दागदार खाकी का तालिबानीकरण
हिरासत में सबसे अधिक 129 मौतें महाराष्ट्र में हुईं. उत्तर प्रदेश 128 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर रहा. यूपी पुलिस के खिलाफ 2010-11 में एनएचआरसी की सर्वाधिक 8,768 शिकायतें हैं. इनमें हिरासत में मौत, प्रताडना, अत्याचार, फर्जी मुठभेड़ इत्यादि शामिल हैं...
आशीष वशिष्ठ
पिछले महीने यूपी सरकार ने प्रदेश के पुलिसवालों को छवि सुधारने के लिए एक सर्कुलर जारी किया था. इसमें पुलिसवालों को सिंघम, दबंग, जंजीर जैसी हिट फिल्मों के पुलिस वालों जैसा बनने की सलाह दी गई थी लेकिन लगता है यूपी पुलिस ने ठीक इनके उलट किरदारों को अपना आदर्श माना है. पुलिस हिरासत में मौत, थर्ड डिग्री, यातनाएं और पुलिस उत्पीडन की मामले लगातार प्रकाश में आ रहे हैं. पुलिस पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप तक लग रहे हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की नसीहतों और सख्ती के बावजूद पुलिस के चाल, चरित्र और चेहरे में कोई सुधार दिखाई नहीं देता है. थर्ड डिग्री और यातनाएं देकर अपराध कुबूल करवाने वाली खाकी की काला चेहरा फिर सबके सामने है.
पुलिसिया बर्बरता को नंगा करती दास्तानों के तो जैसे ग्रंथ लिखे जा सकते हैं. ऐसी ही दास्तां एटा के अवागढ़ की है. शकरौली क्षेत्र के गांव इसौली निवासी मानिक चंद्र की हत्या के आरोप में 23 अप्रैल को बलवीर को पुलिस ने गिरफ्तार किया. आरोप है कि उसी रात को बलवीर के नाजुक अंगों पर थाने में तैनात दरोगा शैलेंद्र और एक सिपाही ने पेट्रोल से भरे इंजेक्शन लगाए. उसे गर्म तवे पर बैठा कर तड़पाया. इससे थाने में ही बलवीर की हालत बिगड़ गई, लेकिन उपचार की बजाए निष्ठुर पुलिस ने उसे जेल भेज दिया.
कारागार में जेल प्रशासन ने उसे अस्पताल में भर्ती कराया. तबीयत ज्यादा बिगडने पर आगरा और बाद में पीजीआई लखनऊ रैफर कर दिया गया, मगर उसकी हालत में कोइ सुधार नहीं आया, 17 मई को बलबीर ने अंतिम सांस ली. पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार बलवीर के शरीर की अधिकांश नसें फट चुकी थीं. शरीर पर गहरे जख्मों और संक्रमण को मौत का प्रमुख कारण बताया गया. बलबीर की मौत के मामले में उपनिरीक्षक शैलेंद्र और दो अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कराया गया है. गौरतलब है कि एटा जिले के मलपुरा गांव के एक युवक के साथ भी पुलिस ने थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया.
19 मई को पडरौना कोतवाली क्षेत्र के सिंधुआ बाजार में पुलिस का अमानवीय चेहरा फिर एक बार देखने को मिला. एक डाक्टर की लाहपरवाही से हुइ महिला की मौत के बाद पुलिसवालों ने शव को सील करना तक मुनासिब नहीं समझा. घसीटते हुये शव को पोस्टमार्टम हाउस के अंदर पहुंचाया गया. मामला प्रकाश में आने पर दोनों आरोपी कांस्टेबलों को निलंबित कर दिया गया.
इसी दिन आगरा जिले के खंदौली में शब्बीर नाम के एक युवक को रातभर पुलिस ने अवैध हिरासत में रखा. इस दौरान उसे जमकर बूंटों से पीटा, डंडे बरसाए जिससे उसकी पसलियां टूट गयीं और सिर लहूलुहान हो गया. गाजियाबाद जिले के दौलतपुरा निवासी रामनिवास का अपने भतीजों के साथ चल रहे प्रापर्टी विवाद मामले में पुलिसवालों ने घर आकर उसे बुरी तरह हडकाया, इसके थोड़ी देर बाद ही अधेड़ की मौत हो गई.
9 मई को वाराणसी की पंडरा पुलिस चौकी में तैनात एक सिपाही ने दस साल की बच्ची से छेडखानी शुरू कर दी और बाद में बेहरमी से पिटाई कर मौके से फरार हो गया. 5 मई को प्रतापगढ़ जिले में रानीगंज इलाके में हेमा नाम की महिला की पड़ोसियों से मारपीट हो गई, तो इस मामले में उसे पुलिस पूछताछ के लिए थाने ले आई. परिजनों का आरोप है कि दूसरे पक्ष के दबाव में हेमा की हिरासत में इस कदर पिटाई की गई कि वह मरणासन्न हालत में पहुंच गई. बाद में पुलिसकर्मी उसे अस्पताल लेकर गए, जहां उसकी मौत हो गई.
8 अप्रैल को राजधानी लखनऊ में रिपोर्ट लिखवाने गयी महिला से सिपाही द्वारा बलात्कार किये जाने का मामला सामने आया. महिला ने बताया कि सिपाही ने मदद करने के बहाने उससे रेप किया. पीडि़ता के मुताबिक पड़ोस का एक युवक शादी का झांसा देकर तीन साल तक उसका बलात्कार करता रहा, तो वह युवक के खिलाफ एफआइआर दर्ज करवाने गयी थी, पर पुलिस ने मद्द करने के बजाय उसका बलात्कार किया.
महिला होने के बावजूद महिला पुलिसकर्मियों का रवैया भी ऐसे मामलों में सहयोगात्मक नहीं रहता. 9 अप्रैल को बुलंदशहर जिले में 10 साल की लडकी के साथ हुए दुष्कर्म मामले में उसका परिवार शिकायत लेकर इंसाफ की लिए पीडि़ता के साथ महिला थाने पहुंची. पुलिस ने आरोपी युवक पर कोई कार्रवाई करने के बजाय पीडि़ता को ही चौबीस घंटे से ज्यादा हवालात में बंद रखा. मामला मीडिया में आने के बाद आलाधिकारियों ने संज्ञान लिया और महिला थाने की चार पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की गई.
बिजनौर में 11 अप्रैल को सामूहिक बलात्कार की शिकार 16 वर्षीय लडकी अपने अभिभावकों के साथ अफजलगढ़ थाने गयी, तो पुलिस अधिकारियों ने उसके माता पिता के साथ बदसलूकी की और उसकी पिटायी की. इस घटना के बाद अफजलगढ़ थाने के प्रभारी रामजी लाल, उपनिरीक्षक राज सिंह और महिला सिपाही सुखराज कौर को निलंबित कर दिया गया.
18 अप्रैल को राजधानी लखनऊ की हसनगंज कोतवाली पुलिस ने वीरेंद्र मिश्रा नाम के युवक ने पुलिस उत्पीडन से परेशान होकर हवालात में फांसी लगा ली. इस मामले में कोतवाली प्रभारी सहित छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया गया. वहीं, वीरेंद्र के घरवालों का आरोप है कि पुलिस की पिटाई से उसकी मौत हुई. 23 अप्रैल को मुजफ्फरनगर में पुलिस ने पांच युवकों को स्कूटर चोरी करने के आरोप में उसके घर से देर रात गिरफ्तार कर हवालात में डाल दिया और थर्ड डिग्री का इस्तेमाल करते हुए पूरी रात डंडे से पिटाई की.
पुलिस की बेरहमी यहीं खत्म नहीं हुई, उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार करते हुए युवकों के गुप्तांगों पर बिजली का करंट दिया गया. रात भर टॉर्चर करने के बाद अगले दिन उन्हें गंभीर हालत में छोड़ दिया गया. मामला तूल पकडने पर थाना अध्यक्ष समेत पांच पुलिसकर्मियों पर मुकदमा दर्ज किया गया.
6 मार्च को राजधानी लखनऊ में इंदिरा नगर थानाक्षेत्र के गांव मुहम्मदपुर के निवासी समीर को पुलिस ने छेडखानी के आरोप में दिनभर चौकी पर बिठाये रखा. अवैध हिरासत के दौरान पुलिस वालों ने उसे मारा-पीटा और मानसिक यंत्रणाएं दी. पुलिस उत्पीडन, अपमान और पिटाई से तंग आकर समीर ने उसी रात घर में फांसी लगा ली. ये हालत तब है जब शिकायतकर्ता ने पुलिस के सामने समीर को बेगुनाह बताया था.
9 फरवरी को जिला हाथरस गेट क्षेत्र के गांव अमरपुर घना में पुलिस की तरफ से पिंटू उर्फ पिंटा पुत्र ओमप्रकाश के नाम-पते पर धारा 110-जी का एक नोटिस पहुंचा. यानी पुलिस ने पिंटू उर्फ पिंटा को गुंडा एक्ट में पाबंद किया था. जिस पिंटू के पते पर यह नोटिस पहुंचा, उसकी उम्र सिर्फ 13 साल है, वह नाबालिग है. ऐसे में गांव वाले भी उसके नाम से गुंडा एक्ट का नोटिस देखकर दंग रह गए. ग्रामीणों की मानें तो पिंटू के मां-बाप का काफी पहले निधन हो चुका है. पिंटू हलवाई की दुकान पर काम करके अपना पेट भरता है, लिहाजा पूरा गांव पिंटू के खिलाफ हुई इस कार्रवाई पर लामबंद हो गये.
3 जनवरी को वाराणसी के लंका थाने में पॉलिटेक्निक कालेज की एक छात्रा के घायल होने पर पुलिस ने गाडी के चालक को गिरफ्तार कर लिया. उस पर केस दर्ज करके मामला चलाने की बजाय खुद ही कानून हाथ में ले लिया. बेहरहमी के साथ उसकी पिटाई की. वर्दी के रसूख में एक पुलिसवाले ने युवक की थाने में बेल्ट से पिटाई की. जब जी नहीं भरा तो युवक को पैंट खोलने के लिए दबाव बनाने लगे. 4 जनवरी को लखीमपुर खीरी जिले के नीमगांव थाना कस्बे में पुलिसकर्मियों ने कथित तौर पर एक बुजुर्ग व्यक्ति की बुरी तरह पिटाई कर दी, जिससे उसकी मौत हो गई. 29 जनवरी को एटा जिले में नवोदय विद्यालय के इंटरमीडिएट के दलित छात्र राजकुमार ने पुलिस और कालेज हास्टल के उत्पीडन से तंग आकर जान दे दी. उसका हास्टल कर्मचारी भी दलित होने के चलते उत्पीडन करते थे. मगर इस मामले में फौरी कार्रवाई के बाद मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.
पिछ्ले साल 31 अगस्त, 2012 को इलाहाबाद के रामबाग रेलवे स्टेशन के सामने फल और सब्जी की दुकान लगाने वाले रोहित केसरवानी को वसूली का पचास रुपया न देने पर बेचू यादव और एक दूसरे सिपाही ने लात घूंसों और लाठी से जमकर पीटा. उसका ठेला पलट दिया और जब रोहित बेसुध होकर जमीन पर गिर गया तो सिपाहियों ने उसके ऊपर मोटर साइकिल चढ़ा दी. 6 अप्रैल, 2012 का देवरिया जिले में पुलिस ने विकलांग सुग्रीव को न सिर्फ लात-घूंसों से पीटा, बल्कि उसे घसीटते हुए लेकर गई. पुलिस ने इतना भी ध्यान नहीं रखा कि जिसे वे इतनी बेरहमी से पीट रहे हैं, उसका सिर्फ एक ही पैर है. मामला जिला अस्पताल में विकलांगता प्रमाणपत्र बनवाने आया था.
अप्रैल में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने उत्तर प्रदेश पुलिस से उन आरोपों के सिलसिले में रिपोर्ट तलब की है, जिसमें कहा गया है कि चोरी का आरोप लगाने के बाद पुलिसकर्मियों ने एक पांच वर्षीय बच्चे को प्रताडि़त किया. मीडिया में आई खबर के अनुसार, यह घटना 2 अप्रैल को घटी, जब राजधानी लखनऊ के कृष्णा नगर थाने में पुलिसकर्मियों ने पहली कक्षा के एक छात्र को चोरी के आरोप में पकड़ा और कथित तौर पर कान में बिजली का झटका लगाकर प्रताडि़त किया. पुलिस ने हालांकि इन आरोपों से इनकार किया है.
ये वो मामले हैं, जो सामने आये हैं इनके अलावा न जाने ऐसे मामलों की कितनी लम्बी फेहरिश्त होगी, जो सामने ही नहीं आ पाते. पुलिस बर्बरता की कहानी आंकड़े खुद ब खुद बयां करते हैं. एशियन सेण्टर फॉर ह्यूमन राइट्स की श्टॉर्चर इन इण्डिया' रिपोर्ट में पुलिस हिरासत में हुई मौतों पर प्रकाश डाला गया है. यह रिपोर्ट बताती है कि पिछले 8 वर्षों में (अप्रैल 2001 से 31 मार्च 2009 के बीच) देशभर में एक अनुमान के अनुसार पुलिस हिरासत में तकरीबन 1184 मौतें हुईं.
हिरासत में सबसे अधिक 129 मौतें महाराष्ट्र में हुईं. उत्तर प्रदेश 128 मौतों के साथ इस मामले में दूसरे स्थान पर रहा. यूपी पुलिस के खिलाफ वर्ष 2010-11 में एनएचआरसी को सर्वाधिक 8,768 शिकायतें हैं. इनमें हिरासत में मौत, प्रताडना, अत्याचार, फर्जी मुठभेड़ और कानूनी कार्रवाई करने में नाकामी जैसे मामले शामिल हैं. एनएचआरसी को वर्ष 2010-12 में उत्तर प्रदेश से हिरासत में प्रताडना की 654, अनुसूचित जातियों-जनजातियों के खिलाफ ज्यादती की 93 और फर्जी मुठभेड़ की 40 शिकायतें मिलीं.
राष्ट्रीय लोकदल के प्रदेश अध्यक्ष मुन्ना सिंह चौहान के अनुसार ऐसे मामलों में पुलिस जिस तरीके से काम कर रही है, वह काफी दुखद है. प्रदेश में अराजकता का माहौल है. पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी निरंकुश हो गए हैं तो जनसामान्य का उत्पीडन बढ़ा है. सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रदेश की कानून-व्यवस्था पर नाराजगी जताया जाना प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा करने जैसा है.
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