কালীপূজা আদিম হিংস্রতার পৈশাচিক প্রজেকশন
अमेरिकी संसद में पहली बार मनाई गई दीपावली
US zionist endorsement to boost Market economy!
Palash Biswas
अमेरिकी संसद में पहली बार दीपावली मनाई गई। बुधवार को एक हिंदू पुरोहित द्वारा वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच यह पर्व मनाया गया।
परंपरागत दीया जलाने के लिए अमेरिकी संसद कैपिटल हिल में करीब दो दर्जन सांसद और भारतीय मूल के प्रसिद्ध अमेरिकी जमा हुए। कैपिटल हिल में अपने तरह के इस पहले समारोह का आयोजन सांसद जोए क्राउले और पीटर रॉस्कैम द्वारा किया गया। इस मौके पर भारत-अमेरिका संबंधों के महत्व का भी उल्लेख किया गया। अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव में डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता नैंसी पेलोसी ने कहा कि 'मैं यहां हैप्पी दीपावली कहने के लिए आई हूं। अमेरिका भारत का एहसानमंद है क्योंकि अमेरिका का नागरिक अधिकार आंदोलन भारत के अहिंसक आंदोलन पर आधारित था। मार्टिन लूथर किंग ने भारत में पढ़ाई की थी। हम खुशकिस्मत हैं कि अमेरिका में बहुत से भारतीय मूल के लोग रहते हैं।' क्राउले ने कहा कि वास्तव में यह एक ऐतिहासिक घटना है। रॉस्कैम ने कहा कि भारतीय मूल के अमेरिकी व्यापक प्रभाव वाले बड़े प्रवासी समूह का उदाहरण हैं। जय हिंद के साथ अपनी संक्षिप्त टिप्पणी प्रारंभ करते हुए सांसद एड रॉयस ने कहा कि भारत और अमेरिका के संबंधों में मजबूती आ रही है। रॉयस संसद की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष हैं।
২১,২৯৩ পার করে রেকর্ড গড়ল সেনসেক্স
ধন ত্রয়োদশীর দিন বম্বে স্টক এক্সচেঞ্জেক সূচক সেনসেক্স নতুন রেকর্ড গড়ল। ২০০৮ সালের রেকর্ড ভেঙে এদিন সেনসেক্স পৌঁছল ২১,২৯৩ পয়েন্টের উচ্চতায়। অন্য দিকে ন্যাশনাল স্টক এক্সচেঞ্জের সূচক নিফটি ৬,৩০০ পয়েন্ট পার করল।
কালীপুজোর উত্সবের লাগামছাড়া উন্মত্ততা নিরন্কুশ মুক্ত বাজারের সঙ্গে বেশ মানানসই।
বাজারি সংস্কৃতি ও গণসংহার অশ্বমেধ যজ্ঞের চরমোত্কর্ষ হল এই আদিম হিংসার উত্সব ও পৈশাচিকতার অশ্লীল প্রোজেক্শন।
কালিকা পুরাণ (সংস্কৃত: कालिका पुराण, Kālikā Purāṇa) (খ্রিস্টীয় দশম শতাব্দী) একটি হিন্দুধর্মগ্রন্থ। অষ্টাদশ উপপুরাণের অন্যতম। প্রাপ্ত পাঠটিতে ৯৮টি অধ্যায় ও ৯০০০ শ্লোক রয়েছে। এটিকালী ও তাঁর কয়েকটি বিশেষ রূপের (যথা, গিরিজা, ভদ্রকালী ও মহামায়া) উদ্দেশ্যে রচিত একমাত্র গ্রন্থ। এই পুরাণে কামরূপ তীর্থের পর্বত ও নদনদী এবং কামাখ্যা মন্দিরের বিস্তারিত বর্ণনা পাওয়া যায়।[১] কালী, কামাখ্যা ও দুর্গা সহ বিভিন্ন দেবীর পূজাপদ্ধতি এই পুরাণে লিপিবদ্ধ আছে। সেই কারণে এটি হিন্দুধর্মের শাক্ত শাখার ধর্মগ্রন্থ। সম্ভবত এই গ্রন্থ কামরূপ (বর্তমান অসম) বা বঙ্গদেশেলিখিত হয়েছিল। এই পুরাণ একটি গুরুত্বপূর্ণ শাস্ত্রগ্রন্থ। কারণ, অপেক্ষাকৃত আধুনিক কালের "নিবন্ধ" (স্মার্ত) লেখকগোষ্ঠী এটিকে শাক্তধর্মের একটি প্রধান ধর্মগ্রন্থ বলে উল্লেখ করেছেন।[২] এই পুরাণে বেশ কিছু পূর্বপ্রচলিত পৌরাণিক উপাখ্যানেরও উল্লেখ রয়েছে। এই পুরাণ সেই সব বিরল হিন্দু ধর্মগ্রন্থের একটি যেখানে "হিন্দু" শব্দটি পাওয়া যায়।
কালিকা পুরাণের সবচেয়ে পুরনো মুদ্রিত সংস্করণটি হল ১৯০৭ সালে প্রাকশিত বোম্বাই ভেঙ্কটেশ্বর প্রেস সংস্করণটি। এরপর ১৯০৯ সালে কলকাতার বঙ্গবাসী প্রেস থেকে এর প্রথম মুদ্রিত বাংলা সংস্করণ প্রকাশিত হয়।
Ahead of Diwali, Delhi hospitals brace for burn injury cases. Pritha chatterjee reports for Indian Express.Data from the country's largest burns unit at Safdarjung hospital has shown that in the last decade cases of burn injuries from firecrackers begin pouring in every year around time of the festival. At least 65 per cent of the cases are burns sustained from anars or sparkler fountains.
It is the same red alert across the nation.
But the burn is not physical only.The hospitals may cure the physical burn, but this Diwali causes unprecedented economic burn challenging sustenance,which may not be cured by any corporate alternative either,or medicalset up whatsoever.
दिवाली के अवसर पर रविवार को बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) में मुहूर्त कारोबार का विशेष आयोजन किया गया है। बाजार 75 मिनट के विशेष मुहूर्त कारोबार के लिए शाम 6.15 बजे से 7.30 बजे तक खुलेगा।
बीएसई के एक प्रवक्ता ने कहा कि विशेष कारोबारी सत्र बीएसई लिमिटेड के अध्यक्ष एस. रामादोरई और प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी आशीष कुमार चौहान की मौजूदगी में शेयर, डेरिवेटिव और एसएलबी के लिए शाम 6.15 बजे से 7.30 बजे तक संचालित किया जाएगा।
सौ साल से अधिक पुरानी परंपरा के तहत हर साल दिवाली के मौके पर धन और समृद्धि की देवी मां लक्ष्मी के सम्मान में मुहूर्त कारोबार संचालित किया जाता है। इस दिवाली से हिंदुओं का नया साल संवत वर्ष 2069 शुरू होगा। संवत वर्ष प्राचीन हिंदू परंपरा के मुताबिक चंद्र कैलैंडर पर आधारित है।
मुहूर्त कारोबार से पहले उसी दिन दोपहर 2.15 बजे से एक घंटे तक लक्ष्मी पूजा होगी और शेयर, डेरिवेटिव, म्यूचुअल फंड, डेट, आईपीओ, ओएफएस और एसएमई के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वालों को सम्मानित किया जाएगा।
इसी तरह नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) ने भी रविवार तीन नवंबर को दो घंटे के विशेष मुहूर्त कारोबार की घोषणा की है। यह जानकारी एनसीडीईएक्स के एक प्रवक्ता ने दी।
यह शाम छह बजे से आठ बजे तक संचालित किया जाएगा। प्री-सेशन 5.30 बजे शुरू होगा और क्लाइंट कोड मोडिफिकेशन को 8 बजे से 8.15 बजे के बीच अनुमति दी जाएगी।
It has nothing to do with religion or culture.It is purely Hegemony power game and West Bengal Chief Minister Mamata Bannerjee has smashed all the records to prove it since Durgotsav with deployment of US Drone in Kolkata sky.The CM is making much ado about nothing as she is crying foul against Adhaar linked Gas sbsidy introduced in three Bengal districts. As the Green Brigade leader has never opposed biometric digital citizenship Nato Corporate project illegal and unconstitutional. Mamata didi is engaged once again performing the religious governance during Kalipuja Diwali festivities as Durgotsav follow up.
Never mind. The marketing power game is endorsed by the global zionist satanic tri iblis order as US President Barack Obama greets people on Diwali!
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने दुनियाभर में फैले भारतीयों को दीपावली की बधाई दी है। साथ ही कहा कि दीपावली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता है। रोशनी का पर्व याद दिलाता है कि अंधकार पर प्रकाश की जीत होगी।
ओबामा द्वारा शनिवार को जारी बयान में कहा गया कि इस त्योहार ने अमेरिकी जनता को यह याद दिलाया है कि उनके देश में कई धर्म और परंपराएं निवास करती हैं और यह विविधता हमें मजबूत बनाती है। मुझे इस बात का गर्व है इस साल रिपब्लिकन और डेमोक्रेट सांसदों ने इस हफ्ते पहली बार कैपिटल हिल में दिवाली का पर्व मनाया।
उन्होंने कहा कि पिछले पांच वर्षो से मिशेल और मुझे ह्वाइट हाउस और भारत में इस प्राचीन पर्व को मनाने का अवसर मिल रहा है। मैं सभी को दीपावली और नववर्ष की बधाई देता हूं। पहले के वर्षो की तरह ह्वाइट हाउस में मंगलवार को दिवाली मनाई जाएगी, जिसमें मिशेल वक्तव्य देंगी। इसमें अमेरिकी सांसद, कई वरिष्ठ अधिकारी समेत कई प्रख्यात भारतीय अमेरिकी हिस्सा लेंगे। पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने 2003 में इस परंपरा को शुरू किया था। 2009 में सत्ता में आने के बाद ओबामा ने इसे बरकरार रखा है।
बयान के मुताबिक ओबामा ने कहा कि दीपावली का पर्व मना रहे हिंदुओं, सिखों और बौद्धों के लिए रोशनी का त्योहार उन चीजों पर बल देता है जो जीवन में बहुत मायने रखती है। इस बीच अमेरिकी सांसद और इंडिया काकस के सह अध्यक्ष जॉन कार्ने और मार्क आर वार्नर ने घोषणा की है कि दिवाली के एतिहासिक और धार्मिक महत्व की पहचान के लिए वे कांग्रेस (संसद ) में प्रस्ताव लाएंगे।
The flame of the diya, or lamp, reminds us that light will ultimately triumph over darkness, said Obama. (Reuters)
US President Barack Obama greeted Hindus, Sikhs, Jains and Buddhists across the globe on the occasion of Diwali, saying the flame of the diya reminds that light will ultimately triumph over darkness.
"The flame of the diya, or lamp, reminds us that light will ultimately triumph over darkness," Obama said in his Diwali message yesterday. "Here in the US, Diwali also reminds us that our nation is home to many faiths and traditions, and that our diversity makes us stronger, which I why I'm proud that this year Democrats and Republicans in Congress joined together for the first-ever celebration of Diwali on Capitol Hill," he said.
Obama was referring to the first ever Diwali celebrations at the Capitol Hill early this week. "Over the last five years, Michelle and I have been honoured to have the chance to observe this ancient holiday, both at the White House and in India, and we wish all those celebrating this weekend a Happy Diwali and Saal Mubarak."In the message, the President said that for the Hindus, Jains, Sikhs and Buddhists celebrating Diwali, the Festival of Lights, reaffirms the things that matter most in life.
"Dancing, celebration, and good food remind us that life's greatest joys are the simple pleasures that come from spending time with people we love. Contemplation and prayer remind us that that people of all faiths have an obligation to perform seva, or service to others," Obama said.
This year, Michelle would lead Diwali celebrations at the White House, which is expected to be attended by lawmakers, senior administration officials and eminent Indian Americans."The First Lady will provide remarks at the White House Diwali celebration," the White House announced yesterday. A media advisory said the festival of lights would be celebrated on November 5.
Meanwhile, US Senators John Cornyn and Mark R Warner, co-chairs of Senate's bipartisan India Caucus, announced that they would introduced a bipartisan resolution in the Congress to recognise the religious and historical significance of Diwali.
এই সময় ডিজিটাল ডেস্ক: শক্তির আরাধনায় মাতোয়ারা শহর। রাজ্যের বিভিন্ন শক্তিপীঠগুলিতে শনিবার উপচে পড়ার মতো ভিড়। বাদ পড়েনি বিভিন্ন কালীপুজো মণ্ডপগুলিও। কালীঘাট, দক্ষিণেশ্বর, তারাপীঠের মতো শক্তিপীঠে এদিন সকাল থেকেই অসংখ্য ভক্তের ভিড়।
কথিত আছে, একবার শক্তির মাতৃরূপ দর্শনের আগ্রহ করেন বশিষ্ঠ মুনি৷ তিনি নিরাশ করেননি৷ সমুদ্রমন্থনের পর উঠে আসা বিষ পান করে তখন সঙ্কটাপন্ন মহাদেব৷ সে সময় মহাদেবকে সন্তান রূপে স্তন পান করান শক্তি৷ সেই থেকেই তারাপীঠের অধিষ্ঠাত্রী তিনি৷ সারা বছরই ভক্তদের আনাগোনা, তবে কালীপুজোর দিনে তারাপীঠের ছবিটা অন্যরকম৷
দক্ষিণেশ্বরেও পুরোদমে চলছে পুজোর আয়োজন৷ মঙ্গলারতি থেকে মা ভরবাতিণীর পুজো৷ ভোর থেকেই মন্দিরের মূল প্রবেশদ্বারের সামনে থিকথিক করছে ভিড়৷ ভোর চারটেয় মঙ্গল আরতি এবং পরে হয় ধূপ আরতি৷ তার পরই শুরু হয় পুজো দেওয়ার প্রক্রিয়া৷ পুজো উপলক্ষে নিরাপত্তার আঁটোসাঁটো ব্যবস্থা করা হয়েছে।
এর পাশাপাশি কালীঘাট মন্দির চত্বরেও মানুষের ঢল। রোদ-ক্লান্তি উপেক্ষা করে ঘণ্টার পর ঘণ্টা লাইনে দাঁড়িয়ে থাকেন সকলে। রীতি মেনে প্রতিবারই কালীপুজোর দিন কালীকে মহালক্ষ্মীরূপে পুজো করা হয় কালীঘাটে৷ তবে, এবার অমাবস্যা দেরিতে পড়ায় তেমনটা হচ্ছে না বলে জানালেন সেবায়েত অজয় বন্দ্যোপাধ্যায়৷ বিশেষ দিনে মন্দির চত্বরে রয়েছে বিশেষ নিরাপত্তাও৷ মোতায়েন পুলিশ৷ রয়েছে মেটাল ডিটেক্টর৷
শহরের প্রতিটি রাস্তা এবার থেকে নজরে রাখবে গোপন ক্যামেরা৷ উদ্যোগ কলকাতা পুলিশের৷ শুক্রবার লালবাজারে এই পদ্ধতির উদ্বোধন করলেন মুখ্যমন্ত্রী মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়৷
কলকাতা পুলিশ সূত্রে খবর, নিরাপত্তা জোরদার করতে শহরের ৬৫টি থানা এলাকার বিভিন্ন গুরুত্বপূর্ণ রাস্তার মোড়ে ইতিমধ্যে বসানো হয়েছে ৪০০টি অত্যাধুনিক ক্যামেরা৷ শহরের ১৫০ স্কোয়ার কিলোমিটার জায়গা নজরে রাখবে এই সিসিটিভি৷ লালবাজার কন্ট্রোল রুম থেকেই শুধু নয়, সে ক্যামেরাগুলি সবসময় নজরে রাখবেন ওসি কন্ট্রোল রুম থেকে ২৫ টি ট্রাফিক গার্ডের পুলিশকর্মীরাও৷
এই গোটা পদ্ধতির নাম সিটিজ সিকিউরিটিজ সিস্টেম৷ এদিন এই পদ্ধতির উদ্বোধন করে মুখ্যমন্ত্রী বলেন, ভবিষ্যতে শহরে আরও ১০০টি ক্যামেরা বসানো হবে৷ শুধু তাই নয়, কলকাতার মতই অন্যান্য কমিশনারেটেও এই পদ্ধতি চালু করতে চান বলে এদিন জানিয়েছেন মমতা বন্দ্যোপাধ্যায়৷
পুলিশ কমিশনার সুরজিত্ কর পুরকায়স্থ বলেন, সিসিটিভি ফুটেজ হাতে থাকলে প্রাথমিক তদন্তে এগোতে অনেকটা সুবিধা হবে৷
পুলিশের দাবি, শুধু দুর্ঘটনার তদন্তের ক্ষেত্রেই এই গোপন ক্যামেরা কাজে আসবে এমনটা নয়৷ মহিলাদের নিরাপত্তার ক্ষেত্রেও কাজে লাগবে এই পদ্ধতি৷
http://www.abpananda.newsbullet.in/kolkata/59-more/43091-2013-11-01-14-18-11
শহর জুড়ে রঙিন আলো, শব্দজব্দ! শক্তি আরোধনায় মাতল রাজ্য
http://zeenews.india.com/bengali/
गंगा सहाय मीणा
दीवाली की शुरूआत का संबंध भले ही ठाकुरों से रहा हो, आज यह पूरी तरह बनियों का त्योहार हो गया है. बाज़ार में लूट मची है. किसी जमाने में बनियों का ब्राह्मणों से बहुत तगड़ा समझौता हुआ होगा कि कुछ ऐसा चक्कर चलाओ जिससे एक दिन हर गरीब-अमीर व्यक्ति कुछ न कुछ खर्च करे और धनतेरस अस्तित्व में आई होगी.
हमसे बड़ा बेवकूफ कौन जिसे इतनी साधारण सी बातें समझ में नहीं आती!
दलित जो मजदूर है, दबा-कुचला हैं, जो सर्वाधिक जातिगत अत्याचार और छुआछूत का सामना करता है, जो आज तक आरक्षण का फायदा नहीं ले सका...उसका बेटा आपके हितों के लिए मार खाए, क्यूं...??? और आपका बेटा इठलाए, मौज उडाए, आलमारी से कास्ट-सर्टीफिकेट निकाले, आरक्षण का फायदा ले और फिर जनाब पतली गली से निकल जाएं...ऐसा नहीं चलेगा...आरक्षण समाज के नाम पर मिला है, समाज के लिए काम भी करना पड़ेगा...एकता के लिए जरूरी है, पे बैक टू सोसायटी !
आईआईएमसी, आईआईटी, आईआईएम, एम्स-मेडिकल और अन्य बड़े संस्थानों में हर साल आरक्षण का फायदा लेकर पहुंचने वालों की कहानी...इसे पढ़िए, ऐसी ढ़ेरों कहानियां हैं :
(Belated discovery of her Dalit identity was also the case with Ankita Kumar, who did her diploma from IIMC in English in 2011 and now handles the social media account of an insurance company. Both her parents are Air India executives. Perhaps they did not want caste to wriggle into their middle class existence, or perhaps they were waiting to tell Ankita the truth at the time it was absolutely necessary – for instance, before she was to seek college admission that requires those applying for seats in the reserved category to submit caste certificates.
It was Ankita's cousin who told her who she was. It numbed her with fright. Discussions on caste would freeze her into silence, as these invariably reminded her about the identity she had kept secret from others. When questioned by her friends about her caste, Ankita would stonewall them, "The only thing I know is that I am from Uttar Pradesh." Ankita didn't want to own up to her identity because she was apprehensive of losing her friends, believing they wouldn't want to associate with Dalits.
So then, why did she agree to interact with me? She said her worldview had changed. "I am dating a Pandit, a 'high caste' boy according to society," she wrote to me, choosing to interact over the email as she said she would feel uncomfortable answering my questions in a face-to-face meeting. "He loves me deeply. My caste doesn't matter to him. I guess this explains my confidence," Ankita explained. For a person who hadn't glimpsed the menacing visage of caste, other than the anxiety her cousin induced in her through his revelation, it wasn't surprising she chose to join IIMC because it was what others around her too were doing - By Azaz)
Faisal Anurag
बाथे में जन संहार हुआ.उस में किसी को सजा नहीं हुयी. क्या उन दलितों की पीड़ा कोई बाटेगा ? दलित के हत्यारे कौन थे. आमिर दास आयोग ने की नेताओं के नाम बताए यह सब को पता है लेकिन उन नेताओं का दंभ देखिये अब एक नए दहशत का माहौल बनाने में कैसी भूमिका निभा रहे हैं.
Rajiv Nayan Bahuguna
मैंने आज तक कभी फेस बुक पर अपना फुल एड्रेस रिलीज़ नहीं किया . आज करता हूँ . मेरा नाम राजीव नयन बहुगुणा है . मेरा घर टिहरी कोटी कोलोनी में है . हराम जादों , अगर तुमने दीवाली पर साम्प्रदायिकता फैलाई , तो तुमसे मैं निपतूंगा
Like · · Share · 21 minutes ago ·
Soujonye Ishan Sensharma...
বাংলায় বামুনেরা কি বেশি রকমের বাঙালি(অসুর) বিদ্বেষী? তা না হলে ধর্মের নামে তারা এমন বাঙালি নিধনের ঢালাও পরিকল্পনা করলেন কেন? কেনইবা হিংসা, বিদ্বেষ, সন্ত্রাস ও নরহত্যার এমন ঢালাও প্রদর্শন টিকিয়ে রাখার জন্য সর্বশক্তি প্রয়োগ করছেন মনুবাদীরা ! দুর্গা-কালি পূজার নামে ঢালাও মদের যোগান দেওয়ার ঘোষণা এবং সরকারের প্রধানদের একে উৎসাহিত করার এমন উন্মত্ততা কিসের ইঙ্গিত বহন করে ! একি কোন বিকারগ্রস্থতা না ব্যবসায়ী ফন্দি! না আসু কোন প্রলয়ের জন্য বলির পাঁঠার মতো অসুর বাঙালীকে প্রস্তুত রাখা! যাতে সঠিক সময়ে অসুর বাঙালীর মুণ্ডু দিয়ে আবার ব্রাহ্মন্যবাদী কালীর অভিষেক হতে পারে ! এমন জিঘাংসা, এমন উন্মত্তা ও ভেদ নীতির সগর্ব আয়োজন পৃথিবীর সভ্য দেশগুলিতে খুঁজে পাওয়া দুরূহ। ঘটনা হল, বাংলায় এসব বহাল তবিয়তে চলছে, এবং একে মহিমান্বিত করার জন্য সরকারের প্রধানরা পর্যন্ত প্যান্ডেলে প্যান্ডেলে গিয়ে অসুর বাঙালী নিধনের জন্য শিরা ফুলিয়ে মন্ত্র উচ্চারণ করছেন! শপথ গ্রহণ করছেন, "আসছে বছর আবার হবে"।
Like · · Share · 4 hours ago ·
প্রিয় বন্ধু শরদিন্দু বিশ্বাস লিখেছেন
বাংলা এখন বর্বরতার আঁতুড়ঘর
আদিম হিংস্রতা, বর্বরতা ও পৈশাচিক প্রবৃত্তি নরতত্ব,সমাজতত্ব ও মনোবিজ্ঞানের একটি বিরলতম অধ্যায়। মানুষের জিনোটাইপ ও ফিনোটাইপের আড়ালে এগুলি কি ভাবে প্রচ্ছন্ন হয়ে আছে তাও গবেষণাগারের সিরিয়াস পরীক্ষা নিরীক্ষার চ্যাপ্টার। পৃথিবীর বিবর্তনের কারণেই হোক বা গতিজাড্যের কারণেই হোক হোমোইরেক্টাস যুগের আদিম বর্বর মানব প্রজাতি বাংলায় কিন্তু কেন্দ্রীভূত হয়েছে এবং যোগ্যতম প্রজাতি হিসেবে এই বিশেষ শ্রেণির মানুষেরা তাদের বিরলতম প্রতিভা এবং স্বভাবটি ধরে রেখেছে তাদের আচার, বিচার ও ধর্মীয় আচরণের মাধ্যমে। নিঃসন্দেহে একটি প্রজাতির ক্ষেত্রে এটি একটি প্রবল গুন। লক্ষণীয় বিষয় এই যে, হিংস্রতার এই প্রবল গুনটি তারা অন্য প্রজাতির মধ্যেও সঞ্চারিত করতে সক্ষম হয়েছে। ফলে প্রবৃত্তিটি মানব মজ্জায় ঢুকে গিয়ে একটি স্থায়ী স্বভাবে রূপান্তরিত হয়ে পড়েছে। বিস্তার লাভ করেছে এবং মূলাধারটি জৈব বৈচিত্রের (জাত ব্যবস্থা) আড়ালে সুরক্ষিত হয়ে আছে। এহেন দুর্লভ, বিরল ও আদিম হিংস্র বিষয়টির জন্যই সম্ভবত বাংলা একসময় গোটা পৃথিবীর গবেষণার কেন্দ্রবিন্দু হয়ে উঠতে চলেছে।
কালীপূজা এক বীভৎসতার প্রজেকশন?
হাতে ঝুলছে কাঁটা নরমুণ্ড । খড়্গ থেকে ঝরে পড়ছে টাটকা রক্ত । নরমুণ্ডুগুলি থেকে ঝরে পড়া রক্ত পান করছে পিশাচ ও শৃগাল। ইতিউতি পড়ে আছে পুরুষের মুণ্ডহীন ধড়। তিনি "কালী করাল বদনী, অসি, পাশধারিণী, বিচিত্র খট্বাঙ্গধারিণী, নরমুণ্ড ভূষিতা। তিনি ব্যাঘ্র চর্ম পরিহিতা, শুষ্ক মাংস ভৈরবীরূপিণী বিস্তৃত বদনা, লোল জিহ্বা, ভীষণা"। লকলকে জিভ দিয়ে চেটেপুটে পান করছেন সেই রক্ত! চোখ বন্ধ করে শুয়ে থাকা শিবের(ঈশ্বর) বুকের উরপ পা তুলে এই তাণ্ডব নর্তন বীভৎসতার প্রতীক নয়। অশুভ শক্তির বিরুদ্ধে শুভ শক্তির বিজয় উল্লাস।
হ্যা, এমনটাই মেনে নিতে হবে। নতুবা মান-সম্মান-মুণ্ডু সবটাই যাবে।
বিদ্যাপতি কালীকা পুরাণের থেকে উদ্ধৃতি দিয়ে এমন এক শবরোৎসবের উদাহরণ দিয়েছিলেনঃ 'কুমারী, বেশ্যা, নর্তকীদের নিয়ে শঙ্খ, তূর্য, মৃদঙ্গ, ঢোল বাজিয়ে বহুবিধ ধ্বজা বস্ত্র সহ খৈ, ফুল ছড়িয়ে, পরস্পরের প্রতি ধুলো কাঁদা ছিটিয়ে ক্রীড়া ও কৌতুক গান করতে করেতে যাত্রা করবে। ভগলিঙ্গ, যৌনউত্তেজক গান এবং তদৃশ্য বাক্যালাপ করে আনন্দ করবে, এই সময় যে ব্যক্তি অশ্লীলতা ভালোবাসেনা বা নিজেও অপরের বিরুদ্ধে এরূপ শব্দ ব্যবহার করেনা ভগবতী ক্রুদ্ধ হয়ে তাকে শাপ দেবেন এবং বিনাশ করবেন'।
বৃহদ্ধর্ম পুরাণেও এই শবরোৎসবের বর্ণনা আছেঃ
'ভগ লিঙ্গাভিধানৈশ্চ শৃঙ্গার বচনৈ স্তথা –
গানং কার্যং ভোজয়চ্চ ব্রাহ্মনাৎ স্তোষয়েস্ত্রিয়া'।
( বৃহদ্ধর্ম পুরাণ ২২ অধ্যায় ২০-৩০পৃ )
দ্বিজ রামপ্রসাদ তার গানের মধ্যে কিন্তু প্রশ্ন করে বসেছিলেন, 'বসন পর মা' বা 'শিব কেন তোর পদতলে, মুণ্ডু মালা কেন গলে'। কি জানি হয়তো এমন বীভৎসতার প্রজেকশন তিনি ও মেনে নিতে পারেন নি। আজও কালী পূজার সময় পান্নালাল ভট্টাচার্যের গলায় তার এই আকুতি আমরা শুনতে পাই। কিন্তু পান ভোজন ও আদিমতার নেশায় তার আকুতির জবাব পাওয়া যায়না। তাই মজ্জাগত স্বভাবেরও কোন পরিবর্তন লক্ষ্য করা যায়না।
কিন্তু এমন বীভৎস কালী মূর্তি কেন রচনা করলেন বাংলার পণ্ডিত প্রবরেরা! লোকায়ত কালচক্কযান বা তারার প্রকৃত অর্থ কি তারা বুঝতে পারেনি! না চৌর্য বৃত্তিকালে এগুলো বিকৃত করে তাদের আদিম বিকারগুলিকে ধর্মের মোড়কে পরিবেষণ করলেন? মদ-গাঁজা, সিদ্ধি-ভাং ও চুল্লু-তাড়ির নেশা ধরিয়ে জনগণকে বুদ করে রেখে নিজেদের সুরক্ষিত করলেন ?
ভাবীকালের গবেষকেরা নিশ্চিত এ নিয়ে বিস্তর পরীক্ষা নিরীক্ষা করবেন। ম্যান মিউজিয়ামের এমন উর্বর ক্ষেত্র হিসেবে বাংলা সেদিন হোমো- ইরেক্টাস জামানার আদিম হিংস্রতার জন্য বিশ্ব মানচিত্রে জায়গা করে নেবে। কিন্তু ততদিন তো চালিয়ে যাওয়া যেতে পারে কালিকা পুরাণের সাজেশন। তাইতো আবেগ মোহিত গলায় মুখ্যমন্ত্রীর গলায় চণ্ডী পাঠের ফোয়ারা ছোটে। কোল্লামখুল্লা প্রোমোদের জন্য মদ, গাঁজা, চুল্লুর ঢালাও জোগানের ফরমান জারি হয়। বেঁচে থাক ব্রহ্মন্যবাদ। বেঁচে থাক আদিম হিংস্রতার পৈশাচিক প্রবৃত্তি।
কালীপূজা
উইকিপিডিয়া, মুক্ত বিশ্বকোষ থেকে
কালীপূজা | |
* কলকাতার কালীপূজা | |
পালনকারী | |
ধরন | |
তারিখ | চান্দ্র পঞ্জিকা অনুযায়ী নির্ধারিত |
উদযাপন | আলোকসজ্জা ও আতসবাজি |
পালন |
কালীপূজা বা শ্যামাপূজা হিন্দু দেবী কালীর পূজাকে কেন্দ্র করে অনুষ্ঠিত একটি হিন্দু উৎসব। প্রধানত বাঙালি হিন্দুদের মধ্যে এই উৎসব উপলক্ষ্যে প্রবল উৎসাহ উদ্দীপনা লক্ষিত হয়। বাংলায়গৃহে বা মন্দিরে প্রতিষ্ঠিত কালীপ্রতিমার নিত্যপূজা হয়ে থাকে।[১] আশ্বিন মাসের অমাবস্যা তিথিতে অনুষ্ঠিত সাংবাৎসরিক দীপান্বিতা কালীপূজা বিশেষ জনপ্রিয়।[২] এই দিন আলোকসজ্জা ও আতসবাজির উৎসবের মধ্য দিয়ে সারা রাত্রিব্যাপী কালীপূজা অনুষ্ঠিত হয়। উল্লেখ্য, দীপান্বিতা কালীপূজার দিনটিতে ভারতের অন্যান্য জায়গায় দীপাবলি উৎসব পালিত হয়। সর্বভারতীয় ক্ষেত্রে এই দিন লক্ষ্মীপূজা অনুষ্ঠিত হলেও বাঙালি, অসমীয়া ও ওড়িয়ারা এই দিন কালীপূজা করে থাকেন।[২]এছাড়া মাঘ মাসের কৃষ্ণা চতুর্দশী তিথিতে রটন্তী এবং জ্যৈষ্ঠ মাসের কৃষ্ণা চতুর্দশী তিথিতে ফলহারিণী কালীপূজাও যথেষ্ট জনপ্রিয়।[১]
ইতিহাস[সম্পাদনা]
চামুণ্ডাচর্চিকা কালীর পূজা বাংলা ও বহির্বঙ্গে প্রাচীন উৎসব হলেও বর্তমান আকারে কালীপূজা আধুনিক কালের।[৩] ষোড়শ শতাব্দীতে নবদ্বীপের প্রসিদ্ধ স্মার্ত পণ্ডিত তথা নব্যস্মৃতির স্রষ্টা রঘুনন্দনদীপান্বিতা অমাবস্যায় লক্ষ্মীপূজার বিধান দিলেও, কালীপূজার উল্লেখ করেননি।[৩] ১৭৬৮ সালে রচিত কাশীনাথের কালী সপর্যাসবিধি গ্রন্থে দীপান্বিতা অমাবস্যায় কালীপূজার বিধান পাওয়া যায়। ডঃ শশীভূষণ দাশগুপ্তের মতে, "কাশীনাথ এই গ্রন্থে কালীপূজার পক্ষে যে ভাবে যুক্তিতর্কের অবতারণা করিয়াছেন, তাহা দেখিলেই মনে হয়, কালীপূজা তখনও পর্যন্ত বাঙলা দেশে সুগৃহীত ছিল না।"[৪]তবে খ্রিষ্টীয় সপ্তদশ শতাব্দীতে বাংলায় কালীপূজার প্রচলনের কিছু কিছু প্রমাণ পাওয়া গিয়েছে।[৩]
নবদ্বীপের প্রথিতযশা তান্ত্রিক কৃষ্ণানন্দ আগমবাগীশকে বাংলায় কালীমূর্তি ও কালীপূজার প্রবর্তক মনে করা হয়।[৩] তাঁর পূর্বে কালী উপাসকগণ তাম্রটাটে ইষ্টদেবীর যন্ত্র এঁকে বা খোদাই করে পূজা করতেন।[৩] পাঁচকড়ি বন্দ্যোপাধ্যায় লিখেছেন, "কৃষ্ণানন্দ আগমবাগীশ স্বয়ং কালীমূর্তি গড়িয়া পূজা করিতেন। আগমবাগীশের দৃষ্টান্ত অনুসরণ করিয়া বাঙ্গালার সাধক সমাজ অনেকদিন চলেন নাই; লোকে 'আগমবাগিশী' কাণ্ড বলিয়া তাঁহার পদ্ধতিকে উপেক্ষা করিত।"[৫] অষ্টাদশ শতাব্দীতে নদিয়াররাজা কৃষ্ণচন্দ্র রায় কালীপূজাকে জনপ্রিয় করে তোলেন।[২] এই সময় রামপ্রসাদ সেনওআগমবাগীশের পদ্ধতি অনুসারে কালীপূজা করতেন।[৩] ঊনবিংশ শতাব্দীতে কৃষ্ণচন্দ্রের পৌত্র ঈশানচন্দ্র ও বাংলার ধনী জমিদারদের পৃষ্ঠপোষকতায় কালীপূজা ব্যাপক জনপ্রিয়তা অর্জন করে।[৬] বর্তমানে কালীপূজা বাংলায় দুর্গাপূজার মতোই এক বিরাট উৎসব।[৭]
পূজানুষ্ঠান[সম্পাদনা]
কলকাতার একটি পূজামণ্ডপে পূজিত কালীঘাটের কালীমাতার প্রতিমূর্তি
দুর্গাপূজার মতো কালীপূজাতেও গৃহে বা মণ্ডপে মৃন্ময়ী প্রতিমা নির্মাণ করে পূজা করা হয়। মন্দিরে বা গৃহে প্রতিষ্ঠিত প্রস্তরময়ী বা ধাতুপ্রতিমাতেও কালীপূজা করা হয়। মধ্যরাত্রে তান্ত্রিক পদ্ধতিতে মন্ত্রোচ্চারণের মাধ্যমে পূজা অনুষ্ঠিত হয়। দেবীকে ছিন্নমস্তক সহ বলির পশুর রক্ত, মিষ্টান্ন, অন্ন বা লুচি, মাছ ও মাংস উৎসর্গ করা হয়।[৮] গৃহস্থবাড়িতে সাধারণত অতান্ত্রিক ব্রাহ্মণ্যমতে আদ্যাশক্তি কালীর রূপে কালীর পূজা হয়।[৯] দেবীর পূজায় ছাগ মেষ বা মহিষ বলির প্রথা রয়েছে।[২] সুদূর অতীতে নরবলি দিয়েও কালীপূজা হত।[১] লোকবিশ্বাস অনুযায়ী, কালী শ্মশানের অধিষ্ঠাত্রী দেবী। এই কারণেকলকাতা সহ বাংলার বিভিন্ন অঞ্চলে শ্মশানে মহাধুমধামসহ শ্মশানকালী পূজা অনুষ্ঠিত হয়।[১০]
কোনো কোনো মণ্ডপে কালী ও শিবের মূর্তির সঙ্গে সঙ্গে বাংলার দুই বিখ্যাত কালীসাধক রামকৃষ্ণ পরমহংস ও বামাখ্যাপার মূর্তিও পূজিত হয়। কোথাও কোথাও কালীর সঙ্গে সঙ্গে দশমহাবিদ্যাও পূজিত হন।[১১] দর্শনার্থীরা সারারাত ধরে মণ্ডপে মণ্ডপে ঘুরে কালীপ্রতিমা দর্শন করেন। কালীপূজার রাতে গৃহে আলোকসজ্জা সাজানো হয় এবং আতসবাজি পোড়ানো হয়।[৯]
কলকাতার কালীঘাট মন্দিরে এই দিন দেবী কালীকে লক্ষ্মীরূপে পূজা করা হয়। হাজার হাজার ভক্ত এই দিন কালীঘাট মন্দিরে ভিড় করেন এবং দেবীর উদ্দেশ্যে বলি উৎসর্গ করেন।[২][১০] কলকাতার অপর বিখ্যাত কালীমন্দির দক্ষিণেশ্বর কালীবাড়িতেও কালীপূজা উপলক্ষ্যে মহাসমারোহ হয়। এইখানেই অতীতে রামকৃষ্ণ পরমহংস কালী আরাধনা করেছিলেন। সেই কারণে এই মন্দিরে কালীপূজা দেখতে প্রচুর পুণ্যার্থী এখানে ভিড় জমান।[১২]
* | উইকিমিডিয়া কমন্সে নিচের বিষয় সংক্রান্ত মিডিয়া রয়েছে:কালীপূজা |
পাদটীকা[সম্পাদনা]
-
↑ Jump up to:১.০ ১.১ ১.২ শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ১৯৯১, পৃ. ১১৪-১৫
-
↑ Jump up to:২.০ ২.১ ২.২ ২.৩ ২.৪ McDermott and Kripal p.72
-
↑ Jump up to:৩.০ ৩.১ ৩.২ ৩.৩ ৩.৪ ৩.৫ হিন্দুদের দেবদেবী: উদ্ভব ও ক্রমবিকাশ, তৃতীয় খণ্ড, হংসনারায়ণ ভট্টাচার্য, ফার্মা কেএলএম প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ২০০৭, পৃ. ২৮৫-৮৭
-
Jump up↑ ভারতের শক্তিসাধনা ও শাক্ত সাহিত্য, শশীভূষণ দাশগুপ্ত, সাহিত্য সংসদ, কলকাতা, প্রথম সংস্করণ, পৃ. ৭৫
-
Jump up↑ "শ্রীশ্রীকালীপূজা", পাঁচকড়ি বন্দ্যোপাধ্যায়, বাঙ্গালীর পূজাপার্বণ, অমরেন্দ্রনাথ রায় সম্পাদিত, কলকাতা বিশ্ববিদ্যালয়, কলকাতা, ১৩৫৬ বঙ্গাব্দ, পৃ. ৫৭
-
Jump up↑ McDermott p. 173
-
Jump up↑ McDaniel p. 223
-
Jump up↑ McDaniel p. 234
-
↑ Jump up to:৯.০ ৯.১ McDaniel pp. 249-50, 54
-
↑ Jump up to:১০.০ ১০.১ Fuller p. 86
-
Jump up↑ Kinsley p.18
-
Jump up↑ See Harding pp. 125-6 for a detailed account of the rituals in Dakshineshwar
↑ Jump up to:১.০ ১.১ ১.২ শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ১৯৯১, পৃ. ১১৪-১৫
↑ Jump up to:২.০ ২.১ ২.২ ২.৩ ২.৪ McDermott and Kripal p.72
↑ Jump up to:৩.০ ৩.১ ৩.২ ৩.৩ ৩.৪ ৩.৫ হিন্দুদের দেবদেবী: উদ্ভব ও ক্রমবিকাশ, তৃতীয় খণ্ড, হংসনারায়ণ ভট্টাচার্য, ফার্মা কেএলএম প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ২০০৭, পৃ. ২৮৫-৮৭
Jump up↑ ভারতের শক্তিসাধনা ও শাক্ত সাহিত্য, শশীভূষণ দাশগুপ্ত, সাহিত্য সংসদ, কলকাতা, প্রথম সংস্করণ, পৃ. ৭৫
Jump up↑ "শ্রীশ্রীকালীপূজা", পাঁচকড়ি বন্দ্যোপাধ্যায়, বাঙ্গালীর পূজাপার্বণ, অমরেন্দ্রনাথ রায় সম্পাদিত, কলকাতা বিশ্ববিদ্যালয়, কলকাতা, ১৩৫৬ বঙ্গাব্দ, পৃ. ৫৭
Jump up↑ McDermott p. 173
Jump up↑ McDaniel p. 223
Jump up↑ McDaniel p. 234
↑ Jump up to:৯.০ ৯.১ McDaniel pp. 249-50, 54
↑ Jump up to:১০.০ ১০.১ Fuller p. 86
Jump up↑ Kinsley p.18
Jump up↑ See Harding pp. 125-6 for a detailed account of the rituals in Dakshineshwar
তথ্যসূত্র[সম্পাদনা]
-
[১] Encountering Kālī: in the margins, at the center, in the West By Rachel Fell McDermott, Jeffrey John Kripal
-
Offering flowers, feeding skulls: popular goddess worship in West Bengal By June McDaniel [২]
-
Kali: the black goddess of Dakshineswar By Elizabeth U. Harding [৩]
-
Mother of my heart, daughter of my dreams By Rachel Fell McDermott [৪]
-
Tantric visions of the divine feminine: the ten mahāvidyās By David R. Kinsley [৫]
-
The camphor flame: popular Hinduism and society in India By Christopher John Fuller [৬]
[১] Encountering Kālī: in the margins, at the center, in the West By Rachel Fell McDermott, Jeffrey John Kripal
Offering flowers, feeding skulls: popular goddess worship in West Bengal By June McDaniel [২]
Kali: the black goddess of Dakshineswar By Elizabeth U. Harding [৩]
Mother of my heart, daughter of my dreams By Rachel Fell McDermott [৪]
Tantric visions of the divine feminine: the ten mahāvidyās By David R. Kinsley [৫]
The camphor flame: popular Hinduism and society in India By Christopher John Fuller [৬]
কালী
উইকিপিডিয়া, মুক্ত বিশ্বকোষ থেকে
কালী | |
* কলকাতার একটি সার্বজনীন কালীপূজা মণ্ডপে পূজিত কালীমূর্তি | |
বঙ্গদেশ, মৃত্যু, ধ্বংস | |
काली | |
সংস্কৃতলিপ্যন্তর | Kālī |
সম্পর্কিত | |
আবাস | শ্মশান |
ওঁ ক্রীং কাল্যই নমঃ, ওঁ কপালিন্যই নমঃ, ওঁ হ্রিং শ্রিং ক্রিং পরমেশ্বরি কালিকে স্বাহা গায়ত্রীːকালিকায়ৈ বিদ্মহে শ্মশানবাসিন্যৈ ধীমহি। তন্নো ঘোরে প্রচোদয়াৎ। | |
অস্ত্র | খড়্গ |
সঙ্গী | |
Mount | শৃগাল (শিবা) |
কালী বা কালিকা হলেন একজন হিন্দু দেবী। তাঁর অন্য নাম শ্যামা বা আদ্যাশক্তি। প্রধানত শাক্তধর্মাবলম্বীরা কালীর পূজা করেন। তন্ত্রশাস্ত্রের মতে, তিনি দশমহাবিদ্যা নামে পরিচিত তন্ত্রমতে পূজিত প্রধান দশ জন দেবীর মধ্যে প্রথম দেবী। শাক্তরা কালীকে বিশ্বব্রহ্মাণ্ড সৃষ্টির আদিকারণ মনে করে।বাঙালি হিন্দু সমাজে দেবী কালীর মাতৃরূপের পূজা বিশেষ জনপ্রিয়।
পুরাণ ও তন্ত্র গ্রন্থগুলিতে কালীর বিভিন্ন রূপের বর্ণনা পাওয়া যায়। তবে সাধারণভাবে তাঁর মূর্তিতে চারটি হাতে খড়্গ, অসুরের ছিন্নমুণ্ড, বর ও অভয়মুদ্রা; গলায় মানুষের মুণ্ড দিয়ে গাঁথা মালা; বিরাট জিভ, কালো গায়ের রং, এলোকেশ দেখা যায় এবং তাঁকে তাঁর স্বামী শিবের বুকের উপর দাঁড়িয়ে থাকতে দেখা যায়।
ব্রহ্মযামল মতে, কালী বঙ্গদেশের অধিষ্ঠাত্রী দেবী।[১] কালীর বিভিন্ন রূপভেদ আছে। যেমন –দক্ষিণাকালী, শ্মশানকালী, ভদ্রকালী, রক্ষাকালী, গুহ্যকালী, মহাকালী, চামুণ্ডা ইত্যাদি। আবার বিভিন্ন মন্দিরে "ব্রহ্মময়ী", "ভবতারিণী", "আনন্দময়ী", "করুণাময়ী" ইত্যাদি নামে কালীপ্রতিমা প্রতিষ্ঠা ও পূজা করা হয়।[২] আশ্বিন মাসের অমাবস্যা তিথিতে দীপান্বিতা কালীপূজাবিশেষ জাঁকজমক সহকারে পালিত হয়। এছাড়া মাঘ মাসে রটন্তী কালীপূজা ও জ্যৈষ্ঠ মাসে ফলহারিণী কালীপূজাও বিশেষ জনপ্রিয়। অনেক জায়গায় প্রতি অমাবস্যা এবং প্রতি মঙ্গলবার ওশনিবারে কালীপূজা হয়ে থাকে।
কালী দেবীর উপাসকরা হিন্দু বাঙালি সমাজে বিশেষ সম্মান পেয়ে থাকেন। এঁদের মধ্যে উল্লেখযোগ্য হলেন রামকৃষ্ণ পরমহংস ও তাঁর শিষ্য স্বামী বিবেকানন্দ, রামপ্রসাদ সেন, কমলাকান্ত ভট্টাচার্য প্রমুখ। কালীকে বিষয়বস্তু করে রচিত "শ্যামাসংগীত" বাংলা সাহিত্য ও সংগীত ধারার একটি গুরুত্বপূর্ণ বর্গ। রামপ্রসাদ সেন, কমলাকান্ত ভট্টাচার্য প্রমুখ কালী সাধকেরা এবং কাজী নজরুল ইসলাম, দ্বিজেন্দ্রলাল রায় প্রমুখ বিশিষ্ট কবিরা অনেক উৎকৃষ্ট শ্যামাসংগীত লিখেছেন। "মৃত্যুরূপা কালী" হল দেবী কালীকে নিয়ে স্বামী বিবেকানন্দের লেখা একটি বিখ্যাত দীর্ঘকবিতা। ভগিনী নিবেদিতা মাতৃরূপা কালী নামে একটি কালী-বিষয়ক বইও রচনা করেছিলেন।
পশ্চিমবঙ্গের রাজধানী কলকাতায় অনেক কালীমন্দির আছে। তাই ভারতের অন্যান্য অঞ্চলে কালীকে "কলকাত্তাওয়ালি" (কলকাতানিবাসী) বলা হয়। কলকাতার সবচেয়ে বিখ্যাত কালীমন্দিরটি হলকালীঘাট মন্দির। এটি একটি সতীপীঠ। এছাড়া দক্ষিণেশ্বর কালীবাড়ি, আদ্যাপীঠ, ঠনঠনিয়া কালীবাড়ি, ফিরিঙ্গি কালীবাড়ি ইত্যাদি কলকাতা অঞ্চলের বিখ্যাত কয়েকটি কালী মন্দির। এছাড়ালালনার সিদ্ধেশ্বরী কালীবাড়ি, দক্ষিণ চব্বিশ পরগনার ময়দা কালীবাড়ি, উত্তর চব্বিশ পরগনারহালিশহরের রামপ্রসাদী কালী মন্দির ইত্যাদি পশ্চিমবঙ্গের বিখ্যাত কয়েকটি কালীমন্দির। বাংলাদেশেররাজধানী ঢাকা শহরের অধুনা ধ্বংসপ্রাপ্ত রমনা কালীমন্দির ছিল খুবই প্রাচীন একটি কালীমন্দির।ভারতের রাজধানী নতুন দিল্লির নতুন দিল্লি কালীবাড়ি একটি ঐতিহ্যপূর্ণ কালীমন্দির।
পরিচ্ছেদসমূহ
ব্যুৎপত্তি[সম্পাদনা]
'কালী' শব্দটি 'কাল' শব্দের স্ত্রীলিঙ্গ রূপ, যার অর্থ "কৃষ্ণ, ঘোর বর্ণ" (পাণিনি ৪।১।৪২)। মহাভারত অনুসারে, এটি দুর্গার একটি রূপ (মহাভারত, ৪।১৯৫)। আবার হরিবংশ গ্রন্থে কালী একটি দানবীর নাম (হরিবংশ, ১১৫৫২)।
'কাল', যার অর্থ 'নির্ধারিত সময়', তা প্রসঙ্গক্রমে 'মৃত্যু' অর্থেও ব্যবহৃত হয়। এর সমোচ্চারিত শব্দ 'কালো'র সঙ্গে এর কোনও প্রত্যক্ষ সম্পর্ক নেই। কিন্তু লৌকিক ব্যুৎপত্তির দৌলতে এরা পরস্পর সংযুক্ত হয়ে গেছে। মহাভারত-এ এক দেবীর উল্লেখ আছে যিনি হত যোদ্ধা ও পশুদের আত্মাকে বহন করেন। তাঁর নাম কালরাত্রি বা কালী। সংস্কৃত সাহিত্যের বিশিষ্ট গবেষক টমাস কবার্নের মতে, এই শব্দটি নাম হিসাবে ব্যবহার করা হতে পারে আবার 'কৃষ্ণবর্ণা' বোঝাতেও ব্যবহার করা হয়ে থাকতে পারে। [৩]
রূপভেদ[সম্পাদনা]
তন্ত্র ও পুরাণে দেবী কালীর একাধিক রূপভেদের কথা পাওয়া যায়। তোড়ল তন্ত্র মতে কালী অষ্টধা বা অষ্টবিধ। যথা – দক্ষিণাকালী, সিদ্ধকালী, গুহ্যকালী, মহাকালী, ভদ্রকালী, চামুণ্ডাকালী, শ্মশানকালী ও শ্রীকালী। মহাকাল সংহিতা অনুসারে আবার কালী নববিধা। এই তালিকা থেকেই পাওয়া যায় কালকালী, কামকলাকালী, ধনদাকালী ও চণ্ডিকাকালীর নাম।
অষ্টধা কালী[সম্পাদনা]
দক্ষিণাকালী[সম্পাদনা]
মূল নিবন্ধ: দক্ষিণাকালী
দক্ষিণাকালীর কালীর সর্বাপেক্ষা প্রসিদ্ধ মূর্তি। ইনি প্রচলিত ভাষায় শ্যামাকালী নামে আখ্যাতা। দক্ষিণাকালী করালবদনা, ঘোরা, মুক্তকেশী, চতুর্ভূজা এবং মুণ্ডমালাবিভূষিতা। তাঁর বামকরযুগলে সদ্যছিন্ন নরমুণ্ড ও খড়্গ; দক্ষিণকরযুলে বর ও অভয় মুদ্রা। তাঁর গাত্রবর্ণ মহামেঘের ন্যায়; তিনি দিগম্বরী। তাঁর গলায় মুণ্ডমালার হার; কর্ণে দুই ভয়ানক শবরূপী কর্ণাবতংস; কটিদেশে নরহস্তের কটিবাস। তাঁর দন্ত ভয়ানক; তাঁর স্তনযুগল উন্নত; তিনি ত্রিনয়নী এবং মহাদেব শিবের বুকে দণ্ডায়মান। তাঁর দক্ষিণপদ শিবের বক্ষে স্থাপিত। তিনি মহাভীমা, হাস্যযুক্তা ও মুহুর্মুহু রক্তপানকারিনী।[৪]
তাত্ত্বিকের তাঁর নামের যে ব্যাখ্যা দেন তা নিম্নরূপ: দক্ষিণদিকের অধিপতি যম যে কালীর ভয়ে পলায়ন করেন, তাঁর নাম দক্ষিণাকালী। তাঁর পূজা করলে ত্রিবর্ণা তো বটেই সর্বোপরি সর্বশ্রেষ্ঠ ফলও দক্ষিণাস্বরূপ পাওয়া যায়।[৫]
সিদ্ধকালী[সম্পাদনা]
সিদ্ধকালী কালীর একটি অখ্যাত রূপ। গৃহস্থের বাড়িতে সিদ্ধকালীর পূজা হয় না; তিনি মূলত সিদ্ধ সাধকদের ধ্যান আরাধ্যা। কালীতন্ত্র-এ তাঁকে দ্বিভূজা রূপে কল্পনা করা হয়েছে। অন্যত্র তিনি ব্রহ্মরূপা ভুবনেশ্বরী। তাঁর মূর্তিটি নিম্নরূপ: দক্ষিণহস্তে ধৃত খড়্গের আঘাতে চন্দ্রমণ্ডল থেকে নিঃসৃত অমৃত রসে প্লাবিত হয়ে বামহস্তে ধৃত একটি কপালপাত্রে সেই অমৃত ধারণ করে পরমানন্দে পানরতা। তিনি সালংকারা। তাঁর বামপদ শিবের বুকে ও বামপদ শিবের উরুদ্বয়ের মধ্যস্থলে সংস্থাপিত।[৫]
গুহ্যকালী[সম্পাদনা]
মূল নিবন্ধ: গুহ্যকালী
গুহ্যকালী বা আকালী, দক্ষিণ কলকাতার একটি কালীপূজা মণ্ডপে, ২০০৮
গুহ্যকালী বা আকালীর রূপ গৃহস্থের নিকট অপ্রকাশ্য। তিনি সাধকদের আরাধ্য। তাঁর রূপকল্প ভয়ংকর: গুহ্যকালীর গাত্রবর্ণ গাঢ় মেঘের ন্যায়; তিনি লোলজিহ্বা ও দ্বিভূজা; গলায় পঞ্চাশটি নরমুণ্ডের মালা; কটিতে ক্ষুদ্র কৃষ্ণবস্ত্র; স্কন্ধে নাগযজ্ঞোপবীত; মস্তকে জটা ও অর্ধচন্দ্র; কর্ণে শবদেহরূপী অলংকার; হাস্যযুক্তা, চতুর্দিকে নাগফণা দ্বারা বেষ্টিতা ও নাগাসনে উপবিষ্টা; বামকঙ্কণে তক্ষক সর্পরাজ ও দক্ষিণকঙ্কণে অনন্ত নাগরাজ; বামে বৎসরূপী শিব; তিনি নবরত্নভূষিতা; নারদাদিঋষিগণ শিবমোহিনী গুহ্যকালীর সেবা করেন; তিনি অট্টহাস্যকারিণী, মহাভীমা ও সাধকের অভিষ্ট ফলপ্রদায়িনী। গুহ্যকালী নিয়মিত শবমাংস ভক্ষণে অভ্যস্তা।[৬]
মুর্শিদাবাদ-বীরভূম সীমান্তবর্তী আকালীপুর গ্রামে মহারাজা নন্দকুমার প্রতিষ্ঠিত গুহ্যকালীর মন্দিরের কথা জানা যায়। মহাকাল সংহিতা মতে, নববিধা কালীর মধ্যে গুহ্যকালীই সর্বপ্রধানা। তাঁর মন্ত্র বহু – প্রায় আঠারো প্রকারের।[৫]
মহাকালী[সম্পাদনা]
মূল নিবন্ধ: মহাকালী
তন্ত্রসার গ্রন্থমতে, মহাকালী পঞ্চবক্ত্রা ও পঞ্চদশনয়না। তবে শ্রীশ্রীচণ্ডী-তে তাঁকে আদ্যাশক্তি, দশবক্ত্রা, দশভূজা, দশপাদা ও ত্রিংশল্লোচনা রূপে কল্পনা করা হয়েছে। তাঁর দশ হাতে রয়েছে যথাক্রমে খড়্গ,চক্র,গদা,ধনুক,বাণ,পরিঘ,শূল,ভূসুণ্ডি,নরমুণ্ড ও শঙ্খ। ইনিও ভৈরবী; তবে গুহ্যকালীর সঙ্গে এঁর পার্থক্য রয়েছে। ইনি সাধনপর্বে ভক্তকে উৎকট ভীতি প্রদর্শন করলেও অন্তে তাঁকে রূপ, সৌভাগ্য, কান্তি ও শ্রী প্রদান করেন।
মার্কণ্ডেয় চণ্ডীর প্রথম চরিত্র শ্রী শ্রী মহাকালীর ধ্যানমন্ত্র এইরূপ
ওঁ খড়্গং চক্রগদেষুচাপপরিঘান শূলং ভুসূণ্ডিং শিরঃ| শঙ্খং সন্দধতীং করৈস্ত্রিনয়নাং সর্বাঙ্গভূষাবৃতাম্ || নীলাশ্মদ্যুতিমাস্যপাদদশকাং সেবে মহাকালিকাম্ | যামস্তৌচ্ছয়িতে হরৌ কমলজো হন্তুং মধুং কৈটভম্ ||
ভদ্রকালী[সম্পাদনা]
মূল নিবন্ধ: ভদ্রকালী
ভদ্রকালী, ১৬৭৫ খ্রিস্টাব্দ।
চিত্রকলা; বাসোহলি, হিমাচল প্রদেশ, ভারত,
বর্তমানে এলএসিএমএ-তে রক্ষিত
ভদ্রকালী নামের ভদ্র শব্দের অর্থ কল্যাণ এবং কাল শব্দের অর্থ শেষ সময়। যিনি মরণকালে জীবের মঙ্গলবিধান করেন, তিনিই ভদ্রকালী। ভদ্রকালী নামটি অবশ্য শাস্ত্রে দুর্গা ও সরস্বতী দেবীর অপর নাম রূপেও ব্যবহৃত হয়েছে। কালিকাপুরাণ মতে, ভদ্রকালীর গাত্রবর্ণ অতসীপুষ্পের ন্যায়, মাথায় জটাজুট, ললাটে অর্ধচন্দ্র ও গলদেশে কণ্ঠহার। তন্ত্রমতে অবশ্য তিনি মসীর ন্যায় কৃষ্ণবর্ণা, কোটরাক্ষী, সর্বদা ক্ষুধিতা, মুক্তকেশী; তিনি জগৎকে গ্রাস করছেন; তাঁর হাতে জ্বলন্ত অগ্নিশিখা ও পাশযুগ্ম।
গ্রামবাংলায় অনেক স্থলে ভদ্রকালীর বিগ্রহ নিষ্ঠাসহকারে পূজিত হয়। এই দেবীরও একাধিক মন্ত্র রয়েছে। তবে প্রসিদ্ধ চতুর্দশাক্ষর মন্ত্রটি হল – 'হৌঁ কালি মহাকালী কিলি কিলি ফট স্বাহা'।[৫]
চামুণ্ডাকালী[সম্পাদনা]
চামুণ্ডা কালী, দক্ষিণ কলকাতার আলিপুর-চেতলা অঞ্চলের আলিপুর সাধারণ সমিতির মণ্ডপে, ২০০৮।
মূল নিবন্ধ: চামুণ্ডা
চামুণ্ডাকালী বা চামুণ্ডা ভক্ত ও সাধকদের কাছে কালীর একটি প্রসিদ্ধ রূপ। দেবীভাগবত পুরাণ ও মার্কণ্ডেয় পুরাণ-এর বর্ণনা অনুযায়ী, চামুণ্ডা চণ্ড ও মুণ্ড নামক দুই অসুর বধের নিমিত্ত দেবী দুর্গার ভ্রুকুটিকুটিল ললাট থেকে উৎপন্ন হন। তাঁর গাত্রবর্ণ নীল পদ্মের ন্যায়, হস্তে অস্ত্র, দণ্ড ও চন্দ্রহাস; পরিধানে ব্যাঘ্রচর্ম; অস্তিচর্মসার শরীর ও বিকট দাঁত।দুর্গাপূজায় মহাষ্টমী ও মহানবমীর সন্ধিক্ষণে আয়োজিত সন্ধিপূজার সময় দেবী চামুণ্ডার পূজা হয়। পূজক অশুভ শত্রুবিনাশের জন্য শক্তি প্রার্থনা করে তাঁর পূজা করেন। অগ্নিপুরাণ-এ আট প্রকার চামুণ্ডার কথা বলা হয়েছে। তাঁর মন্ত্রও অনেক। বৃহন্নন্দীকেশ্বর পুরাণে বর্ণিত চামুণ্ডা দেবীর ধ্যানমন্ত্রটি এইরূপ - নীলোৎপলদলশ্যামা চতুর্বাহুসমন্বিতা । খট্বাঙ্গ চন্দ্রহাসঞ্চ বিভ্রতী দক্ষিণে করে ।। বামে চর্ম্ম চ পাশঞ্চ ঊর্দ্ধাধোভাগতঃ পুনঃ । দধতী মুণ্ডমালাঞ্চ ব্যাঘ্রচর্মধরাম্বরা ।। কৃশোদরী দীর্ঘদংষ্ট্রা অতিদীর্ঘাতিভীষণা । লোলজিহ্বা নিমগ্নারক্তনয়নারাবভীষণা ।। কবন্ধবাহনাসীনা বিস্তারা শ্রবণাননা । এষা কালী সমাখ্যাতা চামুণ্ডা ইতি কথ্যতে ।।[৫]
শ্মশানকালী[সম্পাদনা]
মূল নিবন্ধ: শ্মশানকালী
কালীর "শ্মশানকালী" রূপটির পূজা সাধারণত শ্মশানঘাটে হয়ে থাকে। এই দেবীকে শ্মশানের অধিষ্ঠাত্রী দেবী মনে করা হয়। তন্ত্রসাধক কৃষ্ণানন্দ আগমবাগীশ রচিত বৃহৎ তন্ত্রসার অনুসারে এই দেবীর ধ্যানসম্মত মূর্তিটি নিম্নরূপ:[৭]
শ্মশানকালী দেবীর গায়ের রং কাজলের মতো কালো। তিনি সর্বদা বাস করেন। তাঁর চোখদুটি রক্তপিঙ্গল বর্ণের। চুলগুলি আলুলায়িত, দেহটি শুকনো ও ভয়ংকর, বাঁ-হাতে মদ ও মাংসে ভরা পানপাত্র, ডান হাতে সদ্য কাটা মানুষের মাথা। দেবী হাস্যমুখে আমমাংস খাচ্ছেন। তাঁর গায়ে নানারকম অলংকার থাকলেও, তিনি উলঙ্গ এবং মদ্যপান করে উন্মত্ত হয়ে উঠেছেন।
শ্মশানকালীর আরেকটি রূপে তাঁর বাঁ-পাটি শিবের বুকে স্থাপিত এবং ডান হাতে ধরা খড়্গ। এই রূপটিও ভয়ংকর রূপ।[৮][৯] তন্ত্রসাধকেরা মনে করেন, শ্মশানে শ্মশানকালীর পূজা করলে শীঘ্র সিদ্ধ হওয়া যায়। রামকৃষ্ণ পরমহংসের স্ত্রী সারদা দেবী দক্ষিণেশ্বরে শ্মশানকালীর পূজা করেছিলেন।[১০]
কাপালিকরা শবসাধনার সময় কালীর শ্মশানকালী রূপটির ধ্যান করতেন। সেকালের ডাকাতেরা ডাকাতি করতে যাবার আগে শ্মশানঘাটে নরবলি দিয়ে শ্মশানকালীর পূজা করতেন। পশ্চিমবঙ্গের অনেক প্রাচীন শ্মশানঘাটে এখনও শ্মশানকালীর পূজা হয়। তবে গৃহস্থবাড়িতে বা পাড়ায় সর্বজনীনভাবে শ্মশানকালীর পূজা হয় না। রামকৃষ্ণ পরমহংস বলেছিলেন, শ্মশানকালীর ছবিও গৃহস্থের বাড়িতে রাখা উচিত নয়।[১১]
শ্রীকালী[সম্পাদনা]
গুণ ও কর্ম অনুসারে শ্রীকালী কালীর আরেক রূপ। অনেকের মতে এই রূপে তিনি দারুক নামক অসুর নাশ করেন। ইনি মহাদেবের শরীরে প্রবেশ করে তাঁর কণ্ঠের বিষে কৃষ্ণবর্ণা হয়েছেন। শিবের ন্যায় ইনিও ত্রিশূলধারিনী ও সর্পযুক্তা।
কালীপূজা[সম্পাদনা]
মূল নিবন্ধ: কালীপূজা
গৃহে বা মন্দিরে প্রতিষ্ঠিত কালীপ্রতিমার নিত্যপূজা হয়। এছাড়াও বিশেষ বিশেষ তিথিতেও কালীপূজার বিধান আছে। আশ্বিন মাসের অমাবস্যা তিথিতে দীপান্বিতা কালীপূজা, মাঘ মাসের কৃষ্ণা চতুর্দশীতে রটন্তী কালীপূজা এবং জ্যৈষ্ঠ মাসের কৃষ্ণা চতুর্দশীতে ফলহারিনী কালীপূজা বিশেষভাবে উল্লেখযোগ্য। এছাড়াও শনি ও মঙ্গলবারে, অন্যান্য অমাবস্যায় বা বিশেষ কোনো কামনাপূরণের উদ্দেশ্যেও কালীর পূজা করা হয়। দীপান্বিতা কালীপূজা বিশেষ জনপ্রিয়। এই উৎসব সাড়ম্বরে আলোকসজ্জা সহকারে পালিত হয়। তবে এই পূজা প্রাচীন নয়। ১৭৭৭ খ্রিস্টাব্দে কাশীনাথ রচিত শ্যামাসপর্যাবিধি গ্রন্থে এই পূজার সর্বপ্রথম উল্লেখ পাওয়া যায়।[১২] কথিত আছে, নদিয়ার রাজা কৃষ্ণচন্দ্র রায় অষ্টাদশ শতকে তাঁর সকল প্রজাকে শাস্তির ভীতিপ্রদর্শন করে কালীপূজা করতে বাধ্য করেন। সেই থেকে নদিয়ায় কালীপূজা বিশেষ জনপ্রিয়তা লাভ করে। কৃষ্ণচন্দ্রের পৌত্র ঈশানচন্দ্রও বহু অর্থব্যয় করে কালীপূজার আয়োজন করতেন।[১৩]
মন্দির[সম্পাদনা]
নতুন দিল্লি কালীবাড়ি[সম্পাদনা]
নতুন দিল্লি কালীবাড়ি হল ভারতের রাজধানী নতুন দিল্লি শহরের একটি হিন্দু মন্দির। এটি হিন্দু দেবী কালীর মন্দির এবং দিল্লির বাঙালিদের একটি সাংস্কৃতিক কেন্দ্র। মন্দিরটি স্থাপিত হয়েছিল ১৯৩০-এর দশকে। এটি মন্দির মার্গে লক্ষ্মীনারায়ণ মন্দিরের (বিড়লা মন্দির) কাছে অবস্থিত। ১৯৩০-এর দশকে দিল্লিতে বাঙালি জনসংখ্যা বৃদ্ধি পাওয়ায় একটি কালীমন্দির স্থাপনের পরিকল্পনা করা হয়। কালীঘাট মন্দিরের আদলে একটি মন্দির নির্মিত হয়। ১৯৩৫ সালে মন্দির কমিটি গঠিত হয়। সুভাষচন্দ্র বসু ছিলেন এই কমিটির প্রথম সভাপতি।[১৪] স্যার মন্মথনাথ মুখোপাধ্যায় প্রথম মন্দির ভবনটি উদ্বোধন করেছিলেন। এই মন্দিরে একটি দুর্গাপূজা অনুষ্ঠিত হয়।
বাংলা ভাষার উইকিসোর্স বাউইকিসংকলনে এই নিবন্ধ বা অনুচ্ছেদ সম্পর্কিত মৌলিক রচনা রয়েছে:
চিত্রমালা[সম্পাদনা]
-
কালীঘাটের কালীর প্রতিমূর্তি; দেবী লোলজিহ্বা, চতুর্ভূজা ও নকুলেশ্বর নামের শিবের উপরে স্থিত। মূল মূর্তির জিভটি আরও দীর্ঘ ও স্বর্ণনির্মিত। দক্ষিণ কলকাতার বেহালার একটি কালীপূজা মণ্ডপ, ২০০৮।
-
-
আদি কালী, কালীর দ্বিভূজা মূর্তি। গলায় মুণ্ডমালা অনুপস্থিত, দুই হাতে বর ও অভয়। শিবের উপর দণ্ডায়মান। দক্ষিণ কলকাতার চেতলা অঞ্চলের পিয়ারিমোহন রায় রোডস্থ ২৪ পল্লি চেতলা সর্বসাধারণের কালীপূজা কমিটির মণ্ডপে, ২০০৮।
-
-
একটি কালীপূজা মণ্ডপ, বেহালা, দক্ষিণ কলকাতা। চিনের তাং শিয়াং প্যাগোডার আদলে নির্মিত। কিন্তু সম্পূর্ণ বাংলা মণ্ডপসজ্জা পদ্ধতিতে সজ্জিত।
-
-
দুর্গাকালী, দুর্গা ও কালীর যৌথ রূপ। দেবীর অর্ধাংশে দুর্গা ও অর্ধাংশে কালী। দুর্গার অংশটি পঞ্চভূজা ও কালীর অংশটি দ্বিভূজা। সিংহপৃষ্ঠে আরোহণ করে মহিষাসুরবধরত। পাশে শিব দণ্ডায়মান। দক্ষিণ কলকাতার চেতলার একটি কালীপূজা মণ্ডপ, ২০০৮।
-
-
হাজার হাত কালী। দেবী সিংহবাহনা ও নাগশোভিতা। এক পা পদ্মে, অপর পা সিংহপৃষ্ঠে। দুই হাতে ত্রিশূল ও খড়্গ। পশ্চাতে ৯৯৮টি ছোট হাত। পাশে শিব উপবিষ্ট। দক্ষিণ কলকাতার চেতলার একটি পূজামণ্ডপ, ২০০৮।
কালীঘাটের কালীর প্রতিমূর্তি; দেবী লোলজিহ্বা, চতুর্ভূজা ও নকুলেশ্বর নামের শিবের উপরে স্থিত। মূল মূর্তির জিভটি আরও দীর্ঘ ও স্বর্ণনির্মিত। দক্ষিণ কলকাতার বেহালার একটি কালীপূজা মণ্ডপ, ২০০৮।
আদি কালী, কালীর দ্বিভূজা মূর্তি। গলায় মুণ্ডমালা অনুপস্থিত, দুই হাতে বর ও অভয়। শিবের উপর দণ্ডায়মান। দক্ষিণ কলকাতার চেতলা অঞ্চলের পিয়ারিমোহন রায় রোডস্থ ২৪ পল্লি চেতলা সর্বসাধারণের কালীপূজা কমিটির মণ্ডপে, ২০০৮।
একটি কালীপূজা মণ্ডপ, বেহালা, দক্ষিণ কলকাতা। চিনের তাং শিয়াং প্যাগোডার আদলে নির্মিত। কিন্তু সম্পূর্ণ বাংলা মণ্ডপসজ্জা পদ্ধতিতে সজ্জিত।
দুর্গাকালী, দুর্গা ও কালীর যৌথ রূপ। দেবীর অর্ধাংশে দুর্গা ও অর্ধাংশে কালী। দুর্গার অংশটি পঞ্চভূজা ও কালীর অংশটি দ্বিভূজা। সিংহপৃষ্ঠে আরোহণ করে মহিষাসুরবধরত। পাশে শিব দণ্ডায়মান। দক্ষিণ কলকাতার চেতলার একটি কালীপূজা মণ্ডপ, ২০০৮।
হাজার হাত কালী। দেবী সিংহবাহনা ও নাগশোভিতা। এক পা পদ্মে, অপর পা সিংহপৃষ্ঠে। দুই হাতে ত্রিশূল ও খড়্গ। পশ্চাতে ৯৯৮টি ছোট হাত। পাশে শিব উপবিষ্ট। দক্ষিণ কলকাতার চেতলার একটি পূজামণ্ডপ, ২০০৮।
আরও দেখুন[সম্পাদনা]
পাদটীকা[সম্পাদনা]
-
Jump up↑ "'ব্রহ্মযামলে' আছে – কালিকা বঙ্গদেশে চ; অর্থাৎ, বঙ্গে দেবী কালিকা বা কালী নামে পূজিতা হন।" (সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়, শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ১৯৯১, পৃ. ১১০)
-
Jump up↑ সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়, শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ১৯৯১, পৃ. ১১০
-
Jump up↑ Mahābhārata 10.8.64-69, cited in Coburn, Thomas; Devī-Māhātmya — Crystallization of the Goddess Tradition; Motilal Banarsidass, Delhi, 1984; ISBN 81-208-0557-7 pages 111–112.
-
Jump up↑ দক্ষিণাকালীর ধ্যান, স্তবকবচমালা ও ধ্যানমালা, পণ্ডিত বামদেব ভট্টাচার্য সম্পাদিত, অক্ষয় লাইব্রেরি, কলকাতা, পৃষ্ঠা ২৮৮
-
↑ Jump up to:৫.০ ৫.১ ৫.২ ৫.৩ ৫.৪ ৫.৫ কোন কালী কেমন, কার পুজোয় কী ফল; সঞ্জয় ভুঁইয়া; বর্তমান রবিবার, ১১ অক্টোবর, ২০০৯
-
Jump up↑ গুহ্যকালীর ধ্যান, স্তবকবচমালা ও ধ্যানমালা, পণ্ডিত বামদেব ভট্টাচার্য সম্পাদিত, অক্ষয় লাইব্রেরি, কলকাতা, পৃষ্ঠা ২৮৮
-
Jump up↑ বৃহৎ তন্ত্রসার, প্রথম খণ্ড, কৃষ্ণানন্দ আগমবাগীশ, বসুমতী সাহিত্য মন্দির, কলকাতা, ১৯৯৭, পৃ. ৩৭৪
-
Jump up↑ উদ্ধৃতি ত্রুটি: অবৈধ <ref> ট্যাগ; X নামের ref গুলির জন্য কোন টেক্সট প্রদান করা হয়নি
-
Jump up↑ উদ্ধৃতি ত্রুটি: অবৈধ <ref> ট্যাগ; Z নামের ref গুলির জন্য কোন টেক্সট প্রদান করা হয়নি
-
-
Jump up↑ শ্রীশ্রীদুর্গা: তত্ত্বে ও কাহিনীতে, স্বামী অচ্যুতানন্দ, দেব সাহিত্য কুটীর প্রাঃ লিঃ, ২০০৭, পৃ. ১১৩
-
Jump up↑ "স্বর্গত চিন্তাহরণ চক্রবর্তী মহাশয় লিখিয়াছেন যে ১৬৯৯ শকাব্দে (=১৭৭৭ খৃষ্টাব্দে) কাশীনাথ-রচিত 'শ্যামাসপর্যাবিধি'তে এই পূজার সর্বপ্রথম উল্লেখ আছে। এই উপলক্ষ্যে পূজার প্রমাণস্বরূপ উক্ত গ্রন্থে পুরাণ ও তন্ত্রের বচন উদ্ধৃত হইয়াছে।" (সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়,শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ১৯৯১, পৃ. ১১৪)
-
Jump up↑ সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়, শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ১৯৯১, পৃ. ১১৪-১৫
-
Jump up↑ "'ব্রহ্মযামলে' আছে – কালিকা বঙ্গদেশে চ; অর্থাৎ, বঙ্গে দেবী কালিকা বা কালী নামে পূজিতা হন।" (সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়, শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ১৯৯১, পৃ. ১১০)
Jump up↑ সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়, শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ১৯৯১, পৃ. ১১০
Jump up↑ Mahābhārata 10.8.64-69, cited in Coburn, Thomas; Devī-Māhātmya — Crystallization of the Goddess Tradition; Motilal Banarsidass, Delhi, 1984; ISBN 81-208-0557-7 pages 111–112.
Jump up↑ দক্ষিণাকালীর ধ্যান, স্তবকবচমালা ও ধ্যানমালা, পণ্ডিত বামদেব ভট্টাচার্য সম্পাদিত, অক্ষয় লাইব্রেরি, কলকাতা, পৃষ্ঠা ২৮৮
↑ Jump up to:৫.০ ৫.১ ৫.২ ৫.৩ ৫.৪ ৫.৫ কোন কালী কেমন, কার পুজোয় কী ফল; সঞ্জয় ভুঁইয়া; বর্তমান রবিবার, ১১ অক্টোবর, ২০০৯
Jump up↑ গুহ্যকালীর ধ্যান, স্তবকবচমালা ও ধ্যানমালা, পণ্ডিত বামদেব ভট্টাচার্য সম্পাদিত, অক্ষয় লাইব্রেরি, কলকাতা, পৃষ্ঠা ২৮৮
Jump up↑ বৃহৎ তন্ত্রসার, প্রথম খণ্ড, কৃষ্ণানন্দ আগমবাগীশ, বসুমতী সাহিত্য মন্দির, কলকাতা, ১৯৯৭, পৃ. ৩৭৪
Jump up↑ উদ্ধৃতি ত্রুটি: অবৈধ <ref> ট্যাগ; X নামের ref গুলির জন্য কোন টেক্সট প্রদান করা হয়নি
Jump up↑ উদ্ধৃতি ত্রুটি: অবৈধ <ref> ট্যাগ; Z নামের ref গুলির জন্য কোন টেক্সট প্রদান করা হয়নি
Jump up↑ শ্রীশ্রীদুর্গা: তত্ত্বে ও কাহিনীতে, স্বামী অচ্যুতানন্দ, দেব সাহিত্য কুটীর প্রাঃ লিঃ, ২০০৭, পৃ. ১১৩
Jump up↑ "স্বর্গত চিন্তাহরণ চক্রবর্তী মহাশয় লিখিয়াছেন যে ১৬৯৯ শকাব্দে (=১৭৭৭ খৃষ্টাব্দে) কাশীনাথ-রচিত 'শ্যামাসপর্যাবিধি'তে এই পূজার সর্বপ্রথম উল্লেখ আছে। এই উপলক্ষ্যে পূজার প্রমাণস্বরূপ উক্ত গ্রন্থে পুরাণ ও তন্ত্রের বচন উদ্ধৃত হইয়াছে।" (সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়,শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ১৯৯১, পৃ. ১১৪)
Jump up↑ সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়, শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাঃ লিঃ, কলকাতা, ১৯৯১, পৃ. ১১৪-১৫
আরও পড়ুন[সম্পাদনা]
বাংলা
-
সুরেশচন্দ্র বন্দ্যোপাধ্যায়, শক্তিরঙ্গ বঙ্গভূমি, আনন্দ পাবলিশার্স প্রাইভেট লিমিটেড, কলকাতা, ১৯৯১
ইংরেজি
-
Shanmukha Anantha Natha and Shri Ma Kristina Baird, Divine Initiation Shri Kali Publications (2001) ISBN 0-9582324-0-7 - Has a chapter on Mahadevi with a commentary on the Devi Mahatmyam from the Markandeya Purana.
-
Swami Jagadiswarananda, tr., Devi Mahatmyam Chennai, Ramakrishna Math. ISBN 81-7120-139-3
-
Elizabeth Usha Harding, Kali: The Black Goddess of Dakshineswar ISBN 0-89254-025-7
-
Devadatta Kali, In Praise of The Goddess, The Devimahatmyam and Its Meaning ISBN 0-89254-080-X
-
David Kinsley, Hindu Goddesses: Vision of the Divine Feminine in the Hindu Religious Traditions ISBN 81-208-0379-5
-
Rachel Fell McDermott, Encountering Kali: In the Margins, at the Center, in the West (ISBN 0-520-23240-2)
-
Ajit Mookerjee, Kali: The Feminine Force ISBN 0-89281-212-5
-
Swami Satyananda Saraswati, Kali Puja ISBN 1-887472-64-9
-
Ramprasad Sen, Grace and Mercy in Her Wild Hair: Selected Poems to the Mother Goddess ISBN 0-934252-94-7
-
Sir John Woodroffe (aka Arthur Avalon)Hymns to the Goddess and Hymn to Kali ISBN 81-85988-16-1
-
Robert E. Svoboda, Aghora, at the left hand of God ISBN 0-914732-21-8
-
Lex Hixon, Mother of the Universe: Visions of the Goddess and Tantric Hymns of Enlightenment ISBN 0-8356-0702-X
-
Neela Bhattacharya Saxena, In the Beginning is Desire: Tracing Kali's Footprints in Indian Literature ISBN 81-87981-61-X
-
The Goddess Kali of Kolkata (ISBN 81-7476-514-X) by Shoma A. Chatterji
-
Encountering The Goddess: A Translation of the Devi-Mahatmya and a Study of Its Interpretation (ISBN 0-7914-0446-3) by Thomas B. Coburn
-
Dictionary of Hindu Lore and Legend (ISBN 0-500-51088-1) by Anna Dallapiccola
-
Kali: The Black Goddess of Dakshineswar (ISBN 0-89254-025-7) by Elizabeth Usha Harding
-
In Praise of The Goddess: The Devimahatmyam and Its Meaning (ISBN 0-89254-080-X) by Devadatta Kali
-
Hindu Goddesses: Vision of the Divine Feminine in the Hindu Religious Traditions (ISBN 81-208-0379-5) by David Kinsley
-
Tantric Visions of the Divine Feminine (ISBN 0-520-20499-9) by David Kinsley
-
Offering Flowers, Feeding Skulls: Popular Goddess Worship in West Bengal (ISBN 0-19-516791-0) by June McDaniel
-
Encountering Kali: In the Margins, at the Center, in the West (ISBN 0-520-23240-2) by Rachel Fell McDermott
-
Mother of My Heart, Daughter of My Dreams: Kali and Uma in the Devotional Poetry of Bengal (ISBN 0-19-513435-4) by Rachel Fell McDermott
-
Kali: The Feminine Force (ISBN 0-89281-212-5) by Ajit Mookerjee
-
Seeking Mahadevi: Constructing the Identities of the Hindu Great Goddess (ISBN 0-7914-5008-2) Edited by Tracy Pintchman
-
The Rise of the Goddess in the Hindu Tradition (ISBN 0-7914-2112-0) by Tracy Pintchman
-
Shakti and Shâkta, Arthur Avalon (Sir John Woodroffe), Oxford Press/Ganesha & Co., 1918
-
Sri Ramakrishna (The Great Master), Swami Saradananda, Ramakrishna Math,1952
-
Devi Mahatmyam, Swami Jagadiswarananda, Ramakrishna Math, 1953
-
The Art of Tantra, Philip Rawson, Thames & Hudson, 1973
-
Hindu Gods & Goddesses, Swami Harshananda, Ramakrishna Math, 1981
-
Sri Ramakrishna: The Spiritual Glow, Kamalpada Hati, P.K. Pramanik, Orient Book Co., 1985
-
Hindu Goddesses, David R. Kinsley, University of California Press, 1988
-
Kali (The Black Goddess of Dakshineswar) Elizabeth U. Harding, Nicolas Hays, 1993
-
Impact of Tantra on Religion & Art, T. N. Mishra, D.K. Print World, 1997
-
Indian Art (revised), Roy C. Craven, Thames & Hudson, 1997
-
A Dictionary of Buddhist & Hindu Iconography (Illustrated), Frederick W. Bunce, D.K. Print World, 1997
-
Tantra (The Path of Ecstasy), Georg Feuerstein, Shambhala, 1998
-
Oxford Concise Dictionary of World Religions, John Bowker, Oxford Press, 2000
-
Tantra in Practice, David Gordon White, Princeton Press, 2000
-
Encountering Kali (In the margins, at the center, in the west), Rachel Fell McDermott, Berkeley : University of California Press, 2003
http://bn.wikipedia.org/wiki/%E0%A6%95%E0%A6%BE%E0%A6%B2%E0%A7%80
Saradindu Uddipan
ধাপ্পাবাজির পরম্পরা ঃ উন্নাও সাম্প্রতিকতম উদাহরণ
দেশের সরকারকে বিপথ চালিত করা,
গিমিক তৈরি করে দেশের জনগণকে বিভ্রান্ত করা,
মিথ্যা কথা বলে মানুষকে ধোকা দেওয়া এবং বোকা বানানোর অপরাধে
ভন্ড প্রতারক শোভন সরকারকে অবিলম্বে গ্রেপ্তারের আবেদন জানাচ্ছি।
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 2 नवंबर 2013 को 20:12 से
अमावस्या तिथि समाप्त- 3 नवंबर 2013
तक, 18:19 बजे तक।
दश महाविद्या मे प्रथमा शक्ति काली मां है। काली मां के कई रूप में जैसे महाकाली,शमसान काली,गुहय काली,भद्र काली,काम काली,दक्षिण काली और भी कितने रूप है। सती ने जब शिव को रोकने हेतु अपने रुप का विस्तार किया उसमे काली प्रथम है इस कारण ये आद्या शक्ति है।
श्रीमहाकाली साधना के प्रयोग से लाभ-
महाकाली साधना करने वाले जातक को निम्न लाभ स्वत: प्राप्त होते हैं-
जिस प्रकार अग्नि के संपर्क में आने के पश्चात् पतंगा भस्म हो जाता है, उसी प्रकार काली देवी के संपर्क में आने के उपरांत साधक के समस्त राग, द्वेष, विघ्न आदि भस्म हो जाते हैं।
श्री महाकाली स्तोत्र एवं मंत्र को धारण करने वाले धारक की वाणी में विशिष्ट ओजस्व व्याप्त हो जाने के कारणवश गद्य-पद्यादि पर उसका पूर्व आधिपत्य हो जाता है।
महाकाली साधक के व्यक्तित्व में विशिष्ट तेजस्विता व्याप्त होने के कारण उसके प्रतिद्वंद्वी उसे देखते ही पराजित हो जाते हैं। काली साधना से सहज ही सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती है।
काली का स्नेह अपने साधकों पर सदैव ही अपार रहता है। तथा काली देवी कल्याणमयी भी है। जो जातक इस साधना को संपूर्ण श्रद्धा व भक्तिभाव पूर्वक करता है वह निश्चित ही चारों वगरें में स्वामित्व की प्राप्ति करता है व मां का सामीप्य भी प्राप्त करता है।
साधक को मां काली असीम आशीष के अतिरिक्त, श्री सुख-सम्पन्नता, वैभव व श्रेष्ठता का भी वरदान प्रदान करती है। साधक का घर कुबेरसंज्ञत अक्षय भंडार बन जाता है।
काली का उपासक समस्त रोगादि विकारों से अल्पायु आदि से मुक्त हो कर स्वस्थ दीर्घायु जीवन व्यतीत करता है। काली अपने उपासक को चारों दुर्लभ पुरुषार्थ, महापाप को नष्ट करने की शक्ति, सनातन धर्मी व समस्त भोग प्रदान करती है।
श्रीमहाकाली पाठ-पूजन विधि-
सबसे पहले गणपति का ध्यान करते हुए समस्त देवी-देवताओं को नमस्कार करें। और इन मंत्रों के साथ काली मां की पूजा करें।
1. श्री मन्महागणाधिपतये नम:।।
2. लक्ष्मीनारायणाभ्यां नम:।।
3. उमामहेश्वरा्भ्यां नम:।।
4. वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नम:।।
5. शचीपुरन्दराभ्यां नम:।।
6. मातृपितृ चरणकमलेभ्यो नम:।।
7. इष्टदेवताभ्यो नम:।।
8. कुलदेवताभ्यो नम:।।
9. ग्रामदेवताभ्यो नम:।।
10.वास्तुदेवताभ्यो नम:।।
11. स्थानदेवताभ्यो नम:।
12. सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।।
13. सर्वेभ्यो ब्राह्यणेभ्यो नम:।।
ऊं भूर्भुव स्व:।
तत् सवितुर्वरेण्यम्।। भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो न: प्रचोयदयात्।।
एते गन्धपुष्पे पुष्प अर्पण करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-
ऊं गं गणपतये नम:।
आदित्यादिनवग्रहेभ्यो नम:।।
ऊं शिवादिपंचदेवताभ्यो नम:।।
ऊं इन्द्रादिदशदिक्पालेभ्यो नम:।।
ऊं मत्स्यादिदशावतारेभ्यो नम:।।
ऊं प्रजापतये नम:।।
ऊं नमो नारायणाय नम:।।
ऊं सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:।।
श्री गुरुवे नम:।।
ऊं ब्रह्माणेभ्यो नम:।।
निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए दाहिने हाथ की मध्यमा में या कलाई पर घास को बांधें-
ऊं कुशासने स्थितो ब्रह्मा कुशे चैव जनार्दन:।
कुशे ह्याकाशवद् विष्णु: कुशासन नमोऽस्तुते।।
आचमन करते समय निम्न मंत्रों का उच्चारण करें-
ऊं केशवाय नम:
ऊं माधवाय नम:।।
ऊं गोविन्दाय नम:।।
ऊं विष्णु: विष्णु: विष्णु;।।
ऊं ह्रीं श्रीं क्रीं परमेश्वरि कालिके नम:।
http://www.jagran.com/spiritual/religion-how-to-kali-puja-diwali-10819536.html
No comments:
Post a Comment