शारदा मीडिया समूह के बेरोजगार पत्रकार गैर पत्रकार मुख्यमंत्री और राज्यपाल की शरण में!
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
शारदा मीडिया समूह के बेरोजगार पत्रकार गैर पत्रकार मुख्यमंत्री और राज्यपाल की शरण में आ गये हैं। कोलकाता के प्रेस क्लब में विभिन्न पत्रकार संगठनों के तत्वावधान में शारदा समूह के बंद हुए चैनलों और अखबारों के तमाम पत्रकार और गैरपत्रकार एकजुट हुए।पश्चिम बंगाल और असम में शारदा मीडिया समूह के सेवन सिस्टर्स पोस्ट, बंगाल पोस्ट, सकालबेला, आझाद हिंद, तारा न्यूज, तारा मुझिक और तारा बांग्ला इन समाचारपत्रों में काम करने वाले करिब 1200 पत्रकारों पर बेरोजगारी की गाज गिरी है।
इस बैठक में शारदा मीडिया समूह से अपना बकाया वसूलने के लिए राज्यपाल और मु्ख्यमंत्री से आवेदन करने का फैसला हुआ।लेकिन उनकी मुख्य समस्या बकाया की नहीं है बल्कि वैकल्पिक रोजगार की है। बकाया मिल भी जाये तो कितनेदिन चूल्हा जलेगा, कोई ठिकाना नहीं है। मुख्यमंत्री ने तो शारदा समूह के दो चैनलों के कर्मचारियों को एक मुश्त सोलह हजार के अनुदान देने की घोषणा की है।इतनी कम रकम सेबेरोजगारी के आलम में जिंदगी नहीं चलने वाली। बंगाल में पत्रकार संगठन अमृत बाजार, जुगांतर, बसुमति , सत्ययुग जैसे अखबारों के बंद होने के समय से लगातार आंदोलन करते रहे हैं। न बंद अखबार खुले और न ही वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था हो सकी।दशकों से राज्य का प्रतिष्ठित मीडिया समूह अमृत बाजार पत्रिका बंद हैं, जिनसे जुड़े पत्रकार गैर पत्रकार भुखमरी के कगार पर हैं। बंगलोक, ओवरलैंड, सत्ययुग, बसुमती जैसे तमाम अखबार हैं, जो बरसों से बंद है और लोगों को कुछ नहीं मिला। लगता है कि इसी अभिज्ञता के चलते शारदा मीडिया समूह के बंद संस्थानों के कर्मचारियों की तरफ से ऐसी कोई मांग उठाने बजाय तात्कालिक राहत बतौर बकाया भुगतान की मांग प्रमुखता से उठायी गयी है।
मुख्यमंत्री इससे पहले अनुग्रह राशि की घोषणा करते हुए शारदा समूह के तारा म्युजिक और तारा चैनल के अधिग्रहण की घोषणा कर चुकी हैं। लेकिन केंद्र सरकार ने इस कदम को अवैध ठहरा दिया है। इसलिए बाकी संस्थानों के कर्मचारियों ने अधिग्रहण की मांग भी नहीं उठायी है। वाममोर्चा ने जहां उनकी नीयत पर सवाल उठाया है, वहीं केंद्र सरकार ने अधिग्रहण की कोशिश का तकनीकी और वैधानिक आधार पर विरोध किया है। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने शुक्रवार को सवाल उठाया कि वर्तमान लाइसेंस कानूनों के मद्देनजर कोई सरकार किसी भी चैनल का अधिग्रहण कैसे कर सकती है? दूसरी ओर टेलीकॉम ऑथोरिटी ऑफ इंडिया (ट्राइ) के नियमानुसार कोई भी राज्य सरकार टीवी चैनल नहीं चला सकती, क्योंकि, संसद में कानून पारित कर प्रसार भारती गठित की गई है, जो एक स्वायत्त संस्था है। बृहस्पतिवार को मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने चिट फंड घोटाले की आंच से बंद हो गए शारदा समूह के दो चैनलों शारदा म्यूजिक व शारदा न्यूज के सभी 168 कर्मचारियों का अधिग्रहण करने एवं प्रक्रिया पूरी नहीं होने तक मुख्यमंत्री राहत कोष से प्रतिमाह 16 हजार रुपये बतौर अनुदान देने की घोषणा की है।जिन दोनों चैनलों के अधिग्रहण की तृणमूल सरकार ने घोषणा की है, उसे शारदा समूह के मुखिया सुदीप्त सेन ने 2011 में खरीदा था। गत अप्रैल में घोटाले के उजागर होने के कुछ दिन पूर्व ही मीडिया प्रतिष्ठान के सभी चैनलों व समाचार पत्रों को बंद करने की घोषणा की गई थी। वाम मोर्चा सवाल उठा रहा है कि पश्चिम बंगाल सरकार ने अन्य इसी समूह के अन्य चैनलों तथा अखबारों को बचाने के लिए क्यों नहीं कोई कदम उठाया। कांग्रेस भी इसे विवाद वाला कदम बता रही है। राज्य सरकार चैनलों को चलाने के लिए मुख्यमंत्री राहत कोष के 26 लाख रुपए मुहैया कराएगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि हालांकि सरकार चैनलों के ऋणों की जिम्मेदारी नहीं लेगी जो कि छह करोड़ रुपये है।दीदी ने शारदा समूह के तारा समूह के दो टीवी चैनलों का तो अधिग्रहण कर लिया है, इसकी वजह से इन संस्थाओं के पत्रकारों गैर पत्रकारों को भारी राहत मिली है, पर शारदा मीडिया साम्राज्य के बाकी अखबारों और चैनलों का क्या होगा, इसके बेरा में दीदी ने कोई संकेत नहीं दिया।
शारदा समूह के मीडिया साम्राज्य पर सत्तादल तृणमूल कांग्रेस के दखल का सिलसिला सुदीप्त सेन के ६ अप्रैल को सीबीआई को पत्र लिखने से पहले शुरू हो चुका था। बाद में पुलिस जिरह में भी शारदा कर्णधार सुदीप्त सेन ने बार बार कहा कि समूह की पूंजी मीडिया में लगाने के लिए तृणमूल नेता और मंत्री उन्हें मजबूर कर रहे थे। शारदा मीडिया समूह के सीईओ बतौर तृणमूल सांसद कुणाल घोष को महीने में सोलह लाख रुपए का वेतन मिलता था, जो देश के किसी भी मीडिया समूह की तुलना में ज्यादा ही है। परिवर्तनपंथी बुद्धिजीवी चित्रकार बंगविभूषण शुभोप्रसन्न सुदीप्त के साथ साझेदारी में टीवी चैनल शुरु करने जा रहे थे, जिसके हेड थी परिवर्तनपंथी नाट्यकर्मी अर्पिता घोष।जिन लोगों का नाम घोटाले में उछला है, उनमें सबसे अग्रणी तृणमूल के राज्य सभा सांसद कुणाल घोष हैं। शारदा मीडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के तौर पर उन्हें शाही वेतन 15 लाख रुपए प्रतिमाह दिया जाता था। इसके अलावा उन्हें भत्ते के तौर पर 1.5 लाख रुपए अलग से मिलते थे।
शारदा समूह का सी.एम.डी और चेयरमैन सुदीप्तो सेन न सिर्फ खुद कई चैनलों, अख़बारों और पत्रिकाओं का मालिक था बल्कि उसने बंगाल और असम में कई और मीडिया समूहों में भी निवेश कर रखा था। यही नहीं, वह इस क्षेत्र के अखबारों और चैनलों का एक बड़ा विज्ञापनदाता भी था। वह बंगाल का उभरता हुआ मीडिया मुग़ल था जिसके चैनलों और अख़बारों ने तृणमूल के पक्ष में हवा बनाने में खासी भूमिका निभाई।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक मुख्यमंत्री का चैनलों के अधिग्रहण की दिशा में यह पहला कदम है। वाममोर्चा मुख्यमंत्री के इस कदम की कड़ी आलोचना कर रहा है। विरोधी दल के नेता सूर्यकांत मिश्र ने इसे वित्तीय दबाव के बीच सरकारी धन की बरबादी कहा है। मिश्र ने पूछा कि घोटाले में फंसी किसी फर्जी चिट फंड कंपनी के चैनलों का कोई सरकार कैसे अधिग्रहण कर सकती है।विरोधी दल इस बारे में सरकार की नीयत पर भी सवाल खड़ा करते हुए जानना चाहते हैं कि शारदा मीडिया समूह के सिर्फ दो चैनलों पर सरकार क्यों मेहरबानी दिखा रही है, जबकि इसी समूह के अंतर्गत 13 चैनल व समाचार पत्र बंद हो चुके हैं। डा. मिश्र ने पूछा कि सारधा समूह के बंद हो गए अन्य मीडिया प्रतिष्ठानों के हजारों बेरोजगार कर्मचारियों पर ममता बनर्जी क्या अपनी ममता दिखाएंगी?
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