अमेरिकी फेड के बहाने वधस्थल में खड्ग हो रहे हैं तेज,फिर सत्तावर्ग का आर्थिक संकट आपके हमारे मत्थे कल्याण करेगा बाजार बाजार निरंकुश किये बिना मनमोहन होंगे नहीं रिटायर বাজারকে কাজ করতে দিন, দুর্নীতি কমবে জয় জয় জয় জয় হে ভারত ভাগ্যবিধাতা সর্বশক্তিমান নিরীশ্বর মুক্ত বাজার |
पलाश विश्वास
बाजार आज लगातार दूसरे दिन गिरावट के शिकार हुए हैं। आखिरी घंटे में बिकवाली का दबाव बढ़ने से सेंसेक्स 400 अंक तक टूट गया, जबकि निफ्टी भी 6000 के नीचे आया। निफ्टी 13 नवंबर 2013 के बाद 6000 के नीचे बंद हुआ है।
आज के कारोबार में निफ्टी के सभी 50 शेयर लाल निशान में बंद हुए, वहीं सेंसेक्स 30 में से 29 शेयर गिरावट पर बंद हुए। साथ ही बीएसई के सभी प्रमुख इंडेक्स 1-2.4 फीसदी की कमजोरी के साथ बंद हुए।
आज बाजार पर अमेरिका में क्यूई3 में जल्द कटौती होने के संकेतों ने दबाव बनाने का काम किया है। साथ ही रुपये की कमजोरी भी घरेलू बाजारों के लिए संकट बनकर सामने आई है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 0.5 फीसदी की गिरावट के साथ 63 के करीब आ गया है। वहीं वैश्विक शेयर बाजारों में भी चौतरफा बिकवाली हावी है।
आज बीएसई का 30 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स सेंसेक्स 406 अंक यानि 2 फीसदी टूटकर 20,229 पर बंद हुआ। वहीं एनएसई का 50 शेयरों वाला प्रमुख इंडेक्स निफ्टी 124 अंक यानि 2 फीसदी गिरकर 5999 पर बंद हुआ।
বাজারকে কাজ করতে দিন, দুর্নীতি কমবে! अमेरिकी फेड के बहाने वधस्थल में खड्ग हो रहे हैं तेज,फिर सत्तावर्ग का आर्थिक संकट आपके हामारे मत्थे कल्याण करेगा बाजार बाजार निरंकुश किये बिना मनमोहन होंगे नहीं रिटायर शंखनाद करें या करें हुंकार रैली अमेरिका करें समर्थन या बाजार साथ हो इंडिया इंक का फतवा हो या धर्मोन्मादी ध्रुवीकरण सुधार का एजंडा पूरा हुए बिना सुधारों के ईश्वर होंगे नहीं रिटायर इसपर लेकिन सर्वदलीय सहमति है कि बाकी कानून भी बदले जाये तुरंत अश्वमेध के लिए फौरन फेड ने किये संकेत कि अमेरिका में स्टिमुलस खत्म होंगे कभी भी आंध्र तट पर पेलिन के बाद नाच रही हेलेन न मीडिया को फिक्र और न सत्ता को परवाह अमेरिकी फेड नीतियों की आड़ में वधस्थल पर भारी हलचल खड्ग किये जा रहे तेज धार कि झटके से हो या जबाई करके उतारी जा सकें आम गरदनें तमाम वित्तीय घाटा रेटिंग चेतवनी भुगतान संतुलन और बेलगाम मुद्रस्फीति का समग्र बोझ समाबेशी इंफ्रा विकास बनकर करेगा आपका हमारा सत्यानाश और हम चूं भी करने के काबिल नहीं देश के शेयर बाजारों में गुरुवार को गिरावट दर्ज की गई. प्रमुख सूचकांक सेंसेक्स 406.08 अंकों की गिरावट के साथ 20,229.05 पर और निफ्टी 123.85 अंकों की गिरावट के साथ 5,999.05 पर बंद हुआ. बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) का 30 शेयरों पर आधारित संवेदी सूचकांक सेंसेक्स 55.87 अंकों की गिरावट के साथ 20,579.26 पर खुला और 406.08 अंकों या 1.97 फीसदी की गिरावट के साथ 20,229.05 पर बंद हुआ. दिनभर के कारोबार में सेंसेक्स ने 20,579.26 के ऊपरी और 20,189.23 के निचले स्तर को छुआ. सेंसेक्स के सभी 30 शेयरों में गिरावट दर्ज की गई. राजनीति दगाबाज दगाबाज मेधा दगाबाज उपभोक्ता समाज का हर कोना दगाबाज बाजार दगाबाज शिक्षा दगाबाज मीडिया दगाबाज सूचनाएं दगाबाज विचार दगाबाज संगठन दगाबाज यूनियन दगाबाज परिवर्तन दगाबाज आंदोलन दगाबाज दांपत्य दगाबाज संबंध दगाबाज सरकारें दगाबाज समय हम निःशस्त्र निपट अकेले अनंत चक्रव्यूह में रथियों महारथियों के वार सहने के लिए हम जख्मी अश्वत्थामा जीते हैं अपने रिसते घाव चाटने के लिए आधार निराधार नत्थी है हर नागरिक सेवा के लिए और सेवाएं सारी बाजार में हुईं तब्दील अर्थसंकट है भारी ,समावेशी विकास के तमाम प्रवक्ता सत्ता के हर वक्ता चिंतित हैं सरकारी खर्च को लेकर सब्सिडी हर हाल में खत्म हो तुरंत होगा इंतजाम एफडीआई असीमित हो पेंशन,बीमा,भविष्यनिधि के साथ वेतन भी चले बाजार,यह इंतजाम भी होगा डायरेक्ट टैक्स कोड भी होना है लागू सारी सरकारी कंपनियों का होना बाकी है विनिवेश अल्पमत सरकार असंवैधानिक नीति निर्धारक कारपोरेट असंवैधानिक सुप्रीम कोर्ट की अवमानना रोज संविधान की हत्या रोज फिर भी मौन हैं जन प्रतिनिधि सारे के सारे चुनाव मैदान में धुआंधार प्रतिपक्ष लेकिन पक्ष प्रतिपक्ष दोनों कारपोरेट दोनों मुक्त बाजार के हितों के मुताबिक करते कदमताल और हम हर भंडाफोड़ पर तमाम गर्मागर्म सुर्खियों पर स्खलित सारे बाजार के माडल सारे बाजार के ही खिलाड़ी तमाम सारे दांव बाजार के ही सारे विकल्प भी बाजार के ही सारे देवमंडल बाजार के गुलाम बाजार के भाड़े पर पेशावर हत्यारे सारे पेट्रोल विनियंत्रित अब सिर्फ इंतजार डीजल भी हो विनियंत्रित फिर हर हफ्ते वृद्धि, वृद्धि हर महीने विकास दर करवटें बदलती हैं श्मशान बने देहात के सीने में इसीतरह पेट्रोल डीजल विनियंत्रित तो फिर बाजार को आग लगाने का ईंधन क्या और चाहिए उत्पादन खत्म तो किल्लत से कैसे जूझें इंफ्रा से जाहिर है इसीलिए इंफ्रा पर सबसे ज्यादा निवेश अंधाधुंध सारी इंफ्रा परियोजनाओं को हरी झंडी कायदे कानून ताक पर रिलायंस पर लगा रही है जुर्माना रिलायंस की सरकार सबसे बड़ा जोक है रिलायंस हित में तय हो रही कीमत गैस की गोदावरी बेसिन की समूची गैस उसी के हवाले सारी मलाई उसीके हवाले नुकसान जहां से हो रहा है सिर्फ वहीं ब्लाक छीनकर देश को भ्रष्टाचार मुक्त बना रही कोयलाचोरों की जमात लालू गये जेल भ्रष्टाचार पर लग गया अंकुश बाकी दागी तमाम देश बेचो विशेषज्ञ तमाम और मानवता के खिलाफ जो युद्ध अपराधी सारे छुट्टा घूम रहे न्याय प्रणाली पर खूब इतराते रहे विद्वतजन मीडिया विशेषज्ञ कि दागी अब नहीं लड़ेंगे चुनाव, जबकि अब सारे के सारे जेल के पंछी होंगे चुनाव मैदान में सार्वजनिक उपक्रमों को नौकरशाही के नियंत्रण से छूट की जरुरत:मनमोहन
नयी दिल्ली : सरकारी उपक्रमों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाने का पक्ष लेते हुए समर्थन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को काम की अधिक स्वायत्तता मिले और ये लीलफीताशाही के नियंत्रण से मुक्त हों. उन्होंने कहा, ''आने वाले समय में हमारी सरकारों को प्रतिस्पर्धा-निष्पक्ष नीतियां अपनानी होंगी. प्रतिस्पर्धा निष्पक्ष नीति के लिए आवश्यक है कि सरकार अपनी विधायी और राजकोषीय शक्तियों का इस्तेमाल निजी क्षेत्र के मुकाबले अपने कारोबार को बेजा फायदा पहुंचाने के लिए न करे.'' सिंह ने आज यहां दो दिसवीय ब्रिक्स प्रतिस्पर्धा सम्मेलन का ...
सिंगापुर : प्रवासी भारतीय समुदाय से बुनियादी ढांचा क्षेत्र व पूंजी बाजार में निवेश का आग्रह करते हुए वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आज भरोसा दिलाया कि भारत निवेश के लिए एक सुरक्षित गंतव्य है जिसमें 8 फीसदी की वृद्धि दर हासिल करने की क्षमता है. दूसरे दक्षिण एशिया प्रवासी सम्मेलन 2013 को संबोधित करते हुए चिदंबरम ने कहा, वृहद और सूक्ष्म आर्थिक बुनियाद से भारत निवेश के लिए एक आकर्षक व सुरक्षित गंतव्य है. चिदंबरम ने कहा कि सरकार ने अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाने और निवेशकों का भरोसा बढ़ाने के लिए कई कदम उठाये हैं. उन्होंने कहा, भारत निवेशकों को कई तरह के निवेश के अवसर ... सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया कि बिना जनसुनवाई होगा नहीं खनन नियमागिरि पर हुआ फैसला यह वेदांत पर अंकुश वाह वाह सुप्रीम कोर्ट ने फिर कहा जमीन जिसकी खनिज उसीका कोई माई का लाल लेकिन बोल ही नहीं रहा कि कहीं आदिवासी इलाकों मे कहीं क्यों नहीं लागू भारतीय संविधान क्यों नहीं लागू पांचवी और छठीं अनुसूचियां क्यों नहीं लागू पेसा अबतक कहीं क्यों नहीं लागू संवैधानिक रक्षा कवच 1950 के आदेश के मुताबिक हालांकि मणिपुर और कश्मीर में 1958 से निरंतर जारी आफसा इरोम शर्मिला के चौदह साल के अनशन के बावजूद आपदाओं पर आंसुयों की नदियां बहतीं देश भर में कोई नहीं पूछता रासायनिक प्रयोगशाला कौन बना रहा यह देश कोई नहीं पूछ रहा कि पारमाणविक भट्टी क्यों हैं देश और हिमालय क्यों हैं ऊर्जा प्रदेश इंफ्रा परियोजनाएं सारी पास खनन अबाध उसके लिए भूमि अधिग्रहण खनन अधिनियम और वनाधिकार कानून पास लेकिन अजब संयोग हैं कि सारे के सारे प्रावधान लागू होते कारपोरेट विदेशी पूंजी के हित में महंगाई बढ़ने की एक नई थ्योरी सामने आई है। थ्योरी कपिल सिब्बल की है जिनकी नजर में महंगाई के लिए गरीब ही जिम्मेदार है जो पहले सूखी रोटी खाता था लेकिन अब रोटी के साथ दो सब्जियां खाने लगा है। आम जनता महंगाई से कराह रही है, लेकिन हमारे नेता कहीं से भी कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं। जनता के जख्मों पर इस बार बयानों से नमक रगड़ा है वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने। सिब्बल को कहना है कि महंगाई के लिए गरीब खुद ही जिम्मेदार है, क्योंकि वह पहले सूखी रोटी खाता था लेकिन अब रोटी के साथ दो सब्जियां खाने लगा है। धर्मोन्माद पर तय होता जनादेश धर्मोन्मादी राष्ट्रीयता कारपोरेट राजनीति अब धर्म कर्म राजनय धर्म कर्म राजकीय धर्मनिरपेक्षता से सारे ईश्वर सारे देव और देवियां भी बल्ले बल्ले आस्था सार्वजनीन असुर वध आस्था सार्वजनीन रावण वध आस्था वैदिकी हिंसा आस्था अखंड नस्ली रंगभेद आस्था अखंड जाति व्यवस्था आस्था अप्रतिद्वंद्वी वर्ण वर्चस्व पीड़ित सारी जातियां शिकार भारतीय कृषि शिकार भारतीय उत्पादन प्रणाली शिकार भारत की तमाम स्त्रियां देवियां भी दासियां भी शिकार सारे नौकरीपेशा संगठित और असंगठित शिकार सारे के सारे बच्चे और वे भी जो अबतक है अजनमे इस वधस्थल में सर्वोच्च आस्था अब अबाध विदेशी पूंजी और कालाधन बाकी सारा तंत्र यंत्र मंत्र ग्रह नक्षत्र सत्ता और प्रधानमंत्रित्व के दावेदार निमित्त मात्र हैं छन छन कर हो रहा समावेशी विकास हाथ जलता है तो मलहम है संड़ांध हैं तो खुशबू हैं दिल जलता है तो रियेलिटी शो हैं वातानुकूलित आखेट हैं निरंकुश पेट जलता है तो खुदकशी के तमाम तरीके हैं देश जलता है तो अमेरिका है विश्वबैंक है मुद्राकोष है संस्थागत निवेशक हैं खून की नदियां हैं तो पार्टियां हैं रफा दफा करने के लिए सिर्फ लोकतंत्र बचा नहीं है नहीं बचे हैं माध्यम नहीं बची हैं भाषाएं नहीं बची है संस्कृतियां नहीं बची है पहचान आधार नंबर समेत तमाम रंग बिरंगे कार्डोंकी माला पहने कब हम निनानब्वे फीसद सारे भाकरतीय हो गये भिखारी इंतजार में छन छन कर होते विकास के और बाजार हो गया असली ईश्वर सर्वव्यापी सर्वशक्तिशाली सर्वज्ञ किसी को खबर ही नहीं फिर भी विवेक देवराय फरमा रहे हैं कि বাজারকে কাজ করতে দিন, দুর্নীতি কমবে! बाजार को करने दीजिये काम तमाम घटेगा भ्रष्टाचार जय जय जय जय हे भारत भाग्य विधाता सर्वशक्तिमान निरीश्वर ईशवर জয় জয় জয় জয় হে ভারত ভাগ্যবিধাতা সর্বশক্তিমান নিরীশ্বর মুক্ত বাজার आंध्र पर मंडरा रहा है तूफान 'हेलेन' का खतरा आंध्र प्रदेश अभी पिछले महीने आए तूफान फेलिन से आई तबाही से उबर ही रहा था कि फिर तूफान 'हेलेन' का खतरा राज्य पर मंडराने लगा है। পাইলিনের পর এবার হেলেন। বৃহস্পতিবার রাত থেকে শুক্রবার সকালের মধ্যে অন্ধ্রপ্রদেশের দক্ষিণে আছড়ে পড়তে চলেছে ঘূর্ণিঝড় হেলেন। বঙ্গোপসাগরে তৈরি হওয়া নিম্নচাপ শক্তি বাড়িয়ে ঘূর্ণিঝড়ে পরিণত হয়েছে। অন্ধ্রের মছলিপত্তনম ও নেল্লোরের মাঝামাঝি কোনও জায়গায় আছড়ে পড়তে পারে এই ঘূর্ণিঝড়। এই সময় ঝড়ের বেগ থাকবে ঘণ্টায় একশো থেকে একশো কুড়ি কিলোমিটার। বিপদের আশঙ্কায় অন্ধ্রপ্রদেশ ও তামিলনাড়ুতে জারি করা হয়েছে সতর্কতা। এই ঘূর্ণিঝড়ের জেরে বাংলায় শীত আসার পথে সাময়িক বাধা আসতে পারে। এমনই মনে করছেন আবহাওয়াবিদরা। গত অক্টোবর মাসে ওড়িশার গোপালপুরের উপকূলে আছড়ে পড়ে ঘূর্ণিঝড় পাইলিন। আছড়ে পড়ার সময় ঝড়ের গতিবেগ ছিল ঘণ্টায় ২০০ কিলোমিটার। मशहूर पत्रकार और तहलका के एडिटर इन चीफ तरुण तेजपाल पर साथी पत्रकार के यौन उत्पीड़न का सनसनीखेज आरोप लगा है। तेजपाल ने ये आरोप कबूल भी कर लिया है। उन्होंने बिना शर्त माफी मांगी है और प्रायश्चित के रूप में छह महीने तक तहलका से अलग होने का एलान कर दिया है। लेकिन सवाल ये है कि क्या माफी मांग लेने से अपराध की गंभीरता कम हो जाती है। आखिर, तेजपाल के खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए। फिलहाल गोवा पुलिस ने मामले की प्रारंभिक जांच शुरू कर दी है। दरअसल तहलका में काम करने वाली एक युवा पत्रकार ने तरुण तेजपाल पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है। कलर टीवी पर प्रसारित होने वाले रियलिटी शो बिग बॉस सीजन-7 में वो सब कुछ हो रहा है जो शायद इससे ना तो किसी टीवी शो में हुआ और ना ही बिग बॉस के पहले किसी सीजन में। शो के प्रतियोगी तनीषा मुखर्जी और अरमान कोहली के बीच बढ़ती नजदीकियों की खबरें पहले से ही चर्चाओं में है। शो के होस्ट सलमान खान भी दोनों को हिदायत दे चुके है, बावजूद इस के दोनों अप नी हरकतों से बाज नहीं आ रहे है। इस बार दोनों ने हद पार कर दी है। बिग बॉस के घर में लगे 84 कैमरों से एक कैमरे ने दोनों को आपत्तिजनक हालत में कैद कर लिया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जब दोनों को इतने करीब देखा गया है। कैश' स्टिंग में फंसे AAP नेताओं के खिलाफ 24 घंटे में फैसला
नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (AAP) के नौ बड़े नेताओं पर एक टीवी चैनल के स्टिंग में कथित तौर पर अवैध चंदे की उगाही के आरोप लगे हैं. आर.के. पुरम से AAP की प्रत्याशी शाजिया इल्मी और कुमार विश्वास पर किए गए स्टिंग ऑपरेशन में दोनों पर कैश लेने का आरोप है. इस मामले को बेहद गाभीरता से लेते हुए AAP ने इस मामले में 24 घंटे के भीतर फैसला सुनाने की बात कही है. पार्टी ने कहा है कि जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. पैसे लेकर धरना-प्रदर्शन करने के आरोपों की जांच कर रहे AAP नेता संजय सिंह और योगेंद्र यादव ने कहा है कि उन्होंने स्टिंग के वीडियो देखे हैं और इस … बाजार आज लगातार दूसरे दिन गिरावट के शिकार हुए हैं। आखिरी घंटे में बिकवाली का दबाव बढ़ने से सेंसेक्स 400 अंक तक टूट गया, और 20,229 पर बंद हुआ। जबकि निफ्टी भी 6000 के नीचे आया। निफ्टी 13 नवंबर 2013 के बाद 6000 के नीचे बंद हुआ है। आज के कारोबार में निफ्टी के सभी 50 शेयर लाल निशान में बंद हुए, वहीं सेंसेक्स 30 में से 29 शेयर गिरावट पर बंद हुए। साथ ही बीएसई के सभी प्रमुख इंडेक्स 1-2.4 फीसदी की कमजोरी के साथ बंद हुए। आज बाजार पर अमेरिका में क्यूई3 में जल्द कटौती होने के संकेतों ने दबाव बनाने का काम किया है। साथ ही रुपये की कमजोरी भी घरेलू बाजारों के लिए संकट बनकर सामने आई है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 0.5 फीसदी की गिरावट के साथ 63 के करीब आ गया है। वहीं वैश्विक शेयर बाजारों में भी चौतरफा बिकवाली हावी है। देश में जल्द खुलेगा एक और स्टॉक एक्सचेंजः सूत्रप्रकाशित Thu, नवम्बर 21, 2013 पर 13:23 | स्रोत : CNBC-Awaaz प्रिंट देश को जल्द ही एक और स्टॉक एक्सचेंज मिल सकता है। सीएनबीसी आवाज़ को एक्सक्लूसिव जानकारी मिली है कि इंटर-कनेक्टेड स्टॉक एक्सचेंज (आईएसई) ने सेबी के पास नेशनल लेवल इक्विटी ट्रेडिंग लाइसेंस के लिए अर्जी दी है। और माना जा रहा है कि सेबी की तरफ से आईएसई को जल्द ही सैद्धांतिक मंजूरी मिल जाएगी। सूत्रों का कनहा है कि सेबी ने जून-जुलाई 2013 में आईएसई का ड्यू डिलिजेंस किया था। आईएसई में रीजनल स्टॉक एक्सचेंजों की 51 फीसदी हिस्सेदारी है। आईएसई की फरवरी तक नेशनल लेवल इक्विटी प्लेटफॉर्म लॉन्च करने की योजना है। एनएसई, बीएसई और एमसीएक्स-एसएक्स के साथ आईएसई का कंपिटीशन होगा। सूत्रों के मुताबिक आईएसई का फोकस छोटे ब्रोकरों और रीजनल एक्सचेंजों पर लिस्टेड कंपनियों पर होगा। आईएसई को एमसीएक्स-एसएक्स की तरह बड़ी कंपनियों में ट्रेडिंग की भी मंजूरी मिल सकती है। लेकिन आईएसई को सेबी की शर्तें पूरी करनी होगी। सेबी की सारी शर्तें पूरी होने के बाद ही आईएसई को अंतिम मंजूरी मिलेगी। सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय के विदेश जाने पर रोक
सुप्रीम कोर्ट ने निवेशकों के 20 हजार करोड़ रुपये वापस करने के मामले में सहारा समूह की ना-नुकुर के मामले में सख्ती करते हुये इसके मुखिया सुब्रत राय के देश से बाहर जाने पर रोक लगाने के साथ ही इसकी संपत्ति बेचने पर भी प्रतिबंध लगा दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि हर प्रकार के विवादों से मुक्त 20 हजार करोड़ रुपये की संपत्ति के मालिकाना हक के दस्तावेज सेबी को सौंपने के उसके आदेश का सहारा समूह ने 'अक्षरश:' पालन नहीं किया है. कोर्ट ने इसके साथ ही सुब्रत राय और समूह के अन्य निदेशकों वंदना भार्गव, रवि शंकर दुबे तथा अशोक राय चौधरी के देश से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया. न्यायमूर्ति ... Finance Minister P Chidambaram today appealed to foreign investors to invest in India, assuring lower fiscal deficit and the current account deficit (CAD), stable currency, high growth and moderate inflation. |
বাজারকে কাজ করতে দিন, দুর্নীতি কমবে |
বিবেক দেবরায় |
আগের লেখাটিতে ('অপরাধী, আমলা, রাজনীতিকের দুষ্টচক্র', ৬-১১) আমি খুচরো দুর্নীতি এবং বড় দুর্নীতির মধ্যে তফাত করেছিলাম। খুচরো দুর্নীতি সাধারণত বেশি হয় নানা ধরনের পণ্য ও পরিষেবার সরকারি সরবরাহের ক্ষেত্রে। ১৯৯৭ সালে বিভিন্ন রাজ্যের মুখ্যমন্ত্রীদের এক সম্মেলনে তিনটি বিষয়ে প্রশাসনিক সংস্কারের উপরে জোর দেওয়া হয়েছিল: (১) প্রশাসনকে দায়বদ্ধ ও নাগরিকের প্রতি বন্ধুভাবাপন্ন করে তোলা, (২) স্বচ্ছতা এবং তথ্যের অধিকার নিশ্চিত করা এবং (৩) দুর্নীতির মোকাবিলায় প্রশাসনের বিভিন্ন স্তরের কর্তা ও কর্মীদের তৎপর করা। কেন্দ্রীয় সরকারও এ বিষয়ে বিভিন্ন সময়ে উদ্যোগী হয়েছে। পরিবহণ, পুলিশ, জল সরবরাহ, জমির বেচাকেনা ইত্যাদি যে সব ক্ষেত্রে নাগরিকদের বিশেষ ভাবে সরকারি ব্যবস্থার উপর নির্ভর করতে হয়, সেগুলিকে প্রশাসনিক সংস্কারের জন্য বিশেষ ভাবে চিহ্নিত করা হয়েছে। সরকারি প্রশাসন ও পরিষেবার দুর্নীতির ফল সকলের পক্ষে সমান নয়। আর্থিক সংগতি যাঁদের কম, এই দুর্নীতি তাঁদের পক্ষে বেশি ক্ষতিকর। রিকশা চালক, হকার, দোকানদার ইত্যাদি বর্গের মানুষকে কত ঘুষ দিতে হয়, তার নানা হিসেব কষা হয়েছে। সংখ্যাগুলো ভয়ানক। বিশ্বব্যাঙ্ক একটা সূচক তৈরি করেছে: ডুয়িং বিজনেস ইন্ডিকেটরস, অর্থাৎ ব্যবসা চালানোর পরিবেশ সংক্রান্ত সূচক। বিভিন্ন দেশে নিয়মিত সমীক্ষা করে এই সূচক হিসেব করা হয়। নিয়মকানুন মেনে ছোট বা মাঝারি মাপের কারখানা বা ব্যবসা গড়তে এবং চালাতে এক জন উদ্যোগীকে কতটা কাঠখড় পোড়াতে হয়, এই সূচক তৈরি হয় তার ভিত্তিতে। একটা উদ্যোগের জন্য বিভিন্ন পর্বে দশটি জরুরি কাজ থাকে: উদ্যোগ শুরু করা, কারখানা বা ব্যবসাকেন্দ্র নির্মাণের জন্য সরকারি বা পুর অনুমোদন জোগাড় করা, বিদ্যুৎ সংযোগের বন্দোবস্ত, সম্পত্তি রেজিস্ট্রেশন, ঋণের ব্যবস্থা, বিনিয়োগকারীদের সুরক্ষার আয়োজন, কর মেটানো, আমদানি ও রফতানি, চুক্তি বলবৎ করা এবং আর্থিক সংকটের মোকাবিলা। এ দেশে এর প্রত্যেকটি পর্যায়ে প্রায়শই বাড়তি টাকা দিতে হয়, অনেক সময়েই ঘুষ ছাড়া কাজ এগোয় না। |
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প্রতিযোগিতা। এই বাজার যদি নিয়ন্ত্রিত হত? ছবি: এ এফ পি। |
অর্থনীতিবিদ এবং কেন্দ্রীয় সরকারের ভূতপূর্ব অর্থনৈতিক উপদেষ্টা কৌশিক বসু এক বার একটা কথা বলে খুব শোরগোল তুলেছিলেন। তাঁর প্রস্তাব ছিল, কিছু কিছু ক্ষেত্রে ঘুষ 'দেওয়া'কে বেআইনি কাজ বলে গণ্য করা ঠিক নয়। যেখানে ন্যায্য প্রাপ্য পাওয়ার জন্য ঘুষ দিতে হয়, না দিলে তা পাওয়া যায় না, সেখানে অসহায় উপভোক্তাকে ঘুষ দেওয়ার জন্য দোষী সাব্যস্ত করা উচিত নয়, এটাই ছিল তাঁর বক্তব্য। অনেকেই তাঁর খুব নিন্দা করেছিলেন যে, তিনি দুর্নীতিকে প্রশ্রয় দিতে বলছেন। কিন্তু কথাটা যথেষ্ট যুক্তিযুক্ত। এই ধরনের ক্ষেত্রে দুর্নীতির কতকগুলো বড় কারণ থাকে। যেমন, স্পষ্ট ও যথাযথ নিয়মকানুনের অভাব, নিয়ম বলবৎ করার জন্য প্রয়োজনীয় আইনি, প্রশাসনিক এবং বিচারবিভাগীয় পরিকাঠামোর অভাব, যথাযথ তদারকির অভাব, যাঁরা প্রশাসন চালান এবং যাঁরা তদারকি করেন তাঁদের যথেষ্ট বেতন ও অন্যান্য সুযোগসুবিধার অভাব ইত্যাদি। তবে একটা মৌলিক কারণ হল অতিরিক্ত নিয়ন্ত্রণ এবং তার ফলে সরকারি আধিকারিকদের হাতে অতিরিক্ত ক্ষমতা। এটা থাকলেই ক্ষমতার অপব্যবহারের সম্ভাবনা অনেক বেড়ে যায়। এ থেকেই বোঝা যায়, দুর্নীতি কমানোর জন্য কী করা উচিত। কয়েকটি প্রধান পদক্ষেপের কথা বলা যাক। এক, সরকারি প্রশাসনের কাঠামো সংস্কার করা দরকার। আধিকারিকদের আচরণবিধি, বেতন কাঠামো, নিয়োগ এবং পদোন্নতির নিয়ম, দুর্নীতি রোধের বন্দোবস্ত, সবই এর মধ্যে পড়বে। দুই, দুর্নীতি নিবারণের স্বতন্ত্র এবং স্বাধীন আয়োজন থাকা দরকার। তিন, যে সব পরিষেবা সরবরাহের অধিকার সরকার পুরোপুরি নিজের হাতে রেখেছে, যথাসম্ভব সেগুলি বেসরকারি হাতে তুলে দেওয়া। চার, খাদ্য বা অন্যান্য পণ্য সংগ্রহের সরকারি ব্যবস্থাকে আরও স্বচ্ছ করে তোলা। পাঁচ, সরকারি ব্যবস্থার দুর্নীতি রোধে নাগরিক সমাজকে ওয়াকিবহাল ও তৎপর করা। কোনও নাগরিক বা সংস্থা দৈনন্দিন নানা কাজে নানা সরকারি প্রতিষ্ঠানের মুখোমুখি হয় এবং সেখানেই খুচরো দুর্নীতির শিকার হয়। এক দিকে সরবরাহের ঘাটতি, অন্য দিকে অফিসার বা কর্মীদের বিশেষ ক্ষমতা এই দুইয়ের ফলে দুর্নীতির প্রসার ঘটে। ভারতের শহরগুলিতে অনেক ঘাটতি এখন বহুলাংশে মিটে গেছে, কিন্তু গ্রামের দিকে এখনও ঘাটতি প্রবল। যেমন জল, বিদ্যুৎ, রান্নার গ্যাস ইত্যাদির জোগান এখনও বহু জায়গাতেই প্রয়োজনের তুলনায় কম, বিশেষত দরিদ্রদের ক্ষেত্রে। বাজারের নিয়ম হল, ঘাটতি থাকলে দাম বাড়বে। কিন্তু দাম যদি বাড়ানো না যায়, তা হলে রেশন করতে হবে। রেশন মানে হল, যাঁরা প্রচলিত দামে পণ্য বা পরিষেবা কিনতে পারেন, তাঁদের সবাই তা পাবেন না, অন্তত পুরোটা পাবেন না। এমনিতে রেশন বলতে কী বোঝায়, আমরা জানি। কিন্তু স্বাভাবিক রেশন ছাড়াও আছে অস্বাভাবিক রেশন। প্রভাব খাটিয়ে বা ঘুষ দিয়ে কোনও পণ্য বা পরিষেবা জোগাড় করলে সেটাও এক ধরনের রেশন ব্যবস্থা হয়ে দাঁড়ায়, তবে সেই রেশনিং সরকারি নিয়মে চলে না, চলে দুর্নীতির বেনিয়মে। আমাদের দেশে খাদ্য ভর্তুকি এবং সরকারি বণ্টন ব্যবস্থা নিয়ে বিস্তর অভিযোগ। তার পুনরাবৃত্তির কোনও দরকার নেই। মোদ্দা কথা হল, এই ব্যবস্থাটির মধ্যে বাজারের প্রতিযোগিতাকে যত বেশি আনা যাবে, দুর্নীতি তত কমবে। সরাসরি ভর্তুকি হস্তান্তর-এর প্রস্তাব ঠিক ভাবে কার্যকর করা গেলে সেই পথে এগনো সম্ভব। তবে এর পরেও আইনি জটিলতার কারণে দুর্নীতির সম্ভাবনা থেকেই যায়। যেমন, প্রত্যক্ষ কর এবং পরোক্ষ কর, দুইয়ের ক্ষেত্রেই আইন আগের তুলনায় সরল ও স্বচ্ছ হয়েছে বটে, কিন্তু এখনও নানা ধরনের ছাড় এবং রেহাইয়ের জটিলতা আছে। তার ফলে অনেকে কর ফাঁকি দেওয়ার নানা ছল খোঁজেন, সেই রন্ধ্র দিয়ে দুর্নীতি প্রবেশ করে। এই সব জটিলতা যদি দূর করা যায় এবং তার সঙ্গে সঙ্গে কর ফাঁকি দেওয়ার মাসুল যদি যথেষ্ট বাড়ানো যায়, তা হলে দুর্নীতি কমবে। |
• বাজারের ঘাটতি, অহেতুক নিয়ন্ত্রণ এবং জটিল আইন, এই ত্র্যহস্পর্শে এ দেশে দুর্নীতির এমন বাড়বাড়ন্ত। তার ফল সবচেয়ে বেশি ভুগতে হয় গরিব মানুষকেই। • দিল্লিতে সেন্টার ফর পলিসি রিসার্চ-এ অর্থনীতিবিদ। |
Source:Anand Bazar Patrika
শীতকালীন অধিবেশনেই প্রত্যক্ষ কর বিধি
পার্লামেন্টের শীতকালীন অধিবেশনে পেশ করার লক্ষ্যে প্রত্যক্ষ কর বিধি বিলের উপর ইতিমধ্যেই কেন্দ্রীয় অর্থমন্ত্রক কাজ শুরু করে দিয়েছে৷ বুধবার বণিকসভা কনফেডারেশন অফ ইন্ডিয়ান ইন্ডাস্ট্রির (সিআইআই) এক অনুষ্ঠানে এ কথা জানান কেন্দ্রীয় রাজস্ব সচিব সুমিত বসু৷ তিনি বলেন, 'প্রত্যক্ষ কর বিধির উপর আমরা কাজ শুরু করে দিয়েছি৷ যত তাড়াতাড়ি সম্ভব এই বিল পার্লামেন্টের অনুমোদনের জন্য পেশ করা হবে৷' আগেও পার্লামেন্টের অনুমোদনের জন্য প্রত্যক্ষ কর বিধি সংক্রান্ত বিল পেশ করা হয়েছিল৷ কিন্ত্ত, বিলটি সংশোধনের জন্য ফেরত পাঠানো হয়৷ 'প্রয়োজনীয় সংশোধনগুলি করে তা মন্ত্রীসভার অনুমোদনের জন্য শীঘ্রই পেশ করা হবে,' বলে অর্থমন্ত্রকের আরেক শীর্ষ আধিকারিক জানিয়েছেন৷
নতুন বিধিতে ব্যক্তিগত ক্ষেত্রে আয়কর ছাড়যোগ্য আয়ের পরিমাণ দু'লক্ষ টাকাতেই অপরিবর্তিত রাখা হলেও, ধনীদের (বার্ষিক ১০ কোটি টাকার বেশি) ক্ষেত্রে আয়ের ৩৫ শতাংশের উপর নতুন কর ধার্য করা হবে৷ এছাড়াও এক কোটি টাকার বেশি ডিভিডেন্ড (লভ্যাংশ) আয়ের ক্ষেত্রে ১০ শতাংশ করের প্রস্তাবও দেওয়া হয়েছে৷ নতুন বিধিতে মোট সম্পদের পরিমাণের ভিত্তিতে হিসাব না করে সংস্থার লাভের পরিমাণের উপর ন্যূনতম পরিবর্ত কর হিসাব করার প্রস্তাব দেওয়া হয়েছে৷ অর্থ সংক্রান্ত স্থায়ী কমিটি শেয়ার কেনাবেচার ক্ষেত্রে কর (সিকিওরিটি ট্রানজাকশন ট্যাক্স) তুলে নেওয়ার প্রস্তাব দিলেও অর্থমন্ত্রক তা বজায় রাখার পথেই হাঁটতে পারে বলে জানা গেছে৷
২০০৮ সালে অর্থমন্ত্রী থাকাকালীন চিদম্বরমের নেতৃত্বে নয়া প্রত্যক্ষ কর বিধির খসড়া তৈরি শুরু হয়৷ ২০১০ সালে অর্থমন্ত্রী প্রণব মুখোপাধ্যায় সংসদে ওই বিল পেশ করেন৷ এর পর সংসদীয় অর্থবিষয়ক স্থায়ী কমিটির অনুমোদনের জন্য বিলটি পাঠানো হয়৷ স্থায়ী কমিটি বিলটিতে কয়েকটি পরিবর্তনের সুপারিশ করে৷ যেমন, করছাড়ের জন্য ন্যূনতম বার্ষিক আয় প্রস্তাবিত ২ লক্ষ টাকা থেকে বাড়িয়ে ৩ লক্ষ টাকা করা হোক৷ খসড়া প্রত্যক্ষ বিধিতে প্রস্তাব করা হয়েছিল, ২ লক্ষ থেকে ৫ লক্ষ টাকার মধ্যে আয়ের ক্ষেত্রে ১০ শতাংশ হারে আয়কর, ৫-১০ লক্ষ টাকা পর্যন্ত আয়ের জন্য ২০ শতাংশ ও তার বেশি আয় হলে ৩০ শতাংশ হারে কর নেওয়া হবে৷
২০০৯ সালে প্রথম খসড়া বিলটিতে ব্যক্তিগত আয়কর ক্ষেত্রে ছাড়যোগ্য সর্বাধিক বিনিয়োগের পরিমাণ ১ লক্ষ টাকা থেকে বাড়িয়ে ১.৬ লক্ষ টাকা করার প্রস্তাব ছিল৷ আয়কর ছাড়যোগ্য আয়ের সীমা ১.৬ লক্ষ টাকা থেকে ১০ লক্ষ টাকা, ১০ লক্ষ টাকা থেকে ২৫ লক্ষ টাকা এবং ২৫ লক্ষ টাকা বা তার বেশি-এই তিন ধাপে বিভক্ত করা হয়৷ এছাড়া ২৫ শতাংশ কর্পোরেট ট্যাক্সের প্রস্তাবও দেওয়া হয় ওই খসড়াতে৷
এরপরে ২০১০ সালে তদানীন্তন অর্থমন্ত্রী প্রণব মুখোপাধ্যায় নতুন খসড়া বিল তৈরি করেন৷ সেখানে আয়করযোগ্য আয়ের সীমা তিনটি শ্রেণিতে ভাগ করা হয়, ২ লক্ষ থেকে ৫ লক্ষ টাকা, ৫ লক্ষ থেকে ১০ লক্ষ টাকা এবং ১০ লক্ষ টাকার উপর৷ ৩০ শতাংশ কর্পোরেট ট্যাক্সেরও প্রস্তাব দেন প্রণব মুখোপাধ্যায়৷
ডিজেলের বিনিয়ন্ত্রণ ৬ মাসেই, বললেন মইলি
ছ'মাসেই ডিজেলের দামে সরকারি নিয়ন্ত্রণ শীথিল করা হবে বলে বলে জানিয়ে দিলেন পেট্রোলিয়াম মন্ত্রী এম বীরাপ্পা মইলি৷ তবে এক লাফে নয়, ধীরে ধীরে দাম বাড়িয়েই বিনিয়ন্ত্রণ করা হবে বলে জানিয়েছেন মন্ত্রী৷ কেপিএমজি এনার্জি কনক্লেভে তিনি বলেন, 'ছ'মাসের মধ্যেই ডিজেলে বিনিয়ন্ত্রণ করা হবে৷'
বর্তমানে রাষ্ট্রায়ত্ত তেল সংস্থাগুলিই দেশের ৯৫ শতাংশ পেট্রোল পাম্প থেকে তেল বিক্রি করে, তবে উত্পাদন খরচের চেয়েও কম দামে৷
এ বছর ১৭ জানুয়ারি সরকার জানিয়েছিল, প্রতি মাসে ৫০ করে ডিজেলের দাম বাড়িয়ে তা ভর্তুকিশূন্য করা হবে, কিন্ত্ত টাকার বিনিময় দর পড়ে যাওয়ায়, এক লাফে বেশ কিছুটা বাড়িয়েও বাজার দরের কাছাকাছি আনা সম্ভব হয়নি ডিজেলের দরকে৷ আর্থিক ঘাটতি কোনও ভাবেই বাড়াবে না বলে জানিয়ে দিয়েছে কেন্দ্রীয় সরকার, ফলে তেল সংস্থাগুলিকে বাঁচাতে হলে ভর্তুকি ছাড়াই ডিজেল ও রান্নার গ্যাস বিক্রি করতে হবে তেল বিপণন সংস্থাগুলোকে৷ এই অবস্থায় বিনিয়ন্ত্রণের সময়সীমা বেঁধে দিল সরকার৷
এ দিন মইলি বলেন, 'মাসে মাসে দাম বাড়িয়ে ডিজেল বিক্রি করে ক্ষতির পরিমাণ লিটারে ২.৫০ পয়সায় নামিয়ে আনা সম্ভব হয়েছে, কিন্ত্ত টাকার দাম আচমকা পড়ে যাওয়ায় দাম বেড়েছে লিটারে ১৪ টাকা মতো৷ ফলে ক্ষতির পরিমাণ দাঁড়িয়েছে ৯.২৮ টাকায়৷' তিনি বলেন, মাসে মাসে দাম বাড়ানো নীতিই থাকবে, এক লাফে ৩-৪ টাকা দাম বাড়িয়ে দেওয়া হবে না৷ তবে এখন ডিজেলের দাম তাতে মাসে ৫০ পয়সা করে বাড়ালে ১৯ মাস লাগবে ডিজেলের দাম বাজার দরের সমান করতে৷ ৬ মাসে ভর্তুকি তুলতে হলে দেড় টাকা করে দাম বাড়াতে হবে৷
মইলি অবশ্য বলেন, 'আমরা ওই (ডিজেল বিনিয়ন্ত্রণের) পথেই চলছি৷ যদি টাকার বিনিময়দর বাড়ে ও আন্তর্জাতিক বাজারে তেলের দাম কমে, আমরা ভর্তুতি পুরো তুলে দিতে পারব৷'
২০১০ সালেই পেট্রোল ও ডিজেলের বিনিয়ন্ত্রণের কথা বলে সরকার, বাজার দরে পেট্রোল বিক্রি সম্ভব হলেও এখনও ভর্তুকিতেই ডিজেল বিক্রি চলছে৷ এখন মুদ্রা বিনিময়ের বাজার অনেক বেশি স্থিতিশীল হওয়ায় ১ নভেম্বর পেট্রোলের দাম লিটারে ১.১৫ টাকা কমেছে, যদিও পেট্রোলের দাম লিটারে বেড়েছে ৫০ পয়সা৷ পাঁচ রাজ্যে ভোট থাকলেও রুটিন দাম বাড়ানোর ক্ষেত্রে কোনও সমস্যা হবে না৷ আর তার প্রভাব সাধারণ নির্বাচনের ভোটবাক্সে পড়বে না বলেও তিনি মনে করেন৷
২০১২-১৩ সালে ভারতে ১৫ কোটি ৭০ লক্ষ টনেরও বেশি পেট্রোলিয়াম পণ্য ব্যবহূত হয়েছিল৷ প্রয়োজনের ৭৫ শতাংশই আমদানি করতে হয়৷
উচ্চশিক্ষায় বেসরকারি বিনিয়োগ বাড়ছে, তার ফলে শিক্ষার মানোন্নয়ন হচ্ছে কি?
এটা মনে করা ভুল যে ভারতে বেসরকারি বিনিয়োগ শিক্ষাক্ষেত্রে হয়নি৷ বেসরকারি কলেজ তো সেই ১৯৮০-র দশক থেকেই দ্রুতগতিতে বেড়েছে, বিশেষত কারিগরি ও পেশাগত পাঠ্যক্রমের ক্ষেত্রে৷ বেসরকারি বিশ্ববিদ্যালয়ের চিন্তা ১৯৯৪ সাল থেকে শুরু হলেও তা দানা বাঁধেনি, যতক্ষণ না ভারতেরই একটি রাজ্য ছত্তিশগড় কোনও কিছুর তোয়াক্কা না করে বেসরকারি বিশ্ববিদ্যালয় চালু করে দিয়েছিল এই শতাব্দীর গোড়াতে৷ তার পরে শুরু আর এক গল্পের যার মুখ্য নায়ক ডিমড বিশ্ববিদ্যালয় নামের প্রতিষ্ঠানগুলি৷ এই ডিমড বিশ্ববিদ্যালয়ের জন্ম আই আই টি বা ইন্ডিয়ান ইনস্টিটিউট অব সায়েন্স-এর মতো বিখ্যাত প্রতিষ্ঠানের মধ্য দিয়ে সেই ১৯৫০-এর শেষ দিকে৷ আর এখন গত পনেরো বছরে তো এই ধরনের প্রতিষ্ঠান তৈরি হয়েছে মুড়ি মুড়কির মতো৷ ভারত সরকার সম্প্রতি ২০১০-১১ সালের জন্যে উচ্চশিক্ষার প্রতিষ্ঠানগুলির এক সমীক্ষা বার করেছেন৷ তাতে দেখা যাচ্ছে দক্ষিণের রাজ্যগুলিতে পুরোপুরি বেসরকারি পরিচালনাধীন কলেজের অসম্ভব রমরমা- যেমন অন্ধ্রপ্রদেশে প্রায় ৮১ শতাংশ কলেজ কোনও সরকারি সাহায্য ছাড়াই চলছে, তামিলনাড়ুতে এই সংখ্যা ৮৮.৫৪ শতাংশ৷ কর্ণাটকে ৬৬.০২ শতাংশ৷ এর সঙ্গেই তাল মিলিয়ে চলেছে পাঞ্জাব যার শতাংশ ৭২.৮৪, রাজস্থান ৭০.৫৫ শতাংশ, হরিয়ানা ৬০.১৫ শতাংশ এবং মধ্যপ্রদেশ ৫৯.০৯ শতাংশ৷ পূর্ব ভারতে এর প্রকোপ অনেক কম- পশ্চিমবঙ্গে সরকারি সাহায্যপ্রাপ্ত নয় এ রকম বেসরকারি কলেজের সংখ্যা মোট কলেজের ৩৬.৪১ শতাংশ, ওড়িশায় ৩১.২৮ শতাংশ এবং বিহারে মোটে ৫.১৫ শতাংশ৷ অন্য দিকে ডিমড বিশ্ববিদ্যালয়ের সংখ্যা অসম্ভব দ্রুত হারে বেড়েছে ২০০১-২০০৯-এর মধ্যে- সংখ্যায় ৮৭টি৷ সেখানে ১৯৯১-২০০০-এর মধ্যে এই ধরনের ডিমড বিশ্ববিদ্যালয় অনুমোদিত হয়েছিল মোটে ১৪টি এবং তার আগের দশকে ২০টি৷ এবং স্মরণে রাখা দরকার এই ডিমড বিশ্ববিদ্যালয় যেগুলি গত দশকে অনুমোদিত হয়েছে তার বেশির ভাগই হল বেসরকারি৷
শিক্ষা এবং রাজনীতি
উপরের পরিসংখ্যান থেকে এটা পরিষ্কার যে বর্তমানে সরকারি নীতি অনেকটাই বেসরকারি বিনিয়োগের উপর নির্ভরশীল৷ পরিসংখ্যান দেখাচ্ছে দক্ষিণ ভারতে এর প্রতিফলন সবচেয়ে বেশি, তার পর মধ্য ও পশ্চিম ভারতে৷ পূর্ব ভারতে এর বিস্তার সেই তুলনায় কম৷ এ ব্যাপারে লক্ষণীয় যে দক্ষিণ ভারতে উচ্চশিক্ষায় ছাত্রভর্তির হার তুলনায় বেশি- অর্থাত্ বেসরকারি কলেজের দ্রুত প্রসারে উচ্চশিক্ষার জোগানে কিছুটা সুরাহা হয়েছে তাতে সন্দেহ নেই৷ তবে এর সঙ্গে যে প্রশ্নটা ঘুরে ফিরে আসছে তা হল এই ধরনের শিক্ষা প্রতিষ্ঠান শিক্ষার মনোন্নয়নে কী ভূমিকা পালন করছে? অর্থাত্ যে বেসরকারি সংস্থা এই কলেজগুলির পরিচালনার দায়িত্বে আছে তারা কি শিক্ষার প্রসারের জন্যই এই বিনিয়োগ করেছে না তারা শিক্ষাকে ব্যবসারই একটি অঙ্গ হিসাবে দেখছে?
এখানে হাভার্ড বিশ্ববিদ্যালয় থেকে প্রকাশিত একটি গবেষণা বিশেষ প্রণিধানযোগ্য৷ এটির রচয়িতা দেবেশ কাপুর ও প্রতাপভানু মেহতা (সি আই ডি ওয়ার্কিং পেপার নং ১০৮, সেপ্টেম্বর ২০০৪, হাভার্ড বিশ্ববিদ্যালয়)৷ এই গবেষণাপত্রের রচয়িতারা প্রশ্ন রেখেছেন যে জনহিতার্থেই যদি এই ধরনের শিক্ষা প্রতিষ্ঠান গড়ে ওঠে তবে তার অর্থের জোগান আসা উচিত দানের মাধ্যমে৷ ভারতের স্বাধীনতার পরবর্তিকালে আমাদের বড়ো শিল্প গোষ্ঠীরা অনেকেই এই ধরনের ট্রাস্ট বা সোসাইটি গড়ে তুলে ছিলেন যার মূলে ছিল শিক্ষার উন্নতিকল্পে অর্থপ্রদান৷ এই অর্থ বেশির ভাগ ক্ষেত্রেই গিয়েছিল সরকারি শিক্ষা প্রতিষ্ঠানগুলিতে৷ সময়ের সঙ্গে সঙ্গে এই ধরনের দানের প্রক্রিয়া পাল্টেছে৷ এখন যাঁরা বেসরকারি ক্ষেত্রে শিক্ষার সঙ্গে যুক্ত হতে চান তাঁরা অনেক সময়েই সরাসরি শিক্ষা প্রতিষ্ঠান চালু করছেন৷ আর এই শিক্ষা প্রতিষ্ঠান চালানোর জন্যে যে অর্থের জোগান প্রয়োজন তা কিন্ত্ত জোগাড় হচ্ছে ব্যবসায়িক ভিত্তিতেই৷ এখানেই বর্তমান এবং অতীতের মধ্যে পার্থক্য৷ আর যাই হোক, বর্তমানের বেসরকারি কলেজের পরিচালনায় যাঁরা আছেন তাঁরা শিক্ষার জন্যে সামাজিক প্রকল্পে দানের ধারণা থেকে অনেকটাই সরে এসেছেন৷
কাপুর এবং মেহতা এই সূত্রে নিয়ে এসেছেন আর একটি খুবই জরুরি তত্ত্ব৷ তাদের মতে বর্তমানের অনেক বেসরকারি শিক্ষা প্রতিষ্ঠান যারা তৈরি করেছেন তারা হয় প্রত্যক্ষ রাজনীতির সঙ্গে জড়িয়ে আছেন বা রাজনৈতিক ছত্রচ্ছায়ায় কাজ করছেন৷ দক্ষিণ, পশ্চিম বা মধ্য ভারতে এর অজস্র নিদর্শন আছে৷ অর্থাত্ উচ্চশিক্ষার বিস্তারের পিছনে সক্রিয় রাজনৈতিক মদত আলোর মতোই পরিষ্কার৷ আর এই ধরনের শিক্ষা প্রতিষ্ঠান অনেক ক্ষেত্রেই অর্থ সংগ্রহের জন্য অত্যধিক বেতন এবং ফি ধার্য করছে এবং রাজনৈতিক মদতে বিশ্ববিদ্যালয় মঞ্জুরি কমিশনের নিয়মনীতিকে তোয়াক্কা করছে না৷
এ ব্যাপারে ডিমড বিশ্ববিদ্যালয়ের রমরমা নিয়ে সুপ্রিম কোর্টে মামলার পরিপ্রেক্ষিতে ভারত সরকার ট্যান্ডন কমিটি তৈরি করেছিলেন ২০০৯ সালে৷ ডিমড বিশ্ববিদ্যালয় হওয়ার প্রধান নিরিখ হল সেই প্রতিষ্ঠান গবেষণা ও শিক্ষায় এমন নিদর্শন রেখেছে যে সে বিশ্ববিদ্যালয়ের সমতুল্য৷ ট্যান্ডন কমিটি তার রিপোর্টে দেখিয়েছেন যে ২০০৯ সালে এ রকম প্রতিষ্ঠান ছিল ১৩০টি, যার মধ্যে ৪৪টি প্রতিষ্ঠান এই ধরনের ডিমড বিশ্ববিদ্যালয় তকমা পাওয়ার অযোগ্য৷ এরা প্রায় সবই বেসরকারি প্রতিষ্ঠান৷ ট্যান্ডন কমিটির রিপোর্ট চোখে আঙুল দিয়ে দেখিয়েছে যে এই প্রতিষ্ঠানগুলি পরিবারতন্ত্রের অধীনে চলছে এবং এর পরিচালনায় প্রতিষ্ঠিত কোনও শিক্ষাবিদের নাম পাওয়া দুষ্কর৷ এরা শিক্ষার মানোন্নয়নে বিশেষ কোনও ছাপ রাখতে পারেনি এবং এই শিক্ষা প্রতিষ্ঠানগুলি বিশেষ বিশেষ প্রভাবশালী ব্যক্তির পারিবারিক ব্যবসারই অঙ্গ হয়ে দাঁড়িয়েছে৷
এর সঙ্গেই আরও একটি বিষয় চোখের সামনে এসে পড়ছে৷ তা হল শিক্ষার আঙিনায় ছাত্র রাজনীতির যে বিশৃঙ্খল রূপ মাঝে মাঝেই সামনে এসে দাঁড়াচ্ছে, তার পিছনে রাজনৈতিক পৃষ্ঠপোষকতা অনস্বীকার্য৷ আর আশ্চর্যের বিষয় এই ধ্বংসাত্মক কার্যকলাপ সরকারি শিক্ষা প্রতিষ্ঠান বা সরকারি অনুদানে চলা বেসরকারি প্রতিষ্ঠানের মধ্যেই প্রায় সীমাবদ্ধ৷ যে বেসরকারি শিক্ষা প্রতিষ্ঠান সরকারি পৃষ্ঠপোষকতার বাইরে এবং অনেক ক্ষেত্রেই প্রভাবশালী ব্যক্তি এবং তাঁদের পরিবার দ্বারা নিয়ন্ত্রিত সেখানে ছাত্রদের এই ধরনের বিশৃঙ্খল আন্দোলন অনুপস্থিত৷ একটা কথা প্রায়ই রাজনৈতিক মহলে শোনা যায়- বর্তমান ছাত্র রাজনীতি থেকেই ভবিষ্যত্ রাজনীতিবিদদের জন্ম৷ তা সেই তত্ত্ব কি খালি সরকারি ও তার আনুকূল্যে চলা শিক্ষা প্রতিষ্ঠানেই প্রযোজ্য? যে রাজনীতিবিদরা বা তাদের নিকটজনেরা শিক্ষাকে ব্যবসা হিসাবে পরিচালনা করছেন, তাঁরা তো সযত্নে তাঁদের প্রতিষ্ঠানকে এই রাজনৈতিক তত্ত্বের প্রভাবমুক্ত করে রেখেছেন৷ এটা কি এক ধরনের দু'মুখো নীতি নয়- সরকারি প্রতিষ্ঠান হলে কি সেটা কারওরই দায়িত্বে পরে না? আর বেসরকারি শিক্ষা প্রতিষ্ঠান শিক্ষার মানের সঙ্গে সব রকম আপোস করা সত্ত্বেও তাঁদের পরিচালন সমিতি ছাত্রদের এ ব্যাপারে টুঁ শব্দটি করতে দেবেন না- এটা কি ভবিষ্যত্ রাজনীতির মানোন্নয়নের পক্ষে খুব হিতকর?
মানবপুঁজি ও সরকার
এ প্রসঙ্গে যে কথাটা বড়ো করে দেখা দেয় তা হল মানবপুঁজির বিস্তারে সরকারের দৃষ্টিভঙ্গি৷ পৃথিবীতে ক'টা ভারতীয় বিশ্ববিদ্যালয় প্রথম ১০০টির মধ্যে সেটা কোনও সরকারি নীতির মুখ্য চালিকাশক্তি হওয়া উচিত নয় যেহেতু এই ধরনের তুলনার মধ্যে অনেক অকথিত তথ্য থাকে৷ কিন্ত্ত এটা অনস্বীকার্য যে বর্তমান দুনিয়ায় উন্নয়নের অন্যতম প্রধান হাতিয়ার মানবপুঁজির প্রসার এবং গুণগত পরিবর্তন৷ বিভিন্ন গবেষকরা দেখিয়েছেন কী ভাবে মানবপুঁজির বিস্তার পূর্ব এশিয়ার উন্নয়নে সাহায্য করেছে৷ যেহেতু বেসরকারি বিনিয়োগ শিক্ষাক্ষেত্রে ছাত্রসংখ্যা বাড়ালেও প্রকৃত অর্থে উচ্চমানের মানবপুঁজি তৈরিতে অনেকটাই ব্যর্থ, ভারত সরকারের বর্তমান চিন্তাভাবনায় উচ্চশিক্ষায় সরকারি বিনিয়োগ বাড়ানোর প্রস্তাব নানা ভাবে এসেছে৷ যেমন ২০১২ সালের প্রস্তাবিত ও ২০১৩ সালে গৃহীত রাষ্ট্রীয় উচ্চতর শিক্ষা অভিযান (রুসা)৷ এই অভিযানের মূল লক্ষ্য ভারতের সব বিশ্ববিদ্যালয়গুলিতে পরিকাঠামো খাতে টাকা দেওয়া এবং গবেষণা খাতে সাহায্য বৃদ্ধি৷ এ সংক্রান্ত সরকারি তথ্যে দেখা যাচ্ছে (নীচে দ্রষ্টব্য):
এমতাবস্থায় রুসার মাধ্যমে আমাদের মতো রাজ্যগুলির পরিকাঠামো বৃদ্ধি কতটা হবে তা সময়ই বলতে পারবে৷ এ প্রসঙ্গে আরও দু'বার কথা না বললেই নয়৷ ভারতে উচ্চশিক্ষার ক্ষেত্রে দু'ধরনের প্রতিষ্ঠান আছে সরকারি ক্ষেত্রে- এক ধরনের প্রতিষ্ঠান চলে রাজ্য সরকারের তত্ত্বাবধানে এবং তার আর্থিক সহায়তায়৷ অন্য ধরনের হল কেন্দ্রীয় সরকারি শিক্ষা প্রতিষ্ঠান৷ ২০০৯ সালে যশপাল কমিটি এ ব্যাপারে সতর্ক করলেও কেন্দ্রীয় সরকার উচ্চ শিক্ষাখাতে যে টাকা দেয় তা বিসদৃশ ভাবে কেন্দ্রীয় প্রতিষ্ঠানগুলিকে আর্থিক ভাবে মজবুত করে৷ রুসা সংক্রান্ত সরকারি নথিতেই দেখানো হয়েছে যে ২০১১-১২ সালে উচ্চশিক্ষার সব প্রতিষ্ঠানের মধ্যে ২.৫ শতাংশ কেন্দ্রীয় সরকার নিয়ন্ত্রণাধীন যেখানে রাজ্য সরকারের নিয়ন্ত্রণে ৩৯.৫ শতাংশ৷ একই সময়ে কেন্দ্রীয় ও ডিমড বিশ্ববিদ্যালয়গুলি কেন্দ্রীয় বাজেট থেকে পেয়েছে প্ল্যান অনুদান বাবদ ২২১২ কোটি টাকা ও নন-প্ল্যান খাতে ৪১৩৭ কোটি টাকা৷ সেখানে রাজ্য বিশ্ববিদ্যালয়গুলি পেয়েছেন প্ল্যান অনুদান বাবদ সাকুল্যে ৯৫৬ কোটি টাকা এবং নন-প্ল্যান খাতে মোটে ৮ কোটি টাকা৷ ফলত একটি যুক্তরাষ্ট্রীয় কাঠামোর কেন্দ্রীয় ও রাজ্য বিশ্ববিদ্যালয়গুলির মধ্যে পরিকাঠামো এবং মোট বেতনের অসামঞ্জস্য এমন এক পর্যায়ে পৌঁছেছে তাকে রুসা দিয়ে সামলানো সম্ভব কি না তা সে কারওরই বিচার্য৷ ভালো শিক্ষক এবং উত্কর্ষের গবেষণা খালি নীতি সংক্রান্ত বাক্যবিন্যাসে এবং রিপোর্টের মধ্যে নিহিত থাকলে যা হওয়ার তাই হচ্ছে৷ রাজ্য বিশ্ববিদ্যালয়গুলি আজকে তাদের অর্জিত গৌরব ধরে রাখতে হিমসিম খাচ্ছে আর অন্য দিকে কেন্দ্রীয় স্তরের বিশ্ববিদ্যালয় এবং ডিমড বিশ্ববিদ্যালয়গুলি তুলনামূলক অর্থপ্রাচুর্য সত্ত্বেও স্বগরিমায় আহ্লাদিত হয়ে বাকি বিশ্বের কাছে নিজেদের তুলে ধরতে সমর্থ হয়নি৷
একটা কথা এখন চলছে যে গত দুই দশকে বিশ্ববিদ্যালয়ে ছাত্র বিক্ষোভ যত না হয়েছে শিক্ষকদের বিক্ষোভ তার চেয়ে হয়েছে বেশি৷ কিন্ত্ত এই বিক্ষোভগুলি কতটা মৌলিক সমস্যা সমাধানের জন্য হয়েছে তার মূল্যায়ন প্রয়োজন৷ একটা সহজ উদাহরণ দিলে কিছুটা পরিষ্কার হবে৷ শিক্ষকরা বেতন বৃদ্ধির দাবিতে ধর্মঘট করেন, যা অবশ্যই সামাজিক অবস্থান থেকে অন্যায্য বলা যায় না৷ অনেক ক্ষেত্রে বিশ্ববিদ্যালয়ের তুঘলকি কারবারের বিরুদ্ধে তারা অবস্থান করেন৷ কিন্ত্ত যে শিক্ষকরা ক্লাস ফাঁকি দেন তাঁদের বিরুদ্ধে শিক্ষক সংগঠনগুলি ক'টা বিক্ষোভ বা অবস্থান করেছেন? শিক্ষা ব্যবস্থায় মূল উপকৃত হচ্ছেন ছাত্ররা অথচ তাঁরা যাতে শিক্ষকদের মূল্যায়ন করেন সে ব্যাপারে শিক্ষক সংগঠনগুলি অনেকটাই নীরব- অথচ এই মূল্যায়ন বিশ্ববিদ্যালয় মঞ্জুরি কমিশন বহু দিন যাবত্ করতে বলছেন এবং এর ফলে শিক্ষার মান বাড়বে বই কমবে না৷ আসলে ছাত্র শিক্ষক সম্পর্কটা যদি গুরু-শিষ্য পরম্পরার আলোকে দেখতে হয় তবে তার সব দায়িত্ব শিষ্যের উপর দিলে কাজ সাধিত হবে না৷ শিক্ষকদের প্রতি শ্রদ্ধা থাকলে ছাত্ররা শত রাজনৈতিক দলাদলি থাকলেও শিক্ষা প্রতিষ্ঠানের অবমূল্যায়নকে রুখবার চেষ্টা করে৷ উত্কর্ষ বৃদ্ধির নতুন নতুন ধারণা তৈরি করা যেতেই পারে, তবে উচ্চশিক্ষার মৌলিক দিকগুলি উন্মেষিত না হলে মানবপুঁজি বিকশিত হবে না৷
http://eisamay.indiatimes.com/editorial/post-editorial/articleshow/25981676.cms
মূল্যবৃদ্ধির আঁচে তরজা সূর্য-মমতার নিজস্ব সংবাদদাতা • কলকাতা |
মূল্যবৃদ্ধির আঁচে এ বার বিধানসভা প্রথম থেকেই উত্তপ্ত। তাতে বুধবার জুড়ল মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় ও বিরোধী দলনেতা সূর্যকান্ত মিশ্রের বাদানুবাদ। তাঁর নির্ধারিত দিন না-হলেও এ দিন বেলা ১২টা নাগাদ বিধানসভায় চলে আসেন মুখ্যমন্ত্রী। এসেই মূল্যবৃদ্ধি নিয়ে বিবৃতি দিতে শুরু করেন। মূল্যবৃদ্ধি নিয়ে আলোচনা চেয়ে মঙ্গলবারই পৃথক ভাবে মুলতবি প্রস্তাব এনেছিল বিরোধী কংগ্রেস ও বামেরা। কিন্তু তাদের আলোচনার দাবি খারিজ হয়ে যায়। ২৪ ঘণ্টার মধ্যে মুখ্যমন্ত্রী ওই একই বিষয়ে বিবৃতি দিতে শুরু করার জেরেই এ দিন বিতর্ক বাধে। বিরোধীদের আপত্তি খারিজ করে স্পিকার বিমান বন্দ্যোপাধ্যায় এ দিন বলেন, "জনস্বার্থের বিষয় নিয়ে মুখ্যমন্ত্রী বিবৃতি দিতেই পারেন।" মুখ্যমন্ত্রীও বিরোধী দলনেতার দিকে আঙুল তুলে চিৎকার করে বলেন, "ইউ ক্যান নট গাইড মি!" আলোচনা না-করে একতরফা ভাবে মুখ্যমন্ত্রী যে সভায় কোনও বিষয়ে শুধু বক্তৃতা করতে পারেন না, সে কথা সূর্যবাবু উল্লেখ করতেই মমতার পাল্টা আক্রমণ, "এক দম রাজনীতি করবেন না!" এর পরে সূর্যবাবু কিছু বলার অনুমতি চাওয়ায় উত্তেজিত ভাবে মমতাই স্পিকারকে বলেন, "আপনি যদি মনে করেন, সূর্যবাবুকে দু'মিনিট বলতে দিন। তার পরে আমি বলব!" কোন দলের কোন সদস্য কতক্ষণ বলবেন, তা নির্ধারণের এক্তিয়ার স্পিকারের। মুখ্যমন্ত্রী সেই বিধি ভেঙেছেন বলে সূর্যবাবুর অভিযোগ। তিনি বলেন, "মঙ্গলবারই বলেছিলাম, মুখ্যমন্ত্রীর সুবিধামতো একটা সময় আলোচনা হতে পারে। এক ঘণ্টা-আধঘণ্টা আলোচনা হোক। উনি একতরফা বলতে থাকলে সেটা আলোচনা নয়।" কোনও বিবৃতি দিতে গেলে সদস্যদের আগে তা লিখিত ভাবে জানাতে হয় বলেও দাবি করেন সূর্যবাবু। তাঁকে বাধা দিয়ে পাল্টা মুখ খোলেন মন্ত্রী সুব্রত মুখোপাধ্যায়। পরিস্থিতি সামলাতে তখন স্পিকার সূর্যবাবুকে বলেন, "আপনারা অনেকেই দ্রব্যমূল্য নিয়ে মঙ্গলবার প্রশ্ন তুলেছিলেন। এখন বলুন!" ২৪ ঘণ্টা আগে খারিজ হয়ে যাওয়া প্রস্তাব নিয়ে আলোচনার সুযোগ দেওয়াটাও নিয়মবহির্ভূত বলে অভিযোগ সূর্যবাবুর। তাঁর বক্তব্য, "আমি আগে বলার অনুমতি চেয়েছিলাম। আগে আমাকে বলতে দিলে ভাল হত।" এর জবাবে পরিষদীয় মন্ত্রী পার্থ চট্টোপাধ্যায় পরে বলেন, "কালই তো ওঁরা (বিরোধীরা) চাইলেন মূল্যবৃদ্ধি নিয়ে আলোচনা হোক। মুখ্যমন্ত্রী সে জন্যই সে বিষয়ে বলতে চেয়েছেন। এতে এত চিৎকারের কী আছে!" বাম আমলে নন্দীগ্রাম, নেতাই, সিঙ্গুরের মতো ঘটনার সময়ও বিরোধী দল তৃণমূলের আবেদনে আমল দেওয়া হত না বলে পার্থবাবু পাল্টা অভিযোগ তোলেন। তিনি বলেন, "আগের মুখ্যমন্ত্রী তো বিরোধী দলনেতাকে মেরুদণ্ডহীন বলেছিলেন! মুখ্যমন্ত্রী তো নিজে থেমে সূর্যবাবুকে বলার সুযোগ দিয়েছেন। সূর্যবাবুকে সম্মান দেওয়ার চেষ্টা করেছেন। আমরা তো এর ছিটেফোঁটাও পাইনি!" মন্ত্রীদের কাছ থেকে কোনও প্রশ্নের জবাবও যে বিরোধীরা পান না, এ দিন ফের সেই অভিযোগ তুলেছেন সূর্যবাবু। সভায় তিনি বলেন, "আলুর দাম, শাকসব্জির দাম, সব বাড়ছে। রাজ্য সরকার ভূমিকা পালন করতে পারছে কি না, তা নিয়ে সবাই মিলে আলোচনা করতে পারি। মুখ্যমন্ত্রী বলছেন, ৩০ হাজার কৃষককে আলুর বীজ দেওয়া হবে, অথচ লক্ষ-লক্ষ কৃষক রয়েছে। তাঁদের কী হবে?" এমনকী, হিমঘর থেকে চাষিদের আলু বার করতে দেওয়া হচ্ছে না বলেও বিরোধী দলনেতার অভিযোগ। জবাবে মুখ্যমন্ত্রী বলেন, "আমরা যখন বুঝব, তখন আলু বার করব!" আলোচনার সুযোগ না মেলায় দিনের বাকি অংশের জন্য সভা থেকে ওয়াকআউট করেন কংগ্রেস বিধায়কেরা। পরে সব্জি ও নিত্যপ্রয়োজনীয় পণ্যের দাম নিয়ন্ত্রণে রাখতে নবান্নে এ দিনই টাস্কফোর্সের বৈঠক করেন মুখ্যমন্ত্রী। বৈঠক শেষে টাস্কফোর্সের সদস্য রবীন্দ্রনাথ কোলে জানান, চালের দাম যাতে অকারণে না বাড়ে, সে ব্যাপারে আড়তদারদের সতর্ক করে দিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী। নুন নিয়ে ফাটকাবাজির চেষ্টা রাজ্য সরকার বরদাস্ত করবে না বলে বৈঠকে জানানো হয়েছে। |
পুরনো খবর: মূল্যবৃদ্ধি নিয়ে সরব বিধানসভা |
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৬ শতাংশ ডিএ পাবেন, ফারাক মেটানোর দায় কেন্দ্রের: মুখ্যমন্ত্রী নিজস্ব সংবাদদাতা • কলকাতা |
রাজ্য সরকারি কর্মীদের কোনও মহার্ঘ ভাতা (ডিএ) বকেয়া নেই বলে মঙ্গলবারই বিধানসভায় জানিয়েছিলেন অর্থমন্ত্রী অমিত মিত্র। তার ২৪ ঘণ্টার মধ্যে, বুধবার বিধানসভাতেই আরও ৬ শতাংশ ডিএ দেওয়ার কথা ঘোষণা করলেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়। মুখ্যমন্ত্রী যখন ওই ঘোষণা করছেন, তখন তাঁর সামনের আসনেই বসেছিলেন অর্থমন্ত্রী। এ দিন বিধানসভায় এসে আচমকাই মূল্যবৃদ্ধি নিয়ে বক্তব্য রাখতে শুরু করেন মুখ্যমন্ত্রী। সেখানেই ডিএ-র প্রসঙ্গ তুলে তিনি বলেন, "কর্মীদের ২৩% মহার্ঘ ভাতা দিতে হবে। আমরা ইতিমধ্যে ১৭% মহার্ঘ ভাতা দিয়েছি। আরও ৬% দেওয়া হবে আগামী জানুয়ারি মাসে।" জানুয়ারিতেই ফের আর এক দফা ডিএ ঘোষণা করার কথা কেন্দ্রেরও। সূত্রের খবর, যার পরিমাণ ৯ থেকে ১১ শতাংশ হতে পারে। কেন্দ্রীয় সরকারি কর্মচারীদের সঙ্গে রাজ্যের কর্মীদের ডিএ-র ফারাক বর্তমানে ৩৮ শতাংশ। ডিএ বকেয়া থাকার কথা না-মানলেও সিপিএম বিধায়কের প্রশ্নের লিখিত জবাবে এই ফারাকের কথা কবুল করে নিয়েছিলেন অর্থমন্ত্রীও। সে ক্ষেত্রে রাজ্য সরকারি কর্মীদের ৬ শতাংশ ডিএ বাড়লেও জানুয়ারিতে কেন্দ্রীয় সরকারি কর্মচারীদের সঙ্গে ডিএ-র ফারাক দাঁড়াবে অন্তত ৪১%। তা হলে মুখ্যমন্ত্রী ২৩% দেওয়ার কথা বললেন কেন? এর ব্যাখ্যা দিয়ে অর্থমন্ত্রী এ দিন বলেন, বাম সরকার চলে যাওয়ার সময় ২৩% ডিএ বাকি রেখেছিল। তৃণমূল সরকার প্রথমে ১০% ও পরে আরও ৭% ডিএ দিয়েছে। "আরও ৬% ডিএ দেওয়া হচ্ছে। ফলে ২৩% মিটিয়ে দেওয়া হল," দাবি অমিতবাবুর। কিন্তু তৃণমূল আমলে কেন্দ্রের সঙ্গে ডিএ-র যে ফারাক তৈরি হল, তার কী হবে? দুই সরকারের ডিএ-র সামঞ্জস্য থাকা যে দরকার, তা এ দিন মেনে নিয়েছেন মুখ্যমন্ত্রী। তাঁর কথায়, "কেন্দ্রের সঙ্গে সামঞ্জস্য দরকার। কিন্তু আমাদেরও তো ক্ষমতা দেখতে হবে।" সামঞ্জস্য না-থাকার জন্য কেন্দ্রকেই দায়ী করে মুখ্যমন্ত্রী বলেন, "দিল্লিকে বলেছি, এর পর বেতন কমিশন হলে রাজ্যের কর্মীদের বর্ধিত বেতন ও মহার্ঘ ভাতার টাকা দিয়ে দেব। কিন্তু টাকার দায়িত্ব ওদেরকেই নিতে হবে।" মঙ্গলবারই ডিএ নিয়ে অর্থমন্ত্রীর দাবির সমালোচনা করেছিল বিরোধী দলগুলি। তাদের বক্তব্য ছিল, ডিএ ঠিক হয় মূল্যবৃদ্ধির সূচক অনুসারে। কেন্দ্র ও রাজ্যের ক্ষেত্রে তা আলাদা নয়। ডিএ বকেয়া নেই বলার অর্থ, এ রাজ্যে মূল্যবৃদ্ধিই হয়নি। আর বুধবার মুখ্যমন্ত্রী এক কিস্তি ডিএ দেওয়ার কথা ঘোষণার পরে সরকারের অবস্থানকে পরস্পরবিরোধী আখ্যা দিয়ে বিরোধী দলনেতা সূর্যকান্ত মিশ্রের মন্তব্য, "মহার্ঘ ভাতা অনেকটাই বাকি রয়েছে। কিন্তু সরকার এ নিয়ে অপরিষ্কার কথা বলছে।" বকেয়া মেটাতে অর্থ কমিশনের কাছে মুখ্যমন্ত্রী যথেষ্ট অনুদান দাবি করেননি বলেও অভিযোগ করেন তিনি। ডিএ নিয়ে মুখ্যমন্ত্রীর ঘোষণা রাজ্য সরকারি কর্মীদের ক্ষোভ প্রশমনের চেষ্টা বলেই মনে করছে সিপিএম প্রভাবিত রাজ্য সরকারি কর্মী সংগঠন কো-অর্ডিনেশন কমিটি। তাদের নেতা অনন্ত বন্দ্যোপাধ্যায় বলেন, "বিধানসভায় অর্থমন্ত্রীর অসত্য বিবৃতির প্রতিবাদে ও পুরো মহার্ঘ ভাতার দাবিতে আগামী ২৭ নভেম্বর বিধানসভা অভিযান করব আমরা।" প্রায় একই বক্তব্য রাজ্য সরকারি কর্মচারী সংগঠন 'নবপর্যায়'-এর নেতা সমীর মজুমদারের, "সরকার যে বলছে অর্থ নেই, তা ঠিক নয়। এরা উল্টোপাল্টা কাজে বেহিসেবি খরচ করছে। শুধু কর্মচারীদের দেওয়ার সময়েই সরকারের টাকা নেই।" কনফেডারেশন অব স্টেট গভর্নমেন্ট এমপ্লয়িজের নেতা শ্যামল মিত্রেরও দাবি, "পুরো ডিএ দেওয়ার দাবিতে বৃহত্তর আন্দোলনে যাব।" অন্য দিকে ইউনাইটেড স্টেট গভর্নমেন্ট এমপ্লয়িজ ফেডারেশনের নেতা মনোজ চক্রবর্তী এবং মঙ্গলময় ঘোষ বলেন, "এত আর্থিক অনটনের মধ্যেও রাজ্য সরকার ৬% ডিএ ঘোষণা করায় অভিনন্দন। তবে আমরা ডিএ ঘোষণার স্থায়ী আদেশনামা প্রকাশের দাবি জানাচ্ছি।" |
পুরনো খবর: দিল্লি দায় নিলে তবেই রাজ্যে গড়া হবে নয়া বেতন কমিশন |
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শিল্প তালুক গড়তে রাজ্যের নজরে এ বার বিদেশি লগ্নি |
গার্গী গুহঠাকুরতা • কলকাতা |
শিল্প তালুক গড়তে এ বার বিদেশি লগ্নি টানার দিকে নজর দিচ্ছে রাজ্য। পশ্চিম মেদিনীপুরের গোয়ালতোড়ে প্রস্তাবিত শিল্প তালুকের জমি ও সংলগ্ন এলাকা দেখতে আজ বৃহস্পতিবার কলকাতায় আসছেন দক্ষিণ কোরিয়ার এক প্রতিনিধিদল। সড়ক পথে এ দিনই তাঁদের গোয়ালতোড় যাওয়ার কথা। প্রতিনিধিদলে থাকছেন কোরিয়া ট্রেড সেন্টারের ডিরেক্টর জেনারেল ডং সিওক চয়, ভারতে দক্ষিণ কোরিয়ার দূতাবাসের মিনিস্টার টি আই চুং-সহ উচ্চপদস্থ কর্তারা। প্রতিনিধিদলের সঙ্গে গোয়ালতোড় যাচ্ছেন রাজ্য শিল্পোন্নয়ন নিগমের ম্যানেজিং ডিরেক্টর কৃষ্ণ গুপ্ত। সম্প্রতি গোয়ালতোড়-সহ তিনটি শিল্প তালুকের পরিকাঠামো উন্নয়নের জন্য চতুর্দশ অর্থ কমিশনের কাছে ১০০০ কোটি টাকা চেয়েছে রাজ্য সরকার। রাজ্য সরকারি সূত্রের খবর, অমৃতসর-দিল্লি-কলকাতা শিল্প করিডরের কাছে অন্তত একটি শিল্প তালুক তৈরি করার নির্দেশ দিয়েছে কেন্দ্র। সেই সূত্রে গোয়ালতোড়, পানাগড় ও খড়গপুর শিল্প তালুক ৩টি চিহ্নিত করেছে রাজ্য। বর্ধমানের পানাগড় শিল্প তালুক ও খড়গপুরে বিদ্যাসাগর শিল্প তালুকের পরিকাঠামো তৈরির কাজ শেষ হয়েছে। এই দু'টি শিল্প তালুকে ইতিমধ্যেই লগ্নি করেছে বেশ কিছু সংস্থা। ১১৫০ একরের বিদ্যাসাগর শিল্প তালুকে জমি নিয়েছে ট্র্যাক্টর্স ইন্ডিয়া, গোদরেজ অ্যাগ্রোভেট ও মেগাথার্ম ট্রান্সমিশন-সহ ১৫টি বড় সংস্থা। প্রায় ১৫০০ একরের পানাগড় শিল্প তালুকে কারখানা তৈরি করেছে সার প্রস্তুতকারক সংস্থা ম্যাটিক্স। প্রথম পর্যায়ের কাজ শেষ করে তারা সম্প্রসারণের কাজও শুরু করেছে। পানাগড় ও খড়গপুরে প্রাথমিক পরিকাঠামো তৈরি শেষ। তবে শিল্প করিডরের পাশে থাকার সুযোগের সদ্ব্যবহারের জন্য সেই পরিকাঠামো আরও উন্নত করতে হবে বলে মনে করেন শিল্প দফতরের কর্তারা। তবে গোয়ালতোড়ে এখনও পর্যন্ত কোনও কাজ শুরু হয়নি। জমি চিহ্নিত করা হয়েছে। কিন্তু সেই জমি কৃষি দফতরের কাছ থেকে শিল্প দফতরের হাতে এখনও আসেনি। জমি হস্তান্তরের পরে শিল্প তালুক তৈরির প্রাথমিক কাজ শুরু করা হবে বলে দফতর সূত্রের খবর। মূলত এই শিল্প তালুকের পরিকাঠামো তৈরির জন্যই অর্থ কমিশনের কাছে টাকার আর্জি জানিয়েছে রাজ্য। মোট ১০০০ কোটি টাকার মধ্যে ৭০ শতাংশ টাকাই এই তালুক তৈরির কাজে খরচ করার পরিকল্পনা রয়েছে। শুধুই অর্থ কমিশনের বরাদ্দ টাকার দিকে তাকিয়ে নেই রাজ্য। একই সঙ্গে সরকারি-বেসরকারি যৌথ উদ্যোগ বা পাবলিক প্রাইভেট পার্টনারশিপ মডেলের রাস্তাও দেখছে তারা। সেই সূত্রেই বিদেশি লগ্নি টানতে কোরিয়ার প্রতিনিধিদলকে শিল্প তালুকের জমি দেখাতে চায় সরকার। গোয়ালতোড় ঘুরে আসার পর শিল্পমন্ত্রী পার্থ চট্টোপাধ্যায়ের সঙ্গে আলোচনায় বসার আগ্রহও দেখিয়েছে কোরিয়ান দল। |
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চিকিৎসাসংকট |
দুব্বুরি সুব্বারাও এখন অতীত, কিন্তু অর্থ মন্ত্রকের সহিত রিজার্ভ ব্যাঙ্কের সম্পর্কটি সেই অম্লমধুর তারেই বাঁধা রহিয়াছে। মধুরের ভাগ অবশ্য সামান্যই— কোনও পক্ষই এখনও সরাসরি অন্য পক্ষের উপর দোষারোপ করেন নাই। অম্লরসই প্রধান, তাহার কারণ, ব্যাঙ্কের বর্তমান প্রধানও তাঁহার পূর্বসূরির পথেই চলিতেছেন। বস্তুত, তিনি বেশ কয়েক কদম আগাইয়া গিয়াছেন। সুব্বারাও তাঁহার শেষ পর্যায়ে সুদের হার আর বাড়ান নাই। রঘুরাম রাজন ব্যাঙ্কের গভর্নর হওয়ার পর বাড়াইয়াছেন; ফের বাড়াইবেন, তেমন ইঙ্গিতও দিয়া রাখিয়াছেন। সুদের হারের এমন ঊর্ধ্বগতি অর্থমন্ত্রীর পছন্দ হইবার কোনও কারণ নাই। অতএব, সম্পর্কের ওই ক্ষীণ মধুরতাটিই ভরসা, নচেৎ ঠোকাঠুকি লাগিবার শব্দ এত ক্ষণে কানে ভাসিয়া আসিত। সম্প্রতি অর্থনীতির এই দুই কর্তা একই দিনে দুইটি পৃথক মঞ্চে অর্থনীতির স্বাস্থ্য এবং তাহার উদ্ধারের উপায় বিষয়ে বক্তব্য পেশ করিলেন। প্রথম ভাগটিতে তাঁহারা অভিন্নমত— বৃদ্ধির হার উচ্চতর স্তরে লইয়া যাওয়া প্রয়োজন। কিন্তু কী উপায়ে? এই দ্বিতীয় ভাগে দুই কর্তার দুই মত। অর্থমন্ত্রীর মতে, খাদ্যপণ্যের মূল্যবৃদ্ধির কারণেই যে মূল্যস্ফীতি ঘটিতেছে, কঠোর আর্থিক নীতি তাহাকে ঠেকাইতে পারিবে না। অস্যার্থ, সুদের হার লইয়া বাড়াবাড়ির প্রয়োজন নাই। রিজার্ভ ব্যাঙ্ক প্রধান একই রকম প্রত্যয়ের সঙ্গে বলিয়াছেন, মূল্যস্ফীতি নিয়ন্ত্রণ করিতে গোটা দুনিয়ার সব কেন্দ্রীয় ব্যাঙ্কের হাতেই একটিমাত্র অস্ত্র বর্তমান— সুদের হার। কাজেই, সেই পথ হইতে সরিবার কারণ এবং উপায়, কোনওটিই নাই। অর্থমন্ত্রীর কথাটি খানিক বিশ্লেষণ করা ভাল। প্রথমত, বেশ কিছু দিন নিয়ন্ত্রণে থাকিবার পর পাইকারি সূচকের নিরিখে মূল্যস্ফীতির হার ফের সাত শতাংশের সীমা পার হইয়াছে। হারটি অর্থনীতির পক্ষে স্বাস্থ্যকর নহে। দ্বিতীয়ত, কেবলমাত্র খাদ্যপণ্যের মূল্যবৃদ্ধির কারণেই এই মূল্যস্ফীতি নহে— পরিভাষায় যাহাকে 'কোর ইনফ্লেশন' বলা হইয়া থাকে, তাহার হারও বাড়িতেছে। অতএব, সতর্ক থাকা প্রয়োজন। কিন্তু, এই দ্বিতীয় প্রসঙ্গটিকে আপাতত যদি বাদও রাখা যায়, তবুও অর্থমন্ত্রী নিজের যুক্তির ফাঁদেই আটকা পড়িবেন। তিনি বলিয়াছেন, খাদ্যপণ্যের মূল্যবৃদ্ধি নিয়ন্ত্রণের জন্য উৎপাদন বাড়াইতে হইবে, তাহার জন্য বিনিয়োগ প্রয়োজন এবং তাহার জন্য বিনিয়োগের অনুকূল পরিবেশ (অর্থাৎ, কম সুদের হার) চাই। কিন্তু মন্ত্রিবর যাহা বলেন নাই, তাহা হইল, ভারতের বর্তমান খাদ্যসংকটের কারণ উৎপাদনের অভাব নহে পশ্চিমবঙ্গের হিমঘরগুলি সাক্ষ্য দিবে— যথার্থ জোগান-শৃঙ্খলের অভাবেই এই বিপদ হইয়াছে। এই অভাবটি কোন বিনিয়োগের মুখ চাহিয়া ছিল? আরও দুইটি চিন্তার বিষয় আছে। প্রথম, ডলারের দাম ফের ঊর্ধ্বমুখী হইবার সম্ভাবনা উড়াইয়া দেওয়া যাইতেছে না। দ্বিতীয়, ভারতের মূল্যস্ফীতির হার আন্তর্জাতিক স্তরে তাহার সমগোত্রীয় দেশগুলির তুলনায় গত কয়েক বৎসর যাবৎ উদ্বেগজনক রকম বেশি। দুইটি বিষয়ই রাজনকে তাঁহার সুদের হারের নীতিতে অবিচল থাকিতে প্ররোচিত করিবে। তবে, আন্তর্জাতিক পরিস্থিতি লইয়া অন্তত এই মুহূর্তে প্রভূত দুশ্চিন্তা না করিলেও চলিবে। বেন বার্নানকের সম্ভাব্য উত্তরসূরি জ্যানেট ওয়েলেন ইঙ্গিত দিয়াছেন, তাঁহার ব্যয়সংকোচের পথে হাঁটিবার বিশেষ তাড়া নাই। অতএব, এখনই বিদেশি লগ্নির মহানিষ্ক্রমণও ঘটিতেছে না। বস্তুত, এই আর্থিক বৎসরে ইন্দোনেশিয়া, ফিলিপিন্স, তাইল্যান্ড, ভিয়েতনামের ন্যায় দেশগুলির তুলনায় ভারতে অনেক বেশি পরিমাণ বিদেশি পুঁজি আসিয়াছে। সেই পুঁজি যাহাতে ভারতেই থাকে, তাহা দেখিবার দায় একা রাজনের নহে, চিদম্বরমেরও। নির্বাচনী দামামার মধ্যে সেই কাজটি তিনি কতটা পারেন, তাহাই এখন দেখিবার বিষয়। |
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'কাজ করতে চাই, কাজ দেবেন না মানে?' অধিকার আন্দোলন আর ভোটের রাজনীতি, দু'দিক থেকেই উন্নয়নের যে ছক তৈরি হচ্ছে তাতে জনপ্রতিনিধির সঙ্গে গ্রামবাসীর সংঘাত চলবেই। প্রাপ্যটুকু আদায় করতে ময়না, কণিকাদের প্রাণ-মান বিপন্ন করতেই হবে? স্বাতী ভট্টাচার্য |
ওরা কী ভেবেছে? এটা কি অঞ্চল অফিস, না ওদের রান্নাঘর? রোগা-পাতলা তৃণমূল কর্মীর কথাগুলো দিনহাটার প্রত্যন্ত এক পঞ্চায়েত অফিসের চুনকাম-করা দেওয়ালগুলোতে যেন ঠোক্কর খেয়ে ফিরতে লাগল। চওড়া টেবিলের ও পাশে সদ্য-নির্বাচিত প্রধান মিরাজুন নাহার, জাঁদরেল গোঁফধারী উপপ্রধান, গেরামভারি সদস্য। সবাই তৃণমূল। আর 'ওরা'? তাদের দু-একটা ভোটে দাঁড়িয়ে হেরো-ভূত, বাকিগুলো পার্টিই করে না। তা সত্ত্বেও অ্যাদ্দিন কংগ্রেস, সিপিএম ওদের কব্জা করতে পারেনি। এখন তৃণমূল হার মানছে কোচবিহারের 'প্রমীলা বাহিনী'র কাছে। ওরা সংখ্যায় সাড়ে ছ'হাজার, লেখাপড়া সামান্য, কাজ করে গেরস্তালিতে, খেতখামারে। তারই ফাঁকে তৈরি করে লিস্ট। একশো দিনের কাজের মজুরের তালিকা। কাগজের তাড়া নিয়ে চলে যায় পঞ্চায়েতে। প্রধানের কাছে দাবি করে, কাজের আবেদন এনেছি, লেবার লিস্ট এনেছি, সই করে দিন। কাজের অধিকার আছে। ঘোড়া ডিঙিয়ে ঘাস? সই করেন না প্রধান। মেয়েরা যায় বিডিও অফিসে। নভেম্বরের এক দুপুরে তাদের পিছু পিছু বিডিও সাহেবের ঘরে ঢুকে দেখা গেল, মেয়েরা টেবিল ঘিরে বসে রয়েছে। আর বিডিও পঙ্কজ তামাঙ্গ ফোন তুলে প্রধানকে বলছেন, "লিস্টে সই করে কালই পাঠান, পরশু থেকে কাজ শুরু করব।" গ্রামের মেয়েরা পঞ্চায়েত সমিতির প্রকল্পে কাজ করলে গ্রাম পঞ্চায়েত প্রধানের আপত্তি কী? "ওরা আলোচনায় আসুক। কিছু ওদের লেবার কাজ করুক, কিছু আমাদের," বক্তব্য গীতালদহ ১ গ্রাম পঞ্চায়েত প্রধান মিরাজুনের। মেয়েদের তাতেই আপত্তি। বেছে বেছে কাজ দেবে কেন? যে চাইবে তাকেই দিতে হবে, এটাই আইন। সরকারি আইন সরকারকে মানাতে গেলে কী দশা হয়, ওই মেয়েরা হাড়ে হাড়ে জানে। প্রথম যখন ওরা কাজ চেয়েছিল একশো দিনের প্রকল্পে, ক্ষমতায় বামফ্রন্ট। প্রধান আবেদন জমা নেয়নি, ওরা ব্লকে চিঠি জমা দিয়ে এসেছিল। চটে গিয়ে পঞ্চায়েত থেকে কাজ দিল পুকুরের পানা তোলার। "ওই পুকুরে যা সাপ, কেউ ঘাটে কাপড় কাচতেও যেত না," বললেন ময়না বিবি, নুরখাতুন বিবিরা। জেদের বশে সেখানেই কোমর জলে দাঁড়িয়ে পানা তুলল ওরা। শেষে থই মেলে না, তখন কঞ্চি দিয়ে টেনে টেনে পানা তুলতে হয়েছে। ২০০৬ সালে ৫০জন মেয়ে নিয়ে প্রমীলা বাহিনী শুরু। বছরে চাঁদা ছিল দু'টাকা। ২০০৯ সালে সদস্য হল আড়াই হাজার, চাঁদা বছরে পাঁচ টাকা। এ বছর সদস্য সাড়ে ছ'হাজার, পাঁচটা ব্লকের ৫২টা গ্রামে তারা ছড়িয়ে রয়েছে। চাঁদা হয়েছে বছরে ১০ টাকা। প্রমীলা বাহিনীর ব্যাঙ্ক অ্যাকাউন্টে ৩২ হাজার টাকা জমেছে। আর জমেছে গল্প। এক বার তো পোস্ট অফিসে গিয়ে ওরা দেখে, পাওনা মজুরির চাইতে বেশি টাকা জমা পড়েছে সবার অ্যাকাউন্টে। সুপারভাইজার বলল, বাড়তি টাকা উঠিয়ে আমার হাতে দাও। মেয়েরা বিডিও-র কাছে নালিশ করলে তিনি উলটে মেয়েদের নামেই অভিযোগ দায়ের করলেন, তারা বেশি টাকা উঠিয়ে নিয়েছে। মেয়েরা ঘেরাও করল, সুপারভাইজার সাসপেন্ড হল, ছুটিতে পাঠানো হল বিডিওকে। |
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এমন নানা সাফল্য ওদের প্রত্যয় এনে দিয়েছে। ওরা জুয়ার তিনটে ঠেক ভেঙে দিয়েছিল (থানার পুলিশ আসেনি, এসপি-কে ফোন করে পুলিশ আনতে হয়েছিল), সেগুলো আর ফিরে আসেনি। যে দালালরা মেয়েদের পাচার করত দিল্লি, হরিয়ানায়, ওদের নজরদারিতে তাদের পিছু হঠতে হয়েছে। যে নির্মাণ সহায়ক ওদের কাজ দিতে চাননি, তাঁকেই ওদের সঙ্গে গিয়ে ব্লক থেকে মজুরির চেক 'রিসিভ' করতে হয়েছে। এমনকী ওদের স্বামী-শ্বশুরও আজ ওদের পাশে দাঁড়িয়েছে। তিলক বর্মন যখন প্রথম বাহিনীর অন্যদের সঙ্গে কাজের আবেদন জমা দিয়েছিলেন ব্লক অফিসে, তখন স্বামী এসে নিষেধ করেছিলেন। দলের নেতা এসে হুমকি দিয়ে গিয়েছেন, 'তোর বউকে সামলা।' "আমি বললাম, তোমার খেতে কাজ করে কে, নেতা না আমি? বর, শ্বশুরমশাই বোঝাতে না পেরে শেষে বিএসএফ জওয়ান ভাসুরকে ডেকে আনল। দাদা বললেন, বউমানুষদের অত ঘর থেকে বেরোতে নেই। আমি বললাম, তা হলে মেয়েরা পুলিশ হচ্ছে কী করে? দেখুন না আমি বেআইনি কিছু করি কি না। আজ কিন্তু আমার বরকে কেউ কথা শোনাতে এলে সে-ই দু'কথা শুনিয়ে দেয়।" রাষ্ট্র-নাগরিক। নেতা-জনতা। পুরুষমানুষ-মেয়েমানুষ। যে ভাবেই দেখা যাক, ওরা ক্ষমতার ও ধারে। তবু যা ওদের চাই, তা আদায় করে নিয়ে আসছে ময়না বিবি, কণিকা চক্রবর্তী, জরিভা বেগমরা। তবে কি গেল-গেল করেও গণতন্ত্র রয়েছে এ দেশে, এই সীমান্ত-ঘেঁষা গ্রামে? কোনও অপরূপ রসায়নে গণতন্ত্রের পাকশালায় আইনি অধিকার পুষ্ট করছে জীবনকে? |
অধিকার বনাম সমর্থন |
কিন্তু গণতন্ত্রই যদি কাজ করে, তা হলে ভোটে জিতে এসে নেতারা কেন মানুষের কথা শোনে না? প্রমীলা বাহিনী বিরল, তবু আশ্চর্য নয়। দেশের বহু গ্রামে এমন কাঁধে কাঁধ লাগিয়ে মানুষ প্রাপ্য আদায়ের লড়াই চালাচ্ছে। কখনও তা নীচ থেকে উঠে-আসা আন্দোলন, কখনও বাইরের কোনও সংস্থার সহায়তায় গড়ে ওঠা জন-উদ্যোগ। বিস্ময় যদি কিছু থাকে, তবে তা রাজনীতির ভূমিকায়। বিপুল ভোটে জিতে, এই প্রথম পঞ্চায়েতে ক্ষমতায় এসেছে তৃণমূল কংগ্রেস। অথচ তিন দশকের বামফ্রন্ট জমানায় যে ভাবে কাজের দরখাস্ত ফিরিয়ে দেওয়া হয়েছে, 'নিজের লোক' বেছে কাজ দেওয়া হয়েছে, এখনও তাই। মিরাজুন নাহার পঞ্চায়েতে আনকোরা, তাঁর সহকর্মীদের অনেকেই এই প্রথম ক্ষমতার আসনে বসলেন। তা হলে সরকারি সুযোগসুবিধে গ্রামের মানুষকে দিতে এত অনাগ্রহ কেন? গ্রামে বাস করেও গ্রামবাসীর থেকে কেন এমন মুখ ফেরানো? একটা কারণ হাতের কাছেই আছে, দুর্নীতি। কোনও কোনও প্রধান নাকি খোলাখুলি বলছেন, পয়সা দিয়ে ভোটে লড়েছি, পয়সা না দিলে কোনও আবেদনে সই করব না (মিরাজুন অভিযোগ অস্বীকার করেছেন)। কিন্তু সে নালিশ সত্যি হলেই বা কী? সবাই নেতাদের হাত-পাতার সঙ্গে মোটামুটি পরিচিত। তাতে খুচরো অশান্তি হতে পারে, বড় কাজ আটকায় না। গ্রামে ঘুরলে মনে হয়, গ্রামের গরিব আর গ্রামের নেতা, দু'জনেই পড়েছে ফাঁপরে। ভোটার তৈরি করতে গেলে দেওয়া-থোওয়ার শর্ত তৈরি করতেই হয়, কিন্তু অধিকার জিনিসটাই নিঃশর্ত। কাজ, খাদ্য, শিক্ষা, এ সবের কোনওটার বিলিবণ্টনে নিয়ন্ত্রণের সুযোগ নেই গ্রামের নেতার। দেশের নানা দিকে গরিবের রোষ সামলাতে বরং আরও আরও 'অধিকার' তৈরি করছে দিল্লির নেতারা। দিনহাটার গ্রামের নেতার সংকট— কী দিয়ে তবে জনসমর্থন টানা যাবে? ইন্দিরা আবাসের বাড়ি, নির্মল গ্রামের শৌচাগার, রেশনের চাল, কলের জল, কিছুই যদি নিয়ন্ত্রণে না থাকে, তবে মানুষের উপর নিয়ন্ত্রণ থাকবে কী করে? বড় মাপের নেতারা সেতু-রাস্তা-সেচ-শিল্প দিয়ে সমর্থন আদায় করেন। গ্রামের নেতার কাছে 'ক্ষমতা' মানে, হয় সম্পদ বণ্টনে নিয়ন্ত্রণ, নইলে হিংসার উপর নিয়ন্ত্রণ। অরুণা রায়, পিইউসিএল থেকে অণ্ণা হজারে, অধিকার আন্দোলন সম্পদ বণ্টনে গ্রামের নেতার নিয়ন্ত্রণকে ক্রমাগত খারিজ করেছে। কে বাড়ি পাবে, কে খাদ্য, কাজ পাবে, কিছুই পঞ্চায়েত নেতা ঠিক করতে পারেন না। অধিকার আন্দোলনের দৃষ্টিতে উন্নয়নের মডেল প্রত্যক্ষ গণতন্ত্রের মডেল, যেখানে গ্রামবাসীর কাছে ক্রমাগত জবাবদিহি আর হিসেব দাখিল করে যেতে হবে ভোটে-জেতা নেতাকে। মিরাজুন নাহার যখন বলেন, 'মাঠে ধান আছে, এখন একশো দিনের কাজ করাব না,' তখন তাঁর সিদ্ধান্ত অনায়াসে খারিজ হয়ে যায়, কারণ আবেদন করার ১৫ দিনের মধ্যে কাজ পাওয়ার 'অধিকার' রয়েছে গ্রামবাসীর। জমির মালিক আর খেতমজুর, দুই শ্রেণির স্বার্থের কোনও একটা আপস করার অধিকার গ্রামের নেতার আছে কি না, সে প্রশ্ন কেউ করছে না। কে-ই বা করবে? অধিকার আন্দোলন করছে নাগরিক সমাজের শহুরে মধ্যবিত্ত, তারা আগাগোড়াই গ্রামের নেতাকে মূর্খ, শঠ বলে মনে করে। আর রাজনৈতিক দলের বড় নেতারা গ্রামের নেতাদের জনসংযোগকে ভয় করেন, তাদের গ্রামেই দাবিয়ে রাখতে চান। দু'তরফেই উন্নয়নের রাশ কেড়ে নিয়ে গাড়ি ঠেলার কাজ দেওয়া হচ্ছে নেতাকে। সম্পদের উপর নিয়ন্ত্রণ না থাকায় হিংসার উপর নির্ভরতা বাড়ছে গ্রামে গ্রামে। হিংসা দিয়ে রুখে দেওয়া হচ্ছে গ্রামবাসীর ভোটের অধিকার থেকে কাজ-খাদ্যের অধিকার। 'হলে আমার ইচ্ছে মতো হবে, নইলে নয়,' এটা প্রমাণের তাগিদ থেকে টাকা এসে ফিরে চলে যায়, উন্নয়ন হয় না। তাই ভোটের লড়াইয়ের পর আবার শুরু হয় অধিকার আদায়ের লড়াই। সকলে মিলে রাষ্ট্রের থেকে প্রাপ্য আদায়ের লড়াইয়ে নামলে দুর্বল মানুষের মধ্যেও আত্মশক্তির স্ফূরণ হয়। তিলক বর্মন, ময়না বিবিরা যে একজোট হয়ে নিজেদের প্রাপ্য আদায় করছেন, এতে অনেকে 'নারী জাগরণ' দেখবেন। কিন্তু এ-ও লক্ষ করতে হবে যে ওই মেয়েরা জোতদার-জমিদারের বিরুদ্ধে লড়ছে না, রাষ্ট্রের বিরুদ্ধে কিংবা কোনও আন্তর্জাতিক কর্পোরেটের বিরুদ্ধে লড়ছে না। লড়ছে ভোটে-জেতা ননদ-ভাজ, খুড়ি-মামির বিরুদ্ধে। ময়না বিবিদের মদত দিচ্ছে বিডিও, এসপি, ডিএম। আর সংখ্যালঘু, গরিব, প্রথম-নির্বাচিত মিরাজুন নাহারের পাশে তাঁর দলের নিচুতলার কর্মীরা। এ কেমন লড়াই? কীসের লড়াই? কী উদ্দেশ্যে এই লড়াইয়ে প্রেরণা জোগাব আমরা? অধিকার আন্দোলন আর ভোটের রাজনীতি, দু'দিক থেকেই উন্নয়নের যে ছক তৈরি হচ্ছে তাতে গ্রামের জনপ্রতিনিধির সঙ্গে গ্রামবাসীর সংঘাত বাধতেই থাকবে। ময়না, কণিকারা সামান্য প্রাপ্যটুকু আদায় করতে রোজ প্রাণ-মান বিপন্ন করবে, এ কেমন প্রত্যাশা? মিরাজুন বিনা প্রশ্নে ময়না-কণিকার কথা মেনে নেবে, তা-ই বা কী করে হয়? গরিব মেয়ের স্বশাসন, গরিব মেয়ের সক্ষমতা, এ দুটোর পথ যদি না মেলে, উন্নয়ন কোন পথে গ্রামে আসবে তবে? |
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Manmohan Singh rubbishes Opposition charge of govt's failure on economic front
Thursday, Nov 21, 2013, 21:01 IST | Place: Jaipur | Agency: PTI
He said the growth under the UPA government was higher than that of the NDA and it was a record for a decade.
Manmohan Singh. - AFP
Trashing opposition charges of government's failure on the economic front, Prime Minister Manmohan Singh on Friday asserted that the country has achieved rapid economic development during the UPA rule.
He said the growth under the UPA government was higher than that of the NDA and it was a record for a decade.
"Opposition parties which question our government should first look at our achievements. BJP claims that the UPA government failed on the economic front but BJP leaders should look at our government's achievements," he said while highlighting some of them at an election rally here.
"The country's economic development in the last nine years is a record for a decade. Poverty level has fallen in the country and the state of Rajasthan has left behind many states in poverty alleviation. People's income in rural areas increased and it is the result of our policies that youths are getting new job opportunities.
"Heath services in rural areas improved because of NRHM. 3.40 crore families have been benefited with national health insurance scheme," he said.
"Poverty has decreased three fold. Polio has been eradicated. Almost all children are now getting primary education due to Right to Education and 11 crore school children are being served midday meal daily," he said.
Singh highlighted that several new prestigious institutions like IIT and IIM had been opened and the number of students in higher education institutions doubled during the last nine years.
In Rajasthan also, one IIT and one IIM was opened, he said.
For agriculture sector, he said, the government took several initiatives and increased MSP to provided reasonable price for crops. The country has adequate storage of grains, he said, adding that MGNREGA has provided job opportunities to over 8 crore people in rural areas.
"Every fifth household in rural India is getting benefits of MGNREGA," Singh said.
আগ্রায় মোদির মঞ্চে 'দাগী' সংবর্ধনা
ব্যুরো রিপোর্ট, এবিপি আনন্দ
Thursday, 21 November 2013 17:04
আগ্রা: বিজেপির বিরুদ্ধে ফের সাম্প্রদায়িকতার রাজনীতির অভিযোগ৷ বৃহস্পতিবার উত্তরপ্রদেশের আগরায় নরেন্দ্র মোদির সভামঞ্চ থেকে সংবর্ধনা দেওয়া হল মুজফফরনগর হিংসায় অভিযুক্ত দুই বিজেপি বিধায়ক সঙ্গীত সোম ও সুরেশ রানাকে৷ তাঁদের মাথায় মুকুট ও ফুলের মালা পরিয়ে দেওয়া হয়৷ দুজনকেই মুজফফরনগরের সাম্প্রতিক হিংসায় যুক্ত থাকার অভিযোগে গ্রেফতার করেছিল পুলিশ৷ এক মাসেরও বেশি সময় জেলে কাটানোর পর জামিনে মুক্ত হন তাঁরা৷ আর তারপরই বৃহস্পতিবার মোদির সভায় রীতিমতো সংবর্ধনা৷ যদিও মোদি আসার আগেই সেরে ফেলা হয় সংবর্ধনা অনুষ্ঠান৷ দলের প্রধানমন্ত্রী পদপ্রার্থীর সঙ্গে তাঁদের কিছুটা দূরত্ব বজায় রাখতেই বিজেপি এই কৌশল নিয়েছে বলে রাজনৈতিক মহলের ধারণা৷ যদিও, অভিযুক্ত বিধায়কদের বিজেপির সংবর্ধনা দেওয়াকে কটাক্ষ করেছেন কংগ্রেস মুখপাত্র শাকিল আহমেদ৷ আর আগরায় যে মঞ্চ থেকে অভিযুক্ত দু'ই বিজেপি বিধায়ককে এদিন সংবর্ধনা দেওয়া হয়, সেই মঞ্চে দাঁড়িয়েই কংগ্রেসের বিরুদ্ধে বিভেদের রাজনীতি করার অভিযোগ করেন মোদি৷
রাজনৈতিক মহলের ব্যাখ্যা, মোদি জানেন, উত্তরপ্রদেশের আশিটি লোকসভা আসনের সিংহভাগ দখল করতে না পারলে তাঁর দিল্লির মসনদে বসার স্বপ্ন অপূর্ণ থেকে যেতে পারে৷ আর তাই কোনও কৌশলই বাদ রাখছেন না তিনি৷
http://www.abpananda.newsbullet.in/national/60/43820
মমতার 'সমদূরত্বের নীতি'
আশাবুল হোসেন ও বিতনু চট্টোপাধ্যায়, এবিপি আনন্দ
Wednesday, 20 November 2013 17:29
কলকাতা: প্রথমে যুক্তরাষ্ট্রীয় জোট গঠনের ডাক৷ তারপর নীতীশ-নবীন-জয়ললিতাদের সঙ্গে যোগাযোগ রেখে চলা৷ আর এবার, কলকাতায় ওয়াই এস আর কংগ্রেসের প্রধান জগন্মোহন রেড্ডির সঙ্গে বৈঠক৷ ২০১৪-র লোকসভা নির্বাচন পরবর্তী পরিস্থিতি নিয়ে জল্পনা ক্রমেই উস্কে দিচ্ছেন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়৷ সেইসঙ্গে ভোট যত এগিয়ে আসছে, কংগ্রেস ও বিজেপি থেকেও দূরত্ব ক্রমেই বাড়ানোর চেষ্টা করছেন তৃণমূল নেত্রী৷ বুধবার বিধানসভায় ফের জোরালোভাবে সেই ইঙ্গিতই দিলেন তিনি৷
মূল্যবৃদ্ধি প্রসঙ্গে এদিন বিধানসভায় কেন্দ্রকে কড়া ভাষায় আক্রমণ করেন মুখ্যমন্ত্রী৷ কেন্দ্রীয় সরকারের ভ্রান্ত নীতির জন্যই বর্তমানে জিনিসপত্রের এত চড়া দাম বলে দাবি করেন তিনি৷ মুখ্যমন্ত্রী যখন কংগ্রেস নেতৃত্বাধীন ইউপিএ-কে একটানা আক্রমণ করে চলেছেন, তখন তার তীব্র প্রতিবাদ জানান কংগ্রেস বিধায়করা৷ আর এরপরই কংগ্রেস বিধায়কদের উদ্দেশে মমতা বলেন, 'আপনারা যা করেছেন, জনগণ আপনাদের জিরো করে দেবে৷ এবার কেন্দ্রে কংগ্রেস, বিজেপি, সিপিএম কেউ নয়৷ আঞ্চলিক দলগুলি নেতৃত্ব দেবে৷'
বর্তমান পরিস্থিতিতে লোকসভা নির্বাচনের আগে এ রাজ্যে কংগ্রেস-তৃণমূলের মধ্যে জোট হওয়ার কোনও সম্ভাবনাই দেখছেন না রাজনৈতিক পর্যবেক্ষকরা৷ তাঁরা বলছেন, যদি জোট হয়ও, তাহলে তা হতে পারে ভোটের ফল বেরোনোর পর৷ আর বিজেপির সঙ্গে মমতার ফের ঘর বাঁধা প্রায় অসম্ভব বলেই মত পর্যবেক্ষকদের৷ যদিও কংগ্রেস-সিপিএম বারবার এই প্রশ্ন তুলেই তৃণমূল নেত্রীকে খোঁচা দেওয়ার চেষ্টা করছেন যে, বিজেপির প্রধানমন্ত্রী পদপ্রার্থী নরেন্দ্র মোদির প্রকাশ্যে বিরোধিতা তিনি এখনও করেননি৷ এই পরিস্থিতিতে কংগ্রেস-বিজেপি-সিপিএম সবার থেকে সম দূরত্বের নীতি বজায় রাখার ইঙ্গিতই এদিন দিলেন মমতা৷ তিনি বলেন, আগের সরকারকে বন্ধু বলেই বলছি, রাজনীতিতে স্থায়ী বন্ধু বা শত্রু বলে কিছু নেই৷ আজ যে আমার শত্রু, আগামীকাল সে যে আমার বন্ধু হবে না, তা বলা যায় না৷ চেয়ার চলে যায়, ক্ষমতা চলে যায়, কিন্তু গণতন্ত্র থেকে যায়৷ শত্রুর শত্রু আমার বন্ধু, এই তত্ত্বে আমি বিশ্বাস করি না৷
রাজনৈতিক মহলের মতে, এই মন্তব্য করে মমতা সম্ভবত বোঝানোর চেষ্টা করলেন, কংগ্রেস বা বিজেপি কেউ যেন না ভাবে, একজনকে আটকাতে তিনি অন্যজনের সঙ্গে যাবেনই৷ কারণ তিনি চান আঞ্চলিক জোট৷ সেইসঙ্গে ঘোর শত্রু সিপিএমের ফের কেন্দ্রে নির্ণায়ক ভূমিকা নেওয়ার সম্ভাবনাও উড়িয়ে দিলেন মমতা৷ আবার স্থায়ী বন্ধু বা শত্রু বলে কিছু হয় না, এই মন্তব্য করে সমস্ত রাজনৈতিক দলের সঙ্গে ভবিষ্যতের সমীকরণের পথও পুরোপুরি বন্ধ করে দিলেন না তিনি৷
http://www.abpananda.newsbullet.in/national/60-more/43783-2013-11-20-12-00-37
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* | Sins of Congress's vote bank politics created SP, BSP: Modi
AGRA: Hitting out at the "tikdi", a term he used for Congress, Samajwadi Party and BSP at the Kanpur rally, BJP's present poster boy Narendra Modi at Agra on Thursday said that the Samajwadi Party and the Bahujan Samaj Party are born out of the sins of ... |
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JHABUA: Taking on the BJP on the issue of combating corruption, Congress president Sonia Gandhi said that while UPA had always acted promptly against those facing graft charges, what action had the party taken against Madhya Pradesh ministers facing ... |
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GOM Meeting with Union Ministers Sushilkumar Shinde, Veerappa Moily, Jairam Ramesh and Chief Minister of AP, N Kiran Kumar Reddy at a meeting on Telangana issue in New Delhi on Monday. |
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चीनी मिलों का यूपी सरकार को बंदी का नोटिस
Published on Nov 20, 2013 at 13:50
नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश की 60 चीनी मिलों ने राज्य सरकार को काम बंद करने का नोटिस दे दिया है। गन्ने के ऊंचे भाव के चलते चीनी मिलें गन्ना लेने को तैयार नहीं हैं। चीनी कंपनियां उत्तर प्रदेश सरकार के रवैये से परेशान हैं। माना जा रहा है कि महंगे गन्ने के कारण चीनी मिलों को नुकसान होगा। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने चीनी मिलों को पेराई का नोटिस भेजा था। साथ ही उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर किसानों का 2,300 करोड़ रुपये बकाया है।
वहीं उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों के मुताबिक गन्ने की मौजूदा कीमत पर चीनी बनाने में काफी नुकसान होता है। ऐसे में सरकार को आगे आकर चीनी मिलों की मदद करनी चाहिए।उत्तर प्रदेश के चीनी मिल मालिक गन्ने की कीमत तय करने के लिए रंगराजन कमिटी के फॉर्मूले को लागू करने की मांग कर रहे हैं जिसमें चीनी की कीमत के हिसाब से गन्ने की कीमत तय करने की सिफारिश की गई है।
छह माह में डीजल की कीमत होगी नियंत्रण मुक्त
Published on Nov 20, 2013 at 13:44
नई दिल्ली। पेट्रोलियम मंत्री वीरप्पा मोइली ने आज कहा है कि अगले छह महीने में डीजल की कीमतें पूरी तरह नियंत्रण मुक्त हो जाने की संभावना है। उन्होंने कहा कि सरकारी तेल विपणन कंपनियों को डीजल बिक्री पर अभी भी 9 रुपये 58 पैसे प्रति लीटर का घाटा हो रहा है जबकि मिट्टी के तेल और रसोई गैस पर क्रमशः 35 रुपये 77 पैसे प्रति लीटर और 482.41 रुपये प्रति सिलेंडर का घाटा उठाना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि डीजल बिक्री पर होने वाले घाटे को खत्म करने के लिए इसकी कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना जरूरी हो गया है। सरकार पहले ही डीजल को आंशिक रूप से नियंत्रण मुक्त कर चुकी है। इस व्यवस्था के तहत बीपीसीएल, एचपीसीएल और इंडियन ऑयल जैसी सरकारी तेल कंपनियों को हर महीने डीजल की कीमत में 50 पैसे प्रति लीटर का इजाफा करने की छूट मिली हुई है।
पूरे देश में एक कीमत पर बिकेगी CNG-PNG
Published on Nov 20, 2013 at 13:39
नई दिल्ली। सीएनजी और पीएनजी गैस का इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं को अब पूरे देश में सीएनजी और पीएनजी एक समान कीमत पर उपलब्ध होगी। गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने प्राकृतिक गैस को देश भर में एक समान कीमत पर बेचने का निर्देश दिया है। यह सरकारी आदेश पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ओर से जारी किया गया है।
अभी तक केवल दिल्ली और मुंबई को सस्ते भाव पर सीएनजी और पीएनजी गैस दी जाती थी। जबकि दूसरे शहरों में इसकी कीमत ज्यादा रखी गई थी। गुजरात उच्च न्यायालय ने 25 जुलाई को अपने फैसले में अहमदाबाद के सिटी गैस डिस्ट्रीब्यूशन प्रोजेक्ट को भी दिल्ली और मुंबई में लागू दरों पर गैस देने के आदेश दिया था। उच्चतम न्यायालय ने भी इस फैसले को सही ठहराया था, लेकिन इसके बाद भी सस्ती दर पर गैस नहीं दी जा रही थी। जिसपर अदालत की सख्ती आने के साथ ही सरकार की ओर से यह आदेश जारी किया गया है।
http://khabar.ibnlive.in.com/karobar/
भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में पुनर्गठन की तैयारी: फिच
नई दिल्ली : रेटिंग एजेंसी ने गुरुवार को कहा कि भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में पुनर्गठन की तैयारी है क्योंकि वित्तीय स्थिति बेहतर करने के लिए कई कमजोर और छोटी कंपनियों का अधिग्रहण या फिर विलय किया जाएगा।
फिच रेटिंग्स ने एक बयान में कहा कि हमारा मानना है कि दीर्घकालिक स्तर पर भारत सिर्फ छह मुनाफे वाली मोबाइल कंपनियों को समर्थन प्रदान कर सकता है . भारतीय दूरसंचार कंपनियां विलय और अधिग्रहण दिशानिर्देश में ढील दिए जाने का इंतजार कर रही है। हमारा मानना है कि दिशानिर्देश की घोषणा इस साल अंत तक हो जाएगी।
एजेंसी ने कहा कि विलय एवं अधिग्रहण विशेष तौर पर स्पेक्ट्रम अधिग्रहण संबंधी दिशानिर्देश पर स्पष्टता की कमी के कारण भारत में अब तक पुनर्गठन की प्रक्रिया रूकी हुई है। फिच ने कहा कि सिर्फ शीर्ष तीन से चार कंपनियों को मुनाफा हो रहा है जबकि शेष कंपनियों को परिचालन नुकसान हो रहा है। (एजेंसी)
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आम आदमी पार्टी का घोषणापत्र जारी: बिजली दर होगी आधी 6 comments
मुद्रास्फीति घटकर पांच प्रतिशत से नीचे आएगी : चिदंबरम
Last Updated: Thursday, November 21, 2013, 16:28
वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने आज उम्मीद जताई कि सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक की पहल के मद्देनजर मुद्रास्फीति पांच प्रतिशत से नीचे आ जाएगी।
एयर इंडिया की दिल्ली-कोच्चि मार्ग पर नई विमान सेवा शुरू
Last Updated: Thursday, November 21, 2013, 16:20
एयर इंडिया ने दिल्ली-कोच्चि के बीच एक नयी विमान सेवा शुरू की है। एयर इंडिया से जुड़े सूत्रों ने बताया कि फ्लाइट ए-1477.478 दिल्ली-कोच्चि-दिल्ली विमान दिल्ली से रोजाना 13.00 बजे उड़ान भरकर 15.55 बजे कोच्चि पहुंचेगी।
तीसरी तिमाही भारत के लिए बेहतर रहेगी : विश्व बैंक
Last Updated: Thursday, November 21, 2013, 16:09
विश्व बैंक के अध्यक्ष जिम यंग किम ने कहा है कि भारत के लिए तीसरी तिमाही बेहतर रहने की उम्मीद है। किम की यह राय बहुत हद तक वित्त मंत्री पी. चिदंबरम के विचार से मेल खाती है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अब सुधर रही है।
21 हवाई अड्डों पर सैटेलाइट निगरानी प्रणाली
Last Updated: Thursday, November 21, 2013, 16:05
देश के 21 हवाई अड्डों पर एक कम लागत की सैटेलाइट निगरानी प्रणाली लगाई गई है, जिससे नियंत्रक ज्यादा बेहतर और ठीक तरीके से विमानों की जानकारी रख सकेंगे।
सार्वजनिक उपक्रमों को और स्वायत्तता की जरूरत : पीएम
Last Updated: Thursday, November 21, 2013, 15:21
सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को ज्यादा प्रतिस्पर्धी बनाने की अपील करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिह ने आज कहा कि सरकारी कंपनियों को कामकाज में ज्यादा स्वायत्तता देने और नौकरशाही के नियंत्रण से मुक्त करने की जरूरत है।
भारत निवेश के लिहाज से सुरक्षित जगह : चिदंबरम
Last Updated: Thursday, November 21, 2013, 15:00
वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने आज भारतीय प्रवासी समुदाय को भरोसा दिलाते हुए कहा कि उनका देश निवेश के लिहाज से सुरक्षित स्थान है।
एक व्यक्ति पर दांव, क्या सत्ता में लौटेगा एनडीए!
प्रकाशित Thu, नवम्बर 21, 2013 पर 18:45 | स्रोत : CNBC-Awaaz
प्रिंट
क्या 2014 में बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए गठबंधन की सत्ता में वापसी का इंतजार खत्म होगा। वैसे तो ऐसे कयास लगाने के लिए राजनीति में 6 महीना लंबा वक्त होता है। लेकिन अबतक जो घटनाक्रम बने हैं, उससे लग रहा है कि बीजेपी की उम्मीद में संभावनाएं हैं। एनडीए के लिए 10 साल के बाद फिर दिल्ली दरबार में वापसी होने की संभावना बनी है। और बीजेपी के लिए तुरूप का पत्ता साबित होंगे नरेन्द्र मोदी जिसपर पार्टी ने सारा दांव लगा रखा है।
नमो नमो चुनावी महाभारत में बीजेपी का ये जीत का मंत्र है। नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस की उम्मीदें अगर बीजेपी से हैं तो बीजेपी की सारी आस नरेन्द्र मोदी पर टिकी है। चुनाव से करीब 8 महीने पहले प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर गुजरात के मुख्यमंत्री को पेश करके बीजेपी लीडरशिप ने अपना इरादा साफ कर दिया। चुनावी लड़ाई में मोदी उसके योद्धा भी हैं और हथियार भी।
नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाता था कि गुजरात में उन्होंने बीजेपी के पुरो नेताओं को, आरएसएस और वीएचपी कार्यकर्ताओं को सबको दरकिनार कर दिया। बावजूद इसके आरएसएस ने 2014 चुनाव के लिए नरेंद्र मोदी पर ही अपना दांव लगाया। शायद आरएसएस को ये भरोसा है कि नरेंद्र मोदी उनके साथ तालमेल के साथ काम करेंगे।
नरेंद्र मोदी के नाम पर आरएसएस की मुहर के बाद लालकृष्ण आडवाणी जैसे बीजेपी के सीनियर नेताओं का विरोध भी दबकर रह गया। यही नहीं नरेंद्र मोदी की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता और पार्टी नेतृत्व के बदले मिजाज को लालकृष्ण आडवाणी जी समझ गए हैं। अब वो चुनावी सभाओं में नरेंद्र मोदी के साथ दिख रहे हैं, उनकी तारीफ भी कर रहे हैं।
वोट खींचने में मोदी का करिश्मा कितना काम करेगा ये कहना अभी मुश्किल है। लेकिन उनकी सभाओं में जो भीड़ जुट रही है उससे साफ है कि गुजरात के बाहर भी उनकी लोकप्रियता बढ़ी है। यानी राष्ट्रीय स्तर पर उनको लोग स्वीकार कर रहे हैं सुन रहे हैं, इसलिए तो नरेंद्र मोदी के नाम पर रिस्क रिवॉर्ड रेश्यो बीजेपी के पक्ष में जाता है। यानी जोखिम कम है फायदा ज्यादा।
नरेंद्र मोदी फैक्टर अगर देश में नंबर वन टॉकिंग प्वाइंट बन गया है तो ये नहीं भूलना चाहिए कि करीब 10 साल से सरकार चला रही यूपीए सरकार के परफॉर्मेंस ने भी विपक्ष का काम काफी आसान कर दिया है। नरेंद्र मोदी के आलोचक कहते हैं कि बीजेपी का सबसे बड़ा दांव उलटा भी पड़ सकता है। क्योंकि नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी कमी ये बताई जाती है कि वो सबको साथ लेकर चलनेवाली राजनीति नहीं करते। शायद इसलिए अपनी इस छवि को बदलने के लिए आजकल नरेंद्र मोदी रैलियों में सहयोगी नेताओं का नाम लेना नहीं भूलते।
नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी चुनौती है परफॉर्म करने की। बीजेपी और उसके सहयोगियों ने उनसे सचिन तेंडुलकर जैसे परफॉर्मेंस की उम्मीद लगा रखी है। ऊपर से वो हिंदुत्व कार्ड भी खुलकर नहीं खेल सकते। क्योंकि उन्हें लोगों से ज्यादा पार्टियों के बीच अपनी स्वीकार्यता बढ़ानी है। क्योंकि माना जा रहा है कि चुनाव के बाद बीजेपी को इसकी ज्यादा जरूरत पड़ेगी। सवाल ये है कि क्या नरेंद्र मोदी ये बैलेंस बना पाएंगे।
शुरुआत करते हैं उन बातों से जो नरेंद्र मोदी के हक में जाती हैं। नरेंद्र मोदी काम करनेवाले नेता के तौर पर जाने जाते हैं। बीजेपी भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रही है। यूपीए को इससे कोई क्लीनचिट नहीं दे सकता। पर इस बारे में बीजेपी का अपना रिकॉर्ड भी बेदाग नहीं है। लेकिन नरेंद्र मोदी का खुद का ट्रैक रिकॉर्ड इस मामले में साफ सुथरा है।
दूसरा है वो नए दौर की बात करते हैं। उसके लिए काम करते दिखते हैं। लोग उनकी बातों पर यकीन भी कर रहे हैं। उनके पास तरक्की की कहानी सुनाने के लिए गुजरात मॉडल है। कॉरपोरेट इंडिया नरेंद्र मोदी का मुरीद बन चुका है। वाइब्रैंट गुजरात हो या उद्योग संगठनों के इवेंट, कॉरपोरेट के दिग्गज नरेंद्र मोदी को संजीदगी से सुनते हैं। नरेंद्र मोदी उन नेताओं में गिने जाते हैं जो फैसले लेने में देरी नहीं करते। ये फटाफट अंदाज इंडस्ट्री को पसंद आता है। ऐसे दौर में और भी जब फैसले टल रहे हों, प्रोजेक्ट अटके पड़े हों।
नरेंद्र मोदी अपने मजबूत पक्ष को भी जानते हैं और कमजोर कड़ी को भी। इसलिए वो उस हिंदू कार्ड को खेलने से अबतक बचते रहे हैं जो उन्हें खास समुदाय से दूर तो करेगा ही, चुनाव के बाद दूसरी पार्टियों को भी असहज बना सकता है। इसलिए मनमोहन सरकार और सोनिया गांधी और राहुल गांधी उनके टारगेट पर रहते हैं। साम्प्रदायिकता फैलाने के जो आरोप उन पर लगते रहे हैं वो अब उसे कांग्रेस पर हमले के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं।
हालांकि कुछ बातें दिमाग से ज्यादा दिल से जुड़ जाती हैं। गुजरात के दंगे नरेंद्र मोदी के पॉलिटिकल करियर का ऐसा ही स्याह दाग हैं। सहूलियत के हिसाब से उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी इसे उठाते भी रहते हैं। और नरेंद्र मोदी के राजनीतिक सफर पर करीबी नजर रखनेवाले पॉलिटिकल कमेंटेटर भी ये मानते हैं कि चुनाव से पहले राजनीति में साम्प्रदायिकता एंट्री ले सकती है। मुजफ्फरनगर दंगों को वो उसका एक ट्रेलर मानते हैं।
नरेंद्र मोदी की रैली में लोगों के भीड़ से ये कहा जा सकता है कि आम जनता में उनकी लोकप्रियता बढ़ रही है। जो भीड़ आ रही है वो सिर्फ तमाशबीनों की नहीं हो सकती। लेकिन इसे वोट में तब्दील करने की चुनौती होगी। नरेंद्र मोदी के आने के बाद चुनावी सर्वेक्षणों में बीजेपी को बढ़त दिख रही है। लेकिन अभी तक वो निर्णायक नहीं है। क्योंकि अगर बीजेपी को एक सम्मानजनक जीत चाहिए तो कम से कम उसे पिछले चुनाव के मुकाबले 12 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करना होगा। 180 से ज्यादा सीटों तो नए पार्टनर को जोड़ने में परेशानी भी कम होगी, समझौते भी कम करने होंगे।
नरेंद्र मोदी का फायदा बीजेपी को मिलता दिख रहा है। हाल के एक सर्वे में एनडीए को 186 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है। वैसे भी यूपीए सरकार से वोटरों का एक बड़ा तबका उकता गया है जो बदलाव चाहता है। ये सीएनएन आईबीएन सीएसडीएस के पोल से भी जाहिर होता है। पर ये नंबर वो नहीं हैं जो सरकार बना लेने की गारंटी देते हों। आखिर सीटों का वो नंबर क्या होगा जिसके बाद बीजेपी की सत्ता में वापसी का रास्ता साफ हो जाएगा।
बीजेपी को अगर अबतक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना है तो उसे अपने गिरते वोट शेयर को संभालना होगा। पिछले चुनाव में 18 फीसदी पर सिमट गई बीजेपी को वोट शेयर में जबर्दस्त बढ़ोतरी करनी पड़ेगी। नरेंद्र मोदी का करामात का इम्तिहान इसी में है कि वो कैसे कांग्रेस और दूसरी पार्टियों से तोड़कर बीजेपी के लिए नए वोटर जोड़ते हैं। इसके लिए जरूरी है कि बीजेपी उन राज्यों में बड़ी जीत हासिल करे जहां उसकी सरकार है। और उन राज्यों में अपना जनाधार वापस हासिल करे जहां उसकी मौजूदगी रही है।
http://hindi.moneycontrol.com/mccode/news/article.php?id=90841
तहलका संपादक तरुण तेजपाल ने दिया इस्तीफा
प्रकाशित Thu, नवम्बर 21, 2013 पर 15:58 | स्रोत : CNBC-Awaaz
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यौन शोषण के आरोप में तहलका के संपादक तरुण तेजपाल ने 6 महीने के लिए पद छोड़ दिया है। तरुण तेजपाल पर आरोप है कि 7 और 10 नवंबर को गोवा के एक फाइव स्टार होटल में तेजपाल ने महिला कर्मचारी के साथ बदसलूकी की थी। इस घटना के बाद गोवा में बीजेपी सरकार ने जांच तेज कर दी है और फिलहाल उस फाइव स्टार होटल के सीसीटीवी फुटेज की जांच की जा रही है।
वहीं खुद तरुण तेजपाल ने इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए अपनी गलती मानी है। उन्होंने अपनी चिट्ठी में लिखा है कि मैंने संबंधित पत्रकार से अपने बुरे व्यवहार के लिए माफी मांग ली है। और इसलिए मैंने तहलका के संपादक पद से और तहलका के दफ्तर से 6 महीने के लिए खुद को दूर करने का फैसला लिया है।
वहीं इस मामले में बीजेपी ने तरुण तेजपाल की गिरफ्तारी की मांग है जबकि महिला आयोग इस घटना पर संज्ञान लेगा।
बैंकों के कामकाज पर आरबीआई की रिपोर्ट
प्रकाशित Thu, नवम्बर 21, 2013 पर 17:10 | स्रोत : CNBC-Awaaz
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आरबीआई ने बैंकों के कामकाज पर आज रिपोर्ट जारी की हैं। आरबीआई की वित्त वर्ष 2013 के बैंकिंग सेक्टर के रिपोर्ट में ये बात सामने आई है कि दूसरे साल भी बैंको की ग्रोथ में कमी आई है। बैंकों के कर्ज देने की रफ्तार घटी है, लेकिन रिटेल कर्ज में बढ़ोतरी देखने को मिली है। कर्ज की मांग घटने से बैंकों के मुनाफे पर असर दिख सकता है।
आरबीआई के मुताबिक बैंकों का ग्रॉस एनपीए 3.1 फीसदी से 3.6 फीसदी रहा। एसबीआई ग्रुप का एनपीए सबसे ज्यादा बढ़ा है। कर्ज की रीस्ट्रक्चरिंग बढ़कर 5.8 फीसदी हुई है। सरकारी बैंकों में रीस्ट्रक्चरिंग बढ़कर 8.3 फीसदी हुई है। स्टील और इंफ्रास्ट्रक्चर कंपनियां सबसे ज्यादा मुश्किल में नजर आ रही हैं। इंफ्रास्ट्रक्चर को दिए कर्ज में सबसे ज्यादा कमी आई है। सबसे ज्यादा कर्ज रियल एस्टेट को दिया गया है।
आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑटो लोन और क्रेडिट कार्ड पर खर्च बढ़ा है। विदेशी बैंकों के खिलाफ सबसे ज्यादा शिकायतें मिली हैं। शिकायत के मामले में प्राइवेट सेक्टर बैंक दूसरे नंबर पर हैं।
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