समलौण (संस्मरण )
अहा ! इखाक मानसून अर उखाक मुंगर्यात
भीष्म कुकरेती
(s = आधी अ )
मानसून भारतौ हरेक अडगैं बान महत्वपूर्ण होंद अर हरेक क्षेत्र को मानसून से अलग अलग अपेक्षाएं हूँदन अर मानसून से पैल अर मानसून मा विशेष काम धंधा बि होंदन।
अब जन कि अचकाल मुंबई मा आधिकारिक तौर पर मानसून ऐ ग्यायि पण केवल एयर कंडीसनरों बिल कम हूण छोडि लोगुं जिन्दगी मा या दिनचर्या मा क्वी ख़ास तबदीली नि आंदि।
पण जब हम छवट छया या ज्वान छया त म्यार गाँ मा मानसून आण से एक डेढ़ मैना पैलि अर मानसूनौ जाणो द्वी मैना पैथर तलक लोगुं क्रिया कलाप ही ना आम संस्कृति मा बि बदलाव ऐ जांद छौ।
मानसून आण माने मुंगर्यात पड़ण याने मुंगरी बूणों दिन आण।
अब मुंगर्यड़ (जौं पुंगड्यूं मा मुंगरि पैदा हुंदन) ह्वावो अर किसान तै परिश्रमी नि बणावो तो वो मुंगर्यड़ नि ह्वे सकद।
मुंगर्युं साफ़ बुलण छौ कि हम माटो प्रेमी छंवां अर मुंगर्युं बीज र्+याड़ (कंकड़-पथर ) तौळ जावो त मुंगरी बीज हडताळ कौरि दींदा छा त झक मारिक किसाणु तैं सबसे पैल बैसाख जेठ मा मुंग्र्यड़ो र्याड़ (र्+याड़ )चड़ण पैलि आवश्यकता छे।
अब एक बात बथावो कि तुमन र्याड़ (र्+याड़ ) कट्ठा कौरि बि दे तो यी कंकड़ पथर खौड़ कत्यार त छ ना कि तुम अपण खौड़ सोरिक दुसरो चौक जिना सोरि द्यावो तो र्याड़ (र्+याड़ ) कट्ठा कौरिक चंगर्यों (ठुपरी) मा भोरण पडदो छौ अर र्याड़ (र्+याड़ ) तैं दूर भेळ जोंग करण पोड़द छौ। मै सरिखा कोमल काया वाळक मुंड पर रयाड़ो ठुपरी से मुंड-छाळो बि पडि जांद छौ पण बगैर कंकड़ पथर को मुंगर्यड़ से मुंगर्युं पर बड़ा बड़ा थ्वाथा (भुट्टा ) आणै आशा मा हम मुंड-छाळो की क्वी फिकर नि करदा छा अर र्याड़ (र्+याड़ ) तैं भेळ तक ही छोड़िक आंदा छा।
अब मुंगर्युं पौधा बड़ा कोमल हूंदन यी पौधा खौड़ कत्यार की छौं बर्तन्दन। त पुंगडो मा पैलि बुयीं फसल का जलड़ , पत्ता अर खर पतवार तैं साफ़ करण तैं हम बड़ा पुण्य का कारज समझदा छा। फिर मुंगर्युं पगारों पर जम्याँ खौड़ कत्यार से बड़ी चिड़ होंदि अर मुंगर्युं आज बि बुलण च बल पगारों पर जम्याँ खौड़ कत्यार से हम पर बनि बनि बीमारी ह्वे जांदी। अब खौड़ कत्यार हमर समदी त नि होंदन त हम , हमर ब्वे बाब मुंगर्युं पगारों पर जम्याँ खौड़ कत्यार तै उखाड़ी अलग अलग ढेर लगान्दा छा जै तैं आड़ बुले जांद छौ अर फिर कुछ दिनों बाद याने मानसून से द्वी तीन दिन पैल आड़ लगै दींदा छा। याने खौड़ कत्यार की ढ़ेर्युं पर आग लगाये जांदी छे। आड़ लगाण असल मा एक आवश्यकता बि च। अपण अपण पुंगड़ो खौड़ कत्यार की राख मा वो रसायन होंदन जो वै पुंगड़ मा खनिज की कमी तैं दूर करदन। इलै एक पुंगड़ो खौड़ कत्यार को आड़ तै दुसर पुंगड़ मा नि जळाये जांद बलकण मा वैहि पुंगड़ मा जळये जांद जै पुंगड़ो वो खौड़ च ।
अब कती पुंगड़ कड़क किस्मौ पुंगड़ बि होंदन। त इन पुंगड़ो पर इखारो हौळ /याने चीरा लगाये जांद छौ जां से कि कम बरखा मा बि पुंगड़ो माटो गिलु ह्वे जावो।
फिर मुंगरी क्वी बौणो घास या डाळ त छ नी कि अपण खाण पीणों इंतजाम अफिक कौरि ल्यावो। तो हमर किसाणो तैं छनि/सनि बिटेन ठुपर्युं पर मोळ चारिक मुंगर्यड़ तलक लिजाण पोड़द छौ अर अलग अलग ढेरी लगाण पोड़द छौ।
अब बस लोगुं तैं मानसून की जग्वाळ करण पोड़द छौ कि बरखा ह्वावो अर मुंगरी बोये जावो।
हरेक गां मा जलवायु वेत्ता छया जु घिंड्वा - घिडड्यूं माट मा नयाण पर ध्यान दींदा छा, कुळै पत्तों क नराण (आवाज ) सुणदा छा अर कुळै पत्तों हलकण फिर हलकणो दिशा, बादळु आण-जाण अदि से पता लगाणा रौंदा छा कि कब बरखा होलि अर कब मुंगर्यात पोड़लि।
बरखा हूण अर मुंगर्यात पोड़णम जमीन आसमानों अंतर होंद। एक बरखा कबि बि गरम्युं मा ह्वे सकद अर हैंकि बरखा बीस जून से सात आठ जुलाय का बीच होंदी। जु त ये दौरान बरखा खूब ह्वावो अर घणा बादळ असमान मा रावन अर कुळै पत्तों क नराण, हलकण हिसाब से ह्वावो तो हमर बूड बुड्या घोषित करी दींदा छा कि मुंगर्याती बरखा ऐ ग्यायि याने मानसून के बरखा शुरू ह्वे ग्यायि।
फिर द्वी चार दिन बड़ा हलचल का हूंदा छा। मुंगरि भिजाण , अर मुंगर्युं दगड़ लम्यंड (चाचिंडा ) गुदडि, कखडि, खीरा , करेला आदि क बीज भिजाण पड़द छा।
फिर मुंगरि बूण से पैलि ढेर्युं को मोळ सरा पुंगड़ पर फैलाण जन काम करण ही पोड़डी छौ।
फिर हऴया पैथर पैथर भिजायिं मुंगरि सीं पर बूण एक कला छे जो हम बगैर स्कूल जयां सीखि लींदा छा।
फिर हम सौब भगवान से प्रार्थना करदा छा कि बरखा बरखणि रावो। कबि कबि भगवान नराज बि होंदा छा त निबरखा से दुबर मुंगरि बूण पोड़द छौ।
अब हमर गाँ पर ना तो केंद्र सरकारों या राज्य सरकारों राज च हमर क्षेत्र पर क्षेत्रीय पार्ट्यूं याने गूणी-बांदर अर सुंगरूं राज चलदो तो हमर गाँ मा अब मुंबई जन मानसून ही आंदो अर अब मुंगर्यात नि पड़दि।
Copyright @ Bhishma Kukreti 10/06/2013
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Regards
Bhishma Kukreti
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