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Memories of Another day

Memories of Another day
While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Monday, August 19, 2013

Rajiv Nayan Bahuguna मेरे संपादक , मेरे संतापक ---२१ क़ैद सही हैपर उसमें ज़ंजीर का आहन चुभता है

मेरे संपादक , मेरे संतापक ---२१

क़ैद सही हैपर उसमें ज़ंजीर का आहन चुभता है 
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करीब पंद्रह मिनट तक यह झक बाज़ी होती देख विमान के दरवाज़े पर बैठे पायलट सरदार जी ने हस्तक्षेप किया - " ओये , क्या मंदी गल कित्ता तुसी . मई अपने इसी जहाज़ पर कयी उग्रवादियों तक को ढो चूका हूँ , तब भी ऐसा ड्रामा नहीं देखा . यासीन मालिक को श्रीनगर से मई ही उठा लाया था . क्या ज़रुरत है इन पुलिस वालों की ? छोडो इनको और इन दोनों बन्दों को बाबा जी के साथ आने दो . मई ऐसे भी किसी हथियार बंद आदमी को जहाज़ पर नहीं बैठने दूंगा . एस डी एम् किंकर्तव्यविमूढ़ होकर एक किनारे जाकर वाकी टाकी से कहीं बात करने लगा . ज्यादा देर करना उसे भारी पड सकता था . कुछ ही देर पहले ओ एन जी सी का एक अन्य विशेष विमान वहां उतरा तो उसके सभी सवार अधिकारियों ने मेरे पिता को घेर लिया , और पुलिस - प्रशासन को जैम कर कोसने लगे . उन्हीं में से एक ने डिटाल ला कर मेरे पिता के ज़ख्मों पर लगाया . मज़्बूओर एस डी एम् ने हमें भी गिरफ्तार कर लिया , क्योंकि इसके सिवा हमें साथ ले जाने का कोई रास्ता नहीं था .कानूनी पेच फंस सकता था . विमान में चढ़ते ही दोनों पायलटों ने मेरे पिता के चरण स्पर्श किये . इन दोनों सरकारी कर्मचारियों की " नमक हरामी " पर एस डी एम् हैरान था . वह एक राजद्रोही कैदी के चरणों में अवनत हो रहे थे .एक पायलट सरदार जी थे और दुसरे गले में क्रास लटकाए क्रिश्चियन . विमान में सम्मान सहित बैठने लायक चार ही सीटें थीं . बाकी पीछे एक लम्बी आड़ी सीट सामान रखने या भृत्यों के बैठने के लिए थी . एस डी एम् ने मुझे और मेरे मित्र को उस नौकरों वाली सीट पर बैठने का इशारा किया . मित्र ने उसे धकियाया और हम दोनों ने प्रतिष्ठित सीट ले ली . धक्का खाकर एस डी एम् जवाबी हमला करने को उद्यत हुआ तो पायलट ने धमकाया - अभी ए टी सी को बताता हूँ की टिहरी से बाबा जी के साथ आया एडमिनिस्ट्रेशन का बन्दा जहाज़ में हंगामा कर रहा है . एस डी एम् घबराकर मेरे पिता की बगल में बैठ गया . उसे समझ आ गया था की अब उसका राज ख़त्म हो चूका है , और विमान में पायलेट ही मजिस्ट्रेट है . हाथा पायी की नौबत एक बार फिर आई , जब मित्र ने उसके हाथ से अखबार छीन लिया , जो सरदार जी दिल्ली से लाएथे . सरदार जी ने फिर उसे धमकाया - ओये नहीं मानेगा न तू ? विमान अपनी वांछित ऊंचाई हासिल कर चुका था , और डाक्टर तथा डी एस पी नौकरों वाली सीट ग्रहण कर चुके थे . शाही कैदियों को लेकर जा रहे इस दल में अगर कोई तनाव मुक्त था , तो वह थे विमान के दोनों पायलेट 
( जारी )

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