Twitter

Follow palashbiswaskl on Twitter

Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, November 5, 2013

अजब तमाशा,गजब बंदोबस्त। मंहगाई बेलगाम,आलू के लिए सब्सिडी। আলু উধাও,আলু ভর্তুকি

अजब तमाशा,गजब बंदोबस्त। मंहगाई बेलगाम,आलू के लिए सब्सिडी।

আলু উধাও,আলু ভর্তুকি


एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास​


अजब तमाशा,गजब बंदोबस्त। मंहगाई बेलगाम,आलू के लिए सब्सिडी।केंद्र सरकार सब्सिडी खत्म करती जा रही है। रसोई गैस पर नकद सब्सिडी आधार नंबर से जोड़ दी गयी है।बंगाल में आधार नंबर बन नहीं रहे हैं। न आधार योजना का कोई विरोध हो रहा है। वैसे भी चिदंबरम का महाप्लान है कि अगले बजट में ही सारी सब्सिडियां खत्म कर दी जायें। आर्थिक संकट का हौआ खड़ा करके जो सुधार लागू हुए, अब बाकी सुधार शेयर बाजार में सांड़ दौड़ की आड़ में पूरे होने हैं। आलू सब्सिडी क्या रसोई गैस का विकल्प है या निवेश माहौल का या रोजगार का या कानून व्यवस्था का,यह आम जनता को तय करना है। बहरहाल प्याज रुला रहे माहौल में बाजार में सस्ता कुछ भी नहीं है।राशन कार्ड डिजिटल हो रहे हैं, कुछ लोगों को आधार नंबर का तमगा भी मिलने लगा है,लेकिन बायोमेट्रिक डिजिटल नागरिकों को बाजार में अपनी क्रय शक्ति की कड़ी परीक्षा हर हाल में देनी है।चावल आटा दाल साग सब्जियां फल फूल तेल रसोई गैस बिजली पानी कुछ भी सस्ता या फ्री है नहीं।आय है नहीं,आय है तो वृद्धि के उपाय है नहीं,मंहगाई भत्ता तक बकाया और वेतनमान तक है नहीं ज्यादातर लोगों के।जीने की राह बनाने के लिए दीदी किस किस चीज के लिए सब्सिडी दे सकती हैं,आइये प्रतीक्षा करें।आमीन।


कोहराम अभी मचा नहीं है


मजा यह है कि बंगाल देशभर में आलू भेजता है ठीक उसीतरह जैसे नासिक से आता है प्याज, आंध्र से मछलियां और पंजाब से गेंहू। देशभर में बंगाली आलू की खपत है। आलू संकट से निपटने के लिए दीदी ने आलू को राज्य से बाहर भेजने पर रोक लगा दी है।गनीमत है कि दूसरे राज्यों ने दीदी के चरणचिन्हों पर चलकर जरुरी चीजों की आवाजाही रोकी नहीं है। वरना देशभर में इस मंहगाई और किल्लत के बाजार में नरमांस के लिए कोहराम मच जाता। आलू रोक दिया।आलू के दाम बांध दिये। बाजारों में छापे पड़े। हालांकि जमाखोरों के खिलाफ कार्रवाई अभी हुई नहीं है और न कोई दुकान या बाजार सील करने की खबर है।बहरहाल आलू बेलगाम है।भैय्यादूज के मौके पर मछलियां और मांस में न आलू पड़ा और न प्याज,जिनकी सरकारी बिक्री का इंतजाम धूम धड़ाका है।


अब राज्य सरकार आलू पर सब्सिडी देकर आलू संकट से निपट रही है। यानी बाजार से मंहगे दरों पर आलू खरीदकर सरकार खुद फुटकर विक्रेताओं को सस्ते थोकदरों पर आलू बेचेगी और विक्रेता सरकारी दाम पर बाजार में आलू बेचेंगे।


सब्जियां  अस्सी पार


गजब का यह इंतजाम है। 11 रुपये की दर पर सरकारी गाड़ी बाजारों तक ज्योति आलू पहुंचा देगी।अब इस ज्योति आलू पर किलोप्रति दो रुपये का मुनाफा रखकर विक्रेताओं को उपभोक्ताओं को 13 रुपये किलो आलू बेचना है। वैसे बाजार से ज्योति आलू बेमालूम गायब है।आलू उत्पादक जिले बाढ़ की चपेट में हैं।आलू उत्पादकों की थाली में भी आलू है नहीं।सर्वत्र जहां भी ज्योति के दर्शन हो रहे हैं,हर दिन बाव बढ़ते ही जा रहे हैं। बाकी सब्जियों की तो मत कहिये। 30 से चालीस,चालीस से पचास करते हुए अस्सी पार है तमाम सब्जियों के भाव।


राजकोष खुल्ला है

मां माटी मानुष की सरकार को मगर कंक्रीट के जंगलात में रहने वालों की ज्यादा परवाह है। जिनका माटी से कुछ लेना देना नहीं है और जो मामूली से मामूली सामान माल से खरीदने के आदी हैं। उनके लिए राजकोष खुल्ला है।


सारा इंतजाम कोलकाता के लिए


सस्ता चिकन,सस्ता प्याज और सस्ता चिकन का यह इंतजाम सिर्फ हरे भरे कोलकाता महानगर में है। हावड़ा में नवान्न स्तानांतरित हुआ तो क्या हावड़ा अभी लाल बना हुआ है। इसलिए हावड़ा में कुछ भी सस्ता नहीं है। उपनगर सारे लाल  से हरे भरे हो गये लेकिन उपनगरों में भी कोई सब्सिडी इंतजाम नहीं है।


कृषि विपणन मंत्री अरुप बाबू उवाच,कोलकाता में ही संकट ज्यादा है। संकट ज्यादा है ,सही है। लेकिन कोलकाता से बाहर जो बंगाल है,वहां रहने वाले लोगों की जेबों की सेहत के बारे में भी तनिक सोचिये,अरुप बाबू।


खतरों के खिलाड़ी


हाल यह रंगीन थ्रीडी है कि वाम जमाने में वित्तमंत्री असीम दासगुप्त तराजू हाथ लिये मंहगाई से लड़ते नजर आये हैं। अब बारी मां माटी मानुस सरकार की है क्योंकि रियेलिटी शो खतरों के खिलाड़ी चालू है। तो लीजिये, पश्चिम बंगाल के कृषि मंत्री अरूप रॉय ने आलू संकट को खुद ही खड़ा किया हुआ बताते हुए सीपीआईएम और कांग्रेस पर संकट को हवा देने का आरोप लगाया। उन्होंने साथ ही शहर के बाजारों में गुरुवार तक आलू की आपूर्ति सामान्य होने का भरोसा दिलाया। बाजारों में आलू संकट के बारे में पूछे जाने पर रॉय ने कहा, 'बुधवार-गुरुवार तक आपूर्ति सामान्य हो जाएगी।'


प्रोग्रेसिव पोटैटो टेडर्स संगठन तीन दिनों की हड़ताल पर है जिसकी वजह से खुदरा और थोक बाजारों में आलू की आपूर्ति कम हो गई है। रॉय ने आरोप लगाते हुए कहा कि तृणमूल सरकार को परेशानी में डालने के लिए सीपीएम और कांग्रेस ने इस संकट को हवा दी है। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार संकट को कम करने के लिए आलू की एक भिन्न किस्म 'ज्योति' कुछ बाजारों में 13 रुपए प्रति किलोग्राम की दर पर बेच रही है।


दीदी का कहना है एफआईआर


इसी बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गुरुवार को कहा कि उन सब्जी विक्रेताओं के खिलाफ कड़ी पुलिस कार्रवाई होगी जो राज्य में आलू-प्याज जैसे आवश्यक वस्तुओं के दाम बढ़ाएंगे। बनर्जी ने कहा कि सरकार द्वारा तय कीमत से ज्यादा मांगने वाले विक्रेताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाएंगे। उन्होंने कहा, "कुछ लोग सोचते हैं कि वे जो मर्जी आए कर सकते हैं। मैंने दुर्गा पूजा से पहले ही चेतावनी दे दी थी, लेकिन उन्होंने ध्यान नहीं दिया। जो ऐसा कर रहे हैं, मैं उनसे आग्रह करती हूं कि ऐसा नहीं करें। यदि वे ऐसा करना जारी रखेंगे तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाएंगे।"


ममता ने कहा कि आलू 13 रुपये प्रति किलो खुदरा में और 11 रुपये प्रति किलो थोक में बेचा जाना चाहिए।


अब दीदी के निर्देशानुसार पश्चिम बंगाल पुलिस, शहर पुलिस की अनुपालन निदेशालय के साथ सरकार द्वारा गठित कार्यबल के सदस्य सब्जियों के दाम पर नजर रखेंगे।


पूरे देश में प्याज सह आलू संकट


प्याज के बाद अब उपभोक्ताओं को महंगा आलू सताने लगा है। पंजाब और हरियाणा के खेतों में खड़ी आलू की अगैती [पहले बोई गई] फसल के मंडियों में पहुंचने में अभी और देरी का अनुमान है। वहीं, पश्चिम बंगाल जैसे बडे़ उत्पादक राज्य ने आलू को बाहर बेचने पर रोक लगा दी है। इससे आपूर्ति का सारा दारोमदार अब उत्तर प्रदेश पर आ गया है। इसी के चलते स्टॉकिस्ट भी सक्रिय हो गए हैं। आलू की आपूर्ति प्रभावित होने से मंडियों में आलू का मूल्य लगातार बढ़ रहा है।


बारिश ने बरपा कहर

दरअसल, इस बार मानसून पिछले कई सालों के बाद लंबे समय तक सक्रिय रहा। इससे आलू की अगैती खेती बुरी तरह प्रभावित रही। बुवाई समय पर नहीं हो सकी। लगभग 15 से 20 दिनों तक की देरी हुई है। अगैती आलू को तैयार होने में 60 से 65 दिन लगते हैं। इस बार आलू की बुवाई सितंबर के आखिरी हफ्ते में हो पाई है, जिसके तैयार होने में अभी समय लग सकता है। इसके बाजार में आने में दो सप्ताह से अधिक समय लग सकता है।


दूसरी ओर, कोल्ड स्टोर में रखे आलू का स्टॉक सीमित है। इसका उपयोग बुवाई के साथ साथ खाने में भी हो रहा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में बोई गई अगैती फसल भारी बारिश की भेंट चढ़ गई है। लिहाजा दोबारा बुवाई के लिए अतिरिक्त आलू की जरूरत पड़ी। इससे मांग व आपूर्ति का सारा समीकरण बिगड़ गया है। इसी किल्लत के दौर में पश्चिम बंगाल ने आलू की बिक्री किसी दूसरे राज्य में करने पर रोक लगा दी है। राज्य सरकार के इस फैसले का असर देश के दूसरे राज्यों की मंडियों पर पड़ा है।


आलू की सर्वाधिक 35 फीसद पैदावार उत्तर प्रदेश में होती है। दूसरे स्थान पर पश्चिम बंगाल है, जहां कुल पैदावार का 23 फीसद आलू होता है। दिल्ली समेत उत्तर भारत के सभी राज्यों में आलू की आपूर्ति उत्तर प्रदेश की मंडियों से होती है।


किसी और दिन

उम्मीद की जा रही थी कि ठंड का मौसम लंबा खिंचने की वजह से इस साल पश्चिम बंगाल में आलू उत्पादन को बल मिल सकता है। ठंड की वजह से पिछले साल की तुलना में इस साल आलू उत्पादन 17 फीसदी ज्यादा होने का अनुमान है। पिछले साल राज्य में 85 लाख टन आलू की पैदावार हुई थी।


पश्चिम बंगाल कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के पतित पावन डे ने कहा था, 'इस साल आलू की फसल के लिए बेहद अनुकूल मौसम है। ऐसे में उम्मीद है कि इस साल राज्य में आलू उत्पादन बढ़कर 100 लाख टन के करीब पहुंच सकता है।Ó फिलहाल राज्य में पुखराज किस्म के आलू की कीमत 470 से 500 रुपये प्रति क्विंटल के आसपास है।


लागत भी बढ़ गयी

हालांकि ठंड मौसम की वजह से ज्योति किस्म के आलू के तैयार होने में अभी थोड़ा वक्त लगेगा। पश्चिम बंगाल के किसानों को इस साल आलू बोना महंगा पड़ा है क्योंकि बीज के लिए उन्हें पिछले साल की तुलना में 50 फीसदी ज्यादा कीमत चुकानी पड़ी है। राज्य में बीज की जरूरत का 70 फीसदी हिस्सा पंजाब से मंगाया जाता है। इसके अलावा उर्वरक के बढ़ते दामों ने आलू खेती की लागत बढ़ा दी है।


मंहगा हुआ खाद

यूरिया खाद की कीमत बढ़कर 1,300 से 1,400 रुपये प्रति बोरी (50 किलोग्राम) हो गई है जबकि पिछले साल इसकी कीमत 700 से 800 रुपये थी। आलू कारोबारियों के मुताबिक प्रति क्विंटल आलू उपज की लागत बढ़कर 400 रुपये से ज्यादा हो गई है। ऐसे में इससे कम पर आलू बेचना किसानों के लिए घाटे का सौदा है। वहीं पिछले साल प्रति क्विंटल आलू उत्पादन की लागत 260 से 270 रुपये थी।


पिछले साल

वैसे मौसम अनुकूल नहीं रहने की वजह से पिछले साल राज्य में आलू की पैदावार अच्छी नहीं रही थी। यही कारण है कि कुल उत्पादन 85 लाख टन के स्तर पर रह गया था। कीमत नहीं बढ़े इसके लिए सरकार ने राज्य से आलू के निर्यात पर रोक लगा दी है। वहीं पिछले साल 1 अगस्त से वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने भी आलू के वायदा कारोबार पर रोक लगा दी थी। पिछले साल उत्तर प्रदेश में आलू का उत्पादन करीब 20 फीसदी कम रहा था, इससे पश्चिम बंगाल में अगस्त तक आलू की कीमत बढ़कर 1,000 रुपये प्रति क्विंटल हो गई थी जबकि मार्च में इसके दाम 700 रुपये प्रति क्विंटल थे।


বাজারে নেই আলু, হয়রানি ক্রেতাদেরকলকাতা: বাজারে আলুর অভাব অব্যাহত৷ মঙ্গলবারও শহরের বেশিরভাগ বাজারে জ্যোতি আলুর দেখা মেলেনি৷ পরিস্থিতি মোকাবিলায় বাজারগুলিতে খুচরো বিক্রেতাদের কাছে ১১টাকা কেজি দরে জ্যোতি আলু পাঠানোর ব্যবস্থা করে রাজ্য সরকার৷ কিন্তু সকাল ১১টা পর্যন্ত বেশিরভাগ বাজারেই সরকারি আলু পৌঁছয়নি৷ ফলে আলু না নিয়েই বাজার থেকে ফিরতে হয় ক্রেতাদের৷ আর জ্যোতি আলুর অভাবে বাজারে বেশি দামে বিকোচ্ছে চন্দ্রমুখী আলু৷ সমস্যায় ক্রেতারা৷

বিক্রেতাদের বক্তব্য, সকালের বদলে বেলার দিকে বাজারে আলু এনে লাভ নেই৷ কারণ বেলা বাড়ার সঙ্গে সঙ্গে বাজারও ফাঁকা হতে শুরু করে৷

পরে বেলার দিকে শহরের বিভিন্ন বাজারে খুচরো বিক্রেতাদের কাছে ১১টাকা কেজি দরে জ্যোতি আলু বিক্রি করা হয় রাজ্য সরকারের তরফে৷ ফলে সরকারের বেঁধে দেওয়া ১৩ টাকা কেজি দরে জ্যোতি আলু কিনতে লম্বা লাইন পড়ে যায় ক্রেতাদের৷ কিন্তু বেশিরভাগ ক্রেতারই অভিযোগ, আলুর মান অত্যন্ত খারাপ৷

কলকাতার পাশাপাশি মহানগরী সংলগ্ন জেলাগুলির বাজার থেকেও উধাও হয়ে গিয়েছে আলু মঙ্গলবার ভাইফোঁটার বাজারে সকাল থেকে হাওড়ার বাজারগুলিতে ছিল উপচে পড়া ভিড়৷ কিন্তু আলু কোথায়?

পরিস্থিতি সামাল দিতে বিভিন্ন বাজারে ১৩ টাকা কেজি দরে জ্যোতি আলু পাঠাচ্ছে রাজ্য সরকার৷ কিন্তু তাতেও কি সুরাহা হচ্ছে? পুরোপুরি মিটছে আলুর সঙ্কট? শহরের বিভিন্ন বাজারের মতো হাওড়ার কদমতলা বাজারের এই ছবিও অন্তত সেটা বলছে না৷ কৃষি বিপণন দফতরের পাঠানো আলু শেষ নিমেষেই৷ ঘুসুড়ির মতো বড় বাজারে অবশ্য পৌছয়নি সরকারি আলু৷ সরকারি দামে কিনলেও আলুর মান নিয়ে প্রশ্ন তুলেছেন ক্রেতাদের একাংশ৷

স্থানীয়রা অভিযোগ করেছেন, বিভিন্ন বাজারে সরকারি আলু বিক্রিতে হাত লাগান এলাকার তৃণমূল কর্মীরাও৷ যদিও  অভিযোগ মানতে চাননি কৃষি বিপণনমন্ত্রী অরূপ রায়৷ তাঁর দাবি, আলু মজুত আছে, কোনও সমস্যা হবে না৷ তৃণমূল নয়, সরকারি কর্মীরাই বিক্রি করেছেন৷

ব্যতিক্রম নয় পশ্চিম মেদিনীপুরও৷ জেলা পরিষদ থেকে সরকারি দামে আলু বিকোলেও তা ছিল চাহিদার তুলনায় বেশ কম৷ আলুর কালোবাজারির অভিযোগে সোমবার কোতয়ালি থেকে ৭ জন আলু ব্যবসায়ীকে গ্রেফতার করে পুলিশ৷ প্রতিবাদে এ দিন ব্যবসা বন্ধের ডাক দেন জেলার আলু ব্যবসায়ীরা৷

এদিকে, এখনও অগ্নিমূল্য বাজার৷ সব্জি থেকে মাছ সবকিছুরই দাম আকাশছোঁয়া৷

সাড়ে ৩০০ টাকা কেজি কাতলা৷ পমফ্রেট, পাবদা ৫০০, ৪০০ টাকা কেজি পার্শের৷ ৮০০ থেকে ১২০০ টাকা কেজি ইলিশ৷

একে তো অগ্নিমূল্য বাজার৷ তারওপর বাজারে আলুর আকাল৷ গোদের ওপর বিষফোঁড়ায় নাভিশ্বাস ক্রেতাদের৷

http://www.abpananda.newsbullet.in/kolkata/59-more/43228-2013-11-05-10-05-02


কৃত্রিম অভাব তৈরি করছেন হিমঘর মালিকরা, তাই ১৩ টাকায় আলু বিক্রি সম্ভব নয়সরকারের বেঁ‍ধে দেওয়া দামেও পাইকারি আলু ব্যবসায়ীদের লাভ থাকবে। কিন্তু হিমঘর মালিকরা অতিরিক্ত লাভের আশায় কৃত্রিম অভাব তৈরি করেছেন। তাই হিমঘর থেকে আলু বের করতে দিচ্ছেন না। এমনই প্রতিক্রিয়া পোস্তা বাজার আলু ব্যবসায়ী সমিতির সদস্য রবীন্দ্রনাথ দের। পাইকারি আলু ব্যবসায়ীরা দাম না কমালে সরকার নির্ধারিত দামে আলু বিক্রি করা খুচরো ব্যবসায়ীদের পক্ষে সম্ভব নয় বলেও জানিয়েছেন তিনি।


সরকারি নির্দেশ জ্যোতি আলু বিক্রি করতে হবে ১৩ টাকা কেজি দরে। এই নির্দেশে কান দিতে রাজি নন বিক্রেতারা। তাঁদের সাফ কথা, এই দামে আলু বিক্রি সম্ভব না। এই চিত্র শুধু মাত্র মানিকতলা বাজারের নয়। কলকাতার অন্যান্য বাজারেরও এই হাল। সরকার দাম বেঁধে দিয়েছে, জ্যোতি আলু বিক্রি করতে হবে তেরো টাকায়। কিন্তু বাজারে এখন জ্যোতি আলুই মিলছে না। কয়েকটি দোকানে পাওয়া যাচ্ছে চন্দ্রমুখী আলু। মানিকতলা বাজারে চন্দ্রমুখি আলু বিকোচ্ছে আঠেরো থেকে ২০ টাকা কেজি দরে। দু একটি দোকানে ডালা থেকে উঁকি দিচ্ছে নতুন আলু। কিন্তু তাতে হাত ছোঁয়ানো দায়। দাম ৩৫ টাকা থেকে ৪০ টাকা কেজি।

http://zeenews.india.com/bengali/kolkata/aloo-not-possible-at-rs-13_17624.html

বেঁধে দেওয়া দর কি ঠিক, ভর্তুকি তুলল সেই প্রশ্ন

নিজস্ব সংবাদদাতা • কলকাতা

রকারের বেঁধে দেওয়া ১১ টাকা দামে পাইকারি বাজারে আলু মিলছে না। সে জন্যই খুচরো বাজারে তা ১৩ টাকা দামে বিক্রি করা যাচ্ছে না বলে দাবি করেছিলেন আলুবিক্রেতারা। এই পরিস্থিতিতে আজ, মঙ্গলবার থেকে শহরের সব ক'টি বাজারের খুচরো বিক্রেতাদের কাছে ১১ টাকা কেজি দরে জ্যোতি আলু পৌঁছে দেবে সরকারি গাড়ি। কেজি প্রতি ২ টাকা লাভ রেখে ওই আলু তাঁরা ১৩ টাকা দামে বিক্রি করবেন। কলকাতা পুরসভা সূত্রের খবর, মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়ের নির্দেশেই এই ব্যবস্থা কার্যকর করা হচ্ছে। রাজ্যের কৃষি বিপণন মন্ত্রী অরূপ রায় জানান, কলকাতায় সমস্যা বেশি। তাই এই ব্যবস্থা নেওয়া হচ্ছে কলকাতার জন্যই।

কিন্তু সরকারের এই নয়া সিদ্ধান্ত নিয়ে ইতিমধ্যেই প্রশ্ন উঠতে শুরু করেছে। সরকারি কর্তাদের একাংশের বক্তব্য, পাইকারি বাজার থেকে কিনে পরিবহণ খরচ মেটানোর পরে সরকারের বেঁধে দেওয়া দরে আলু বিক্রি করা যে সম্ভব নয়, তা ঘুরপথে ভর্তুকি দিয়ে মেনে নিল রাজ্য। সরকার কেন এই প্রক্রিয়ার মধ্যে ঢুকছে, তা নিয়েও প্রশ্ন উঠেছে। রাজ্যের বক্তব্য, আলু সাধারণের নাগালে রাখতেই সরকার এই সিদ্ধান্ত নিয়েছে।

গত শুক্রবার জ্যোতি আলুর পাইকারি ও খুচরো দর যথাক্রমে কেজি প্রতি ১১ ও ১৩ টাকায় বেঁধে দিয়েছিলেন মুখ্যমন্ত্রী। এর থেকে বেশি দাম নেওয়া হলে বিক্রেতাদের বিরুদ্ধে কড়া ব্যবস্থা নেওয়ার কথাও ঘোষণা করেছিলেন তিনি। ওই ঘোষণার পরেই এনফোর্সমেন্ট শাখা ও পুরসভার কর্মীরা দফায় দফায় বাজার অভিযানে নামেন। কয়েকটি জেলায় গ্রেফতারও করা হয় খুচরো আলুবিক্রেতাদের।

এই ব্যবস্থা কিন্তু আলুর দাম কমাতে পারেনি। উল্টে ব্যবসায়ীরা হিমঘর থেকে আলু না তোলায় জোগানে টান পড়ে। অনেক বাজার থেকে কার্যত উধাও হয়ে যায় আলু।

কেন এই অবস্থা তৈরি হল?

কলকাতার এক আলু ব্যবসায়ীর কথায়, "কী হিসেবে আলুর খুচরো দর ১৩ টাকায় বাঁধা হল, বুঝলাম না। পাইকারি বাজারে আলুর দাম ঠিক হয়েছে কেজি প্রতি ১১ টাকা। ওই দামে মাল কিনে তা বয়ে আনার খরচ আছে। তার পর বস্তার ভেতরে কিছু নষ্ট আলুও থাকে। খুচরো বাজারের ক্রেতাকে তা বিক্রি করা যায় না। তাই ১১ টাকায় কিনে সব খরচ মিটিয়ে ১৩ টাকায় আলু বিক্রি করে সামান্য লাভ করাও সম্ভব নয়। তাই বাজারে অনেকেই আলু বেচা বন্ধ করে দিয়েছেন।" অনেক আলুবিক্রেতার অভিযোগ, ১১ টাকা দরে পাইকারি বাজারে আলু মিলছে না। মানিকতলার আলুবিক্রেতা বাপি সাউ বলেন, "পঞ্চাশ কেজির আলুর বস্তা কিনছি ৬৪০ টাকায়। অর্থাৎ, প্রতি কেজিতে দাম পড়ছে ১২ টাকা ৮০ পয়সা। এই দামে কিনে নিজেদের খরচে বাজারে এনে, পচা-ধসা আলু বাদ দিয়ে কী করে তা ১৩ টাকা দামে বিক্রি করা যায়, মাথায় ঢুকছে না।" প্রতিটি বাজারের আলু ব্যবসায়ীরাই কার্যত একই কথা বলেছেন।

ব্যবসার এই সরল সূত্র মেনেই বাজার থেকে উধাও হয়ে গিয়েছে আলু। ফলে ভাইফোঁটার আগে বিপাকে সরকার। পরিস্থিতি সামলাতে সোমবার বিকেলে কলকাতা পুরসভায় এক জরুরি বৈঠক হয়। বৈঠকে হাজির ছিলেন পুরসভার মেয়র পারিষদ (বাজার) তারক সিংহ, পুর কমিশনার খলিল আহমেদ, টাস্ক ফোর্সের সদস্যরা, বিভিন্ন বাজার সমিতির প্রতিনিধি এবং পুরসভার বাজার দফতরের অফিসারেরা। ওই বৈঠকেই ঠিক হয়, কৃষি বিপণন দফতর আলু তুলবে। তা পুরসভা নিজের খরচে ট্রাকে করে কলকাতার বিভিন্ন বাজারে পৌঁছে দেবে। অর্থাৎ, আলুর দাম ও জোগান স্বাভাবিক রাখতে ঘুরিয়ে সরকারি ভর্তুকিই চালু করল রাজ্য।

কলকাতার খুচরো বাজারে নিজেদের খরচে আলু পৌঁছে দেওয়ার যে সিদ্ধান্ত সরকার এ দিন নিয়েছে, তাতে অবশ্য আলুর দাম ঠিক করার পদ্ধতি নিয়েই প্রশ্ন উঠল বলে মনে করছেন ব্যবসায়ীদের একাংশ। কৃষি বিপণন দফতরের কর্তাদের একাংশের বক্তব্য, সরকার খুচরো ও পাইকারি বাজারে আলুর দাম নির্ধারণ করতেই পারে। কিন্তু তা বাস্তবসম্মত হওয়া উচিত। যাঁরা দাম ঠিক করছেন, তাঁদের উচিত ছিল, কী দামে চাষিদের কাছ থেকে আলু কেনা হয়েছে, তা হিমঘরে রাখতে কী খরচ হয়েছে, এর উপরে ব্যবসায়ীদের কতটা মুনাফা থাকছে তা হিসেব করে পাইকারি বাজারের দাম নির্ধারণ করা। একই ভাবে পাইকারি বাজার থেকে খুচরো বাজারে আনার খরচ, নষ্ট হওয়া আলুর দাম এবং বিক্রেতার লাভ যোগ করে ঠিক করতে হবে খুচরো বাজারের দর। এই পদ্ধতি ঠিক মতো মানা না হলে বাজারে অস্থিরতা তৈরি হতে বাধ্য। এ ক্ষেত্রেও বাস্তবে সেটাই হয়েছে বলে মনে করছেন ওই অফিসারেরা।

এখন সরকার যে ভাবে নিজের খরচে বাজারে আলু পৌঁছে দিতে চাইছে, তার যৌক্তিকতা নিয়েও প্রশ্ন উঠেছে। অনেকেই মনে করেন, এই প্রক্রিয়ার মধ্যে সরকারের ঢোকাই উচিত নয়। তাঁদের বক্তব্য, আলুর দাম নির্ধারণের পদ্ধতি যে ঠিক হয়নি, তা ট্রাকে করে বাজারে আলু পৌঁছে দেওয়ার সিদ্ধান্ত থেকে স্পষ্ট। এ ক্ষেত্রে উচিত ছিল, ফের সব মহলের সঙ্গে আলোচনায় বসে আলুর দামের বিষয়টি পুনর্বিবেচনা করা। আলুর জোগান স্বাভাবিক থাকলে দামের সামান্য হেরফের হলেও সাধারণ মানুষ আপত্তি করতেন না বলে ওই কর্তাদের দাবি। তা না করে সরকার আলু পৌঁছে দেওয়ার দায়িত্ব নিজের কাঁধে নিয়ে ঠিক করেনি বলেই মনে করছেন সরকারের ওই কর্তারা।

বাজারে বাজারে কী ভাবে আলু পৌঁছে দেবে সরকার?

পুরসভার মেয়র পারিষদ তারক সিংহ জানান, কলকাতার ৩৫৮টি বাজারকে ৬টি অঞ্চলে ভাগ করা হচ্ছে। সেগুলি হল গার্ডেনরিচ, বেহালা, যাদবপুর, দক্ষিণ কলকাতা, মধ্য কলকাতা ও উত্তর কলকাতা। প্রতিটি অঞ্চলের বাজারে আলু বোঝাই লরি যাবে। লরির ভাড়া মেটাবে সরকার। যে বিক্রেতা যত পরিমাণ আলু নেবেন, তাঁকে কেবল ১১ টাকা কিলো দরে দাম মেটাতে হবে। অর্থাৎ, খুচরো বিক্রেতার ঘাড়ে আর পরিবহণ খরচ চাপছে না।

কিন্তু পুরসভা ওই আলু কোথা থেকে পাবে?

মহাকরণ সূত্রের খবর, রাজ্যের কৃষি বিপণন দফতর আলু জোগানের ভার নিচ্ছে। তাদের সহায়তা করবে ব্যবসায়ী সংগঠনগুলি। কৃষি বিপণনমন্ত্রী বলেন, "আমরা সব জায়গায় আলু পাঠাব। সখের বাজার গুদাম থেকে আলু দেওয়া হচ্ছে। তা পাঠানো হবে কলকাতার বিভিন্ন অঞ্চলে।"

কৃষি বিপণন দফতরের কর্তাদের একাংশের বক্তব্য, বাম আমলেও সরকার আলু বিক্রি করতে গিয়ে কোটি কোটি টাকা ব্যয় করেছিল। আলুর দাম কমাতে গিয়ে শেষ পর্যন্ত আমজনতার করের টাকাই খরচ করেছিল তারা। তৃণমূল সরকার আলুর দাম নিয়ন্ত্রণ করতে গিয়ে কার্যত একই পথে চলেছে। সরকারি কর্তাদের মতে, রাজ্যের হিমঘরে এখন যে পরিমাণ আলু মজুত আছে, তাতে এ রাজ্যের চাহিদা মিটিয়েও ভিন্ রাজ্যে রফতানি করা সম্ভব। ভিন্ রাজ্যে আলুর দাম বেশি বলে বিক্রেতাদের লাভের পরিমাণও বাড়বে। সরকারের উচিত ভিন্ রাজ্যে আলু সরবরাহ করে ব্যবসায়ীদের লাভের সুযোগ করে দেওয়া। অন্য রাজ্যে আলু বিক্রি করে বেশি লাভ হলে, এ রাজ্যে কম লাভে আলু বিক্রি করলে তাঁদের লোকসান হবে না। সরকারের উচিত এই বিষয়ে নজর রাখা। তা না করে ভিন্ রাজ্যে আলু পাঠানো বন্ধ করলে ব্যবসায়ীরা লোকসানের মুখে পড়বেন এবং আখেরে ক্ষতি হবে আলু চাষিদেরই।

http://www.anandabazar.com/5raj1.html



বজ্র আঁটুনিতে বাজার বিগড়ে আলু উধাও

নিজস্ব প্রতিবেদন

প্রশাসনের কড়া দাওয়াইয়ে ফল হল দু'রকম। কলকাতা-সহ অধিকাংশ জেলায় অনেক বাজারে কমে গেল আলুর দাম। কোথাও কোথাও আবার বাজার থেকে আলুই উধাও। রবিবার সকালে অনেক এলাকায় গৃহকর্তারা বাজারের থলি হাতে হন্যে হয়ে ঘুরেছেন। কিন্তু আলুর দেখা মেলেনি।

এই অবস্থা চলতে থাকলে ভাইফোঁটায় আলুর দাম ফের বাড়তে পারে বলে আশঙ্কা করছেন অনেকেই। রাজ্য সরকারকে বিঁধে আলু-রাজনীতিতে নেমে পড়েছে বিরোধী শিবিরও। প্রশ্ন উঠছে, খোদ মুখ্যমন্ত্রী কড়া হাতে রাশ ধরেছেন বলেই প্রশাসন ধরপাকড়ে নেমেছে। তা সত্ত্বেও আলু অমিল কেন?

খুচরো ব্যবসায়ীদের জবাব, সরকার আলুর দর বেঁধে দিয়েছে ১৩ টাকা কিলোগ্রাম। কিন্তু পাইকারি বাজারেই তো এই দামে আলু কিনতে হচ্ছে। ১৩ টাকায় আলু কিনে একই দামে তা বিক্রি করা সম্ভব নয়। তাই আলু বিক্রিই বন্ধ রাখছেন তাঁদের অনেকে। আবার অনেক খুচরো ব্যবসায়ীর দাবি, বিক্রির জন্য এখন তাঁদের হাতে যে-আলু আছে, তা বেশি দামে কেনা। ১৩ টাকা দরে বেচলে লোকসান তাঁদেরই। নতুন করে যে-সব আলু আসছে, সেগুলির দাম কম হবে বলেই আশা করছেন তাঁরা। কিন্তু তা যদি না-হয়, তাঁরা কিছু দিন আলু বিক্রি বন্ধই রাখবেন।

আলু নিয়ে এই আতান্তরের মধ্যেই রাজ্য সরকারের বিরুদ্ধে সমালোচনা শানিয়েছেন বিরোধী দলের নেতারা। রবিবার হাসনাবাদের জনসভায় বিরোধী দলনেতা সূর্যকান্ত মিশ্র বলেন, "আলুচাষিরা দাম পাচ্ছেন না। এই অবস্থায় মুখ্যমন্ত্রী হঠাৎ নিজের ইচ্ছেমতো আলুর দাম ১৩ টাকায় বেঁধে দিলেন। এ ভাবে গরিব কৃষকদের জীবন-জীবিকার উপরে আক্রমণ নেমে আসছে।" এর মোকাবিলায় মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়কে কিছু পরামর্শও দিয়েছেন সূর্যবাবু। তিনি বলেছেন, "যাঁরা এ-সবের প্রতিবাদ করছেন, তাঁরা আপনার (মমতার) সঙ্গে কথা বলতে যাবেন। তাঁদের কথা শুনুন।"

*

ট্রাকে আলু পাঠালে ধরছে রাজ্য সরকার। তাই বাসে চাপিয়েই ভিন্ রাজ্যে

আলু পাঠাচ্ছেন ব্যবসায়ীরা। দুর্গাপুর এক্সপ্রেসওয়েতে। ছবি: দীপঙ্কর দে।

অনেক ক্ষেত্রেই যে আলু পাওয়া যাচ্ছে না, প্রশাসনের কর্তারাও তা মেনে নিয়েছেন। তবে তাঁরা সাফ জানিয়ে দিয়েছেন, সরকার ১৩ টাকা কেজি দরে আলু বিক্রি নিশ্চিত করতে বদ্ধপরিকর। মুখ্যমন্ত্রীর কৃষি উপদেষ্টা প্রদীপ মজুমদার বলেন, "কোনও কোনও মহল থেকে জোগানে ব্যাঘাত ঘটানোয় অনেক জায়গায় আলু পাওয়া যাচ্ছে না। সে-ক্ষেত্রে প্রয়োজনে আমরা আলুর জোগান বাড়িয়ে দেব। বেঁধে দেওয়া দামে যাতে রাজ্যের সব মানুষ আলু কিনতে পারেন, যে-কোনও মূল্যে তার ব্যবস্থা করা হবে।" প্রদীপবাবুর দাবি, এ দিন শ্যামবাজার, শখের বাজার, হাতিবাগান-সহ কলকাতার বেশির ভাগ বাজারে আলু বিক্রি হয়েছে ১৩ টাকা কেজি দরেই। সরকারের পক্ষ থেকেও বিভিন্ন বাজারের সামনে গাড়ি নিয়ে গিয়ে এই দামে আলু বিক্রি করা হয়েছে।

সরকারি কর্তার এমন দাবি সত্ত্বেও অনেক বাজারে এখনও ১৪ টাকা দরে আলু বিক্রির প্রবণতা দেখা গিয়েছে। মানিকতলা বাজার অ্যাসোসিয়েশনের সম্পাদক প্রভাত দাস বলেন, "মজুত আলু বেশি দামে কেনা হয়েছিল। তাই তা ১৩ টাকায় বিক্রি করা সম্ভব নয়। এ বার পাইকারি বাজারে আলুর দাম কমবে বলেই মনে হচ্ছে। নইলে আমরা আলু বিক্রি বন্ধ রাখব।"

এ ভাবে আলু বিক্রি বন্ধের মোকাবিলায় কী করছে সরকার?

মুখ্যমন্ত্রীর কৃষি উপদেষ্টা প্রদীপবাবু বলছেন, "আমরা খুচরো ব্যবসায়ীদের আবেদন জানিয়েছি, প্রয়োজনে আমাদের কাছ থেকে ১১ টাকায় কিনে আলু বিক্রি করুন।" এই দামে আলু মিলবে কোথায়, তার হদিস দিয়েছেন কৃষি বিপণন উপ-অধিকর্তা গৌতম মুখোপাধ্যায়। তিনি জানান, শখেরবাজারে পুরসভার গুদামে ৩০ লরি আলু রাখার গুদাম মিলেছে। এ ছাড়াও মানিকতলা, গড়িয়াহাট, কালীঘাট, শ্যামবাজার, শ্যামপুকুরে ১১ টাকা কেজি দরে পাইকারদের আলু দেওয়া হচ্ছে। খুচরো আলু মিলছে ১৩ টাকায়। কৃষি বিপণন অধিকর্তা হরেরাম রায়মণ্ডলের দাবি, সরকার সাতটি বাজারে ১৩ টাকা কেজি দরে আলু বিক্রি করছে। ১ নভেম্বর থেকে রবিবার পর্যন্ত এই দামে ২০ টন আলু বিক্রি হয়েছে।

কলকাতায় পরিস্থিতির কিছুটা উন্নতি হলেও জেলার অনেক জায়গাতেই বাজারে আলু মিলছে না। মিললেও তা বিক্রি হচ্ছে বেশি দামে। প্রশাসনিক সূত্রের খবর, দক্ষিণবঙ্গে দর কিছুটা নিয়ন্ত্রণে আনা গেলেও উত্তরবঙ্গের বেশির ভাগ বাজারেই আলু বিকোচ্ছে বেশি দামে। লাভ হচ্ছে না দেখে এবং প্রশাসনের হ্যাপা পোহাতে হবে ভেবে শিলিগুড়ির বিভিন্ন বাজারে বর্ধমান থেকে জ্যোতি আলু আনা বন্ধ করে দিয়েছেন ব্যবসায়ীরা। ফলে সেখানকার বিভিন্ন বাজারে ওই আলু মিলছে না। বর্ধমানের আলু উত্তরবঙ্গে আনা বন্ধ রাখা হয়েছে কেন?

শিলিগুড়ির ফ্রুট অ্যান্ড ভেজিটেবল কমিশন এজেন্ট অ্যাসোসিয়েশনের অন্যতম কর্মকর্তা তপনকুমার সাহার বক্তব্য, বর্ধমানে হিমঘর বা গুদাম থেকে যে-আলু বেরোচ্ছে, সরকার তার দর বেঁধে দিয়েছে সাড়ে ১০ টাকা কেজি। কিন্তু শিলিগুড়িতে আলু আনতে প্রতি কেজিতে দু'টাকা ৩০ পয়সা খরচ। কৃষি বিপণন দফতরকে এক শতাংশ কর দিতে হচ্ছে। তপনবাবুর প্রশ্ন, "সব মিলিয়ে খরচ ১৩ টাকা হলে খুচরো ব্যবসায়ীদের ১১ টাকা পাইকারি দরে বিক্রি করা যাবে কী ভাবে? তাই বর্ধমানের আলু আনা হচ্ছে না। রবিবার বাজার বন্ধ ছিল। সোমবার ব্যবসায়ীরা যেমন যেমন কী সিদ্ধান্ত নেবেন, তার উপরে পরবর্তী পরিস্থিতি নির্ভর করবে।"

উত্তরবঙ্গে শুধু শিলিগুড়ি নয়, জলপাইগুড়ি, কোচবিহার-সহ সব জেলারই অনেক জায়গায় আলুর দাম নিয়ন্ত্রণে আনা যায়নি। ধূপগুড়ি ও ফালাকাটা বাজারে এ দিনও ভুটান আলু ২৫ টাকা এবং স্থানীয় আলু ২০ টাকা কেজি দরে বিকিয়েছে। কোচবিহারের ভবানীগঞ্জ, তুফানগঞ্জ, দিনহাটা, মাথাভাঙা, মেখলিগঞ্জের বাজারগুলিতে নির্ধারিত মূল্যের চেয়ে বেশি দামে আলু বিক্রি হচ্ছে বলে অভিযোগ। জলপাইগুড়িতেও আলু বিক্রি হচ্ছে ২০ এবং ১৮ টাকা দরে। আশার খবর, আজ, সোমবার থেকে পাইকারি বিক্রেতাদের জন্য ফের হিমঘরের আলু তোলার সিদ্ধান্ত নিয়েছে রাজ্যের প্রগতিশীল আলু ব্যবসায়ী সমিতি। খোলা বাজারে আলুর দাম বেড়ে যাওয়ায় মুখ্যমন্ত্রীর নির্দেশে ভিন্ রাজ্যে আলু পাঠানো বন্ধ করে দেওয়া হয়। ভিন্ রাজ্যমুখী আলুর ট্রাক আটকে দেওয়া হয় বিভিন্ন চেকপোস্টে। তার পরেই শনিবার থেকে তিন দিন ব্যবসা বন্ধের ডাক দিয়েছিলেন তাঁরা।

তবে সরকারের সঙ্গে আলোচনার ভিত্তিতে সোমবার থেকে ফের আলু তোলা হবে বলে জানান সমিতির সাধারণ সম্পাদক এবং মূল্যবৃদ্ধি নিয়ে সরকারের গড়া টাস্ক ফোর্সের সদস্য দিলীপ প্রতীহার।

http://www.anandabazar.com/archive/1131104/4raj4.html


সব্জির আগুন দাম কেন, অবাক কৃষকরাই

এই সময়: যে ফুলকপির জন্য তাঁরা দাম পাচ্ছেন ৬-৭ টাকা, তাই যে কয়েক মাইলের মধ্যে বিক্রি হচ্ছে ২০-২৫ টাকায় তা জেনে অবাক সুবল দাশ, দুলাল আবলেরা৷ তবু করণীয় কিছু দেখেন না তাঁরা, কারণ বাজার ব্যবস্থার এই ছকেই বাঁধা তাঁদের জীবন৷


ধাপা মাঠপুকুরের ৫২ হাজার বিঘার লাটের চাষি সুবল দাস, দুলাল আবলেরা৷ পড়ন্ত বিকেলে ছেলে সন্ত্ত দাশকে সঙ্গে নিয়ে কপি আর বেগুনের খেতে জল দিচ্ছিলেন সুবলবাবু৷ জানালেন, এখন কপির জন্য দাম মিলছে পিস প্রতি ৭ টাকা৷ দুলালবাবু অবশ্য জানালেন, এখন দামটা খানিক চড়া হওয়ায় বড় কপির জন্য ১২ টাকা পর্যন্ত দিতে রাজি হচ্ছে ফড়েরা৷ শুধু ফুলকপি, বাঁধাকপি, বেগুন সহ সব সব্জির দামই এখন চড়া৷ শিয়ালদহ কোলে মার্কেটের চিফ সুপারভাইজার উত্তম মুখোপাধ্যায়ও জানান, ৪০ টাকার নিচে কোনো সব্জিই নেই৷


দাম চড়া৷ কিন্ত্ত কতটা? ধাপার মাঠ থেকে ৬-৭ টাকায় কেনা কপিগুলিই বাইপাসের ধারে বসে ৪টির জন্য ৬০ টাকা হাঁকছেন পিঙ্কি বেরা৷ তবু কিছু করার নেই সুবল দাসদের৷ কারণ, খুচরো বিক্রি করার সময় ও সুযোগ তাঁদের সামনে নেই৷ সব্জি বিক্রি করতে হয় ফড়েদের কাছেই৷ ধাপার চাষিরাই জানালেন, অন্য বছর তো ধাপার কপির দামই ওঠে না৷ এখন বিক্রি হয়ে যাচ্ছে বটে, তবে অন্যরা দাম পেলেও, কৃষকের বিশেষ সুবিধা হচ্ছে না৷ শুধু ফুলকপিই নয়, বেগুনের বস্তা (২৫-৩০ কিলো) পিছু এই ব্যবসায়ীরা পান কত? তাঁরাই জানালেন, ৩০০ থেকে ৪০০ টাকা৷ মানে কেজি প্রতি ১০-১২ টাকা৷ সেই বেগুনই শিয়ালদহে পাইকারিতেই বিক্রি হচ্ছে ৪০ টাকা কেজি দরে৷ রানাঘাটের বীননগরের থেকে শিয়ালদহে বেগুন বিক্রি করতে আসা গোবর্ধন হালদারের সাফ কথা, কিছু করার নেই৷ ফসল নষ্ট হয়েছে জলে৷ রাণাঘাট থেকে আসা স্মরজিত্‍ মন্ডল, নবকুমার সরকারদের কেউ এসেছেন মুলো বিক্রি করতে, কেউ বা বেগুন বা শসা৷ চাষির দামের সঙ্গে পাইকারি বাজারেই ঘটে যাচ্ছে দামের বিরাট ফারাক৷ খুচরো বাজারে পৌঁছানোর পরে তা বাড়ছে লাফিয়ে লাফিয়ে৷


পেঁয়াজের দাম বৃদ্ধি নিয়ে নানা তথ্য, তত্ত্ব দেওয়া হচ্ছে সরকারের তরফে৷ কখনও বলা হচ্ছে চাহিদার তুলনায় জোগান কম, কখনও বলা হচ্ছে মহারাষ্ট্র থেকে পেঁয়াজ আনার খরচ বেড়েছে অনেকটাই৷ এসবই সত্যি৷ কিন্ত্ত তার পরেও দেখা যাচ্ছে পাইকারি বাজারে কিন্ত্ত পেঁয়াজের জোগানের আদৌ কোনো ঘাটতি নেই৷ আর দাম বাড়ার পরেও শিয়ালদহের কোলে মার্কেটে যে পেঁয়াজ পাইকারিতে বিক্রি হচ্ছে ৪০ টাকা কেজি দরে, তাই কয়েক কিলোমিটারের মধ্যে কলকাতার বাজারগুলিতে বিক্রি হচ্ছে ৬০-৬৫ টাকা কেজি দরে৷


আলুর ক্ষেত্রেও একই কথা৷ হিমঘরে রয়েছে আলু৷ সীমান্তে দাঁড়িয়ে আলুর ট্রাক৷ সরকার দাম বেঁধে দেওয়ার পর থেকে বাজার থেকে উধাও জ্যোতি আলু৷ সরকারও মনে করছে, কৃত্রিমভাবে এই সংকট তৈরি করা হচ্ছে৷ রাজ্যের কৃষি বিপণন দপ্তরের উদ্যোগে যে কারণে এখন বাজারে বাজারে ১৩ টাকা কেজি দরে, ৫ কিলো করে আলু বিক্রি করা হচ্ছে৷ ওয়াকিবহাল মহলের বক্তব্য, কৃষক থেকে ক্রেতার মধ্যবর্তী স্তরে একাধিক হাত বদল হওয়ায় দাম চড়ছে বটে৷ তবে রাজ্যে লিখিতভাবে চুক্তি চাষ না হলেও, বিভিন্ন প্রান্তে কৃষকের খেতে বকলমে চুক্তি করে নিচ্ছে একশ্রেণির ব্যাবসায়ী, মহাজনেরা৷ দাম নিয়ন্ত্রণের ক্ষমতা তাই প্রথম থেকেই চলে যাচ্ছে মুষ্টিমেয়র হাতে৷


যদিও কলকাতার বাজারে আলুর দাম বাঁধতে সমান্তরাল বাজার তৈরির দাবি করছেন সরকারি আধিকারিকরা৷ কৃষি বিপনন দপ্তর দাবি করেছে, শখের বাজার এবং মানিকতলা এই দুটি স্থানে আলু সরকারি ভাবে জমা করা হচ্ছে৷ সেখান থেকেই খুচরো ব্যবসায়ীদের কাছে পাইকারীতে ১১ টাকা কিলো দরে আলু বিক্রি হচ্ছে৷ যাতে তাঁরা খুচরো বাজারে ১৩ টাকা করে আলু বেচতে পারেন৷ ইতিমধ্যেই এই পদ্ধতিতে ২০০ মেট্রিক টন আলু কলকাতার বাজারে সরকারি উদ্যোগে বিক্রি করা হয়েছে বলে দাবি করেছেন কৃষি বিপণন দপ্তরের আধিকারিকরা৷ কিন্ত্ত তার পরেও যে শহরের বাজারে লাগামছাড়া দামে আলু বিকোচ্ছে তা মেনে নিয়েও আধিকারিকদের দাবি আর দু-তিন দিনের মধ্যেই পরিস্থিতি স্বাভাবিক হয়ে যাবে৷ কলকাতা এনফোর্সমেন্ট ব্রাঞ্চের আধিকারিকরা এ দিন সন্ধ্যেতেও বেশ কয়েকটি বাজারে হানা দেন৷


অগ্নিমূল্য আলুই সস্তা ডিপার্টমেন্টাল স্টোরে

এই সময়: বাজারে বাড়ন্ত আলু, যেটুকু মিলছে দামের জন্য তাতেও হাত ছোঁয়ানো দুষ্কর৷ এরই মধ্যে ব্যতিক্রম ঝাঁ-চকচকে ডিপার্টমেন্টাল স্টোরগুলো৷ এতদিন এই স্টোরগুলিতে যাঁরা ব্র্যান্ডেড জামাকাপড়, প্রসাধনী কিনতেই অভ্যস্ত ছিলেন, তাঁরাই এখন থলে নিয়ে লাইন দিচ্ছেন স্টোরের সব্জির কাউন্টারে৷


খোলা বাজারে আলু অগ্নিমূল্য হলেও শহরে স্পেনসার্স বা রিলায়েন্স ফ্রেশের মতো ডিপার্টমেন্টাল স্টোরগুলিতে আলু এবং অন্যান্য সব্জির দামও তুলনামূলক কম৷ সোমবার শহর কলকাতার সিংহভাগ বাজারেই আলু বিক্রি হয়েছে সরকার নির্ধারিত দামের চেয়ে অনেকটাই বেশিতে৷ দক্ষিণ কলকাতার বাঘাযতীন বাজারে এ দিন জ্যোতি আলুর বিক্রি হয়েছে ২০ টাকা কেজিতে৷ চন্দ্রমুখী আলুর দাম ছিল প্রতি কিলো ২৪ টাকা৷ তুলনামূলক ভাবে এ দিন সল্টলেকে আলুর দাম ছিল কিছুটা কম৷ সল্টলেকের বাজারগুলি জ্যোতি ও চন্দ্রমুখী আলু বিক্রি হয়েছে যথাক্রমে ১৬ ও ২০ টাকা কেজিতে৷ সেখানে স্পেনসার্স, রিলায়েন্স ফ্রেশের সল্টলেক, সাউথ সিটি অথবা কালিকাপুরের মোড়ের শাখাগুলিতে আলুর দাম ছিল ১৩ টাকা৷ শুধু স্পেনসার্সের সাউথ সিটি শাখায় এক কেজি আলুর প্যাকেটের দাম ছিল ২০ টাকা৷


এই ধরনের ডিপার্টমেন্টাল স্টোরগুলিতে আলুর পাশাপাশি অন্যান্য সব্জির দামও ছিল খোলা বাজারের তুলনায় কম৷ সেখানে পেঁয়াজ বিক্রি হয়েছে ৭০ টাকা কেজিতে৷ ফুলকপি ছিল ২২ টাকা পিস৷ পাশাপাশি ঢ্যাঁড়স ৬৯ টাকা, বাঁধাকপি ৪০ টাকা, মটরশুটি ১৩০ টাকা, পটল ৫৯ টাকা, বেগুন ৪৯ টাকা কেজিতে বিক্রি হয়েছে৷ সেখানে শহরের খোলা বাজারে সোমবার এই সব্জিগুলির দাম ছিল অনেকটাই বেশি৷ এই বাজারগুলিতে ফুলকপির প্রতি পিস বিক্রি হয়েছে ২২ টাকায়৷ বাঁধাকপি বিকিয়েছে ৪০ টাকা প্রতি কেজি৷ পাশাপাশি বাজারগুলিতে বেগুন ৮০-১০০ টাকা, মটরশুঁটি ২৮০ টাকা, পটল ৮০ টাকা কেজি দরে বিক্রি হয়েছে৷


সব্জির বাজার যখন আগুন, ডিপার্টমেন্টাল স্টোরগুলোতে অন্য চিত্র কেন৷ ওয়াকিবহাল মহলের মতে এই স্টোরগুলি আগে থেকে বেশি পরিমাণে সব্জি মজুত করে৷ এতে দাম অনেকটাই কম পড়ে৷ খুচরো ব্যবসায়ীদের পক্ষে এত পরিমাণে সব্জি কেনা সম্ভব হয় না৷ ফলে পাইকারি বাজারে সব্জির দাম যা ওঠে, তার উপর এক-দু'টাকা লাভ রেখে বিক্রয়মূল্য স্থির করেন৷ এর জন্যই দামে এতটা হেরফের হচ্ছে৷


No comments:

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...