From: reyaz-ul-haque <beingred@gmail.com>
Date: 2013/8/15
Subject: धधकते बस्तर में 'नीरो' की बंसी
'हंस' के सितंबर 2012 अंक में प्रकाशित अपनी कहानी 'चांद चाहता था कि धरती रुक जाए' में तरूण भटनागर बस्तर के आदिवासियों के संघर्ष का उपरोक्त सरलीकरण करते हुए उसी भूमिका में हैं, जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य सरकार का पर्यटन विभाग। जिस प्रकार वहां पर्यटन विभाग बस्तर के आदिवासी जीवन को घोटुल का पर्याय मानता है उसी तरह कहानीकार बस्तर के समूचे संघर्ष को घोटुल बचाने और नष्ट करने की कोशिशों तक सीमित कर देता है। यूं तो बाहरी दुनिया सैलानी दृष्टि के चलते बस्तर और घोटुल एक-दूसरे के पर्याय लंबे समय से रहे हैं, लेकिन जब बस्तर सहित समूचे दंडकारण्य में जल, जंगल और जमीन को छीनने व बचाने का संघर्ष छिड़ा हो तब 'नाच बनाम भूख' की यह कथा-प्रस्तुति सचमुच स्तब्धकारी है।
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