कोयला की कीमतें तय करने का एकाधिकार बना रहेगा बना रहेगा कोल इंडिया का!
विनिवेश की योजना फिलहाल टल गयी है और प्रतिरोध के मद्देनजर वित्त मंत्रालय ने भी रणनीति बदल दी है और अब बायबैक की संभावना वाली कंपनियों में डिसइन्वेस्टमेंट के लिए पहले ओएफएस और इसके बाद शेयर बायबैक होगा।
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कोयला नियमक बनने से कम से कम घरेलू बाजार में कोयला की कीमतें तय करने का एकाधिकार बना रहेगा बना रहेगा कोल इंडिया का!तमाम बुरी खबरों के बीच कोल इंडिया के लिए सबसे बड़ी राहत की बात यही है। नये बिजली संयंत्रों को कोल लिंक देने की बाध्यता से भी कोल इंडिया इस वक्त मुक्त है। शेयरबाजार में उतार चढ़ाव के बीत कंपनी के शेयर कमोबेश मजबूत है और मुनाफा का दौर जारी है। उत्पादन बढ़ाने के साथ साथ कोल इंडिया की अब प्राथमिकता होगी कि किसी भी तरह उसके कर्मचारी हड़ताल का आखिरी हथियार का इस्तेमाल न करें और इसके साथ ही कंपनी के विनिवेश का फैसले को भी लंबित रखने का दबाव बनाया रखा जाये।उद्योग चलाने के लिए कोयले की मांग करने वाले सभी प्रकार के नए आवेदकों के लिए कोल लिंकेज का दरवाजा बंद होने जा रहा है। कोयला लिंकेज के लिए लंबित आवेदनों और कोयले की मांग व आपूर्ति में बढ़ते अंतर को देखते हुए कोयला मंत्रालय अब नए आवेदकों को कोई मौका नहीं देने का पूरा मन बना चुका है। इस प्रस्ताव पर सिर्फ स्टैंडिंग लिंकेज कमेटी (लांग टर्म) की मुहर लगना बाकी है। लिंकेज कमेटी की बैठक 31 मई को प्रस्तावित है।
कोलइंडिया की दस फीसद हिस्सेदारी अगस्त महीने में बेचने की तैयारी थी, जिसके खिलाफ प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कोयला मजदूर यूनियनों ने हताल की धमकी दी तो विनिवेश की योजना फिलहाल टल गयी है और प्रतिरोध के मद्देनजर वित्त मंत्रालय ने भी रणनीति बदल दी है और अब बायबैक की संभावना वाली कंपनियों में डिसइन्वेस्टमेंट के लिए पहले ओएफएस और इसके बाद शेयर बायबैक होगा।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों और कंपनियों को चूना लगाते रहने की नीति पर लेकिन अडिग है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने भारी नकदी रखने वाली पब्लिक सेक्टर यूनिट (पीएसयू) से अन्य सरकारी कंपनियों में सरकार की इक्विटी खरीदने पर विचार करने के लिए कहा है, जिससे मौजूदा वित्तीय वर्ष के लिए 40,000 करोड़ रुपए के विनिवेश लक्ष्य को पूरा किया जा सके। कोल इंडिया, ओएनजीसी और ऑयल इंडिया जैसी पीएसयू के पास काफी नकदी है।अब तक यह दबाव भारतीय जीवन बीमा निगम और भारतीय स्टेट बैंक पर ही था।कोल इंडिया के लिए यह नया संकट है कि उसे अपना मुनाफा सरकार के विनिवेस अभियान में कपाना पड़ सकता है।केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने इस सिलसिले में ज्यादा नकदी रखने वाली सरकारी कंपनियों से नकदी बैलेंस और कैपिटल एक्सपेंडिचर की लेटर लिखकर जानकारी मांगी है और उनसे कहा है कि अगर उनके पास कैपिटल एक्सपेंडिचर के लिए मजबूत योजना नहीं है, तो वे सरकारी शेयर बायबैक करें या ज्यादा डिविडेंड दें।
सरकार ने मौजूदा फाइनैंशल इयर में 40,000 करोड़ रुपए के डिसइन्वेस्टमेंट टारगेट को पूरा करने के लिए कई कंपनियों की पहचान की है। देश की 17 बड़ी पीएसयू में सीआईएल, ओएनजीसी, एनएमडीसी और ओआईएल शामिल हैं। इनके पास 2012-13 के दौरान 1.62 लाख करोड़ रुपए का कुल कैश रिजर्व था।कोल इंडिया के पास 43,776 करोड़ रुपए के साथ सबसे अधिक कैश और बैंक बैलेंस था। दूसरे स्थान पर ओएनजीसी (22,450 करोड़ रुपए) थी। इसके बाद एनएमडीसी (17,230 करोड़ रुपए) और एनटीपीसी (16,185 करोड़ रुपए) का नंबर था। ऑयल इंडिया (ओआईएल) के पास कैश और बैंक बैलेंस 11,770 करोड़ रुपए, सेल के पास 13,207 करोड़ रुपए और इंडियन ऑयल कॉर्प के पास 1,290 करोड़ रुपए था। सरकार सीआईएल, इंडियन ऑयल और सेल जैसी कंपनियों में डिसइन्वेस्टमेंट करने पर विचार कर रही है।
मंत्रियों के समूह ने देश में कोयला की गुणवत्ता और इस क्षेत्र से जुड़े मुद्दों की निगरानी के साथ ही इसमें पारदर्शिता लाने और इस उद्योग की क्षमता बढ़ाने में मदद करने के उद्देश्य से कोयला नियामक के गठन को बुधवार को अपनी मंजूरी प्रदान कर दी। मंत्रियों के समूह में शामिल बिजली मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने वित्त मंत्री पी चिदंबरम की अध्यक्षता में समूह की पांचवीं बैठक के बाद यहां कहा कि समूह ने कोयला नियामक प्राधिकरण विधेयक के प्ररूप को अपनी मंजूरी प्रदान कर दी है। अगले 10 दिनों में एक नोट बनाकर मंत्रिमंडल के समक्ष रखे जाने की उम्मीद है। इस नियामक को हालांकि कोयले की घरेलू बाजार में कीमतें तय करने का अधिकार नहीं होगा। इस क्षेत्र की दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड का कोयला की कीमतें तय करने का एकाधिकार बना रहेगा। नियामक कोयला ब्लॉक के आवंटन को लेकर भी कोई राय नहीं दे सकेगा। मंत्रियों के समूह ने इसके साथ ही कोयले की कीमतों में बढ़ोतरी को सीमेंट, इस्पात और बिजली उत्पादकों पर डालने के लिए एक तंत्र बनाने के प्रस्ताव को भी अनुमोदित कर दिया है।
2013-14 में कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) में शेयर की सेल सरकार का सबसे बड़ा डिसइन्वेस्टमेंट प्रपोजल है। इसके जरिए सरकार लगभग 17,000 करोड़ रुपए जुटाने की योजना बना रही है। अधिकारी ने बताया कि सीआईएल में 10 फीसदी स्टेक सेल को ऑफर फॉर सेल (ओएफएस) और कंपनी की सरकारी इक्विटी के बायबैक में बांटा जा सकता है।
सरकार निजी कोयला खदानों (कैप्टिव माइंस) में उत्पादित सरप्लस कोयले को नियामक के दायरे में लाने की तैयारी कर रही है। प्रस्तावित कोयला नियामक (जो कीमत व कोयला खदान के संचालन में पारदर्शिता लाएगा) कोल इंडिया के लिंकेज कोल की कीमतों के अलावा निजी खदानों में उत्पादित कोयले की कीमतों की व्यवस्था का फैसला करेगा।
वित्त मंत्री पी चिदंबरम की अगुआई वाली नौ सदस्यीय समिति की बैठक में कोल रेग्युलेटरी अथॉरिटी बिल पर विस्तृत चर्चा के बाद कोयला मंत्रालय ने निजी खदानों को शामिल करने के लिए मसौदे में एक अलग धारा जोड़ी है। एक साल पहले सासन अल्ट्रा पावर परियोजना के लिए आवंटित खदान से उत्पादित सरप्लस कोयले का इस्तेमाल इसके चित्रांगी पावर प्लांट करने की अनुमति आर पावर को दी गई थी।
कोयला मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा, अगर नई धारा पर अमल हुआ तो इससे नियामक की जद में टाटा पावर, रिलायंस पावर, जिंदल स्टील ऐंड पावर समेत कई और निजी कंपनियां शामिल हो जाएंगी। निजी खदानों से उत्पादित कोयले की कीमत का फैसला सिद्धांतों और नियामक की तरफ से कीमत तय करने के तरीके के आधार पर होगा और यह यह सरप्लस कोयले की कीमतें तय करने का आधार बनेगा। उन्होंने यह भी कहा कि निजी खदानों से उत्पादित कोयले की कीमतों को राज्य सरकारों के लिए रॉयल्टी के आकलन का आधार बनाया जाएगा।
मौजूदा व्यवस्था के तहत कैप्टिव कोल माइंस का संचालन करने वाली निजी कंपनियों के लिए अनिवार्य है कि वह सरप्लस उत्पादन नजदीकी कोल इंडिया की सहायक कंपनी के साथ सरकार द्वारा तय ट्रांसफर प्राइस के हिसाब से साझा करे। कोयला मंत्रालय ने सरप्लस कोल पॉलिसी के मसौदे में प्रस्ताव रखा था कि निजी खदान मालिकों को अपने सरप्लस उत्पादन सीआईएल को उत्पादन लागत से कम या फिर अधिसूचित कीमत पर बेचनी चाहिए। बाद में यह नीति त्याग दी गई।
साथ ही कैप्टिव कोल माइनिंग कंपनियां मौजूदा समय में नजदीकी कोल इंडिया की सहायक कंपनी में लागू रॉयल्टी की दर के बराबर ही रॉयल्टी का भुगतान करती है।
पिछले वर्ष जनवरी में सरकार ने कहा था कि देश में कोयला क्षेत्र की समस्या को निपटाने एवं इसके गुणवत्ता आदि से जुड़े मसलों के समाधान के लिए कोयला नियामक बनाया जायेगा। इसके बाद मंत्रिमंडल ने कोयला नियामक के गठन के प्रस्ताव पर विचार किया और पिछले वर्ष मई में इसके लिए मंत्रियों का एक समूह बनाकर उसे नियामक की शक्तियां एवं कार्य प्रणाली तय करने के लिए कहा था। मंत्रियों के समूह में वित्त मंत्री के अतिरिक्त कोयला मंत्री, वन एवं पर्यावरण मंत्री, बिजली मंत्री और योजना आयोग के उपाध्यक्ष के साथ ही कुछ दूसरे सदस्य भी शामिल है।
कोयला मंत्रालय के मुताबिक, कोयला आपूर्ति के लेटर ऑफ एश्योरेंस (एलओए) पाने के लिए 1590 आवेदन आ चुके हैं। मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक, इन सभी आवेदकों को कोयले की आपूर्ति करने पर सालाना 32,000 लाख टन कोयले की जरूरत होगी जो कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) के उत्पादन से बहुत अधिक है।
मंत्रालय के मुताबिक, कोल इंडिया की सब्सिडियरी कंपनियां 1,08,000 मेगावाट बिजली के लिए 176 एलओए पूर्व में जारी कर चुकी हैं। 11वीं पंचवर्षीय योजना के अंतिम तीन वर्षों में इनमें से 26,000 मेगावाट बिजली की क्षमता की स्थापना हो चुकी है। शेष 80,000 मेगावाट बिजली की क्षमता की स्थापना 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान प्रस्तावित है।
कोयला मंत्रालय के मुताबिक, चूंकि पहले से ही 80000 मेगावाट की बिजली परियोजनाओं के लिए एलओए जारी किए जा चुके हैं, इसलिए 12वीं पंचवर्षीय योजना के दौरान अब किसी भी नए आवेदक को एलओए जारी करने की स्थिति कहीं से भी नहीं बन सकती है।
मंत्रालय के मुताबिक, कोल इंडिया की सब्सिडियरी कंपनियों का कोयला संतुलन पहले से ही नकारात्मक चल रहा है। कोयला मंत्रालय के मुताबिक, इन्हीं वजहों से मंत्रालय ने अब किसी भी क्षेत्र को एलओए जारी नहीं करने का मन बनाया है और अब नए आवेदकों से आवेदन नहीं लिए जाएंगे।
मंत्रालय के मुताबिक, इस मामले में लिंकेज कमेटी की मुहर लगते ही इस संबंध में नोटिस जारी कर दिया जाएगा। मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, पिछले छह महीनों के दौरान एलओए के लिए प्राप्त लंबित आवेदनों पर यह विचार किया जाएगा कि उनके आवेदन को स्वीकार किया जा सकता है या नहीं।
इसके लिए उन आवेदनों को संबंधित विभाग के पास परामर्श के लिए भेजा जाएगा। कोल इंडिया के मुताबिक, वित्त वर्ष 2016-17 के दौरान कोयले की कुल मांग 7,728 लाख टन होगी, जबकि उत्पादन 6,150 लाख टन तक ही पहुंच पाएगा। ऐसे में कोयले की मांग व आपूर्ति में 1,578 लाख टन का अंतर होगा।
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