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From: Roma <romasnb2013@gmail.com>
Date: 2013/8/12
Subject: Protest against Hindalco hospital by adivasi women, Renukut, sonbhadraहिंड़ालको हस्पताल के खिलाफ आदिवासी महिलाओं का प्रर्दशन - रेणूकूट, सोनभद्र, 5 अगस्त 2013
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From: Roma <romasnb2013@gmail.com>
Date: 2013/8/12
Subject: Protest against Hindalco hospital by adivasi women, Renukut, sonbhadraहिंड़ालको हस्पताल के खिलाफ आदिवासी महिलाओं का प्रर्दशन - रेणूकूट, सोनभद्र, 5 अगस्त 2013
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report attach bhi hai photos ke saath
रिपोर्ट
हिंड़ालको हस्पताल के खिलाफ आदिवासी महिलाओं का प्रर्दशन - रेणूकूट, सोनभद्र, 5 अगस्त 2013
रेणूकूट, सोनभद्र: दिनांक 5 अगस्त 2013 को सैंकड़ों आदिवासीयों ने सोनभद्र के रेणूकूट स्थित बिरला ग्रुप द्वारा संचालित हिंडालको हस्पताल पर आदिवासी बालक मिथिलेश कुमार गोंण की डाक्टरों द्वारा बरती गई लापरवाही की वजह से मौत के खिलाफ प्रर्दशन किया। कैमूर क्षेत्र मज़दूर महिला किसान संघर्ष समिति एवं अखिल भारतीय वनश्रमजीवी यूनियन के बैनर तले इस प्रर्दशन ने समूचे हिंडालकों में रहने वाले सभी वर्गो पर गहरा असर छोड़ा चूंकि इस वनक्षेत्र में 60 कि0मी के दायरे में केवल यहीं एक हस्पताल है जिस के उपर यहां की जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग निर्भर है। लेकिन इस हस्पताल में कई ऐसी घटनाए पिछले दिनों में हुई हैं जिसे लेकर आम जनमानस में एक रोष व्यापत है। मिथिलेश कुमार गोंण निवासी ग्राम मझौली तहसील दुद्धी का रहने वाला था जिसे की 13 जुलाई 2013 को बुखार व खून की कमी के कारण हिंड़ालको हस्पताल रैफर कर दिया गया था। रात का समय होने के कारण माता पिता उसे नज़दीक इसी हस्पताल में ले आए जहां पर जांच करने के बाद पाया गया कि मिथिलेश को खून की भारी कमी थी व उसके सफेद कण प्लेटिलेट भी काफी कम हो चुके थे। उसकी स्थिति अत्यंत ही गंभीर बनी हुई थी। उसे डाक्टरों की सलाह से ही खून दिया जाना था, रात के समय माता पिता का खून उसके ग्रुप से नहीं मिला इस के लिए हस्पताल द्वारा लगातार यहीं कहा गया कि खून देने के लिए किसी ओर को लाया जाए। लेकिन काफी कहा सुनी के बाद खून का इंतेज़ाम हस्पताल में ही ब्लड बैंक द्वारा किया गया लेकिन मिथिलेश को खून नहीं चढ़ाया गया और सुबह 14 जुलाई 2013 को मिथिलेश की इलाज की कमी की वजह से मौत हो गई। मिथिलेश 13 वर्ष की उम्र का बच्चा था जो कि अखिल भारतीय वनश्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्या सोकालों गोंण का एकमात्र पुत्र था। इस मौत ने सभी को हिला कर रख दिया व सोकालो गोंण के अनुसार हस्पताल प्रशासन द्वारा उसके साथ काफी खराब व्यवहार भी किया गया और उसे सच्चाई नहीं बताई गई। जबकि खून चढ़ाने के लिए उससे 3000 रू तक ले लिए गए थे। इस मामले पर पूरे संगठन में काफी गुस्सा था व 15 जुलाई को हज़ारों की संख्या में आदिवासीयों द्वारा जिलाधिकारी के कार्यालय में घुस कर इस घटना का विरोध किया गया था व मांग की गई थी कि इस घटना की उच्च स्तरीय जांच की जाए। लेकिन जिला प्रशासन ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया व न ही इस घटना की कोई जांच की। इस घटना के लिए संगठन ने अपने माध्यम से एक पत्र केन्द्रीय ग्रामीण मंत्री श्री जयराम रमेश को लिखा व जांच की मांग की। श्री रमेश ने यह मामला कुमारमंगलम बिरला जी के संज्ञान में डाला व तब एक जांच सीएमओ द्वारा की गई लेकिन उसमे पीडि़त पक्ष का ब्यान नहीं लिया गया। इस मामले में हो रही ढि़लाई को देखते हुए संगठन ने ऐलान किया कि अगर लापरवाह डाक्टरों पर इस मामले को लेकर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं होगी तो 5 अगस्त को हस्पताल में आदिवासीयों द्वारा ताला जड़ ऐसे हस्पतालों को बंद करने की कार्यवाही की जाएगी। इसी कार्यक्रम के तहत 5 अगस्त को सैंकड़ों की संख्या में आदिवासी समुदाय कई जिलों चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र एवं आसपास के राज्यों जैसे झाड़खंड़ व बिहार से रेलवे स्टेशन पर एकत्रित हुए एवं नारे लगाते हुए जुलूस की शक्ल में हिंड़ाको बाज़ार होते हुए, कम्पनी के गेट के सामने कुछ देर के लिए चक्का जाम करते हुए हस्पताल के प्रांगण में पहुंचे। ''हिंड़ालकों अस्पताल के डाक्रों और नर्सो को मिथिलेश की हत्या के लिए सज़ा दो'', हिंड़ालको कम्पनी को उखाड़ के फेंक दो'', ''पूंजीवाद मुर्दाबाद'', ''ंिहंड़ालको का अस्पताल कौन चलाएगा हम चलाएगें'', ''जो जमींन सरकारी है वो हमारी है'' आदि के नारे लगाते हुए महिलाओं ने कम्पनी को चुनौती दी।
जुलूस द्वारा काफी देर तक हिंड़ालकों कम्पनी के गेट पर चक्का जाम कर माईक द्वारा प्रर्दशन करने के कारणों को आदिवासी महिलाओं द्वारा बताया गया। उसके बाद जुलूस हस्पताल की और बढ़ा जो कि बीच शहर में है। हस्पताल का गेट बंद था लेकिन महिलाओं की चेतावनी के आगे हिंड़ालकों प्रशासन की नहीं चली व जुलूस को आते देख फौरन ही गेट खोल दिया गया। तत्पश्चात महिलाओं द्वारा हस्पताल के ब्लड बैंक के सामने धरना प्रर्दशन किया गया। हिंड़ालको कम्पनी द्वारा सभी गेटों पर ताला लगा दिया गया। प्रर्दशनकारीयों ने यह शर्त रखी कि बिना डीएम व एसपी के किसी भी प्रकार की वार्ता नहीं होगी चूंकि मामला काफी संगीन है। साथ में यह शर्त भी रखी कि वार्ता में हस्पताल के सीएमओ व हिंड़ालको प्रशासन के आला अफसर होने चाहिए। महिलाए सारा दिन भूखे प्यासे अपने बच्चों के साथ प्रर्दशन में शामिल रही लेकिन सोनभद्र के एसपी व डीएम यहीं बताते रहे कि वे जनपद से बाहर हैं। इसपर प्रर्दशनकारीयों ने कहा कि वे इन अधिकारीयों का इंतजार करने के लिए तैयार हैं व वे जब तक नहीं आएगें तब तक प्रर्दशनकारी वहां से नहीं जाएगें चाहे इसके लिए उन्हें कई दिन भी लग जाए। इस चेतावानी को प्रशासन ने बिल्कुल भी गंभीर रूप से नहीं लिया व समझा कि यह केवल गीदड़ भभकी है।
वहीं इस प्रर्दशन से रेणूकूट नगरवासी भी प्रर्दशनकारीयों के साथ खड़े होगए चूंकि उनकी भी ऐसे कई मामले थे जहां पर हस्पताल में उनके साथ काफी उत्पीड़न किया गया। कम्पनी के मज़दूरों ने बताया कि उनके परिजनों का सही इलाज नहीं होता है व यहां अक्सर इलाज के अभाव से मौते हो जाती है इसके लिए अगर वे आवाज़ भी उठाते हैं तो उनको तरह तरह से सताया जाता है। उनके गेट पास छीन लिए जाते हैं व उन्हें नौकरी तक से बर्खास्त किया जाता है व क्वाटर से बेदखल कर दिया जाता है। इस प्रर्दशन से नगरवासीयों को भी काफी आस जगी व वे भी आदिवासी महिलाओं के साथ इस प्रर्दशन में शामिल हो गए। नगर चैयरमेन अनिल सिंह पूरी तरह से इस प्रर्दशन को समर्थन देने के लिए प्रर्दशन में शामिल हुए व उन्होंने दोपहर को भूखे प्रर्दशनकारीयों को लाई, चना के कई बोरे ला कर बंटवाए एवं दो टेंकर पानी भी मंगवा कर प्रर्दशनकारीयों की मदद की। उन्होंने भी मंच के माध्यम से बताया कि किस प्रकार हस्पताल के अंदर रोगीयों का इलाज करने के नाम पर हिंड़ालको मैनेजमेंट काफी मोटा पैसा कमा रही है जबकि हस्पताल का ढ़ाचा खड़ा करने में सरकार का काफी योगदान है। रेणूकूट के सामाजिक कार्यकर्ता बबलू सिंह द्वारा भी इस प्रर्दशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया। आदिवासी महिलाओं राजकुमारी, लालती घसिया, लालती पासवान, हुलसी उरांव आदि ने भी कहा कि बिरला कम्पनी अब होश में आ जाए चूंकि हस्पताल बनाने की भूमि आदिवासीयों से छीनी गई भूमि है इसलिए आदिवासी के इलाज की अनदेखी बिल्कुल नहीं की जा सकती। अब तो वनक्षेत्र में वनाधिकार कानून 2006 के तहत बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने की जिम्मेदारी सरकार की है इसलिए अगर कोई सरकारी हस्पताल इस क्षेत्र में नहीं है तो हिंड़ालको हस्पताल को आदिवासीयों को निशुल्क स्वास्थ सुविधाए उपलब्ध करानी होगी।
अधिकारीयों द्वारा उच्चस्तरीय वार्ता की हिलाहवाली करने पर महिलाओं ने हस्पताल में अपना ताला जड़ने को ऐलान किया व सभी प्रर्दशनकारीयों ने दो-दो रू इकटठा कर चार तालों को खरीदा व ब्लड बैंक के गेट को फांद कर अंदर चली गई। इससे पुलिस का मनोबल काफी टूट गया, वे चाह कर भी कुछ नहीं कर पाए व सारा प्रशासन व हिंड़ालको कम्पनी प्रर्दशनकारी संगठन के दबाव में आ गया। जिसपर रोमा द्वारा प्रशासन को चेतावनी दी गई कि अगर संगठन के साथ सम्मानजनक वार्ता नहीं की गई तो यह प्रर्दशन लम्बे समय तक ज़ारी रहेगा। कम्पनी द्वारा हस्पताल के गेट पर ताला लगाने को गैरसंवैधानिक बताते हुए रोमा ने कहा कि आंिखर कम्पनी को क्या डर है जिसकी वजह से हस्पताल के गेट पर ताला लगाया गया जबकि हस्पताल के किसी भी गेट पर ताला लगाया जाना गैरकानूनी है। रेामा ने यह भी कहा कि संगठन द्वारा पत्र द्वारा प्रशासन को पहले ही सूचित कर दिया गया था कि संगठन प्रशासन के साथ डाक्टरों द्वारा की गई लापरवाही पर वार्ता करना चाहता है। लेकिन कम्पनी द्वारा संगठन के साथ गलत बर्ताव यह र्दशाता है कि हस्पताल के डाक्टर व नर्से देाषी हैं।
सांय करीब 7 बजे अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रर्दशन स्थल पर पहुंचे, उस समय तक प्रर्दशनकारीयों के अलावा रेणूकूट के हज़ारों नागरिक भी वहां एकत्रित हो चुके थे। वार्ता खुले में हुई जो कि ब्लड बैंक के सामने कुर्सीयां लगा कर सभी के सामने की गई। वार्ता में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, सीएमओ श्री जैन व हिंड़ालको प्रशासन के प्रशासनिक अफसर के अलावा सीओ, एसओ आदि शामिल थे। इस वार्ता में मिथिलेश कुमार की माता सुश्री सोकालों गोंण, उनके परिवार के अन्य सदस्य व संगठन से रोमा एवं हुलसी, लालती, राजकुमारी, शिवकुमारी,कलावती, शंभुनाथ, श्यामलाल, लालमन, रमाशंकर आदि उपस्थित थे। संगठन के साथीयों ने अपना ज्ञापन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को सौंपा जिसमें मिथिलेश की मौत के कारण जानने के लिए उच्च स्तरीय जांच, दोषी पाए जाने पर सीएमओ व डाक्टरों पर मुकदमा व जेल, पीडि़त को 50 लाख का मुवाअजा, आदिवासीयों व गरीब वर्गो के लिए निशुल्क डाक्टरी सेवा व उपचार, रेणूकूट शहर में एक अन्य बड़ा अस्पताल बनाने की मांग आदि को था। इस पर मांग की गई कि एक महीने के अंदर यदि सभी मांगों को नहीं माना गया तो अस्पताल के संदर्भ में पूरे देश से यूनियन के सदस्य रेणूकूट में फिर से एकत्रित होगें व मांगों को पूरा न करने का जवाब मांगेगें। यह कार्यक्रम 21 व 22 सितम्बर को तय किया गया है जब पूरे देश के साथी हिंड़ालकों रेणूकूट मे पहंुच कर वनाधिकार कानून के लागू करने व उससे जुड़े गंभीर मुददे स्वास्थ, शिक्षा आदि पर अपना विशाल प्रर्दशन करेगें। रात को करीब 9 बजे वार्ता सामप्त हुई इसके बाद लोग अपने घरों को वापिस गए। इस प्रर्दशन ने आमजन मानस पर काफी गहरा असर डाला जो कि हिंडालकों के भ्रष्ट प्रशासन से त्रस्त हैं व मुंह खोलने की हिम्मत नहीं रखते क्येांकि उन्हें उनकी नौकरी से हाथ धोने का खतरा है। वहीं मीडिया भी पूरी तरह से हिंडालकों कम्पनी के हाथों बिकी हुई है व कम्पनी के किसी भी विवादास्पद मामले पर कोई भी रिपोर्ट तैयार नहीं की जाती। इस विशाल प्रर्दशन की भी रिपोर्ट अगले दिन अखबारों से गायब थी। मीडिया के इस बिकाउपन की वजह से कम्पनी मैनेजमेंट के भ्रष्ट कुकृत्य सामने नहीं आ पा रहे है व जनता के साथ खुलेआम धोखाधड़ी की जा रही है। इस संदर्भ में अगर उच्च स्तरीय जांच नहीं होती तो संगठन इस मामले पर विशाल जनआन्दोलन करेगा।
रिपोर्ट: रोमा
रेणूकूट, सोनभद्र: दिनांक 5 अगस्त 2013 को सैंकड़ों आदिवासीयों ने सोनभद्र के रेणूकूट स्थित बिरला ग्रुप द्वारा संचालित हिंडालको हस्पताल पर आदिवासी बालक मिथिलेश कुमार गोंण की डाक्टरों द्वारा बरती गई लापरवाही की वजह से मौत के खिलाफ प्रर्दशन किया। कैमूर क्षेत्र मज़दूर महिला किसान संघर्ष समिति एवं अखिल भारतीय वनश्रमजीवी यूनियन के बैनर तले इस प्रर्दशन ने समूचे हिंडालकों में रहने वाले सभी वर्गो पर गहरा असर छोड़ा चूंकि इस वनक्षेत्र में 60 कि0मी के दायरे में केवल यहीं एक हस्पताल है जिस के उपर यहां की जनसंख्या का एक बड़ा वर्ग निर्भर है। लेकिन इस हस्पताल में कई ऐसी घटनाए पिछले दिनों में हुई हैं जिसे लेकर आम जनमानस में एक रोष व्यापत है। मिथिलेश कुमार गोंण निवासी ग्राम मझौली तहसील दुद्धी का रहने वाला था जिसे की 13 जुलाई 2013 को बुखार व खून की कमी के कारण हिंड़ालको हस्पताल रैफर कर दिया गया था। रात का समय होने के कारण माता पिता उसे नज़दीक इसी हस्पताल में ले आए जहां पर जांच करने के बाद पाया गया कि मिथिलेश को खून की भारी कमी थी व उसके सफेद कण प्लेटिलेट भी काफी कम हो चुके थे। उसकी स्थिति अत्यंत ही गंभीर बनी हुई थी। उसे डाक्टरों की सलाह से ही खून दिया जाना था, रात के समय माता पिता का खून उसके ग्रुप से नहीं मिला इस के लिए हस्पताल द्वारा लगातार यहीं कहा गया कि खून देने के लिए किसी ओर को लाया जाए। लेकिन काफी कहा सुनी के बाद खून का इंतेज़ाम हस्पताल में ही ब्लड बैंक द्वारा किया गया लेकिन मिथिलेश को खून नहीं चढ़ाया गया और सुबह 14 जुलाई 2013 को मिथिलेश की इलाज की कमी की वजह से मौत हो गई। मिथिलेश 13 वर्ष की उम्र का बच्चा था जो कि अखिल भारतीय वनश्रमजीवी यूनियन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्या सोकालों गोंण का एकमात्र पुत्र था। इस मौत ने सभी को हिला कर रख दिया व सोकालो गोंण के अनुसार हस्पताल प्रशासन द्वारा उसके साथ काफी खराब व्यवहार भी किया गया और उसे सच्चाई नहीं बताई गई। जबकि खून चढ़ाने के लिए उससे 3000 रू तक ले लिए गए थे। इस मामले पर पूरे संगठन में काफी गुस्सा था व 15 जुलाई को हज़ारों की संख्या में आदिवासीयों द्वारा जिलाधिकारी के कार्यालय में घुस कर इस घटना का विरोध किया गया था व मांग की गई थी कि इस घटना की उच्च स्तरीय जांच की जाए। लेकिन जिला प्रशासन ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया व न ही इस घटना की कोई जांच की। इस घटना के लिए संगठन ने अपने माध्यम से एक पत्र केन्द्रीय ग्रामीण मंत्री श्री जयराम रमेश को लिखा व जांच की मांग की। श्री रमेश ने यह मामला कुमारमंगलम बिरला जी के संज्ञान में डाला व तब एक जांच सीएमओ द्वारा की गई लेकिन उसमे पीडि़त पक्ष का ब्यान नहीं लिया गया। इस मामले में हो रही ढि़लाई को देखते हुए संगठन ने ऐलान किया कि अगर लापरवाह डाक्टरों पर इस मामले को लेकर किसी प्रकार की कार्यवाही नहीं होगी तो 5 अगस्त को हस्पताल में आदिवासीयों द्वारा ताला जड़ ऐसे हस्पतालों को बंद करने की कार्यवाही की जाएगी। इसी कार्यक्रम के तहत 5 अगस्त को सैंकड़ों की संख्या में आदिवासी समुदाय कई जिलों चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र एवं आसपास के राज्यों जैसे झाड़खंड़ व बिहार से रेलवे स्टेशन पर एकत्रित हुए एवं नारे लगाते हुए जुलूस की शक्ल में हिंड़ाको बाज़ार होते हुए, कम्पनी के गेट के सामने कुछ देर के लिए चक्का जाम करते हुए हस्पताल के प्रांगण में पहुंचे। ''हिंड़ालकों अस्पताल के डाक्रों और नर्सो को मिथिलेश की हत्या के लिए सज़ा दो'', हिंड़ालको कम्पनी को उखाड़ के फेंक दो'', ''पूंजीवाद मुर्दाबाद'', ''ंिहंड़ालको का अस्पताल कौन चलाएगा हम चलाएगें'', ''जो जमींन सरकारी है वो हमारी है'' आदि के नारे लगाते हुए महिलाओं ने कम्पनी को चुनौती दी।
जुलूस द्वारा काफी देर तक हिंड़ालकों कम्पनी के गेट पर चक्का जाम कर माईक द्वारा प्रर्दशन करने के कारणों को आदिवासी महिलाओं द्वारा बताया गया। उसके बाद जुलूस हस्पताल की और बढ़ा जो कि बीच शहर में है। हस्पताल का गेट बंद था लेकिन महिलाओं की चेतावनी के आगे हिंड़ालकों प्रशासन की नहीं चली व जुलूस को आते देख फौरन ही गेट खोल दिया गया। तत्पश्चात महिलाओं द्वारा हस्पताल के ब्लड बैंक के सामने धरना प्रर्दशन किया गया। हिंड़ालको कम्पनी द्वारा सभी गेटों पर ताला लगा दिया गया। प्रर्दशनकारीयों ने यह शर्त रखी कि बिना डीएम व एसपी के किसी भी प्रकार की वार्ता नहीं होगी चूंकि मामला काफी संगीन है। साथ में यह शर्त भी रखी कि वार्ता में हस्पताल के सीएमओ व हिंड़ालको प्रशासन के आला अफसर होने चाहिए। महिलाए सारा दिन भूखे प्यासे अपने बच्चों के साथ प्रर्दशन में शामिल रही लेकिन सोनभद्र के एसपी व डीएम यहीं बताते रहे कि वे जनपद से बाहर हैं। इसपर प्रर्दशनकारीयों ने कहा कि वे इन अधिकारीयों का इंतजार करने के लिए तैयार हैं व वे जब तक नहीं आएगें तब तक प्रर्दशनकारी वहां से नहीं जाएगें चाहे इसके लिए उन्हें कई दिन भी लग जाए। इस चेतावानी को प्रशासन ने बिल्कुल भी गंभीर रूप से नहीं लिया व समझा कि यह केवल गीदड़ भभकी है।
वहीं इस प्रर्दशन से रेणूकूट नगरवासी भी प्रर्दशनकारीयों के साथ खड़े होगए चूंकि उनकी भी ऐसे कई मामले थे जहां पर हस्पताल में उनके साथ काफी उत्पीड़न किया गया। कम्पनी के मज़दूरों ने बताया कि उनके परिजनों का सही इलाज नहीं होता है व यहां अक्सर इलाज के अभाव से मौते हो जाती है इसके लिए अगर वे आवाज़ भी उठाते हैं तो उनको तरह तरह से सताया जाता है। उनके गेट पास छीन लिए जाते हैं व उन्हें नौकरी तक से बर्खास्त किया जाता है व क्वाटर से बेदखल कर दिया जाता है। इस प्रर्दशन से नगरवासीयों को भी काफी आस जगी व वे भी आदिवासी महिलाओं के साथ इस प्रर्दशन में शामिल हो गए। नगर चैयरमेन अनिल सिंह पूरी तरह से इस प्रर्दशन को समर्थन देने के लिए प्रर्दशन में शामिल हुए व उन्होंने दोपहर को भूखे प्रर्दशनकारीयों को लाई, चना के कई बोरे ला कर बंटवाए एवं दो टेंकर पानी भी मंगवा कर प्रर्दशनकारीयों की मदद की। उन्होंने भी मंच के माध्यम से बताया कि किस प्रकार हस्पताल के अंदर रोगीयों का इलाज करने के नाम पर हिंड़ालको मैनेजमेंट काफी मोटा पैसा कमा रही है जबकि हस्पताल का ढ़ाचा खड़ा करने में सरकार का काफी योगदान है। रेणूकूट के सामाजिक कार्यकर्ता बबलू सिंह द्वारा भी इस प्रर्दशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया। आदिवासी महिलाओं राजकुमारी, लालती घसिया, लालती पासवान, हुलसी उरांव आदि ने भी कहा कि बिरला कम्पनी अब होश में आ जाए चूंकि हस्पताल बनाने की भूमि आदिवासीयों से छीनी गई भूमि है इसलिए आदिवासी के इलाज की अनदेखी बिल्कुल नहीं की जा सकती। अब तो वनक्षेत्र में वनाधिकार कानून 2006 के तहत बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने की जिम्मेदारी सरकार की है इसलिए अगर कोई सरकारी हस्पताल इस क्षेत्र में नहीं है तो हिंड़ालको हस्पताल को आदिवासीयों को निशुल्क स्वास्थ सुविधाए उपलब्ध करानी होगी।
अधिकारीयों द्वारा उच्चस्तरीय वार्ता की हिलाहवाली करने पर महिलाओं ने हस्पताल में अपना ताला जड़ने को ऐलान किया व सभी प्रर्दशनकारीयों ने दो-दो रू इकटठा कर चार तालों को खरीदा व ब्लड बैंक के गेट को फांद कर अंदर चली गई। इससे पुलिस का मनोबल काफी टूट गया, वे चाह कर भी कुछ नहीं कर पाए व सारा प्रशासन व हिंड़ालको कम्पनी प्रर्दशनकारी संगठन के दबाव में आ गया। जिसपर रोमा द्वारा प्रशासन को चेतावनी दी गई कि अगर संगठन के साथ सम्मानजनक वार्ता नहीं की गई तो यह प्रर्दशन लम्बे समय तक ज़ारी रहेगा। कम्पनी द्वारा हस्पताल के गेट पर ताला लगाने को गैरसंवैधानिक बताते हुए रोमा ने कहा कि आंिखर कम्पनी को क्या डर है जिसकी वजह से हस्पताल के गेट पर ताला लगाया गया जबकि हस्पताल के किसी भी गेट पर ताला लगाया जाना गैरकानूनी है। रेामा ने यह भी कहा कि संगठन द्वारा पत्र द्वारा प्रशासन को पहले ही सूचित कर दिया गया था कि संगठन प्रशासन के साथ डाक्टरों द्वारा की गई लापरवाही पर वार्ता करना चाहता है। लेकिन कम्पनी द्वारा संगठन के साथ गलत बर्ताव यह र्दशाता है कि हस्पताल के डाक्टर व नर्से देाषी हैं।
सांय करीब 7 बजे अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक प्रर्दशन स्थल पर पहुंचे, उस समय तक प्रर्दशनकारीयों के अलावा रेणूकूट के हज़ारों नागरिक भी वहां एकत्रित हो चुके थे। वार्ता खुले में हुई जो कि ब्लड बैंक के सामने कुर्सीयां लगा कर सभी के सामने की गई। वार्ता में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, सीएमओ श्री जैन व हिंड़ालको प्रशासन के प्रशासनिक अफसर के अलावा सीओ, एसओ आदि शामिल थे। इस वार्ता में मिथिलेश कुमार की माता सुश्री सोकालों गोंण, उनके परिवार के अन्य सदस्य व संगठन से रोमा एवं हुलसी, लालती, राजकुमारी, शिवकुमारी,कलावती, शंभुनाथ, श्यामलाल, लालमन, रमाशंकर आदि उपस्थित थे। संगठन के साथीयों ने अपना ज्ञापन अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक को सौंपा जिसमें मिथिलेश की मौत के कारण जानने के लिए उच्च स्तरीय जांच, दोषी पाए जाने पर सीएमओ व डाक्टरों पर मुकदमा व जेल, पीडि़त को 50 लाख का मुवाअजा, आदिवासीयों व गरीब वर्गो के लिए निशुल्क डाक्टरी सेवा व उपचार, रेणूकूट शहर में एक अन्य बड़ा अस्पताल बनाने की मांग आदि को था। इस पर मांग की गई कि एक महीने के अंदर यदि सभी मांगों को नहीं माना गया तो अस्पताल के संदर्भ में पूरे देश से यूनियन के सदस्य रेणूकूट में फिर से एकत्रित होगें व मांगों को पूरा न करने का जवाब मांगेगें। यह कार्यक्रम 21 व 22 सितम्बर को तय किया गया है जब पूरे देश के साथी हिंड़ालकों रेणूकूट मे पहंुच कर वनाधिकार कानून के लागू करने व उससे जुड़े गंभीर मुददे स्वास्थ, शिक्षा आदि पर अपना विशाल प्रर्दशन करेगें। रात को करीब 9 बजे वार्ता सामप्त हुई इसके बाद लोग अपने घरों को वापिस गए। इस प्रर्दशन ने आमजन मानस पर काफी गहरा असर डाला जो कि हिंडालकों के भ्रष्ट प्रशासन से त्रस्त हैं व मुंह खोलने की हिम्मत नहीं रखते क्येांकि उन्हें उनकी नौकरी से हाथ धोने का खतरा है। वहीं मीडिया भी पूरी तरह से हिंडालकों कम्पनी के हाथों बिकी हुई है व कम्पनी के किसी भी विवादास्पद मामले पर कोई भी रिपोर्ट तैयार नहीं की जाती। इस विशाल प्रर्दशन की भी रिपोर्ट अगले दिन अखबारों से गायब थी। मीडिया के इस बिकाउपन की वजह से कम्पनी मैनेजमेंट के भ्रष्ट कुकृत्य सामने नहीं आ पा रहे है व जनता के साथ खुलेआम धोखाधड़ी की जा रही है। इस संदर्भ में अगर उच्च स्तरीय जांच नहीं होती तो संगठन इस मामले पर विशाल जनआन्दोलन करेगा।
रिपोर्ट: रोमा
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