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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Wednesday, May 22, 2013

राजनय के लिए भी लोकतांत्रिक जनसंवाद जरुरी है!

राजनय के लिए भी लोकतांत्रिक जनसंवाद जरुरी है!


चीन के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा कारपोरेट हितों के मद्देनजर व्यापारिक वार्ता से ऊपर उठ ही नहीं सकी है, तो इसकी जिम्मेवारी किसपर​​ होनी चाहिए?


पलाश विश्वास


THE HIMALAYAN TALK: PALASH BISWAS BLASTS INDIANS THAT CLAIM BUDDHA WAS BORN IN INDIA


Published on 22 May 2013

Moments ago, we talked with Palash Biswas, an editor of Indian Express in Kolkota, who also said Indian peoples that claim Buddha being born in India are doing so for money and marketing which is historically wrong.


http://youtu.be/V-cguUahxeI



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चीन के प्रधानमंत्री ली कु चियांग के भारत दौरे की घटना राजनयिक दृष्टि से जितनी बड़ी खबर है, उससे ज्यादा महत्व इस यात्रा के​​ निहितार्थ की है। इस उपमहाद्वीप के अस्थिर लहूलुहान हालाते के मद्देनजर भारत और चीन के एकसुर में बोलने से तमाम उलझी हुई गुत्थियां सुलझ सकती है। १९६२ के जिस सीमा संघर्ष के लिए पंडित जवाहर लाल नेहरु भारतीय जनमानस में आज भी कटघरे में खड़े हैं, इतिहास की उस विरासत को ढोते हुए दोनों देशों में आज तक द्विपाक्षिक संबंध सामान्य नहीं हो पाये , जबकि सारी दुनिया बदल गयी है। १९७५ तक रिचर्ड निक्सन और हेनरी किसींजर की पहल से पहले तक अमेरिका और चीन के संबंध कम शत्रुतापूर्ण नहीं थे, लकिन शीत युद्ध के अवसान से पहले ही उन दोनों के बीच जमा ग्लेशियर पिघलने लगा था। इसी तरह सोवियत संघ के विघटन के बाद बैश्विक राजनय की भाषा एकदम बदल गयी है।इस बदली हुई राजनयिक भाषा में संवाद के अभ्यस्त नहीं हैं मुक्त बाजार में देश को ही गायब कर देने वाले हमारे कारपोरेट मसीहा।


चीन के प्रधानमंत्री ली कु चियांग ने मंगलवार को देश की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी टाटा कंसलटेंसी के परिसर का दौरा किया और इस दौरान उन्होंने टाटा समूह के अध्यक्ष साइरस पी मिस्त्री के साथ भारत और चीन के कारोबारी माहौल पर चर्चा की।चीन के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा कारपोरेट हितों के मद्देनजर व्यापारिक वार्ता से ऊपर उठ ही नहीं सकी है, तो इसकी जिम्मेवारी किसपर​​ होनी चाहिए? चीन के प्रधानमंत्री ली कचियांग आज से पाकिस्तान की अपनी दो-दिवसीय सरकारी यात्रा शुरू कर रहे हैं।वह इस्लामाबाद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ़ अली ज़रदारी, थलसेना अध्यक्ष जनरल अशफ़ाक़ क़ियानी और संसदीय चुनावों में जीतने वाली पार्टी, पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नेता तथा भविष्य के प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के साथ मुलाकात करेंगे। ली कु चियांग की इस्लामाबाद यात्रा के दौरान द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ाने, ग्वादर बंदरगाह के प्रबंधन की संभावनाओं और पाकिस्तानी-चीनी सहयोग के कुछ अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की जाएगी।टाटा समूह ने बयान में बताया कि ली और मिस्त्री ने दोनों देशों के बीच व्यापार और निवेश बढ़ाने के साथ ही टाटा समूह की भविष्य की योजनाओं पर भी चर्चा की। इस दौरान मिस्त्री ने भारत में सॉफ्टवेयर उद्योग के भविष्य और इसमें टाटा समूह की भूमिका के संबंध में विस्तृत रूप रेखा प्रस्तुत किया।ली और मिस्त्री के बीच यह बैठक टीसीएस के वैश्विक सॉफ्टवेयर विकास केंद्र में हुई और इस दौरान चीनी प्रधानमंत्री ने दोनों देशों से जुड़े मुद्दों और चीन में टाटा समूह की भविष्य की योजनाओं पर अपनी रुचि दिखाई। मिस्त्री ने कहा कि टाटा समूह के भविष्य में विकास में चीन का महत्वपूर्ण स्थान है।


चीन के प्रधानमंत्री ली कु चियांग का मानना है कि भारत और चीन मिलकर काम करेंगे तो दुनिया में चमत्कार कर सकते हैं।

ली कु चियांग ने मंगलवार को मुंबई में भारतीय उद्योग के दिग्गजों से मुलाकात की। इस मौके पर टाटा ग्रुप के साइरस मिस्त्री, आदित्य बिड़ला ग्रुप के कुमार मंगलम बिड़ला, महिंद्रा ग्रुप के आनंद महिंद्रा सहित इंडस्ट्री के करीब सभी दिग्गजों ने शिरकत की।इस मौके पर ली कु चियांग ने कहा कि चीन के पास भारत में निवेश करने का बड़ा मौका है। उन्होंने ये भी कहा कि चीन के साथ व्यापार घाटे को लेकर भारत को चिंता करने की जरूरत नहीं है, ये जिम्मेदारी चीन की भी है।


इंडस्ट्री भी मानती है कि चीन के साथ भारत के कारोबारी रिश्ते सुधरने से भारत की इकोनॉमी में सुधार दिखेगा, वहीं चीन के बड़े बाजार का भी फायदा भारत को मिलेगा।व्यापारिक संस्था, 'फिक्की' और 'इंडियन काउंसिल फॉर वर्ल्ड अफेयर्स' (आईसीडब्ल्यूए) द्वारा दिल्ली के ताज पैलेस होटल में आयोजित एक समारोह को संबोधित करते हुए ली ने दोनों एशियाई शक्तियों के बीच गहरे आर्थिक एकीकरण पर जोर दिया और वैश्विक परिदृश्य पर एक प्रभाव डालने के लिए दोनों देशों की 2.5 अरब आबादी की शक्ति समन्वित करने पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ कई मुद्दों पर स्पष्ट और मैत्रीपूर्ण बातचीत हुई और दोनों ही पक्ष बातचीत से संतुष्ट हैं।चीन के प्रधानमंत्री ली ने कहा कि दोनों देशों को अपनी सीमा से जुड़ी समस्या का एक निष्पक्ष, उचित और आपस में स्वीकार्य समाधान निकालने की समझ है। इसके साथ ही ली ने अपनी इस धारणा को दोहराया कि भारत, चीन को चाहिए कि वे 'हिमालय' लांघकर हाथ मिलाएं।


योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया का कहना है कि चीन के प्रधानमंत्री के साथ बैठक सफल रही। अब चीन के साथ कारोबार कैसे बढ़ाया जाए, इस पर विचार करना होगा। उम्मीद है कि कारोबार बढ़ाने में चीन सरकार का सहयोग मिलेगा।


ली कु चियांग की भारत यात्रा के मौके को एक लोकतांत्रिक जनसंवाद में बदलने की सख्त जरुरत थी, १९६२ के इतिहास के आगे कदम बढ़ाने के लिए। जो अविश्वास का हिमालय दोनों देशों के बीच खड़ा है, उसके एवरेस्ट को फतह करने के लिए जरुरी है भारत चीन संबंधों को लेकर प्रबल जनमत की स्थापना करना, जिसके बगैर द्विपाक्षिक संबंधों में बेहतरी के लिए कोई राजनीतिक या राजनयिक पहल असंभव है। इस दृष्टि से भारत चीन संबंधों की समीक्षा करे तो यह पता चलता है कि निक्सन और किसींजर ने चीन की दीवारों को खोलने के लिए सबसे पहले अमेरिका में संवाद की शुरुआत ही नहीं की थी, बल्कि प्रबल जनमत बनाया था। अब छायायुद्ध के माहौल में जनता को विशावस लेने का फ्रश्न ही नहीं उठता। इसीतरह भारत पाक संबंधों में सुधार की गुंजाइश इसलिए नहीं बनती कि दोनों देशं की जनता में शत्रुतापूर्म मानसिकता का ऐसा संक्रमण हो गया है कि सैन्य वर्चस्व के शिकंजे में छटफटाते पाकिस्तानी लोकतंत्र के हक में हम आवाज भी उठा नहीं सकते। जबकि भारत चीन संबंधों में सुधार की चाबी वहां के लोकतंत्र के भविष्य और वर्तमान में ही छुपी हुई है, जिसे हम लगातार नजरअंदाज कर रहे हैं। इसीतरह बांग्लादेश में भी बेहतर संबंधों के बावजूद वहां की लोकतांत्रिक ताकतों के पक्ष में अभी भी खड़ो हो पाने में फेल है भारत और भारतीय राजनय। जबकि इसके दुष्परिणाम सीमावर्ती तमाम राज्यों में कट्टरपंथी महाविस्फोट के मार्फत कभी भी झेलने पड़ सकते हैं और जिसकी चपेट में पूरे भारत को आ ही जाना है।​


भारत और चीन के बीच 8 मुद्दों पर समझौता हुआ है। मुलाकात के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और चीनी पीएम ली कु चियांग ने प्रेस कांफ्रेंस कर साझा बयान जारी किया। इस मौके पर मनमोहन ने चीनी प्रधानमंत्री को भारत दौरे के लिए धन्यवाद दिया। भारत-चीन के बीच कुछ 8 मुद्दों पर समझौता हुआ है। इनमें कैलाश मानसरोवर यात्रा, जल संसाधन, शहरी विकास, आर्थिक मामलों पर समझौते शामिल हैं। मनमोहन ने कहा हमने कई मुद्दों पर खुलकर बात की है। दोनों देश शांति-खुशहाली की तरफ कदम बढ़ा रहे हैं। ली की यात्रा से दोनों देशों के बीच संबंध बेहतर होंगे। साझा बयान से ऐसा लगता है कि दोनों नेताओं के बीच सीमा विवाद को लेकर कोई ठोस बात नहीं हो सकी।


भारत घोषित तौर पर लोक गणराज्य है, लेकिन इसकी सत्ता संरचना आधिपात्यवाद , बहिष्कार ,अस्पृश्यता और जनसंहार की नीतियों पर ​​आधारित है। यहां लोकतंत्र और नागरिक मानवाधिकार की क्या कहें, भारतीय संविधान लागू करने की मांग तक प्रबल दमन और राष्ट्र की ओर से युद्धघोषणा को आमंत्रित करने को पर्याप्त है। कश्मीर, पूर्वोत्तर भारत और मध्यभारत के हालात इसके उदाहरण बतौर विस्तार से पेश किये जा सकते हैं।ऐसे मों लोकतांत्रिक हक हकूक के सलिे आंदोलन को भी सत्तावर्ग जनयुद्ध में तब्दील कर देता है। जब सत्तावर्ग का चरित्र ही लोकतंत्र विरोधी, संविधानविरोधी और मानव विरोधी है और उसका मुख्य हथियार उग्रतम धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद है, तो राजनय में जनभागेदारी की संभावना कहां बन सकती है?


पहली बात तो यह है कि हमने अपनी जनता को पूरे भारतीय उपमहाद्वीप को एक भौगोलिक राजनीतिक इकाई मानकर द्विपक्षीय संबंधों को अपने वजूद का हिस्सा बनाने का योगभ्यास किया ही नहीं है। जबकि हमेसा रक्तस्नात रहे यूरोपीय समुदाय और यहां तक कि अरब देशों के मध्य यह चेतना तेजी से विकसीत की गयी है। परस्परविरोधी हितों के बावजूद, खूनी संघर्षों के प्राचीनतम इतिहास के बावजूद यूरोप एक इकाई बतौर अमेरिकी वर्चस्व के खिलाफ खड़ा हो सकता है तो हम क्यों नहीं?


आपदा प्रबंधन और साझा प्राकृतिक संसाधनों के बंटवारे से लेकर द्विपाक्षिक सीमाविवाद के मसलों को सुलझाने के लिए अंतराराष्ट्रीय ​​आर्थिक संस्थानों यानी विश्वव्यवस्था की एजंसियों मसलमन अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, विश्वव्यापार संगठन, विश्वबैंक, आदि के दिशानिर्देश के​​ मुताबिक राजनयिक कवायद से तो समस्याएं सुलझने से रहीं। उलट इसके बाहरी शक्तियों, जिनका कि इन संगठनों पर वर्चस्व है, के ​​हितों और इशारा मुताबिक समस्याएं जटिल ही होनी है। भारतीय राजनय के लिए इससे बड़ी शर्म की बात क्या है कि चाहे बांग्लादेश का मसला हो या फिर श्रीलंका का मामला, अमरिका और पश्चिमी देशों की कारगर पहल हो जाती है और भारतीय राजनय हाथ मलती रह जाती है। अगर ध्यान से देखा जाये तो बाहरी हस्तक्षेप की वजह से ही निरंतर बिगड़ते रहे हैं भारत चीन, भारत पाकिस्तान, भारत श्रीलंका, भारत नेपाल द्विपाक्षिक संबंध।​


छायायुद्ध और सीमाविवाद के सांप्रतिक इतिहास के अलावा भारत और चीन के बीत गर्मजोशी के दूसर मुद्दे भी हैं। चीन, जापान, कोरिया और संपूर्णदक्षिण पूर्व एशिया का बौद्धमय भूगोल का उद्गमस्थल लेकिन भारत है। गौतम बुद्ध की विरासत के रास्त चीन ही नही दक्षिण पूर्व एशियई देशों और कोरिया और जापान से भी भारत के संबंध बेहतर हो सकते हैं। सीमासंघर्ष की किसी घटना से पंचशील की प्रासंगिकता ही हमने खत्म कर दी है । इस पर तुर्रा यह कि गौतम बुदध के जन्मस्थल को लेकर व्यर्थ की भारतीय दावेदारी और विवाद से नेपाली जनता में भी विद्वेष की भावना प्रबल होती जा रही है


गौरतलब है कि चीन के प्रधानमंत्री ली कु चियांग ने भारत दौरे पर मुंबई में डॉ. द्वारकानाथ कुटनिस घर पहुंचे। डॉक्‍टर कुटनिस को याद करते हुए चीनी पीएम ने कहा कि उनकी मानवीयता भरी मदद से दोनों देशों के रिश्ते मजबूत हुए हैं। उन्‍होंने डॉक्‍टर कुटनिस के परिवार को चीन आने का निमंत्रण भी दिया। डॉक्‍टर कुटनिस का परिवार मुंबई के विले पार्ले में रहता है। ध्‍यान रहे डॉक्‍टर कुटनिस वो नाम है, जिसे चीन में बड़े ही सम्‍मान के साथ लिया जाता है। जापान-चीन युद्ध के दौरान उनकी सेवाओं को चीन आज भी याद करता है। चीन के राष्‍ट्रपति या प्रधानमंत्री जब भी भारत आते हैं वह कुटनिस के परिवार से मुलाकात करना नहीं भूलते हैं। पीपुल्‍स रिपब्लिक ऑफ चाइना के संस्‍थापक और चीन की सांस्‍कृतिक क्रांति के जनक माओ जिदोंग भी उनसे प्रभावित थे। माओ ने डॉक्‍टर कुटनिस की मौत पर कहा था कि उन्‍हें योगदान को भारत और चीन की मित्रता के प्रतीक के तौर पर हमेशा याद रखा जाएगा। यही कारण रहा कि भारत यात्रा पर इससे पहले आए चीनी राष्‍ट्रपति हू जिंताओ समेत सभी नेताओं ने डॉक्‍टर कुटनिस के परिवार से मुंबई मुलाकात की।


डॉक्‍टर कुटनिस का जन्‍म महाराष्‍ट्र के शोलापुर में 1910 में हुआ था। 1937-1945 के बीच चीन और जापान के बीच हुए दूसरा युद्ध हुआ था। बात 1938 की है जब डॉक्‍टर कुटनिस ने भारत सरकार से चीन ने मदद मांगी और डॉक्‍टरों की टीम भेजने को कहा। इसके बाद भारत ने चीन की मदद के लिए 5 डॉक्‍टरों की टीम भेजी। इनमें डॉक्‍टर कुटनिस भी थे। उस वक्‍त उनकी उम्र 28 साल साल थी।चीन के पहुंचने के बाद डॉक्‍टर कुटनिस के आठवीं रूट आर्मी के साथ तैनात किया गया और उन्‍होंने लगभग 5 साल तक मोबाइल अस्‍पतालों में काम किया। विषम परिस्थितियों में डॉक्‍टर कुटनिस के योगदान को चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के नेता आज भी उतना ही सम्‍मान देते हैं। डॉक्‍टर कुटनिस उस समय चीन और भारत मित्रता के प्रतीक बन गये थे।डॉक्‍टर कुटनिस का 1942 में निधन हो गया था। गंभीर बीमारी के कारण वह सिर्फ 32 साल की उम्र में दुनिया छोड़ गये थे, लेकिन आज उनका नाम आज भी मानवता और भारत-चीन दोस्‍ती के लिए याद किया जाता है। डॉक्‍टर कुटनिस वॉर के दौरान 72 घंटे तक काम किया करते थे।  


चीन के प्रधानमंत्री ली कु चियांग ने आज भारत को आश्वस्त किया कि उनका देश ऐसा कोई कार्य नहीं करेगा, जिससे उसके (भारत के) हित प्रभावित हों। चियांग ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मुलाकात के दौरान यह आश्वासन दिया। उन्होंने कहा कि चीन भारत को महत्वपूर्ण सहयोगी मानता है और दोनों देशों के बीच पारस्परिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाने की असीम संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि चीन यह आश्वस्त करना चाहता है कि वह भारत के हितों के खिलाफ कुछ भी नहीं करेगा। इससे पहले श्री मुखर्जी ने कहा कि भारत और चीन के संबंध 21 वीं सदी की महत्वपूर्ण चीजों में से एक है। उन्होंने कहा, हमारा मानना है कि भारत और चीन के बीच अच्छे पड़ोसी के संबंध हैं, जिसकी बुनियाद विश्वास और आपसी हितों की बेहतर समझ पर टिकी है। श्री मुखर्जी ने कहा कि दोनों देशों को एक दूसरे की चिंताओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। उन्होंने दोनों देशों के बीच विश्वास को और अधिक गहरा बनाने तथा साझा हितों को अत्यधिक विस्तार देने की आवश्यकता भी जताई। श्री मुखर्जी ने कहा कि दोनों देशों की सीमा से गुजरने वाली नदियां लोगों को जोडें, न कि अलग करें। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद श्री चियांग की पहली विदेश यात्रा भारत से शरू होना दोनों देशों के संबंधों की महत्ता को भी प्रदर्शित करती है।


भारत दौरे पर पहुंचे चीन के प्रधानमंत्री ली कु चियांग ने भारत को अपना अहम पड़ोसी बताते हुए कहा कि दुनिया की खुशहाली तभी मुमकिन है, जब भारत और चीन का विकास हो। इस मौके पर ली ने भारत और चीन की साझा ताकत का जिक्र किया।उन्होंने कहा कि दोनों देशों में दुनिया की एक-तिहाई आबादी बसती है, जो इसकी बहुत बड़ी ताकत है। ली ने राष्ट्रपति भवन में गार्ड ऑफ ऑनर का निरीक्षण करने के बाद कहा, ...  दुनिया में समृद्धि का विकास भी चीन और भारत के सहयोग तथा समानांतर विकास के बिना नहीं हो सकता।


चीनी राष्ट्रपति के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी थे। ली ने कहा कि उनके और सिंह के बीच कल बातचीत का बहुत ही सार्थक सत्र हुआ और उन्हें उम्मीद है कि आगे की बातचीत से बेहतरीन परिणाम मिलेंगे। उन्होंने कहा, मेरी भारत यात्रा के तीन उद्देश्य - परस्पर विश्वास को बढ़ावा देना, सहयोग तेज करना और भविष्य का सामना करना है। ली के अनुसार, उन्हें उम्मीद है कि दोनों पक्ष परस्पर रणनीतिक विश्वास को आगे बढ़ाएंगे।


इससे पहले रविवार को जब चीन और भारत के प्रधानमंत्री की मुलाकात हुई, तो दोनों देशों के बीच का सीमा विवाद ही बैठक में हावी रहा। सूत्रों के मुताबिक़ मनमोहन सिंह ने चीनी प्रधानमंत्री से साफ शब्दों में कहा कि सीमा पर शांति के बिना आपसी रिश्ते मजबूत नहीं होंगे। बातचीत में भारत की तरफ से ब्रह्मपुत्र नदी के पानी का मसला भी उठाया गया। चीन ने तिब्बत का मसला उठाया, तो भारत ने साफ कर दिया कि दलाई लामा आध्यात्मिक नेता हैं और तिब्बतियों को भारत में रहकर राजनीति करने की अनुमति नहीं है।


चीन के नए प्रधानमंत्री तीन दिन के भारत दौरे पर रविवार को दिल्ली पहुंचे। ली से अनौपचारिक मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लद्दाख में हुए घुसपैठ पर चिंता जताई। आज दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच औपचारिक बातचीत होगी। कड़े सुरक्षा बंदोबस्त के बीच चीन के प्रधानमंत्री ली कच्छयांग का भारत दौरा शुरु हुआ। सोमवार को होने वाले औपचारिक बातचीत से पहले कच्छयांग ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की। सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री निवास पर डिनर के दौरान हुई बैठक में मनमोहन सिंह ने दो टूक शब्दों में लद्दाख में चीन की तरफ से हुए घुसपैठ का मुद्दा उठाया। सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कच्छयांग को कहा कि लद्दाख में हुए घुसपैठ से दोनों देशों के बीच भरोसा कम हुआ है और दोबारा विश्वास कायम करने के लिए चीन को सकारात्मक कदम उठाने की जरुरत है।


हाल ही में लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर भारत चीन के बीच तीन हफ्ते तक तनातनी का माहौल रहा। विवाद के खात्मे के साथ रिश्तों को सुधारने की मुहिम भी शुरु हो गई। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने बीजिंग का दौरा किया। वहीं अपने दौरे से पहले ली कु चियांग ने बीजिंग में भारत के युवाओं के प्रतिनिधमंडल से मुलाकात की। इस मुलाकात में उन्होंने कहा कि दुनिया में बहुत से लोग सोचते हैं कि 21वीं सदी में एशिया विश्व अर्थव्यवस्था का खास इंजन बनेगा। ये सपना साकार हो सके इसके लिए हम दोनों देशों को साथ आना होगा और एक दूसरे से मेलजोल बढ़ाना होगा। इसी तरीके से हम दुनिया में एशिया का असर बढ़ा सकते हैं।


सीमा मुद्दे पर ली ने कहा कि दोनों देश अपने विशेष प्रतिनिधियों के जरिए समझौते को आगे बढ़ाने पर सहमत हुए हैं और प्रतिनिधियों की बैठक शीघ्र होने जा रही है। पिछले महीने लद्दाख में चीनी घुसपैठ के बाद दोनों देशों के बीच तीन सप्ताह तक गतिरोध बना रहा था।


ली ने कहा, "दोनों देशों के पास निष्पक्ष, यथोचित एवं परस्पर स्वीकार्य समाधान निकाले की समझ है।" उन्होंने आगे कहा कि दोनों देश अपने प्रासंगिक तंत्र का इस्तेमाल करें और सीमा पर शांति और सद्भाव सुनिश्चित कायम करने के लिए अपने रक्षा तंत्र को प्रबंधित करें।


सीमा पार से बहने वाली नदी के प्रवाह के बारे में ली ने कहा कि चीन, नई दिल्ली की चिंताओं को समझता है और उसने मानवीय चिंताओं के कारण जलविद्युत संबंधित सभी सूचनाएं मुहैया कराई हैं।


चीन से निकल कर भारत आने वाली ब्रह्मपुत्र नदी पर बन रहे बांधों को लेकर भारत ने चिंता जताई है।


व्यापार घाटे के बारे में ली ने चीनी बाजारों तक भारतीय उत्पादों की पहुंच बढ़ाने का आश्वासन दिया। अभी व्यापार का पलड़ा चीन की तरफ बहुत ज्याद झुका हुआ है।


चीन के प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वह भारत में चीनी निवेश का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा, "हमारे पास भरतीय व्यापार असंतुलन को दूर करने की क्षमता है।" यह आश्वासन देते हुए ली ने कहा, "व्यापार संतुलन में गतिशीलता टिकाऊ होती है।"


सुरक्षा के मामले में उन्होंने कहा कि शांतिपूर्ण दक्षिण एशिया चीन के हित में है और दोनों पक्षों ने चिंता के सभी मामलों और मुद्दों के समाधान पर चर्चा की है।


अपने सम्बोधन की शुरुआत ली ने भारतीय परम्परा के अनुसार 'नमस्ते' कहकर किया और उन्होंने अपने सम्बोधन में कई आकर्षक उद्धरणों का भी प्रयोग किया।


ली ने दोनों देशों को इस तरह के निकटवर्ती सम्बंध स्थापित करने पर जोर दिया, जिससे दोनों देश एकसाथ एशिया और वैश्विक स्तर पर अपना प्रभाव छोड़ सकें। ली ने कहा, "मुझे पूरा विश्वास है कि जब चीन और भारत एक सुर में बोलेंगे तो दुनिया को सुनना ही पड़ेगा।" लगभग इसी आशय की बातें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इससे पहले कह चुके हैं।

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