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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, June 15, 2013

साकेत बहुगुणा अर विजय बहुगुणा मध्य छ्वीं बथा





गढ़वाली हास्य -व्यंग्य 
 सौज सौज मा मजाक मसखरी 
  हौंस,चबोड़,चखन्यौ    
  सौज सौज मा गंभीर चर्चा ,छ्वीं   
                       
                            साकेत बहुगुणा अर विजय बहुगुणा मध्य छ्वीं बथा


                  चबोड़्या - चखन्यौर्याभीष्म कुकरेती
(s = आधी  )

  अबि कुछ दिन पैल साकेत बहुगुणा टिहरी जिना गे छया। मि सुचणु छौ , कल्पना करणु छौ बल साकेत जी अर विजय जी द्वी बाब -ब्यटा बीच क्या क्या छ्वीं लगि होलि?
साकेत - पापा!  तुमन मि तै फंसै द्यायि!
विजय बहुगुणा- हैं !मीन त्वै तैं फंसै द्यायि? यि जरूर कौंग्रेस मा म्यार विरोध्युं चाल होलि। तू फोन धौर मि पता लगान्दु कि कै कॉंग्रेसीन या अफवा उड़ाइ धौं!    
साकेत बहुगुणा -
डैड तुम बि ना! मि उन घपला मा फंसाणो बात नि छौ करणु।
विजय बहुगुणा- औ! त तु कैं बात कि बात करणी छे ? माई डियर!
साकेत बहुगुणा -
मि बुलणु छौं बल अबि त चुनाव भौत दूर छन अर तुमन मि तैं खां-मा -खां इख टिहरी भेजि दे।
विजय बहुगुणा- डार्लिंग ! विरोध्युं तैं याद दिलाण जरूरी च कि टिहरी कंस्टिट्वंसि पर अब इलाहाबादी बहुगुणा बंश को राज च।
साकेत बहुगुणा -
पण डैड! यी टिहरी अर उत्तरकाशी का लोग अजीब अजीब अनोखा सवाल पुछणा रौंदन। अर पापा पता च यूं प्रश्नों क्वी रेलिवेन्सी या औचित्य ही नी च।
विजय बहुगुणा-  सवाल अर टिहरी का सीधा साधा लोग? बाइ द वे! क्या क्या सवाल पुछणा छा यि लोग? 
साकेत बहुगुणा -
ब कथगा इ पुछणा छा बल मि तैं गढ़वळि बुलण बि आंद, डैड व्हट द ह्यल दिस गढ़वाली?
विजय बहुगुणा- माइ डियर सन! याद च जब तु छवट छौ, मि जवान आदिम छौ, तेरि फूफू रीता जोशी बि जवान छे। अर कबि कबि पिता जी के गाँव बुघाणी से कोई ग्रामवासी या जोशी जीजा जी का रिश्तेदार जन कि ललिता प्रसाद काला जी आंद छा अर यि लोग पिताजी दगड़ पता नि कैं या कनफणि सि लैंग्वेज मा बातचीत करदा छा।
साकेत बहुगुणा -
हाँ हाँ ! याद आया। तब हम सब दादा जी को चिढ़ाते थे कि -दादा जी दादा जी ! आप  कौन से आदिवासी इलाके के  हैं? जो अजीब सी भाषा में बचऴयाते हो। 
विजय बहुगुणा- हाँ ! माइ डियर सन! वै च गढ़वाली भाषा।
साकेत बहुगुणा -
पण डैड जब हम सब  , अंकल शेखर बहुगुणा, अपण कजिन मयंक जोशी बगैर गढ़वळि बुल्यां इथगा  बड़ा नेता बौण  सकदां तो यी टिहरी-उत्तरकाशी  वाळ गढ़वळि भाषा बात किलै करदन?  
विजय बहुगुणा- टिहरी रियासत को नयो राजकुमार ! त्वै तैं इन बेकार,बदअकली भाषा जन बातों पर कतै बि ध्यान नि दीण चयेंद। बाइ द वे जब लोगुन पूछ कि त्वै तैं गढ़वळि भाषा बुलण बि आंद तो त्यरो जबाब क्या छौ?    
साकेत बहुगुणा -
मीन जबाब मा ब्वाल कि  मी भारत माता को लाल छौं अर मि राष्ट्रीय एकता मा विश्वास करदो।
विजय बहुगुणा- वेरी गुड। फिर!
साकेत बहुगुणा -
हाँ ऊं तैं मै पर विश्वास तो इ ह्वाइ पण राष्ट्रीय एकता की बात से बेचारा गढ़वाली भाषा प्रेमी अपण सि मुख लेक बैठि गेन।
विजय बहुगुणा- वेरी गुड। यि पहाड़ का गढ़वळि लोग बड़ा भावुक होंदन अर देश का खातिर अपणी भाषा त जाणि दे अपण ज्यान बि त्याग दींदन।
साकेत बहुगुणा -
अच्छा पापा ! या संस्कृति क्या ह्वे पापा? सबि पुछणा छा बल  मेरी संस्कृति क्या क्या च? मेरी संस्कृति क्या क्या च?
विजय बहुगुणा- संस्कृति ! संस्कृति याने कल्चर
साकेत बहुगुणा -
बट ! खैर पापा मीन संस्कृति वाळि  बात तैं भलि तरां से संबाळ द्यायि।
विजय बहुगुणा- कनकै मेरो राजकुमार?
साकेत बहुगुणा -
मीन जन इलाहाबाद मा लोगुं मुखान सुण्यु छौ तनि जबाब दे द्यायि।
विजय बहुगुणा- क्या ?
साकेत बहुगुणा - मीन जबाब दे द्यायि कि मेरि संस्कृति तो गंगा -जमुना की बीच की संस्कृति च।

विजय बहुगुणा- तो?
साकेत बहुगुणा -
तो क्या पापा! मेरो जबाब से सबि टिहरी अर उत्तरकाशी का लोग खुश ह्वै गेन. बट पापा! यी लोग खुश किलै ह्वै होला?
विजय बहुगुणा- अरे नादान राजकुमार !तीन जब इलाहाबादी संस्कृति याने गंगा -जमुना की बीच की संस्कृति ब्वाल तो यि सीधा साधा लोग समझिन कि तू गंगोत्री -यमुनोत्री का बीच की संस्कृति बात करणु छे। तेरो तो तुक्का छौ  पर तीर सटीक बैठ।
साकेत बहुगुणा -डैड! ऑफ द रिकॉर्ड!  हमारि संस्कृति छ क्या च?
विजय बहुगुणा- सत्ता बान नेहरु --गांधी परिवार की चाटुकारिता ही हमारी संस्कृति च। त्यार  ददा जीन बि कुछ साल छोड़ी वा ही संस्कृति अपनाइ छे अर हम सबि भाई -बैण  बि
नेहरु --गांधी परिवार का पूजक छंवां।  नेहरु --गांधी परिवारने पूजा ही कॉंग्रेसी संस्कृति च।
साकेत बहुगुणा -
अछा बाबा ! यो पलायन क्या होंद? सबि बुलणा छा कि पलायन रोको , पलायन रोको। पलायन क्या क्वी हज्या, चेचक जन बीमारी च?
विजय बहुगुणा- बेटा! हम नेताओं दिखण से त पलायन तो क्वी बीमारी नी च ना पण हाँ! पलायन रोको की रट की बीमारी हर कुमाउंनी  अर गढ़वळि पर एक जनमजाती बीमारी च। इख पर ध्यान दीणै जरूरत नी च। जै बीमारीन ठीकि नि होण वांक बारा मा सुचण ठीक नी च।
साकेत बहुगुणा -
अच्छा ! पलायन पर मी बोलि द्योलु कि पलायन रुकणो बान भरसक प्रयत्न  करे जाल। पण डैड! यी गाँव वाळ एक सवाल पुछि पुछिक भौत तंग करदन।
विजय बहुगुणा- क्या च वो प्रश्न?
साकेत बहुगुणा -
हरेक गाँव वाळ पुछदन  कि पर्वतीय विकास  बीमारी का हल का बारा मा मि क्या जाणदु? सबि पुछदन ये पर्वतीय विकास प्रकोप का  हल क्या च?
विजय बहुगुणा- विकास का बारा मा त मीन सूण  छौ पण पर्वतीय विकास का बारा मा मीन नि सूण। तु एक मिनट होल्ड कौर मि अबि चीफ सेक्रेटरी तै भट्यान्दु अर पुछुद छौं कि पर्वतीय विकास क्या बीमारी च , पता नी क्या बला च धौं!
चीफ सेक्रेटरी- जी मुख्यमंत्री जी !
विजय बहुगुणा -  सेक्रेटरी जी ! तुमन कबि नि बथाइ बल टिहरी-उत्तरकाशी का गाऊं मा क्वी
   पर्वतीय विकास की नई बीमारी लगीं च?
सेक्रेटरी - सर! अब जब उख गाओं मा क्वी डाक्टर हि नि जांदन तो हम तै पता इ नि चलदो कि उख गाऊं मा कु कु नई बीमारी ऐ गेन धौं!

विजय बहुगुणा- सेक्रेटरी जी ! साकेत साब अचकाल टिहरी-उत्तरकाशी टूर पर छन अर ऊँ तै पता चौल कि ऊना दुइ जिलौं मा पर्वतीय विकास की नई भंयकर बीमारी   लगीं च। तुम इन कारो मुख्यमंत्री आपदा कोष से एक करोड़ रुपया की इमदाद का इंतजाम कारो।
विजय बहुगुणा - बेटा साकेत! भलो ह्वाइ तीन विरोधी पार्टी से पैल ईं बीमारी सुचना दे दे। मीन
पर्वतीय विकास  की नई बीमारी का वास्ता बजट दे आल। अब तू बयान  दे सकद कि साकेत बहुगुणा के प्रयास से पर्वतीय विकास की नई बीमारी टिहरी और उत्तरकाशी के प्रत्येक अस्पतालों में  उपलब्ध कराई जा रही हैं।
साकेत बहुगुणा -
थैंक्स डैड ! मि अबि प्रेस कॉन्फ्रेंस करदु कि पर्वतीय विकास के भंयकर प्रकोप से बचने के लिए युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है अर हरेक ग्रामीण अस्पताल मा  पर्वतीय विकास प्रकोप से बचणो दवा उपलब्ध होलि। ओके डैड! 


Copyright @ Bhishma Kukreti  15/06/2013    

(यह लेख सर्वथा काल्पनिक है )

--
 
 
 
 
Regards
Bhishma  Kukreti

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