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वर्ण वर्चस्व के नस्ली लोकतंत्र में जो होता है,उसे समझने के लिए अब लीजिये, इकानामिक टाइम्स का वह लेख और अंदाजा लगाइये कि हम कितनी गहराई में हैं या सतह पर ही तूफान रच रहे हैं।
मूलनिवासी साथियों,
पहले फर्जी नाम से हम सभी कार्यकर्ताओं के खिलाफ दुष्प्रचार करनेवाले अब खुलकर मैदान में आ गये हैं। वे किसी भी वक्त संवाद और विचार विमर्श के लिए तैयार नहीं है। न थे। अब मनगढ़त आरोप लाने की अपनी दक्षता का इजहार कर रहे हैं।उन्होंने अब तक हमारे मुद्दों पर कोई जवाब दिया ही नहीं है। आज तक ये लोग सवाल करने वाले तमाम लोगों को गद्दार और दलाल साबित करने में दिन रात की गयी फंडिंग का इस्तेमाल करते रहे हैं। आंदोलन का नेतृत्व हम नहीं कर रहे हैं। जो कर रहे हैं, मुद्दों पर संवाद की जवाबदेही भी उनकी है। मेरा बेटा बामसेफ का होलटाइमर रहा है। लेकिन वह एक जिम्मेदार पत्रकार है। वहआंदोलन से किसी तरह संबद्ध नहीं है। उसे मुद्दा बनाकर असली सवालों को टालते हुए मेरे हर स्टेटस पर गाली गलौज का इस्तेमाल करते हुए बामसेफ मीडिया प्रमुख ने अपनी अनंत विद्वता का ही परिचय दिया है। उनके अनर्गल आरोपों का जवाब देने की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि देशभर के कार्यकर्ता उनके फंडे को अच्छी तरह जानते हैं और आरोप गढ़ने और साबित करने की उनकी यही मशीनरी ही अब तक के जनांदोलन की कुल उपलब्धि है।
हर स्टेटस पर एक ही टिप्पणी लगाकर उन्होंने पाठकों का ध्यान हटाने की कोशिश की है। हम बतौर तर्क मान भी लें कि उनके आरोप सही हैं,इससे हमारे सवालों के जवाब कैसे बनते हैं।बामसेफ के उद्देश्य,मिशन,कार्यपद्धति और संगय़नात्मक ढांचा ,बुनियादी मुद्दों से किसी कार्यकर्ता पर लगाये जाने वाले आरोपों के क्या संबंध हो सकते हैं।इससे उनकी दूरदृष्टि का परिचय मिलता है और दुर्भाग्य है कि ऐसे ही काबिल विद्वान लोगों के हातों में आंदोलन की बागडोर है,जो अंबेडकर के परिजनों को नहीं बखशते वे सामान्य कार्यकर्ताओं की कितनी इज्जत करते हैं,आप स्वयं उनकी टिप्फणियों में बांच लें।
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