भारत सरकार की कूटनीतिक हार है सरबजीत की मौत
सरबजीत के मामले में भारत सरकार कोई विश्वसनीय 'नैतिक स्टैण्ड' तो ले नहीं सकती।
सरबजीत के साथ पाकिस्तान की जेल में, जो कुछ भी हुआ, वह निस्सन्देह बहुत बुरा है। चश्मदीद गवाहों के बयानों की रौशनी में तो यह और भी बुरा है। एक निर्दोष व्यक्ति को इतने लम्बे अरसे तक जेल में डाले रखना, उसे यातनाएं देना, उसकी रिहाई की घोषणा करना और फिर मुकर जाना, जेल में उस पर प्राणान्तक हमला करवाना आदि ये सब कृत्य किसी भी देश की सरकार के लिये शर्मनाक हैं। पाकिस्तान की सरकार अपना कोई विश्वसनीय बचाव नहीं कर सकती, इस मामले में। इस सब पर जो बात भारी पड़ती है वह यह कि यह भारत सरकार की बहुत बड़ी राजनयिक पराजय है। विदेश मन्त्रालय जैसे राम-भरोसे चल रहा हो। अपने सभी पड़ोसियों को दुश्मन बना चुकी सरकार किस बूते पर पारस्परिक
सहयोग सुनिश्चित कर सकती है।
अब सवाल खड़ा हो रहा है सरबजीत की 'मिट्टी' इस देश को सौंपे जाने का। इस माँग में नाजायज़ कुछ भी नहीं है। सरबजीत ज़िन्दा लौटकर अपने परिवार और समाज का हिस्सा नहीं बन पाया हो तो भी वह यहाँ की सामूहिक स्मृति का हिस्सा तो है ही। उसकी 'मिट्टी', उसके परिवार के हाथों इस देश की मिट्टी में मिले, यह गैर-मुनासिब कैसे कहा-माना जा सकता है? पर इस मामले का सिलटना भी उतना आसान नहीं दिखता। पाकिस्तान विदेशी दबाव में उदारता दिखा जाये तो बात अलग है। वैसे भारत सरकार तो अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाने का कोई राजनयिक प्रयत्न करते दिख ही नहीं रही है। एक पेंच खड़ा हो सकता है कि अफ़ज़ल, जो कि एक भारतीय नागरिक था, की मिट्टी ही जब उसके परिवार को नहीं सौंपी गयी, कश्मीर में उठी ज़बरदस्त माँग के बावजूद, तो सरबजीत के मामले में भारत सरकार कोई विश्वसनीय 'नैतिक स्टैण्ड' तो ले नहीं सकती।
देखते ही चल सकते हैं कि आगे क्या होने वाला है !
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