कानूनी लड़ाई के बाद साहित्य के मोर्चे से फिर मुख्यमंत्री के विरुद्ध आईपीएस साहित्यकार नजरुल इस्लाम की खुली बगावत,लोकसभा चुनाव भी लड़ सकते हैं
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
बंगाल की मुख्यमंत्री फिलहाल सही मायने में अग्निकन्या से ज्यादा अपराजेय जननेत्री है।हावड़ा नगर निगम चुनावों में मुंह की खाने के बाद बड़बोले कामरेडों तक की बोलती बंद हो गयी।बहरमपुर में अधीर चौधरी के गढ़ में अपने तो सिपाहसालार भी दाखिल कराने में कामयाब हो गयी दीदी।एक के बाद एक पालिका बोर्ड ताश के पत्ते की तरह ढह रहे हैं। दलबदल करके कांग्रेसी तमाम जनप्रतिनिधि तृणमूल में शामिल हो रहे हैं ताकि सत्ता की मलाई से वंचित न हों।जान बचाने भागे भागे फिर रहे हैं क्रांतिकारी वामपंथी। शारदा फर्जीवाड़े मामले में कुमाल घोष के फेसबुक मंतव्य और वीडियो वक्तव्य के सहारे कांग्रेस और वामपंथी सीबीआई मांग को लेकर टीवी पर नजर आ रहे हैं,जबकि सड़कों पर उतरने की कोई सूरत बची नहीं है। रायगंज में दीपा दासमुंशी से लेकर बहरमपुर में अधीर चौधरी तक खतरे में हैं। फौजदारी मामले में केंद्रीय मंत्री अधीर चौधरी को अग्रिम जमानत जरुर मिल गयी है,लेकिन एक के बाद एक उनके सिपाहसालार तृणमूल गच्छामि मोड में हैं।प्रियरंजन दासमुंशी के भाई ने तृणमूल में शामिल होकर बहुचर्चित बउदी की जुबान पर लगाम कस दी है।अब असम से अल्पसंख्यक मोर्चे की ओर से मुसलिम बहुल बंगाल की सोलह लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा हुई है।
इन सबसे बेखबर दीदी के अश्वमेधी घोड़े अब माकपाइयों का पूरा सफाया करने के साथ उत्तर बंगाल में कांग्रेस के आखिरी किलों को ध्वस्त करने के मकसद से दौड़ पड़े हैं।भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व राज्य भाजपा के जंगी तेवर के उलट दीदी की पूजा आरती में लगा है।बंगाल में वोटों का बंटवारा होता नहीं है।सत्तापक्ष और विपक्ष में वोटों का सीधे ध्रूवीकरण होता है।विपक्ष का वजूद है ही नहीं,तो अगले लोकसभा चुनाव में बंगाल और बाहरी राज्यों से कुल जमा पैंतीस से लेकर चालीस सीटें हासिल कर लेने पर भी त्रिशंकु जनादेश की स्तिति में दीदी के प्रधानमंत्रित्व की संभावना प्रबल है।
बंगाली जनमानस और वोटरों के लिए बंगाली राष्ट्रपति के साथ बंगाली प्रधानमंत्री का जो सपना बुना जा रहा है और दीदी की अपराजेय लोक्रियता और तानाशाही की हद तक उनके प्रशासनिक तेवर से पूरे बंगाल में एक शख्स हैं,जो मुकाबला करने को तैयार हैं।
वे हैं आईपीसी अफसर नजरुल इस्लाम।जिन्होंने मुख्यमंत्री के खिलाफ सेवा में रहते हुए थाने में जाकर एफआईआर दर्ज करायी।रेलमंत्री जब थी दीदी तो उनके साथ थे नजरुल इस्लाम भी।रेलमंत्रालय के कार्यकाल को लेकर नजरुल ने ही दीदी को भ्रष्टाचार के आरोपों से घेरा है। इसके अलावा मुसलमानों के वोटबैंकपर कब्जे की दीदी राजनीति की धज्जियां उड़ाते हुए मुसलिमदेर की करणीय ,शीर्षक पुस्तक लिखी है,जिसे बाजार से उठवाने का प्रयास करके भी हार गयी सरकार।इसके बाद बंगाल में एकाधिकारवादी वर्ण वर्चस्व के विरुद्ध उन्होंने अनुसूचित जातियों,जनजातियों,पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को संबोधित करते हुए लिख दी दूसरी हंगामाखेज किताब,मूलनिवासीदेर की करणीय।मुसलिम क्या करे तक सीमित न रहकर मुसलमानों के मूलनिवासी पहचान को चिनिहित करते हुए बंगाल के दूसरे वंचित समुदायं को जोड़ते हुए उन्हें सीधे संबोधित करते हुए बंगाल में एक और परिवर्तन की राह बनाने में जुटे हैं नजरुल इस्लाम।
राज्य सरकार की सेवा में रहते हुए नजरुल ने मुक्.मंत्री के खिलाफ अदालत का दरवाजा भी खटखटाया और अपने मुकदमे की खुद पैरवी भी की।लेकिन अदलत से उन्हें उनका रुका हुआ प्रोमोशन नही मिल सका और सेवानिवृत्ति नजदीक है।
इसपर अस्सी के करीब पुस्तकें लिख चुके बांग्ला के प्रतिष्ठित उपन्यासकार लेखक नजरुल इस्लाम ने फिर अपने तरकश से ब्रहा्मास्त्र बतौर एक और पुस्तक निकाली है, आमार आईपीएस जीवन।दीदी के राजनीतिक स्वर्णकाल में नजरुल इस्लाम का यह विद्रोह इसलिए महत्वपूर्ण है कि वे राजनेता नहीं,सेवारतआईपीएस अफसर और देश के चुनिंदा कलमकारों में से हैं।इसके अलावा न केवल मुख्यमंत्री बंगाल के सर्वशक्तिमान सत्तावर्ग को खुली चुनौती भी दे रहै हैं नजरुल इस्लाम।
कोई अचरज नहीं कि इसी तेवर को पूंजी बनाने के फिराक में हैं ठहती हुई कांग्रेस।कांग्रेस में लौट रहे तृणमूल के एक और बागी सांसद सोमेन मित्र ने अगले लोकसभा चुनाव में नजरुल इस्लाम से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की पेशकश कर दी है। सोमेन मित्र से नजरुल की पुरानी मित्रता है।समझा जाता है कि प्रदेश कांग्रेस को किसी और से नहीं,बल्कि सीधे राहुल गांधी से इस मामले में हरी झंडी भी दे दी गयी है।
सोमेन मित्र ने ऐसी किसी पेशकश का न खंडन किया है और न वे पुष्टि करते हैं।लेकिन उन्होंने नजरुल इस्लाम से खास मुलाकात कबूल कर रहे हैं।
मुद्दे की बात तो यह है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह नजरुल इस्लाम भी स्वभाव से जिद्दी है। कानूनी,अदालती और रचनाकर्म के मोर्चे से वे लड़ाई लड़ रहे हैं फिलहाल। जाहिर है कि मोर्चा छोड़कर भागने वाले नहीं हैं नजरुल। या तो वे अपना अलग राजनीतिक मंच बनायेंगे या फिर कांग्रेस के टिकट से लोकसभा पहुंचकर दीदी को नयी चुनौती देने का विकल्प भी उनके पास है।फिलहाल उनके तरकश में एक और ब्रह्मास्त्र है,उसका इस्तेमाल वे करें न करें, उनकी मर्जी।
নজরুলের পদোন্নতি চান না মমতা?
বাংলালাইভ ‚ কলকাতা,২৩.০৮.১৩
260 Views
একদা ছিলেন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের ঘনিষ্ঠদের মধ্যে অন্যতম | কিন্তু এবার স্বয়ং মুখ্যমন্ত্রীর বিরুদ্ধে অভিযোগ আনলেন সিনিয়র আইপিএস অফিসার নজরুল ইসলাম | ইসলামের অভিযোগ, মুখ্যমন্ত্রীর নাকি তাঁর পদোন্নতিতে বাধা দিচ্ছেন |
শুধু মুখ্যমন্ত্রী নন | ইসলাম অভিযোগ এনেছেন মুখ্য সচিব, স্বরাষ্ট্র সচিব, ডিজিপি-সহ একাধিক উচ্চপদস্থ আমলা ও আধিকারিকের বিরুদ্ধে |
রীতিমতো হেয়ার স্ট্রিট থানায় অভিযোগ জানিয়েছেন নজরুল ইসলাম | সেখানে বলা হয়েছে সম্মানহানির জন্য নাকি তাঁর বিরুদ্ধে criminal conspiracy করা হয়েছে |
তার আগে অবশ্য মুখ্যমন্ত্রীকে ইসলাম জানান, মমতা যদি তাঁর অভিযোগের কথা না শোনেন তাহলে তিনি পুলিশে অভিযোগ জানাবেন | মমতাকে লেখা অভিযোগে ইসলামের বক্তব্য, মুখ্যমন্ত্রী এবং উচ্চ পদস্থ আমলাদের কাছে তিনি humiliated, harassed এবং defamed হয়েছেন |
এর আগেও রাজ্য সরকারের সঙ্গে বিতর্কে জড়িয়ে পড়েন ইসলাম | ২০১০-এ বুদ্ধদেব ভট্টাচার্যর সঙ্গে ঝামেলায় জড়িয়ে পড়েন তিনি | তখন মমতা ছিলেন রেলমন্ত্রী | তিনি ইসলামের জন্য রেলওয়েতে বিশেষ একটি পদ তৈরি করেন | মুখ্যমন্ত্রী হওয়ার পরে CMO-তে ইসলামকে officer-on-special-duty করে দেন মমতা |
কিন্তু এই সুসম্পর্ক বেশিদিন স্থায়ী হয়নি | দু পক্ষের স্নায়ুর লড়াই শুরু হয় ইসলামের একটি বই ঘিরে | গত বছর নভেম্বরে প্রকাশিত হয় 'মুসলমানদের করণীয়' | এই বইটির বিরোধিতা করে পদক্ষেপ করে রাজ্য সরকার |
জানা গিয়েছে এরপর ৩ ফেব্রুয়ারি নজরুল ইসলামকে জন্মদিনের শুভেচ্ছ জানান মুখ্যমন্ত্রী | তার উত্তরে ৭৬ পাতার চিঠি পাঠান ইসলাম | সেখানে প্রশ্ন তোলেন খোদ মমতার বিশ্বাসযোগ্যতা নিয়েই!
কিন্তু এই যাবতীয় বিতর্কে আপাতত মুখে কুলুপ রাজ্যের বাকি পুলিশকর্তাদের |
মুখ্যমন্ত্রীর বিরুদ্ধে অভিযোগ: পুলিসের পর আদালত, ব্যর্থ হয়ে ফিরতে হল আইপিএস অফিসার নজরুল ইসলামকে
Last Updated: September 28, 2013 10:21
পুলিসের দ্বারস্থ হয়ে ব্যর্থ হয়েছিলেন। ফিরিয়ে দিল আদালতও। মুখ্যমন্ত্রী, মুখ্যসচিব, স্বরাষ্ট্রসচিব, এবং রাজ্যপুলিসের ডিজির বিরুদ্ধে অভিযোগ জানিয়েছিলেন আইপিএস অফিসার নজরুল ইসলাম। হেয়ার স্ট্রিট থানায় সেই অভিযোগ তিনি দায়ের করলেও পুলিস জানিয়ে দেয় তাঁদের পক্ষে কোনও মামলা করা সম্ভব নয়। একই অভিযোগে আদালতের দ্বারস্থ হন প্রাক্তন আইপিএস অফিসার। আদালতেও খারিজ হয়ে যায় মামলা।
একসময় অত্যন্ত সুসম্পর্ক ছিল বর্তমান মুখ্যমন্ত্রীর সঙ্গে আইপিএস অফিসার নজরুল ইসলামের। মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় যখন রেলমন্ত্রী ছিলেন তখন তিনিই উদ্যোগী হয়ে নজরুল ইসলামকে রেলমন্ত্রকে নিয়ে গিয়েছিলেন। এরপর মুখ্যমন্ত্রী হওয়ার পর ফিরিয়েও এনেছিলেন রাজ্যে। কিন্তু গুরুত্বপূর্ণ কোনও পদ মেলেনি তাঁর। সম্পর্কেই চূড়ান্ত ফাটল ধরে যায় তখনই।
জন্মদিনের শুভেচ্ছার বিনিময়ে মুখ্যমন্ত্রীকে কড়া ভাষায় আক্রমণ করে চিঠি লিখেছিলেন নজরুল ইসলাম। এমনকী রেলমন্ত্রকে থাকাকালীন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় দুর্নীতিতে যুক্ত ছিলেন বলেও অভিযোগ করেন। রাজ্য সরকারের তরফে তাঁর পদোন্নতি আটকে দেওয়া হয়। বিভাগীয় ব্যবস্থা নেওয়া হয়। আর তাই সরকারি এই সিদ্ধান্তের প্রতিবাদে হেয়ার স্ট্রিট থানায় অভিযোগ দায়ের করেছিলেন নজরুল ইসলাম। মুখ্যমন্ত্রী, মুখ্যসচিব, স্বরাষ্ট্রসচিব, ডিজির বিরুদ্ধে অভিযোগ করেন। পুলিস তাঁর উত্তরে জানিয়ে দেয় এই অভিযোগে মামলা করা সম্ভব নয়। পুলিস কমিশনারকে অভিযোগ জানালে তিনিও একই উত্তর দেন। শুক্রবার তাই তিনি ব্যাঙ্কশাল আদালতে ১৫৬ এর ৩ ধারায় মামলা দায়ের করেন।
অর্থাৎ পুলিস যখন কোনও অভিযোগ নিতে অস্বীকার করে, তখন যেকোন ব্যক্তি আদালতের দ্বারস্থ হতে পারেন এই ধারাতেই তিনি মামলা দায়ের করেন।
সেই মামলাও খারিজ হয়ে যায় আদালতে। রাজ্য সরকার তথা মুখ্যমন্ত্রীর বিরুদ্ধে অভিযোগ জানানোর জন্য যেভাবে মরিয়া চেষ্টা চালাচ্ছেন নজরুল ইসলাম তাতে বেশ অস্বস্তিতে রাজ্য প্রশাসন।
মুখ্যমন্ত্রীর বিরুদ্ধে ফৌজদারি ধারায় মামলা দায়ের নজরুল ইসলামের
Last Updated: August 23, 2013 11:50
এবার সরাসরি মুখ্যমন্ত্রীর বিরুদ্ধে ফৌজদারি ধারায় অভিযোগ দায়ের করলেন আইপিএস অফিসার নজরুল ইসলাম। মুখ্যমন্ত্রীর একসময়ের অত্যন্ত ঘনিষ্ঠ এই আইপিএস অফিসার দীর্ঘদিন ধরেই কড়া ভাষায় তাঁর সমালোচনা করে চলেছেন। যে কারণে সরকারের তরফে তাঁর বিরুদ্ধে চার্জশিটও পেশ হয়েছে। আটকে গিয়েছে তাঁর পদোন্নতি। সে কারণেই এবার সরাসরি মুখ্যমন্ত্রী, মুখ্যসচিব, স্বরাষ্ট্রসচিব ও ডিজির বিরুদ্ধে ফৌজদারি মামলায় উদ্যোগী এই আইপিএস অফিসার।রেলমন্ত্রী থাকাকালীন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের অত্যন্ত কাছের আইপিএস অফিসার ছিলেন নজরুল ইসলাম। সময় গড়িয়েছে। রেলমন্ত্রকের পাঠ চুকিয়ে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় এখন মুখ্যমন্ত্রী। সঙ্গে করে নিয়ে এসেছিলেন নজরুল ইসলামকেও। কিন্তু বছর ঘুরতে না ঘুরতেই মধুচন্দ্রিমায় ছেদ। প্রথম গণ্ডগোলের সূত্রপাত একটি বইলেখাকে কেন্দ্র করে।
সেই বিতর্কের রেশ মিটতে না মিটতেই জন্মদিনে মুখ্যমন্ত্রীর শুভেচ্ছার প্রত্যুত্তরে চিঠি পাঠিয়ে কার্যত বিষদগার করেন নজরুল ইসলাম। কীভাবে দিনের পর দিন অনৈতিক কাজ করছেন রেলমন্ত্রী। এমনকি মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় রেলমন্ত্রী থাকাকালীন রেসমন্ত্রকে যে বেআইনী আর্থিক লেনদেনও চলত তারও অভিযোগ করেছেন তিনি। ফলে সম্পর্কের চূড়ান্ত অবনতি ঘটে যায়। এবার পাল্টা ব্যবস্থা নেওয়া শুরু করে রাজ্যও।
প্রথমে বইটির প্রকাশনা বন্ধের চেষ্টা করা হয়। তারপর মুখ্যমন্ত্রীর সম্মানহানী করা হয়েছে এবং ধর্মীয় ভাবাবেগে আঘাত করা হয়েছে এই অভিযোগে প্রথমবারের জন্য নজরুল ইসলামের বিরুদ্ধে চার্জশিট পেশ করা হয়।
মুখ্যমন্ত্রীর বিরুদ্ধে বিষদগার করা ওই চিঠির জন্য দ্বিতীয়বার তাঁর বিরুদ্ধে চার্জশিট পেশ করা হয়।
পাল্টা মামলা শুরু করেন নজরুল ইসলাম। সেন্ট্রাল অ্যাডমিনিসস্ট্রেটিভ ট্রাইবুনালে মামলা শুরু হয়। আটকে যায় পদন্নতি। সম্প্রতি সরকারকে চিঠি দিয়ে নজরুল ইসলাম অভিযোগ করেন, অনৈতিকভাবে তাঁর পদন্নোতি আটকে দেওয়া হয়েছে। এব্যাপারে যথাযোগ্য ব্যবস্থা না নিলে এবং নির্দিষ্ট সময়ের মধ্যে তাঁর চিঠির জবাব না পেলে ফৌজদারি মামলার হুঁশিয়ারি দেন।
নির্দিষ্ট সময়ে চিঠির জবাব না পাওয়ায় ফৌজদারি মামলার জন্য হেয়ার স্ট্রিট থানায় অভিযোগ দায়ের হয়েছে বলে জানা গেছে। তাতে মুখ্যমন্ত্রী, মুখ্যসচিব, স্বরাষ্ট্রসচিব, ডিজি এবং আরও দুই পদস্থকর্তার নাম রয়েছে।
সরকারের সঙ্গে আগেও বিরোধিতায় গিয়েছেন নজরুল ইসলাম। কিন্তু রাজ্যের একজন আইপিএস অফিসারের এভাবে সরাসরি প্রশাসনের শীর্ষ কর্তাদের বিরুদ্ধে ফৌজদারি মামলা দায়ের কার্যত নজিরবিহীন।
মুখ্যমন্ত্রীকে বিস্ফোরক চিঠি নজরুল ইসলামের
Last Updated: March 11, 2013 23:20
মুখ্যমন্ত্রীকে বিস্ফোরক চিঠি দিলেন আইপিএস অফিসার নজরুল ইসলাম। তেসরা ফেব্রুয়ারি তাঁর জন্মদিনে মুখ্যমন্ত্রীর পাঠানো শুভেচ্ছাবার্তা অগ্রাহ্য করে তীব্র ক্ষোভ জানিয়ে চিঠি লিখেছেন তিনি। তাঁকে অপদস্থ করার জন্য সরাসরি অভিযোগ এনেছেন মুখ্যমন্ত্রীর সচিবালয়ের কার্যত প্রধান গৌতম সান্যালের বিরুদ্ধে।
চিঠিতে তিনি জানিয়েছেন, দিল্লি থেকে তাঁকে ডেকে এনে তাঁকে ওয়াকফ বোর্ডের চেয়ারম্যানের পদ নিতে বলা হয়। তাঁর পদমর্যাদার সঙ্গে ওই পদ সামঞ্জস্যপূর্ণ নয় বলে মুখ্যমন্ত্রীর সামনেই দায়িত্ব নিতে অস্বীকার করেন তিনি। তিনি জানান, এডিজি পদের কোনও আইপিএস অফিসারই ওয়াকফ বোর্ডের চেয়ারম্যান পদে নিযুক্ত হতে পারেন না। তাঁকে শিক্ষা দফতরের প্রিন্সিপ্যাল সচিবের পদ দেওয়া যেতে পারত। অথবা পুলিসের এমন কোনও পদ দেওয়া যেতে পারত যেখান থেকে তিনি পুলিসের বদলি, টেন্ডার খুঁটিয়ে পরীক্ষার কাজ চালাতে পারতেন।
এমনকী এরাজ্যে চিটফান্ডগুলি যে ভাবে প্রতারণা চালিয়ে যাচ্ছে, সেবিষয়েও নজরদারি চালানোর উপযোগী কোনও পদ দেওয়া যেতে পারত। চিঠিতে তিনি একথাও জানিয়েছেন, এই সরকারের ঘনিষ্ঠ লোকজনেরাই চিটফান্ডগুলির সঙ্গে যুক্ত। ওয়াকফ বোর্ডের চেয়ারম্যানের দায়িত্ব নিতে অস্বীকার করায় মুখ্যমন্ত্রী আর দেখতে চান না বলে তাঁকে মহাকরণ থেকে চলে যেতে বলেন গৌতম সান্যাল। এই আইপিএস অফিসারের অভিযোগ, মুখ্যমন্ত্রীকে খুশি করার জন্য চাটুকারিতায় ব্যস্ত থাকেন গৌতম সান্যাল। তাঁর অভিযোগ, সংখ্যালঘু উন্নয়ন নয় আসলে এই সরকারের প্রকৃত উদ্দেশ্য নয়। সিএমওর বিরুদ্ধে এই আইপিএস অফিসার তোপ দাগায় রীতিমতো অস্বস্তিতে খোদ মুখ্যমন্ত্রীও।
অ- অ+
Thu, 23 May, 2013 02:28 PM
'রেলমন্ত্রী' মমতার বিরুদ্ধে ঘুষের অভিযোগ
বাংলামেইল ডেস্ক
ঢাকা: ভারতের পশ্চিমবঙ্গের রেল মন্ত্রণালয়ের সাম্প্রতিক দুর্নীতির মধ্যেই ফের পুরনো এক ঘুষ কেলেঙ্কারির কথা সামনে আনলেন এক পুলিশ কর্মকর্তা। আইপিএস অফিসার নজরুল ইসলাম সেই দুর্নীতির জন্য কার্যত দায়ী করেছেন এ রাজ্যেরই বর্তমান মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়কে। মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় রেলমন্ত্রী থাকাকালীন ওই ঘটনার কথা এখন ফের লিখিতভাবে স্বরাষ্ট্র মন্ত্রণালয়কে জানিয়েছেন তিনি।
নয়াদিল্লিতে কেন্দ্রীয় স্বরাষ্ট্র মন্ত্রণালয়কে এই চিঠি পাঠানো হয়েছে এ রাজ্যের ডিজি এবং স্বরাষ্ট্রসচিবের মাধ্যমে। বর্তমানে রেলমন্ত্রকে যে দুর্নীতির অভিযোগ উঠেছে তার পরিপ্রেক্ষিতেই এই চিঠিটি দেওয়া হয়েছে বলে গত ১০ মে জানিয়েছেন পশ্চিমবঙ্গের এডিজি প্রভিশনিং ড. নজরুল ইসলাম। এর আগে রেলের প্রদান নিরাপত্তা কর্মকর্তার বিরুদ্ধে দুর্নীতির অভিযোগ জানিয়ে ২০১০ সালের ২২ মার্চ একটি চিঠি দিয়েছিল সিবিআই। যার তদন্ত করেছিলেন সেই সময় রেলমন্ত্রীর বিশেষ আস্থাভাজন নজরুল ইসলাম। আর সেই তদন্তকে কেন্দ্র করেই দুর্নীতির সূত্র মিলেছিল। যার উল্লেখ ও বিস্তারিত বিবরণ রয়েছে ওই চিঠিতে।
ড. নজরুল ইসলাম তার পাঠানো চিঠিতে লেখেন, 'আমি রেলমন্ত্রীর মতামত জানতে চেয়েছিলাম। সেই কারণে আমি তার চেম্বারে গিয়ে অভিযোগগুলো দেখাই এবং তার মতামত জানতে চাই। রেলমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় অত্যন্ত দৃঢ়তার সঙ্গে তাকে সাসপেন্ড করতে বলেন। আমি যথেষ্ট নিষ্ঠার সঙ্গে তদন্ত শুরু করলাম এবং অভিযোগ খতিয়ে দেখে এই সম্পর্কিত আইন এবং নিয়মগুলো খতিয়ে দেখলাম। আমি মুম্বাই যেতে চেয়েছিলাম আরও তথ্য সংগ্রহের জন্য। পরে দিল্লিতে বসেই যতটা সম্ভব তথ্য জোগাড় করে কাগজপত্র তৈরি করলাম। ডিজি, সেক্রেটারি, মেম্বার স্টাফ এবং রেলমন্ত্রীর ওএসডি আমার সঙ্গে কাগজপত্র নিয়ে আলোচনা করলেন। আমি ব্যক্তিগতভাবে রেলমন্ত্রীর ওএসডিকে জানালাম, রেলমন্ত্রী নির্দিষ্ট করে ওই দুর্নীতিপরায়ণ আইপিএস অফিসারকে সাসপেন্ড এবং বরখাস্ত করতে চেয়েছেন, তাই আমি রেলমন্ত্রীকে পুরো বিষয়টি জানাতে চাই। ওএসডি বললেন তিনি আলোচনা করে আমাকে ডাকবেন। কিন্তু আমাকে ডাকেননি।'
তদন্তে বেশকিছু তথ্য পাওয়া গেলেও স্বরাষ্ট্র মন্ত্রণালয়কে তা জানায়নি রেল মন্ত্রণালয়। সাসপেন্ড করা দূরের কথা, বরং কোনো অনুমোদন ছাড়াই রেল মন্ত্রণালয় সেই অফিসারকে ছেড়ে দেয়।
নজরুল ইসলাম লিখেছেন, 'খবর পেয়েছি, ওই অফিসারকে বাঁচাতেই এই ব্যবস্থা করা হয়েছিল, তবে তার জন্য মোটা অঙ্কের টাকা নেওয়া হয়েছিল।'
বিযয়টি সরাসরি তৎকালীন রেলমন্ত্রী মমতা ব্যানার্জিকে জানাতে চেয়েছিলেন নজরুল ইসলাম। তিনি চিঠিতে উল্লেখ করেন, 'প্রথমদিকে আমি তার (মমতা ব্যানার্জি) চেম্বারে সরাসরি চলে যেতাম। কিছুদিন পরে, গৌতম সান্যাল আমাকে জানান, রেলমন্ত্রী অনুমতি নিয়ে ঢোকার কথা বলেছেন। আমি তাকে জানিয়ে দিই, এটা কোনো সমস্যা নয়। ভবিষ্যতে আমি ওএসডিকে জানিয়ে অনুমতি নিয়েই ঢুকব। কিন্তু পরে আমি বুঝতে পারলাম, এটা রেলমন্ত্রীর সঙ্গে যেন আমার যোগাযোগ না থাকে তার জন্যই করা, এব্যাপারে রেলমন্ত্রীর অনুমোদনও থাকতে পারে।'
সবকিছু বুঝে আইপিএস নজরুল ইসলাম শেষ পর্যন্ত মারাত্মক অভিযোগ এনেছেন খোদ তৎকালীন রেলমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের বিরুদ্ধেই।
রেলমন্ত্রী থাকাকালীন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় ও তার মন্ত্রণালয়ের বিরুদ্ধে ওঠা ওই অভিযোগ পেয়ে এবার নতুন করে তদন্ত শুরু হয়েছে। সূত্র ২৪ ঘণ্টা।
বাংলামেইল২৪ডটকম/আরপি/ ১৪২৮ ঘণ্টা, ২৩ মে ২০১৩
মুখ্যমন্ত্রীর বিরুদ্ধে 'হেনস্থা'র অভিযোগ নজরুলের
এই সময়: স্বয়ং মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের বিরুদ্ধে 'হেনস্থা'র অভিযোগ তুলে থানায় অভিযোগ দায়ের করলেন বিতর্কিত আইপিএস অফিসার নজরুল ইসলাম৷ মুখ্যমন্ত্রী ছাড়াও মুখ্যসচিব সঞ্জয় মিত্র ও স্বরাষ্ট্রসচিব বাসুদেব বন্দ্যোপাধ্যায়ের বিরুদ্ধেও তিনি অভিযোগ দায়ের করেছেন৷
যদিও এ বিষয়ে প্রকাশ্যে কোনও মন্তব্য করতে চাননি নজরুল ইসলাম৷ তাঁর বক্তব্য, 'আমি এ নিয়ে কিছু বলব না৷' অন্য দিকে তাঁর দায়ের করা অভিযোগ নিয়ে মুখে কুলুপ এঁটেছেন লালবাজারের কর্তারাও৷ যুগ্ম কমিশনার (সদর), রাজীব মিশ্রর বক্তব্য, 'আমি এ বিষয়ে কিছু জানি না৷ কোনও মন্তব্য করব না৷' যদিও হেয়ার স্ট্রিট থানা সূত্রে খবর, গত ১৭ অগস্ট বিতর্কিত এই আইপিএস যে অভিযোগ দায়ের করেছেন৷ সেখানে মমতা বন্দ্যোপাধ্যায় ছাড়াও সঞ্জয় মিত্র ও বাসুদেব বন্দ্যোপাধ্যায়ের নাম রয়েছে৷ নজরুল ইসলামের অভিযোগ, রাজ্য সরকার তাঁকে নানা ভাবে 'হেনস্থা' করছে৷ তাঁকে অপদস্থ করার জন্য সরকার 'জালিয়াতি' করছে৷ এমনকি সুপ্রিম কোর্টের রায়কে বিকৃত করা হচ্ছে তাঁকে কোণঠাসা করার জন্য৷ মুখ্যমন্ত্রী-সহ রাজ্য প্রশাসনের শীর্ষ আধিকারিকদের বিরুদ্ধে নজরুল ইসলাম ভয়ঙ্কর এই অভিযোগ দায়ের করায় প্রবল আলোড়ন তৈরি হয়েছে প্রশাসনিক মহলে৷ প্রবীণ এই আইপিএস অফিসারের অভিযোগ নিয়ে চাপে লালবাজারের পুলিশকর্তারাও৷
রাজ্য সরকারের সঙ্গে নজরুল ইসলামের সংঘাতের মাত্রা বৃদ্ধি পায় তাঁর একটি বইকে কেন্দ্র করে৷ রাজ্যের মুসলিম সম্প্রদায়কে নিয়ে তাঁর এই বই বিতর্ক তৈরি করে৷ এই বইয়ের মাধ্যমে সাম্প্রদায়িক উস্কনি ছড়ানো হচ্ছে বলে সরকারের তরফে অভিযোগ করা হয়৷ শীর্ষ সরকারি আধিকারিক হয়ে তিনি কী ভাবে এই বই লেখেন, সে প্রশ্ন তোলা হয়৷ বিভাগীয় তদন্ত হয় এই বিষয়ে৷ যদিও পরবর্তী সময়ে রেজিস্ট্রার অব পাবলিকেশন এই বইয়ের বিষয়বস্ত্ত খতিয়ে দেখে যে রিপোর্ট দেয়, সেখানে বই নিয়ে ওঠা অভিযোগগুলি খারিজ করে দেওয়া হয় বলে ওই পুলিশ অফিসারের দাবি৷ এই বইতে সাম্প্রদায়িক উস্কানি দেওয়ার মতো কিছু নেই বলে মত দেয় রেজিস্ট্রার অব পাবলিকেশন৷
কিন্ত্ত এর পরেও রাজ্য সরকারের সঙ্গে প্রবীণ এই আইপিএস অফিসারের সংঘাত থামেনি৷ মুখ্যমন্ত্রীকে পাঠানো তাঁর গোপন চিঠি নিয়েও বিতর্ক তৈরি হয়েছে৷ যে চিঠিতে সরকারের কিছু পদক্ষেপ নিয়ে প্রশ্ন তুলেছিলেন তিনি৷ নজরুল ইসলাম ঘনিষ্ঠ মহলে অভিযোগ করেছেন, এই গোপন চিঠিকে হাতিয়ার করে তাঁর বিরুদ্ধে তদন্ত করা হচ্ছে৷ অথচ বেআইনি অর্থলগ্নি সংস্থা পরিচালিত সংবাদমাধ্যম তাঁর বিরুদ্ধে লেখালিখি করলে, নজরুল ইসলামকে মামলা করার অনুমতি দেয়নি রাজ্য সরকার৷ উল্টে রাজ্য সরকার এই আইপিএস অফিসারের বিরুদ্ধে যে চার্জ গঠন করেছে, সেখানে সুপ্রিম কোর্টের রায়কে বিকৃত করা হয়েছে বলে অভিযোগ৷ তাঁর বিরুদ্ধে এ ভাবে চার্জ গঠন করাকে 'বিদ্বেষপ্রসূত' বলে ঘনিষ্ঠ মহলে অভিযোগ করেছেন নজরুল সাহেব৷
Birth |
Date of Birth: 03-02-1954 Place of Birth : Vill & P.O Jaikrishnapur, PS Jalangi, Dt Murshidabad, West Bengal |
* |
Parents |
Mother Lekzan Nesa, Father late Abdul Aziz. His father was a part-time marginal farmer and part-time daily labourer. Dr Nazrul Islam is the eldest of 7 brothers and 2 sisters. He was born at the dwelling house of his maternal grandfather. Her mother can only recollect that, it was a Tuesday morning. The Sun was just rising. A few days of Bengali month, Paush was left. Depending on it, some argue that, his actual date of birth must be some day on or about 10 January and not 3 February. At that time, there was not even a primary school at his paternal village, Ramna Basantapur, where he was brought up in the childhood. One village elder, Khodabakhsh Mandal, took him, along with others, to the primary school in the neighbouring village, Bhatsala. In the admission registrar, the headmaster of Bhatsala Primary School recorded his date of birth as 03-02-1954, as per the rough age given by Khodabakhsh Mandal. That continued to be his recorded date of birth. |
* |
* |
Name |
He was born at his maternal place. They gave him the name of 'Mani'. His paternal relatives gave him some name. His mother claims that he was given the name of 'Nazrul'. But as far as he remembers, before going to the primary school, he was not being addressed as 'Nazrul'. On the inquiry of the headmaster of Bhatsala Primary School, Khodabakhsh Mandal mentioned his name as 'Nuzbal'/ 'Nuzmal'. The headmaster did not like it. He recorded the name as 'Nazrul Islam', perhaps after Rebel Poet, Kazi Nazrul Islam. After he got the doctorate degree in 1991, his name became 'Dr Nazrul Islam'. In 1999, he decided to change his name to 'Bakul Bangali'. He made affidavit in the court and was about to announce the same in the newspapers, which is a requirement for the change to be effective. But some of his very close friends persuaded him not to make the change of name effective. [There was a rationale for the change of his name. He wrote a book on how the Hindu-Muslim relationship could be made cordial. One of his recommendations was that the name, which identifies a person with some particular religion or a particular caste of that religion, should be abolished and secular name should be encouraged. He thought that, he should implement it in his life. ] |
* |
* |
Education | |||
At this time, the primary school was just established in the neighbouring village, Bhatasala. At that time Elahi Mandal was the leader of their part of the village. The school authority approached him for sending some students. His eldest son, Khodabakhsh Mandal took Nazrul Islam, along with others, for admission to the school. In this school he met his most respected teacher in life, Shri Amarendranath Pal, who made Nazrul to dream big. Primary School : Amarendranath Pal was an outstanding teacher. He used to teach through play. The students used to just play and learn. Nazrul still remembers how Amarendranath Pal wrote some letters on small pieces of cardboard and they were asked to arrange these in order and in the way taught them how to make correct words by arranging necessary letters and correct sentence by arranging necessary words in proper sequence and putting the punctuation marks properly. On Saturday's routine he did not keep any usual classes. Instead, he used to arrange the weekly programme called 'Saptahik Asar'. In it students had the option to take part as per his or her ability. One could sing. Another could dance. Yet another could recite. Being from the family of an illiterate daily labourer, Nazrul could not learn singing and dancing. Mr Pal made him to deliver a speech on some selected topics. The topics included the life of many great men. Their lives inspired Nazrul to aspire for dream high. When he read the life of some scientist like Jagadishchandra Basu or Dalton, he aspired to be a scientist. When he read the life of some patriot like Gandhiji or Netaji, he aspired to be a patriot. When he read the life of some literatteur like Rabidranath or Kazi Nazrul, he aspired to be a literatteur. The life of Vidyasagar was more inspiring to him. Vidyasagar was born of a poor family. Yet he got education and established educational institutions for his countrymen and struggled hard to reform the society. Nazrul was also born in a poor family. Thus, if educated like Vidyasagar, one day he would also be in position to do something for his country and countrymen. Nazrul thinks that, whatever achievement he accomplished in life is due to the teaching of Amarendrnath Pal of Bhatsala Primary School.
Higher Secondary School : His father was not in favour of his further education. His father thought that, his son had enough education to check the correctness of revenue receipt and read and write letters. So he should learn cultivation. The son of a cultivator would not get any job. So he would starve in case he failed to master cultivation. His mother was in favour of his education up to High School. One of her maternal cousins had passed High School, went to Pakistan and got a job. So her son also might get some job. Nazrul's primary teacher, Amarendranath Pal got him admitted in the Dumkal Higher Secondary School. He passed Higher Secondary (XI) form this school in 1971. He was lucky that the school was within a few kilometres from his native village. So he could attend the school on foot. If there was no such school he could not study well. But he realised in his later life that the standard of the school was very low and many of the teachers were not suitable to cover the syllabus. This was a hindrance in his competing in the competitive examination. Nazrul always used to score very good marks in Geography. But when he saw the syllabus for Central Civil Services Examination, he found that he did not study anything about Australian, North American and South American continents. He did not study anything about glacier, aurora australis, and avalanche. Why? Because, suppose, the book of Geography contained 250 pages as per syllabus. The subject teacher covered only 40 pages. Examination was held from the 40 pages. 210 pages were not covered. In this way, from class V to class VIII, he learnt only 160 pages of 1000, which is only 16% of the syllabus. How could he compete with a student who covered 100%? He was compelled to cover the rest 84% of his school syllabus, after graduation, that also of his own effort. Nazrul chose Science stream. Syllabuses of no Science subjects except Biology – Physics, Chemistry, and Mathematics - were covered fully. For example, in Higher Secondary Mathematics syllabus contained 'Binomial Theorem'. The Mathematics teacher left it aside on the plea that sufficient number of questions would be available from other chapters to answer the required number of questions. It was right. But he did not tell that this theorem was necessary to study Mathematics in the college. In those days, Core Mathematics was taught to the Higher Secondary science students. At that age, the students like Nazrul were not aware that this subject was 'core' to future learning. One might not study Elective Mathematics. But he must study Core Mathematics. But the teacher taught them differently. They emphasised that as there would no final examination by the Board, so the students should not bother much for Core Mathematics. Nazrul remembers that, only a very small portion of the syllabus was covered. Almost entire syllabus of Core Mathematics was never touched. Thus he did not learn anything about mean, median, mode, standard deviation of statistics. But these were included in the General Knowledge syllabus of Central Civil Services Examination. So he was compelled to learn these anew for the examination. Then it was very difficult for him to compete with those students who were taught these in their schools.
There were topics like 'Upasarga', 'Anusarag', 'Pratyay' and 'Natwa bidhan-Shatwa-bidhan' in the Higher Secondary Bengali syllabus. The subject teacher did not teach these. These are required not only for passing examination, but also for writing correct Bengali. These are required for understanding words formation, spelling and sentences, which are life-long requirement. So the unsuitable teachers made their students to suffer lifelong. Why are we writing these things? Dr Islam wants to make the students aware so that they do not suffer likewise. It is very difficult to compensate such loss in the school life. This is why almost all students of good schools with qualified and dutiful teachers are generally established in life. But the majorities of students of ordinary schools with unqualified and callous teachers fail to make any mark in life. College : The college life of Nazrul Islam was a tragic one. Their economic condition was very bad. To add fuel to fire, there was a devastating flood in 1971, the year he passed HS. Crops were damaged. The cattle died. His father tried to do a part-time business in buying raw jute and selling it in the 'arhat' of 'mahajan'. The 'mahajan', Khokan Thakur, took the jute from his father and decamped overnight. He did not pay the price. His father could not avoid paying the local people from whom he purchased the jute in credit. The administration did not come to his help. His father had neither ability nor courage to approach the court. The court was situated in the district headquarters, where the house of the cheater 'mahajan' was situated and he was reported to patronise some criminals for intimidating the wretched people like the father of Nazrul whom he had cheated. Nazrul went to him thrice. He gave dates after date and did not pay. His father had to sell a portion of his land for paying the money. So his father was not in a position to pay the money required for his admission in the college. He worked as daily labourer and earned some money and got him admitted in the college with the money. He could not afford any lodging at Berhampore. So he had to travel twice daily the distance 5 kms on foot and 35 kms in bus. At that time, there was no bridge over the Bhairab River. All had to cross it on boat. It was time-consuming. The bridge on the Bali Channel was on floating drums. The passengers had to cross it on foot. It also took time. Thousands of refugees from the then East Pakistan took shelters on the roadsides. It also made the speed of the buses very slow. For covering a distance of 35 kms it took about two hours and sometime more than that. Nazrul used to get up very early in the morning, take his bath, take food and start for the college at seven. He almost ran to reach the BDO Crossing for catching the bus at about eight in the morning. The bus was overcrowded. It was difficult to get inside. He had to hang from the handle for some distance. Then he could get in, but getting a seat was beyond any possibility. At about 1030, the bus used to reach the Berhampore Bus-stand. Getting down from the bus, he again began to walk hurriedly. But he could not reach the college before one or two periods were over. The classes were used to be over by 1730, except on days when the practical classes were at the end and the practical classes took more time.
From the college he used to hurriedly rush to the bus-stand, board the bus, stand in the bus till it reaches Dumkal. He needed money as bus fare. So at Dumkal he had to give tuition to children of well to do family. When the tuition was over it was generally 10 passed. Completely exhausted – heavily tired and highly hungry – he used to set feet towards home. He generally used to reach home at about 12/ 1230. He took the food, if there was any, and went to sleep. After a few hours the hectic activities for the next day used to start. He had no time to study. No time to take rest. No time to think. Moreover, on account of his utter poverty, he could not buy even a single book. He could not buy even the exercise books for taking class-notes. So in the college days he could not make any study. There were two more hindrances. Firstly, he was drawn to the ideas of communism by his schoolteacher, Abdul Bari, who was a CPI (M) MLA from Dumkal Assembly Constituency. But very soon he found that CPI (M) was not doing much for the very poor people like him. So he was attracted towards the more radical Naxallite Movement. It dented into his already meagre time. Secondly, during his school days, he used to take part in debating. He represented his school in the inter-school debates and stood first in the district. In his college days he represented his college in may competitions, including all Bengal and all India level competitions and also got first prizes for his college. This gave him some pleasant moments in his very miserable college days. But it further reduced his study time for the honours course.
University : Though Nazrul Islam sometime dreamt of becoming a scientist, he did not have the chance to attend any university regularly. Just after graduation, he joined service. During the service period, he passed Special BA, passed M A, and obtained Ph D and D Litt degrees fromCalcutta University and M B A degree from Jadavpur University. | |||
* |
* |
Life |
He began his life as 'Mani' at his maternal village. Very soon he was brought to his paternal place and became 'Nuzbal'/ 'Nuzmal'. Admission record in the primary school made him Nazrul Islam. After primary school he was admitted in the Dumkal Higher Secondary School. He passed his Higher Secondary Examination, in Science Stream with higher First Division and Letter Marks, in 1971. He got himself admitted in B Sc (Honours in Chemistry). He obtained his B Sc degree from this college. The final examination was scheduled to be held in 1974. It was actually held in 1975 and the result was out much later. So he passed the B Sc of 1974 in 1976. He began his career as a daily labourer. He left his paternal house and took a job of Private Tutor at a village in Hooghly district, at a monthly salary of Rs 100. At the intervention of his college teacher, Dr Asish Chatterjee, he joined as a temporary Laboratory Assistant of Krishnath College, Berhampore, at a monthly salary of Rs 150. Through the Clerkship Examination, he joined as a Lower Division Assistant in the Writers Buildings in 1977. He appeared at many competitive examinations like WBCS (Executive) etc, ASM in Railways, Guard in Railways, KGO in Land & Land Reforms Department. Through these examinations, he got five jobs at a time. He joined as ARCS (WB Co-operative Service) in the Co-operative Directorate of Govt of WB, New Secretariat Buildings in 1978. Through the Central Civil Services Examination 1980, he joined Indian Police Service in 1981.
|
* |
* |
Mentors/ whom he remembers |
He remembers his both parents, who cultivated first the idealism in him. Besides them there are few more persons, whom he remembers till today for affecting his life. Ichharuddin Fakir played an important role in his life. He was being revered as a 'pir'. He used to live a life of pious Muslim. But he had no dogmatism. People of the area used to believe that he used to wield supernatural power. They believed that, he had command over the angels and fairies. He could walk over the water. He could fly in sky. The ferocious animals like tiger respected and made way for him. He could exorcise ghosts. His popularity cut across the religious lines. People used to come to him for exorcising ghosts and curing of other disease. He could realise hefty amount from them, as is done by the so-called sacred men. But he did not take any fees from them. He used to work as a carpenter. The wage of this carpentry was his livelihood. He lived a very simple life. So requirement was less. He could serve other people selflessly. This helped Nazrul throughout his life to live very simple life and keep his requirement very limited. If any other persons have any effect on him, it was that of Dr B R Ambedkar, and Mohandas Karamchand Gandhi. Dr Ambedkar was born to a Mahar family, which was considered untouchable. In spite of all the difficulties, he became B A of Bombay University, M A and Ph D of Columbia University, Bar at Law, M Sc and D Sc of London University; and rose to be the first Law Minister of India. What is more, he struggled all through his life for the emancipation of the untouchables, among whom he was born and brought up. He never forgot to fight for them. And Gandhi, the 'half-naked fakir' became and continued to be the unquestioned leader of the millions of Indians. But he used to live a very simple life. The people of the country could think him as one of them. In his childhood, Nazrul was a devout Muslim. He used to have namaz seven times a day. He used to observe roza. He used to take part in the religious discourses. So Ichharuddin Fakir and other elders like Adhar Sekh used to like him much. The liking was so intense that, once, when the regular khatib became absent, they made schoolboy Nazrul their Imam in the Friday Jumma prayer and the Octogenarian villagers like Ichharuddin Fakir and Adhar Sekh also had their prayer under his leadership. In his Higher Secondary days, Nazrul was attracted to science and communism. He became logical. He gave up having prayer and observing roza. Yet Ichharuddin used to like Nazrul for his good disposition. Once some people complained to him against his affection for Nazrul, who did not have namaz and observe roza. The fakir answered to them in a different way. "You people go to my house", He asked, "Don't you?" The people answered, "Yes, we go." "But when I come to your place you don't go to my house for me", He asked, "Do you?" The people said in one voice, "No, we don't go." "Why? Don't you need me then?" "No, no." "Then?" "Because you are available in our place." "Likewise Allah comes to him. He needn't go to Allah. He needn't have namaz like us. Allah doesn't come to us. So we have to go to Him. We have to have namaz." The people became voiceless. He continued, "We need it. He doesn't need it." The people stood spell bound. He went away. Later on, there was much discussion about it and the people could not come to a conclusion whether dictum of the fakir was out of his realisation or out of his blind affection for Nazrul. But they did not raise this point again to him. Ichharuddin Fakir was a pious man. But he never preached to others. People followed him out of their reverence to him. People of the area used to come to him for the cure of ailments. Without any objection, he used to puff the water for the purpose. He used to go to any place to exorcise the ghosts, if requested. When inquired confidentially, he confided Nazrul that he had no supernatural power. He stated that his puffing the water did not cure any disease. His exorcising did not cure any ghost. "Then why do you do these?" "The people are very poor." He replied, "They could not pay the high fees of the physicians. So they did not attend them. They come to me. I puff the water. They believed that, they would be cured. They feel assured. Some of them are cured in this way." "Walking on water, flying in the sky and command over the angels and fairies?" "I have no such power." "Then, why do people discuss so?" "People aspire to be more powerful. They want the ability to walk on water, fly in the sky and command the powerful. So they imagine these things. They revere the pious. So they ascribe these abilities to them. That's why." "Simply that's why?" "Simply that's why." This was Ichharuddin Fakir. Another villager had profound effect on Nazrul. He was Elahi Mandal. He was the 'mandal' of the 'Mandal Clan' of the village to which Nazrul's father belonged to. Elahi Mandal was illiterate. But he could tell the section of IPC and ayat of the Koran. He always tried to lead his clan well. He tried to get his children educated. He was not successful. He sent his eldest son, Khodabakhs to Batikamari Primary School. He could not go further. His son Atar was contemporary of Nazrul. Elahi spent much for his education. He could not do well. Nazrul's father was poorer than he was. He could not spend much for Nazrul's education. Yet Nazrul was progressing well. This was why Elahi used to like Nazrul well. He wanted that, Nazrul should take the role of the leader. He wanted Nazrul to lead them to prosperity. Before arriving at any important decision for the village he used to discuss matters with Nazrul. When Nazrul was a college student, there was a feud between the Mandals and Biswases. At the time of discussion, Elahi stated to Nazrul, "They are from the same village. They will live here. We shall also live here. Find way out so that both are saved." Nazrul liked the feeling very much. In his later life, it paved the path for his thinking about the welfare of even those, who were perpetrating damage to him. Among his teachers, Nazrul remembers his primary teacher, Amarendranath Pal most. It was he, who set the goal and idealism of his life. Among the High School teachers, Gangaprasad Ghoshal appeared to him the most secular person present in the school. Among his college teachers, Sakinath Jha, Dipankar Chakrabarti and Dr Asish Chatterjee demand special mention. Both Professor Jha and Porfessor Chakrabarti were ultra-left in their thoughts. In his school and college days he used to represent the school and college in the debating. For discussion he used to meet the relevant teacher. The clarity of thinking of Professor Jha and Porfessor Chakrabarti influenced him much. In his later life also their thoughts went on paving the path. Dr Asish Chatterjee of chemistry influenced the life of Nazrul much. He was very much optimistic and idealistic. When Nazrul was away from home with the job of a private tutor, he arranged the job of Laboratory Assistant in K N College. It was he, who encouraged Nazrul to appear at the WBCS Examination within a few days of his recovery from small pox. It was he, who encouraged him to join IPS, when Nazrul's friends were against his joining police. Dr Chatterjee argued, "Won't the police of independent country reform? You will join police. You will remain honest and you will make the police honest." Prof Debapriya Banerjee also helped Nazrul in going ahead in his life. |
http://drnazrulislam.com/Biography.aspx
No comments:
Post a Comment