झंडा उठाने में कोताही नहीं,फिरभी हिंदी पट्टी की किस्मत ही घास चरने चली गयी
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
कल्याणी से लेकर हावड़ा तक की कलकतिया हिंदी पट्टी की किस्मत ही घास चरने चली गयी। हुगली के आर पार सदियों से बसने वाले हिन्दी भाषी वाम शासन के दौरान लाल झंडा ढोने में कोई कसर बाकी रख दी है,ऐसा दावा भी लोग नहीं कर सकते। लेकिन अब हालत यह है कि नौकरियां तो मिल ही नहीं रही हैं।कारोबार का माहौल सुधरा नहीं है। हावड़ा के मंदिरतला में बना नया राज्य सचिवालय मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का स्वागत करने के लिए पूरी तरह से तैयार है। हावड़ा की एचआरबीसी बिल्डिंग में नये राज्य सचिवालय के अंदर विभागों के स्थानांतरण का कार्य लगभग पूरा हो चुका है। अब बस नवान्न में मुख्यमंत्री के आने का इंतजार है। मंदिरतला के पास बस स्टैंड का निर्माण कार्य पूरा हो गया है। सोमवार से यहां राज्य सचिवालय का कामकाज भी पूरी तरह से शुरू हो जायेगा।
हिंदी जनता का कोई माईबाप नहीं
बलिया के शिक्षकों के अलावा यूपी बिहार के हिंदी भाषी कल कारखाने बंद होने से दर दर की ठोकरें का रहे हैं। छोटी छोटी दुकानें सजाकर,ठेले लगकर,रिक्शे खींचकर, कुली बनकर गुजर बसर कर रहे हैं महनतकश हिंदी जनता,जिसका कोई माई बाप है ही नहीं।
विकास किस चिड़िया के नाम है ,नहीं जानते हिंदी इलाके
कोयलांचल और दुर्गापुर शिल्पांचल में थोड़ी बहुत रंगबाजी अब भी चल रही है, लेकिन वह घर परिवार चलाने को काफी नहीं है। कल कारखाने वहां भी खूब हैं। खनन जारी है और दुर्गापुर इस्पात कारखाना चालू है। बाकी कुछ भी नहीं। विकास किस चिड़िया के नाम है ,नहीं जानते हिंदी इलाके।
आजीविका भी खतरे में
अब हिंदी भाषियों की आजीविका बहुत खतरे में हैं। जिन कलकारखानों में वे नौकरी पर थे, वे बंद हो गये। और तो और शहरी आबादी से खटाल तक हटा दिये गये।
सबकुछ धुंआ धुआं
पांच सौ साल पुरानी हावड़ा नगरी से ज्यादा हिंदी भाषियों की धड़कनों की खबर किसी को नहीं मालूम। हावड़ा के दिल में धड़कती है बदहाल हिंदी जनता। रोजगार जहां हासिल हुआ, विडंबना देख लीजिये, वहीं खत्म हुआ फसाना। सबकुछ धुंआ धुआं, कोई चिनगारी भी नही ंहै कहीं। हिंदी जनता का हावड़ा ऐसा आशियाना है ,जहां वे लोग रोज मर मर कर जी रहे हैं। हर सुबह नई लड़ाई की शुरुआत।
नवान्न से उम्मीदें हैं अब
हावड़ा में राइटर्स के लोग पहंच चुके हैं। सारे मंत्रालय और विभागों में रौनक है तो कलकतिया राइटर्स में श्मशानी निःस्तबधता है। हावड़ा वासियों को तो जिंदगी बदल जाने की उम्मीद है, लेकिन हुगली के आर पार हिंदी भाषियों की जिंदगी बदलेगी, ऐसी उम्मीद अब भी नहीं की जा सकती।लेकिन बाकी बची जो उम्मीदें हैं,दिया की वह बाती इस दिवाली में सुलगेगी या बुझी बुझी रहेगी हमेशा की तरह,इसका जवाब तो हावड़ा में दीदी का राजकाज शुरु होने के बाद ही मिलेगा।
तभी बदलेगी मेहनकशों की किस्मत
बहरहाल हावड़ा के बंद कलकारखाने खुलेंगे, हुगली के आर पार,बीटीरोड किनारे रातोंदिन सातों दिन की पुरानी रौनक लौटें तभी बदलेगी मेहनतकश हिंदी भाषियों की किस्मत।
जो था छिना है, जो छिना है, फिर वापस नहीं मिला
इसीतरह बंगाल के औद्योगिक इलाकों में दुर्गापुर से लेकर आसलसोल बराकर तक हिंदी पट्टी का राजनीतिक इस्तेमाल बहुत हुआ है। रिटर्न में कभी कुछ नहीं मिला।जो था छिना है, जो छिना है, फिर वापस नहीं मिला। रोटी के लाले पड़ गये हिंदी भाषी आवाम को।
दीदी के पहुंचने का ही इंतजार
पांच सौ साल बाद हावड़ा की किस्मत ने करवट बदली है। कोलकाता से मंदिरतला की बसों और लांचों की फेरियां कई कई गुणा बढ़ गयी है। सुरक्षा के लिहाज से मंदिरतला इलाके में 144 धारा लागू हो गयी है। लेकिन लगता नहीं है कि उत्सव की रौनक में अभी कमी आयी है।दीदी के नवान्न पहुंचने के बाद धूम धड़ाका देखियेगा।
करोड़पतिया सवाल है
कोलकाता में चप्पे चप्पे पर जो पंडाल सजे हैं और यातायात जो बाधित है, उत्सव की इस तैयारी के बीच राजधानी के उस पार चले जाने की छाया भी लंबी होने लगी है।करोड़पतिया सवाल है कि राइटर्स नवान्न में जाने से क्या हावड़ा से लेकर कल्याणी तक के कारोबारी माहौल में कोई सुधार आयेगा।क्या औद्योगिक परिदृश्य बदलेंगे,यह भी करोड़पतिया सवाल है।
राइटर्स अब इतिहास
राइटर्स के करीब 236 साल के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब यह पश्चिम बंगाल के शक्ति के केंद्र के तौर पर काम नहीं करेगी।180 कमरों की यह इमारत करीब 4,500 सरकारी कर्मचारियों के कार्यालय के तौर पर दशकों से अपनी सेवाएं दे रही है। इस इमारत को वर्ष 1777 में बनाया गया था। तब से लेकर आज तक अलग-अलग समय पर इसमें तमाम बदलाव किए गए हैं। एक जमाने में फोर्ट विलियम कॉलेज के परिसर के तौर पर काम करने वाली इस इमारत में सैकड़ों क्यूबिकल्स हैं जहां सरकारी फाइलों की भरमार है। उस वक्त इसमें एक छात्रावास, परीक्षा कक्ष और पुस्तकालय भी था। इसके बाद इसका इस्तेमाल आवासीय परिसर के तौर पर किया जाने लगा। बाद में 19 सदी में बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर ऐशले ईडन के जमाने में इस इमारत को उनके प्रमुख कार्यालय के रूप में प्रयोग किया गया। तब से यह इमारत सत्ता केंद्र के रूप में प्रसिद्घ हो गई। समय के साथ हुए कुछ प्रमुख बदलावों में पहली और दूसरी मंजिल में 128 फीट का बरामदा, लकड़ी की सीढिय़ां, बॉलकनी में 32 फीट ऊंचे खंभे, दिखने में ग्रीक-रोमन और ईंटों का इस्तेमाल प्रमुख है। इमारत के कुछ हिस्से आजादी के बाद भी बनाए गए लेकिन इस इमारत की मरम्मत इतने बड़े पैमाने पर पहले कभी नहीं की गई।
शक्तिकेंद्र अब नवान्न
नया शक्तिकेंद्र अब नवान्न है।यह बात इस साल जून की है। लोकसभा उपचुनाव के दौरान एक चुनावी रैली से लौटते वक्त पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नजर हावड़ा के मंदिरतला के निकट 13 मंजिला एचआरबीसी इमारत पर पड़ी। राइटर्स बिल्डिंग में प्रस्तावित मरम्मत के दौरान विद्यासागर सेतु से बमुश्किल 100 मीटर दूर स्थित यह इमारत उन्हें पसंद आई जहां से वह अब राजकाज चलायेंगी।यह कोई अस्थाई बंदोबस्त नही ंहै,मंदिरतला तक सारे यातायातगंतव्य बदलने की कवायद से साफ जाहिर है। बनर्जी ने हाल ही में घोषणा की है कि लंबी अवधि के सरकारी परिसर बनाने के लिए सरकार हावड़ा के डोमजुला स्टेडियम में एक नई इमारत बनाने के बारे में वे विचार कर रही हैं।
पितृपक्ष के बाद क्या सचमुच बदलने लगेगी किस्मत
काशीपुर,बराहनगर, बेलघरिया, कमारहट्टी, सोदपुर, पानीहट्टी, आगरपाड़ा, खड़दह, टीटीगढ़, बैरकपुर, इच्छापुर, नोवापाड़ा, श्यामनगर, पानीहट्टी,जगदल,भाटपाड़ा, नैहट्टी, हालिशहर,कांचरापाड़ा और कल्यानी हुगली के एक किनारे तो दूसरी ओर सालकिया बांधा घाट, लिलुआ, बाली, हिदमोटर, कोन्नगर, रिसड़ा, श्रीरामपुर, चदंननगर,चुंचुड़ा,हुगली और बंडेल। कहीं भी हिदी भाषी जनता का हाल देख लीजिये।हर बस्ती में हजार सपनों के हजारों हजार टुकड़ों के सिवाय कुछ भी नहीं है। पर बिना भागे लोग करीब चार दशक से किस्मत के करवट लेने के मुहूर्त की बाट जोह रहे हैं। पितृपक्ष के बाद क्या सचमुच बदलने लगेगी किस्मत, करोड़पतिया सवाल यही है।
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