यूपी में साढ़े छह मुख्यमन्त्री, असली हलकान
गाज़ीपुर के मूल निवासी संजय राय आजकल स्लोवाकिया में रह रहे हैं और उत्तर प्रदेश व देश की राजनीति पर गहरी नज़र रखते हैं। पिछले दिनों उन्होंने एक मज़ेदार टिप्पणी की, "उत्तर-प्रदेश में कुल मुख्यमन्त्रियों की संख्या साढ़े छह है। मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव, राम गोपाल यादव, आज़म खान, अनीता सिंह, साधना गुप्ता (मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी) और आधे अखिलेश यादव खुद हैं।' इसमें सभी मुख्यमन्त्री इतने मजबूत हैं कि आधे मुख्यमन्त्री अखिलेश को कई फैसलों की जानकारी तक नहीं होती। लोक सेवक और नौकरशाह कई क्षत्रपों में बिखरे हुये हैं और प्रदेश अराजकता के माहौल में है।"
सात समन्दर पार से संजय राय की यह टिप्पणी एकदम सटीक है। पूरे प्रदेश में जो माहौल है उससे अब आम आदमी भी वाकिफ है और नौकरशाही तो इतनी बेलगाम हो गयी है कि एक वरिष्ठ केबिनेट मन्त्री की मौजूदगी में मुख्यमन्त्री के सचिव पत्रकारों से बदतमीज़ी करते हैं। ऐसा इसलिये है क्योंकि सभी अफसरों ने किसी न किसी मुख्यमन्त्री को पकड़ रखा है और आधा मुख्यमन्त्री जो संवैधानिक रूप से असली मुख्यमन्त्री है कुछ सुधार के गम्भीर कदम उठाना भी चाहे तो मजबूर हो जाता है।
पिछले एक हफ्ते में सूबे में दो घटनायें घटित हुयी हैं जो आधे मुख्यमन्त्री की बेबसी को बयाँ करती हैं। अभी हफ्ता भर पहले सरकार ने उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी के चेयरमैन पद पर वरिष्ठ सपा नेता मौलाना यासीन उस्मानी की ताजपोशी की घोषणा की। मौलाना उस्मानी अरबी और उर्दू के आलिम हैं, हाजी और कारी भी हैं और सम्भवतः सपा के एक मात्र पढ़े लिखे संजीदा मुस्लिम नेता हैं, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य भी हैं। मुस्लिम लीडरशिप में गम्भीरतासे लिये जाते हैं। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की कई अहम संस्थाओं से जुड़े हुये हैं। बेहतरीन तकरीर भी करते हैं, (आज़म खाँ से अच्छी तकरीर नहीं भी करते हैं तो बुरी भी नहीं करते, तकरीर में आज़म खाँ की तरह बहकते भी नहीं हैं) जिस बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी ने आज़म खाँ को मुसलमानों का रहबर बनाया उसी एक्शन कमेटी ने मौलाना उस्मानी को भी नेता बनाया। एक समय ऐसा था जब अहमद बुखारी और आज़म खाँ के बीच सम्वाद सेतु वही हुआ करते थे। बहरहाल बीस साल पहले आज़म खाँ ही मौलाना को सियासत में घसीट कर इस नीयत से लाये कि उस वक्त जनता दल यूपी की सियासत में जिन्दा था और शरद यादव, मुलायम सिंह यादव के लिये सिर दर्द थे। खतरा यह था कि मौलाना खुली सियासत में कूदे तो कहीं शरद यादव के पलड़े में न बैठ जायें।
बहरहाल मामला यह है कि जब आज़म खाँ समाजवादी पार्टी से निकाले गये तो मौलाना उनके साथ नहीं गये और न तब उन्होंने मुलायम सिंह के पुतले फुँकवाये। इससे आज़म खाँ का कुपित होना जायज भी था। बाद में जब खाँ साहब पॉवरफुल होकर सपा में वापस आये तो सबसे पहले उन्होंने बदायूँ से मौलाना का टिकट कटवाकर अपने चहेते एक आपराधिक छवि के उस व्यक्ति को पार्टी का टिकट दिलवाया जिसने कुछ रोज़ पहले ही मुलायम सिंह का पुतला और पार्टी का झण्डा फूँका था। बाद में एमएलसी बनने का नम्बर आया तो जिले के एक यादव जी बीच में आ गये।
अब ताज़ा सूचना यह है कि हफ्ता भर पहले सरकार की तरफ से राज्यमन्त्री का दर्जा घोषित उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी के चेयरमैन मौलाना यासीन अली उस्मानी लखनऊ में डेरा डाले हुये हैं। अखबारों, टीवी और तमाम प्रचार माध्यमों में नियुक्ति की घोषणा हो चुकी है लेकिन न तो चेयरमैन साहब को नियुक्ति पत्र मिला है और न शपथ हुयी है। सत्ता के गलियारों में बड़ी तेजी से अफवाह फैल रही है कि आज़म खाँ अड़ गये हैं कि यह नियुक्ति रद्द हो क्योंकि कल को उनका विकल्प पैदा न होने पाये। संवैधानिक मुख्यमन्त्री परेशान बताये जा रहे हैं कि कैसे अपने फैसले को पलटें और जनता को अपना मुँह कैसे दिखायें। क्या जनता को बता दें कि वह आधे मुख्यमन्त्री हैं ? बहरहाल समाचार लिखे जाने तक तनातनी जारी है। संवैधानिक मुख्यमन्त्री के सामने चुनौती है कि वह आज़म खाँ के कहने पर अपने उस साथी का अपमान कैसे कर दें जिसने आड़े वक्त में साथ दिया और आज़म खाँ की जिद है कि जो मेरे साथ नहीं रहा वह कुछ कैसे बने। बताया यह जाता है कि आज़म खाँ के अधीन आने वाले आधा दर्जन से ज्यादा निगम और आयोग अपने चेयरमैन और उपाध्यक्षों का इन्तजार कर रहे हैं लेकिन नियुक्ति इसलिये नहीं हो सकती क्योंकि खाँ साहब नाराज़ हो जायेंगे।
खैर साढ़े छह मुख्यमन्त्रियों में शुमार किये जाने वाले एक और मुख्यमन्त्री मास्टर रामगोपाल यादव, संवैधानिक मुख्यमन्त्री के गले पड़ गये हैं। बताया जाता है कि कल दोपहर में पार्टी के युवा संगठनों के राष्ट्रीय, प्रदेश व जिला अध्यक्ष बहाल किये गये। लेकिन मास्टर इससे नाराज़ हो गये क्योंकि समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर संवैधानिक मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव के नज़दीकी समझे जाने वाले संजय लाठर को बहाल कर दिया गया था। लाठर से मास्टर साहब की नाराज़गी इसलिये बतायी जाती है कि वह मास्टर साहब के नोएडा-गाजियाबाद साम्राज्य में दखल दे रहे थे। इधर चर्चा यह है कि मास्टर साहब बार-बार यह एहसास कराते रहते हैं कि अखिलेश यादव को मुख्यमन्त्री उन्होंने ही बनवाया है वरना आज़म खाँ और शिवपाल मिलकर सूबा झटक लेते। बहरहाल कुछ चतुर सुजान यह कहते हुये भी पाये जाते हैं कि समाजवादी बच्चों की डिम्पल भाभी को फिरोज़ाबाद से लोकसभा उपचुनाव हरवाने में भी मास्टर साहब की अच्छी भूमिका थी।इसके पीछे तर्क भी कमजोर नहीं है। बताया जाता है कि काँग्रेस सांसद राज बब्बर से मास्टर साहब के सम्बंध बहुत अच्छे हैं, तब भी थे जब उपचुनाव हुआ था। वैसे समाजवादी बच्चों की डिम्पल भाभी अगर चुनाव न हारतीं तो मास्टर साहब के सुपुत्र फिरोज़ाबाद से पार्टी के उम्मीदवार घोषित हो पाते?
ताज़ा सूचना यह है कि मास्टर साहब का अहम संतुष्ट करने के लिये देर रात सभी युवा संगठनों की राष्ट्रीय कमेटियाँ फिर भंग कर दी गयीं क्योंकि अकेले संजय लाठर को हटाने से संवैधानिक मुख्यमन्त्री की लाचारगी जाहिर हो जाती।
…और लोग हैं कि कानून व्यवस्था और न जाना क्या-क्या के लिये मुख्यमन्त्री को कोसने लगते हैं। भाई पर्दे के पीछे वाले मुख्यमन्त्री काम करने दें तब न फेल- पास होंगे संवैधानिक मुख्यमन्त्री, कि दूसरों के गुनाहों को ही ओढ़ते रहेंगे?
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