भाजपा में जोश इतना कम क्यों है,कहीं हावड़ा में हथियार डालने का असर तो नहीं हो रहा है?
एक्सकैलिबर स्टीवेंस विश्वास
चुनावी सर्वेक्षण चाहे कुछ बतायें, संग परिवार और भाजपा के समर्थकों को आगामी सोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्रित्व का बेसब्री से इंतजार है।इस मकसद को अंजाम देने के लिए भाजपा की ओर से कोई कसर बाकी छोड़ने की गुंजाइश नहीं है।इसी बीच सर्वेक्षणों में क्षेत्रीयदलों के गठबंधन के निर्णायक भूमिका लेने की संभावना भी बतायी जा रही है। बिहार और उत्तर प्रदेश में जहां सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें हैं, भाजपा की हालत सुधरती नहीं दिख रही है। आगामी लोकसभा चुनावों के मद्देनजर बंगाल की अहमियत बढ़ती जा रही है। लेकिन हाल में बंगाल से दो सदस्यलोकसभा में भेजने वाली बाजपा के एकमात्र लोकसभा सदस्य दार्जिलिंग से है। लेकिन गोरखालैंड आंदोलन में खुलकर साथ देने से बाकी बंगाल और बाकी देश के समीकऱम बिगड़ने के आसार देखते हुए भाजपा इस आग में हाथ नहीं डाल रही है।इसके मद्देनजर दार्जिलिंग की सीट बच भी पायेगी या नहीं,कहना मुश्किल है।
प्रधानमंकत्रित्व के दावेदार नरेंद्र मोदी बंगाल का दौरा कर चुके हैं और बंगाल का पर्यवेक्षक बनाये गये हैं बंगाल के ही दामाद नेहरु गांधी वंशज वरुण गांधी। वरुण भी बंगाल का दौरा कर चुके हैं। लेकिन भाजपाइयों में जोश खरोश अभी दीख ही नहीं रहा है।हाल के वर्षों में बंगाल में भाजपा का जो जनादार तेजी से बढ़ने लगा था,उसे वोटों में तब्दील करने की कोई तत्परता नजर ही नहीं आ रही है।
ताजा समीकऱण के मुताबिक बंगाल में दीदी का हावड़ा लोकसभा चुनाव की तरह एकतरफा समर्थन करने से भाजपा को कुछ हासिल नहीं होना है,यह साफ हो गया है।बल्कि हावड़ा में पीछ हटने की वजह से भाजपा को जो नुकसान हुआ है और उसकी जो स्वतंत्र छवि ध्वस्त हुई है, उसके परिणाम पंचायत चुनावों के नतीजों में उसकी मौजूदगी मालूम न पड़ने से साफ जाहिर है।
तपन सिकदर और तथागत राय के बाद बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं को राहुल सिन्हा से बड़ी उम्मीदें थीं। वाम मोर्चा के अवसान के बाद कांग्रेस के तेजी से सिमटते जाने और तृणमूल कांग्रेस के अंतर्कलह से लोग भाजपा की ओर रुख भी करने लगे थे। लेकिन हावड़ा संसदीयउपचुनाव के बाद एकदम छंदपतन हो गया। पर्यवेक्षक वरुण गांधी कोलकाता आये।उन्होंने प्रेस को संबोधित किया। सिंगुर भी गये,अनिच्छुक किसालों से मिले। लेकिन भाजपा को जिस हवा का इंतजार है,वह बन ही नहीं रही है।
उल्टे आशंका तो यही है कि उत्तरपर्देश में पीलीभीत में औपनी और बगल में मां मेनका की लोकसभा सीटें बचाते हुए बाहैसियत पर्यवेक्षक वरुण बंगाल में कितना वक्त दे पायेंगे,इसी को लेकर सवाल उठ रहे हैं।पर्यवेक्षक बनने के बाद वे बंगाल में हुए पंचायत चुनावों के दौरान नहीं आये,जबकि तब राज्य में भाजपा को अपनी जड़ें मजबूत करने का मौका है।
बंगाल भाजपा के नेतृत्व में से कोई जुबान खोल नहीं रहा है,लेकिन हकीकत यह है कि दीदी के मिजाज के मुताबिक बंगाल में भाजपा को चलाने की केंद्रीय नेतृत्व की रणनीति का राज्य में उलटा ही असर हो रहा है।राज्य के नेताओं की नहीं चली तो कहीं राज्य में भाजपा का वजूद ही खत्म न होजाये, यह आशंका भी बनने लगी है।तृणमूल कांग्रेस के भरोसे कांग्रेस की जो दुर्गति हुई है, बंगाल भाजपा आइने में भी अपने लिए वह छवि देखना नहीं चाहती।बंगाल के प्रति केंद्रीय नेतृत्व के रवैये के बारे में यहीं तथ्य काफी है कि पर्यवेक्षक बनने के पूरे तीन महीने बाद वरुण गांधी कोलकाता पहुंचे। अबी बाकी राज्य का दौरा वे कब करेंगे,भाजपाइयों को इसका बी इंतजार है।वे सिंगुर गये तो वहां भाजपाई आपस में ही भिड़ गये।फायदा कुछ नहीं हुआ।उलटे राहुल सिन्हा के पार्टी को संभालने का सरदर्द हो गया।
अब राहुल सिन्हा केंद्रीय नेतृत्व से बंगाल पर खास नजर डालने का अनुरोध करते नजर आ रहे हैं।लेकिन केंद्रीय नेतृत्व को राहुल सिन्हा और राज्य के दूसरे नेताओं से ज्यादा दीदी की परवाह है।क्योंकि मौजूदा हाल में बंगाल में पार्टी बहुत जोर लगाकर भी लोकसभा सीटों में कोई इजाफा नहीं कर सकती। जबकि चुनाव बाद सरकार बनाने के लिए दीदी का समर्थन सबसे जरुरी है। बंगाल में भाजपा का हाल चाहे जो हो, केंद्रीय नेतृत्व की चिंता इसकी है कि हर कीमत पर दीदी के समर्थन की संबावना को जीवित रखा जाये।
No comments:
Post a Comment