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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Friday, March 8, 2013

Fwd: महिला दिवस के उपलक्ष में महिला उत्पीड़न के खिलाफ व महिला सशक्तिकरण के लिए विभिन्न कार्यक्रमों को ऐलान - Various programme in UP on occassion of women's day



---------- Forwarded message ----------
From: Roma <romasnb@gmail.com>
Date: 2013/3/5
Subject: महिला दिवस के उपलक्ष में महिला उत्पीड़न के खिलाफ व महिला सशक्तिकरण के लिए विभिन्न कार्यक्रमों को ऐलान - Various programme in UP on occassion of women's day
To: National Forum of Forest People and Forest Workers NFFPFW <nffpfw2012@gmail.com>


नारी शक्ति जि़न्दाबाद                                                      महिला एकता जि़न्दाबाद 

जब्र से नस्ल बढ़े ंऔर जु़ल्म से तनमेल करें, ये अमल हम में है बेइल्म परिंदों में नहीं
हम जो इंसानों की तहज़ीब लिए फिरते हैं, हमसा वहशी कोई जंगल के दंरिदों में नहीं
लोग औरत को फक़त जिस्म समझ लेते हैं, रूह भी होती है उसमें ये कहां सोचते हैं.................
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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस - 8 मार्च

राष्ट्रीय महिला दिवस क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले परिनिर्वाण दिवस - 10 मार्च
के उपलक्ष में महिला उत्पीड़न के खिलाफ व महिला सशक्तिकरण के लिए

विभिन्न कार्यक्रमों को ऐलान

पूरी दुनिया में 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो कि महिला सशिक्तकरण का प्रतीक बन चुका है। यह महिलाओं के द्वारा छेड़े गए समाज में गैरबराबरी, भेदभाव, उत्पीड़न एवं समानता के लिए संघर्ष का ही नतीजा है, कि आज महिला दिवस महिलाओं के स्वाभिमान का प्रतीक भी बन चुका है। जिस समय उन्नीसवीं शताब्दी में महिलाएं अमरीका के शिकागो शहर में अपने अधिकारों के लिए लड़ रही थीं, जिससे उनके संघर्षों को अंर्तराष्ट्रीय पहचान मिली। उसी शताब्दी में भारतवर्ष में भी महिलाओं ने अपने अधिकारों के संघर्ष को तेज़ किया था। उन्नीसवीं सदी में अति पिछड़े परिवार में जन्मीं सावित्रीबाई फूले व उनकी सहयोेगिनी फातिमाबी ऐसे नाम हैं, जिन्होंने उस समय घोर जातिवाद, पुरूषसत्तात्मक, ब्राह्मणवाद एवं सांमतवाद के खिलाफ जा कर महिलाओं की शिक्षा एवं अधिकारों के लिए संघर्ष किया था। 10 मार्च को क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फूले के परिनिर्वाण दिवस के रूप में जाना जाता है, जब महिला अधिकारों के लिए लड़ते हुए उन्होंने इसी दिन अपने प्राण त्यागे थे। आज हमारे देश में नारी मुक्ति पर काम करने वाले व प्राकृतिक संसाधनों के लिए काम करने वाले ऐसे तमाम जनसंगठन हैं, जो कि सावित्रीबाई फूले के परिनिर्वाण दिवस को राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाते हैं। ताकि देश के उन प्रतीकों को भी याद किया जा सके, जो कि हमारे काफी नज़दीक हैं। इसलिए यह दो तारीखें 8 एवं 10 मार्च महिला संगठनों के लिए काफी प्रासंगिक है। क्रांतिज्योति सावित्रीबाई फुले देश की पहली महिला अध्यापिका व नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता थीं, जिन्होंने अपने पति ज्योतिबा फुले के सहयोग से  देश में महिला शिक्षा की नींव रखी।  सावित्रीबाई फुले एक दलित परिवार में जन्मी महिला थीं, लेकिन उन्होंने उन्नीसवीं सदी में महिला शिक्षा की शुरुआत के रूप में घोर ब्राह्मणवाद के वर्चस्व को सीधी चुनौती देने का काम किया था। उन्नीसवीं सदी में छुआ-छूत, सतीप्रथा, बाल-विवाह, तथा विधवा-विवाह निषेध जैसी कुरीतियां बुरी तरह से व्याप्त थीं। उक्त सामाजिक बुराईयां किसी प्रदेश विशेष में ही सीमित न होकर संपूर्ण भारत में फैल चुकी  थी।
 
सावित्रीबाई का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले में नायगांव नामक छोटे से गाॅव में हुआ। भारत के पुरूष प्रधान समाज ने शुरु से ही इस तथ्य को स्वीकार नहीं किया कि नारी भी मानव है और पुरुष के समान उसमें भी बुद्धि है एवं उसका भी अपना कोई स्वतंत्र व्यक्तित्व है । उन्नीसवीं सदी में भी नारी गुलाम रहकर सामाजिक व्यवस्था की चक्की में ही पिसती रही । अज्ञानता के अंधकार, कर्मकांड, वर्णभेद, जात-पात, बाल-विवाह, मुंडन तथा सतीप्रथा आदि कुप्रथाओं से सम्पूर्ण नारी जाति ही व्यथित थी। पंडित व धर्मगुरू भी यही कहते थे कि नारी पिता, भाई, पति व बेटे के सहारे बिना जी नहीं सकती। मनु स्मृति ने तो मानो नारी जाति के आस्तित्व को ही नष्ट  कर दिया था। मनु ने देववाणी के रूप में नारी को पुरूष की कामवासना पूर्ति का एक साधन मात्र बताकर पूरी नारी जाति के सम्मान का हनन करने का ही काम किया। हिंदू-धर्म में नारी की जितनी अवहेलना हुई उतनी कहीं नहीं हुई। हालांकि सब धर्मों में नारी का सम्बंध केवल पापों से ही जोड़ा गया। उस समय नैतिकता का व सास्ंकृतिक मूल्यों का पतन हो रहा था। हर कुकर्म को धर्म के आवरण से ढक दिया जाता था। हिंदू शास्त्रों के अनुसार नारी और शुद्र को विद्या का अधिकार नहीं था और कहा जाता था कि अगर नारी को शिक्षा मिल जायेगी तो वह कुमार्ग पर चलेगी, जिससे घर का सुख-चैन नष्ट हो जायेगा। ब्राह्मण समाज व अन्य उच्चकुलीन समाज में सतीप्रथा से जुड़े ऐसे कई उदाहरण हैं, जिनमें अपनी जान बचाने के लिये सती की जाने वाली स्त्री अगर आग के बाहर कूदी तो निर्दयता से उसे उठा कर वाापिस अग्नि के हवाले कर दिया जाता था। अंततः अंग्रेज़ों द्वारा सतीप्रथा पर रोक लगाई गई। इसी तरह से ब्राह्मण समाज में बाल-विधवाओं के सिर मुंडवा दिये जाते थे और अपने ही रिश्तेदारों की वासना की शिकार स्त्री के गर्भवती होने पर उसे आत्महत्या तक करने के लिये मजबूर किया जाता था। उसी समय महात्मा फुले ने समाज की रूढि़वादी परम्पराओं से लोहा लेते हुये कन्या विद्यालय खोले। भारत में नारी शिक्षा के लिये किये गये पहले प्रयास के रूप में महात्मा फुले ने अपने खेत में आम के वृक्ष के नीचे विद्यालय शुरु किया। यही स्त्री शिक्षा की सबसे पहली प्रयोगशाला भी थी, जिसमें सगुणाबाई क्षीरसागर व सावित्री बाई विद्यार्थी थीं। उन्होंने खेत की मिट्टी में टहनियों की कलम बनाकर शिक्षा लेना प्रारंभ किया। सावित्रीबाई ने देश कीे पहली भारतीय स्त्री-अध्यापिका बनने का ऐतिहासिक गौरव हासिल किया। धर्म-पंडितों ने उन्हें अश्लील गालियां दी, धर्म डुबोने वाली कहा तथा कई लांछन लगाये, यहां तक कि उनपर पत्थर एवं गोबर तक फेंका गया। भारत में ज्योतिबा तथा सावि़त्री बाई ने शुद्र एवं स्त्री शिक्षा का आरंभ करके नये युग की नींव रखी। इसलिये ये दोनों युगपुरुष और युगस्त्री का गौरव पाने के अधिकारी हुये । दोनों ने मिलकर 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की।
''नारी के उत्थान के लिए स्वयं नारी को ही सामने आना होगा'' इस बात का पैगाम सावित्री बाई फूले ने पूरे समाज को दिया। नारी की समानता, सम्मान व अधिकारों का संघर्ष जो सावित्रीबाई ने आज से डेढ़ सौ वर्ष पहले छेड़ा था आज इस आधुनिक युग में भी नारी उसी संघर्ष से जूझ रही है। बराबरी, न्याय, सम्मान व अधिकारों के लिए संघर्ष को तेज़ करने वाली नारी के साथ आज उसका उत्पीड़न भी उतनी ही तेज़ी से बढ़ रहा है। तमाम राजनैतिक व सामाजिक शक्तियां जो समाज में अपना वर्चस्व क़ायम रखना चाहती हैं, वे नहीं चाहती कि नारी शिक्षा के अधिकार व जागरूकता को प्राप्त करें। सरकार द्वारा अपनाई गई तमाम नवउदारवादी नीतियों के चलते तो नारी को एक बाजारू वस्तु बना कर उसे सरे आम नग्न किया जा रहा है। छोटी बच्चियों, लड़कियों व महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार, अश्लील एमएमएस बनाना, अश्लील टिप्पणियां करना, महिलाओं पर अश्लील गाने व फिल्में बनना आदि समाज में महिलाओं के स्वतंत्र और सम्मानजनक जि़न्दगी जीने के रास्ते में एक बहुत बड़ी बाधा बन रहे हंै। महिलाएं अपने घर, गांव, शहर व सार्वजनिक स्थानों पर ही अपने आप को असुरिक्षत महसूस कर रही हैं। सामाजिक मूल्यों में बेहद ही गिरावट आ चुकी है, जिसके चलते सरकारी तंत्र, प्रशासनिक तंत्र भी महिलाओं के प्रति असंवेदनशील रवैया अपनाये हुए है, जिससे लोग बच्चियों को गर्भ में ही हत्या करने के कुकृत्यों से भी बाज नहीं आ रहे हैं। दिल्ली रेप कांड से आखिर महिलाओं के खिलाफ हो रहे यौन उत्पीड़न का मामला देश व दुनिया के पैमाने पर उठा है, जिसको रोकने के लिए सरकार द्वारा जस्टिस वर्मा कमेटी का गठन भी किया गया। वर्मा कमेटी ने महिला उत्पीड़न को रोकने की तमाम सिफारिशों में सबसे अहम बात सरकार द्वारा महिलाओं की सुरक्षा की अनदेखी व समाज में महिलाओं के प्रति पितृसत्तामक सोच को बताया व महिलाओं के लिए सुरक्षित माहौल बनाने की बात कही। लेकिन सरकार द्वारा इन तमाम सिफारिशों को नजरअंदाज़ किया जा रहा है व इन घटनाओं में कमी आने की बजाय यह घटनाए लगातार बढ़ती जा रही है। सरकार द्वारा इस समय नवउदारवादी नीतियों के तहत जिस तरह से कम्पनियों के आगे घुटने टेके जा रहे हैं, उससे साफ नज़र आ रहा है कि वे महिला तो क्या, इस देश की सम्प्रभुता, धर्मनिरपेक्षता व अस्मिता को भी नहीं बचा पाएंगे। ऐसे में हम महिलाओं पर अब एक अहम जिम्मेदारी है कि हम अपने आप को इतना मजबूत करें कि हम अपनी सुरक्षा करने के इंतज़ाम खुद करें व बलात्कारी, दुराचारियों व आतताईयों को सज़ा दें। साथ ही सामाजिक स्तर पर भी अपनी अग्रणी भूमिका निभा कर महिलाओं के लिए सम्मान, उनके साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने की मुहिम छेड़ें। जब तक महिलाएं खुद आगे नहीं आएंगी तब तक महिलाओं के प्रति भेदभाव व उत्पीड़न कभी भी समाप्त नहीं हो पाएगा। इसलिए वनाधिकार आंदोलन से जुड़ी सभी महिलाएं मिलजुल कर यह संकल्प लें कि अपने जल, जंगल और जमंीन पर अपने सामूहिक अधिकारों को स्थापित कर एक नये समाज का निर्माण करेंगी, ताकि आगे चलकर हमारी आने वाली पीढ़ी सामुदायिकता जैसे मूल्यों को लेकर बड़ी हो व महिलाओं के प्रति होने वाली हिंसा को जड़ से समाप्त करें।
इस उपलक्ष्य में इस महीने हम विभिन्न क्षेत्रों में महिला सशिक्तकरण के रूप में महिला दिवस को मना कर अपने प्रतीकों सावित्री बाई फूले, फातिमा बी जैसी महान क्रांतिकारी बहनों को याद कर के मना रहे हैं व हमारे संगठन की दिवंगत साथी भारतीजी द्वारा वनाधिकार आंदोलन को योगदान को याद करते हुए मना रहे हैं। यह कार्यक्रम इस प्रकार हैं -
8  मार्च 2013 -  राबर्ट्सगंज, सोनभद्र, उ0प्र0,            9  मार्च 2013 -  अधौरा, कैमूर बिहार,
13 मार्च 2013 -  कर्वी, चित्रकूट, उ0प्र0,                 15 मार्च 2013 -  पलिया, लखीमपुर खीरी, उ0प्र0,
24 मार्च 2013 -  सहारनपुर, उ0प्र0।                   23 मार्च 2013 -  शहीद दिवस सहारनपुर, उ0प्र0      
              
 

ज्यादा से ज्यादा संख्या में इस कार्यक्रम में शामिल हो कर महिलाओं के खिलाफ हो रही हिंसा को समाप्त करने का संकल्प लें।
राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच NFFPFW
कैमूर क्षेत्र महिला मज़दूर किसान संघर्ष समिति, कैमूर मुक्ति मोर्चा, वनग्राम एवं भू-अधिकार मंच,थारू आदिवासी महिला मज़दूर किसान मंच, तराई क्षेत्र महिला मज़दूर किसान मंच, वनटांगिया समिति,विकल्प समाजिक संगठन, सहारनपुर, ज्ञान गंगा शिक्षा समिति, मानवाधिकार कानूनी सलाह केन्द्र, महिला वनाधिकार एक्शन कमेटी

सम्पर्क: 9412480386, 9415233583, 9358670901, 9412231276,


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NFFPFW / Human Rights Law Centre
c/o Sh. Vinod Kesari, Near Sarita Printing Press,
Tagore Nagar
Robertsganj,
District Sonbhadra 231216
Uttar Pradesh
Tel : 91-9415233583, 05444-222473
Email : romasnb@gmail.com
http://jansangarsh.blogspot.com




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