कंपनियां खोलना नहीं चाहतीं पार्टियों को दिए चंदे का राज।क्यों?
Don't Make Us Name Parties We Fund: India Inc to Govt
परमाणु ऊर्जा विरोधी सम्मेलन, एक दिसंबर को भोपाल में
पलाश विश्वास
अगले लोकसभा चुनाव में जनादेश निर्माण प्रक्रिया में धर्मोन्मादी युद्धक राष्ट्रवाद को हम सारे लोग ध्रूवीकऱण का मुख्य कारक मान रहे हैं और मीडिया कबरों सर्वेक्षणों को जरिये भी यही चुनावी समीकरण साधा जा रहा है।परदे के पीछे लेकिन कुछ अलग खेल चल रहा है।सारा दारोमदार रिलायंस जैसी कंपनियों के हितों को साधन की प्रतिद्वंद्विता पर है।
सीधा मतलब यह है कि धर्मोनमादी पैदल सेनाएं चाहे कुरुक्षेत्र में मोर्चा बंद हो गयी हैं,लेकिन असली युदध तो लड़ रहे हैं आधुनिक श्रीकृष्ण मुकेश अंबानी।
पहले मोदी का खुला समर्थन करने से घबड़ायी सत्ता ने रिलायंस पर लगाम कसने के लिए उस पर जुर्माना ठोंक दिया। अब रिलायंस को पटाने के लिए पूरी अर्थव्यवस्था का भट्टा बैठाकर आम वोटरों के मत्थे पर मताधिकार का प्रयोग करने से पहले मुद्रास्फीति, मंहगाई और गिरती वित्तीयदर का त्रिशुल ठोंकते हुए गैस की कीमतों में वृद्धि की जा रही है।पंक्तिबद्ध जो जनता आदार पहचान हासिल करके नाटो के ड्रोन कार्यक्रम में अपना अपना बायोमेट्रिक डाटा फीड कराने के लिए बेताब है,उनके लिए बुरी खबर यह है कि चाहे जीते कांग्रेस या चाहे भाजपा,सुधारों को और तेज होना है।हर तरह की सब्सिडी अगले बजट में ही खत्म हो जानी है।हर क्षेत्र में मसलन रक्षा,मीडिया,खुदरा कारोबार, कृषि, बीमा, पेंशन,पीएफ इत्यादि में प्रत्यक्ष विदेशी पूंजी निवेश की हदें पार होनी हैं।हर सरकारी कंपनी यानी एलआईसी,भारतीय स्टेट बैंक,ओएनजीसी,पोर्टट्रस्ट,रेलवे,डाक, एअर इंडिया,आदि का विनिवेश खुलकर होना है डंके की चोट पर।सारी स्थाई नौकरियों के साथ सभी तरह का आरक्षण और कोटा खत्म होने वाला है।सारे पर्यावरण,श्रम कानून बदल दिये जाने हैं।विदेशी बैंकों और निजी क्षेत्र के औद्योगिक घरानों के हवाले होनी है बैंकिंग। सारी सेवाएं परचेजएबिल होंगी।इंफ्रा बूम में देश के सारे खेत समाहित होंगे।स्त्रियों को सेक्स गुड़ियों में तब्दील किया जाता रहेगा और स्कूलों में ग्रुप सेक्स फैशन बन जायेगा। बेलगाम बेरोजगारी और बेइंतहा बेदखली की वजह से अपराध संस्थागत हो जायेगा। लोकतंत्र,संविधान,कानून का राज,लोक गण राज्य,मौलिक अधिकार, नागरिक अधिकार,मानवाधिकार,अभिव्यक्ति और माध्यम ये सारे शब्द निरर्थक होंगे।आप बतौर नागरिक बायोमेट्रिक रोबोट होंगे,जिन्हें आत्महत्या करने की इजाजत भी नहीं होगी।
इंडिया इंक के विकल्प कोई अकेले नरेंद्र मोदी नहीं है और न राहुल गांधी हैं।ममता बनर्जी से लेकर मुलायम सिंङ तक अनेक विकल्प हैं। सबको पूरे संसाधन दे रही है कारपोरेट और बहुराष्ट्रीय कंपनियां,विदेशी चंदा की सुनामी है।अब इंडिया इंक कंपनी कानून में भी छूट का दबाव बना रही हैं कि किस पार्टी को कितना चंदा दिया इसका खुलासा कतई न किया जाये।यानी जनादेश निर्माण में भारतीय जनता ने कोई अनचाहा फेरबदल कर दिया तो उनके कारोबारी हित सत्ताबदल के बाद भी सुरक्षित रहें।
कंपनियां खोलना नहीं चाहतीं पार्टियों को दिए चंदे का राज
इकनॉमिक टाइम्स | Nov 28, 2013, 02.24PM IST
शुभम बत्रा, नई दिल्ली
इंडिया इंक ने सरकार को मेसेज दिया है कि कंपनियों को यह बताने को मजबूर न किया जाए कि उन्होंने किस राजनीतिक दल को चंदा दिया है। इसकी वजह यह है कि इंडस्ट्री इस बात को लेकर चिंतित है कि राजनीतिक फंडिंग का पूरा खुलासा होने से पार्टियां कुछ कंपनियों के साथ भेदभाव बरत सकती हैं। प्रस्तावित नए कंपनी ऐक्ट में पॉलिटिकल फंडिंग के बारे में बताने का प्रावधान है।
ईटी ने जिन कंपनियों से बात की, उनमें से कोई भी इस मामले पर ऑन-रिकॉर्ड बोलने को राजी नहीं हुई। प्राइवेट सेक्टर के कई दिग्गजों ने कहा कि कंपनी फंड्स हासिल करने वाली किसी भी पार्टी का नाम बताने में थोड़ा-सा रिस्क है। एक एग्जेक्युटिव ने कहा हमारे जैसी उतार-चढ़ाव वाले लोकतांत्रिक देश में यह जोखिम भरा है।
कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (सीआईआई) ने सरकार को लिखकर गुहार लगाई है कि वह नए कंपनीज ऐक्ट के सेक्शन 182 (3) में बदलाव करे। इस सेक्शन में कहा गया है कि कॉरपोरेट्स को उन पॉलिटिकल पार्टियों के नामों का खुलासा अपने प्रॉफिट ऐंड लॉस अकाउंट में करना होगा, जिन्हें वे चंदा देते हैं। इसके लिए रेप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल ऐक्ट, 1951 के सेक्शन 29 ए के तहत रजिस्टर्ड इकाइयों को पॉलिटिकल पार्टियों के तौर पर परिभाषित किया गया है।
सेक्शन 182 (3) के मुताबिक, 'हर कंपनी को अपने प्रॉफिट्स ऐंड लॉस अकाउंट में किसी भी पॉलिटिकल पार्टी को दी गई रकम का खुलासा करना होगा। इसमें कुल दी गई रकम और पार्टी का नाम बताना होगा।' कंपनीज लॉ के पिछले कानूनों में कंपनियों को सिर्फ लोगों का नाम बताना था, इसलिए ज्यादातर कंपनियां पार्टी का नाम नहीं बताती थीं।
एक सीनियर एग्जेक्युटिव ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, 'इस तरह का क्लॉज हमें पॉलिटिकल पार्टियों के साथ एक अजीब स्थिति में खड़ा कर देगा।' सीआईआई के डायरेक्टर जनरल चंद्रजीत बनर्जी ने ईटी को इस बात की पुष्टि की कि सरकार के सामने इंडस्ट्री संगठन ने इस बारे में अपनी बात रखी है।
सीआईआई चाहता है कि इस क्लॉज को नॉन-ऑब्लिगेटरी बनाया जाए। एमसीए के एक अधिकारी ने ईटी को बताया कि मिनिस्ट्री को एक रेप्रेजेंटेशन मिला है लेकिन चूंकि ऐक्ट के नियम अभी बनाए जा रहे हैं, ऐसे में इस बारे में अभी कोई फैसला नहीं लिया गया है। अधिकारी ने कहा कि वह अपनी पहचान को जाहिर नहीं करना चाहते क्योंकि यह मामला काफी संवेदनशील है। रूल्स कमिटी इस मामले को देख रही है।
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कंपनी अधिनियम, 1956 - विकिपीडिया
hi.wikipedia.org/wiki/कंपनी_अधिनियम,_1956
कंपनी अधिनियम वह अति महत्वपूर्ण विधान है जो केन्द्र सरकार को कम्पनी के गठन और कार्यों को विनियमित करने की शक्ति प्रदान करता है। भारत की संसद द्वारा १९५६ मे पारित किया गया था। इसमें समय-समय पर संशोधन किया गया। ये अधिनियम कम्पनियों के ...
कंपनी कानून - Business.gov.in
business.gov.in › ... › कानूनी ढांचे
कारपोरेट कार्य मंत्रालय भारतीय नैगम क्षेत्र में नैगम शासन के दक्ष, पारदर्शी तथा जवाबदेह स्वरूप को विनियमित तथा संवर्धित करने के लिए मुख्य प्राधिकरण है। यह निरंतर विधायी ढांचे तथा प्रशासनिक संघटन में सुधार के लिए कार्यरत है ताकि ...
कंपनी कानून का सख्त है मजमून - होम - Business Standard
आखिरकार साल के आखिर में कंपनी बिल 2012 को लोकसभा में पारित कर दिया गया और अब इसे राज्य सभा से मंजूरी मिलने का इंतजार है। संसद के उच्च सदन से मंजूरी मिलने के बाद इसे अधिसूचित करने और नए कानून के तौर पर लागू करने की जटिल प्रक्रिया शुरू ...
नए कंपनी कानून से बढ़ेगी M&A डील, इक्विटी ...
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Aug 16, 2013 - New Companies Bill to make M&A easier for companies, empower private equity investors नए कंपनी बिल से एक्विजिशन, मर्जर और रीस्ट्रक्चरिंग आसान हो जाएगा। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे प्राइवेट इक्विटी इन्वेस्टर्स को कई...
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Sep 9, 2013 - नए कंपनी कानून को लागू करने की दिशा में पहल करते हुए सरकार ने आज इस नए कानून के विभिन्न प्रावधानों के लिए विस्तृत मानदंडों का मसौदा जारी किया।
नया कंपनी कानून - अन्य हिन्दी ख़बरें
Aug 9, 2013 - नया कंपनी कानून homepage on NDTVKhabar.com Find Hindi News articles about नया कंपनी कानून. नया कंपनी कानून News, Photos, Video & More न्यूज़, ताज़ा ख़बर on NDTV India, NDTVKhabar.com.
नए कंपनी कानून में निवेशकों को पहले से अधिक ...
zeenews.india.com/...कंपनी-कानून.../179447
Sep 9, 2013 - विशेषज्ञों के अनुसार नए कंपनी कानून में निवेशकों की सुरक्षा और उनके धन के समुचित उपयोग के बारे में बेहतर प्रावधान किये गये हैं। विधेयक के प्रावधान के अनुसार निवेशकों से जुटाई गई राशि को यदि कंपनी दूसरे काम में इस्तेमाल ...
नया कंपनी कानून आर्थिक वृद्धि में होगा सहायक - होम
Aug 9, 2013 - कंपनी सचिवों के संस्थान ने संसद में पारित नये कंपनी विधेयक का स्वागत करते हुये इसे आधुनिक, वृद्धि बढ़ाने वाला और भविष्य पर दृष्टि रखते हुये तैयार किया गया बताया।
आखिर बदला कंपनी कानून | PrabhatKhabar.com : Hindi News ...
Aug 12, 2013 - कंपनी अधिनियम, 1956 को बदल कर एक नया कंपनी कानून बनाने की कवायद पिछले करीब दो दशकों से चल रही थी. बीते 8 अगस्त को राज्यसभा द्वारा पारित किये जाने के बाद कंपनी अधिनियम, 2013 का रास्ता साफ हो गया है. कहा जा रहा है कि बदले ...
नई कंपनी कानून का दृष्टिकोण - कारपोरेट कार्य ...
उदाहरण के लिए कुछ क्षेत्रों में परिसंघ बनाने वाली कंपनियां अपने स्वयं के स्वतंत्र कंपनी कानून बनाती है। इस प्रकार की परिस्थिति में पूंजी बाजार विनियामक, सामान्य मानदंडों के आधार पर देश की लंबाई और चैड़ाई के क्षेत्रों में कारपोरेट ...
इसके बावजूद नहीं समझे,तो आपको अपने अपने ईश्वर और अपने अपने अवतार मसीहा की भेड़ धंसान में निर्विकल्प अनंत समाधि मुबारक।
News for Corporate funding for political parties India
- Economic Times - 4 hours agoSuch a clause will put us in a discomfiting position vis a vis political parties," a senior industry executive said, on the condition of anonymity.
- Times of India - 4 hours ago
- Firstpost - by Lakshmi Chaudhry - 1 hour ago
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India Inc plays safe; prefers lawful funding of political parties ...
- [PDF]
13-8-12 editorial - Election Commission of India
Fund political parties and get tax benifits, 'Electoral ... - India Today
Inside story: How political parties raise money - Yahoo News India
in.news.yahoo.com/inside-story--how-political-parties-raise-money-0914...Who funds India's political parties? Report says most donors ...
Clean Politics demands No Corporate Funding to Political Parties ...
- [PDF]
Reforming India's Party Financing and Election Expenditure Laws
by MVR Gowda - 2012 - Cited by 4 - Related articlescorporate donations to political parties was not accompanied by state funding as a substitute for corporate funds. This tended to greatly increase pol-. -
Corporate funds to parties should be transparent - Rediff.com ...
Audit corporate funding to political parties: CEC - The Hindu
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Times of India-2 hours ago Why India Inc's 'secrecy' demand for political donations is outrageous Firstpost-33 minutes ago
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Faisal Anurag
महात्मा फुले की परंपरा को आगे ले जाने के संकल्प का दिन है आज. आज की चुनौतियां बेहद ज़टिल हैं और एक क्रांतिकारी बदलाव् के संघर्ष को अंजाम तक पहुंचाया जाना ज़रुरी है. बीच के राहत भरे रास्तों से दलितों और अन्य वंचितों की सत्ता की स्थापना संभव नहीं है , जिसमे सत्ता,समप्ति और ज्ञान के एकाधिकार खत्म हों और विश्व के राजनीतिक संतुलन भी बदले.
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The Economic Times
IN PICS: These political cartoons will have you in splits! See herehttp://ow.ly/rdODk
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BBC World News
China says it closely monitored two American bombers that flew across its newly-declared air defence zone.
The zone includes the disputed islands in the East China Sea.
The United States said the mission was a routine training flight but#China was not informed in advance. The full story is here;http://bbc.in/1bUhYXx...See More
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BBC World News
In #Thailand anti-Government protesters have tried to take control of state offices.
The protesters have forced the evacuation of the top crime fighting government building - The Department of Special Investigations.
It's the fourth day of street demonstrations in the capital Bangkok....See More
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Economic and Political Weekly
Review of Urban Affairs: Is Public Interest Litigation an Appropriate Vehicle for Advancing Road Safety?
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Amitabh Bachchan
FB 412 - With my Father the entire day ... parents will and shall remain ever with you ..even when their body leaves you ..
Unlike · · Share · 18,039653306 · 12 hours ago ·
Sanhati
Recently, in the face of volatile price conditions, a rumour spread across Bihar and Northeastern states that salt is in short supply. This led to panic buying and acute shortage, triggering huge price rise of salt. Statement by North-East Forum for International Solidarity (NEFIS) on the chaotic state of affairs.
http://sanhati.com/articles/8591/
Manipur: Press Statement on Recent Salt Panic at Sanhati
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Bijan Hazra shared Apdr Howrah Sadar's photo.
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Rajesh Mc shared a link.
പെരുവണ്ണാമൂഴി സെക്സ് റാക്കറ്റ്; പോലീസ് ഉന്നതനെതിരെ പെണ്കുട്ടിയുടെ മൊഴി
Gowthama Meena with Vinoth Tr
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आज क्रांतीसुर्य महात्मा जोतीबा फुलेंची स्मरण दिवस जोतिराव फुले जन्म: इ.स. १८२७ कटगुण, सातारा ,महाराष्ट्र मृत्यू: नोव्हेंबर २८ , इ.स. १८९० पुणे, महाराष्ट्र वडील: गोविंदराव आई: चिमणाबाई पत्नी: सावित्रीबाई फुले महात्मा जोतिबा फुले (इ.स. १८२७ - नोव्हेंबर २८ , इ.स. १८९०) हे मराठी , भारतीय समाजसुधारक होते. बालपण त्यांचे मूळ गाव - कटगुण (सातारा) होते. गोऱ्हे हे त्यांचे मूळ आडनाव. कटगुणहून ते पुरंदर तालुक्यातील खानवडी येथे आले. तेथे त्यांचे घर असून, त्यांच्या नावे सातबाराचा उतारा आहे. खानवडी येथे फुले व होले आडनावाची बरीच कुटुंबे आहेत. जोतिबांच्या वडिलांचे नाव गोविंदराव आणि आईचे नाव चिमणाबाई होते. जोतिरावांनी त्यांच्या पत्नी सावित्रीबाईंना शिक्षण देऊन शिक्षणकार्यास प्रवृत्त केले. शाळेच्या मुख्याध्यापकपदीआरूढ झालेली भारतातील पहिली महिला म्हणजे सावित्रीबाई. त्याचप्रमाणे स्वतंत्रपणे फक्त स्त्रियांसाठी शाळा काढणारे महात्मा फुले पहिले भारतीय होत. तुकारामाच्या अभंगांचा त्यांचा गाढा अभ्यास होता. अभंगांच्या धर्तीवर त्यांनी अनेक 'अखंड' रचले. त्यांना सामाजिक विषमतेचे जागतिक भान होते. आपला 'गुलामगिरी' ग्रंथ अमेरिकेतील कृष्णवर्णीयांनात्यांनी समर्पित केला. 'अस्पृश्यांची कैफियत' हा महात्मा फुलेंचा अप्रकाशित ग्रंथ आहे. सार्वजनिक सत्यधर्म हा त्यांचा ग्रंथ त्यांच्या मृत्यूनंतर इ.स. १८९१ मध्ये प्रकाशित झाला. सप्टेंबर २३, इ.स. १८७३ रोजी महात्मा फुले यांनी सत्यशोधक समाजाची स्थापना केली. पुरोहितांकडून होणाऱ्या अन्यायापासून, अत्याचारापासून व गुलामगिरीतून तथाकथित शूद्रातिशूद्र समाजाची मुक्तता करणे व त्यांना हक्काची जाणीव करून देणे हे सत्यशोधक समाजाचे ध्येय होते जय भिम ------
Afroz Alam SahilBeyondHeadlines
सुकमा जिले की कवासी हिड़मे के साथ थाने में पुलिस वालों ने सामूहिक बलात्कार किया. और उसे नक्सली कह कर जेल में डाल दिया. इस दौरान पुलिस वालों ने कवासी हिड़मे को इतनी बुरी तरह यौन प्रतारणा दी कि हिड़मे का गर्भाशय बाहर आ गया. हिड़मे अपनी योनी से बाहर निकल आये मांस के उस टुकड़े को जेल में दूसरी महिलाओं से ब्लेड मांग कर काट कर फेंकना चाहती थी. जेल की दूसरी महिलाओं के शोर मचाने पर हिड़मे को सरकारी अस्पताल में ले जाया गया जहां हिड़मे का इलाज हुआ... पढ़िए कवासी हिड़मे की दर्दनाक कहानी... और उसकी रिहाई के लिए इस पोस्ट को अधिक से अधिक शेयर करें.... http://wp.me/p1oJCu-54h
कवासी हिड़मे की दर्दनाक कहानी...
Like · · Share · 22 minutes ago near New Delhi ·
HISTORY
HISTORY IN THE HEADLINES: The Pastry War may sound like a bake-off competition, but it was actually a military conflict sparked in part by an unpaid debt to a French pastry chef. On the 175th anniversary of the war between France and Mexico, look back at the three-month skirmish that cost famed Mexican General Santa Anna his leg.http://histv.co/IfLcsq
Like · · Share · 2,63841459 · 5 hours ago ·
H L Dusadh Dusadh
बहुजन भारत के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती:मध्यम वर्ग का युवा
एच एल दुसाध
मित्रों! आज की शाम एकाधिक कारणों से मैं बहुत अच्छे मूड में था.कई दिनों बाद आज मार्केटिंग के लिए निकला और भयावह महंगाई के दौर में लखनऊ के मुंशी पुलिया के नान-वेज मार्किट से बहुत ही वाजिब रेट में मिल गया बकरे का हेड .कीमत वाजिब देखते हुए मैंने एक नहीं दो हेड,200 रूपये में ले लिए.घर आकार बहुत ही प्रेम से किचेन में उनका शेष कार्य संपन्न करने लगा.किचेन की खुसबू मूड में और इजाफा करने लगी.इस बीच मैंने टीवी चालू कर दिया.मूड अच्छा होने के कारण घीसी -पिटी न्यूज देखने के बजाय फिल्मी चैनेल लगा दिया.हॉलीवुड की मसालेदार फिल्म की तलाश करते-करते एक चैनेल पर मिल बॉलीवुड की हिट फिल्म वेलकम .एकाधिक बार देखी हुई यह फिल्म खासा मनोरंजक लगी थी,इसलिए क्लाइमेक्स पर पहुंची इस फिल्म को देखते रहने का मन बनाया.किचेन में मिट भी क्लाइमेक्स से लगभग 20 मिनट दूर था.टीवी के परदे पर आरडीएक्स बने फिरोज खान का आविर्भाव हो चुका था.वैसे हर बार इस फिल्म में उनका परफोर्मेंस अच...Continue Reading
Like · · Share · 11 hours ago ·
The Economic Times
Being on the wrong side of 40s is no reason not to go to a B-school. Many 40-plus execs go in for MBA to fast-track their career. Read more details here http://ow.ly/rfXBp
Like · · Share · 1271226 · about an hour ago ·
The Economic Times
Continental GT: Take a look at Royal Enfield's Rs 2.05 lakh bike
Like · · Share · 12564 · 9 minutes ago ·
परमाणु ऊर्जा विरोधी सम्मेलन, एक दिसंबर को भोपाल में
परमाणु विरोधी आंदोलन तेज करने के लिए एकजुट हों !
जनता के जबरदस्त विरोध के चलते मध्यप्रदेश के मंडला जिले में चुटका परमाणु संयंत्र के निर्माण के लिए सरकार द्वारा आयोजित तथाकथित जन सुनवाई को पहले मई में और फिर दुबारा जुलाई में रद्द करना पड़ा। परमाणु ऊर्जा विरोधी जन पहल (PIANP) जन आंदोलन की इस जीत को सलाम करता है।
महाराष्ट्र के जैतापुर, गुजरात के मीठीवर्दी, हरियाणा के फतेहाबाद जिले के गोरखपुर,आन्ध्रप्रदेश के श्रीकाकुलम जिले में कोवाड़ा तथा देश के विभिन्न हिस्सों में प्रस्तावित परताणु संयंत्रों के खिलाफ वहां की जनता संघर्षरत है। तथा सरकार द्वारा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के हित में किसी भी कीमत पर इन परमाणु संयंत्रों को लादने के लिए चली जा रही चालों को शिकस्त दे रही है। भारत के प्रधानमंत्री जब सितंबर माह में अमेरिका के दौरे पर गए थे तो उन्होंने परमाणु जवाबदेही कानून को हल्का बनाने के लिए ओबामा प्रशासन के हुक्म के आगे नतमस्तक होने का निर्लज्ज जन-विरोधी आचरण किया था। इसके पीछे उनका मकसद था मीठीवर्दी परियोजना के लिए अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कम्पनी वेस्टिंगहाउस कोपरमाणु रिएक्टर देने के लिए सहमत करना। भारत सरकार द्वारा ऐसे तमाम घृणित आचरण ऐसे समय में किए जा रहे हैं जब फुकुशिमा बिजलीघर हादसे के बाद जनता के जबरदस्त आक्रोश को देखते हुए जापान ने अपने आखिरी (52) परमाणु संयंत्र को भी बंद करने का निर्णय लिया है तथा यूरोप और उत्तरी अमेरिकी के सभी देशों ने सभी चालू परमाणु संयंत्रों को बंद करना शुरू कर दिया है। ऐसा करके विकसित देशों ने एक तरह से यह स्वीकार कर लिया है कि परमाणु तकनीकी के विकास के मौजूदा स्तर तथा परमाणु कचरे को ठिकाने लगाने में आने वाली लागत को देखते हुए परमाणु ऊर्जा व्यवहारिक या सुरक्षित नहीं है। लेकिन परमाणु रिएक्टरों का निर्माण करने वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की मदद करने के लिए अमेरिका, फ्रांस, जापान जैसे साम्राज्यवादी देशों द्वारा भारत जैसे देशों में जहां की सरकार कई तरह से उन पर आश्रित है, परमाणु संयंत्रों को लगाने के लिए चौतरफा दबाव डाला जा रहा है।
पिछले कुछ दशकों का अनुभव बता रहा है, कि पर्यावरण के विनाश का खतरा दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। इसमें दुनिया के गर्म होने ( वैश्विक गरमाहट) की घटना भी शामिल है। यह बात कई बार साबित हो चुकी है, कि विकास के अपने वर्तमान चरण में हमने देखा है कि परमाणु तकनीकी न तो चेर्नोबिल ना ही फुकुशिमा तक परमाणु हादसों से निपटने में सक्षम है और ना ही परमाणु कचरे को सुरक्षित तरीके से ठिकाने लगाया जा सकता है।परमाणु बिजलीघर, यूरेनियम खदान और परमाणु हथियार ये सभी पर्यावरण विनाश को न्योता दे रहे है। ऐसी स्थिति में इसे लेकर चिन्तित सभी लोगों की जो देशभर में परमाणु विरोधी आंदोलनों में सक्रियता से लगे हुए हैं, यह जिम्मेवारी है कि वे एक साथ आएं और सरकार की प्रतिगामी परमाणु नीति का प्रतिरोध करने के लिए देशव्यापी सशक्त आंदोलन छेड़ें। पर्यावरण विनाश के मद्देनजर मानवता के अस्तित्व के लिए संघर्ष में इस आंदोलन को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शक्तिशाली रूप में उभर रहे परमाणु विरोधी और पर्यावरण रक्षक आंदोलन का भी हिस्सा बनाना होगा। आईकोर (क्रांतिकारी पार्टियों एवं संगठनों का अन्तर्राष्ट्रीय समन्वय) ने इस कार्यभार को प्रभावी ढंग से हाथ में लिया है।
इस पृष्ठभूमि में, मध्यप्रदेश में चुटका परमाणु परियोजना का सफलतापूर्वक प्रतिरोध कर रहे प्रगतिशील ताकतों की पहल के आधार पर, परमाणु ऊर्जा विरोधी जन पहल ने देशभर में चल रहे परमाणु विरोधी आंदोलनों को निम्न नारों के आधार पर एकजुट होने का आह्वान किया है।:
1. सभी नव प्रस्तावित परमाणु संयंत्रों को रद्द करो।
2. सभी चालू परमाणु संयंत्रों को बंद करो।
3. वर्तमान में चालू एवं प्रस्तावित यूरेनियम खदानों परा रोक लगाओ।
4. परमाणु हथियारों के खिलाफ और सार्वभौमिक परमाणु निशस्त्रीकरण के लिए संघर्ष करो।
5. वैकल्पिक अक्षय ऊर्जा स्रोतों का विकास करो।
6. जनपक्षीय ऊर्जा नीति समेत विकास का वैकल्पिक प्रतिमान तैयार करो।
परमाणु ऊर्जा विरोधी जन पहल की ओर से हम सभी परमाणु विरोधी आंदोलनों, राजनीतिक संगठनों, समूहों, वैज्ञानिकों एवं प्रगतिशील ताकतों से संपर्क करने और चर्चा करने का प्रयास कर रहे है, ताकि उपरोक्त नारों के आधार पर एकता कायम की जा सके। इस उद्देश्य से भोपाल में 1 दिसंबर 2013 को एक सम्मेलन का आयोजन किया गया है। जैसा कि आप जानते है कि भोपाल में 2-3 दिसंबर 1984 की दरम्यानी रात बहुराष्ट्रीय कंपनी, यूनियन कार्बाइड से जहरीली गैस रिसाव का हादसा हुआ है। यह सम्मेलन उसकी 29वीं वर्षगांठ के ठीक पहले आयोजित किया गया है।
हम सभी प्रगतिशील ताकतों से अनुरोध करते हैं कि इस सम्मेलन को सफल बनाने के लिए आगे बढ़कर सहयोग करें, ताकि संप्रग सरकार और परमाणु प्रतिष्ठानों के नौकरशाहों के प्रतिगामी कदमों का करारा जवाब दिया जा सके, जो जनता पर परमाणु संयंत्रों को लादने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि सभी तथाकथित विकसित देशों द्वारा मौजूदा संयंत्रों को भी बंद किया जा रहा है।
1 दिसंबर को भोपाल में यह एक दिवसीय सम्मेलन गांधी भवन में सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक आयोजित किया गया है। सम्मेलन की विस्तृत जानकारी के लिए कृप्या स्वागत समिति के सह-संयोजक (विजय कुमार-9981773205 , खुमेन्द्र कुमार-9993700564) से संपर्क करें।)
छलावा है अर्थव्यवस्था की 10% विकास दर- डॉ. जया मेहता
वर्तमान आर्थिक परिदृश्य एवं मजदूर वर्ग के समक्ष
चुनौतियाँ पर कॉमरेड आर.पी. सिंह स्मृति व्याख्यान
लखनऊ। भारत की अर्थव्यवस्था के 10% विकास दर के दावे को छद्म और जनता के जीवन से असम्बद्ध बताते हुए जानी-मानी अर्थशास्त्री डॉ. जया मेहता ने कहा कि विश्व भर में 2008 से महामंदी आने के बावजूद अगर भारत की अर्थव्यवस्था पर अब तक बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ा तो उसके लिए सरकार की नीतियां नहीं, बल्कि बैंक की ट्रेड यूनियनों को बधाई देनी चाहिए जिनके सतत् संघर्ष ने पूंजीवादी नीतियों को लादने की सरकारी साज़िशों को कामयाब नहीं होने दिया। हालांकि उन्होंने आग़ाह किया कि अब वैश्विक मंदी के असर हम पर पड़ने लगे हैं।
यू.पी. बैंक इम्प्लाइज यूनियन, लखनऊ द्वारा दिवंगत जुझारू कर्मचारी नेता कॉमरेड आर. पी. सिंह की 15वीं पुण्यतिथि के अवसर पर 16 नवम्बर 2013 को आयोजित व्याख्यान में दिल्ली स्थित जोशी- अधिकारी इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल स्टडीज की अर्थशास्त्री डॉ. जया मेहताऔर लेखक विनीत तिवारी को आमंत्रित किया गया था। वर्तमान आर्थिक परिदृश्य एवं मजदूर वर्ग के समक्ष चुनौतियाँ विषय पर बोलते हुए डॉ. जया मेहता ने कहा कि वर्ष 2008 में अमेरिका एवँ अन्य योरोपीय देशों में उठे आर्थिक झंझावात ने यह पुष्ट कर दिया कि पूँजीवाद घोर संकट में आ गया है। अमेरिका की आर्थिक वृद्धि दर घटते-घटते 1.9% पर आ गई जबकि योरोप में यह – 0.4% तक गिर गई। अमेरिका में वर्ष 1970 से उत्पादन (मैनुफैक्चरिंग) लगभग ठप है। अमेरिका के बाजार चीन के उत्पाद पाट रहे हैं। अमेरिका और योरोपीय देशों में केवल पूँजी का खेल चल रहा है लेकिन उत्पादन होना बन्द है। भारत में वृद्धि बताई जा रही है। लेकिन कभी 10% तक पहुंची वृद्धि दर आजकल 5% है। भारत में उत्पादन हो रहा है लेकिन यहाँ उत्पादन की प्रकृति बड़ी विकृत है। यहाँ उत्पादन आम आदमी की जरूरत की वस्तुओं या कृषि का न होकर ऑटोमोबाइल के उत्पादन की होड़ का है और उसकी सुविधा के लिये सड़कों, फ्लाई ओवरों, एयरपोर्टों के निर्माण में अभूतपूर्व तेजी आई है। भारत में दो भारत बसते हैं। एक 10% लोगों का रईस भारत,जिनका विश्व के रईसों की सूची में नाम चमकाने की होड़ है, शेष 90% लोगों का दरिद्र भारत जो अपने को जिन्दा रखने की लड़ाई लड़ रहा है।
भारत एक बीमार राष्ट्र के रूप में बढ़ रहा है। यहाँ 85% से 90% जनता अपना जीवन बचाने के संघर्ष में लगी हुई है। कुपोषण अपने चरम पर है, देश के 50% बच्चों की आयु के हिसाब से ऊँचाई नहीं है। 45% बच्चों का ऊंचाई के लिहाज से जितना वजन होना चाहिए, उससे कम है। 75% बच्चों तक पोषक पदार्थ पहुँच ही नहीं पाते। जब उन्हें पर्याप्त खाना ही नहीं मिलेगा तो उनका क्या तो शारीरिक विकास होगा और क्या मानसिक। और ऐसे ग़रीब और कुपोषित बच्चों से कहा जाता है कि वे बाकी 10 प्रतिशत के खाये-पिए अघाये समाज के बच्चों से बराबरी के मैदान में स्पर्धा करें।
भारत के इस तथाकथित विकास की नीतियों और संसाधनों पर भी इन्हीं 10% लोगों का नियंत्रण है। भारत की इस तथाकथित आर्थिक वृद्धि में विदेशी निवेश की प्रमुख भूमिका रही है। वर्ष 1990 में जो विदेशी निवेश एक बिलियन डॉलर से भी कम था वह 2001-2002 में आठ बिलियन डॉलर और 2003-2004 में 11 बिलियन डॉलर तक पहुँच गया।
यह विदेशी निवेश हमारे आर्थिक आधार को कमज़ोर और अस्थिर करता है क्योंकि इसके ऊपर किसी तरह के प्रतिबन्ध काम नहीं करते। ट्रेड यूनियनों के हस्तक्षेप के कारण भारत, टॉक्सिक सिक्योरिटीज के दंश से बचा रहा और इसी कारण जब 2008 में अमेरिकी और योरोपीय अर्थव्यवस्थाएँ ध्वस्त हुईं तब भारत की अर्थव्यवस्था सुरिक्षित रही। भारत के बैंकों ने साख परिसम्पत्तियाँ (क्रेडिट एसेट्स) निर्मित की परंतु इनकी संरचना में जबरदस्त बदलाव आया। बैंकों के राष्ट्रीयकरण के मूल में यह लक्ष्य था कि बैंकों का क्रेडिट समाज के जरूरतमन्द क्षेत्रों जैसे कृषि, कुटीर उद्योग एवं छोटे उद्यमियों एवं व्यवसाइयों की जरूरतों को पूरा करें और उधर उन्मुख रहें। राष्ट्रीयकरण के शुरूआती वर्षों में ऐसा हुआ भी लेकिन उदारीकरण की हवा ने सब बदल दिया। पिछले 10-15 वर्षों में बैंकों ने प्राथमिकताए बदल ली हैं,उनका 20 से 22% ऋण पर्सनल लोन में जा रहा है। कृषि और अन्य प्राथमिकताओं का हिस्सा बुरी तरह गिरा है। औद्योगिक ऋणों का प्रतिशत न केवल घटा है बल्कि इनको कॉर्पोरेट घरानों की जरूरत की ओर मोड़ दिया गया है। बिजली उत्पादन को सबसे ज्यादा ऋण दिया गया, विलासिता की वस्तुओं के उत्पादन के लिये ऋण दिये गये। कॉर्पोरेट घरानों के खराब हो गये ऋण जो एन.पी.ए. हो गये उनकी रिस्ट्रक्चरिंग करके असलियत को ढाँके रहने का खेल चल रहा है। यदि बैंकों की सारी अनुत्पादक आस्तियों (एन.पी.ए.) को बैंकों की बैलेंस शीट में समायोजित कर दिया जाये तो भारत की बैंकिंग व्यवस्था भरभाराकर ढह जायेगी। वास्तव में देश की अर्थव्यवस्था खतरनाक स्थिति में है।
यह तो हुई अर्थव्यवस्था की स्थिति। अब मज़दूर की स्थिति क्या है, देखते हैं। निर्माण के कार्यों में अत्यधिक तेजी आई है। ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए सड़कें और निर्माण सामग्री बनाने वाली कंपनियों को तथा भूमि बाज़ार में निवेश करने वालों को लाभ पहुँचाना भी इसका मकसद हो सकता है। लेकिन मकसद जो भी रहा हो, इस श्रेणी में देश के करोड़ों मज़दूर आते हैं। देश की 120 करोड़ की आबादी में 46.6 करोड़ कामगार हैं जिनकी उम्र 15 से 60 के बीच होगी। इनमें से केवल 3 करोड़ कामगार संगठित बताये जाते हैं। अकेले कृषि में ही 24 करोड़ लोग लगे हैं। बचे 22.6 करोड़ कामगारों में से बड़ी संख्या में सक्रियता निर्माण क्षेत्र में (1.7 करोड़) दिखाई जा रही है और निर्माण क्षेत्र को संगठित क्षेत्र कहा जा रहा है। यह सरकार की तरफ से पूरी तरह भ्रामक प्रचार है। सच तो यह है कि निर्माण क्षेत्र में सक्रिय कम्पनियां भले ही संगठित हों, लेकिन वहाँ कार्यरत श्रमिकों को संगठित क्षेत्र के मज़दूरों की तरह न ग्रेच्युटी मिलती है न बीमा न पेंशन और न ही नियमित वेतन। मज़दूरों की हालत को आंकड़ों में अच्छा साबित करने की कलाबाजियां की जा रही हैं।
उन्होंने कहा कि भूमण्डलीकरण, उदारीकरण, एवँ निजीकरण की नीतियों से देश में जहाँ चन्द लोगों की अमीरी में इजाफा हुआ है वहीं बहुसंख्य जनता दो वक्त की रोटी के लिये भी तरस रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में जमा आम जनता की अथाह राशि का उपयोग विदेशी व निजी पूँजी के सशक्तिकरण एवम् उनके मुनाफे के लिये किया जा रहा है। बैंक यूनियनों की भूमिका इस स्थिति में अपना हस्तक्षेप करने की हो सकती है। वैसे बैंक और बीमा की यूनियनों के हस्तक्षेप से सरकार के बहुत से प्रतिगामी फैसलों पर लगाम लगी भी है। सरकार भारत को पूँजीवाद ताकत बनाने की मंशा पाले है जो सम्भव नहीं है। वंचितों की इतनी बड़ी आबादी और गैर बराबरी के ख़िलाफ़ लोगों के ग़ुस्से को देखते हुए वर्तमान स्थितियों में देश समाजवादी ताकत बन सकता है। इस लक्ष्य को पाने में श्रम संगठनों की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होगी। उन्होंने कहा कि बैंक कर्मचारी आन्दोलन को संघर्षों के साथ-साथ वैकल्पिक आर्थिक नीतियों के निर्धारण का काम भी अपने जिम्मे लेना चाहिये।
सभा में लेखक, संस्कृतिकर्मी साथी विनीत ने चारों ओर चल रही जमीन हथियाने (land grabbing) की आँधी पर प्रकाश डाला। उन्होनें कहा कि अगर सारी एसईजेड (विशेष आर्थिक क्षेत्र, सेज) परियोजनाओं को दी जाने वाली ज़मीन जोड़ी जाये तो भी वह क़रीब ढाई लाख एकड़ से भी कम ही होती है जबकि उससे 90 गुना ज्यादा ज़मीन बाज़ार के मार्फ़त कृषि से निकल कर अन्य उपयोग में खिसकाई जा चुकी है। और यह 1992 -93 से 2002 -03 के दौरान के आंकड़े हैं। विश्व में सबसे ज्यादा जमीन हथियाने की चालें अफ्रीकी और लातीनी अमेरिकी देशों में चल रही हैं और इस काम में पहली पायदान पर यूनाइटेड किंगडम और फिर चीन हैं, उसके बाद अरब के देश हैं। इथियोपिया में भारत की कम्पनियों द्वारा कौड़ियों के मोल खरीदी जा रही लाखों एकड़ ज़मीन का भी उन्होंने ब्यौरा दिया। इथियोपिया की 80% आबादी खानाबदोश है, उसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वहाँ के लोग और उनके मवेशी यदि चलते न रहे तो वह जीने का साधन नहीं पा सकते क्योंकि कहीं जीने के स्थाई साधन उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन जमीन के लुटेरे कॉरपोरेट घरानों की मदद के लिये इथोपिया की सरकार अपने लोगों को घेराबन्द करके उनके घूमते रहने की प्रवृत्ति पर लगाम कस रही है। अपनी सेना का उपयोग कर सरकार लोगों को और उनके मवेशियों को मार रही है।
विनीत तिवारी ने पूरी दुनिया में सरमाएदारों द्वारा भू-अधिग्रहण की चर्चा करते हुए नई आर्थिक नीतियों को बड़े पैमाने पर किसानों की अत्महत्या के लिये जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि संगठित मजदूर आन्दोलन किसानों एवँ खेतिहर मजदूरों के संघर्षों से जुड़े बिना हस्तक्षेप की शक्ति हासिल नहीं कर सकता है।
यू.पी .बैंक इम्प्लाइज यूनियन के पूर्व मंत्री राकेश ने बैंक कर्मचारी आन्दोलन को असंगठित क्षेत्र के मजदूरों से जोड़ने में का. आर.पी.सिंह एवम् का. उमाचरण बाजपेयी के योगदान को याद किया। यू.पी.बैंक इम्प्लाइज यूनियन लखनऊ के मंत्री का. वी.के.सिंह ने निजी क्षेत्र के अनुत्पादक ऋणों के बार बार पुनर्संयोजन को घातक बताते हुए कहा कि ए.आई.बी.ई.ए. इसके खिलाफ संघर्ष को और धारदार बनाएगी।
सभाध्यक्ष का. आर.के.अग्रवाल ने अतिथियों के प्रति आभार व्हक्त करते हुए कहा कि हमें असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के साथ व्यापक लामबन्दी की जरूरत है।
Dalits Media Watch
News Updates 28.11.13
Kundapur : K K Kalavarkar, Dalit Litterateur to chair Kannada Sahitya Sammelan-Bellevision .com
http://www.bellevision.com/belle/index.php?action=news_diggest&type=3192
'Dalits yet to make progress'- The New Indian Express
http://newindianexpress.com/cities/chennai/Dalits-yet-to-make-progress/2013/11/28/article1915023.ece
Ensure safety of SC/ST schoolchildren: Govt- The Times Of India
Survival of small farms crucial for food security- The Hindu
Bellevision .com
Kundapur : K K Kalavarkar, Dalit Litterateur to chair Kannada Sahitya Sammelan
http://www.bellevision.com/belle/index.php?action=news_diggest&type=3192
Kundapur, Nov 27, 2013 : The veteran K K Kalavarkar, Dalit litterateur, playwright and theatre artiste has been unanimously selected as chairman of the taluk thirteenth Kannada Sahitya Sammelan that will be held at Siddapur that lies on the foothill of Balebare Ghat, near here on Sunday December 8.
The Sammelan reception Committee president D Gopalakrishna Kamat announced this during the press meet held here on Tuesday November 26.
The Sammelan has been organized in the semi-Malnad region of Siddapur, near here with the view of recognizing the local litterateurs and local talent, said Kamat.
The reception Committee advisor veteran retired principal M Subramanya Joshi said that the stage will be named in honour of the freedom fighter late Amasebail Krishnaraya Kodgi.
The former MLA A G Kodgi will inaugurate thirteenth Sammelan at Ranganata auditorium, Siddapur, near here on Sunday December 8 at 9.30am, added Joshi.
A colourful procession of Goddess Bhuvaneshwari – the patroness of Karnataka and Sammelan chairman K K Kalavarkar will be held ahead of the inaugural ceremony.
The new book release, books exhibition-cum-sale will be held on the occasion.
A seminar on 'Kundagannada' will be held after the inaugural function, wherein the experts will present papers on the splendour of 'Kundagannada' and old-adages.
The students of high schools will present papers on variety of topics during students' seminar.
A seminar on Yakshagana will be held on Sunday at 3.30pm, followed by felicitation of veteran achievers of different spheres.
A public meeting and cultural programmes will be held at 5.45pm.
The senior columnist Ko Shivaram Karant will deliver valedictory address at 6.15pm.
Udupi district-in-charge minister Vinay Kumar Sorake will be the chief guest of the occasion.
Kundapur taluk Kannada Sahitya Parishat president Narayan Karvi will preside the programme.
The reception Committee secretary Dr Jagdish Shetty welcomed the gathering. T G Pandurang Pai proposed vote of thanks.
The taluk Kannada Sahitya Parishat secretary K G Vaidya, reception Committee secretary B G Panduranga Pai, H Bhoja Shetty, Satish Acharya and others were present on the occasion.
The New Indian Express
'Dalits yet to make progress'
http://newindianexpress.com/cities/chennai/Dalits-yet-to-make-progress/2013/11/28/article1915023.ece
While most castes have made progress after the nation's independence, a few, particularly Dalits, have not made commendable progress. Continued oppression by other castes is one of the reasons for the same — said former IAS officer and noted writer P Sivakami.
She was speaking at the release of Sadhi Inru (Caste Today), a book that takes a look at caste prejudices and problems facing oppressed castes, at the Madras Imstitute of Development Studies on Tuesday.
Stating that such skews lead to the infliction of violence, she said that the recent acts of violence against Dalits in Dharmapuri district was reflective of the same.
The book is authored jointly by C Lakshmanan, Stalin Rajangam, J Balasubramaniam, A Jeganathan and Anbuselvan — all intellectuals.
Sivakami said that the book was a boon for political parties that indulge in pitting sections of society against others. She also decried that caste-based prejudices had come in the way of filling a backlog of vacancies on government services.
Stating thus, she calledfor the uprooting of all such mindsets.
The book is promoted by Intellectual Circle of Dalit Actions, Tamil Nadu and Puducherry.
The Times Of India
Ensure safety of SC/ST schoolchildren: Govt
BHUBANESWAR: The state government has given strict instructions to district collectors to take necessary steps to ensure safety and security of children at residential schools run by ST and SC development department.
"Clear directions may be given to all district authorities concerned as no untoward incident is acceptable in the schools after the government has taken all possible measures to maintain discipline there," ST and SC development secretary Sanjeeb Kumar Mishra said in a recent letter to collectors.
The letter suggested collectors to take a lead in this regard and also cautioned that any untoward incident may invite strict disciplinary action.
It said the department runs more than 1,600 schools covering over 4,000 children, a majority of them underprivileged. It has also provided 3,000 hostels for students and another 1,000 hostel buildings are under construction.
Mishra said while various initiatives are being taken at the department level, there is a constant need to monitor safety of the children, teachers and staff working in the schools, especiallyresidential sevashrams. The government at its review meetings repeatedly stressed ensuring structural safety of various buildings where children study and reside.
He said the collectors should ensure that any dilapidated building does not pose any risk to students, teachers and staff. Wherever building renovation requires time, the children should not be allowed there and accordingly the area should be cordoned off by temporary boundary, he added.
The Hindu
Survival of small farms crucial for food security
For the last 25 years, Deccan Developmental Society (DDS) in Medak District, Andhra Pradesh has been working in more than 70-odd villages along with 5,000 dalit women farmers.
"More than 60 per cent of their livelihood is derived from small holdings. In fact there must be more than 300 million small and marginal farmers in this country. And everyone who analyses Indian agriculture and farmers clearly says that the survival of these small farmers is crucial to the nation's food security and well being," says Mr. P.V. Sateesh, Director, DDS.
Food analyst
Some of the most respected food analysts in the world such as Miguel Altieri, after a decade of study have categorically concluded that small farms are the most efficient food producers. Hence the criticality of small farmers for agricultural future today stands undisputed.
Most of these farmers were either landless or marginal farmers two decades ago. But with support from DDS they got into active agriculture.
"All of them are ecological farmers and producers of food crops. Through their magnificent efforts they have become owners of lands between 5-20 acres though all these lands are non irrigated dry lands," says Mr. Sateesh.
Take the case of Rayapalli Susilamma, a 40 year old woman farmer who owns three acres of rainfed farm of which half an acre is mango plantation, one acre not cultivable, grows an amazing variety of food crops.
She is proud that she does not have to buy food grains. She goes to the market for buying only cooking oil, coconut oil, soap and soap powder.
Along with Susilamma are five others, all of whom share the same socio economic and agricultural profile. They all want to own about five acres of farm, a pair of bullocks, one milch animal, a couple of goats and a few chickens.
Governments role
"The government must ensure that all farmers like them must own these animals that generate additional cash to support the needs of their children as they grow and get educated," adds Mr. Sateesh.
Increasing cost of cultivation is a major worry for these women.
"Weeding wages have gone through the roof. What used to be about Rs.100 per person just two years ago, has gone upto Rs. 250 now.
"And even then we find it hard to find labourers," says Susilamma.
She thinks the 100 days rural employment scheme (MNREGA) has caused this situation. Everyone seems to echo this feeling. Though all of them also are benefited by it since they all go for wage work in other people's lands, they still think that the scheme has dented their own agriculture.
To make MNREGA small farmer friendly, they suggest agricultural activities be included in it. Weeding, ploughing (incidentally ploughing costs have gone up by four times in last five years, they point out) and harvesting costs can be borne under the scheme.
"If this is done, surely their agriculture will not be under any threat," asserts Susilamma.'Another farmer, Cheelamamidi Laxmamma, in her late 30's has nurtured her three acre dryland farm with great love and care for decades.
Weeding cost
"During monsoon, weeding must be done quickly in two or three days. Depending on the soil type, 20 to 40 persons are needed. Current rates are around Rs.200-250 per person. Therefore it costs between Rs. 4,000 and 6,000 per acre. The total income from one acre might be around Rs.8,000. Under these circumstances how can the weeding wages be met?" she asks.
Agriculture officials think that weeding is something that a small farmer can do on their own. They treat this argument with heavy contempt. In drylands, particularly on red soils weeding during Kharif must be finished within two or three days. If you prolong it, it becomes unproductive, according to her.
An acre needs a minimum of 25 persons. If the farmer does this on her own, it takes 25 days for her to finish the job. Weeds become unmanageable over this gap of time.
Local money lenders
Most of these women borrow from local moneylenders at three per cent interest to complete weeding.
Add to this the fact that crops like millets and other food crops need more weeding compared to cash crops.
Therefore the government must offer 100 per cent subsidy for agricultural activity on millet lands and 50 per cent for cash crops by including these activities under MNREGA scheme.
Need encouragement
According to Mr. Sateesh, this is the only area where these proud women farmers in spite of their small holdings and difficult farming need help and encouragement from the Government.
To know more interested readers can email Mr. P.V. Sateesh atsatheeshperiyapatna@gmail.com , website: www.ddsindia.com, Project office, Pastapur Village, Zaheerabad Mandal, Medak District - 502 220, Andhra Pradesh, phone: 08451 282271, 08451 282785 and 08451 281725.
News Monitor by Girish Pant
.Arun Khote
On behalf of
Dalits Media Watch Team
(An initiative of "Peoples Media Advocacy & Resource Centre-PMARC")
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Peoples Media Advocacy & Resource Centre- PMARC has been initiated with the support from group of senior journalists, social activists, academics and intellectuals from Dalit and civil society to advocate and facilitate Dalits issues in the mainstream media. To create proper & adequate space with the Dalit perspective in the mainstream media national/ International on Dalit issues is primary objective of the PMARC.
Dalits Media Watch
News Updates 27.11.13
Actor booked for abusing Dalit- Deccan Chronicle
http://www.deccanchronicle.com/131127/news-current-affairs/article/actor-booked-abusing-dalit
Woman sets herself on fire to protest atrocities against dalits- The Times Of India
Tension over use of burial ground- The Hindu
'Dalits still being exploited socially'- The New Indian Express
Self-immolation bid by Dalit for job quota- The New Indian Express
Implement 85th Constitutional Amendment in Himachal: Gachli- Business Standard
First Dalit Fund's Problems Raising Money- WSJ
http://blogs.wsj.com/indiarealtime/2013/11/27/first-dalit-funds-problems-raising-money/
'Dalits must learn from Africans'- The New Indian Express
NOTE: Please find attachment for HINDI DMW (PDF)
Deccan Chronicle
Actor booked for abusing Dalit
http://www.deccanchronicle.com/131127/news-current-affairs/article/actor-booked-abusing-dalit
Hyderabad: Tollywood actor Maharshi Raghava was booked for allegedly abusing and threatening a Dalit victim on Tuesday.
The Ramachandrapuram police booked a case against the actor for SC/ST atrocity and criminal intimidation.
The victim, P. Eswaraiah, alleged that Raghava threatened to kill him and abused him when he tried to stop Raghava from cutting trees in his employer's land, at Kollur, RC puram police said.
"There is a land dispute going on between Raghava and the advertising agency owner from Banjara Hills, Dharaswami. The case is pending in the High Court and the victim was keeping a watch on the land.
As per his complaint, he questioned Raghava when he started cutting trees in the land. Raghava then allegedly abused him and threatened to kill him," said RC puram Sub Inspector, Ravindra Reddy. The victim, Eswaraiah, works as a personal assistant of Dharaswami.
The complainant claimed that the land belongs to Dharaswami, as he purchased it in 2002. However, a dispute erupted with Raghava as he claimed the ownership. The two acre land is situated at Kollur village, in Survey number 191. Cops have started an investigation into the matter.
Raghava acted in movies like Chitram Bhalare Vichitram, Maharshi and other movies.
The Times Of India
Woman sets herself on fire to protest atrocities against dalits
TRICHY: A 40-year-old married woman set herself on fire near the Ambedkar statue at Aristo roundabout in Trichy on Tuesday morning. She has been admitted to the Mahatma GandhiMemorial Government Hospital (MGMGH) here with severe burns. A letter found at the spot suggests her immolation was an act of protest against oppression of Arunthathiyars in a Dindigul village.
The woman has been identified as A Rani, alias Pazhaniammal. She is a provisional employee at the animal husbandry department and a resident of Ganeshapuram in Trichy.
Rani jumped into the Aristo roundabout after parking her moped nearby. Passers-by and policemen on duty were taken aback as she suddenly poured petrol on her body and set fire. "Fire engulfed her rapidly as she had doused herself with petrol. Cantonment police who rushed to the spot tried to extinguish the fire along with public. As she sustained severe burn injuries, police rushed her to MGMGH where she is receiving critical-care treatment," said S Umasankar, inspector at Trichy cantonment police station.
A letter signed by Rani found near the immolation spot read: "Take action against influential people who launched atrocities against Arunthathiyars in Kariampatti village in Dindigul district and revoke false cases against Arunthathiyars". She had scribbled the message on a letter pad of 'Aathi Tamizhar Peravai'. However, inspector Umasankar denied the police got any suicide note as the letter didn't indicate intent to suicide.
In her letter, Rani paid tributes to Neelaventhan, a resident of Tiruppur immolated himself in September. He too had protested against atrocities on the Arunthathiyars. She also demanded higher reservation quota for the community.
Investigation revealed that her employers were ignorant about her association with any socio-political outfit.
"Rani is working as a provisional animal husbandry-assistant at the veterinary hospital at Palakkarai since December 6, 2012. She was due to get regularised next year. She had left the office on Monday evening. We didn't know that she was a functionary in an outfit," said I Chinnadurai, joint director of animal husbandry department, adding that MGMGH doctors informed him that she will recover.
K Chozhan, the state deputy secretary of Aathi Tamizhar Peravai, said Rani took the extreme step to persuade the state government to act on her demands. "She is attached with our outfit for more than seven years. She was involved in various agitations for the welfare of Arunthathiyars. A festival celebrated by our people in Kariampatti was spoiled by others and it led to violence. Police had arrested several people on both the sides.
It is this incident and the subsequent actions that forced her to attempt suicide," Chozhan revealed.
A large posse of police force has been deployed around MGMGH to avoid any untoward incident.
Rani's husband Arumugam is an employee at MGMGH. Their daughter, Subbulakshmi, is married and two sons Guganathan and Krishnan are working in private companies.
Insert
Aathi Tamizhar Peravai movement was launched by R Athiyamaan in 1994 with its head quarters in Coimbatore. The objective of the movement is to empower the Arunthathiyars, one of the most marginalized dalit communities in the state. It also has demanded raising the reservation of Arunthathiyars from 3% to 6%. The outfit, which has been protesting against manual scavenging, opposes discrimination against dalits.
The Hindu
Tension over use of burial ground
Mild tension prevailed at Nariyam-palliputhur village near Avinashi for a brief period on Monday evening following differences between two communities over use of a burial ground in the area.
Arguments
Wordy arguments cropped up between Dalit Christians and other Dalit people living in the area.
The matter was resolved after a strong police contingent led by Deputy Superintendent of Police (Avinashi) P. Arangasamy went to the spot.
The police officials held talks with the two factions and advised them to live in a cordial manner.
Electro cuted
M. Palanisamy (75), a resident of Vellakadu village, was electrocuted when he came in contact with a transformer near Kongukolathumedu here on Sunday.
The New Indian Express
'Dalits still being exploited socially'
In the age of globalisation Dalits do suffer from a self - defeating dystopia, which is reflected in the demand that some of them are making to become a capitalist even by exploiting natural resources, said proffesor Gopal Narayan Guru, Centre for Political Studies, Jawaharlal Nehru University, New Delhi, at the Malcolm Adiseshiah Memorial Lecture at the Asian College of Journalism, recently.
Speaking at a function organised by the Malcolm & Elizabeth Adiseshiah Trust to honour Prof Gopal Narayan Guru with the Malcolm Adiseshiah Award for distinguished contributions to Development Studies, he said that both nature and Dalits are exploited, suppressed and rendered equally vulnerable to the assault and vagaries of social forces.
He concluded his talk on 'Two Locations of Injustice: Present and Posterity', by saying that Dalits needed to take a moral lead to defend not only an ecologically balanced life but also an environmentally sustainable one that defends their right to reproduce and live in harmony with biodiversity.
Earlier, HBN Shetty, executive trustee, read out the citation and professor U Sankar, chairman of the Trust presented the award to Gopal Narayan Guru. A cash prize of `2 lakh was also awarded. The recipient of the award was unanimously selected by the jury. Other members of the Trust, students and academicians from the Asian College of Journalism also attended the award function.
The New Indian Express
Self-immolation bid by Dalit for job quota
The women wing secretary of Aathi Thamizhar Peravai (ATP) tried to immolate self demanding six per cent reservation for Arunthathiyars within the Scheduled Caste (SC) reservation quota, here on Tuesday. She sustained 90 per cent burns and was in a critical condition.
According to sources, Rani alias A Palaniammal (40) attempted self immolation in front of the Ambedkar statue near the Central bus stand here. However, police and passersby rescued her and rushed her to the government hospital.
Sources said, Palaniammal reached the Aristo roundabout at 9.20 am on her two wheeler. After paying respects to the Dalit icon's statue, she of a sudden doused herself with petrol and set herself ablaze. A few passersby, who noticed the incident, tried to douse the fire. On information, Cantonment police rushed to the spot and joined the rescue efforts of the locals and managed to put out the fire. Palaniammal was immediately rushed to the GH, where the doctors said that she had sustained over 90 per cent burns and her condition was critical.
Eyewitnesses said that Palaniammal kept shouting slogans demanding six per cent reservation for the Arunthathiyars, even while she was on fire.
Police said that they recovered a letter from the spot. In the letter, Palaniammal said that Arunthathiyars had been living a life of slavery and suffering a lot. They were not getting employment opportunities and were living in abject poverty, the letter said. Further, she demanded that the State initiate steps to provide reservation for the people belonging to the community. Palaniammal's statement was recorded by the Magistrate at the hospital.
Fearing that the incident could trigger violence, police deployed heavy security at the Aristo roundabout area.
Business Standard
Implement 85th Constitutional Amendment in Himachal: Gachli
Former MLA and National Secretary of Bharatiya Dalit Sahitya Akademi Chaman Lall Gachli today appealed to the Himachal Pradeshgovernment to implement 85th Amendment to the Constitution in the state to protect seniority in case of promotions of SC/ST employees.
"It is very unfortunate that there has been a controversy in the state over reservation for SC/ST employees in promotions, which is duly provided in the Constitution of India," he said in a statement here.
He said it was uncalled for that the previous BJP government stayed away from implementing the amendment despite the fact that all agencies and organisations belonging to SC and ST categories vigorously pursued the matter with it.
"Therefore, it has become essential for the present Virbhadra Singh-led Congress government to do justice by implementing the 85th Amendment," Gachli said.
WSJ
First Dalit Fund's Problems Raising Money
http://blogs.wsj.com/indiarealtime/2013/11/27/first-dalit-funds-problems-raising-money/
India's first venture capital fund for companies operated by entrepreneurs from underprivileged groups is having trouble raising money.
Attracting investment is difficult for any startup but the going is even tougher when the founders are from what are considered lower castes in India, said Prasad Dahapute, managing director of Mumbai investment firm Varhad Capital, which is trying to raise money for the country's first fund aimed at groups on the bottom of the Hindu hierarchy.
The Dalit Indian Chamber of Commerce & Industry–a trade body representing the so-called scheduled and lower castes or Dalits—unveiled plans for the fund in the summer. While Varhad had originally hoped to launch the fund in August, it has been unable to raise enough money to start investing.
Mr. Dahapute said he still hopes to raise 1 billion rupees ($16 million) by next March and eventually grow the fund to 5 billion rupees ($80 million) a year after that. One unexpected problem has been that some large state-run banks and insurance companies he had expected to invest haven't shown interest, he said.
"Despite knocking at their doors multiple times, they did not open their doors at all," said Mr. Dahapute.
While the state-run Small Industries Development Bank of India invested 100 million rupees ($1.6 million) in the fund, there have been few other takers. The fund now has verbal commitments for only 300 million rupees.
It has been a tough time to raise funds in India for any kind of fund because of the country's slowing economy. Fewer "funds are getting financed," said Alok Mittal, Gurgaon-based managing director of Canaan India, a venture capital fund which manages $150 million in India.
Varhad Capital has already identified four companies run by people from underprivileged groups for investment, said Mr. Dahapute who declined to name the companies.
The caste system runs deep in Indian society. Schedule castes, which are the bottom of the Hindu caste system, and other underprivileged groups have often been unable to reap the benefits of India's economic growth. They lag behind their upper caste counterparts on most social and economic indicators.
One of the reasons these groups have trouble rising with the economy is that Dalit entrepreneurs often have trouble raising money through debt and equity, said Mr. Dahapute. Small and medium-enterprises in India in general struggle to raise capital because they are seen as more risky compared to large companies.
"Financial institutions have overlooked Dalit entrepreneurs," said Milind Kamble, chairman of the DICCI.
The country has around 36 million micro, small and medium sizes companies which provide employment to almost 80 million people or 7% of the total Indian population,according to latest government data. Just over half of the small and medium sized enterprises in the country are owned by people from India's underprivileged groups.
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The New Indian Express
'Dalits must learn from Africans'
Progressive writer Siddalingaiah said Dalits should take inspiration and learn from Africans and urged them to stop considering themselves as people belonging to a lower caste.
Siddalingaiah, who is also director at Bangalore University (BU) Centre for Ambedkar Studies, was speaking at the release of his autobiography 'A Word With You, World' translated into English by journalist S R Ramakrishna on Tuesday.
Citing the examples of Africans, he said, "They have made immense progress in the fields of music and sports.
This is because they never lost their sense of existence. In fact, Africans who were enslaved can still cook and serve food, something that Dalits here still cannot do. This is because Dalits have submitted themselves to an inferiority complex."
He said Dalits should join people from various sections of the society who are working towards bringing an end to the atrocities faced by them.
Arts dean D Jeevan Kumar said 'A Word With You, World' is the first combined work of Siddalingaiah's two volumes of Ooru Keri. "The English title is a derivative of his poem Mataadbeku," Prof Kumar said.
Vice-Chancellor B Thimme Gowda, who released the book, lauded the social concern reflected in Siddalingaiah's works.
News Monitor by Girish Pant
.Arun Khote
On behalf of
Dalits Media Watch Team
(An initiative of "Peoples Media Advocacy & Resource Centre-PMARC")
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Peoples Media Advocacy & Resource Centre- PMARC has been initiated with the support from group of senior journalists, social activists, academics and intellectuals from Dalit and civil society to advocate and facilitate Dalits issues in the mainstream media. To create proper & adequate space with the Dalit perspective in the mainstream media national/ International on Dalit issues is primary objective of the PMARC.
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