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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Saturday, August 17, 2013

Fwd: [NAAGVANSH] मूलनिवासियों मे लोकतन्त्र से संगठन होऊ सकत है।






Bamcef UP
Bamcef UP 2:48pm Aug 17
मूलनिवासियों मे लोकतन्त्र से संगठन होऊ सकत है।
August 17, 2013 at 10:23am
होऊ सकत है....
फुले अंबेडकरी विचारधारा से होऊ सकत है
मूलनिवासियों मे लोकतन्त्र से संगठन होऊ सकत है।
संस्थागत नेतृत्व होऊ सकत है।
मूलनिवासी बहुजन पहचान से होऊ सकत है।
मूलनिवासियों की मजबूरी है। लोकतन्त्र जरूरी है।
फुले अंबेडकरी विचारधारा से होऊ सकत है
महाराष्ट्र में R P I या उसके धडों को जिनको ये विश्वास था कि फुले आंबेडकर की नीतिया -विचार धारा तो ठीक है लेकिन इसके दम पर विधायक, सांसद नहीं बन सकते और न बना सकते हैं '''होऊ सकत नाही ''' ।
इसी बात को मान्यवर साहब ने गलत सिद्ध किया और और यह कर के दिखाया कि फुले अंबेडकरी विचारधारा से होऊ सकत है। उन्होंने अपने 4 अक्टूबर 2000 को महाराष्ट्र में दिए गए भाषण मे बताया कि ''हम अपने दम पर, फुले - अंबेडकर की विचारधारा पर चलते हुये, 15 सांसद और 42 विधायक जीता चुके हैं। इस लिए मैं कहता हूँ की बहुजन समाज दिल्ली पर राज कर सकता है"। "मतलब होऊ सकत है"।

2. हमारा अर्थात बामसेफ का मानना है कि आंतरिक लोकतन्त्र से होऊ सकत है।

बाबा साहब ने हमे लोकतन्त्र का सिधान्त दिया और 24 नवम्बर 1949 को संबिधान निर्मात्री सभा के अपने भाषण मे उन्होने ने यह बताया कि यह लोकतन्त्र और समता, स्वतन्त्रता, बंधुत्व का सिधान्त मैंने इसी भारत देश मे पूर्व मे स्थापित तथागत बुद्ध के दर्शन, भिक्खू संघ के नियम तथा इस देश के मूलनिवासियों की शाषन करने की गणराज्य प्रणाली से लिया है। परंतु हमारे अपने ही कुछ लोगो ने कहा की बाबा साहब का लोकतन्त्र का सिधान्त तो ठीक है पर इस लोकतन्त्र के सिधान्त से मूलनिवासियों मे संगठन नहीं बन सकता और बन गया तो चल नहीं सकता है। '''होऊ सकत नाही '''
मूलनिवासियों को लोकतन्त्र के सिधान्त सूट नहीं करता है। '''होऊ सकत नाही '''
यहाँ तो व्यक्ति केन्द्रित संगठन ही चल सकता है। '''होऊ सकत नाही '''

हमने 2003 से संगठन मे आंतरिक लोकतन्त्र और संस्थागत नेतृत्व का सिधान्त लागू किया। आज संगठन को दस वर्ष हो गया और संगठन निर्बाध रूप से आगे बढ़ रहा है। इस दौरान हमने एक नहीं बल्कि हजारो मिसनरी कैदर पैदा कर दिया है जो विषय के जानकार है, अच्छे वक्ता है, लगनशील और समाज के प्रति ईमानदार है जो भविष्य मे समाज को नेतृत्व देने का कार्य करेंगे । नागपुर मे अपने संसाधन से डी के खापर्डे मेमोरियल ट्रस्ट का निर्माण कर दिया। सभी भाषाओ मे मूलनिवासी टाइम्स पाक्षिक निकाला। नयी दिल्ली मे अपने भवन मे अपना कार्यालय स्थापित किया....हमने पिछले दशक (2003-2013) मे कर के दिखाया कि मूलनिवासियों मे संगठन लोकतन्त्र के सिधान्त से होऊ सकत है।

हमारा मानना है और हमने सिद्ध कर के दिखा दिया है कि मूलनिवासियों मे लोकतन्त्र से संगठन होऊ सकत है।

3. हमारा मानना है कि संस्थागत नेतृत्व से होऊ सकत है।

हमने व्यक्ति विशेष निर्माण के वजाय संगठन निर्माण पर ज़ोर दिया और भीड़ खड़ी करने के वजाय उद्देश्य, विचारधारा और संगठन के प्रति समर्पित कैडर तैयार करने पर ध्यान दिया। हमने लोगो को ट्रेनिंग देने के लिए सिलेबस तैयार किया है..एक बार ट्रेनिंग लेकर सिलेबस के अनुसार कोई भी ट्रेनिंग दे सकता है..हम लाखो ट्रेनर तैयार करना है..इस लिए नए लोगो को ट्रेनिग देना और उनको अवसर दे कर उनकी प्रतिभा का विकास हम कर रहे हैं..एक व्यक्ति के सहारे हम बैठे नहीं है..हमारे यहाँ सभी सत्रों की अध्यक्षता अलग अलग केंद्रीय कार्यकारणी के सदस्य करते है...जिससे की संगठन में सबको बढ़ने का और सबकी प्रतिभा को निखारने का सामान अवसर मिल सके.क्योकि हम नहीं चाहते की हम व्यक्ति को तैयार करे और फिर दुश्मन उस व्यक्ति की कोई कमजोरी को पकड़ कर पूरे संगठन और पूरे आंदोलन को नियंत्रित कर ले .एक व्यक्ति या एक परिवार के इर्द-गिर्द घूमने वाले, व्यक्ति-वादी संगठन एक व्यक्ति का , उसके कुछ नजदीकी रिश्तेदार का , व कुछ एक चापलूस एवं चाटुकार समर्थको का भला तो कर सकते है, पर पुरे मूलनिवासी बहुजन समाज का कत्तयी नहीं. ...एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमने वाले, व्यक्ति-वादी संगठन व्यक्तियों के साथ पैदा होतें हैं और उन्ही के साथ ख़त्म हो जातें हैं ........ व्यक्ति-वादी संगठन कोई भी हो अंत में ब्राह्मणवाद के तरफ ही जायेगा....क्योकि तानाशाही और ब्राह्मणवाद सहोदर भाई है और प्रजातंत्र और ब्राह्मणवाद एक दुसरे की धुर विरोधी.
हमारा मानना है कि संस्थागत नेतृत्व से होऊ सकत है।

4. हमारा मानना है कि मूलनिवासी बहुजनस पहचान से होऊ सकत है।

Mn. Kanshi Ram Ji. In an interview to Illustrated Weekly on 8.3.1987 he stated, "To my mind all parties represent the forces of status quo. For us, politics is for transformation. The existing parties are the reason for status quo. That is why there has been no upward mobility for the backward communities. Gandhi is the root of every thing. I want change. Dr. Ambedkar wanted change. But Gandhi was the Custodian of status quo. He wanted Shudras to remain Shudras. Gandhi worked to keep the nation divided. We are working to unite the nation and erase all artificial divisions. Up to 1971, I was not much interested. I was working with the RPI. Then I found I was marching towards a ship that others were deserting. It took a long time to prepare myself and others. we had to collect a lot of information, so that we could know how to prepare society and build a cadre. Preparing society initially took a long time. now we are moving at a tremendous speed. The BSP is not a casteist party. we are organising 6000 castes, how can you call us Casteist. The upper castes say why not include us. I say you are leading all the parties. If you join our party, you will block change here also.

मान्यवर कांशी राम साहब बाबा साहब के उस मिशन को अंजाम तक पहुँचाना चाहते थे जिसमे बहुजन समाज को हुक्मरान बनाने का सन्देश था। वो यथा स्थिति नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन चाहते थे जब की भारत के अन्य राजनितिक /सामाजिक संगठन यथा स्थिति (STATUS QO) बनाये रखना चाहते है। वो चाहते है की जो राजा है, सामंत है, लम्बरदार है, बलशाली है, धनवान है, ज्ञानवान है वो हो लोग आगे भी वैसे ही बने रहे। गैर बराबरी, जबरदस्ती पिछाड़े गए, तोड़े गए, अशिक्षित बनाये गए लोगों को आगे नहीं आने देना चाहते है। आज के बहुजन समाज के सत्ता लोलुप लोगों ने भी मान्यवर तथा बाबा साहब द्वारा परिवर्तन की आवश्यकता को नकार कर स्टेटस को की तरफ अग्रसारित हो रहे है । मान्यवर काशीराम साहब ने मूलनिवासी बहुजनों के इतर संगठन में किसी को शामिल करने के पक्ष में नहीं थे क्यों कि उनका मानना था कि परिवर्तन की उनको जरूरत नहीं है। वो तो पहले से ही हुक्मरान है। वो लोग संगठन में आयेंगे तो ये परिवर्तन का आन्दोलन ठप होगा जो की हमें नहीं होने देना है बल्कि बहुजन समाज अकेले दम पर शासक बनेगा ''होऊ सकत है''
5। मूलनिवासियों की मजबूरी है। लोकतन्त्र जरूरी है।

ब्राह्मण वादी और मनुवादी लोग भले ही व्यक्ति केन्द्रित संगठन चलाये पर मूलनिवासी बहुजन को अपने महापुरुषों द्वरा तय व्यवस्था परिवर्तन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, समतमूलक समाज की स्थापना के लिए और आर्थिक मुक्ति के लिए लोकतांत्रिक संगठन के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

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