लेकिन निवेशकों को मिलेगा क्या सनसनी के अलावा?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
असम में सीबीआई जांच की तैयारियां चल रही हैं जबकि कोलकाता हाईकोर्ट में दायर जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान पश्चिम बंगाल सरकार ने साबीआई जांच की मांग की खिलाफत करते हुए हलफनामा दाखिल किया है। शारदा समूह के फर्जीवाड़े से राज्यभर के आम लोगों के लुट जाने के बजाय अब राजनीतिक आरोप प्रत्यारोप फोकस में हैं। पक्ष विपक्ष, केंद्र सरकार राज्य सरकार सब एक दूसरे पर दोषारोप कर रहे हैं। लेकिन जो लोग सबकुछ गवां कर सड़क पर आ गये हैं, उनके लिए राज्य सरकार के पांच सौ करोड़ के फंड के अलावा कोई इंतजाम अभीतक नहीं हो पाया है। न हो पाने की उम्मीद है।
सुदीप्त सेन और उनकी खासमखास देवयानी से सघन पूछताछ और रोज रोज नये खुलासे के साथ पक्ष विपक्ष दोनों तरफ के असरदार लोग चपेट में जरुर आ रहे हैं और इससे राजनीतिक गतिविधियां तेज हो गयी हैं। विपक्ष ममता बनर्जी की ईमानदार छवि को ध्वस्त करने के लिए पूरा जोर लगाये हुए है तो दीदी ने अपने बचाव में विपक्ष के साथ केंद्र सरकार पर और तीखे हमलेके सात सड़क पर उतरने का सिलसिला शुरु कर दिया है। सुदीप्त सेन और देवयानी राज्य भर में चल रहे विरोध प्रदर्शन से बेपरवाह दिख रहे हैं। हालांकि वह पुलिस के साथ जांच में सहयोग कर रहे हैं।यह पूछे जाने पर कि क्या सेन विरोध प्रदर्शनों या अपनी सजा की मांग से चिंतित है तो एक अधिकारी ने आज बताया, ''नहीं। वह उसके बारे में चिंतित नहीं है।'' उन्होंने बताया, ''उसने न तो दुख प्रकट किया है और न ही गुस्सा जाहिर किया है। जब पुलिस उससे पूछताछ करती है तो वह बेपरवाही से बैठा रहता है।'' शारदा ग्रुप के झांसे में आकर अपनी गाढ़ी कमाई लुटा देने वाले इन लोगों के पास आंसु के सिवा कुछ भी नहीं बचा है। गुस्सा इन्हें धोखेबाजी पर ही नहीं है, भरोसा टूटने का भी है।
जबकि यह मामला विशुद्ध वित्तीय प्रबंधन और कानून के राज का है, दोनों इस राज्य में गैरहाजिर हैं। अभीतक जगह जगह तलाशी, लेनदेन और मदर सर्वर के खुलासे के अलावा आम निवेशकों को पैसा लौटाने के लिए रिकवरी की कोई पहल नहीं हो पायी है। शारदा समूह की किसी संपत्ति को जब्त नहीं किया गया है। न इसकी कोई संभावना है। क्योंकि इसके लिए पर्याप्त कानून ही नहीं है। विधानसभा के विशेष अधिवेशन में जो विधेयक पास हुआ, वह कब कानून बनकर लागू होगा और उसके तहत शारदा समूह के खिलाफ कार्रवाई संभव है या नहीं, इस पर भारी शंकाएं हैं।कंपनी के अकाउंट के अनुसार इसके पास 1.78 करोड़ रुपए की जमीन है, बिल्डिंग की वैल्यू 1.35 करोड़ रुपए है। कंपनी के पास 70 लाख रुपए की मशीनरी है, लेकिन इन ऐसेट्स से कंपनी को किसी तरह की आय नहीं हुई है। आरओसी ने कहा कि हमने सरकार को रिपोर्ट से अवगत करवा दिया है और आगे की योजना के बारे में भी बताया है।
शारदा ग्रुप के खातों की जांच की गई जिसमें एक बात सामने आई है कि इसमें काफी हेरफेर किए गए हैं। कई बड़ी कंपनियों ने ग्रुप के साथ ट्रांजैक्शन किया है। माना जा रहा कि पूरे खुलासे को सामने लाने के लिए अभी कुछ और दिन लग सकते हैं। रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज की जांच में शारदा रियल्टी, शारदा कंस्ट्रक्शन कंपनी, देवकृपा व्यापार प्राइवेट लिमिटेड, बंगाल मीडिया प्राइवेट लिमिटेड और बंगाल अवधूत एग्रो के बीच 2011-12 में कई तरह के लोन के लेन-देन का मामला सामने आया है।जांच कर रहे अधिकारी का कहना है कि लगता है जानबूझ कर खातों को अन्य कंपनियों में ट्राजैक्शन किया गया ताकि बड़ी गड़बडिय़ों को छुपाया जा सके। आरओसी ने मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स को रिपोर्ट देते हुए कहा कि शारदा ग्रुप ने कई कंपनियों को लोन दिए जो किसी भी बिजनेस के साथ संबंधित नहीं थीं। जांच अधिकारियों ने बताया कि मामले को बहुत ही उलझाया गया है।
जांच आयोग का काम शुरु हो चुका है। पर पीड़ितों और फर्जीवाड़े के शिकार इतने अधिक लोग हैं,कि इस आयोग की सुनवाई कब तक पूरी होगी, कहना मुश्किल है।
इस पर तुर्रा यह कि मुख्यमंत्री ने २४ घंटे के भीतर जो फर्जी कंपनियों का कारोबार बंद करने की घोषणा की है, उसके तहत अब तक सिर्फ दो कंपनियों के एकाध दफ्तरों को फिलहाल धंधा बंद करने के लिए राजी कराने के अलावा कुछ नहीं हुआ है।
सौ से ज्यादा कपनियों , जिनमें एक कंपनी के तो बीस लाख फील्ड वर्कर होने क दावा है, के एजेंट घर घर जाकर निवेशकों को भरोसा दिला रहे हैं कि उनकी कंपनी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।
इस नेटवर्क के मुकाबले राजनीति कहीं भी कारगर नही है। शारदा समूह के भंडाफोड़ के बाद इन कंपनियों की ओर से तो विज्ञापनों की बाढ़ आ गयी है। जो जनजागरण अब शुरु हुआ है, उसका कब असर होगा, यह तय नहीं। लेकिन करोड़ों लोगों की जमापूंजी जो चली गयी, राज्य सरकार और केंद्रीय एजंसियों की बहुप्रचारित सक्रियता के बावजूद उन्हें कुछ मिलने के आसार अभी बने नहीं है।
अस्सी में बंद हुए संचयिनी के निवेशकों को अभीतक कुछ नहीं मिला तो उत्तर भारत के अपेस इंडिया के करोड़ों निवेशकों को भी एक पैसा वापस नहीं मिला।
अभी ताजा मामला सहारा इंडिया के निवेशको को पैसा लौटाने का चालू है। सेबी की तरह तरह की कवायद के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद निवेशकों को अभी कुछ नहीं मिला है।गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने निवेशकों का 24 हजार करोड़ रपया नहीं लौटाये जाने के मामले में सहारा समूह और इसके मुखिया सुब्रत राय को लताड़ा और कहा कि वे अपने बचाव के लिए 'अदालतों से चालबाजी' कर रहे हैं। सहारा ग्रुप घिरता जा रहा है। आज सुप्रीम कोर्ट ने सेबी की अर्जी को मानते हुए देश की तमाम अदालतों को सहारा मामले में सुनवाई करने से मना कर दिया है। दरअसल सेबी ने सहारा डिबेंचर के सभी मामलों की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में करने की अर्जी दी थी।सहारा ग्रुप के लिए ये बड़ा झटका होगा क्योंकि पिछले कई महीनों से सहारा कभी सैट तो कभी इलाहाबाद हाईकोर्ट में अर्जी देकर मामले को उलझा रहा था। वहीं मानहानि के मामले में सहारा के खिलाफ सुनवाई बुधवार 8 मई को होगी।सुप्रीम कोर्ट ने अब आदेश दिया है कि सहारा अलग-अलग अदालतों में नहीं जा सकेगा। साथ ही डिबेंचर मामले में सहारा की सैट और इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई रोक दी है। सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट में ट्रांसफर किए जाने पर सहारा को नोटिस भेजी है।
समाज में सनसनी जरुर फैली है। नये मुद्दे और नये आरोपों के साथ पक्ष विपक्ष की भारी मोर्चाबंदी हो रही है, राजनीतिक महत्व जरुर है इन सबका । लेकिन निवेशकों को मिलेगा क्या?
इसी बीच माकपा नेता और राज्य के पूर्व आवास मंत्री गौतम देव ने ममता के भतीजे अभिषेक बनर्जी की कंपनी में कथित तौर पर अनियमितताओं की ओर इशारा किया है। देव ने आरोप लगाया है कि कंपनी पंजीयक के मुताबिक बनर्जी की कंपनी लीप्स ऐंड बाउंड्स प्राइवेट लिमिटेड को 9 अप्रैल, 2012 को निगमित किया गया, जबकि कंपनी की वेबसाइट पर दावा किया गया है कि इसे 2009 में ही निगमित किया गया था। वेबसाइट पर कहा गया है, 'कोई व्यावसायिक पृष्टिïभूमि नहीं होने के बावजूद अभिषेक बनर्जी ने वर्ष 2009 में कंपनी का पंजीयन कराया। लोगों को गुणवत्तापूर्ण और रचनात्मक परामर्श सेवाएं उपलब्ध कराने के उद्देश्य से यह कंपनी बनाई गई है।'
देव ने कहा, 'मैं माफी चाहता हूं, लेकिन यह सच है कि बनर्जी की कंपनी की वेबसाइट पर पंजीयन की तिथि को लेकर गलत दावा किया गया है। यह एक दंडनीय अपराध है।'
गौरतलब है किदेव को बनर्जी द्वारा भेजे गए एक कानूनी नोटिस का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उन्होंने एक जन सभा में बनर्जी की कंपनी लीप्स ऐंड बाउंड्स को लेकर कई सवाल उठाए थे। देव ने इसी नोटिस के जवाब के तौर पर यह संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया था। बनर्जी न केवल ममता के संबंधी हैं बल्कि वह तृणमूल कांग्रेस की युवा शाखा (टीएमसीवाई) के अध्यक्ष भी हैं।
कंपनी की वेबवाइट पर कहा गया है, 'ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पिछले कई वर्षों से कंपनी से अपने कारोबार का प्रसार विभिन्न क्षेत्रों में किया है। विभिन्न क्षेत्रों मसलन- परामर्श सेवा, सूक्ष्म वित्त पोषण, बीमा सेवा, उद्यम पूंजी एवं रियल एस्टेट क्षेत्र में भी मजबूती से अपना विस्तार किया है।'
माकपा के वरिष्ठï नेता ने आरोप लगाया कि कंपनी के दावे के मुताबिक अगर वह वित्तीय क्षेत्र जैसे सूक्ष्म वित्त पोषण और बीमा क्षेत्र में काम कर रही है तो सवाल उठता है कि क्या उसे इस संबंध में आवश्यक नियामक मंजूरी मिल गई है। दिलचस्प बात यह है कि वेबसाइट पर किए गए दावों के विपरीत कंपनी के एक निदेशक संजय भद्रा ने कहा कि परामर्श सेवा के अलावा किसी अन्य कारोबार का परिचालन नहीं किया जा रहा है। जब भद्रा से संपर्क किया तो उन्होंने कहा, 'जहां तक विविध कारोबार का सवाल है तो कंपनी बोतल बंद पीने योग्य पानी का संयंत्र लगाने जा रही है। हालांकि यह शुरुआती अवस्था में और अभी इस पर काम किया जाना है।' उन्होंने कहा कि सूक्ष्म वित्त पोषण, बीमा, उद्यम पूंजी और रियल एस्टेट आदि कारोबार शुरू करने के लिए नियामक से मंजूरी के वास्ते कंपनी ने अभी प्रयास नहीं किया है। उन्होंने कहा, 'सूक्ष्म वित्त पोषण, बीमा या रियल एस्टेट क्षेत्र में कदम रखने की हमारी अभी कोई रुचि नहीं है। यह सब अभी नियोजन के दौर में है। हालांकि बीमा सेवा के लिए हमारे प्रबंधन ने आईआरडीए के साथ ट्रेनिंग की थी।'
प्राधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री , सभी लोग कानून बदलने की बात कर रहे हैं। मौजूदा कानून के तहत कार्रवाई लेकिन हो ही नहीं रही है। असम सरकार के पास कानूनी हथियार हैं, पर सिर्फ वहां नहीं, समूचे पूर्वोत्तर में, यहां तक कि वामशासित त्रिपुरा में भी चिटफंड का बोलबाला है।
झारखंड और बिहार से लेकर उत्तरप्रदेश तक, उड़ीशा से लेकर महाराष्ट्र तक चिटफंड कंपनियों का जो अबाध कारोबार रंग बिरंगे राजनीतिक संरक्षण में चल रहा है, उसको बंद करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच, राज्यों के बीच और केंद्रीय व राज्यों की एजंसियों के बीच जो समन्वय होना चाहिए, वह राजनीतिक कारणों से असंभव है।हालांकि बिहार के वित्त मंत्री सुशील मोदी ने पश्चिम बंगाल में हुए सारदा घोटाले जैसे मामले से बचने के लिए सभी शीर्ष वित्तीय नियामकों से अधिकारियों की एक टीम को पटना भेजने का अनुरोध किया है। उन्होंने नियामकों से राज्य के अधिकारियों को इस बाबत सलाह देने की मांग की है, ताकि बिहार में इस तरह के घोटालों के लिए कोई गुंजाइश नहीं बचे।मोदी ने बताया कि उन्होंने कंपनी मामलों के मंत्रालय के अधिकारियों से बिहार में परिचालित चिट फंड व अन्य कंपनियों की जांच करने का अनुरोध भी किया है। मोदी ने बताया, 'जब मैंने रोज वैली के मिदनापुर परिचालन के बारे में सुना तो मुझे थोड़ी चिंता हुई। आम तौर पर इस तरह की कंपनियां पूरे पूर्वी भारत में परिचालन करती हैं और छोटे निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करती हैं। इसीलिए मैंने अधिकारियों के एक दल से इस संबंध में उन्हें दिशा-निर्देश देने का अनुरोध किया है, जिससे बिहार में शारदा जैसे घोटालों से बचा जा सके।'
उनके मुताबिक राज्य सरकार के अधिकारियों को यह भी नहीं पता है कि यहां पर इस तरह की कितनी कंपनियां परिचालन कर रही हैं। उन्होंने कहा कि उनका वैध रूप से चल रही चिट फंड कंपनियों को बंद करने का कोई इरादा नहीं है।
ऐसा हमेशा होता रहा है। राजनीतिक दल अपने अपने विरोधियो को घेरने में लगे हुए हैं, आर्थिक अपराध के दोषियों को नहीं। जो देश में माओवाद से लेकर उग्रवाद, जिहाद से लेकर मुंबई का अंडर वर्ल्ड और खनन माफिया को संचालित कर रहे हैं।
सुदीप्त सेन और मनोज नागले से पूछताछ से पता चला है कि बंगाल के रानीगंज आसनसोल के कोयलाचल में सक्रिय कोयला माफिया भी इस काले धंधे में साझेदार हैं। इससे ज्या खतरनाक समीकरण और क्या हो सकता हैं?
इसी बीच पूजी बाजार की नियंत्रक संस्था सेबी ने छोटे निवेशकों के हितों की रक्षा के मकसद से चिट फंड और निधि कंपनियों जैसे सामूहिक निवेश योजनाओं के नियमन के लिए सिंगल रेग्युलेटर की वकालत की है। इसके साथ ही उसने रेग्युलेटर बनने तक इन सबसे निपटने के लिए खुद को ज्यादा अधिकार दिए जाने की मांग की है।
पश्चिम बंगाल में कम समय में अधिक लाभ का प्रलोभन देने वाली (पोंजी) योजनाओं में लाखों निवेशकों से कथित ठगी के घटनाक्रम के बीच भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के अध्यक्ष यू.के. सिन्हा ने आईओएससीओ की एशिया पैसिफिक रीजनल कमिटी की मीटिंग के दौरान संवाददाताओं से कहा, 'चिट फंड्स और निधि के लिए अलग रेग्युलेटर बनाने की जरूरत है। हमने सरकार से तब तक के लिए संशोधनों के जरिए सेबी ऐक्ट को मजबूत बनाने की मांग की है।' आईओएससीओ दुनिया भर सिक्युरिटीज मार्केट रेग्युलेटर्स की ग्लोबल बॉडी है।सिन्हा ने कहा कि सभी तरह की कलेक्टिव स्कीमों के लिए एक ही रेग्युलेटर होना चाहिए। फिलहाल चिट फंड और निधि सेबी के दायरे में नहीं आती हैं। सिन्हा ने कहा, लेकिन जिस तरह की घटनाएं हमारे सामने हुई हैं, इससे इसकी जरूरत बढ़ रही है। हमारा कहना है कि आदर्श तौर पर सभी कलेक्टिव इन्वेस्टमेंट स्कीम और निधि फंड्स या चिट फंड्स जैसी स्कीमों के लिए सिंगल रेग्युलेटर होना चाहिए। सिन्हा ने आज कहा कि, ''अपने क्षेत्राधिकार के दायरे में सेबी यह सुनिश्चित करने के लिए बेहद कड़ी मेहनत कर रहा है कि छोटे निवेशकों की बचत को कोई खतरा न हो।''
सेबी शारदा रियल्टी इंडिया और इसके प्रबंध निदेशक सुदीप्तो सेन को उनकी सभी सामूहिक निवेश योजनाओं के बंद होने तथा निवेशकों की पूरी राशि लौटाए जाने तक सभी प्रतिभूति बाजारों से प्रतिबंधित कर 3 माह के भीतर निवेशकों का पैसा वापस करने का आदेश जारी कर चुका है।वह कोलकाता के शारदा समूह द्वारा निवेश योजनाओं के जरिए कथित धोखाधड़ी किए जाने के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब दे रहे थे। वहीं योजना आयोग के अध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलुवालिया ने कहा कि उन्हें पूंजी बाजार से विशेष लगाव है। उन्होंने कहा कि भारतीय बाजार ने समय-समय पर दबावों को बहुत अच्छी तरह संभाला है। मैं साफ-साफ कहता हूं कि शेयर बाजारों में भारतीय शेयर बाजार सबसे अच्छा है।
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