बामसेफ का एकीकरण (Unification of BAMCEF)///लीडरशिप का चरित्र लोकतान्त्रिक होना एकीकरण की पहली अनिवार्यता है
बामसेफ का एकीकरण (Unification of BAMCEF)
बामसेफ का एकीकरण क्यों नहीं हो रहा है ऐसा प्रश्न समाज से उठता रहता है। हमने बामसेफ के एकीकरण(Unification of BAMCEF) की पहल का न केवल हमेशा स्वागत किया है बल्कि अपने तरफ से भी रेगुलरली पहल किया है । हम अपने संगठन मे एकीकरण के लिए आवश्यक सारे तत्व पहले से ही शामिल करके चल रहें है। जिससे की एकीकरण मे कोई बाधा न आए। आइये जरा डीटेल व्याख्या करते है।
- जहा तक उद्देश्य की बात है तो बामसेफ़ के सारे ग्रुप का उद्देश्य व्यवस्था परिवर्तन है। बामसेफ का उद्देश्य ब्राह्मण-वाद जो की गैर बराबरी की भावना है, को जड़ से उखाड़ कर समतामूलक समाज (संबिधान के प्रस्तावना में दिए गए शब्द स्वतंत्रता, समता, बंधुत्व, न्याय एवं मानवता पर आधारित समाज) की स्थापना करना है। अर्थात उद्देश्य का एकीकरण पहले से ही है।
- सारे ग्रुप की विचारधारा फुले और अंबेडकर की विचारधारा ही है। अर्थात विचारधारा का भी एकीकरण पहले से ही है।
- सारे ग्रुप एक ही नाम बामसेफ़, इस्तेमाल कर रहे हैं। अर्थात संगठन का भी एकीकरण पहले से ही है। सारे ग्रुप के कार्यकर्ता पहले से ही एकीकरण का दबाव दे रहे है।
- अब रही बात लीडरशिप के एकीकरण की। बामसेफ़ के विभिन्न ग्रुप मे लीडरशिप के मुद्दे पर ही मतभेद है। यदि लीडरशिप उद्देश्य के लिए समर्पित होकर बामसेफ़ चला रही है तो उनका एकीकरण तो हो सकता है, लेकिन यदि लीडरशिप करने वाले लोग उद्देश्य से ज्यादा अपना व्यक्तिगत महत्व देना चाहते हो तो ऐसे लोगो का न तो एकीकरण हो सकता है न ही ऐसे लोग एकीकरण की प्रक्रिया को पसंद करेंगे। क्योकि उन्होने संगठन तोड़ कर या छोड़ कर नया बनाया ही इस लिए है कि वे खुद को कैसे स्थापित कर सके। इस लिए साथियो लीडरशिप का चरित्र लोकतान्त्रिक होना एकीकरण की पहली अनिवार्यता है।इसका ध्यान हमने पहले से ही रखा है। इस लिए ही हमने 2003 से ही संगठन मे आंतरिक लोकतन्त्र और संस्थागत नेतृत्व का सिधान्त लागू किया है।
- हमने व्यक्ति विशेष निर्माण के वजाय संगठन निर्माण पर ज़ोर दिया और भीड़ खड़ी करने के वजाय उद्देश्य, विचारधारा और संगठन के प्रति समर्पित कैडर तैयार करने पर ध्यान दिया। हमने लोगो को ट्रेनिंग देने के लिए सिलेबस तैयार किया है. एक बार ट्रेनिंग लेकर सिलेबस के अनुसार कोई भी ट्रेनिंग दे सकता है. हमने लाखो ट्रेनर तैयार करने का लक्ष्य निर्धारित किया है. इस लिए नए लोगो को ट्रेनिग देना और उनको अवसर दे कर उनकी प्रतिभा का विकास हम कर रहे हैं. एक व्यक्ति के सहारे हम बैठे नहीं है. हमारे यहाँ सभी सत्रों की अध्यक्षता अलग अलग केंद्रीय कार्यकारणी के सदस्य करते है जिससे की संगठन में सबको बढ़ने का और सबकी प्रतिभा को निखारने का सामान अवसर मिल सके. क्योकि हम नहीं चाहते की हम व्यक्ति को तैयार करे और फिर दुश्मन उस व्यक्ति की कोई कमजोरी को पकड़ कर पूरे संगठन और पूरे आंदोलन को नियंत्रित कर ले. एक व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमने वाले, व्यक्ति-केन्द्रित संगठन व्यक्तियों के साथ पैदा होतें हैं और उन्ही के साथ ख़त्म हो जातें हैं व्यक्ति केन्द्रित संगठन कोई भी हो अंत में ब्राह्मणवाद के तरफ ही जायेगा....क्योकि तानाशाही और ब्राह्मणवाद सहोदर भाई है और प्रजातंत्र और ब्राह्मणवाद एक दुसरे की धुर विरोधी. हमारा विश्वाश है कि संस्थागत नेतृत्व से होऊ सकत है।
- हमारे यहाँ लोकतंत्र है, हर दुसरे वर्ष लोकतान्त्रिक पद्धति से नया अध्यक्ष चुन लिया जाता है. अध्यक्ष व केंद्रीय कार्यकारिणी के सदस्यो का चुनाव लोकतान्त्रिक पद्धति से जनरल बॉडी द्वरा किया जाता है। हमारे यहा जनरल बॉडी निर्णय लेने वाली सर्वोच्च संस्था है जो सारे नीतिगत निर्णय लेती है और केंद्रीय कार्यकारिणी इन निर्णयो को क्रियान्वित करती है। जनरल बॉडी मे सभी राज्यो से उनके बामसेफ की सदस्यता के अनुपात मे सदस्य चयनित होते है। बहरहाल 2003-2007 तक हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय बी डी बोरकर जी थे...अभी वे केन्द्रीय कार्यकारणी के सदस्य है. 2007-2009 तक हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ चंदू म्हस्के जी थे.. 2009-2011 हमारे राष्ट्रीय माननीय अध्यक्ष सुरेन्द्र सिंह धम्मी जी थे...अभी वे केन्द्रीय कार्यकारणी के सदस्य है. वर्तमान (2011-2013) में हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष माननीय अशोक परमार जी व राष्ट्रीय महासचिव धनीराम आर्य जी है और राष्ट्रीय प्रचारक माननीय हेमराज सिंह पटेल जी है. हमारे यहाँ अध्यक्ष हर दुसरे वर्ष लोकतान्त्रिक पद्धति से चुना जाता है. हमारे यहाँ तो बामसेफ और मूलनिवासी संघ का अध्यक्ष अलग-अलग व्यक्ति होते है. वर्तमान में मूलनिवासी संघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बी डी बोरकर जी है. हमारा तीसरा कोई भी संगठन नहीं है। अगर भबिश्य में तीसरा संगठन बनता है तो उसका अध्यक्ष कोई तीसरा व्यक्ति होगा न कि एक ही व्यक्ति के हाथ मे तीनों संगठन सौप दिया जाय।
- मान लो यदि व्यक्ति केन्द्रित लोग सफल भी हो गए तो वे समाज की समस्या हल करने की वजाय स्व्यम की समस्या हल करने लंगेगे। प्रारम्भ मे ऐसा लगता है कि इनहोने गृह त्याग किया है और बहुजन समाज ही इनका परिवार है। बहुजन समाज के साधन, संसाधन और सहयोग से सफल होने के बाद मे इनके भाई, बहन, माता, पिता सब आ जाते है। क्या बहुजन समाज धोखा खाने के लिए पुनः तैयार है ?
मूलनिवासी बहुजन समाज के बुद्धजीवियों का भी इसमे योगदान है कि वे संगठन चाहते है या व्यक्ति? यह निर्णय लेकर उनको संबन्धित पक्ष का समर्थन देना होगा।
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