यह मिथक साजिशाना तरीके से रचा गया कि विभाजन के जिम्मेदार सिर्फ मुसलमान हैं। मुस्लिम लीगी जरुर जिम्मेदार होंगे,लेकिन मुस्लीम लीग के एजंडे को कामयाब अंजाम पहुंचाने वाले बंगाल के सत्ता वर्ग की जिम्मेदारी सबसे बड़ी है,जिसपर कायदे से बहस ही नहीं हुई है।
पलाश विश्वास
आदरणीय दुसाध जी,
आपने कटु सत्य कहने में कोई हिचकिचाहट नही दिखायी,आभारी हूं।
पश्चिम बंगाल सरकार और बंगाली प्रभूवर्ग बंगाली राष्ट्रीयता औप पहचान को गौरवान्वितकरते रहने के किसी भी मौके को गंवाता नहीं है।
बाकी जो बहिस्कृत बहुसंख्यक जनगण हैं, वे उसी पहचान में निष्णात हैं।
बंगाली मीडिया और साहित्य को पूरी दुनिया से जुड़ने की कवायद करते हुए बहुत खुशी होती है। भारत में वैश्विक जायनवादी खुले बाजार की व्यवस्था भी बंगाल में बाकी देश के मुकाबले मजबूत है और इसे मजबूत बनाने में हारे कामरेड मित्रों ने पैंतीस साल के राजकाज में कोई कसर नहीं छोड़ी है। बाकी जो कसर बाकी है,बुद्धदेव भट्टाचार्य का स्थान लेने वाली पीपीपी माडल की पैरोकार मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सत्ता पार्टी पूरी कर रही है।
शायद आपने बंगाल पर निरंतर लिखे मेरे आलेखों को पढ़ा नहीं है। भारत विभाजन भारत में बहुजनों के जोगेंद्रनाथ मंडल और बैरिस्टर मुकुंद बिहारी मल्लिक के समर्थन से मतुआ आंदोलन और तमाम कृषि विद्रोहों,आदिवासी विद्रोहों के सिलिसिले में महात्मा फूले और हरिचांद गुरुचांद ठाकुर जैसे पुरखों की परंपरा के तहत संसाधनों और अवसरों के न्यायोचित बंटवारे के लक्ष्य के साथ, जाति उन्मूलन के एजंडे के तहत समता और सामाजिक न्याय का जो राष्ट्रव्यापी महासंग्राम बाबासाहेब डा.अंबेडकर ने छोड़ा,उसे खत्म करने के तहत ही रची गयी।
बाबासाहेब को चुनने वाले पूर्वी बंगाल के समूचे चुनाव क्षेत्र को ही पाकिस्तान में डाल दिया गया और उनके अनुयायियों को उनकी गृहभूमि से निकाल बाहर करके भारत भर में छिड़क कर उन्हें बंगाली राष्ट्रीयता और पहचान के इतिहास भूगोल से बाहर कर दिया गया।
जैसे पंजाब का विभाजन करके बजरिये अकाली राजनीति सिखों का वध महोत्सव हुआ।
पंजाबियों ने फिर भी पूर्वी बंगाल के मुकाबले बहुत भारी रक्तपात के बावजूद पंजाबी सिख एकता के तहत तुरत फुरत विभाजन की त्रासदी से उबरने में ऐतिहासिक कामयाबी हासिल कर ली।
लेकिन अस्सी और नब्वे के दशक में सत्ता वर्ग ने सिखों के संहार का जो खेल रचा,उससे पंजाबी सिख एकता खंडित हो गयी।
भारत के बहुजन हरित क्रांति की वजह से जो अभूतपूर्व संकट में फंसे,उसकी तार्किक परिमति रही यह। लेकिन हकीकत यह है कि विभाजन की त्रासदी के बाद पूरी पंजाबी सिख जनता ने जो युद्धस्तरीय एकताबद्धता दिखायी, वह सिरे से बंगाल में अनुपस्थित था।
बंगाल के ही ढाका में मुस्लिम लीग का गठन हुआ लेकिन उसका असर तब तक नहीं हुआ जबतक बहुजन और मुसलमान किसानों का राजनीतिक गठबंधन फजलुल हक की प्रजा कृषक पार्टी की अगुवाई में एकजुटता के साथ मतुआ और चंडाल आंदोलनों ,नीलविद्रोह और तमाम आदिवासी विद्रोह की मुख्य मांग भूमि सुधार और संसाधनों और अवसरों के समान बंटवारा का झंडा थामे रहा।
फजलुल हक को फेल कराने की मनुवादी साजिश कायम होने के बाद ही बंगाल और बाकी देश में दो राष्ट्र सिद्धांत की धूम मची।
भारत विभाजन के निर्णायक प्रस्ताव को जहां मुसलमान बहुल पूर्वी बंगाल ने बहुमत से ठुकरा दिया, वहीं कामरेडों के ज्योतिबसु की अगुवाई में अनुपस्थित रहने के परिदृश्य में हिंदूबहुल बंगाल ने बहुमत से पारित कर दिया।
यह मिथक साजिशाना तरीके से रचा गया कि विभाजन के जिम्मेदार सिर्फ मुसलमान हैं। मुस्लिम लीगी जरुर जिम्मेदार होंगे,लेकिन मुस्लीम लीग के एजंडे को कामयाब अंजाम पहुंचाने वाले बंगाल के सत्ता वर्ग की जिम्मेदारी सबसे बड़ी है,जिसपर कायदे से बहस ही नहीं हुई है।
तब हिदुत्व के झंडेवरदारों ने घोषणा कर दी थी कि भारत का विभाजन हो या नहीं, बंगाल का विभाजन अवश्य होगा क्योंकि बंगाली प्रभू वर्ग को अस्पृश्यों, बहुजनों और धर्मांतरित हिंदू समाज की सतह के नेतृत्व में रहना कतई मंजूर नही ंथा।
खास बात तो यह है कि बंगाल में विभाजन पूर्व तीनों सरकारें दलित मुस्लिम गठबंधन सरकारे थीं जिसमें सिर्फ फजलुल हक की सरकार में श्यामाप्रसाद मुखर्जी मंत्री थे जो भूमि सुधार एजंडे के प्रबल विरोधी थे और जिनकी वजह से भूमि सुधार का फजलुल हक की अगुवाई में बंगाल के किसानों का मुख्य एजंडा फेल हो गया।
बंगाल का विभाजन नहीं हुआ होता तो बंगाल में मौजूदा हर क्षेत्र में वर्ण वर्चस्व की गुंजाइश ही नहीं होती।
दुसाध जी,आप बंगाल को हमसे ज्यादा बेहतर जानते होंगे। लेकिन इस तथ्य पर अवश्य ध्यान दें कि बंगाल में अनुसूचित जातियों की जनसंख्या महज बीस फीसद के आसपास है जो सरकारी तौर पर कभी सत्रह तो कभी इक्कीस फीसद बतायी जाती है।
इसकी तुलना में पंजाब और हरियाणा में अनुसूचित जातियों की विभाजन परवर्ती जनसंख्या को देख लें।
आधुनिक बंगाल के रुपकार डा.विधान चंद्र राय और पंडित जवाहरलाल नेहरु ने पूर्वी बंगाल के शरणार्थियों को कभी विभाजन पीड़ित नही माना और न पूर्वी बंगाल से उखाड़े गये लोगों को कोई मुआवजा मिला।
विभाजनपीड़ित बतौर जमींदारों के वंशजो को ही मुआवजा मिला जिनका जमींदारी तो पूर्वी बंगाल में थी, लेकिन रहते वे कलकत्ता में थे।
विभाजन की खूनी त्रासदी से उनका कोई वास्ता ही न था। वे तमाम लोग आज बंगाल में पश्चिम बंगाल के शूद्र बहुजनों को धकिया कर जीवन के हर क्षेत्र में अग्रगामी हैं।
पूर्वी बंगाल से आये बहुजनों को तो सीधे भारत भर में अंडमान से लेकर उत्तराखंड, राजस्थान से लेकर तमिलनाडु,तमिलनाडु से लेकर त्रिपुरा तक फेंक दिया गया और सारा पुनर्वास आदिवासी इलाकों में किया गया, जिससे मानवता के नाम पर विकास के बहाने अनुसूचित क्षेत्रों को तोड़कर आदिवासियों की बेदखली तेज की जा सकें। बेदखल आदिवासी और शरणार्थी दोनों हो रहे हैं।
नागरिकता और आजीविका से वंचित दोनों वर्गो ंको किया जा रहा है,लेकिन उनमें ंसंवाद की स्थिति भी नहींहै
।
इसतरह बंगाल की जनसंख्या की वैज्ञानिक सर्जरी हुई और भारत में बसाये गये सनैंतीस के विभाजनपीड़ित बहुजनों की नागरिकता छीनकर आदिवासी इलाकों में उनकी बेशकीमती जमीन कारपोरेट घरानों को सौंपने के मकसद से आंतरिक सुरक्षा की चुनौतियों के हवाले बंगाल के ही नेता प्रणव मुखर्जी की अगुवाई में सर्वदलीय सहमति से पहले नागरिकता संशोदन विधेयक लाया गया और बाद में नाटो के ड्रोन में बायोमेट्रिक डिजिटल डाटा फीड करके भारत को अनंत वधस्थल बनाने के लिए तमाम नागरिक अनिवार्य सेवाओं से नत्थी आदार परियोजना।
इसके मुख्य रुपकार भी बंगाली प्रभूवर्ग और भारत में धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद के मुख्य धर्माधिकारी प्रणव मुखर्जी रहे,हालांकि संघी सिंधी लौहमानव लाल कृष्ण आडवानी ने हिंदुत्व रथ पर सवार हिंदू शरणार्थी बहुजनों के देशनिकाले और आदिवासियों से लेकर नगरों महानगरों की गरीब मलिन बस्तियों को उखाड़ने के लिए राजग सरकार के जमाने में बाहैसियत गृहमंत्री नागरिकता संशोधन विधेयक पेस किया था।
अनुसूचित, पिछड़े,आदिवासी और अल्पसंख्यक सांसदों ने प्रभू वर्ग के नेतृत्व में इस विधेयक को कानून में बदल दिया।
2003 में इस विधेयक का विरोध करते हुए विभाजनपीड़ितों की नागरिकता की मांग करने वाले तत्कालीन राज्यसभा सदस्य डा.मनमोहन सिंह ने वामपंथियों के समर्थन से प्रधानमंत्री बनते ही 2005 में उसी कानून का नये सिरे से अनुमोदन कर दिया।
वाम विश्वासघात और बंगाली वर्णवर्स्वी समाज की पोल तो मरीचझांपी नरसंहार से खुल जाती है,अपना अपराजेय वोटबैंक बनाने के खातिर दंडकारण्य इलाके के पांच बड़े शरणार्थी कैंपं को आधार बनाकर वामपंथियों ने कामरेड ज्योतिबसु की अगुवाई में लाखों बहुजन शरणार्थियों को सुंदरवन बुला लिया, लेकिन 1977 के चुनाव में स्थाई तौर पर बंगाल के 27 फीसद मुसलमान वोट बैंक के पाला बदलकर वाम झोली में गिर जाने के बाद वामनेताओं ने अनुसूचितों की बंगाल में वपसी की आत्मघाती भूल की समीक्षा की और फिर कभी बाहरी राज्यों से अनुसूचित शरणार्थियों का कोई सैलाब बंगाल तक न पहुंचे,यह सबक देने खातिर मरीचझांपी नरसंहार को अंजाम दे दिया गया।
शरणार्थी औरतों की अस्मत लुटी गयी।पेयजल में जहर मिलाया।स्कूल और चिकित्साकेंद्र फूंक दिये गये। नावें डुबो दी गयीं।शरणार्थियों को थोक भाव से मारकर बाघों का चारा बना दिया गया।
तीस साल तक बंगाल के वर्ण वर्चस्वी नागरिक समाज खामोश रहा और हमारे मित्र तुषार भट्टाचार्य ने तमाम सबूत और प्रत्यक्षदर्शियों को जोड़कर जो फिल्म बनायी, जिसमें किंचित योगदान हमारा भी है,उसका परिवर्तन आंदोलन और चुनाव प्रचार में अनुसूचित,मतुआ व शरणार्थी वोटों के वामविरोधी ध्रूवीकरण के लिए परिवर्तन पंथियों ने जमकर इस्तेमाल किया,तब और बाद में मुख्यमंत्री बनने के बाद ममता बनर्जी कभी भी मरीचझांपी नरसंहार की जांच का आश्वासन दे रहीं हैं,लेकिन कोई पहल अभीतक नहीं हुई।
मेरे पिता देशभर में शरणार्थी समस्या से आजीवन जूझते रहे। देशभर के पक्ष विपक्ष के नेताओं, राष्ट्रपतियों, मुख्यमंत्रियों, सांसदों,विधायकों व प्राशासनिक अफसरान से वे निरंतर पत्र व्यवहार करते रहे हैं और आखर पहचानने के बाद से तमाम पत्रों और ज्ञापनों को हम लिखते रहे हैं। हमारे लेखन की पृष्ठभूमि कविता कहानी नहीं,बल्कि अपने वंचित तबके के लोगों का बेइंतहा जीवनसंघर्ष रहा है।
आज तक मुझे याद नहीं आता कि बंगाल के किसा नेता ने कभी किसी पत्र का जवाब दिया हो।
मेरे पिता से मेरी आकिर तक बहस होती रही है कि भारत सरकार की निश्चित शरणार्थी नीति क्यों नहीं है। क्यों नहीं भारत सरकार राजनयिक पहल करके बांग्लादेश मे ंनिरंतर जारी अल्पसंख्यक उत्पीड़न बंद करने की पहल करके शरणार्थी सैलाब रोकने की कोशिश करती। उनके राजनीतिक राष्ट्रीय नेताओं से पारिवारिक संबंध होने के बावजूद हमारी कभी पटी ही नहीं।
नागरिकता कानून या आधारकार्ड योजना से यह सिलसिला थमने वाला नहीं है। बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष प्रगतिशील आंदोलन का लंबा इतिहास है।
लेकिन हकीकत है कि उनके प्रबल प्रतिरोध के बावजूद पूर्वी बंगाल और अब बाग्लादेश में राजनीतिक हिंसा का मतलब सीधा है, अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न और नतीजतन नया शरणार्थी सैलाब।
नयी समस्याएं जो कभी सुलझती नहीं है और खामियाजा सचमुच के विभाजनपीड़ितों को हमेशा भुगतना पड़ता है।
बांग्लादेश का हर कोना अब आग के हवाले है। बांग्ला और भारतीय मीडिया में छिटपुट खबरों के अलावा कोई कवरेज,उस घटनाक्रम का नहीं है जो आने वाले समय में पूरे राष्ट्र के लिए सिरदर्द का सबब बनसकता है।
हमने अपनी ओर से पहल करते हुए कल शाम से लेकर रातभर और आज दिन में भी तमाम उपलब्ध सूचनाएं उपलब्ध कराने की कोशिशकी अपने ब्लागों और फेसबुक वाल से। बांग्लादेश से सीधे आ रही सूचनाएं बांग्ला में थीं और इस समस्या से निपटने में पश्चिम बंगाल सरकार व बंगाली जनता की पहल भी अनिवार्य है,इसलिए ज्यादातर पोस्ट मैंने बांग्ला में किये।
दुसाध जी मुझे हैरत प्रभुवर्ग के वर्णवर्चस्वी रवैये से नहीं हुई,लेकिन बहुजन जो तमाम बंगाली लोग नेट पर है,उनके लापरवाह रवैये से हुई।देश भर से तमाम भाषाभाषी लोग इन सूचनाओं को अपनी अपना भाषा में मांग रहे हैं,खासकर बंगाल के प्रगतिशील प्रभुवर्ग द्वारा घोषित सामंती गायपट्टी के हिंदीभाषी लोग, लेकिन किसी बंगाली मित्र,मेधा पुरुष व नारी जो सबअल्टर्न मुहिम के लिए विश्वविख्यात हैं,उन्हें समेत जिनकी टाइम लाइन पर भी मैंने सूचनाएं दर्ज की, किसी बंगाली बहुजन और सर्वजन ने कोई टिप्पणी तक नहीं की। यह सूचना देते हुए फिर लिंक पोस्ट की जिसपर आपकी टिप्पणी तो आ गयी, लेकिन बंगाली समुदायों में सन्नाटा हैं।
मैंने हिंदी या अंग्रेजी में नहीं ,बांग्ला में मुकम्मल सूचनाएं दी हैं।
मेरी इस कवायद के बारे में सविता को मालूम नहीं पड़ा,वरना मेरी खाट खड़ी हो जाती।
लेकिन मुझे अवश्य सबक मिला है कि अगली सहस्राब्दियों में वर्ण वर्चस्वी बंगीय समाज मे ंकिसी परिवर्तन की उम्मीद मृगतृष्मा के अलावा कुछ भी नहीं है।
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Vaibhav Chhaya added a new photo.
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Shubhranshu Choudhary
Story of Adivasi girl from Bastar who was married, sold, resold, Pls help her
Shakeel Rizvi from Jagdalpur,Chhattisgarh is telling the story of Mangli Kunjam, an Adivasi girl from Bastar. Mangli was working in an anganwadi but after marriage and first child she lost her job. Husband deserted.She went to Delhi with help from a friend, who sold her. She was sold again and then escaped some how. She now lives in a children home. Please call Collector at 09407748805 to help her get her job back. For more Shakeel Ji is at 09424292025
http://cgnetswara.org/index.php?id=27011
Story of Adivasi girl from Bastar who was married, sold, resold, Pls help her
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Navbharat Times Online
इंडियन्स जिंदाबाद!
भारतीय रीयल एस्टेट ग्रुप (लोढ़ा ग्रुप) ने लंदन में सबसे पॉश कॉलोनी खरीदी है।
कनाडा हाई कमिशन की बिल्डिंग समेत 3120 करोड़ की हुई डील।
पढ़ें: http://nbt.in/XjxgJZ
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Jayantibhai Manani shared Abhigam Mori's photo.
छोटुभाई वसावा गुजरात में आदिवासिओ के संवैधानिक अधिकारों की लड़ाई 40 साल से लड़ रहे है. गुजरात में ही नहीं लेकिन देश में आज वे ही ऐसे एक मात्र आदिवासी नेता है, जिन्होंने 2011 में पक्षीय हितो से हटकर आदिवासिओ के संवैधानिक अधिकारों के अमल के लिए "आदिवासी संवैधानिक अधिकार यात्रा" निकाली थी.
1989 से आजतक भरूच की जघडिया विधानसभा की बैठक पर भाजपा-कोंग्रेस के उम्मीदवारों को हराकर चुनाव जीतते रहे है. लोकतंत्र और देश के संविधान के विरोधी श्रीमंत, सामंत और महंत के विरुद्ध वे जन जागरण करते रहे है और एसटी,एससी और ओबीसी समुदाय के संवैधानिक अधिकारों के वे कट्टर समर्थक रहे है. उठो ओबीसी, एससी और एसटी.. जागो एसटी, एससी और ओबीसी...
ઉચ્ચ સંસ્કાર ની વાતો કરનાર ભાજપના રાષ્ટ્રીય ચરિત્ર જુઓઃ ભાજપના રાષ્ટ્રીય મહામંત્રી ની હરકતો ફિલ્મો નાં ગુંડા રાજકીય માણસ થી કમ નથી. ખૂન,ખંડણી માં જેલની હવા ખાય ચૂકેલા અને RTI એકટિવિસ્ટ ની સુપારી આપનારને ટેકો આપનાર ક્રિમિનલ માઈન્ડને હોદો આપનાર કેવા હોય ?
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গোল্ডম্যানের পর নমো প্রশস্তি নোমুরার মুখেও
এই সময়: গোল্ডম্যান স্যাক্স-এর পরে এবার মোদীকে প্রধানমন্ত্রী হিসাবে দেখার আশা প্রকাশ করল জাপানি ব্রোকারেজ সংস্থা নোমুরা৷ এর ফলে বর্তমান ইউপিএ সরকারের ভারতে বিদেশি বিনিয়োগ টানার প্রয়াস অনেকটাই মার খাবে বলে মনে করা হচ্ছে৷ দেশে বিনিয়োগ টানার লক্ষ্যে এ বছরের জুলাই মাসে কানাডা ও আমেরিকার শিল্পসংস্থাগুলির সঙ্গে বৈঠক করেন অর্থমন্ত্রী পি চিদম্বরম৷ বিদেশি বিনিয়োগকারীদের এ দেশে বিনিয়োগের সুফল নিয়েও বোঝান চিদম্বরম৷ কিন্ত্ত, বিদেশি বিনিয়োগকারী এবং ব্রোকারেজ সংস্থাগুলির উপর তার কোনও প্রভাব পড়েনি৷ নোমুরার বক্তব্যই তার প্রমাণ৷ ২০১৪ সালের মাঝামাঝি ভারতে লোকসভা নির্বাচন হতে চলেছে৷ ওই নির্বাচনে মোদীর নেতৃত্বে ভারতীয় জনতা পার্টির ক্ষমতায় আসার সম্ভাবনা প্রবল বলে জানিয়েছে জাপানি সংস্থাটি৷ নোমুরার রাজনৈতিক বিশ্লেষক অ্যালাস্টেয়ার নিউটন বলেন, '২০১৪-লোকসভা নির্বাচনের পরে বিজেপির নেতৃত্বে জোট সরকার গঠন হবে বলেই নোমুরার আশা৷' তবে, তাঁর রাজনৈতিক পূর্বাভাষ থেকে সরে এসে নিউটন বলেন, 'বিজেপি বা কংগ্রেস যে পার্টিই সরকার গড়ুক, দেশের ব্যবসায়িক অবস্থার উন্নতির জন্য একটি স্থিতিশীল সরকারের প্রয়োজন৷'
ভারতে নোমুরার মুখ্য অর্থনীতিবিদ সোনাল ভার্মা বলেন, 'দেশে রাজনৈতিক স্থিতাবস্থা এলে বিনিয়োগ সংক্রান্ত মন্ত্রিসভা যে প্রকল্পগুলিতে ছাড়পত্র দিয়েছে সেগুলির কাজ শুরু হবে বলেই আমাদের বিশ্বাস৷' তিনি বলেন, 'শিল্প সংস্থাগুলি তাদের দীর্ঘমেয়াদি বিনিয়োগের সিদ্ধান্ত নেওয়ার ক্ষেত্রে রাজনৈতিক স্থিতাবস্থা এবং বিশ্বাসযোগ্যতাকে সব থেকে বেশি গুরুত্ব দেয়৷ এর ফলে (বিজেপি ক্ষমতায় এলে) ২০১৪ সালের তৃতীয় ত্রৈমাসিকের (জুলাই-সেপ্টেম্বর) পর থেকে দেশের অর্থনীতি ধীরে ধীরে ঘুরে দাঁড়াবে৷' তবে, তৃতীয় কোনও শক্তি ক্ষমতায় এলে বা ত্রিশঙ্কু সরকার গঠিত হলে সংস্কারের গতি স্লথ হওয়ার পাশাপাশি বৃদ্ধি মার খাবে, জানিয়েছেন ভার্মা৷
এ মাসের গোড়াতেই মোদীর প্রশংসা করে সরকারের নিন্দা কোড়ায় আন্তর্জাতিক আর্থিক প্রতিষ্ঠান গোল্ডম্যান স্যাক্স৷ তাদের এক রিপোর্টে, ভারতীয় শেয়ার বাজারের উত্থানের পূূর্বাভাস দিয়ে আগামী বছর সাধারণ নির্বাচনে 'ব্যবসা-বন্ধু' মোদীর ক্ষমতা দখলের ইঙ্গিত করেছে গোল্ডম্যান স্যাক্স৷ কিন্ত্ত, ওই রিপোর্টকে 'একপেশে' এবং 'রাজনৈতিক রং জড়ানো' বলে উল্লেখ করেন কেন্দ্রীয় বাণিজ্য মন্ত্রী আনন্দ শর্মা৷ তবে, আত্মপক্ষ সমর্থন করে রিপোর্টে কোনও পক্ষপাতিত্ব নেই বলে জানায় গোল্ডম্যান স্যাক্স কর্তৃপক্ষ৷ রিপোর্টে স্পষ্ট বলা হয়েছে, শেয়ারে বিনিয়োগকারীরা বিজেপিকে বিনিয়োগ-বান্ধব বলে মনে করেন৷ তাই বিজেপি সরকার ক্ষমতা এলে দেশের শেয়ার বাজার ঊর্ধ্বমুখী হবে৷ ২০১৪ সালের শেষের দিকে ন্যাশনাল স্টক এক্সচেঞ্জ সূচক নিফটি ৬৯০০ পয়েন্ট স্পর্শ করতে পারে বলে জানিয়েছে সংস্থাটি৷
মোদির হয়ে ব্যাট করেছেন হংকং-এর ব্রোকারেজ সংস্থা সিএলএসএ-র ক্রিস্টোফার উড৷ তার 'গ্রিড অ্যান্ড ফিয়ার' শীর্ষক নিবন্ধে উড বলেছেন, 'ভারতে মোদি হাওয়া ঘনীভুত হচ্ছে এবং এতে কোন সন্দেহ নেই৷ সাধারণ নির্বাচনে মোদির জয়ের সম্ভাবনা প্রতিনিয়ত বাড়ছে৷'
মোদীর রাজ্যে কোটিপতি হচ্ছেন কৃষকরা
এই সময়: কথায় বলে ছেঁড়া কাঁথায় শুয়ে লাখটাকার স্বপ্ন দেখতে নেই৷ কিন্ত্ত মোদীর রাজ্যের কৃষকরা লাখটাকা কেন, এখন কোটি টাকার স্বপ্ন বুনছেন৷
গাড়ি কারখানার জন্য বিখ্যাত সানন্দ৷ ন্যানোর সিঙ্গুর থেকে সানন্দ যাত্রা সর্বজনবিদিত৷ সানন্দ থেকে ১৭ কিলোমিটার দূরে খোরাজ গ্রাম৷ ছ'হাজার জনসংখ্যার গ্রামে এ সপ্তাহে ১২০০ কোটি টাকার ধনবর্ষা নামতে চলেছে৷ সৌজন্যে গুজরাটের শিল্প উন্নয়ন নিগম৷ সানন্দ সংলগ্ন ইন্ডাস্ট্রিয়াল এস্টেট বা শিল্পতালুক সম্প্রসারণের সিদ্ধান্ত নিয়েছে গুজরাট সরকার৷ যার জেরে খোরাজ গ্রামের ১৫০০ হেক্টর জমি অধিগ্রহণ প্রয়োজন৷ এর জন্য মোদী-সরকার ৪৫০টি পরিবারের থেকে জমি কিনে নেওয়ার কথা বলেছে৷ প্রতি বর্গমিটার জমির দর প্রায় ১১০০ টাকা ধার্য করেছে গুজরাট সরকার৷ এক হেক্টর জমি মানে দশ হাজার বর্গমিটার৷ অর্থাত্, প্রতি হেক্টর জমি কিনতে ন্যূনতম এক কোটি ১০ লক্ষ টাকা দিচ্ছে গুজরাট শিল্প উন্নয়ন নিগম৷ সরকারের তরফে জানানো হয়েছে, মোট ১২০০ কোটি টাকার বিনিময় খোরাজ গ্রামের ১৫০০ হেক্টর জমি কিনে নেওয়া হচ্ছে৷ দেখা যাচ্ছে, প্রতি পরিবার ন্যূনতম দু'কোটি ৬০ লক্ষ টাকা পাচ্ছে৷ তাই খোরাজ গ্রামের চাষিরা এখন বাংলো বাড়ি ও দামি এসইউভি গাড়ি কেনার পরিকল্পনা করে ফেলেছেন৷
এ গ্রামেরই বাসিন্দা কাশীরাম পেশায় সবজি বিক্রেতা৷ তিন হেক্টরের কিছু বেশি জমির মালিক কাশীরাম শেষ জীবনটা বৈভবের মধ্যেই কাটাতে চান৷ ৬০ পেরোনো কাশীরাম জানালেন, 'আমি সাড়ে তিন কোটি টাকা পাবো৷ দুই মেয়েরই বিয়ে হয়ে গিয়েছে৷ তাই কিছুটা নিশ্চিন্ত৷ ভাবছি ছেলেদের একটা বড় বাড়ি করে দেব৷ ওদের এসইউভি গাড়ি কিনে দেব৷ বাকি টাকাটা নিশ্চয় অন্য কোথাও বিনিয়োগ করব৷ আমাদের বুড়ো-বুড়ির চলে যাবে৷' সরকারের দেওয়া টাকা নিয়ে সতর্ক পদক্ষেপ ফেলতে চান স্থানীয় স্কুলশিক্ষক রামসিং যাদব৷ বছর ৫৫-র রামসিংয়ের সাত হেক্টরের মতো জমি রয়েছে৷ তিনি জানালেন, 'আমি তো আট কোটি টাকা পাবো৷ আমার ছেলের একটা ছোট গাড়ি রয়েছে৷ ভাবছি ওটা বেচে একটা বিলাসবহুল সেডান গাড়ি কিনব৷ আমার ভাইদের জমি মিলিয়ে মোট ১৫ কোটি আসবে৷ ভাবছি অন্য একটা গ্রামে একটু জমি কিনে রাখব ওই টাকা দিয়ে৷'
গুজরাট শিল্প উন্নয়ন নিগমের অফিসার অন স্পেশাল ডিউটি ঘনশ্যাম চাভদা জানালেন, খোরাজ গ্রামের মানুষরা জমি দিতে খুবই উত্সাহিত৷ মোটা টাকা পাওয়া যাবে এই ভেবে জমি বিক্রি নিয়ে একটুও দ্বিধাগ্রস্ত নন তারা৷ গুজরাটের জমি অধিগ্রহণ নীতিতে আপাতত সবচেয়ে বেশি উপকৃত হয়েছে খোরাজ গ্রাম৷ ১২০০ কোটি টাকার মধ্যে ২০০ কোটি টাকার চেক ইতিমধ্যেই বিলি করা হয়ে গিয়েছে৷ এ সপ্তাহে দফায় দফায় বাকি চেক বণ্টন শুরু হবে৷ খোরাজের গ্রাম প্রধান বিলাসবেন যাদবও বলেছেন, জমিতে ভালো 'রিটার্ন' পাওয়া যায় এই আশাতে শতাধিক গ্রামবাসী সরকারকে জমি দিতে উত্সাহ দেখিয়েছেন৷ শুধু খোরাজ গ্রাম নয়, সানন্দ সংলগ্ন বোল, চারোডি, গোকুলপাড়া গ্রামেও স্বতোপ্রণোদিত হয়ে সরকারকে জমি দিতে আগ্রহ দেখিয়েছেন গুজরাটের কৃষকরা৷
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