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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Sunday, October 6, 2013

তবু কেন প্রতিবাদে তচল কামদুনি? Rise in credit & debit cards spending signals India's transformation into a cashless economy दुर्गा चंडी नहीं, “…” थी, उसकी पूजा क्‍यों करें बहुजन?

তবু কেন প্রতিবাদে

তচল কামদুনি?


Rise in credit & debit cards spending signals India's transformation into a cashless economy


दुर्गा चंडी नहीं, "…" थी, उसकी पूजा क्‍यों करें बहुजन?


पलाश विश्वास





সেদিনও কলকাতার

রাস্তার মোড়ে মোড়ে

বাজছিল রবীন্দ্র সঙ্গীত

এখন ট্রাফিক সিগন্যালে

চলছে চন্ডী পাঠ

পুজো উদ্বোধনে মা মাটি

মুখ্যমন্ত্রী থেকে সবাই

সঙ্গে চলছে সমান তালে

রাজনৈতিক তরজা,খেউড়


বাম কেল্লার অবশিষ্ট

কিছুই নেই বাকী

রেজ্জাক, সোমনাথ

এমনকি বুদ্ধও

নেতৃত্ব বদল চান


লড়াই ছেড়ে রাস্তায়

নামেনি বামেরা বহুত দিন

ক্ষমতা বেদখল হতেই

বোঝা গেল এলাকা

দখলের সমীকরণ সন্ত্রাস

সেই নৈরাজ্য চলছে

পার্টি বদ্ধ মানুষ

বলি হচ্ছে প্রতিনিয়ত

একচেটিয়া আধিপাত্যের

যূপকাষ্টে,প্রতিরোধ নেই

দুর্বত্যায়ন চলছে অবিরাম


ভোজ চলছে সারা রাজ্য জুড়ে

মোত্সব চলছে সর্বত্র

সর্বত্র কার্ণিওয়াল

সর্বত্র মুখোশ নৃত্য

বোমাবাজি ধমাকায়

কান ঝালা পালা

উত্সবে মানুষ

ভুলেছে আত্মপরিচয়

ন্যায় নিভৃতে কাঁদে

সর্বক্ষণ, পিতৃ তর্পণ

হয় নি আদৌ

দেবী পক্ষ নিয়ে

ফ্যাশন প্যারেড




দেবী পক্ষ শুরু হতেই

বাজারের দখলে বঙ্গ

প্যান্ডেলে প্যান্ডেলে

করপোরেট ছবি

চালচিত্র একটাই


বরষা চলছেই

বিপর্যয়ের অশনি সংকেতে

কখনো উত্সবের

মেজাজ থামে না

সীমান্ত জনপদ

তস্কর অপরাধী দখলে

যারা ওপার থেকে

এসেছেন পরে

বেনাগরিক অনেকেই

এখনো জেলে

যারা নূতন করে

শিক্ষিত হয়ে

বয়স ভাঁড়িয়ে

চাকরিতে জম্পেশ

তাঁদের খোঁজ চলছে

জোর কদম

কাস্ট সার্টিফিকেট

হোক না হোক

রেশন কার্ড হোক না হোক

আধার হোক না হোক

সীমান্তে সবকিছুই খুল্লা

কিন্তু ব্যাপক

মহিষাসুর বধের

চলছে আয়োজন,

রিটায়ার করেছেন যারা

রিকভারির জন্য

তৈরি থাকুন তাঁরাও


সংরক্ষিত পদে

যোগ্য প্রাথী মেলা দায়

কাস্ট সার্টিফিকেট

মেলাও ভারী দায়

ছাঁটাইয়ে কিন্তু

সংরক্ষণ নেই

বেনাগরিক যারা

তাঁরা আবার সবাই

সংরক্ষিত


প্রতিবার উত্সবে

জলমগ্ন গ্রামবাংলা

লদীতে ভাঙ্গন

চলছে ত চলছেই

প্রণব বাবু সুদূর

বেলজিয়ামে

দুর্গা মুর্তি বসিয়ে

করেচেন গ্লোবাল বোধন

নবান্নের বোধনও

হল শেষ


শেষ হয়না বঙ্গের

রঙ্গ, রিয়েলিটি শোর

দখলে বাংলা আজ

মা মাটি মানুষের

খবর নেই কোনো

তবু কেন প্রতিবাদে

তচল কামদুনি


ব্রাহ্ম সমাজ একদা

করেছিল সুচনা

নবজাগরণের

ব্রাঙ্মণ্যবাদেই

হল পরিমতি তাঁর


নীল বিদ্রোহ, কৃষক

আন্দোলন, ভূমি সংস্কার

ও তেভাগা,ব্রাত্য জনের

বিদ্রোহে সারা ভারতে

চন্ডাল আন্দোলন করেছিল

যারা তারা এখন পার্টিবদ্ধ

রাজনীতির কারোবারি


সাওঁতাল বিদ্রোহ,

মুন্ডা বিদ্রোহ, চুয়াড় বিদ্রোহ

বাংলার কৃষক আন্দোলনে

জমিদার জোতদার সমন্ততন্ত্র

ও সাম্রাজ্যবাদের বিরুদ্ধে

যারা লড়েছে অবিরাম

সেই আদিবাসী অসুর নিধনে

আমরা খুঁজি বঙ্গ সংস্কৃতি

আস্থা এখন বারোয়ারি

ধর্ম এখন সার্বজনীন

বাজার, বাজারে বিপর্যয়ে

কারো কিছু আসে যায়না


সোদপুরে যে বিপণিতে

আগুনে পুড়েছিল ষোলো

সাজা হয়নি আজ ও কারো

সেখানেই সবচেয়ে বেশি ভিড়




একে প্রবল বর্ষণ, তার উপর ডিভিসি জল ছাড়ায় পুজোর মু্খে দুর্গতির শেষ নেই হুগলির খানাকুলের কয়েক হাজার মানুষের৷ চারটি গ্রাম পঞ্চায়েত এলাকা জলমগ্ন৷ খেতের ফসল তো বটেই, ডুবে গিয়েছে রাস্তাঘাটও৷ ফলে যাতায়াত প্রায় বন্ধ৷ ভরসা নৌকা৷ ডিভিসি আরও জল ছাড়লে দুর্ভোগ আরও বাড়ার সম্ভাবনা৷ ত্রাণ বিলি শুরু হয়েছে বলে প্রশাসন দাবি করলেও স্থানীয় মানুষ তা অস্বীকার করেছেন৷


কামদুনিতে শান্তিরক্ষা কমিটির রক্তদান শিবিরে যোগ দিলেন মৌসুমি কয়াল, যোগ দিলেন কামদুনি প্রতিবাদী মঞ্চের সদস্যরাও। তবে তাঁরা সাফ জানিয়ে দিলেন, প্রতিবাদী মঞ্চ তুলে দেওয়ার পরিকল্পনা তাঁদের নেই।


খানাকুলের সঙ্গে সংযোগ রক্ষাকারী একমাত্র পথ মায়াপুর-গড়ের ঘাট সড়কের নন্দনপুর, জগদীশতলা এলাকায় বাস চলাচল বন্ধ হয়ে গিয়েছে৷ পানশিউলির কাছে রূপনারায়ণপুর ও মুণ্ডেশ্বরী নদীর জল হু হু করে গ্রামে ঢুকেছে রবিবার বিকেল পর্যন্ত৷ ডিভিসি মোট ৫৯ হাজার কিউসেক জল ছেড়েছে৷ ফলে খানাকুল ২ নম্বর ব্লকের রাজহাটি ১ নম্বর, জগত্‍পুর, মাড়োখানা, শাবল সিংহপুর-সহ বেশ কিছু গ্রামে বাড়িঘরেও জল ঢুকেছে৷ রাস্তা জলে ডুবে থাকায় কোথাও কোথাও যাতায়াতে ভরসা এখন নৌকাই৷


আর এই মঞ্চ থেকেই চার মন্ত্রী কামদুনির দুই মঞ্চকে (প্রতিবাদী মঞ্চ এবং শান্তিরক্ষা কমিটি) এক হওয়ার আহ্বান জানালেন। তাঁরা বলেন, গ্রামের উন্নয়নের স্বার্থেই দুই মঞ্চের এক হওয়া উচিত। তবে এর আগে প্রতিবাদী মঞ্চের ওপর আক্রমণও শানিয়েছেন তাঁরা।


কামদুনি ধর্ষণ কাণ্ডের চার মাস পর নির্যাতিতার স্মরণে রক্তদান শিবিরের আয়োজন করে সরকারি মদতে গড়া শান্তিরক্ষা কমিটি। নির্যাতিতার পরিবার ক্ষতিপূরণ আর চাকরি নিতে রাজি হওয়ার পরে খাদ্যমন্ত্রী বলেছিলেন, "কামদুনির আন্দোলন শেষ।" আর এদিন ৪ মন্ত্রী, ৫ বিধায়ক, ৪ পুরপ্রধান, ৮টি পঞ্চায়েত সমিতির সভাপতির উপস্থিতি প্রমাণ করছিল রক্তদান শিবির সরকারের কাছে কতটা মর্যাদার লড়াই।


বেলার দিকে রক্তদান শিবিরে এলেন প্রতিবাদী মঞ্চের সহ সভাপতি সুকান্ত কয়াল। বেলা একটা নাগাদ এলেন প্রতিবাদী মঞ্চের সম্পাদক মৌসুমি কয়াল। সঙ্গে প্রতিবাদী মঞ্চের দুই মুখ টুম্পা কয়ালের মা মলিনা কয়াল এবং সরমা কয়াল। সেখান থেকেই মৌসুমি কয়াল বলেন, 'নির্যাতিতার স্মৃতিতে রক্তদান শিবির। তাই এসেছি। আমরা গ্রামের উন্নয়ন চাই।'


সরকারি চাকরি গ্রহণের পাশাপাশি, প্রতিবাদী মঞ্চের বিরুদ্ধে তাঁদের ভুল বোঝানোর অভিযোগও এনেছিল নির্যাতিতার পরিবার। তার পরই থেকেই অস্বস্তিতে ছিল প্রতিবাদী মঞ্চ। ক্ষুব্ধও ছিল তারা। এদিন 'নির্যাতিতার স্মৃতিতে আয়োজিত শিবিরে এসেছি' বলে সাফাই দিলেও, তাঁদের উপস্থিতিতে প্রশ্ন উঠতে শুরু করেছে। প্রশ্ন উঠছে, তা হলে সত্যিই কি ক্রমশ পিছিয়ে যাচ্ছে কামদুনির আন্দোলন?


তবে এদিন শিবিরে এলেও কোনও মন্ত্রী-নেতার সঙ্গে দেখা করেনি প্রতিবাদী মঞ্চের সদস্যরা। তথ্যাভিজ্ঞ মহলের ধারণা, কমিটির রক্তদান শিবিরে এলেও তাঁরা যে আন্দোলন থেকে সরছে না, মন্ত্রীদের এড়িয়ে তা-ই বুঝিয়ে দিল প্রতিবাদী মঞ্চ।


রাজ্যে রিয়েল এস্টেট বা আবাসন ব্যবসায় দ্রুত প্রতিপত্তি বিস্তার করছে তৃণমুল সাংসদ কে ডি সিংয়ের সংস্থা অ্যালকেমিস্ট৷ এবছর মে মাসে দুর্গাপুর-অন্ডাল অঞ্চলে গড়ে ওঠা বেঙ্গল এয়ারোট্রপলিস প্রকল্পে আবাসন তৈরির জন্য ২০ একর জমি কেনে অ্যালকেমিস্ট টাউনশিপ ইন্ডিয়া৷ সোমবার বাটানগরে কলকাতা রিভারসাইড প্রকল্পে আবাসন তৈরির জন্য প্রায় ৪৬ একর জমি কেনে ওই সংস্থা৷


উল্লেখ্য, দু'টি ক্ষেত্রেই অ্যালকেমিস্টের হয়ে দালালির কাজটি করে বহুজাতিক রিয়েল এস্টেট উপদেষ্টা সংস্থা জোনস ল্যাং লাসাল৷


শারদা মামলায় তদন্তের রফা দফা

কুমালের বিদ্রোহে

রহস্য খুলছে না

যারা শিকার হলেন

যাদের পরিবারে

আত্মহত্যা হল

যারা লুকিয়ে রইলেন

তাঁরা ক্ষতিপূরণের

আনন্দে মাতোযারা


একটাই চিন্তা

পুজো মাটি

হতে পারে বৃষ্টিতে


পুজোর চারদিনের জন্য আজও কোনও আশার কথা শোনাতে পারল না আবহাওয়া দফতর। মধ্যপ্রদেশের ওপর তৈরি নিম্নচাপ ক্রমশ দুর্বল হলেও ঘূর্ণাবর্ত একই জায়গায় দাঁড়িয়ে রয়েছে। ফলে পুজোয় বিক্ষিপ্ত বৃষ্টির সম্ভাবনা থাকছে। বিক্ষিপ্ত বৃষ্টি হতে পারে আগামী ২৪ ঘণ্টাতেও।  


নাছোড় বৃষ্টি কিছুতেই রাজ্য ছাড়ছে না। পুজোর দিন চারেক আগেও ভাল খবর শোনাতে পারল না আলিপুর আবহাওয়া দফতর। মধ্যপ্রদেশের ওপর তৈরি নিম্নচাপ ক্রমশ দুর্বল হলেও ঠায় একই জায়গায় দাঁড়িয়ে রয়েছে। আবহাওয়া দফতরের পূর্বাভাস, এর প্রভাবে পুজোর চারদিন বৃষ্টির সম্ভাবনা থেকেই যাচ্ছে।

পুজোর শেষ রবিবারের ভিড় এড়াতে  যারা কেনাকাটায় বেরোননি তাঁদের জন্যও সুখবর নেই। বরং রয়েছে সতর্কবার্তা। আবহাওয়া দফতর জানাচ্ছে, সোমবারও বিক্ষিপ্ত বৃষ্টি হতে পারে।

পুজোর আনন্দ মাটি করতে পারে বৃষ্টি। বৃষ্টির ভ্রুকুটিতে সেই আশঙ্কা থাকছেই। তবে সবকিছুকে উপেক্ষা করে উত্‍সব প্রিয় মানুষ যে রাস্তায় নামবেন সেটা বলাই যায়।




दुर्गा चंडी नहीं, "…" थी, उसकी पूजा क्‍यों करें बहुजन?



♦ प्रेमकुमार मणि

दुर्गा कथा के शूद्र पाठ को लेकर मणि जी का यह आलेख काफी उत्तेजक तथ्‍यों को हमारे सामने रखता है। यह आलेख फारवर्ड प्रेस के नये अंक का आमुख आलेख है। हम वहीं से इसे कॉपी-पेस्‍ट कर रहे हैं। शीर्षक में हमने थोड़ी छूट ले ली है : मॉडरेटर

फॉरवर्ड प्रेस का सदस्‍यता अभियान चल रहा है। एक अंक नमूना के तौर पर मुफ्त मंगाएं और पसंद आये, तो ग्राहक बनें। सदस्‍य बनने के लिए संपर्क करें! तीन वर्ष का शुल्‍क 500 रुपये, दो वर्ष का 360 रुपये और एक वर्ष का 200 रुपये है। इसके अलावा छात्रों के लिए भी एक योजना है, जिसके तहत महज 99 रुपये में छह माह की सदस्‍यता दी जाती है, लेकिन इसके लिए संबंधित शैक्षणिक संस्‍थान के परिचय पत्र की छाया प्रति आवश्‍यक होगी। अपना पूरा पता और फोन नंबर समेत लिखें।

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क्ति के विविध रूपों, यथा योग्यता, बल, पराक्रम, सामर्थ्‍य व ऊर्जा की पूजा सभ्यता के आदिकालों से होती रही है। न केवल भारत में बल्कि दुनिया के तमाम इलाकों में। दुनिया की पूरी मिथॉलॉजी के प्रतीक देवी-देवताओं के तानों-बानों से ही बुनी गयी है। आज भी शक्ति का महत्व निर्विवाद है। अमेरिका की दादागीरी पूरी दुनिया में चल रही है, तो इसलिए कि उसके पास सबसे अधिक सामरिक शक्ति और संपदा है। जिसके पास एटम बम नहीं हैं, उसकी बात कोई नहीं सुनता, उसकी आवाज का कोई मूल्य नहीं है। गीता उसकी सुनी जाती है, जिसके हाथ में सुदर्शन हो। उसी की धौंस का मतलब है और उसी की विनम्रता का भी। कवि दिनकर ने लिखा है: 'क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो।'

दंतहीन और विषहीन सांप सभ्यता का स्वांग भी नहीं कर सकता। उसकी विनम्रता, उसका क्षमाभाव अर्थहीन हैं। बुद्ध ने कहा है – जो कमजोर है, वह ठीक रास्ते पर नहीं चल सकता। उनकी अहिसंक सभ्यता में भी फुफकारने की छूट मिली हुई थी। जातक में एक कथा में एक उत्पाती सांप के बुद्धानुयायी हो जाने की चर्चा है। बुद्ध का अनुयायी हो जाने पर उसने लोगों को काटना-डंसना छोड़ दिया। लोगों को जब यह पता चल गया कि इसने काटना-डंसना छोड़ दिया है, तो उसे ईंट-पत्थरों से मारने लगे। इस पर भी उसने कुछ नहीं किया। ऐसे लहू-लुहान घायल अनुयायी से बुद्ध जब फिर मिले तो द्रवित हो गये और कहा 'मैंने काटने के लिए मना किया था मित्र, फुफकारने के लिए नहीं। तुम्हारी फुफकार से ही लोग भाग जाते।'

भारत में भी शक्ति की आराधना का पुराना इतिहास रहा है। लेकिन यह इतिहास बहुत सरल नहीं है। अनेक जटिलताएं और उलझाव हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता के समय शक्ति का जो प्रतीक था, वही आर्यों के आने के बाद नहीं रहा। पूर्व वैदिक काल, प्राक् वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल में शक्ति के केंद्र अथवा प्रतीक बदलते रहे। आर्य सभ्यता का जैसे-जैसे प्रभाव बढ़ा, उसके विविध रूप हमारे सामने आये। इसीलिए आज का हिंदू यदि शक्ति के प्रतीक रूप में दुर्गा या किसी देवी को आदि और अंतिम मानकर चलता है, तब वह बचपना करता है। सिंधु घाटी की जो अनार्य अथवा द्रविड़ सभ्यता थी, उसमें प्रकृति और पुरुष शक्ति के समन्वित प्रतीक माने जाते थे। शांति का जमाना था। मार्क्‍सवादियों की भाषा में आदिम साम्यवादी समाज के ठीक बाद का समय। सभ्यता का इतना विकास तो हो ही गया था कि पकी ईंटों के घरों में लोग रहने लगे थे और स्नानागार से लेकर बाजार तक बन गये थे। तांबई रंग और अपेक्षाकृत छोटी नासिका वाले इन द्रविड़ों का नेता ही शिव रहा होगा। अल्हड़ अलमस्त किस्म का नायक। इन द्रविड़ों की सभ्यता में शक्ति की पूजा का कोई माहौल नहीं था। यों भी उन्नत सभ्यताओं में शक्ति पूजा की चीज नहीं होती।

शक्ति पूजा का माहौल बना आर्यों के आगमन के बाद। सिंधु सभ्यता के शांत-सभ्य गौ-पालक (ध्यान दीजिए शिव की सवारी बैल और बैल की जननी गाय) द्रविड़ों को अपेक्षाकृत बर्बर अश्वारोही आर्यों ने तहस-नहस कर दिया और पीछे धकेल दिया। द्रविड़ आसानी से पीछे नहीं आये होंगे। भारतीय मिथकों मे जो देवासुर संग्राम है, वह इन द्रविड़ और आर्यों का ही संग्राम है। आर्यों का नेता इंद्र था। शक्ति का प्रतीक भी इंद्र ही था। वैदिक ऋषियों ने इस देवता, इंद्र की भरपूर स्तुति की है। तब आर्यों का सबसे बड़ा देवता, सबसे बड़ा नायक इंद्र था। वह वैदिक आर्यों का हरक्युलस था। तब किसी देवी की पूजा का कोई वर्णन नहीं मिलता। आर्यों का समाज पुरुष प्रधान था। पुरुषों का वर्चस्व था। द्रविड़ जमाने में प्रकृति को जो स्थान मिला था, वह लगभग समाप्त हो गया था। आर्य मातृभूमि का नहीं, पितृभूमि का नमन करने वाले थे। आर्य प्रभुत्व वाले समाज में पुरुषों का महत्व लंबे अरसे तक बना रहा। द्रविड़ों की ओर से इंद्र को लगातार चुनौती मिलती रही।

गौ-पालक कृष्ण का इतिहास से यदि कुछ संबंध बनता है, तो लोकोक्तियों के आधार पर उसके सांवलेपन से द्रविड़ नायक ही की तस्वीर बनती है। इस कृष्ण ने भी इंद्र की पूजा का सार्वजनिक विरोध किया। उसकी जगह अपनी सत्ता स्थापित की। शिव को भी आर्य समाज ने प्रमुख तीन देवताओं में शामिल कर लिया। इंद्र की तो छुट्टी हो ही गयी। भारतीय जनसंघ की कट्टरता से भारतीय जनता पार्टी की सीमित उदारता की ओर और अंतत: एनडीए का एक ढांचा, आर्यों का समाज कुछ ऐसे ही बदला। फैलाव के लिए उदारता का वह स्वांग जरूरी होता है। पहले जार्ज और फिर शरद यादव की तरह शिव को संयोजक बनाना जरूरी था, क्योंकि इसके बिना निष्कंटक राज नहीं बनाया जा सकता था। आर्यों ने अपनी पुत्री पार्वती से शिव का विवाह कर सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की। जब दोनों पक्ष मजबूत हो तो सामंजस्य और समन्वय होता है। जब एक पक्ष कमजोर हो जाता है, तो दूसरा पक्ष संहार करता है। आर्य और द्रविड़ दोनों मजबूत स्थिति में थे। दोनों में सामंजस्य ही संभव था। शक्ति की पूजा का सवाल कहां था? शक्ति की पूजा तो संहार के बाद होती है। जो जीत जाता है वह पूज्य बन जाता है, जो हारता है वह पूजक।

हालांकि पूजा का सीमित भाव सभ्य समाजों में भी होता है, लेकिन वह नायकों की होती है, शक्तिमानों की नहीं। शक्तिमानों की पूजा कमजोर, काहिल और पराजित समाज करता है। शिव की पूजा नायक की पूजा है। शक्ति की पूजा वह नहीं है। मिथकों में जो रावण पूजा है, वह शक्ति की पूजा है। ताकत की पूजा, महाबली की वंदना।

लेकिन देवी के रूप में शक्ति की पूजा का क्या अर्थ है? अर्थ गूढ़ भी है और सामान्य भी। पूरबी समाज में मातृसत्तात्मक समाज व्यवस्था थी। पश्चिम के पितृ सत्तात्मक समाज-व्यवस्था के ठीक उलट। पूरब सांस्कृतिक रूप से बंग भूमि है, जिसका फैलाव असम तक है। यही भूमि शक्ति देवी के रूप में उपासक है। शक्ति का एक अर्थ भग अथवा योनि भी है। योनि प्रजनन शक्ति का केंद्र है। प्राचीन समाजों में भूमि की उत्पादकता बढ़ाने के लिए जो यज्ञ होते थे, उसमें स्त्रियों को नग्न करके घुमाया जाता था। पूरब में स्त्री पारंपरिक रूप से शक्ति की प्रतीक मानी जाती रही है। इस परंपरा का इस्तेमाल ब्राह्मणों ने अपने लिए सांस्कृतिक रूप से किया। गैर-ब्राह्मणों को ब्राह्मण अथवा आर्य संस्कृति मे शामिल करने का सोचा-समझा अभियान था। आर्य संस्कृति का इसे पूरब में विस्तार भी कह सकते हैं। विस्तार के लिए यहां की मातृसत्तात्मक संस्कृति से समरस होना जरूरी था। सांस्कृतिक रूप से यह भी समन्वय था। पितृसत्तात्मक संस्कृति से मातृसत्तात्मक संस्कृति का समन्वय। आर्य संस्कृति को स्त्री का महत्त्व स्वीकारना पड़ा, उसकी ताकत रेखांकित करनी पड़ी। देव की जगह देवी महत्वपूर्ण हो गयी। शक्ति का यह पूर्व-रूप (पूरबी रूप) था जो आर्य संस्कृति के लिए अपूर्व (पहले न हुआ) था।

महिषासुर और दुर्गा के मिथक क्या है?

लेकिन महिषासुर और दुर्गा के मिथक हैं, वह क्या है? दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब तक हमने अभिजात ब्राह्मण नजरिये से ही इस पूरी कथा को देखा है। मुझे स्मरण है 1971 में भारत-पाक युद्ध और बंग्लादेश के निर्माण के बाद तत्कालीन जनसंघ नेता अटलबिहारी वाजपेयी ने तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अभिनव चंडी दुर्गा कहा था। तब तक कम्युनिस्ट नेता डांगे सठियाये नहीं थे। उन्होंने इसका तीखा विरोध करते हुए कहा था कि 'अटल बिहारी नहीं जान रहे हैं कि वह क्या कह रहे हैं और श्रीमती गांधी नहीं जान रही हैं कि वह क्या सुन रही हैं। दोनों को यह जानना चाहिए कि चंडी दुर्गा दलित और पिछड़े तबकों की संहारक थी।' डांगे के वक्तव्य के बाद इंदिरा गांधी ने संसद में ही कहा था 'मैं केवल इंदिरा हूं और यही रहना चाहती हूं।'

महिषासुर और दुर्गा की कथा का शूद्र पाठ (और शायद शुद्ध भी) इस तरह है। महिष का मतलब भैंस होता है। महिषासुर यानी महिष का असुर। असुर मतलब सुर से अलग। सुर का मतलब देवता। देवता मतलब ब्राह्मण या सवर्ण। सुर कोई काम नहीं करते। असुर मतलब जो काम करते हों। आज के अर्थ में कर्मी। महिषासुर का अर्थ होगा भैंस पालने वाले लोग अर्थात भैंसपालक। दूध का धंधा करने वाला। ग्वाला। असुर से अहुर फिर अहीर भी बन सकता है। महिषासुर यानी भैंसपालक बंग देश के वर्चस्व प्राप्त जन रहे होंगे। नस्ल होगी द्रविड़। आर्य संस्कृति के विरोधी भी रहे होंगे। आर्यों को इन्हें पराजित करना था। इन लोगों ने दुर्गा का इस्तेमाल किया। बंग देश में वेश्याएं दुर्गा को अपने कुल का बतलाती हैं। दुर्गा की प्रतिमा बनाने में आज भी वेश्या के घर से थोड़ी मिट्टी जरूर मंगायी जाती है। भैंसपालक के नायक महिषासुर को मारने में दुर्गा को नौ रात लग गयी। जिन ब्राह्मणों ने उन्हें भेजा था, वे सांस रोक कर नौ रात तक इंतजार करते रहे। यह कठिन साधना थी। बल नहीं तो छल। छल का बल। नौवीं रात को दुर्गा को सफलता मिल गयी, उसने महिषासुर का वध कर दिया। खबर मिलते ही आर्यों (ब्राह्मणों) में उत्साह की लहर दौड़ गयी। महिषासुर के लोगों पर वह टूट पड़े और उनके मुंड (मस्तक) काटकर उन्होंने एक नयी तरह की माला बनायी। यही माला उन्होंने दुर्गा के गले में डाल दी। दुर्गा ने जो काम किया, वह तो इंद्र ने भी नहीं किया था। पार्वती ने भी शिव को पटाया भर था, संहार नहीं किया था। दुर्गा ने तो अजूबा किया था। वह सबसे महत्त्वपूर्ण थीं। सबसे अधिक धन्या शक्ति का साक्षात अवतार!(प्रेमकुमार मणि। हिंदी के प्रतिनिधि कथाकार, चिंतक व राजनीति कर्मी। जदयू के संस्‍थापक सदस्‍यों में रहे। इन दिनों बिहार परिवर्तन मोर्चा के बैनर तले मार्क्‍सवादियों, आंबेडकरवादियों और समाजवादियों को एक राजनीति मंच पर लाने में जुटे हैं। उनसे manipk25@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

শরতের আকাশে শিউলির গন্ধ৷ পুজো আর কয়েকদিন বাকি৷ পাড়ায় পাড়ায় ব্যস্ততা তুঙ্গে৷ কালো মেঘের চোখ রাঙানি উপেক্ষা করেই চলছে পুজোর প্রস্তুতি৷ পুজোর আগে শেষ রবিবারে নাওয়া-খাওয়ার সময় নেই পুজো উদ্যোক্তাদের৷ কুমোরটুলি থেকে বিভিন্ন মণ্ডপে প্রতিমা আসতে শুরু করেছে৷

চূড়ান্ত ব্যস্ততা পটুয়াপাড়ায়৷ প্রতিমা ডেলিভারির লম্বা লাইন৷ কুমোরটুলিতে এখন তাই নাওয়া খাওয়ার সময় নেই মৃত্‍ শিল্পীদের৷ মহালয়ার আগে থেকেই শুরু হয়ে গিয়েছে প্রতিমা ডেলিভারি৷ পুজোর আগে এখন জমজমাট কুমোরটুলি৷

কুমোরটুলি থেকে প্রতিমা এল চোরবাগান চ্যাটার্জিবাড়িতে৷ উমার আগমনে উত্সবের আমেজে মেতে পরিবারের সদস্যরা৷

পুজোর প্রস্তুতিতে পিছিয়ে নেই বারোয়ারি পুজোগুলোও৷ ক্লাবে ক্লাবে চূড়ান্ত ব্যস্ততা৷ কুমোরটুলি থেকে প্রতিমা এল একডালিয়া এভারগ্রিনে৷

অন্যদিকে, জমে উঠেছে সুপারস্টার বনাম মেগাস্টারের লড়াই৷

ইতিমধ্যেই সেরা ৫০টি পুজোর তালিকায় ঢুকে গিয়েছে নাকতলা উদয়ন সঙ্ঘ, বোসপুকুর তালবাগান, সমাজসেবী সঙ্ঘ৷ বোসপুকুর তালবাগানের এবারের থিম সহজিয়া বৈষ্ণব ভাবনা থেকে অনুপ্রাণিত৷ শেষ পর্যায়ে মণ্ডপ তৈরির কাজ৷ নাকতলা উদয়ন সঙ্ঘের থিম 'পাথরে প্রাণ'৷ রাজস্থানী স্থাপত্য ভাবনায় গড়ে উঠছে মণ্ডপ৷ লাইব্রেরির আদলে তৈরি হচ্ছে সমাসেবী সঙ্ঘের মণ্ডপ৷ পুজোর আগে শেষ রবিবারে পুজোর প্রস্তুতি তুঙ্গে৷

মণ্ডপ তৈরির ব্যস্ততা থেকে চাঁদা তোলার হিড়িক৷ উমা আসছেন৷ শহরজুড়ে তাই উত্সবের আমেজ৷

http://www.abpananda.newsbullet.in/kolkata/59-more/42074-2013-10-06-08-45-41


জমি ফেরত না পেলে মাটির প্রতিমায় দুর্গা আরধনা নয়, পণ সিঙ্গুরের বেড়াবেড়ির বাসিন্দাদেরজমি ফেরত না পেলে মাটির প্রতিমা নয়, ঘটেই হবে দুর্গার আরাধনা। এমনই ধনুকভাঙা পণ সিঙ্গুরের বেড়াবেড়ির বাসিন্দাদের। তাঁদের আশা, টাটা প্রকল্পের জমি ফেরত পাবেনই। আর সেবছরই ফের প্রতিমা এনে ধুমধাম করে হবে দুর্গাপুজো। আর বাসিন্দাদের ইচ্ছে, সেই পুজো উদ্বোধন করবেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়।   

রাজ্যজুড়ে উত্সবের আবহে উল্টো ছবি সিঙ্গুরের বেড়াবেড়িতে।


সিঙ্গুরে জমি আন্দোলনের সামনের সারিতে ছিল এই গ্রাম। এখানকারই পূর্বপাড়া শীতলা সংঘের পুজো এবার একুশ বছরে পড়ল। সিঙ্গুর ছেড়েছে টাটারা। জমি ফেরত পাননি। আর তাই বেড়াবেড়ির পুজো মণ্ডপে প্রতিমা নেই। পরিবর্তে পুজো হচ্ছে ঘটে।


সিঙ্গুর মামলা এখন সুপ্রিম কোর্টে। জমি ফেরতের গ্যারান্টি দিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী। বেড়াবেড়ির বাসিন্দাদের আশা, একদিন ঠিক জমি ফেরত পাবেন তাঁরা। সেবছরই আবার প্রতিমা এনে ধুমধাম করে পুজো হবে বেড়াবেড়িতে।

কামদুনিতে মঞ্চ মেলানোর ডাক

http://zeenews.india.com/bengali/zila/singur-would-not-to-idol-puja_16982.html

 

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প্রকাশ সিংহ, এবিপি আনন্দ

Sunday, 06 October 2013 19:11

কামদুনি প্রতিবাদ মঞ্চ ও শান্তিরক্ষা কমিটিকে এক হওয়ার আহ্বান জানালেন খাদ্যমন্ত্রী জ্যোতিপ্রিয় মল্লিক৷ অন্যদিকে, শান্তিরক্ষা কমিটিকেই প্রতিবাদী মঞ্চের সঙ্গে মিশিয়ে দেওয়ার সওয়াল করলেন মঞ্চের সভাপতি ভাস্কর মন্ডল ও সহকারী সম্পাদক সুকান্ত কয়াল৷ এদিন  অবশ্য শান্তিরক্ষা কমিটির রক্তদান শিবিরে যোগ দেন মৌসুমী কয়ালও৷

সরকারি চাকরি এবং আর্থিক সাহায্য পেয়েছেন৷ ছেড়েছেন কামদুনি প্রতিবাদ মঞ্চ৷ নিহত ছাত্রীর পরিবারের এই পদক্ষেপে ইতিমধ্যেই কামদুনি আন্দোলনের ভবিষ্যত্‍ নিয়ে অনেকের মনেই প্রশ্ন তৈরি হয়েছে৷

এই প্রেক্ষাপটেই শাসক দলের উদ্যোগে তৈরি কামদুনি শান্তিরক্ষা কমিটির উদ্যোগে রক্তদান শিবিরের আয়োজন করা হল৷ আর মিনিট দশেকের জন্য জন্য হলেও তাতে যোগ দিলেন মৌসুমী কয়াল৷

অনুষ্ঠান মঞ্চ থেকেই এদিন কামদুনি প্রতিবাদ মঞ্চ ও শান্তিরক্ষা কমিটিকে এক হওয়ার আহ্বান জানান খাদ্যমন্ত্রী জ্যোতিপ্রিয় মল্লিক৷ খাদ্যমন্ত্রীর উদ্দেশে প্রতিবাদ মঞ্চের পাল্টা আহ্বান, তাহলে শান্তিরক্ষা কমিটিই প্রতিবাদ মঞ্চের সঙ্গে মিশে যাক যাক না!

ঐক্যের আহ্বান দিলেও, এদিন কামদুনির আন্দোলনকে ফের একবার খোঁচা দিতেও ছাড়েননি খাদ্যমন্ত্রী৷ কামদুনি আন্দোলনের রাজনৈতিক যোগের অভিযোগ তুলেও ফের একবার কটাক্ষ করতে ছাড়লেন না তিনি৷

সরকারের এই কার্যকলাপের সমালোচনা করেছে বিরোধীরা ৷

এদিকে, শান্তিরক্ষা কমিটির রক্তদান শিবির থেকে ফেরার পথে এদিন কয়েকজন তৃণমূল কর্মী মৌসুমী কয়ালকে বলেন, জ্যোতিপ্রিয় মল্লিক তাঁর সঙ্গে দেখা করতে চান৷ এই কথা শুনে মিনিট দশেক রাস্তায় দাঁড়িয়ে থাকেন মৌসুমী৷ কিন্তু এর কিছুক্ষণের মধ্যেই আবার কয়েকজন তৃণমূল কর্মী এসে বলেন, রক্তদান শিবিরের কাজে ব্যস্ত থাকায় তাঁর সঙ্গে দেখা করতে পারছেন না খাদ্যমন্ত্রী৷ এরপর বাড়ি ফিরে যান মৌসুমী কয়াল৷

http://www.abpananda.newsbullet.in/state/34-more/42090-2013-10-06-13-41-35

Rise in credit & debit cards spending signals India's transformation into a cashless economy

By Malini Goyal, ET Bureau | 6 Oct, 2013, 06.30AM IST


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http://economictimes.indiatimes.com/news/economy/indicators/rise-in-credit-debit-cards-spending-signals-indias-transformation-into-a-cashless-economy/articleshow/23596180.cms


The economy is sluggish. Credit offtake has slumped. And consumer sentiment is low. Yet, electronic cards — debit, credit and pre-paid cards — are posting robust growth.

For Vijendra Rawat, 42, it has been a long journey from cash to card. When he started working in the early 1990s, almost all his expenses were in cash. Debit cards were not that popular then and the credit card was still a very niche product. It did not help that very few outlets - from grocery to milk to utilities - willingly accepted card payments. It is different today.


In close to two decades, Rawat - now a Delhi-based businessman - barely deals with cash and cannot do without his cards. He owns two credit and two debit cards and with time has figured out the best way to use them. He uses his debit card mostly as an ATM card to withdraw cash.


For almost all his expenses - from buying milk, petrol to even consumer electronics and durables - he uses his credit cards. He rarely shops for any big-ticket items between the 1st and 11th of the month. "I want to enjoy the full month's credit period," he says. And he never revolves his credit, settling his credit card bill at the end of every cycle. "If I cannot pay I do not buy. Simple," he says.


Yes the economy is sluggish. Credit offtake has slumped. And consumer sentiment is low. Yet, electronic cards — debit, credit and pre-paid cards — are posting robust growth. Between 2007-08 and 2012-13, the number of cards issued (except credit cards) has risen. From a small base of around 150 million in March 2008, electronic cards are nudging the 400-million mark today.


More impressive is the secular growth in volume and value of transactions. Credit card spends (in value terms) have more than doubled to Rs 1.23 lakh crore despite a dip in the number of credit cards between 2007-08 and 2012-13. And debit card spends (in value) have risen six times to Rs 74,400 crore during the period. The number of processing terminals too has doubled to 9.5 lakh in these five years. "Where is the slowdown? Our business is doing well. We are upbeat," says Uttam Naik, head ( South Asia), Visa Group.


*

India Warms up to Cards


What Naik doesn't tell you is that this robust growth in electronic cards isn't a reflection of perked up consumption. Rather, it is more a reflection of a bigger shift - of India slowly moving from cash to a cashless economy. Today there are close to 350 million debit cards and 19 million credit cards in India. Almost all Indians with a savings account have a debit card.


But they mostly use it as an ATM card. According to Ari Sarker, India country head,MasterCard, Indians withdrew $330 billion of cash from ATMs in 2012. But the ratio of annual transactions to the number of debit cards is just 1.2. Credit cards have had a rollercoaster of a journey - both for consumers and banks.


Till 2008, there were 27.55 million credit cards in India. With the economic boom, aggressive banks including ICICIBSE -0.79 % chased customers and issued credit cards indiscriminately.


But after the 2008 economic crisis, it began to hurt. About 70% of the credit card outstandings were being revolved by customers. At its peak, one in four customers turned NPA then. Banks like ICICI restructured their credit card business and some like Deutsche Bank, Barclays exited the business altogether. Naik of Visa estimates that over Rs 5,000 crore of bad credit card loans were written off by banks in 2009.


Some 10 million credit cards in circulation then were cancelled by the banks. Both the banks and customers have since turned wiser. Most banks, led by ICICI, have restructured their credit card strategy. And, like Rawat, more and more customers have become smart users. Just about 30% of the credit card spend is being revolved today and a large chunk of it is in the EMI schemes that banks have launched with companies. NPAs too have fallen from a peak of 25% to under 5%.


Usage & Consumption Trends


So what do we know about electronic card users and usage in India? According toMasterCard, 75% of all card payments are concentrated in the top 20 cities with Delhi, Mumbai and their sub urbs alone accounting for 43%.


Credit cards have a higher share in the discretionary category whereas debit cards dominate in routine expenses like utility payments. About 30% of credit card spends are being done online. At least 10-15% of customers use their cards only online, many from smaller cities. A Visa study reveals that people in the monthly income band of Rs 75,000-100,000 are the most prolific users of electronic cards.


Electronic payments dominate their expenses: rail/airfare (71%), durable goods (61%), rent (49%), tele/mobile (47%), medical institutions (46%), clothing/footwear (44%), beverage and refreshments (35%).


The top five items in household expenditure that have the highest noncash component are clothing and footwear (12%), rent (11%), electricity (4%) and beverages (3%). Bangalore leads other metros in higher usage of cards. While petrol, telecom, consumer durables, jewellery remain one of the fastestgrowing categories for debit and credit cards, new categories like insurance premium too are gaining steam.


*

Rethinking Credit Cards


While debit cards have had a staid and steady growth in India, credit cards have undergone a structural evolution. The journey of ICICI Bank mirrors these changes well. In 2008, the bank had a 28% spend share in credit cards. Post-2008, it has deliberately trimmed its business and in 2012 had just an 11% spend share.


ICICI Bank has become selective about its new credit card users with 80% of them being existing banking customers. The bank uses the credit scores of Cibil, a credit rating body for consumers, to vet new customers. ICICI Bank has also substantially rationalised co-branded offerings and trimmed the range of products.


For example, from a high of 15 co-branded cards, the bank now has just two major co-branded cards, with HPCL and Jet Airways. "We realised that the largest spends for our customers were on fuel and travel," says Rajiv Sabharwal, executive director, ICICI Bank.


As part of the new strategy, lifetime free credit cards, so popular in the pre-2008 days, have largely been phased out. Most of their new credit cards come with an annual fee that could vary from Rs 500 to Rs 1.25 lakh. The thrust for banks has shifted from chasing quantity to quality customers. Their new launches, rewards programmes and incentives are structured accordingly. ICICI claims that its diamond credit card has best-in-class offerings unmatched by any.


IndusInd Bank, which bought Deutsche Bank's credit card business, has 2.5 lakh credit card customers and "focuses on the upper end of the credit card business", says Anil Ramachandran, head of IndusInd's credit card business. Its Indulge credit card has a 22-carat gold inlay to give the card a distinctive look and appeal.


Strictly by invitation and with an annual fee of Rs 1 lakh, its customers can hire a yacht, super car or a chartered flight at a discount. The card also has a panel of chefs who can serve up a fancy private meal for 5-10 people for its customers. "There is a premiumisation in the credit card business," says Visa's Naik. According to Visa data, spends on Visa Classic, an entry-level credit card, have gone down from 47% in 2010 to 20% in 2013. Visa Premium has gone up from 52% to 74% and Visa Super Premium has risen from 0.6% to 5.7% today.


The India Journey


Debit cards far outnumber credit cards in India, a global trend. But the sharply skewed ratio — 350 million debit cards to 19 million credit cards — may be unique to India, says Naik. With a vast majority of the population at the bottom of the pyramid, credit cards will remain beyond the reach for a majority for a long time. The internet is proving a timely catalyst for an increase in card usage. Growing popularity of online shopping is automatically pushing lot of spends online. In fact a third of all spends on Visa cards in India today come from e-commerce. This segment is expected to surge as e-tailing grows.


The rising sales of smart phones and tablets will help sustain the momentum. "In the West, e-commerce is growing due to convenience. In India, it is growing because it provides accessibility," says Jairam Sridharan, president consumer lending, Axis Bank. While still very small, mobile card payments should take off in India in a big way, thanks to a slew of innovations in low-cost hand-held mobile swipe devices. Naik of Visa says a mobile device costs almost a third of conventional swipe machines that use leased lines. Globally, mobile swipe devices are becoming popular among self-employed workers like cab drivers.


সারদা: ক্ষতিপূরণ আইন না মেনে, তোপ অসীমের

 

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বিতনু চট্টোপাধ্যায়, এবিপি আনন্দ

Sunday, 06 October 2013 18:51সরকারি কোষাগারের টাকা দিয়ে বেআইনি ভাবে লাটে ওঠা লগ্নি সংস্থা সারদার আমানতকারীদের ক্ষতিপূরণ দিচ্ছে রাজ্য সরকার৷ বার বার এই অভিযোগ করেছে সিপিএম৷ তাদের দাবি, বেআইনি লগ্নি সংস্থার সম্পত্তি বাজেয়াপ্ত করে ক্ষতিপূরণ দিক সরকার৷ এবার একধাপ এগিয়ে সরদা-সহ সমস্ত অর্থ লগ্নি সংস্থায় প্রতারিতদের ক্ষতিপূরণ দেওয়ার দাবিতে সরব হল সিপিএম৷ রবিবার প্রাক্তন অর্থমন্ত্রী অসীম দাশগুপ্ত বলেন, সব অর্থলগ্নি সংস্থারই সম্পত্তি বাজেয়াপ্ত করা উচিত সরকার৷ ক্ষতিপূরণ দেওয়া উচিত সকলকেই৷ তিনি ইঙ্গিত দিয়েছেন, পুজোর পরে সিপিএম -সহ বামেরা এই ইস্যুতে বৃহত্তর আন্দোলনের পথে যাবে৷ তিনি এদিনও সুপ্রিম কোর্টের তত্ত্বাবধানে সারদাকাণ্ডে সিবিআই তদন্তের দাবি জানিয়েছেন।

পরিকল্পনা বহির্ভূত খাতে দু'হাতে খরচ করা হচ্ছে, অথচ, রাজ্য সরকারি কর্মচারীদের বকেয়া মহার্ঘ ভাতা দেওয়া হচ্ছে না৷ এই অভিযোগেও এ দিন রাজ্য সরকারের সমালোচনায় সরব হন প্রাক্তন অর্থমন্ত্রী৷

সারদাকাণ্ডকে ঘিরে রাজ্য জুড়ে শোরগোল পড়ে গিয়েছিল৷ কিন্তু, তারপরেও, এই ইস্যুটিকে হাতিয়ার করে যথেষ্ট আন্দোলন কর্মসূচি যে তারা নিতে পারেনি তা স্বীকার করে নিয়েছে আলিমুদ্দিনই৷ এমনটাই সূত্রের খবর৷ রাজনৈতিক মহলের ব্যাখ্যা, এই প্রেক্ষাপটে, লগ্নি সংস্থাকাণ্ডকে হাতিয়ার করে পুজোর পর থেকে নয়া উদ্যমে আন্দোলনে নামতে চাইছে সিপিএম৷ জনগণের করের টাকায় কেন ক্ষতিপূরণ? এই প্রশ্ন তুলে, যাঁরা লগ্নি সংস্থায় বিনিয়োগকারী নন, সেইসব সাধারণ মানুষের আবেগকে কাজে লাগাতে চাইছে সিপিএম৷ পাশাপাশি, সারদা সহ সব লগ্নি সংস্থার প্রতারিতদেরই ক্ষতিপূরণ দেওয়ার দাবি তুলে সিপিএম এই বার্তা দিতে চাইছে, যে, শাসক দলের সঙ্গে সারদার ঘনিষ্ঠতা ছিল, তাই তারা শুধুমাত্র সারদাকাণ্ডেই ক্ষতিপূরণ দিচ্ছে৷  

http://www.abpananda.newsbullet.in/state/34-more/42089-2013-10-06-13-22-07


*

In India, mobile network swipes were allowed just five months back and today there are already around 20,000 in operation. One of the big hurdles in the growth of card payments in India is poor penetration of terminals. Today there are 9.5 lakh terminals in the country that can process electronic transactions, almost double the 2007-08 number.


That figure should double again in under three years. This will get further catalysed by mobile swipe devices. This shift from cash to cards is part of a larger trend playing out globally. It is a shift that governments and banks are actively encouraging.

Welcome to a Cashless World


In 2008, of the $27 trillion spent on global retail purchases, 9.5% was spent by cheques, 42.2% by cash and 27.4% by cards. In 2012, on a total retail purchase of $30.32 trillion, cheque and cash transactions have declined to 7.7% and 38.3% respectively while card payments have increased to 32.8%, according to Moody's Analytics.


From e-commerce to mobile payments — enabled by cheap and secure technologies like mobile swipe devices — electronic transactions are growing. India is late to this cashless world. A high 96% of all transactions (in volume terms) in India still are conducted in cash, according to a recently released Visa report.


While the share of electronic payments in non-cash payments is rising, cheques still dominate, although it is falling. Between 2009-10 and 2011-12, share of cheques came down from 65% to 52%. But there are reasons why the Indian government would want card payments - in volume and value terms - to rise. One, the cost of printing currency itself is high. In 2009-10, according to the Visa report, the RBI incurred an annual cost of Rs 2,800 crore to just print currency notes.


This does not include the cost of storage, transportation, security, detection of counterfeits, amongst others. The cost of printing and maintaining this extensive amount of cash alone costs the country about 0.2% of its GDP, says the report.


According to Moody's Analytics study based on 2008-12 data, the growth in the use of electronic cards - which moves money efficiently and smoothly in the economy - added $1.5 billion to GDP. It also says that a mere 5% annual growth of cashless transactions saves India over Rs 500 crore annually. Not to forget that all electronic transactions get captured within the banking system and hence boost transparency and generate additional government revenue through tax.


Thrust on Consumer Safety


Not surprisingly, the RBI is doing all it can to push card growth. Its recent ban on 0% EMIschemes - a popular initiative among consumer companies - in a quest for transparency may appear contradictory to this resolve. But it may well not be. Here's how the schemes worked. On purchase of a costly product with credit cards, many companies collaborated with credit card companies to offer a scheme whereby customers can pay back in 6-12 equal instalments. In 0% EMI schemes, typically there are hidden costs (like a processing fee) that banks charge and customers do not know about. Also, often gullible customers are not told of the cash discounts that they would have got had they bought the product by paying cash.


The RBI wants banks to provide full disclosure to the credit card customers and help them take an informed decision. The RBI directive - just ahead of the festival season - may have come at the wrong time. For both credit card companies and consumer durables/electronics firms, the scheme helped bring additional business.


A senior banking sector executive estimates that during peak season the credit card companies' business exposure to EMI-led schemes would be 10-15%. "Our exposure is minimal. It will be a challenge for consumer companies," the bank executive said on condition of anonymity. For the consumer durables industry, the exposure to EMI schemes could be as high as 30%, says Shantanu Das Gupta, V-P (corporate affairs), Whirpool India. "But our exposure is under 10%. The impact for us is minimal," he clarifies.


Whatever the extent of impact, there is no denying that the banks and companies will feel the heat and they will have to figure out new marketing gimmicks to push sales this Diwali. The RBI is also pushing for more secure card transactions as instances of card frauds rise in India. In 2011, it had asked banks to add another layer of security and introduce a secret PIN that card users must punch into the terminal to authenticate payment. After many deadlines and delays, this directive will finally come into force next month.


While the banks are still not fully prepared, the RBI has ordered them to compensate cardholders in seven days if any fraud occurs on non-compliant terminals. And if the bank fails to refund the disputed amount in seven days it has to compensate the card holder with a penalty of `100 per day until the date of payment. Right now, dispute resolution is a cumbersome process and can take several weeks in case of credit card frauds.


Consumers Watch Out


While the RBI is doing all it can to protect card customers, users too must be cautious, particularly credit card customers. As the economy slows down and news of layoffs hit headlines, credit card outstandings are expected to rise. "It is time to be more cautious. The pace of growth [for the industry] is likely to moderate as layoffs hit headlines," says Sridharan of Axis Bank. With credit bureaus like Cibil and Equifax around, increasingly more and more institutions and service providers - like telecom, insurance and even employers - are using credit scores as part of background checks on individuals. Arun Thukral, MD, Cibil says today it has a memberbase of 1000 companies and a customer database of 300 million.


Spotting opportunity, Arun Ramamurthy has cofounded Credit Sudhaar, a company that helps Indians improve their credit scores. Founded in 2010, it is growing rapidly and today has a presence in eight cities with over 6,000 clients. Recently, a Hyderabad-based BPO executive came to Ramamurthy desperately seeking help. He had Rs 10,000 outstanding in his old credit card bill which he had not settled and it had grown to Rs 56,000.


With a poor credit score, his new employer rejected him. "We helped him settle the debt and improve his credit score," he says. Similarly, a 31-year-old private sector bank executive came for help as he had to forego his promotion due to a background check that revealed a poor credit score. He also had as a client a father whose son's admission to a top Delhi school was rejected because of an error in his credit report that resulted in a poor score. "We had to work with the credit bureau to get the error rectified," he says. But that may well have been a lesson for the father to keep a closer tab on credit card spending and payments.





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