जनपदों की क्या कहें, महानगरीय आबादी के लिए भी अनुपस्थित चिकित्सा सेवा, पेशेगत नैतिकता की कमी
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल के जनपदों में चिकित्सा बंदोबस्त में सुधार के लिए बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने स्वास्थ्य सेवा में निजी पूंजी लाने की मुहिम छेड़ दी है,हालांकि निवेशकों ने इस मामले में अभीतक खास दिलचस्पी दिखायी नहीं है। सरकारी अस्पतालों के परिसर में निजी मेडिकल कालेज खोलने की भी इजाजत दी जा रही है। लेकिन जनपदों में स्वास्थ्य का हाल बेहाल है।
72 घंटों के दौरान कम से कम 20 बच्चों की मौत
पश्चिम बंगाल के एक सरकारी अस्पताल में पिछले 72 घंटों के दौरान कम से कम 20 बच्चों की मौत हो गई है। इनमें से 10 बच्चों की मौत पिछले 24 घंटों के दौरान हुई।बच्चों के अभिभावकों ने आरोप लगाया है कि माल्दा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में डॉक्टरों और अस्पतालकर्मियों की लापरवाही के चलते कुछ बच्चों की मौत हो गई। उनका आरोप है कि यहां कुछ ही डॉक्टर मौजूद हैं और कई उपकरण काम नहीं कर रहे हैं, जिस वजह से नवजात बच्चों की मौत हुई।उधर, अस्पताल के अधीक्षक एम राशिद ने बताया कि यहां रेफर किए गए सभी बच्चों की हालत गंभीर थी। उन्हें सांस लेने में समस्या हो रही थी और वह अल्पवजनी भी थे। यहां रेफर किए गए मामले उत्तर दिनाजपुर, मुर्शिदाबाद और समीपवर्ती राज्यों बिहार तथा झारखंड आदि के थे।
पेशेगत नैतिकता की कमी
सरकारी अस्पतालों में संसाधनों के अभाव पर अक्सर अंगुलियां उठती रहती हैं। मगर वहां के चिकित्सकों-कर्मचारियों में पेशेगत नैतिकता की कमी शायद कहीं ज्यादा चिंताजनक पहलू है।बिस्तर खाली न होने की दलील देकर गंभीर अवस्था में पहुंचे मरीजों को भी उनके हाल पर छोड़ दिए जाने और उनके दम तोड़ देने की घटनाएं भी होती रहती हैं।अक्सर लोगों को कर्मियों और चिकित्सकों की बेरुखी और कई बार प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है। गर्भवती महिलाओं को सड़क किनारे प्रसव करने, गंभीर स्थिति में नवजात शिशुओं को जरूरी उपकरण और दवाइयां मुहैया न हो पाने आदि की शिकायतें आम हैं।अलबत्ता यह सरकारी दावा बदस्तूर दोहराया जाता है कि विशेष परिस्थितियों में बच्चों की चिकित्सा की माकूल व्यवस्था है। कई अस्पताल खासतौर पर बच्चों के लिए हैं। फिर भी इलाज के अभाव में किसी बच्चे की मौत हो जाने की खबर जब-तब आती रहती है। कई बार किसी खास मौसम में अस्पतालों में मरीजों की तादाद बढ़ जाती है। मगर इससे मरीजों की उपेक्षा की छूट नहीं मिल जाती। अपेक्षा की जाती है कि ऐसी स्थिति से पार पाने के लिए अस्पताल प्रशासन विशेष प्रबंध करें। अगर किसी समय बिस्तर की उपलब्धता न हो तब भी गंभीर अवस्था में पहुंच चुके रोगी के तत्काल इलाज का बंदोबस्त होना ही चाहिए। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की शरण में ज्यादातर वही लोग जाते हैं, जो निजी अस्पतालों के महंगे इलाज का खर्च उठा पाने में सक्षम नहीं होते। पर हकीकत यह भी है कि उन्हें उपेक्षा और बेरुखी का सामना करना पड़ता है।
चिराग तले अंधेरा घनघोर
चिराग तले अंधेरा घनघोर।अभी राजधानी हावड़ा में है हालांकि राजकाज शुरु ही नहीं हुआ है।प्रतिपद के अवसर पर नवान्न में राइटर्स का स्थानांतरण के बाद दीदी को वहां बैठने की फुरसत ही नहीं मिली है। हावड़ा शहर और जिले में स्वास्थ्य सेवा बेहद बदहाल है।हालत यह है कि लिलुआ में बंद कल कारखानों से श्रमिकों ने जो श्रमजीवी अस्पताल खोला हुआ है,वहां स्वास्थ्य सेवा से वंचित हावड़ा और हुगली पार की जनता भारी संख्या में उमड़ती है।
जलभूमि में द्वीप नवान्न
नवान्न शिवपुर इलाके के मंदिरतला में है। जहां जल मल एकाकार है। न पेयजल है और न निकासी इंतजाम। जमकर मेघ बरसे तो दीदी को यह भी देखना होगा कि नवान्न कहीं जलभूमि में कोई विच्छिन्न द्वीप न बन जाये। शिवपुर,राजाराम तला सेलेकर सांतरागांछी,बाली से लेकर कोना.कोना से लेकर धूलागढ़, धूलागढ़ से लेकर रानीहाटि, पांचला और आमता तक,आंदुल मौड़ग्राम कहीं भी आम जनता के लिए निजी अस्पतालों का विकल्प नहीं है। लिलुआ,सलकिया और बाली इलाकों के लिए तो फिरभी श्रमजीवी अस्पताल है। जो इने गिने अस्पताल हैं, वहां चिकित्सक होते ही नहीं हैं। चिकित्सक हुए तो जांच पड़ताल के लिए फिर वही निजी अस्पतालों और चैंबरों की दौड़। दवाएं होती नहीं है।एक्सरे और अल्ट्रा सोनोग्राफी,ईसीजी जैसी जरुरी सेवाएं नहीं मिलती।
गरीबों की धड़कन में दीदी
जनपदों की क्या हालत बयान करें,साल्टलेक से लेकर दक्षिण उपनगरीय इलाके में बाईपासऔर गड़िया के बीच के पोश इलाकों में विधाननगर,साल्टलेक,लेक टाउन, राजारहाट,बागुईहाटि, कालिकापुर, मुकुंदपुर से लेकर गड़िया तक उच्च क्रयशक्ति बड़े लोगो की रिहाइश के मध्य महाअरण्य में घासफूस,झाड़ झंकाड़,लता गुल्म की तरह भारी गरीब आबादी है। मसलन तिलजला, फूलबागान, कस्बा, नोनाडांगा,बेलियाघाटा जैसी बड़ी आबादियों के अलावा बड़ी संख्या में मेहनतकसों की गंदी बस्तियां सर्वत्र हैं। जिन गांवों की नींव पर ये कंक्रीट के जंगल बने हैं, उनके लोग छितराये हुए चारों तरफ हैय। महानगर के तमाम बड़े निजी अस्पताल इन्हीं इलाकों में हैं,जिनके दरवाजे और खिड़कियां गरीबों के लिए बंद हैं।पूरे इलाके में एक अकेला आनंदलोक अस्पताल है,जहां दाखिले के लिए मारामारी है और वह भी निजी अस्पताल है,लेकिन सस्ता है।बंगाल की सत्तापार्टी का मुख्यालय तृणमूल भवन गरीब आबादी तिलजला के मध्य है,उसकी धड़कनें दीदी को पल दर पलमालूम होती ही होंगी। लेकिन गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवा नदारद ही है।
सर्पदंश,बाघ और मगरमच्छ के शिकार
हाल यह है कि गड़िया से लेकर सोनारपुर के मध्य कोई सरकारी अस्पताल है ही नहीं।सरकारी अस्पताल सुभाष ग्राम और बारुईपुर में है। दक्षिण बारासात से लेकर नामखाना, काकद्वीप,सागर द्वीप,बकखाली उधर ,फिर भांगड़ से लेकर हिंगलगंज, सोनारपुर से लेकर कैनिंग,कैनिंग से लेकर बसंती और गोसाबा,संदेशकाली से लेकर झड़खाली तमाम इलाकों में आम बीमारियों के अलावा सर्पदंश,बाघ और मगरमच्छ के शिकार लोगों को आपात चिकित्सा सेवा की जरुरत होती है। लेकिन सरकारी तौर पर कोई इंतजाम है ही नहीं। पाखिरालय से तुषार कांजिलाल के जलमार्गीय सचल चिकित्साकेंद्र ही सुंदरवन इलाके में एकमात्र स्वास्थ्य साधन है।
अस्पताल हैं भी और नहीं भी
डा. विधानचंद्र राय कल्याणी को नया कोलकाता बनाना चाहते थे। लेकिन साल्टलेक बसाकर कामरेडों ने कल्याणी को भुला दिया।हावड़ा से लेकर कल्याणीतक की पूरी हिंदी पट्टी बेरोजगारी और गरीबी के कभी खत्म न होने वाले अंधेरे में हैं।सबसे ज्यादा कल कारखाने बीटीरोड के आर पार और हुगली के आर पार होने के गौरवशाली अतीत के विरुद्ध यहां एक बेहद मरणासण्म मेहनतकश आबादी अब भी रोजमर्रे की जिंदगी में मरखप रही है।ज्यादातर चालू और बंद जूट मिलें इसी इलाके में हैं।कपड़ा मिलें बी यहीं थीं सारी। इंजीनियरिंग से लेकर छोटे इस्पात कारखाने तमाम।जो अब भी पानीहाटी और खड़दह आगरपाडा़ में हैं। बाकी इलाकों की तुलना में इधर अस्पताल हैं काफी। कमारहट्टी,आगरपाडा़,घोला, बारासात,खड़दह टीटागढ़से लेकर बैरकपुर और कल्याणी तक सरकारी अस्पातालों की एक श्रृंखला है।लेकिन इनमें से ज्यादातर अस्पताल पालिका नियंत्रित होने से उनकी अपनी सीमाएं हैं।लोग मजबूरन कूकूरमुत्तों की तरह तेदजी से बन रहे निजी संस्थानों में जाने को मजबूर हैं इतने सारे अस्पतालों के बावजूद।
शायद बहुरे दिन
कल्याणी महात्मागांधी अस्पताल दशकों से उपेक्षित है और अब उसे मेडिकल कालेज बनाया जा रहा है।हो सकता है कि कल्यामी अस्पताल के दिन बहुर जाये।थोड़ी कृपा बारासात जिला अस्पताल पर होती तो वनगांव तक की आबादी को बड़ी राहत मिल जाती।
स्वास्थ्य कारोबार
भारत में स्वास्थ्य कारोबार निजीकरण की वजह से १९९१ से २००१ तक सोलह फीसद की दर से बढ़ा है। सरकारी स्वास्थ्य सेवा के चौपट कर दिये जाने की वजह से मामूली आम लोगों को भी इलाज के लिए मंहगे अस्पतालों की शरण में जाना होता है। १९९१ में स्वास्थ्य कारोबार ४.८ अरब डालर का था जो २००१ में बढ़कर २२.८ अरब डालर का हो गया। महानगरों की बात छोड़ें, दूरदराज देहत इलाकों में, कस्बों और छोटे शहरों में निजी अस्पताल समूह का जाल बिछ गया है। स्वास्थ्य पर्यटन और हेल्थ हब विकास का पैमाना हो गया है। विदेशी पूंजी को खुली छूट से न सिर्फ दवाइयों बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं पर भी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का शिकंजा कस गया है। पर राजनेता और अधिकारी माफिया और कंपनियों को खुल्ला खेल फर्रूखाबादी की इजाजत देकर अपन और परिजनों का मुफ्त इलाज से लेकर मुना?फे में हिस्सेदारी तक हासिलकर लेते हैं। इसी वजह से परिचारक मंडसी में सरकारी मुमाइंदगी बेसतलब है। आमरी में भी परिचालक मंडले में स्वास्थ्य अधीक्शक समेत दो अफरान हैं। मालिकों की गिरफ्तारी हुई, तो वे क्यों छुट्टा घूम रहे हैं? स्वास्थ्य महकमा के सबसे बड़े अफसर के मैनेजमेंट में शामिल होने से तो सीधे स्वास्थ्य मंत्री और मुख्यमंत्री की जवाबदेही बनती है। मालूम हो कि इस अस्पताल में ज्यादातर राजनेताओम , मंत्रियों और अफसरों का इलाज का रिकार्ड है।
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