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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, June 17, 2013

कोयला माफिया और तस्करों के साथ माओवादियों के गहरे ताल्लुकात! हिंसा के उत्सव की आड़ आड़ में पश्चिम बंगाल में कुछ भी कर गुजर सकते हैं माओवादी!दीदी पर आत्मघाती हमले का खतरा।

कोयला माफिया और तस्करों के साथ माओवादियों के गहरे ताल्लुकात! हिंसा के उत्सव की आड़ आड़ में पश्चिम बंगाल में कुछ भी कर गुजर सकते हैं माओवादी!दीदी पर आत्मघाती हमले का खतरा।


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


छत्तीसगढ़ व बिहार के बाद अब पश्चिम बंगाल माओवादियों के निशाने पर है!बिहार में इंटरसिटी एक्सप्रेस पर माओवादी हमले के मद्देनजर पश्चिम बंगाल में आज अलर्ट जारी कर दिया गया तथा ओडिशा एवं झारखंड से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ा दी गई। माओवादी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की हत्या करने के लिए आत्मघाती हमले की साजिश रच रहे हैं. ममता माओवादियों के निशाने पर हैं. ऐसी जानकारी केंद्रीय खुफिया एजेंसी ने राज्य सरकार को दी है। केंद्रीय रिपोर्ट के अनुसार माओवादियों ने बंगाल के कुछ राजनेताओं की हत्या के लिए आत्मघाती हमला करने की योजना बनायी है।


कोयलांचल में माओवादियों के गढ़ पर राज्य सरकारों और केंद्र कि निगरानी में नाकामी की वजह से जमुई में दिनदहाड़े माओवादियों ने हमला कर दिया। बर्नपुर में माकपा विधायक दिलीप सरकरा की हत्या के बाद भी प्रशासन इस मामले को राजनीतिक वजह से महिलाघटित बताती रही । जबकि जंगल महल में माओवादी सक्रियता की खुफिया रपट की पुष्टि ओड़ीशा के रास्त आये माओवादियों के बारे में राज्य सरकार की रपट से हो चुकी है। जमुई की ताजा वारदात से साफ जाहिर है कि माओवादी रणनीति उनकी गतिविधियों का केंद्र छत्तीसगढ़ से हटाने पर है। जमुई की ताजा वारदात से साफ जाहिर है कि बिहार, बंगाल और छत्तीसगढ़ माओवादियों के निशाने पर हैं।बंगाल में पंचायत चुनाव का अगला चरण अब जंगल महल में शुरु होने वाला है,जहां माओवादियों ने वोट बायकाट की अपील की है। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का नाम माओवादियों की हिटलिस्ट पर सबसे टाप पर है।माओवादी हमले में सुकमा जंगल में महेंद्र कर्म और पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण सुक्ल समेत छत्तीसगढ़ कांग्रेस के पूरे नेतृत्व कीहत्या की वारदात के बाद भी जंगल महल में अमन चैन का राग अलापते हुए खतरे को नजरअंदाज करना भारी पड़ सकता है। कोयला माफिया और तस्करों के साथ माओवादियों के गहरे ताल्लुकात की वजह से खानों से विस्फोटक चुराकर माओवादियों ने छत्तीसगढ़ से लेकर बंगाल और बिहार तक को बारुदी सुरंग पर सहेज दिया है।नक्सल प्रभावित गिरिडीह जिले से गिरफ्तार किये गये एक नक्सली ने खुलासा किया कि माओवादी जबरन वसूले गए धन का निवेश गैर कानूनी कोयला खनन और सूद पर धन देने के कारोबार में कर रहे हैं।सीसीएल प्रबंधन व कोयला कार्य से जुड़ी दूसरी निजी कंपनियां माओवादियों, अन्य नक्सली संगठनों को प्रतिदिन 50 लाख रुपए से ज्यादा की लेवी देती हैं।


केंद्र सरकार ने बताया कि पिछले दो सप्ताह में कम से कम छह बड़े माओवादी नेता जंगल महल में प्रवेश कर चुके हैं। विगत दो सप्ताह में इन छह माओवादी नेताओं ने सात-आठ बार स्थानीय माओवादी कमांडरों के साथ बैठक की है। बंगाल में माओवादियों का अस्तित्व पहले से कमजोर हो चुका है, इसलिए इस बार दूसरे राज्यों से यहां माओवादियों को लेकर हमला करने की साजिश रची जा रही है।जानकारी के अनुसार माओवादियों ने इस बैठक में तय किया है कि फिलहाल बंगाल में माओवाद संगठन का विकास नहीं किया जायेगा, सिर्फ अपने अस्तित्व से सबको परिचय कराने के लिए हमला किया जायेगा।पंचायत चुनाव के पहले राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में माओवादी हमले कर सकते हैं, इन हमलों में उन लोगों को भी निशाना बनाया जा सकता है, जो संगठन छोड़ कर आम जनजीवन व्यतीत कर रहे हैं।


हिटलिस्ट में मुख्यमंत्री का नाम सबसे ऊपर है. माओवादी मुख्यमंत्री के मूवमेंट पर नजर रख रहे हैं। मुख्यमंत्री अपने सुरक्षा कवच को तोड़ कर भीड़ में प्रवेश कर जाती हैं, इसी को माओवादी अपना निशाना बनाना चाहते हैं।रिपोर्ट में कहा गया है कि मुख्यमंत्री की उच्च स्तर की सुरक्षा है, लेकिन वह सभी सुरक्षा नियमों का खुद उल्लंघन करती हैं।बिना किसी प्राथमिक जांच के किसी के भी घर व स्कूल में प्रवेश कर जाती हैं. यहां तक कि चुनाव प्रचार के साथ ही आधिकारिक टूर पर भी वह सड़क किनारे चाय दुकानों पर रुक कर चाय पीती हैं।वहां देखते ही देखते लोगों की भीड़ लग जाती है. वह लोगों से बातचीत करने लगती हैं. उनको इस बात की परवाह नहीं रहती कि वह जगह सुरक्षित है या नहीं. माओवादी ऐसे मौकों की ताक में हैं।


सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि बार-बार सतर्क करने के बाद भी मुख्यमंत्री सुरक्षा खतरे पर ध्यान नहीं देती हैं। मुख्यमंत्री से इस बारे में पूछने पर उनका एक ही जवाब होता है कि अगर वह सुरक्षा कारणों से स्वतंत्र रूप से लोगों से नहीं मिल सकतीं तो उनको वोट देने वाले लोगों को वह क्या जवाब देंगी। इसलिए अपने जीवन काल में वह कभी भी सुरक्षा कारणों से लोगों से नहीं मिलने का पाप नहीं कर सकतीं. क्योंकि वह निजी फायदे के लिए राजनीति नहीं करती हैं।


सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि मुख्यमंत्री कभी भी आधिकारिक बुलेट प्रूफ वाहन का इस्तेमाल नहीं करतीं. वह एक साधारण कार में सफर करती हैं, जिसे आसानी से निशाना बनाया जा सकता है। इसके अलावा उनके साथ चलनेवाले सुरक्षा गार्डो को भी उनकी गतिविधि की पूरी जानकारी नहीं रहती है।वह किसी भी समय अपना मूवमेंट बदल देती हैं, इसलिए उनके साथ डय़ूटी करते वक्त सुरक्षा अधिकारियों को हमेशा ही चौकन्ना रहना पड़ता है। केंद्रीय खुफिया एजेंसी ने सरकार को आगाह करते हुए कहा है कि उसे मुख्यमंत्री की सुरक्षा की ओर ध्यान देना चाहिए. उनकी सुरक्षा और मजबूत करनी चाहिए।


पुलिस महानिदेशक एन मुखर्जी ने बताया कि पूरे पश्चिम बंगाल में अलर्ट जारी कर दिया है और ओडिशा एवं झारखंड की सीमा पर विशेष सुरक्षा प्रबंध किया गया है। उन्होंने कहा कि रेलवे बोर्ड के साथ संपर्क रखा जा रहा है।मुखर्जी ने बताया कि जंगल महल के जिलाधिकारियों से राइटर्स बिल्डिंग में प्रदेश मुख्यालय से संपर्क में बने रहने को कहा गया है। राज्य में पूर्व एवं दक्षिण पूर्व रेलवे में अतिरिक्त सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं।


राज्य के जंगल महल के तीन जिलों बांकुड़ा, पुरुलिया व पश्चिम मेदिनीपुर में सुरक्षा व्यवस्था को और मजबूत करने के लिए केंद्र सरकार ने यहां और छह कंपनी अर्धसैनिक बल के जवानों को तैनात करने का फैसला किया है।बहुत जल्द यह छह कंपनियां यहां आ जायेंगी. छत्तीसगढ़ व बिहार में हुए नक्सली हमले के बाद केंद्र सरकार ने माओवाद प्रभावित क्षेत्रों की सुरक्षा व्यवस्था और मजबूत करना चाहती है।इस संबंध में राज्य सरकार ने भी केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिख कर और अर्धसैनिक बल के जवानों की मांग की थी, जिसे केंद्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है और यहां छह कंपनी फोर्स भेजने की मंजूरी दे दी है। गौरतलब है कि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार द्वारा भेजे गये पत्र में कहा था कि छत्तीसगढ़ व बिहार में हमला करने के बाद माओवादी अब बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों से यहां प्रवेश करने की फिराक में हैं।वैसे भी यहां अगले कुछ दिनों में पंचायत चुनाव होना है, चुनाव के पहले राज्य के सभी बोर्डर सील कर दिये जायेंगे। इसलिए सीमांत क्षेत्रों में सुरक्षा व्यवस्था को और बेहतर करने के लिए यहां और अर्धसैनिक बल के जवानों की जरूरत होगी। केंद्र सरकार ने जंगलमहल की सुरक्षा के लिए अर्धसैनिक बल के जवान भेजने का फैसला तो कर लिया है, लेकिन अब पंचायत चुनाव के लिए राज्य सरकार को फोर्स मिल पायेगा या नहीं, इसे लेकर अभी भी संशय बरकरार है।



पिछले 27 मार्च को झारखंड में पुलिस और नक्सली मुठभेड में कई नक्सली मारे गए थे। इस घटना के विरोध में नक्सली संगठन भाकपा माओवादी की दो दिनी आहूत बंदी के पहले दिन वेस्ट बोकारो व इसके आस पास के इलाकों में व्यापक असर देखा गया। सीसीएल हजारीबाग प्रक्षेत्र के केदला, झारखंड़, परेज, बसंतपुर , तापिन में कोयला ढुलाई पूरी तरह से बंद हो गयी।


सलवा जुड़ुम वाली छत्तीसगढ़ सरकार से लेकर झारखंड और बिहार की सरकारें इस चुनौती का मुकाबला नहीं कर पायी तो बंगाल तो इसे गंभीरता से ले ही नहीं रही है। सत्तादल के वर्चस्व को कायम रखने के लिए जो हिंसा का उत्सव मनाया जा रहा है, उसकी आड़ में जंगल महल में कुछ भी कर गुजर सकते हैं।


नक्‍सलि‍यों ने गुरुवार को दो हमले कर छह लोगों की जान ले ली। बि‍हार में एक बार फि‍र से सुरक्षा व्‍यवस्‍था को धता बताते हुए जमुई से लखीसराय के बीच धनबाद-पटना इंटरसि‍टी एक्‍सप्रेस पर हमला कि‍या। यह ट्रेन धनबाद से पटना जा रही थी। स्‍थानीय मीडि‍या के मुताबि‍क हमले में ट्रेन के ड्राइवर समेत पश्‍चि‍म बंगाल के रहने वाले दो यात्रि‍यों की मौत हो गई जबकि आरपीएफ के एक जवान सहि‍त पांच यात्री गंभीर रूप से घायल हैं। दूसरा हमला महाराष्‍ट्र के गढ़चिरौली में हुआ, जहां पुलिस पार्टी पर हमला कर नक्‍सलियों ने तीन लोगों की जान ले ली।बिहार के जमुई में धनबाद-पटना इंटरसिटी पर करीब 200 नक्सलियों ने हमला कर दिया है। दोपहर करीब एक बजे पटना से 150 किलोमटीर दूर जमुई के कुंधर हॉल्ट पर नक्सलियों ने ट्रेन को दिनदहाड़े घेर लिया और अंधाधुंध फायरिंग की। बताया जा रहा है कि एक जवान और 2 यात्रियों की मौत हो गई है, जबकि गार्ड्स व ड्राइवर समेत 20 लोग घायल हुए हैं। घायलों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। रेलवे के सूत्रों का कहना है कि नक्सलियों ने ट्रेन में मौजूद आरपीएफ जवानों के हथियार छीन लिए और यात्रियों से लूटपाट की। नक्सली अब घटनास्थल से जा चुके हैं, लेकिन बताया जा रहा है कि आरपीएफ के 4 जवानों को अपने साथ ले गए। इस हमले के बाद केंद्र सरकार ने आपात बैठक बुलाई है।


बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी केंद्र का तखता पलटने के लिए तीसरे मोर्चा बनाने के अभियान पर हैं और केंद्र और राज्य सरकारों के बीच इस नाजुक वक्त पर कोई समन्वय है ही नहीं।अबतक मुख्यमंत्री ने पंचायत चुनावों से केंद्रीय वाहिनी के लिए कोई अनुरोध नहीं किया है, इससे साफ जाहिर है कि मुख्यमंत्री किसी भी चुनौती से निपटने में केंद्र की मदद लेनेको तैयार नहीं हैं।पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 16 अक्टूबर 2011 को माओवादियों को हथियार डालने के लिए सात दिन का समय देते हुए कहा कि हिंसा को अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।लेकिन इसके बाद वे चुपचाप बैठ गयी।तब ममता ने कहा कि वे (माओवादी) किसी वाद का अनुसरण नहीं कर रहे, उनका कोई आदर्श नहीं है। वे सब सुपारी किलर, जंगल माफिया हैं। हम वार्ता जारी रखेंगे, लेकिन आपको (उग्रवादियों को) हथियार सौंपना होगा।


बंगाल में पंचायत चुनाव के लिए सुरक्षा इंतजाम को लेकर राज्य सरकार और चुनाव आयोगग के बीच अदालती रस्साकसी के बीच दो चरणों की चुनाव प्रक्रिया पूरो होने को है और अब जाकर मुख्यमंत्री केंद्र को नये सिरे से केंद्रीय वाहिनी के लिए पत्र लिखेंगी तो केंद्र वाहिनी भेजने पर विचार करेगा। ऐसी विस्फोटक हालात मै सत्तादल का निर्विरोध विजय अभियान भले जारी   है, दूसरे चरण तक दस हजार निर्विरोध तृणमूली जीत का भी इंतजाम हो गया है, पर राज्य में तेजी से कानून व्यवस्था के हालात बिगड़ रहे हैं। क्राइम ब्यूरो की ताजा रपट में बंगाल बलात्कार और अपराधों के मामले में अव्वल नंबर पर है। जमीनी हकीकत के मुताबिक कोयलांचल दोनों मामलों में अव्वल नंबर पर है  और जंगल महल तो कानून व व्यवस्था के दायरे में हैं ही नहीं।


बहरहाल सरकार ने माओवादी चुनौती से निपटने के लिए सीआरपीएफ और नौ नक्सल प्रभावित राज्यों के लिए कुल 2079 करोड़ रुपए के नए कोष को मंजूरी दी है। केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने अपने मासिक संवाददाता सम्मेलन में आज कहा कि 2079 करोड़ रुपए में से 1981 करोड़ रुपए सीआरपीएफ के लिए स्वीकृत किए गए हैं ताकि देश में अग्रणी नक्सल विरोधी अभियान बल की क्षमताओं को बढ़ाया जा सके।शिंदे ने कहा कि उनके मंत्रालय ने सुरक्षा संबंधी खर्च (एसआरई) के तहत अग्रिम कोष के तौर पर नौ राज्यों को शेष 98.95 करोड़ रुपए जारी किए हैं।एसआरई कोष का उद्देश्य उग्रवाद से लडऩे में राज्य के सुरक्षा तंत्र को समुन्नत बनाना और आधुनिकीकरण करना है।


शिंदे ने कहा, ''सुरक्षा संबंधी खर्च (एसआरई) योजना के तहत 28 मई को अग्रिम के तौर पर 9885.46 लाख रूपये वामपंथी उग्रवाद प्रभावित राज्यों आंध्र प्रदेश (992.61लाख), बिहार (1371.66 लाख), छत्तीसगढ़ (1398 लाख), झारखंड (2421.30 लाख) और मध्य प्रदेश को (55.75 लाख रुपए) जारी किए।''


लाभान्वित होने वाले अन्य राज्यों में महाराष्ट्र (738.51), ओडि़शा (1780.81 लाख), उत्तर प्रदेश (108.82 लाख) और पश्चिम बंगाल (1018.73 लाख रुपए) शामिल हैं।


राजनीतिक जनसंहार के दम पर समूचे रेड कॉरिडोर पर कब्जा करने का स्वप्न देख रहे माओवादियों ने दंडकारण्य में अपनी ताकत में जोरदार इजाफा किया है। शेष भारत के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों की तुलना में, बस्तर में माओवादी कैडर आश्चर्यजनक ढंग से बढ़े हैं।


'सेंटर फार लैंड वारफेयर स्टडीÓ ने माओवादियों की बढ़ती ताकत का खुलासा करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में अपने आतंक की वजह से चर्चित दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में सदस्यों की संख्या 4500-5000 तक पहुंच गई है ,वहीं आन्ध्र-ओडिशा बार्डर स्पेशल जोनल कमेटी में सदस्यों की संख्या घटकर 175-200 तक रह गई है। आन्ध्र-ओडिशा बार्डर स्पेशल जोनल कमेटी में एक वक्त कैडरों की संख्या एक हजार से ज्यादा थी। सेंटर का कहना है कि माओवादियों की ट्रेनिंग लाइन पूरी तरह से सेना के नक्शे कदम पर हो रही है, ऐसे में इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि उन्हें सेना के सेवानिवृत्त कर्मियों का सहयोग मिल रहा हो। हालांकि इस बारे में कोई पुष्ट तथ्य सामने नहीं आया। सेंटर की ये रिपोर्ट पिछले वर्ष नवंबर में जारी की गई थी।


दंडकारण्य कमेटी में गुरिल्लाओं की 10 कंपनियां : सुकमा में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हुआ हमला हो या 2010 में सीआरपीएफ के जवानों पर माओवादियों की लोमहर्षक कार्रवाई, इसके पीछे न सिर्फ माओवादियों की बढ़ती जा रही सैन्य ताकत थी, बल्कि उनका जबर्दस्त इंटेलिजेंस भी था। सेंटर की रिपोर्ट में भी ये सच साफ नजर आता है। अध्ययन में कहा गया है कि आज दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में छापामार गुरिल्लाओं की 10 कंपनियां हैं, जिनमें 23 पलाटून व 40 मिलिशिया प्लाटून हैं।


माओवादियों द्वारा किए जाने वाले एम्बुश ऑपरेशन के बारे में सेंटर ने रिटायर्ड ब्रिगेडियर के.एस. दलाल के माध्यम से कहा है कि पुलिस बल की अक्षमता का फायदा उठाते हुए माओवादियों ने एम्बुश लगाने के नए-नए तरीके जैसे मोबाइल एम्बुश और वन प्वाइंट एम्बुश जैसी तकनीक ईजाद कर ली है, वे हर हमले को सफल बनाने और अधिकतम नुकसान पहुंचाने की योजना पर काम कर रहे हैं। आज माओवादी गुरिल्लाओं की हर कंपनी में 25 से 30 एके-47, इन्सास व एसएलआर राइफलें हैं। इनके अलावा उन्होंने बड़े हमलों को अंजाम देने के लिए स्पेशल गुरिल्ला स्क्वाड भी बना लिए हैं।जम्मू से दिल्ली तक ठिकाने,हथियारों के प्रशिक्षण का मामला हो या बस्तर में माओवादियों की बढ़ रही ताकत का, इस सबका अंदाजा इस तथ्य से भी लगाया जा सकता है कि हाल में न सिर्फ आन्ध्रप्रदेश से बल्कि बिहार, झारखण्ड व उत्तरी छत्तीसगढ़ से भी बड़ी संख्या में माओवादियों का पलायन बस्तर की ओर हुआ। बिहार-झारखण्ड व उत्तरी छत्तीसगढ़ स्पेशल एरिया कमेटी में कैडरों की संख्या 2500-3000 के बीच रह गई। प. बंगाल राज्य कमेटी में 450-500, पंजाब राज्य कमेटी में 200 और महाराष्ट्र राज्य कमेटी में 100 सदस्य हैं। इन राज्यों में कैडरों की संख्या औसतन 9 से 10 हजार के बीच है। तमिलनाडु, केरल, उप्र व उत्तराखंड में इनकी संख्या 30-50 और हरियाणा ,जम्मू कश्मीर व दिल्ली में इनकी संख्या 15-30 है।दंडकारण्य स्पेशल जोनल कमेटी में सदस्यों की संख्या बढ़कर 4500- 5000 हुई



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