मुख्यमन्त्री कार्यालय में जेपी समूह का राज
शिव दास
वे जनता के सेवक (पब्लिक सर्वेन्ट) हैं लेकिन हुक्म बजाते हैं उद्योग घरानों का। जेपी समूह के सम्बंध में उत्तर प्रदेश कीखाकी, खादी और लालफीताशाहीकी कार्यशैलियों से तो यही पता चलता है। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में तत्कालीन वनबन्दोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव (अब सहायक अभिलेख अधिकारी, मिर्जापुर) ने जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड (जेएएल) नामक निजी कम्पनी के पक्ष में वन विभाग की 1083 हेक्टेयर (करीब 2483 बीघा) से ज्यादा संरक्षित वन भूमि उच्चतम न्यायालय के आदेशों और वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के खिलाफ निकाल दी लेकिन उनके खिलाफ सत्ता में काबिज राजनीतिक पार्टी के नुमाइन्दों ने कोई कार्रवाई नहीं की। इतना ही नहीं, उनके कारनामों को अमलीजामा पहनाने के लिये उत्तर प्रदेश की पूर्व बसपा सरकार ने अधिसूचना भी जारी कर दी। हालांकि मामला उच्चतम न्यायालय में लम्बित होने के कारण उनके मंसूबे अभी भी कानूनी दावँ पेच में उलझे पड़े हैं लेकिन संरक्षित वन भूमि पर कब्जा करने का जेपी समूह का सिलसिला रुका नहीं है। वह जिला प्रशासन के सहयोग से चोरी-छिपे अब भी जारी है। ऐसा हो भी क्यों नहीं? जब पंचम तल में विराजमान सूबे की सरकार के खास नुमाइन्दे उसके इस मंसूबे को अंजाम देने में जुटे हैं। इनमें कई तो पूर्व की बसपा सरकार में जेपी समूह के कारनामों को संरक्षण देने वाले भी हैं। इनमें से एक हैं मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव के विशेष सचिव पनधारी यादव।यादव ने सोनभद्र जिले के जिलाधिकारी के रूप में जेपी समूह को संरक्षित वन भूमि और ग्राम सभा की विवादित जमीन पर जमकर कब्जा कराया। इस कार्य में उन्होंने उच्चतम न्यायालय और केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय के दिशा-निर्देशों को भी नजर अंदाज कर दिया।
केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय, केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति, देहरादून स्थित भारतीय वन्यजीव संस्थान और विंध्याचल मण्डलआयुक्त की अलग-अलग जाँच रिपोर्टों में जब मामला सामने आया तो राज्य सरकार ने जेएएल के पक्ष में संरक्षित वन क्षेत्र से निष्कासित जमीन को कानूनीजामा पहनाने के लिये उच्चतम न्यायालय में याचिका दाखिल कर दी। साथ ही उसने उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन की आड़ में जेपी समूह को संरक्षित वन क्षेत्र और ग्राम सभा की हजारों एकड़ भूमि पर कब्जा करने की छूट दे दी। निजी कम्पनीके इस कार्य में सोनभद्र और मिर्जापुर जिला प्रशासन के नुमाइन्दों ने जमकर सहयोग किया।
उन्होंने सोनभद्र के डाला स्थित मलिन बस्ती के बाशिन्दों को बेघर करने के लिये केवल लाठियाँ ही नहीं भाँजी बल्कि उन्हें कालकोठरी की हवा खिलाने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। मिर्जापुर के चुनार में जेपी समूह के खिलाफ बोलने वाले को तो कई दिनों तक जेल की सलाखों के पीछे रहना प़ड़ा था। आदिवासी बहुल सोनभद्र और मिर्जापुर जिलों में जेपी के आतंक का खौफ इस कदर है कि कोई भी सरकारी कर्मचारी अथवा राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय राजनीतिक पार्टियों का नुमाइन्दा उसके खिलाफ बोलने की कोशिश तक नहीं करता।
अगर सोनभद्र जिला प्रशासन के कुछ नुमाइन्दों की कारगुजारियों पर गौर करें तो उन्होंने केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय के निर्देशों पर अमल करना मुनासिब नहीं समझा और जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की कारगुजारियों को ही सही ठहराते रहे। जबकि विंध्याचल के तत्कालीन मण्डलायुक्त सत्यजीत ठाकुर, अतिरिक्त आयुक्त (प्रशासन) डॉ. डीआर त्रिपाठी, संयुक्त विकास आयुक्त एस.एस. मिश्रा और विंध्याचल डिविजन के वन संरक्षक आर.एन. पांडे ने अपनी संयुक्त जाँच रिपोर्ट (अन्तरिम) में जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड को हस्तान्तरित कीगयी संरक्षित वन भूमि के लिये वन बन्दोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव को दोषी ठहराया है। संयुक्त जाँच टीम ने श्रीवास्तव के खिलाफ दण्डनात्मक और आपराधिक कार्रवाई करने की संस्तुति भी की है।
मामला उत्तर प्रदेश वन विभाग से सम्बंधित होने की वजह से विंध्याचल मण्डल के तत्कालीन अतिरिक्त आयुक्त (प्रशासन) जीडी आर्य ने 27 नवंबर, 2008 को विंध्याचल डिवीजन के मुख्य वन संरक्षक को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने मामले में कार्रवाई करने की बात कही थी लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुयी। केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय के वन संरक्षक (मध्य क्षेत्र) वाई.के. सिंह चौहान की ओर से उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) के सदस्य सचिव एमके जीवराजका को प्रेषित पत्र पर गौर करें तो तत्कालीन वन बन्दोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव ने उच्चतम न्यायालय के आदेशों के खिलाफ राजस्व अभिलेख में भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा-4 के तहत अधिसूचित संरक्षित वन क्षेत्र की भूमि के कानूनी स्वरूप को ही बदल दिया। उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति जेएस वर्मा और बीएन कृपाल की पीठ ने 12 दिसंबर, 1996 को टीएन गोडावर्मन थिरुमुल्कपाद बनाम भारत सरकार के मामले में साफ कहा है कि स्वामित्व की परवाह किये बिना संरक्षित वन क्षेत्र का स्वरूप नहीं बदला जा सकता,
"The Forest Conservation Act, 1980 was enacted with a view to check further deforestation which ultimately results in ecological imbalance; and therefore, the provisions made therein for the conservation of forests and fore matters connected therewith, must apply to all forests irrespective of the nature of ownership or classification thereof. The word "forest: must be understood according to its dictionary meaning. This description cover all statutorily recognised forests, whether designated as reserved, protected or otherwise for the purpose of Section 2(i) of the Forest Conservation Act. The term "forest land", occurring in Section 2, will not only include "forest" as understood in the dictionary sense, but also any area recorded as forest in the
Government record irrespective of the ownership."
इस तरह गैर-वन भूमि में बदले जाने के बाद भी संरक्षित वन भूमि का कानूनी स्वरूप नहीं बदलेगा, लेकिन वीके श्रीवास्तव ने राजस्व अभिलेख में कोटा, पड़रछ और मकरीबारी गाँवोंमें स्थित संरक्षित वन क्षेत्र की भूमि के कानूनी स्वरूप को परिवर्तित कर दिया है। राजस्व अभिलेख में वन भूमि के कानूनी स्वरूप का परिवर्तन केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालयके उस आदेश का भी उल्लंघन है जो उसने 17 फरवरी, 2005 को जारी किया था। इसमें साफ लिखा है, 'केन्द्र सरकार के पूर्व अनुमोदन के बिना राजस्व अभिलेखों में जंगल, झाड़ के रूप में दर्ज भूमि के कानूनी स्वरूप में परिवर्तन गैर-कानूनी और वन संरक्षण अधिनियमके प्रावधानों का उल्लंघन है। सम्बंधित विभाग को निर्देशित किया जाता है कि वे तुरन्त जंगल, झा़ड़, वन भूमि के कानूनी स्वरूप को बहाल करें।'
वाईके सिंह चौहान के पत्र पर गौर करें तो उस समय जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेडकम्पनी वन (संरक्षण) अधिनियम-1980 के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुये संरक्षित वन भूमि पर गैर-कानूनी ढँग से भवन और सड़क निर्माण कर रही थी। इसके अलावा वह खनन कार्यों को भी अंजाम दे रही थी। चौहान ने पत्र में विवादित भूमि के कानूनी स्वरूप को बहाल करने, वीके श्रीवास्तव की वन बन्दोबस्त प्रक्रिया को निरस्त करने और उनके खिलाफ विभागीय अथवा आपराधिक कार्रवाई करने तथा संरक्षित वन क्षेत्र से निष्कासित 1480.06 हेक्टेयर भूमि के सम्बंध में उत्तर प्रदेश वन विभाग की ओर से भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत जारी अधिसूचना को निरस्त करने के लिये निर्देश देने का अनुरोध सीईसी से किया था।
केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय (मध्य क्षेत्र), लखनऊ के मुख्य वन संरक्षक आजम जैदीने भी 27 मार्च, 2009 को उत्तर प्रदेश वन विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव परमेश्वर अय्यर को पत्र लिखकर इस मामले से अवगत कराया था। साथ ही उन्होंने संरक्षित वन भूमि पर जारी गैर-वानिकी कार्य को रोकने, वीके श्रीवास्तव की वन बन्दोबस्त प्रक्रिया को निरस्त करने और विंध्याचल मण्डल के आयुक्त की संस्तुतियों के अनुसार दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की माँग की थी। जैदी ने मामले पर राज्य सरकार की टिप्पणी और कार्रवाई की रिपोर्ट भी माँगी थी लेकिन राज्य सरकार की ओर से दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी।
उधर, जेएएल संरक्षित वन क्षेत्र और ग्राम सभा की जमीनों पर जबरदस्ती कब्जा कर रही थी। उसके इस कार्य में जिला प्रशासन जोर-शोर से मदद कर रहा था। जेपी समूह के गैरकानूनी कब्जे की शिकायत स्थानीय लोगों ने सोनभद्र के तत्कालीन जिलाधिकारी पनधारी यादव (अब मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव के विशेष सचिव) और राबर्ट्सगंज (सदर) तहसील के तत्कालीन उपजिलाधिकारी अंजनी कुमार सिंह से की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुयी। बल्कि, डाला स्थित मलिन बस्ती के बाशिन्दों को पुलिस और जेपी समूह के कारिन्दों की लाठियाँ खानी पड़ीं। इतना ही नहीं स्थानीय लोगों ने जेपी समूह और जिला प्रशासन की साँठ-गाँठ के खिलाफ सौ से ज्यादा दिनों तक क्रमिक अनशन किया लेकिन जिला प्रशासन के नुमाइन्दोंकी कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी।
चंदौली जनपद के नौगढ़ विकासखण्ड अन्तर्गत शमशेरपुर गाँव निवासी बलराम सिंह उर्फ गोविंद सिंह ने 23 अक्टूबर को प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को एक शिकायती पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने सोनभद्र और मिर्जापुर जिलों में संरक्षित वन भूमि पर जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड द्वारा किये जा रहे अवैध निर्माण कार्य की जाँच कराने और इसके लिये जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की माँग की। प्रधानमन्त्री कार्यालय में तैनात तत्कालीन सेक्शन ऑफिसर आरके दास ने बलराम सिंह के पत्र को केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वनमन्त्रालय के सचिव के पास भेज दिया और मामले में जाँच रिपोर्ट प्रेषित करने का निर्देश दिया। मन्त्रालय के महानिदेशक (वन) ने मामले की जाँच का आदेश देते हुये इसे लखनऊ स्थित क्षेत्रीय कार्यालय के मुख्य वन संरक्षक आजम जैदी के पास भेज दिया, जिन्होंने जाँचकी जिम्मेदारी वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान को सौंपी। वाईके सिंह चौहान ने 26 मई, 2010 को प्रभागीय वनाधिकारी, ओबरा एसपी चौरसिया, वन क्षेत्राधिकारी बीडी सिंह, जेएएल के उपाध्यक्ष वीके शर्मा और प्रबंधक सुधीर मिश्रा, शिकायतकर्ता
बलराम सिंह, चौधरी यशवंत सिंह और अशोक कुमार के साथ कोटा वन क्षेत्र का निरीक्षण किया।
केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय के वन संरक्षक वाईके सिंह चौहान ने 2010 में 1 जून को उत्तर प्रदेश वन विभाग के ओबरा डिविजन के तत्कालीन प्रभारी वनाधिकारी एसपी चौरसिया और जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के कार्यकारी अध्यक्ष अजय शर्मा को पत्र लिखकर कोटागाँव स्थित संरक्षित वन भूमि पर जेपी सुपर सीमेन्ट प्लान्ट के गैर-कानूनी निर्माण कार्य को रोकने का निर्देश दिया, लेकिन निर्माण कार्य नहीं रुका। वाईके सिंह चौहान ने 4 जून को निष्कासित वन भूमि के सम्बंध में ओबरा वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी एसपी चौरसिया, सोनभद्र वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी और जेएएल के उपाध्यक्ष वीके शर्मा को पत्र लिखकर कुछ दस्तावेज माँगे लेकिन उन्होंने दस्तावेज मुहैया नहीं कराये। बाद में मुख्य वन संरक्षक आजम जैदी को 10 जून को उत्तर प्रदेश वन विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव चंचल तिवारी को पत्र लिखकर कोटा गाँव स्थित संरक्षित वन भूमि पर जेपी सुपर सीमेंट प्लांट के गैर-कानूनी निर्माण कार्य को तत्काल प्रभाव से रोकने का निर्देश देना पड़ा, लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के नुमाइन्दों की कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आया और जेएएल का निर्माण कार्य जारी रहा।
जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के कार्यकारी अध्यक्ष अजय शर्मा ने 23 जून को केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय (मध्य क्षेत्र) के वन संरक्षक को पत्र लिखकर अपनी सफाई दी। उसमें उन्होंने दावा किया कि विवादित भूमि (प्लॉट संख्या-3200) यूपीएससीसीएल की फ्री होल्ड भूमि है और वह संरक्षित वन क्षेत्र के तहत नहीं आती है। उन्होंने यह भी दावा किया कि विवादित जमीन पर कोई गैर-कानूनी निर्माण कार्य नहीं हो रहा है।
अगर अजय शर्मा के दावों को केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय ने साफ खारिज कर दिया है। मन्त्रालय ने इस सम्बंध में वन बन्दोबस्त अधिकारी, ओबरा के 16 अप्रैल,1992 के आदेश का हवाला दिया है, जिससे साफ है कि प्लांट संख्या-3200 की वन बन्दोबस्त प्रक्रियाउच्चतम न्यायालय के आदेशों के तहत पूरी हो चुकी थी और वह भूमि संरक्षित वन भूमि घोषित हो चुकी है। उस भूमि के प्रस्ताव को भारतीय वन अधिनियम की धारा-20 के तहत अधिसूचित करने के लिये उत्तर प्रदेश वन विभाग के पास भेजा गया था। अजय शर्मा अपने पत्र में संरक्षित वन भूमि पर यूपीसीसीएल के खनन पट्टे को भी फ्री होल्ड भूमि होने का दावा करते हैं जबकि केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय का दावा है कि संरक्षित वन भूमि कम्पनी को पट्टे पर दी गयी थी, जिसकी अवधि करीब डेढ़ दशक पहले ही खत्म हो चुकी है। अब उस भूमि पर खनन कार्य के लिये उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय से अनापत्ति प्रमाण-पत्र लेना पड़ेगा। यह साफ हो चुका है कि पट्टाधारक पट्टे वाली भूमि का स्वामी नहीं होता है।
इस सम्बंध में सोनभद्र के अतिरिक्त जिलाधिकारी के. सिंह और ओबरा वन प्रभाग के प्रभारी वनाधिकारी एसपी चौरसिया ने 25 जुलाई को सोनभद्र के जिलाधिकारी पनधारी यादव को निरीक्षण रिपोर्ट सौंपी थी। उसी दिन उन्होंने केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय के वन संरक्षक को भी पत्र लिखकर जेएएल के दावों के सम्बंध में जवाब भेजा था। अगर जिला प्रशासन के निरीक्षण रिपोर्ट और एसपी चौरसिया के पत्र पर गौर करें तो वे जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड के दावों की ही पुष्टि करते नजर आते हैं। दोनों अधिकारियों ने उच्चतम न्यायालय के आदेश तहत संपन्न हुयी वन बन्दोबस्त प्रक्रिया को ऩजर अंदाज करते हुयेजेएएल के पक्ष में तत्कालीन वन बन्दोबस्त अधिकारी वीके श्रीवास्तव के फैसले को तवज्जो दी है। उन्होंने जेएएल के कार्यकारी अध्यक्ष अजय शर्मा के दावों को सही ठहराया है।
इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक सोची-समझी योजना के तहत सोनभद्र जिला प्रशासन, ओबरा प्रभागीय वनाधिकारी एसपी चौरसिया और जेएएल के कार्यकारी अध्यक्ष अजय शर्मा ने केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वनमन्त्रालय को जवाब भेजा है। वाईके सिंह चौहान ने 12 जुलाई को ओबरा वन प्रभाग के प्रभागीय वनाधिकारी एसपी चौरसिया को एक बार फिर पत्र लिखा और उनके जवाब से सम्बंधित दस्तावेज उपलब्ध कराने का निर्देश दिया लेकिन उन्होंने दस्तावेज उपलब्ध नहीं कराए। चौहान ने 18 अगस्त को उत्तर प्रदेश वन विभाग के मिर्जापुर डिविजन के मुख्य वन संरक्षक एसके शर्मा को पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उनसे अनुरोध किया कि वे प्रभागीय वनाधिकारी, ओबरा और राबर्ट्सगंज को सम्बंधित अभिलेख उपलब्ध कराने के लिये निर्देश दें ताकि उनके उनके दावों की पुष्टि की जा सके लेकिन मामला जस का तस बना रहा।
इतना ही नहीं चौहान ने 20 दिसंबर को उत्तर प्रदेश वन विभाग के प्रमुख मुख्य वन संरक्षक को भी पत्र लिखा और राबर्ट्सगंज के तत्कालीन सहायक अभिलेख अधिकारी वीके श्रीवास्तव को वन बन्दोबस्त अधिकारी नियुक्त करने के सम्बंध में जारी अधिसूचना और अन्य सम्बंधित दस्तावेजों की माँग की। साथ ही उन्होंने वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों औरउच्चतम न्यायालय के आदेशों का उल्लंघन करने के दोषी वीके श्रीवास्तव के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये कहा। हालांकि राज्य सरकार केनुमाइन्दों पर इन पत्रों का कोई असर नहीं हुआ। वर्ष 2011 में केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय के वन संरक्षक वाई के सिंह चौहान ने 18 जनवरी और 24 मार्च को उत्तर प्रदेश सरकार के सचिव (वन) पवन कुमार को पत्र लिखकर मामले पर की गयी कार्रवाई की रिपोर्ट माँगी लेकिन कोई जवाब नहीं आया। जबकि सोनभद्र में संरक्षित वन भूमि पर जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड का अवैध निर्माण कार्य जारी रहा। जेएएल के अवैध निर्माण से चिंतित चौहान ने 24 मार्च को ही उत्तर प्रदेश वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक डीएनएस सुमन को भी पत्र लिखा और मामले पर की गयी कार्रवाई की रिपोर्ट माँगी लेकिन जवाब ढाक के तीन पात वाला ही रहा।
केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय की ओर से बार-बार पत्र लिखने के बाद भी उत्तर प्रदेश सरकार के नुमाइन्दों ने जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की ओर से किये जा रहे अवैध निर्माण को रोकने के लियेकोई पहल नहीं की और ना ही वन संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिये जिम्मेदार अधिकारियों एवम् कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की। यहाँ तक कि जंगल से लकड़ी चुनकर पेट पालने वाले गरीबों पर जुल्म ढाने वाले उत्तर प्रदेश वन विभाग के नुमाइन्दे संरक्षित वन क्षेत्र और कैमूर वन्यजीव विहार की हजारों एकड़ भूमि पर जेएएल के अवैध कब्जे और निर्माण कार्य को रोकने के लिये आगे नहीं आये।
उत्तर प्रदेश सरकार ने भी मामले को उच्चतम न्यायालय में भेजकर जेपी समूह को राहत दी। अब मामला उच्चतम न्यायालय की पीठ के पासलम्बित है लेकिन विवादित भूमि पर जेएएल का निर्माण कार्य अभी भी जारी है। इसका अंदाजा पिछले दिनों चुर्क में पत्रकार वार्ता के दौरान जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड की ओर किये गये दावों से लगाया जा सकता है। इसमें जेएएल के अधिकारियों ने कहा था कि चुर्क की प्रस्तावित कैप्टीव थर्मल पॉवर प्लांट की तीन ईकाइयाँ इस साल जून में चालू हो जायेंगी। जबकि केन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय के नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ की स्थाई समिति ने जेएएल की कैप्टीव थर्मल पॉवर प्लांट की चारों ईकाइयों को अनापत्ति प्रमाण-पत्र देने के योग्य नहीं पाया था।
समिति की सदस्य सचिव प्रेरणा बिंद्रा ने जेएएल के पॉवर प्लांट के प्रस्ताव को वन संरक्षण अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन बताया है। पॉवर प्लांट की ईकाइयों के निर्माण और संचालन के लियेकेन्द्रीय पर्यावरण एवम् वन मन्त्रालय ने अभी तक अनापत्ति प्रमाण-पत्र भी जारी नहीं किया है। इसके बावजूद जय प्रकाश एसोसिएट्स लिमिटेड निर्माण कार्यों को जारी रखे हुये है और जिला प्रशासन मूक दर्शक की भूमिका निभा रहा है। इन हालात में उत्तर प्रदेश के नौकरशाहों के हाथ में जनता की सम्पत्ति कितनी सुरक्षित है, इसका अदाजा आप बखूबी लगा सकते हैं। आदिवासी बहुल सोनभद्र और मिर्जापुर के आदिवासियों और वननिवासियों को उनका संवैधानिक अधिकार मिल पायेगा? यह दिखाई नहीं देता।
No comments:
Post a Comment