मालिकों के दुश्चक्र के खिलाफ जंग के लिए पहले सरसोंमध्ये भूतों के बसेरे पर भी धावा बोलना जरुरी है।
लेकिन सबका टोन कर्मियों के खिलाफ था... जैसे लग रहा था कि कर्मियों को आफिस से बाहर नहीं निकालेंगे तो जाने क्या हो जाएगा... सच में, आज मैं सोच सोच कर उफनता रहा कि किस दौर में जी रहे हैं हम.. काहे का लोकतंत्र और काहे का न्याय... सब कुछ बिका हुआ है.... और सब कुछ बड़े लोगों के लिए है... यशवंत
सिखविरोधी दंगों और गुजरात नरसंहार के जिम्मेदार तमाम राजनेता मानवता विरोधी युद्धअपराधी हैं।
किस 'सवर्ण युग' को खोज रहे हैं नरेंद्र मोदी?
पलाश विश्वास
By: parometa
जो दिल्ली में ३१ अक्तूबर १९८४ को इंदिरा गाँधी के मरने के बाद दंगा चला वो अब तक का सबसे वीभत्स सामूहिक हत्याकांड था।गुजरातदंगों की तरह।सिखविरोधी दंगों और गुजरात नरसंहार के जिम्मेदार तमाम राजनेता मानवता विरोधी युद्धअपराधी हैं।
१९८४ के हत्यारों को फांसी दो , और साथ में गुजरात के कसाई को भी।
लेकिन सबका टोन कर्मियों के खिलाफ था... जैसे लग रहा था कि कर्मियों को आफिस से बाहर नहीं निकालेंगे तो जाने क्या हो जाएगा... सच में, आज मैं सोच सोच कर उफनता रहा कि किस दौर में जी रहे हैं हम.. काहे का लोकतंत्र और काहे का न्याय... सब कुछ बिका हुआ है.... और सब कुछ बड़े लोगों के लिए है..ऐसा हमारे युवा मित्र यशवंत ने लिखा है।अपने फेसबुक वाल पर । यशवंत ने महुआ चैनल में छंटनी के खिलाफ जो घेराव का आयोजन किया,उसके समर्थन और सम्मान में भड़ास का ताजा पेज इस पोस्ट के साथ शेयर करने वाला हूं।
पत्रकारिता की इस महादुर्दशा के लिए पत्रकार और खासतौर पर हमारे नायक महानायक जिम्मेदार हैं।
अथ संपादक कथा
हमारे तमाम सती सावित्री मित्र हैं।उनकी अंतिम गति वर्धा विश्वविद्यालय में विभूति नारायण शरणम् गच्छामि में हुआ। जो हर पौधे की ऊंचाई बंदूक बराबर बता रहे थे सत्तर दशक में वे वहीं जमे हैं।कोई वहां जाकर टिक न पाने से बैरंग वापस लौटकर अंबेडकर और महात्मा पूले का तमगा बांट रहे हैं।
हमारे जमाने में डीपी त्रिपाठी को हम लोग भारतीयलेनिन समझ रहे थे,उनका हश्र हमने देखा।गांधीवादी समाजवादी महालफ्पाजों का महिमामंडन आधुनिक पत्रकारिता का इतिहास है,तो क्रांतिकारी मित्र कोई बहुत पीछे नहीं है।जाति विहीन वर्ग विहीन समता समाज के झंडेवरदार अपनी अपनी जातियों को गोल बंद करने लगे हैं। सबसे बड़ा करिश्मा ब्राह्मम वर्चस्व का तो स्वयं प्रभाष जोसी ने कर दिखाया। क्रांतिकारी मित्रों में अनेक लोग जाति क्षत्रपों के सिपाहसालार हुए तो कारपोरेटइंडिया के मैनेजर भी कम नहीं हैं।
एक संपादक ऐसे हैं,जो दरअसल संपादक नहीं हैं।लेकिन प्रिंट लाइन में उनका नाम जाता है।संपादक बनने के बाद वे महाकवि हैं। खबरों को पार्टीबद्ध बनाने में उनकी सानी नहीं हैं।लेकिन चुपके चुपतके समीकरण साधन की उनकी काबिलियत भी कम नहीं है। साथियों के लिए सप्ताह में महज एक दिन का अवकाश।ठेके पर लोग उनके बंधुआ मजदूर हैं और स्ट्रिंगर घरेलू नौकर।जिन्हें अवकाश के दिन भी दप्तर आना या न आने के लिए पहले से सूचित करना उनका फतवा है।लेकिन वे बिना बताये चुपके से शनिवार और रविवार का अवकाश ले रहे हैं। साथियों ने सवाल उठाया कि एक ही संस्था के बाकी अखबारों में पत्रकारों के लिए दो दिनों का अवकाश है,चाहे कोई आये या नहीं आये,तो हिंदी पत्रकारों का गुनाह क्या है। कार्मिक विभाग का कहना है कि आपके संपादक दो दिनों का अवकाश देना नहीं चाहते।
ज्यादातर अखबारों में संपादक अपने लिए बेहतर वेतन,अघोषित भत्ते यहां तक कि बिना रिपोर्टिंग किये रिपोर्टिंग कानवेयंस के भत्ते तक लेते रहते हैं और इसके बदले साथियों की प्रोन्नति,वेतनवृद्ध रोके रहते हैं।ठेके पर जो हैं,हिंदी में उनका वेतन संपादक की मर्जी पर निर्भर हैं।
विडंबना यह है कि ज्यादातर छंटनियों के पीछे मालिकों की बदमासी जितनी है,उससे कहीं ज्यादा ऐसे मसीहा नायक संप्रदाय की कारस्तानी जैसी हैं।
मालिकों के दुश्चक्र के खिलाफ जंग के लिए पहले सरसोंमध्ये भूतों के बसेरे पर भी धावा बोलना जरुरी है।
Yashwant Singh
महुआ पर प्रदर्शन का एक नतीजा हुआ कि महुआ का मालिक पीके तिवारी पुलिस वालों को पैसा देकर ले आया, बकाया सेलरी के लिए हड़ताल कर रहे कर्मियों को बाहर निकालने के लिए... लेकिन उसका दांव उल्टा पड़ गया... महुआ के साथियों का फोन आते ही इतनी जगह रायता बिखेरा गया कि पुलिस डांट सुनकर उल्टे पांव वापस लौट गई और एक मजिस्ट्रेट आया हड़ताली कर्मियों का बयान लेने.. लेकिन सबका टोन कर्मियों के खिलाफ था... जैसे लग रहा था कि कर्मियों को आफिस से बाहर नहीं निकालेंगे तो जाने क्या हो जाएगा... सच में, आज मैं सोच सोच कर उफनता रहा कि किस दौर में जी रहे हैं हम.. काहे का लोकतंत्र और काहे का न्याय... सब कुछ बिका हुआ है.... और सब कुछ बड़े लोगों के लिए है... खैर, लखनऊ से लेकर नोएडा तक के बड़े लोगों को फोन खड़खड़ाने और गुहार लगाने का नतीजा ये निकला कि महुआ का मालिक पीके तिवारी सेलरी देने के लिए तैयार हो गया है पर आधा अधूरा.. मेरे महुआ आफिस में जमे हड़ताली मीडियाकर्मियों से अनुरोध है कि वो धैर्य न खोएं... आज शाम तक अंजाम अच्छा होना चाहिए... ऐसा न हुआ तो दिवाली के दिन हम लोग बड़े पैमाने पर पहुंच रहे हैं... और, कोशिश ये भी है कि ये महुआ का मालिक पीके तिवारी दुबारा जेल जाए, चार सौ बीसी से लेकर करप्शन और हवाला समेत कई मामलों में.. मुझे पता है कि इन लोगों ने महुआ आफिस की बिजली पानी आदि की सप्लाई काट दी है लेकिन मुश्किल के इस वक्त के बाद सुख के क्षण आएंगे.. महुआ आफिस के साथियों, आप डटे रहना.. हम लोग लगे हुए हैं.. इस जड़, दुष्ट और जन विरोधी तंत्र के बीच अगर कुछ कड़ियां जिंदा और जन समर्थक हैं तो उन्हें हम तलाश रहे हैं और उनके दरवाजे खड़खड़ा रहे हैं... लेकिन एक चीज तो आज समझ में ठीक से आ गई कि आखिर क्यों कोई नक्सलवादी होता है....
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Vidya Bhushan Rawat
We should not expect too much from 'celebrities' in terms of ideology. Whether it is Lata Mangeshkar or Amitabh Bachchan, Sachin Tendulkar or Sunil Gavaskar, they have shown no spine. All of them crawled to Bal Thackrey and now assuming the way 'wind is blowing' they have changed their tone. The Bombay's entertain world is the most dangerous and dubious in this regard. Not every one is a Shailendra or Sahir here. Most of them don't know 'ideologies' they just have permanent interest. The elite in India look to serve their interest and hence if tomorrow Rahul is capable of serving their interest they will 'bless' him. At the moment their heart beat for Modi. Let them pray for Modi. The prime minister of India will only be an elected one and prayers don't work in democracies, it is only the vote that will make and unmake our governments.
Virendra Yadav
लयकारी का रिश्ता यदि विचार से होता तो क्या लता मंगेशकर नमो को प्रधान मंत्री रूप में देखने की इच्छा रखती और इसे सभी की इच्छा बतातीं ? उस 'सभी ' में से ज़किया जाफरी और हम आप जैसे करोड़ों करोड़ लोग भी तो हैं जो लता की गायकी के जितने मुरीद हैं उतने ही नमो विरोधी भी . लता ने नमो को अपनाकर अपने करोडो करोड़ प्रशंसकों को क्या निराश नहीं किया है ?.....वैसे कार्पोरेट ,हिदुत्व्वादी ,कलावादी और अभिजात खेमे के नमो राग में लता के शामिल होने पर इतना ताज्जुब भी क्यों हो ?
Feroze Mithiborwala
Indian political leaders have sent over a letter to Obama complaining that they feel very insulted as they have not been considered important enough to have their phones tapped by the NSA.
Dilip C Mandal
नानाजी देशमुख और लता मंगेशकर को बीजेपी सरकार ने एक साथ राज्यसभा के लिए नोमिनेट किया था. 1999 में..आप लोग लता के मोदी बयान पर चौंक क्यों रहे हैं? भारत के लोगों में इतिहास बोध की सचमुच कमी है. पोथी-पतरा पढ़ने से इतिहास-बोध कहां से आएगा?
Rajiv Nayan Bahuguna
लता जी से हमें सिर्फ गाना सुनना है . पी एम् कौन बने , और वोट किसे दें , यह हम खुद तय करेंगे
ADHI-JAN KATHA (MULNIBASI MASIK PATRIKA) 2nd SONKHA AVAILABLE. CONTACT..8389008105 9735325388
- अगर सरदार पटेल जिन्दा होते तो 70 आदिवासी गाँवो को खदेड़कर 2500 करोड़ की प्रतिमा बनाने का कडा विरोध करते.. और इस बजेट को बच्चो के कुपोषण हटाने के लिए इस्तेमाल करवाते... गुजरात में प्रति 100 बच्चो में से 45 बच्चे कुपोषण-भुखमरी के शिकार है. जिस में 100 आदिवासी बच्चो में से 88 बच्चे, 100 एससी बच्चो में से 75 बच्चे और 100 ओबीसी बच्चो में से 46 बच्चे कुपोषण-भुखमरी के शिकार है...
Himanshu KumarFree Soni Sori and Linga Kodopi
मैं एक डाकू हूँ . मैं आपके घर में घुसूंगा , आपके खेत पर पर कब्ज़ा कर लूँगा , आपकी लड़की को पकड़ कर बलात्कार करूँगा आप विरोध करेंगे तो मैं जोर से जय श्रीराम का नारा लगा दूंगा . आप और विरोध करेंगे तो मैं आपकी ज़मीन पर सरदार पटेल की मूर्ती लगा दूंगा .
इसके बाद सारी बहस आपकी ज़मीन, आपकी बेटी , आपकी इज्ज़त और आपके हक की नहीं रहेगी . फिर बहस होगी नेहरु या पटेल में से कौन बड़ा की , फिर बहस होगी हिंदू देशभक्त और मुसलमानों के पकिस्तान ले लिए जाने के बाद भारत में उनके अधिकारों की .
मेरे द्वारा किया गया बलात्कार और आपकी ज़मीन पर मेरे कब्ज़े की बात ही नहीं की जायेगी अब .
देखा हजारों साल पहले मर चुका एक राजा राम आज भी हम लुटेरों के कितने काम आ रहा है ?
Abhishek Srivastava
पीयूष मिश्रा को नरेंद्र मोदी पर ''होशोहवास'' वाली टिप्पणी करने के लिए कितने लीटर दारू की ज़रूरत पड़ती है? (दिवाली धमाका स्पेशल क्विज़, जीतने वाले को वायाAvinash Das ''पीयूष भाई'' से मिलने का अप्रतिम मौका, सीमित ऑफर)
जगजीत सिंह होते तो वे भी मोदी के लिए जनता से अपील करते. उन्होंने अटल जी के गीत गाये थे. लता मंगेशकर का दक्षिणपंथी आग्रह बाला साहब ठाकरे के जमाने से जाहिर है. अटल जी के पांव छूती उनकी तस्वीर मशहूर है. इसलिए मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की इच्छा वाले उनके बयान में कोई न्यूज वैल्यू नहीं है. हां, आज सुबह पीयूष भाई ने फोन पर जरूर मुझसे अपनी तकलीफ जाहिर की कि मोदी को मौका देने वाली उनकी टिप्पणी होशोहवास में नहीं थी. कहा - "दारू में दम नहीं था डार्लिंग, मुंह से निकल गया."
Ipsita Palগুরুচন্ডা৯ guruchandali
http://www.tehelka.com/my-husband-my-rapist/
My Husband My Rapist | Tehelka.com
Virendra Yadav
खबर है कि लम्बे समय से बीमार हिन्दी के प्रख्यात आलोचक डॉ.परमानन्द श्रीवास्तव को आज वेंटिलेटर पर रखा गया है .जिदगी की इस अंतिम जंग में हम उनके विजयी होने की कामना करते हैं !
Like · · Share · 18 hours ago · Edited ·
Jagadishwar Chaturvedi
मोदी के प्रचार अभियान में पटना रैली तक सनसनी का तत्व हुआ करता था पटना रैली के बाद से इसमें भय का तत्व शामिल हो गया है। मोदी अब जिस जगह भी जाएंगे अपने साथ सनसनी और भय लेकर जाएंगे।
अब उनकी सभा जहां होगी लोग इंतजार करेंगे कि मोदी सकुशल विदा हों और भय कटे। लोकतंत्र में प्रचार अभियान में मनमोहन सिंह,लालकृष्ण आडवाणी.सोनिया गांधी और राहुल गांधी ये सब बडे नेता हैं लेकिन इनकी सभा में भय नहीं होता। मोदी ने अपनी सभा में मीडिया हाइप के जरिए भय की सृष्टि करके लोकतंत्र में अलोकतांत्रिक काम किया है। सभा में भय का तत्व पंजाब के दौर में दिखता था। इस अर्थ में देखें तो मोदी नए किस्म का मीडियाजनित आतंकित राजनीतिक तापमान पैदा कर रहे हैं और यह उनके भीरू व्यक्तित्व की अभिव्यंजना है। यह नकली आतंकी राजनीतिक तापमान है।
धनतेरस पर पूजन एवं खरीददारी के शुभ मुहूर्त के लिए जब सारा देश अपनी अपनी आस्था के मुताबिक पुरोहितों और ज्योतिषियों की शरण में है,जनसंहार की संस्कृति के रंग खिल रहे हैं इंद्रधनुषी।
मोदी के कारपोरेट विकल्प को स्थापित करने में बाजार कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहा है।मीडिया के रातदिन सातों दिन अविराम मिथ्या अभियान के अलावा शेयर बाजार की अर्थव्यवस्था पलक पांवड़े बिछाये मोदी के स्वागत को तैयार।
रंग बिरंगे और विभिन्न आस्थाओं के ठेकेदार,बहुजनों के मसीहा संप्रदाय भी मोदी के पक्ष में फतवा जारी करने लगे हैं।
यह समझने वाली बात है कि अल्पमत कारपोरेटगुलाम सरकारों के इस समय में पार्टियों के राष्ट्रविरोधी संविधानविरोधी जनविरोधी लोकतंत्रविरोध गठजोड़ का चेहरा जो बी बनता हो,वह दरअसल मुखौटा है और मुखौटे की आड़ में धर्मोन्मादी कारपोरेट युद्धक इंतजाम जनविध्वंस के लिए लामबंद।
इसी बीच,मुजफ्परनगर में दंगे की आंच भी सुलग ही रही है,जो भयंकर अशनिसंकेत है।राष्ट्र की कोख में पनपती सांप्रदायिकता नासूर परमाणु बम से ज्यादा कतरनाक है ौर मुलाहिजा फरमाये किमुजफ्फरनगर के बुढाना क्षेत्र में भडकी ताजा हिंसा के मामले में पुलिस ने आठ लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। 15 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। जिले के तनावग्रस्त इलाके में अर्द्धसैनिक बल गश्त लगा रहे हैं। जिले के बुढाना गांव में बुधवार रात भडकी ताजा सांप्रदायिक हिंसा में तीन लोग मारे गए। इससे पहले इसी जिले में पिछले महीने हुए सांप्रदायिक दंगों में 62 लोगों की मौत हुई थी। पुलिस अधिकारियों ने बताया कि इस संबंध में आठ लोगों को गिरफ्तार किया गया और पूरे जिले की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है।
चंद्रमुखी हो या पारो
कोई फर्क नहीं पड़ता यारो
जनता का खून पीने वालों को
पीने का बहाना चाहिए
जाहिर है,जनता का जब दिवाला निकल रहा है,तब सबसे धनी गृहवधु के पचासवें जनमदिन पर सितारों का मेला लगा है और जन्मदिन की गिफ्ट की जानकारी सबसे बड़ी खबर है।इसी माहौल में सेंसेक्स में फूटे पटाखे, टूटा साल 2008 का रिकॉर्ड।
विदेशी निवेशकों द्वारा चुनिंदा शेयरों की खरीद बढ़ाये जाने से बंबई शेयर बाजार का सूचकांक शुक्रवार को 129 अंकों की बढ़ोतरी के साथ सर्वकालिक उच्चस्तर 21,293.88 अंक पर पहुंच गया।
बंबई शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक बीएससी-30 में पिछले तीन कारोबारी सत्रों के दौरान 594.24 अंकों की बढ़ोतरी दर्ज की गयी थी, जो आज के शुरुआती कारोबार में 129.36 अंक अथवा 0.61 फीसदी के और सुधार के साथ 21,293.88 अंक पर पहुंच गया।
इससे पहले 10 जनवरी 2008 को सूचकांक ने 21,206.77 अंक का स्तर छुआ था। इसी प्रकार नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी-50 भी 33.45 अंक अथवा 0.53 फीसदी की तेजी के साथ 6,332.60 अंक पर पहुंच गया।
बाजार विश्लेषकों ने बताया कि विदेशी निवेशकों की ओर से बैंकिंग, वाहन, धातु और रीएल्टी क्षेत्र के शेयरों की खरीद बढ़ाये जाने के कारण बाजार में तेजी आई।
वहीं, अन्य मुद्राओं की तुलना में डॉलर की मजबूती से अंतरबैंक विदेशी मुद्रा विनिमय (फॉरेक्स) बाजार में शुरुआती कारोबार के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 37 पैसे कमजोर होकर 61.87 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया।
आयातकों की ओर से डॉलर मांग बढ़ने के कारण भी रुपये की धारणा प्रभावित हुयी। फॉरेक्स बाजार में कल के कारोबारी सत्र के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपया 27 पैसे कमजोर होकर 61.50 रुपये प्रति डॉलर पर बंद हुआ था, जो आज के शुरुआती कारोबार में 37 पैसे और कमजोर होकर 61.87 रुपये प्रति डॉलर पर आ गया।
बंबई शेयर बाजार का सूचकांक भी आज के शुरुआती कारोबार में 129.36 अंक अथवा 0.61 फीसदी की तेजी के साथ सर्वकालिक उच्चस्तर 21,293.88 अंक पर पहुंच गया।
Market says Happy Diwali; sensex scales fresh lifetime peak
Rupee weakens to 61.8750 a dollar on thin volume ahead of Diwali
Since January, the rupee has weakened 11.11% and is the third major loser in Asia after the Indonesian rupiah and the Japanese yen.
The BSE Sensex surged to a record high of 21,293.88 on Friday as blue chips rallied on the back of strong foreign buying, marking a remarkable turnaround from two months earlier when the rupee fell to record lows.
Jobs on the line as India's gold sector suffers under govt curbs
About 300,000 to 400,000 artisans from Zaveri Bazaar, India's biggest bullion market, have already moved back to their villages due to a lack of work.
मित्रों, महुआ चैनल में छंटनी के खिलाफ घेराव की अभूतपूर्व पहल के लिए यशवंत भाई को धन्यवाद।हम हमेशा मानते रहे हैं कि लिखने बोलने के महान रचनात्मक कर्म से ज्यादा बड़ा और जरुरी काम वंचितों,असहाय लोगों के हक में असमता,अन्याय.अत्याचार और शोषण के विरुद्ध उनके साथ खड़े होने का कलेजा।तमाम विवादों में उलझे होने और बेलगाम मद्यपान के बावजूद हमारे युवा तुर्क यह जरुरी काम कर रहे हैं,इसकी मुझे बहुत खुशी है।
मेरा अपराध यह है कि में साधनहीन हूं और इच्छानुसार कहीं भी निकल नहीं सकता।दिल्ली में सारे मित्रों के साथ खड़ा मैं हो नहीं सकता और कोलकाता में फिलहाल अभिषेक और यशवंत या अनंदस्वरुप वर्मा जैसे लोग नहीं हैं।इसलिए कोलकाता में राजनीति व्यतिरेक कोई नागरिक पहल असंभव है,जिसे मैं संभव करने की स्थिति में हूं नहीं।
राजीव नयन बहुगुणा से हमारी मुलाकात नैनीताल में तब हुई थी जब वे पटना नवभारत टाइम्स में थे और नैनीताल समाचार में लिखते भी थे। वे भारतीय पर्यावरण आंदोलन के अग्रदूत सुंदरलाल बहुगुणाजी के सुपुत्र हैं।जो सर्वोदयी और गांधीवादी हैं।विशुद्ध शाकाहारी हैं और नशा के खिलाफ भी हैं।ऐसे पिता के पुत्र होकर भी राजीव दाज्यू जैसे पीने पिलाने की बात बेधड़क लिखते पोस्टाते हैं,उससे पता चलता है कि उनमें और जो हो कोई पाखंड हैं ही नहीं।
आज जो उन्होंने पोस्ट किया, एक पंक्ति की यह पोस्ट बेहद प्रासंगिक है और कारपोरेट राज के सर्वव्यापी परिवेश में जब तमाम महान लोग जोधपुर के किले में भारत की सबसे धनी गृहिणी के जन्मदिन में शरीक होने गये हैं,और कारपोरेट प्रधानमंत्रित्व के लिए मुस्लिम वोटों के ठोकेदार भी संघम शरणम गच्छामि कहने लगे हैं,कोई इतनी साफ तरीके से यह मांग उठाये, तो हमें निसंदेह उस मांग को बुलंद करते रहने में कोताही नहीं करनी चाहिए।
हम मानते हैं कि भारत में हिंदुत्व आंदोलन का प्रस्थानबिंदु राममंदिर आंदोलन नहीं,बल्कि 1984 में सिखों का नरसंहार है। वहीं भारत में खुले बाजार की नींव है। यह सिखों का मामला नही है।धर्म का मामला भी नहीं।यह सरासर खेती में अत्यंत दक्ष एक भूगोल में खुले बाजार का अश्वमेध है।धर्मोन्माद और कारपोरेट राज की जायनवादी वैश्विक व्यवस्था एक दूसरे के पूरक हैं। जनता के विरुद्ध युद्धघोषणा का सिलसिला वहीं से प्रारंभ हुआ,जिसे आज निर्लज्ज आर्थिक सुधार कहा जाता है।
बाबरी विध्वंस आपरेशन ब्लू स्टार की तार्किक परिणति है।गोधरा से लेकर गुजरात के नरसंहार, देश विदेश में दंगे, मध्यबिहार में निजी सेनाओं के कत्लेआम,दंडकारण्य में आदिवासियों का संहार और देशभपर में आदिवासियों की बेदखली,कश्मीर और मणिपुर में मानवाधिकार हनन का सारा कारोबार इसी वैश्विक जायनवादी शैतानी बंदोबस्त के हिस्से हैं।
जनता को एक के बाद कारपोरेट विकल्प चुनने के लिए बाध्य करते हुए जो कारपोरेट जनादेश गढ़ा जा रहा है,उसके खिलाफ यह मांग खुलकर उठाने की जरुरत है कि
१९८४ के हत्यारों को फांसी दो , और साथ में गुजरात के कसाई को भी।
नरेन्द्र मोदी के लिए आधुनिक सुरक्षा व्यवस्था
FILE
नई दिल्ली। केंद्र ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर होने वाले दौरों के लिए अग्रिम सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए उनकी सुरक्षा का स्तर बढ़ा दिया है।
इस कदम का मतलब यह है कि अब मोदी के रैली के स्थानों की उसी तरह से साफ-सफाई की जाएगी जैसे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी की रैलियों के लिए की जाती है।
सुरक्षा के संदर्भ में इस कवायद को 'एडवांस सिक्योरिटी लिएजों' (एएसएल) के नाम से जाना जाता है। आधिकारिक सूत्रों का कहना है कि इसके तहत मोदी के रैली के स्थलों की साफ-सफाई पहले से ही स्थानीय पुलिस के साथ नजदीकी समन्वय बनाकर की जाएगी।
रैली के हर प्रवेश द्वार पर मेटल डिटेक्टर लगाए जाएंगे और कई स्तरों की जामातलाशी होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी लोगों की सही ढंग से सुरक्षा जांच हो। मोदी के दौरे के कार्यक्रम के हर मिनट का ब्यैरा पुलिस द्वारा लिखा जाएगा और सुरक्षा को लेकर राज्य सरकार एवं दूसरी सुरक्षा एजेंसियों की नजर होगी।
बीते 27 अक्टूबर को पटना के गांधी मैदान में मोदी की रैली के दौरान हुए धमाकों के बाद केंद्र सरकार ने यह कदम उठाया है।
किस 'सवर्ण युग' को खोज रहे हैं नरेंद्र मोदी?
राजेश जोशी
बीबीसी संवाददाता
बुधवार, 30 अक्तूबर, 2013 को 08:27 IST तक के समाचार
रविवार को पटना के गाँधी मैदान में भारतीय जनता पार्टी की क्लिक करेंहुंकार रैली के दौरान नरेंद्र मोदी ने बिहार में चाणक्य के स्वर्ण युग को वापस लाने का ऐलान किया. लेकिन जो शब्द उन्होंने प्रयोग किया वो था – "सवर्ण युग". बहुत लोगों का ध्यान इस उच्चारण और उसके निहितार्थ पर नहीं गया.
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पर क्या ये सिर्फ़ ग़लत उच्चारण का मामला था या फिर मोदी पिछड़े और मुसलमानों के साथ साथ भारतीय जनता पार्टी के अगड़े वोटरों को भी पुचकार रहे थे?
बरसों तक लालू प्रसाद यादव को सत्ता में बनाए रखने वाले यादव-मुसलमान एकजुट पर मोदी की नज़र थी इसीलिए उन्होंने पहले क्लिक करेंमुसलमानों की ओर हाथ बढ़ाया और कहा कि बिहार के मुसलमान इतने ग़रीब हैं कि हज करने के लिए भी नहीं जा पाते.
लेकिन गुजरात में दो मुस्लिम बहुल ज़िले सबसे ज़्यादा विकसित हैं.
फिर उन्होंने सीधे यादवों को संबोधित किया जो लालू प्रसाद यादव के जेल जाने के बाद नेतृत्व के संकट से गुज़र रहे हैं. मोदी ने "यदुवंशियों" का हित सुरक्षित रखने का भरोसा दिलाया.
कठिन डगर
पर उन्हें इस बात का एहसास था कि मुसलमानों और यादवों की ओर हाथ बढ़ाने से भारतीय जनता पार्टी के अगड़े वोट बैंक पर कहीं ग़लत असर न पड़े. इसलिए उन्होंने प्राचीन भारत के ब्राह्मण कूटनीतिज्ञ चाणक्य का सहारा लिया.
मोदी ने कहा, "मित्रों यही धरती है जिस धरती पर चाणक्य पैदा हुए थे और वो कालखंड हिंदुस्तान का स्वर्णिम कालखंड था. चाणक्य का मंत्र था सबको जोड़ो...."
उन्होंने फिर विश्लेषण किया कि चाणक्य का काल इसलिए स्वर्णिम काल था क्योंकि तब "हिंदुस्तान का मानचित्र सबसे फैला हुआ था".
पर मोदी के मुताबिक़ "फिर काँग्रेस आई जिसने विभाजन का नारा उठाया, संप्रदाय के नाम पर बार बार तोड़ा. दूसरे आए जिन्होंने जातिवाद का ज़हर फैलाया, तीसरे आए जिसने जाति के भीतर भी जाति पैदा करने का प्रयास किया.
बिहार में फिर से एक बार अगर 'सवर्ण' युग लाना है, अगर बिहार को फिर से चाणक्य की उस महान विरासत को हासिल करना है तो हमें जोड़ने की राजनीति करनी पड़ेगी, तोड़ने की राजनीति से देश नहीं चलेगा."
मोदी की रैली के दौरान हुए क्लिक करेंसिलसिलेवार बम विस्फोटों की धमक में उनके इस बयान पर बहुत ध्यान नहीं दिया गया पर "जातिवादी" राजनीति करने वाली पार्टियों पर हमला बोलने के एकदम बाद "चाणक्य की विरासत वाले सवर्ण युग" की याद दिलाने के गहरे राजनीतिक मायने हैं.
साधारण चूक?
मोदी का स्वर्ण युग की बजाए सवर्ण युग कहना उच्चारण की बहुत साधारण चूक भी हो सकती है और शायद यही समझकर बहुत से लोगों ने इस पर ध्यान नहीं दिया.
पर अगले आम चुनावों से पहले अलग अलग जाति समूहों में अपनी स्वीकृति बढ़ाने की कोशिश के संदर्भ में देखें तो ये स्वर्ण को सवर्ण कहने जैसी साधारण चूक नहीं दिखती.
बीजेपी की चुनावी रैलियों में नरेंद्र मोदी राहुल गाँधी और काँग्रेस को निशाना बना रहे हैं.
अपनी स्वीकृति बढ़ाने की कोशिश मोदी के लिए कितनी कठिन साबित हो रही है इसका अंदाज़ा नरेंद्र मोदी के भाषणों से लग जाता है.
इस कोशिश में इतिहास और नागरिकशास्त्र की वो नए सिरे से, अपने हिसाब से व्याख्या कर रहे हैं. और उनसे सवाल करने वाला कोई नहीं है.
उन्हें एक ओर मुसलमानों को ये विश्वास दिलाना है कि गुजरात में हुए 2002 के दंगों के बावजूद उनसे बड़ा ख़ैरख्वाह कोई नहीं है, दूसरी ओर हिंदू मतदाताओं के बीच अपनी हिंदू हृदय सम्राट की छवि को भी बचाए रखना है.
इस बीच दलितों और पिछड़ों को भी ये बताना है कि मैं पिछड़ी जाति में पैदा हुआ हूँ और बचपन में मैंने रेलगाड़ियों में चाय बेचकर गुज़ारा किया है.
ऐसी कठिन डगर पर चलते हुए अगर नरेंद्र मोदी पटना के गाँधी मैदान से कविता के ज़रिए बताते हैं कि सिकंदर जब दीन-ए-इलाही का बेबाक बेड़ा लेकर विश्वविजय करते हुए हिंदुस्तान आया तो दीन-ए-इलाही के बेड़े को गंगा में डुबो दिया और बिहार के सैनिकों ने उसे परास्त करके भगा दिया.
अब इतिहास के किस विद्वान में है हिम्मत कि वो भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार से पूछे कि सिकंदर ने दीन-ए-इलाही का प्रचार कब किया था, सर? और किस सन में वो विश्वविजय करके पटना में आया जहाँ उसे बिहार के सैनिकों ने उसे परास्त किया और मार भगाया?
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http://www.bbc.co.uk/hindi/india/2013/10/131029_modi_sikandar_patna_analysis_rj.shtml
गीतकार व राज्यसभा सांसद जावेद अख्तर का मानना है कि गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी अच्छे प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। उन्होंने आरोप लगाया कि मोदी का दामन न सिर्फ सांप्रदायिक दंगे से दागदार है बल्कि वे लोकतांत्रिक भी नहीं हैं।
पटना आए गीतकार ने गुरुवार को एक स्कूल के कार्यक्रम में कहा कि गुजरात दंगों के कारण नरेंद्र मोदी लोकतंत्रीय नहीं रह गए। राज्यसभा सांसद ने आरोप लगाया कि मोदी गुजरात के मंत्रियों के साथ चपरासी की तरह व्यवहार करते हैं। ऐसे में वे देश कैसे चलाएंगे। उन्होंने कहा कि गुजरात में मोदी के तीसरी बार सत्ता में आने की चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन वे अपने प्रदेश में लोकतांत्रिक मूल्यों का आदर नहीं करते। मोदी की तरक्की लोकतंत्र के लिए चुनौती है।
मोदी को चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाए जाने के बाद भाजपा से नाता तोड़ने वाले बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तारीफ करते हुए जावेद ने कहा कि इस प्रदेश में आए सकारात्मक विकास को देखते हुए यहां की जनता और भी बदलाव चाह रही है।
एक मजा यह भी देखिये कि आतंकवाद के विरुद्ध पंजाब में राष्ट्र के सेनानायक पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल ने गोदरा दंगों के मामले में नरेंद्र मौदी को क्लीन चिट दे दी है।पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल का कहना है कि नरेंद्र मोदी को गोधरा दंगों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि कानून-व्यवस्था की स्थिति से निपटना पुलिस नेतृत्व का काम है।
गिल ने नी दिल्ली में संवाददाताओं से कहा कि कानून-व्यवस्था की स्थिति से निपटना पुलिस नेतृत्व का काम है, न कि राजनीतिक नेतृत्व का। संवाददाताओं ने गिल से पूछा था कि गोधरा दंगों के निपटने में मोदी की भूमिका को वह किस तरह देखते हैं।
साल 2002 में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सुरक्षा सलाहकार रह चुके गिल कल अपनी जीवनी केपीएस गिल: द पैरामाउंट कॉप के विमोचन के मौके पर बोल रहे थे। पुस्तक में गिल ने मोदी की तारीफ करते हुए कहा है कि गुजरात के मुख्यमंत्री हिंसा खत्म करने के प्रति गंभीर थे। उन्होंने दूसरे दलों पर मोदी को बदनाम करने का आरोप लगाया है।
उन्होंने कहा कि मैं इस बात को मानता हूं कि सभी राजनीतिक दलों के मोदी विरोधी और भाजपा विरोधी लोग इस घटना (गुजरात में 2002 को हुए दंगों) का फायदा उठा रहे हैं और किसी न किसी तरह मोदी को बदनाम करने की हर कोशिश कर रहे हैं।
गिल ने आरोप लगाया कि गोधरा में जो कुछ हुआ उसके बाद पुलिसकर्मी और प्रशासन सांप्रदायिक बन गए थे और उन्हीं दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री बने मोदी की सरकारी मशीनरी पर यथोचित पकड़ नहीं थी।
संवाददाताओं से गिल ने कहा कि राज्य के सुरक्षा सलाहकार का प्रभार लेने के बाद उन्होंने ऐसी हर जगह का दौरा किया था जहां हिंसा हुई थी और उच्च से लेकर निचले स्तर तक के पुलिसकर्मियों ने किसी भी तरह के दिशा-निर्देश मिलने की बात से इंकार किया था।
उन्होंने यह भी कहा कि दंगों के दौरान हुईं 5-6 घटनाओं में कई लोग मरे थे। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि उनके परिवार के कुछ सदस्यों को उनकी टिप्पणियां पसंद नहीं आईं। गिल ने संवाददाताओं को बताया कि उनके परिवार के सदस्य अखबार पढ़ते थे जबकि वह घटनाक्रम से अवगत थे।
गिल को मई 2002 में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का सुरक्षा सलाहकार बनाया गया था ताकि राज्य में सांप्रदायिक हिंसा पर रोक के लिए कारगर कदम उठाए जा सकें।
इस पर भी गौर फरमायें।
गुजरात सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर विभिन्न राज्यों में भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की होने वाली चुनावी रैलियों के लिए अग्रिम सुरक्षा व्यवस्था संबंधी तालमेल (एएसएल) दोगुणा करने की मांग की है। यह मांग पटना में मोदी की हुंकार रैली से महज कुछ घंटे पहले बम धमाकों के आलोक में की गयी है।
मोदी को जेड प्लस की सुरक्षा प्राप्त है जिसके तहत राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड कमांडो हमेशा उनकी सुरक्षा में लगे रहते हैं। केंद्र सरकार ने बुधवार को यह कहते हुए मोदी को स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) सुरक्षा देने से इनकार कर दिया था कि उन्हें इसकी जरूरत नहीं है।
गुजरात सरकार के अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) एस.के. नंदा ने कहा, 'हमने केंद्र से हर उस स्थान को लेकर (गुजरात और संबंधित राज्य जहां रैली होने जा रही है) एएसएल तालमेल दोगुणा सुनिश्चित करने की मांग की है जहां मोदी चुनावी रैली को संबोधित करने जा रहे हैं।' नंदा ने कहा कि इस सिलसिले में पिछले सप्ताह केंद्र को संदेश भेज दिया गया है और अब राज्यों से इस मुद्दे पर गौर करने के लिए कहे जाने की संभावना है।
नंदा ने कहा कि मोदी के लिए सुरक्षा और कड़ी किए जाने के सिलसिले में इसके अलावा गुजरात का बम निष्क्रिय दस्ता भी मोदी की रैलियों में जाएगा। गुजरात पुलिस ने दो सप्ताह पहले मोदी की पटना रैली के दौरान सुरक्षा चूक के लिए अपने बिहार समकक्ष की आलोचना की थी जहां बम धमाकों में छह व्यक्ति मारे गए। गुजरात पुलिस ने कहा था कि यदि बिहार पुलिस ने उसके अनुरोध पर ध्यान दिया होता, तो शायद वह स्थिति टाली जा सकती थी।
गुजरात के पुलिस महानिदेशक के कार्यालय ने कहा था कि गुजरात के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बिहार पुलिस से संयुक्त एएसएल का अनुरोध किया था। लेकिन काफी मान मनुहार के बाद बिहार पुलिस के अधिकारी एएसएल में शामिल होने पर राजी हुए जो पुलिस अधीक्षक (पटना सिटी) तथा गुजरात के अतिरिक्त निदेशक (आईबी) और पुलिस अधीक्षक (मुख्यमंत्री सुरक्षा) द्वारा किया गया।
पुलिस महानिदेशक कार्यालय ने कहा कि लेकिन बिहार पुलिस के अधिकारियों ने एएसएल रिपोर्ट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया और जरूरी मुद्दे का संज्ञान नहीं लिया। शायद उन्हें ही मालूम होगा कि उन्होंने ऐसा क्यों किया।
Uday Prakash
इस बात को समझने में न तो कोई प्रकांड, अप्रतिम प्रतिभा चाहिए, न कोई मनहूस आचार्य मुद्रा और हिटक हिटक कर निकलते हुए बासी शब्द...
बात निहायत मामूली-सी है. ले-मैन या ग्रासरूट वाली. आम-फ़हम दिमाग से उपजने वाली कि आखिर नमो सरदार वल्लभ भाई पटेल की ही स्टेच्यू क्यों बनवा रहे हैं. वह भी दुनिया की सबसे बड़ी, गिनीज़ बुक में दर्ज हो जाने वाली, न्यूयार्क की 'स्टेच्यू आफ़ लिबर्टी' से भी बड़ी, जिस पर हज़ारों-लाखों कविताएं और रचनाएं लिखी गयी हैं.
और पटेल साहेब की मूर्ती भी इस खास टाइमिंग के साथ.
ये बात तो हर कोई जानता है कि सरदार पटेल कांग्रेस सरकार के कैबिनेट मिनिस्टर थे. वह भी होम मिनिस्टर, जिसने लगभग बीस हज़ार संघ कार्यकर्ताओं को जेल के सीखचों के भीतर बंद कर दिया था और इस संगठन पर सामाजिक-सामुदायिक सदभाव बिगाड़ने के अंदेशे में प्रतिबंध लगा दिया था. और यह सब तब, जब नमो की पार्टी के जन्म होने की पूर्वकल्पना तक किसी को नहीं थी.
फिर अगर स्टेच्यू ही बनवानी थी तो उस भगवान राम की क्यों नहीं, जिन्होंने इस पार्टी के फ़कत दो सांसदों की तादाद को अपनी 'अलौकिक कृपा' से, पहले अस्सी के ऊपर और फिर दिल्ली की सलतनत के सिंहासन तक चढ़ा दिया था.
अगर राम या हिंदुओं के अन्य देवी-देवताओं के प्रति नमो की उतनी ही आस्था होती तो अगर अयोध्या में विवादित ज़मीन में जगह न मिलती तो गुजरात में ही अपने किसी फ़ायनेंसर या लैंड कोलोनाइज़र से कह कर, वहीं उनकी मूर्ति बनवा देते. अयोध्या वहीं हो जाता. गुजरात में.
फिर गुजरात के ही महात्मा गांधी ने कौन सा ऐसा नगण्य काम कर डाला था कि उनकी इतनी बड़ी स्टेच्यू नहीं हो सकती थी. जिस महान व्यक्ति को, जो युगप्रवर्तक था और औपनिशिक शासन की लुटिया डुबाने वाला बीसवीं सदी का अबूझ पहला व्यक्तित्व और जिसे षड़्यंत्रों के चलते कई बार नामांकित होने पर भी नोबेल का शांति पुरस्कार नहीं मिल पाया था, अगर नमो उसको संसार की सबसे बड़ी मूर्ति बनवाकर सम्मानित करते तो यह गांधी की जन्मभूमि गुजरात का सम्मान होता.
फिर अगर उन्हें अपनी ही पार्टी के किसी नेता की स्टेच्यू बनवाना था तो अटल जी को क्यों अलक्षित किया गया. वे तो अभी भी अशक्त हो कर जीवित हैं. यह उनकी याद-दिहानी का बुत होता. वे तो अकेले नमो पार्टी के एकमात्र पी एम थे. और उन्होंने तो पोखरण में परमाणु बम फोड़ने, कारगिल युद्ध में पाकिस्तान को हराने, चतुर्भुज प्रोजेक्ट और शाइनिंग इंडिया, सद्भावना एक्सप्रेस किस्म के कई ऐतिहासिक काम भी कर डाले थे. वे सचमुच डिज़र्व करते थे. लेकिन क्या उन्हें सिर्फ़ इसलिए ड्राप किया गया कि सन २००२ में गुजरात में हुए जेनोसाइड पर दुखी और ग्लानि से भर कर उन्होंने 'राजधर्म' वाली टिप्पणी कर डाली थी. आखिर ऐसी बात दिल से आसानी से निकलती भी नहीं. कहते तो ये भी हैं कि अटल जी तब नमो को सी एम के ओहदे से बर्खाश्त करने के मूड में भी थे और आडवानी जी ने उन्हें बचाया था .
तो फिर खुद आडवानी जी की स्टेच्यु क्यों नहीं, भई ?
वे तो नमो पार्टी के ही शिखर-वरिष्ठ पुरुष हैं, जिन्हें बड़ी होशियारी से इस दौड़ से दरकिनार कर दिया गया है. अगर यह मूरत उनकी होती तो उनके प्रति पार्टी की कृतज्ञता का ज्ञापन होता. उनके घावों पर मरहम भी लगता.
अभी भी यह उलझन ज्यों की त्यों बनी हुई है कि सरदार पटेल का ही स्टेच्यू क्यों ?
लता मंगेशकर हो या अमिताभ बच्चन सभी को सरकार और तंत्र की जरुरत होती है. वैसे भी इनलोगो का न कोई विचार है न विचारधारा इसलिए जब वे मोदी या ठाकरे की तारीफ करते हैं तो हमें कोई आस्चर्य नहीं होना चाहिए। आखिर बम्बई के कितने सिनेमाई कलाकार हैं जो साम्प्रदायिकता और जातिवाद के विरोध में खड़े हुए हैं. ले दे के दो चार नाम ही हैं जो उँगलियों के गिनाये जा सकते हैं. अतः लता दीदी की बात को मासूमियत का आशीर्वाद समझिये। ये संत आत्मा हैं और इनके आशीर्वाद सबको मिलेगा। अगर राहुल कल उनके पास गया तो लतादि उसको नेहरू के बारे में बताएंगी और 'ऐ मेरे वतन के लोगो' सुनाएगी। हकीकत यह है के हमें पूंजी की दुनिया के लोगो से विचारधारा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए क्योंकि उनका पहला प्यार पूंजी है और उनकी विचारधारा भी पूंजी है और इसीलिए वे हवा के रुख के हिसाब से अपने आशीर्वाद देते हैं ताकि इनकम टैक्स वाले परेशान न करें।
Feroze Mithiborwala shared Yusuf Chudli's photo.
This is a photograph of Pankaj, a youth that was caught by the police at the site of the terror attack in Patna. Soon enough, Pankaj turned into Imtiyaz and the lies carry on unchallenged and unquestioned.
27 OCTOBER KO PAKDE GAYE SUSPECT APNA NAM CHIKH CHIKH KAR PANKAJ BATA RAHA THA LEKIN KUCH HI GHANTO ME JO NAM AAYA WO IMTIYAZ THA . PANKAJ IMTIYAZ KESE BAN GAYA ? YA FIR AGAR WAH IMTIYAZ THA TO USE BJP LOCAL NETAI NE PANKAJ KO BJP KA ACTIVIST KYU BATAYA, LINK MAUJUD HE http://www.youtube.com/watch?v=gHnO54gAOIQ 27 अक्टूबर को पटना धमाके में जिस संदिग्ध को पुलिस ने पकड़ा वह चीख-चीख कर अपना नाम पंकज बता रहा था. लेकिन कुछ ही घंटों मे जो नाम पुलिस ने बताया वह इम्तेयाज था. सवाल यह है कि आखिर पंकज इम्तेयाज कैसे बन गय? या फिर अगर वह इम्तेयाज था तो उसे वहां मौजूद भाजपा के स्थानीय नेताओं ने (पंकज को) भाजपा का कार्यकर्ता क्यों बताया? आप यूट्यूब के नीचे के इस लिंक में देख सकते हैं कि यह युवक खुद को पंकज कुमार बता रहा है. हम यहां बियॉंडहेडलाइंस की पूरी रिपोर्ट प्रकाशित कर रहे हैं ताकि पाठक समझ सकें और हकीकत के कुछ छुपे पहलू सामने आ सकें- हमेशा सुस्त रहने वाली पटना पुलिस ने इस बार ऐसी चुस्ती-फुर्ती दिखाई कि ऑन-स्पॉट 'आतंकी' को दबोच लिया गया. यह अलग बात है कि वो चिल्लाता रहा कि मैं बेगुनाह हूं और मेरा नाम पंकज है. और सिर्फ वही नहीं, बल्कि भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी हंगामा किया कि वो बेगुनाह है और भाजपा का कार्यकर्ता है. लेकिन पुलिस ने इनकी एक न सुनी. (आप न्यूज़-24 का वीडियो क्लिप यहां देख सकते हैं-http://www.youtube.com/watch?v=gHnO54gAOIQ दूसरे चैनलों पर भी इस फूटेज को दिखाया गया था, जिसमें स्पष्ट रूप से पकड़े गए संदिग्ध के गले में भाजपा का झंडा भी आसानी के साथ देखा जा सकता है. और एक और खास बात कि सारे अखबारों के कैमरों इस संदिग्ध के चेहरे पर चमकते रहे, लेकिन किसी ने उसकी तस्वीर अपने अखबार में नहीं छापी है. शायद यह मसले का हल ही था कि जो अपने आपको पंकज बताता रहा, वो अब ऐनुल उर्फ इम्तियाज़ बन चुका था. जिस संदिग्ध को भाजपा कार्यकर्ता अपना कार्यकर्ता बताते रहे थे, उसे तुरंत आईएम का मास्टरमाइंड बना दिया गया. मोदी का समर्थक एक पल में भटकल का साथी बन चुका था. एक अंग्रेज़ी वेबसाइट (firstpost.com) की गलती को देखकर अंदाज़ा लगाईए कि इतना ज़िम्मेदार वेबसाइट ऐसी गलती कैसे कर सकता है? इस वेबसाइट ने 6.35 में यह खबर प्रकाशित की कि बिहार डीजीपी के मुताबिक तीन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनके नाम रामनारायण सिंह, विकास सिंह और मुन्ना सिंह है. खबर तेज़ी के साथ लोगों तक पहुंचती रही, लेकिन बाद में इसके नीचे प्रकाशित कर दिया गया कि 'Correction: We regret putting up an earlier update where we mentioned the three deceased as suspects because of an erroneous report.' शायद ऐसा पहली बार हुआ कि सुरक्षा एजेंसियों को ज़्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी. ज़्यादा छापे नहीं मारने पड़े. दो-तीन छापों में ही पूरा काम निकल आया. नहीं तो अब तक को यही होता आया है कि हमारी सुरक्षा एजेंसियां आनन फानन में छापा मारती है. संदेहास्पद लोग पकड़े जाते हैं. उनके पास ये चीजें ज़रूर बरामद होती हैं- उर्दू का एक अखबार, पाकिस्तान का झंडा, इंडियन मुजाहिदीन या सिमी का साहित्य, पाकिस्तान मेड असलहा, विदेशी करेंसी… (मानो आतंक के आका आतंकियों को हर ब्लास्ट से पहले एक विशेष प्रकार की किट से लैस करके भेजते हैं. ब्लास्ट की जगह अलग हो सकती है. ब्लास्ट का समय अलग हो सकता है, मगर ये किट जिसे सुरक्षा एजेंसियां बरामद करती हैं, हमेशा एक सी होती है. कभी नहीं बदलती.), लेकिन इस बार इन सबकी जगह संदिग्ध के ठिकाने से डेटोनेटर, सीडी, तस्वीरें, तार, कांच की गोलियां, पेन ड्राइव, हथौड़ी, केरोसिन तेल, विस्फोटक में इस्तेमाल करने वाले फ्यूज़ ज़रूर मिले हैं. और एक और अहम चीज़ जो प्राप्त हुआ है, वो है उर्दू साहित्य… ऐसा पहली बार हुआ कि आतंकी अपने जेब में अपने साथियों का नम्बर अपने साथ लेकर आया था. ताकि हम अगर डूबे तो साथ में अपने साथियों को भी ले डूबेंगे सनम… नहीं तो हमेशा से यही आया है कि ब्लास्ट कोई भी हो, कहीं भी हो, कैसा भी हो, खुफिया एजेंसियों के सूत्रों से मास्टर माइंड का नाम आधे घंटे के भीतर ही फ्लैश होना शुरु हो जाता था और वो इन्हीं में से कोई एक होता था. रियाज भटकल. इकबाल भटकल. यासीन भटकल… अहमद सिद्धी बप्पा उर्फ शाहरूख उर्फ यासीन अहमद. इलियास कश्मीरी. हाफिज सइद. लखवी… (मानो ये मास्टर माइंड कारनामे को अंजाम देते ही भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को फोन कर रिपोर्ट करते हों कि सरकार काम हो गया, अब आप नाम आगे बढ़ा सकते हैं.), लेकिन भटकल तो इस बार जेल की हवा खा रहा है, तो उसके दोस्त काम को संभाल रहे हैं. — with Sayed Irfan Qadri Qadri and 13 others.
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Faisal Anurag
जिन देशों ने कॉर्पोरेट घरानों के अनुकूल राजनीति की उनका हश्र क्या हुआ. एशियन टाइगर कहे जाने वाले देशों की आज क्या हालत है. साउथ अमेरिका दे देशों का वाह दौर कहाँ गया जो कभी दिशाओं सूचक कहे जा रहे थे. यहाँ तक के यूरोप में आज अनेक देश क्या झेल रहे हैं. भारत १९९१ से इन्हीं नीतिओं पर चल कहाँ पहुंचा है और अब जिस तरह की राजनीति दस्तक दे रही है उससे देश कहाँ जाएगा. आर्थिक नीतिओं को बदलने का इरादा किसके पास है और जिन्हें विकल्प बनाया जा रहा है वे किन आर्थिक शक्तिओं का हित साध रहे हैं. कोई भी धन बिना शर्त के नहीं आता. इन शर्तों पर बात किये जाने की ज़रूरत है. पूंजी के निजी हक के खिलाफ हैं हम और मरते दम तक रहेंगें.
Vidya Bhushan Rawat recommends a link.
The elections are still far away and till date we will see many such cases. We will see all the efforts to increase tensions between different communities. We will see 'glorification' of deaths. Every one who die in anything, be it public meeting, in road accident, in political fight, will be granted status of 'Shaheed' and then 'asthi kalash' yatras will be organised. You have seen that happening in Patna. It is to create frenzy and the Hindutva are expert in it. They are yatris who vitiate atmosphere and spread rumours. For 2014 they are desperate and for their desperatiion the country has to pay price. Unfortunately, we have no governance, neither at the state nor at the centre who can take them head on.
Muslims, Jats hold parallel panchayats, dig in their heels - Indian Express
Two days after the murder of three Muslim youths in a Muzaffarnagar village blamed on Jats of an adjoining village shattered the tenuous calm in the region, Muslims and Jats held parallel panchaya
सितम्बर में औद्योगिक सूचकांक एक वर्ष के शिखर पर
मजा यह भी देख लीजिये कि औद्योगिक उत्पादन मोदी की बनायी जा रही हवा केमुताबिक सेनसेक्स के साथ ताल से ताल मिलाते हुए शून्य से, सतह से ऊपर उठकर आंकड़ों में कैसे कुलांचे मार रहा है।बिजली, कोयला और सीमेंट क्षेत्र में दहाई अंक की बढ़ोतरी के फलस्वरूप देश के सकल औद्योगिक उत्पादन में 37.9० प्रतिशत का भारांक रखने वाले आठ प्रमुख उद्योगों की वृद्धि दर एक साल के उच्च स्तर आठ प्रतिशत पर पहुंच गई।
इसीके साथ उच्चतम न्यायालय ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के चेयरमैन के पद पर यू के सिन्हा की नियुक्ति को शुक्रवार को वैध करार दिया। न्यायालय ने कहा कि सरकार ने उनकी नियुक्ति ईमानदारी से की है और इसमें कानूनी प्रक्रिया का पूरा पालन किया गया। न्यायमूर्ति एस एस निज्जर और न्यायमूर्ति पी सी घोष ने सिन्हा की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। न्यायालय ने कहा कि यह याचिका कई दृष्टि से विचार करने योग्य नहीं थी, बावजूद इसके न्यायालय ने इस पर सुनवाई का निर्णय इसलिए किया, क्योंकि इसमें एक बहुत ही उच्चपद पर नियुक्ति को चुनौती दी गयी थी।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय की तरफ से आज जारी आंकड़ो में यह जानकारी दी गई है। इस वर्ष अगस्त में वृद्धि 3.7 प्रतिशत रही थी, जबकि पिछले साल यह 8.3 प्रतिशत थी। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में 3.6 प्रतिशत वृद्धि रही है जबकि पिछले साल यह 6.6 प्रतिशत थी।
आंकड़ों के अनुसार कोयला क्षेत्र ने सितम्बर13 में 12.5 प्रतिशत की बढ़त हासिल की। हालांकि यह पिछले के 22.2 प्रतिशत की तुलना में काफी कम है। चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही यह वृद्धि 2.3 प्रतिशत रही है। कच्चा तेल उद्योग ०.6 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ा जो। गत वर्ष यह 1.8 नकारात्मक थी। पहली छमाही में बढ़ोतरी 1.3 प्रतिशत रही है।
प्राकृतिक गैस उत्पादन की स्थिति में कोई सुधार नहीं दिखा।
`१९८४ के सिख विरोधी हिंसा को `नरसंहार` का नाम दें`
स्रोत: Agencies तारीख: 12/20/2012 3:56:00 PM |
वाशिंगटन, दिसंबर २०: वर्ष १९८४ में सिखों के खिलाफ हुई संगठित हिंसा को `नरसंहार` नाम देने के लिए अमेरिका में ४६,००० हजार हस्ताक्षर ओबामा प्रशासन को सौंपे गए हैं।
इनमें से २९,००० ऑनलाइन हस्ताक्षर हैं। मानवाधिकार अधिकार समूह `सिख्स फॉर जस्टिस` (एसएफज) ने कहा कि सिख नरसंहार याचिका के समर्थन में एक फरवरी को कैपिटल हिल की ओर प्रस्थान करेंगे।
समूह की ओर से जारी बयान में उम्मीद जताई गई है कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय का लोकतांत्रिक, मानवाधिकार तथा श्रम ब्यूरो सिख नरसंहार याचिका को गम्भीरता से लेगा, जो अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार उल्लंघन तथा मानवता के खिलाफ अपराधों से निपटता है।
एसएफजे ने सहायक विदेश मंत्री माइकल पोजनर को सौंपी अपनी याचिका के समर्थन में `१९८४, हां यह नरसंहार है` रिपोर्ट भी पेश की।
करीब ३०० पृष्ठों की रिपोर्ट में इस बात के सबूत पेश किए गए हैं कि नवंबर १९८४ के दौरान भारत के जिन १९ राज्यों में कांग्रेस सत्ता में थी, वहां सिख बड़ी संख्या में मारे गए और कांग्रेस नेताओं ने सिख समुदाय के खिलाफ संगठित हिंसा भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
नवम्बर १९८४ का नरसंहार – गुनाहगारों को सजा मिले ताकि सांप्रदायिक हिंसा पर रोक लगे एवं भविष्य सुरक्षित हो
Posted Tue, 2012-10-23 12:58 by admin
प्रति,
प्रधानमंत्री
डॉ. मनमोहन सिंह
७, रेसकोर्स रोड, नई दिल्ली
महोदय,
विषय: नवम्बर १९८४ का नरसंहार – गुनाहगारों को सजा मिले ताकि सांप्रदायिक हिंसा पर रोक लगे एवं भविष्य सुरक्षित हो
१९८४ में जो सिख्खों का नरसंहार हुआ उससे अपने देश के धर्मनिरपेक्षता तथा जनतंत्र एवं कानून के राज पर सवाल उठे है. हम बेहद दुःख तथा गुस्से की भावना से आपको, सरकार का मुखिया होने के नाते, यह आवेदन लिख रहे है. उस हत्याकांड को २८ वर्ष पूरे हुए है, फिर भी आज तक उस हत्याकांड के मुख्य आयोजकों पर मुक़द्दमा चलाकर उन्हें सजा होना तो दूर, बल्कि उन्हें आरोपियों के रूप में पहचाना भी नहीं गया है. क्या हम आम लोगों का, हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों पर कोई नियंत्रण है, जब वे लोगों कि रक्षा करने के उनके राज धर्म का खुलेआम उल्लंघन करते हैं? क्या सरकारी कर्मचारियों पर हमारा कोई नियंत्रण है, जब जिस पुलिस पर हमारी सुरक्षा कि जिम्मेदारी है, वही मुँह मोड़ ले और उल्टा खूनियों तथा बलात्कारियों की रखवाली करे? क्या अपने देश की कानून व न्यायव्यवस्था पर हमारा कोई नियंत्रण है, जिसने लगातार हमें न्याय देने से इन्कार किया है और सत्ताधारी राजनितिक पार्टी के राजनितिक हित के मुताबिक अपने आप को ढाला है?
काफी सोचने के बाद हम इस नतीजे पर पहुँचे है कि १९८४ में ७००० से ज्यादा सिख्खों की हत्या करने वाले गुनाहगारों को अगर सजा दी जाती, और उससे उचित सबक सीखे जाते, तो २००२ के गुजरात के दंगे न होते, ओडिशा में ईसाईयों की हत्या नहीं होती, और हाल ही में असम में जो हत्याकांड हुआ, वह नहीं होता. मगर सजा दिलाना तो दूर, वास्तव में १९८४ के हत्याकांड के प्रमुख आयोजकों को मिनिस्टर बनाया गया, एवं उस हत्याकांड में सक्रीय योगदान देने वाले और बाद के गत २८ वर्षों में न्याय के रास्ते में रोढा खड़ा करने वाले पुलिस तथा प्रशासन के उच्चाधिकारियों को सम्मान तथा पदोन्नती से पुरस्कृत किया गया. २००५ में नानावटी रिपोर्ट देखकर आपने शर्म से अपना सिर झुकाया था और यह आश्वासन दिया था कि आरोपियों के खिलाफ कड़े कदम उठाये जायेंगे. तबसे ७ वर्ष बीत गए मगर आरोपियों के खिलाफ कोई कड़ी कार्रवाई हमें दिखाई नहीं देती. इसीलिए, इस आवेदन पर अपने दस्तख़त करने वाले, हम, आपसे माँग करते है की –
1. बेकसूर नागरिकों की हत्या के लिए जिम्मेदार गुनाहगारों को सजा सुनिश्चित हो. उसके लिए यह आवश्यक है कि उन सभी पुलिस फाईलों को फिर से खोला जाये एवं पुनः जाँच पड़ताल की जाये, जिन फाईलों को पुलिस ने बंद कर दिया है. और उन सभी मुकद्दमों को फिर से चलाया जाये जिनमें गलत तरीके से पुलिस खोजबीन की वजह से आरोपियों को रिहा कर दिया गया है, या इस बहाने से कि प्रत्यक्षदर्शी पेश नहीं किये गये.
2. एक विशेष जाँच टीम, जिसमें दिल्ली पुलिस के दायरे के बाहर के अधिकारी हों, इन सभी मुकद्दमों की फिर से जाँच पड़ताल करे और इस जाँच की निगरानी सर्वोच्च न्यायालय करे.
3. मुक़द्दमों को विशेष शीघ्रपथ न्यायालय में चलाया जाये और एक विशेष पथक द्वारा सर्वोच्च न्यायालय उसकी कार्यवाईयों पर निगरानी रखे.
4. जाँच पड़ताल का दायरा बढाया जाये ताकि दूसरे सभी राज्यों में भी जाँच की जाये जिनमें नवंबर १९८४ में सिख्खों का कत्लेआम किया गया था.
5. सांप्रदायिक तथा फिरकापरस्त हिंसा के साथ निपटने के लिये एक नया कानून तुरंत बनाया जाये. मानवी इतिहास में सबसे बड़े सांप्रदायिक हत्याकांड के साथ अपने देश के बँटवारे के ६५ वर्ष बाद, १९८४ में सिख्खों के हत्याकांड के २८ वर्ष बाद, और आपकी ही सरकार द्वारा ८ वर्ष पहले इस तरह के कानून बनाने की जरूरत मानने के बावजूद, इस दिशा में कुछ नहीं होना दुःख की बात है. इस तरह के हत्याकांड की भविष्य में रोकथाम में आपकी सरकार की रुची, कितनी खरी है, इसपर सवाल उठ रहा है.
6. गुनाहगारों को सजा दिलाने के संघर्ष में लगे लोगों ने, जिनमें कई ज्ञानी विधिद्न्य भी शामिल है, उन्होंने कानूनों के कुछ मसौदे तैयार किये हैं. वे माँग उठा रहे हैं कि कानून में आलाकमान की जिम्मेदारी को भी शामिल किया जाये. नागरिकों की सुरक्षा के लिए जिम्मेदार सत्तासीन तथा अधिकारियों को गुनह्गार करार दिया जाय और जबाबदेह माना जाय, अगर वे नागरिकों की सुरक्षा करने में नाकामयाब होते हों.
हमारी माँगे अपने पूरे देश के सभी न्यायप्रिय लोगों के जमीर को दर्शाती हैं. हमारी यह अपेक्षा है की, इस देश का प्रधानमंत्री होने के नाते, आप खुद का राजधर्म निभाने के लिए वे सारे कदम उठाएं जिनकी हम माँग कर रहे हैं, ताकि नवंबर १९८४ जैसी दुखद घटनाएँ फिर अपने देश में कभी न हों.
इस आवेदन पर दस्तखत करनेवालों की सूची
1. जस्टिस वी. आर. कृष्ण अय्यर
2. टी. एस. संकरन, निवृत्त आई. ए. एस. अधिकारी
3. जस्टिस होस्बेट सुरेश
4. फली नरीमन
5. जस्टिस अजित सिंह बैंस
6. कॉमरेड लाल सिंह, हिन्दुस्थान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी के महासचिव
7. कुलदीप नय्यर
8. जस्टिस राजिंदर सच्चर
9. एस राघवन, अध्यक्ष, लोक राज संगठन
10. शांती भूषण, पूर्व कानून मंत्री
11. शोनाली बोस, फिल्म निर्माता
12. मधू किश्वर, मानुषी
13. प्रशांत भूषण, वरिष्ट एडवोकेट, सर्वोच्च न्यायालय
14. तीस्ता सेतल्वाड, सामाजिक कार्यकर्ता
15. प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, दिल्ली विश्वविद्यालय समाज शास्त्र विभाग की प्रमुख
16. गीता आर., "अमु" फिल्म की सहनिर्माता
17. शिनानंद कणवी, संपादक, ग़दर जारी है
18. राजविंदर सिंह बैंस, वरिष्ट एडवोकेट, चंदिगढ
19. सुचरिता, सचिव, पुरोगामी महिला संगठन
20. ए. मैथ्यू, सचिव, कामगार एकता चलवल, महाराष्ट्र
21. डॉ. संजीवनी जैन, प्रोफेसर, वझे कॉलेज, मुंबई
22. प्रोफेसर बी. अनंतनारायण, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ सायन्स, बंगलुरु
23. प्रकाश राव, प्रवक्ता, हिन्दुस्थान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी
24. बिरजू नायक, दिल्ली सचिव, लोक राज संगठन
दिल्ली १९८४
इन दिनों नानावती रिपोर्ट के बाद १९८४ में दिल्ली में हुई घटनाओं के घाव फिर से खुल गये हैं. मैं उन दिनों इटली से अपनी पत्नी और कुछ महीने के बेटे के आने की प्रतीक्षा कर रहा था.
जहाँ हम रहते थे वहां ६ सिख परिवार थे, एक मुस्लिम और एक ईसाई, बाकी के घर हिंदु थे. जब शहर से दंगों के समाचार आये, हम सब लड़कों ने मीटिंग की और रक्षा दल बनाया, बाहर से आने वाले दंगा करने वालों को रोकने के लिए. हांलाकि छतों से शहर में उठते जलते मकानों के धूँए दिख रहे थे, पर सचमुच क्या हुआ यह तो हमें पहले पहल मालूम नहीं हुआ. वे सब समाचार तो कुछ दिन बाद ही मिले.
आज प्रस्तुत है अर्चना वर्मा की कविता "दिल्ली ८४" के कुछ अंश, उनके कविता संग्रह "लौटा है विजेता" से (१९९३). अगर पूरी कविता पढ़ना चाहें तो यहां क्लिक कीजिये.
दिल्ली ८४
दिन दहाड़े
बाहर कहीं गुम हो गया
सड़कों पर
जंगल दौड़ने
लगा.
उसके घर में
आज चूल्हा नहीं जला
चूल्हे में आज
घर
जल रहा था.
ऐन दरवाजे पर
मुहल्ले के पेट में
चाकू घोंप कर
भाग
गया था कोई.
रंगीन पानी में नहाई पड़ी थीं
गुड़ीमुड़ी गलियाँ, खुली हुई
अँतड़ियाँ.
http://jonakehsake.blogspot.in/2005/08/blog-post_21.html
Himanshu Kumar
इस तरह सोनी सोरी और लिंगा कोड़ोपी की ज़मानत याचिका पर सुनवाई बारह नवम्बर तक के लिए बढ़ा दी गयी।
Jagadishwar Chaturvedi
लताजी महान गायिका हैं पर महान डेमोक्रेट नहीं हैं। इसलिए उनकी बात का मोदी के प्रसंग में निजी राय से ज्यादा वजन नहीं है। उनको संसद की गरिमा से जोडा गया पर वे उस गरिमा को निभा नहीं पायीं। वे बहुत बडी हैं ।लेकिन संसद और संसदीय मान-मर्यादाएं उनसे भी बडी हैं। जो व्यक्ति सांसद होकर संसद ही न गया हो उसके आशीर्वाद का दाम कितना है आप स्वयं तय कर सकते हैं ?
Udayan Roy
मोदिया सिर्फ 'फेंकू' ही नहीं, महा-झूठा और धोखेबाज भी है.
अहमदाबाद धमाकों के पीड़ितों से तो अबतक नहीं मिले मोदी!
आईबीएन-7 | 01-Nov 22:07 PM
नई दिल्ली। दंगे हों या धमाके, आतंक के शिकार लोगों के साथ क्या कोई मुख्यमंत्री भेदभाव कर सकता है। आरोप लग रहे हैं कि गुजरात के मुख्यमंत्री का दिल बिहार ब्लास्ट के शिकार लोगों के लिए पसीज गया लेकिन यही दिल गुजरात दंगा पीड़ितों या गुजरात में हुए धमाकों के पीड़ितों के लिए आज तक नहीं पसीजा। सवाल है कि आखिर सांत्वना या राहत में क्या ऐसा भेदभाव संभव है।
श्रवण काशीनाथ सिलाई करते हैं। श्रवण नरेंद्र मोदी के चुनाव क्षेत्र मणिनगर में रहते हैं। जुलाई 2008 के सीरियल धमाकों में इनकी पत्नी सुनंदा की मौत हो चुकी है। इस बुढ़ापे में इनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं, साथ बैठने वाला कोई नहीं। दुख-सुख बांटने वाला कोई नहीं। श्रवण काशीनाथ को जब से ये पता चला है कि नरेंद्र मोदी पटना जाकर वहां धमाके में घायल हुए लोगों से मिल रहे हैं तब से वो गुस्से में हैं। गुस्सा इस बात का कि पिछले पांच साल में आजतक मोदी ने उनकी सुध नहीं ली, जबकि वो उनके ही चुनावी क्षेत्र में रहते हैं और अब हजारों किलोमीटर दूर पटना जाकर मोदी धमाके के घायलों से मिल रहे हैं। श्रवण काशीनाथ को इस सांत्वना में महज राजनीति नजर आ रही है।
उधर अहमदाबाद के बाहरी इलाके सिटीजन नगर के लोगों में तो और गुस्सा है। यहां वो दंगा पीड़ित रहते हैं जो नरोडा पाटिया दंगे में जिंदा बच गए थे। पिछले 12 साल से ये लोग यहां पर रह रहे हैं। बिना सड़क, पानी, नाले, स्कूल जैसी मूलभूत सुविधाओं के। ऊपर से पूरे अहमदाबाद का कूड़ा भी यहीं डाला जाता है। पास में कूड़े का पहाड़ है। हर वक्त गंदगी और बदबू में जीने को मजबूर हैं ये लोग। बीमार पड़ रहे हैं लेकिन न तो मोदी और न उनकी सरकार का कोई आदमी पिछले 12 साल में यहां आया है। दंगा पीड़ित जाकिर कहते हैं कि वो बात करते हैं विकास की, ये किया है विकास। वर्ल्ड क्लास सिटी की बात करते हैं, ये है वर्ल्ड क्लास सिटी। कॉलोनी में ये घर भी गुजरात सरकार ने इन्हें नहीं दिया है। स्थानीय मुस्लिम कमेटी ने इनके लिए यहां पर घर बनवाए हैं। लोगों में मोदी के दोहरे रवैये पर जबरदस्त गुस्सा है।
चाहे 2002 के दंगा पीड़ित हों या फिर 2008 धमाकों के पीड़ित। जाकिर और नूर बानो हों या श्रवण काशीनाथ, ये मोदी से पूछ रहे हैं सवाल कि गुजरात में रहते हुए, अहमदाबाद और मणिनगर में रहते हुए पिछले 12 साल में तो आपने हमारी सुध नहीं ली। इतने बरस बीत गए और आपतक हमारा दर्द नहीं पहुंचा या आपको हमारा दर्द नहीं दिखा और अब आप हजारों किलोमीटर दूर पटना जाकर वहां हुए धमाके में घायल हुए लोगों से मिल रहे हैं। घायलों की मिजाजपुर्सी में कोई बुराई नहीं लेकिन आखिर सांत्वना में भी भेदभाव क्यों?
Mohan Shrotriya
गणेश पांडेय के नोट पर मेरी टीप...
लता मंगेशकर ने मोदी को अपनी पसंद बताया है, यह उनके ह्क़ के दायरे में ही आता है. इस पर व्यंग्य क्यों? वैसे भी, उनकी राजनीतिक पसंद कौनसे दल हैं, यह उन्होंने कभी छुपाया भी नहीं है. हम अपनी राय देते हैं, वैसे ही दूसरे भी अपनी राय देते हैं. रही विकल्प की बात, तो विकल्प तो इन दोनों बड़ी पार्टियों के परे ही हो सकता है. मौजूदा हालात में वह आदर्श विकल्प नहीं भी हो, तो भी भविष्य में एक सही विकल्प निर्मित करने की दिशा में एक सकारात्मक क़दम तो होगा ही.
Ashok Dusadh
शुक्र है भारत में लोकतंत्र है और लता मंगेशकर को एक ही वोट का अधिकार है ,नहीं तो नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हो ही जाते ,लता की ख्वाहिश के अनुसार .वैसे लोकतंत्र में अपने -अपने हिसाब से सपना देखने की मनाही भी नहीं है ?
भूख क्यों चुनावी मुदा नहीं है? पुरे देश में 41.16% बच्चे कुपोषण-भुखमरी के शिकार बने हुवे है. दिल्ही में 49.91%, गुजरात में 45%, राजस्थान में 43.13%, छतीसगढ़ में 38.47% और मध्यप्रदेश में 28.49% बच्चे कुपोषण-भुखमरी के शिकार बने हुवे है. भाजप और कोंग्रेस के स्टार प्रचारकों भी इसी राज्यों के है. लेकिन भारत के भूखे बचपन को कोई चुनावी मुदा क्यों नहीं बना रहे है? — with Vijay Chauhan and 6 others.
Ranjit Kumar
कर्पूरी से मोदी वाया सिमराहीः कोशी के कछार पर स्थित मेरा गांव सिमराही बाजार, जिला- सुपौल, बिहार आज राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में है। आज यहां नरेंद्र मोदी के कदम पड़ने वाले हैं,जो पटना विस्फोट में मारे गये भरत रजक के परिजनों से मिलने उनके घर पहुंच रहे हैं। गांव से आने वाले मित्रों-परिचितों के फोन बता रहे हैं कि पिछले तीन दिनों से यहां बच्चों से लेकर बूढ़ों तक हर जुबान पर मोदी-भाजपा का ही नाम है। यह सुनकर मुझे 27-28 साल पुरानी एक बात याद आ रही है। तब इसी सिमराही बाजार के माध्यमिक स्कूल में एक शाम कर्पूरी ठाकुर आये थे। ठीक से याद नहीं, लेकिन यह शायद 1985 या 86 के अगस्त-सितंबर का महीना रहा होगा। पिता जी के साथ मैं भी चला गया था ठाकुर जी की बैठक में। मैं सात-आठ साल का रहा होगा। ठाकुर जी इलाके के तमाम वरिष्ठ समाजवादी नेताओं के साथ विचार-विमर्श कर रहे थे। सारी बात तो याद नहीं, लेकिन एक बात आज भी मुझे याद है। कर्पूरी ठाकुर ने उस शाम स्थानीय समाजवादी नेताओं से कहा था- मैं कोशी के लोगों के भाइचारे, सीधापन और सहिष्णुता का मुरीद हूं। सामाजिक सौहार्दता क्या होती है, यह बात पूरा देश कोशी से सीख सकता है। विभाजन से लेकर अयोध्या तक, आजादी के पहले से लेकर वर्षों बाद तक देश में कई बबाल हुए, लेकिन कोशी का सामाजिक सौहार्द हमेशा कायम रहा। अपने चरमोत्कर्ष के दौर में भी भाजपा को यहां कमल उठानेवाले नहीं मिले।
लेकिन इस बात को पहले कांग्रेस फिर राजद और जद(यू) ने कोई मोल नहीं दिया, जिन्होंने यहां के लोगों के वोट से लंबे समय तक शासन किया। कोशी की समस्या यथावत बनी रही, दुनिया कहां से कहां चली गयी लेकिन कोशी के लोग अठारहवीं सदी का जीवन जीने के लिए मजबूर रहे। सरकारी उपेक्षा की यह कहानी बहुत लंबी है, जिस पर मैंने अपने ब्लाग में कई रिपोर्ट लिखी है। सरकार और विभिन्न दलों ने कोशी के लोगों को बंधुआ मजदूर समझा। अक्सर वे कहते थे- जायेगा कहां ? उनके सीधेपन की कोई कदर नहीं हुई। दूसरी ओर पूरब में बांग्लादेश से बेशुमार घुसपैठियों की आवाजाही होती रही और उन्हें अवैध संरक्षण मिलता रहा। इसके कारण किशनगंज, अररिया, कटिहार के लोगों को असुरक्षा महसूस होने लगी, तो बात पश्चिम की ओर यानी सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया तक फैलती चली गयी। और अब आलम यह है कि यहां भाजपा एक शक्ति हो चुकी है।
गुजरात में हर तीसरा बच्चा कुपोषित, सीएजी की रिपोर्ट में खुलासाClick to Expand & Play
नरेंद्र मोदी का फाइल फोटो
अहमदाबाद: गुजरात में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने राज्य की एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) के परिचालन पर सवालिया निशान खड़े करते हुए कहा है कि राज्य में हर तीसरे बच्चे का वजन औसत से कम (अंडरवेट) है।
इस बीच गुजरात सरकार के प्रवक्ता नितिन पटेल ने कहा है कि वह इस बात का विश्लेषण कर रहे हैं कि कैग ने किस आधार पर यह बात कही है। उन्होंने किस तरीके से यह नतीजा निकाला है।
गुजरात सरकार ने राज्य में आईसीडीएस को कारगर बनाने के लिए हर कोशिश की है। हमारे मुताबिक तो राज्य में कुपोषण का स्तर नीचे गया है। केंद्र सरकार ने पोषक आहार के लिए जो कायदे-कानून बनाए हैं, उन्हीं के हिसाब से मिड डे मील दिया जा रहा है।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, पूरक आहार कार्यक्रम के तहत 223.14 लाख बच्चे लाभार्थी होने के योग्य थे, लेकिन इनमें से 63.37 लाख बच्चे छूट गए। यह रिपोर्ट शुक्रवार को गुजरात विधानसभा में पेश की गई। इसमें कैग ने कहा, वार्षिकतौर पर 300 पोषण दिवस के लक्ष्य की पृष्ठभूमि में बच्चों को पूरक आहार मुहैया कराने के दिनों की कमी 96 तक पहुंच गई। लड़कियों को पोषण कार्यक्रम के कार्यान्वयन में 27 से 48 फीसदी तक कमी देखी गई। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि 1.87 करोड़ की आबादी आईसीडीएस के फायदों से महरूम रह गई।
कैग ने कहा, 75,480 आंगनवाड़ी केंद्र की जरूरत थी, लेकिन सिर्फ 52,137 केंद्रों की संतुति दी गई और इनमें से 50,225 केंद्र परिचालन में हैं। ऐसे में 1.87 करोड़ आबादी आईसीडीएस के फायदों से वंचित रह गई।
कैग की रिपोर्ट के अनुसार, केंद्र सरकार ने राज्य को नवंबर, 2008 में निर्देश दिया कि वह संशोधित जनसंख्या मापदंड के आधार पर अतिरिक्त योजनाओं को लेकर वह प्रस्ताव सौंपे, लेकिन गुजरात ने कोई प्रस्ताव नहीं दिया। इसमें कहा गया है कि राज्य के नौ से 40 फीसदी आंगनवाड़ी केंद्रों पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
कैग ने कहा कि नबार्ड ने 3,333 आंगनवाड़ी केंद्रों के निर्माण की स्वीकृति दी थी, लेनि सिर्फ 1,979 केंद्रों का निर्माण हुआ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2008-09 तक केंद्र सरकार ने आईसीडीएस के लिए सपूर्ण धन दिया, जबकि राज्य को 10 फीसदी अंशदान करना होता है।
(इनपुट्स भाषा से भी)
http://khabar.ndtv.com/news/india/every-third-child-in-gujarat-is-underweight-cag-368936
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