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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Thursday, October 17, 2013

हिंदुओं के त्‍योहार बहुजन नायकों की हत्‍याओं के जश्‍न हैं आदिवासियों का मकसद किसी की धार्मिक आस्था को चोट पहुंचाने की नहीं है। वे सिर्फ असुरवध के बिना पूजा का विनम्र आवेदन कर रहे थे क्योंकि वे और बंगाल के बहुजन मूलनिवासी असुरों के वंशज ही हैं। उनके इस आवेदन को खारिज करके मबहिषासुर वध रावण वध का सिलसिला जारी रखने का संकल्प फिर फिर दोहराया जा रहा है। अब हम मूलनिवासियों और बहुजनों के सामने इसके सिवाय कोई चारा नहीं कि हम वध,नरसंहार संस्कृति के तहत धर्म के नाम पर ऐसे अनुष्ठानों को नरबलि,सतीप्रथा,बहुविवाह,बाल विवाह और अस्पृश्यता की तरह निषिद्ध करने की मांग उठाये। इसके अलावा अब हम सारे असुर उतस्वों के वीडियो सिलसिलेवार प्रकाशित प्रसारित करेंगे। इस आलेख के साथ यूट्यूब पर जारी मालदह के असुरउत्सव का वीडियो लिंक दिये जा रहे हैं। various files and videos will be attached in course of time. plz. keep watching.u can watch last year's video entitled 'assur utsab or mulnavasi festival' 2012. vodeos of central programme will be uploaded shortly....

हिंदुओं के त्‍योहार बहुजन नायकों की हत्‍याओं के जश्‍न हैं


आदिवासियों का मकसद किसी की धार्मिक आस्था को चोट पहुंचाने की नहीं है। वे सिर्फ असुरवध के बिना पूजा का विनम्र आवेदन कर रहे थे क्योंकि वे और बंगाल के बहुजन मूलनिवासी असुरों के वंशज ही हैं। उनके इस आवेदन को खारिज करके मबहिषासुर वध रावण वध का सिलसिला जारी रखने का संकल्प फिर फिर दोहराया जा रहा है।


अब हम मूलनिवासियों और बहुजनों के सामने इसके सिवाय कोई चारा नहीं कि हम वध,नरसंहार संस्कृति के तहत धर्म के नाम पर ऐसे अनुष्ठानों को नरबलि,सतीप्रथा,बहुविवाह,बाल विवाह और अस्पृश्यता की तरह निषिद्ध करने की मांग उठाये।


इसके अलावा अब हम सारे असुर उतस्वों के वीडियो सिलसिलेवार प्रकाशित प्रसारित करेंगे। इस आलेख के साथ यूट्यूब पर जारी मालदह के असुरउत्सव का वीडियो लिंक दिये जा रहे हैं।


various files and videos will be attached in course of time. plz. keep watching.u can watch last year's video entitled 'assur utsab or mulnavasi festival' 2012. vodeos of central programme will be uploaded shortly....


पलाश विश्वास


प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष बंगाल में  अब राजकाज धार्मिक है।सत्ता दैवी है। सारे धर्म उत्सव अनुष्ठान राजकीय है। पितृपक्ष के अवसान के बाद से राजकाज ठप है। मुख्यमंत्री ने देवी पक्ष के प्रथम दिन से अखंड चंडीपाठ जारी रखा तो भारत के राष्ट्रपति ने विदेशयात्रा पर बेल्जियम में भी दुर्गा आराधना की। राष्ट्रपतिभवन अब उनका दुर्गा मंडप है। बंगाल की मुख्यमंत्री ने 273 पूजा आयोजनों का उद्गाटन किया तो बंगाल के राज्यपाल भी पूजा उद्बोधन में बिजी रहे। प्रतिपद को ज्योतिषी की सलाह पर राइटर्स हुगलीपार नवान्न में स्थानांतरित हो गया,तब से एक दिन भी कोई राजकाज नहीं हुआ। जब ओड़ीशा और आंध्र के साथ बंगाल में महासाइक्लोन पिलिन की चेतावनी जारी हुई तब ओड़ीशा और आंध्र सरकारों के विपरीत बंगाल सरकार दुर्गोत्सव में व्यस्त रही।सारे कर्मचारी,मंत्री अफसरान छुट्टियों पर। बहरहाल पूजा वृष्टि विघ्नित न हो इसके लिए प्रधानमंत्रित्व की दावेदार बंगाल की अग्निकन्या ने मां काली के दरबार में दुर्गा की नालिस ठोंक दी।


पूजा अबाध हो इसके लिए कोलकाता का उन्मुक्त आकाश नाटो और पेंटागन के हवाले कर दिया।नागरिकों की ड्रोन से निगरानी की जाती रही और बंगाल का मीडिया और सुशील समाज खामोश।


बंगाल में आपदा प्रबंधन का यह नजारा है।आयला में क्षतिग्रस्त बांध और तटबंध जस के तस हैं।


अब भी महानगर और नगर नगर उत्सव का माहौल है।राजकीय राजसूय धार्मिक अनुष्ठान जारी है लेकिन जनपदों में विपदा भारी है। बंगाल के तमाम जनपद जलमग्न हैं। हावड़ा जहां राइटर्स स्थानांतरित हो गया, वह भी जलमग्न।


मां माटी मानुष की सरकार के लिए राजकाज का मायने उद्गाटन, शिलान्यास, अनुदान, उत्सव, सम्मान, पुरस्कार और भत्तों की घोषणाएं हैं। पीड़ितों को तुरंत मुआवजा देने की घोषणा और नौकरी का आश्वासन एकमात्र आपदा प्रबंधन है। दीदीभक्तों का दावा है कि उनका सीधे मां काली और मां दुर्गा से कनेक्शन है।


इस बीच सुषमा असुर के आवेदन और देश भर में असुर उत्सवों के जवाब में बंगाल के एकाधिकार वर्चस्व वाली सत्ता हेजेमनी ने मूलनिवासियों, समता और सामाजिक न्याय की आवाज उठोने वालों को अलगाववादी घोषित करते हुए ऐलान किया है कि बिना असुर वध पूजा असंभव है।


आदिवासियों का मकसद किसी की धार्मिक आस्था को चोट पहुंचाने की नहीं है। वे सिर्फ असुरवध के बिना पूजा का विनम्र आवेदन कर रहे थे क्योंकि वे और बंगाल के बहुजन मूलनिवासी असुरों के वंशज ही हैं। उनके इस आवेदन को खारिज करके मबहिषासुर वध रावण वध का सिलसिला जारी रखने का संकल्प फिर फिर दोहराया जा रहा है।


अब हम मूलनिवासियों और बहुजनों के सामने इसके सिवाय कोई चारा नहीं कि हम वध,नरसंहार संस्कृति के तहत धर्म के नाम पर ऐसे अनुष्ठानों को नरबलि,सतीप्रथा,बहुविवाह,बाल विवाह और अस्पृश्यता की तरह निषिद्ध करने की मांग उठाये।


इसके अलावा अब हम सारे असुर उतस्वों के वीडियो सिलसिलेवार प्रकाशित प्रसारित करेंगे।


इस आलेख के साथ यूट्यूब पर जारी मालदह के असुरउत्सव का वीडियो लिंक दिये जा रहे हैं।



लाल रत्‍नाकर द्वारा बनाया गया महिषासुर का चित्र


assur utsab 2013,oct.14.

https://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=LGvcce0DRXw#t=25

Published on 15 Oct 2013

various files and videos will be attached in course of time. plz. keep watching.u can watch last year's video entitled 'assur utsab or mulnavasi festival' 2012. vodeos of central programme will be uploaded shortly....


assur utsab or mulnivasi festival 1 of 3

https://www.youtube.com/watch?v=NyXE2KRaySY



जोहार.

आप सभी को महिषासुर और रावण की शहादत याद रहे. याद रहे कि समान और सुंदर दुनिया का लडाई खतम नहीं हुआ है. हमारे असुर पुरखा-पूर्वजों ने, बूढ़े-बुढ़ियों ने धरती को इंसानों को रहने लायक बनाया था. कुछ लोगों ने इसे गंदा कर दिया. हमें फिर से दुनिया के आंगन को साफ कर और बढ़िया से लीप-पोतकर सजाना है. सिरजना है.


हम कल रात में ही रांची आ गए थे. सुबह-सुबह वंदना दीदी, विजय दादा, वृंदावन दा और अखड़ा के दूसरे साथियो के साथ पुरूलिया जाना था. महिषासुर शहादत दिवस में रहने के लिए. लेकिन रात से ही बड़ा भारी पानी-आंधी. नहीं जा सके.


आप सभी को अपने पुरखों का साहस देती हूं. हमारे पास अपने असुर पूर्वजों का बस यही चेतना है. महिषासुर और रावण शहादत दिवस पर हूल जोहार!


photo by Vijay Gupta

हिंदुओं के त्‍योहार बहुजन नायकों की हत्‍याओं के जश्‍न हैं

♦ प्रेस विज्ञप्ति, एआईबीएसएफ

वाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में सोमवार को देर रात आयोजित एक कार्यक्रम में महिषासुर की शहादत को याद किया गया। यह वही, महिषासुर है, हिुदु मिथकों में जिसकी हत्‍या देवी दुर्गा द्वारा की जाती है। लार्ड मैकाले की जयंती की पूर्व संध्‍या पर आयोजित इस कार्यक्रम में वक्‍ताओं ने उत्‍तर भारत में प्रचलित हिंदू मिथकों की बहुजन दृष्टिकोण से पुनर्व्‍यख्‍या की जरूरत पर बल दिया। कार्यक्रम का आयोजन आल इंडिया बैकवर्ड स्‍टूडेंस फोरम (एआइबीएसएफ) और यूनाईटेड दलित स्‍टूडेंटस फोरम (यूडीएसएफ) ने किया। पिछले कई दिनों से जेएनयू प्रशासन इस कार्यक्रम में विभिन्‍न गुटों के बीच मारपीट की घटना को लेकर आशंकित था। कार्यक्रम सफलता पूर्वक संपन्‍न होने पर जेएनयू प्रशासन ने राहत की सांस ली है।

'लार्ड मैकाले और महिषासुर : एक पुनर्पाठ' नाम से आयोजित इस कार्यक्रम को संबांधित करते हुए प्रसिद्ध दलित चिंतक कंवल भारती ने कहा कि पराजितों का भी अपना इतिहास होता है, उसकी नये तरीके से व्‍याख्‍या की जरूररत है। महिषासुर न्‍यायप्रिय और प्रतापी राजा थे, जिनका वध आर्यों ने छल से करवाया था। उन्‍होंने कहा कि 'असुर' शब्‍द का अर्थ प्राणवान होता है लेकिन ब्राह्मणवाद के पैरोकारों ने परंपराओं, पात्रों समेत शब्‍दों का भी विकृतिकरण किया है। उन्‍होंने कहा कि दलितों के एक तबके ने दशहरा नहीं मनाने का फैसला बहुत पहले ही कर लिया था। दशहरा हो या होली, हिंदुओं के अधिकांश त्‍योहार बहुजन तबकों के नायकों की हत्‍याओं के जश्‍न हैं। कहीं हिरण्‍यकश्‍यप मारा जाता है तो कहीं महिषासुर। उन्‍होंने कहा कि अब ओबीसी तबके को हिंदुवादी पुछल्‍लों से मुक्‍त हो जाना चाहिए।

फारवर्ड प्रेस के मुख्‍य संपादक आयवन कोस्‍का ने पोस्‍टमार्डनिज्‍म के सबसे बडे उपकरण विखंडनवाद के हवाले से कहा कि हमारे नायक इतिहास के गर्त में दब गये हैं, उन्‍हें बाहर लाने की जरूररत है। हमें मिथकों के जाल में नहीं फंसना है, अगर हम ऐसा करते हैं तो हम उसी ब्राह्मणवाद का पोषण करेंगे। लार्ड मैकाले के योगादानों की चर्चा करते हुए उन्‍होंने कहा कि उन्‍हें अंग्रेजी समर्थक रूप में गलत तरीके से प्रचारित किया जाता है। मैकाले का असली योगदान भारतीय दंड संहिता को निर्माण है, जिससे मनु का कानून ध्‍वस्‍त हुआ।

युद्धरत आम आदमी की संपादिका व सामाजिक कार्यकर्ता रमणिका गुप्‍ता ने कहा कि झारखंड में अभी भी 'असुर' नाम की जनजाति है, जिनकी संख्‍या 10 हजार के आसपास है। ये मूलत: लोहे संबंधित काम करने वाले लोग हैं, जिन्‍हें करमाली और लोहारा आदि नामों से भी जाना जाता है। ये असुर जातियां दुर्गा की पूजा नहीं करतीं। उन्‍होंने कहा कि हम एक विरोधाभासी समय में जी रहे हैं, एक ओर हम आधुनिक होने का स्‍वांग कर रहे हैं तो दूसरी तरफ अपनी मानसिकता में हम 16 वीं सदी से बाहर नहीं निकल रहे। उन्‍होंने मैकाले की भाषायी नीतियों का विरोध करते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता संबंधी योगदान के लिए लार्ड मैकाले को याद किया जाना चाहिए।




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