर और उपेक्षित लोगों को यह बताने के लिए भेजी जाती है कि देखो हम कितने ताकतवर हैं और हम क्या कर सकते हैं। इस तरह की घटनाएं तो और ज्यादा अलगाव ही लाएंगी। प्रदर्शन की घटना के बाद पुलिस ने इन छात्रों के नाम कश्मीर पुलिस को भेज दिए हैं। इससे ऐसा लगता है कि जैसे देहरादून में प्रदर्शन कर वे अपराधी हो गए। इससे तो ऐसा संदेश गया कि ये लड़के दून आकर भी बवाल ही कर रहे थे। जिस पुलिस के दुष्चक्र से वे बचकर कश्मीर से यहां आए वे वहां जाकर उसी चक्र में नहीं फंसेंगे क्या?
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