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Memories of Another day

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While my Parents Pulin babu and Basanti devi were living

Tuesday, August 13, 2013

Long live Dr.Viniyan " Forest Resource Governance" conf in Adhoura, Bihar on 18th august 2013डा0 विनियन अमर रहें--अमर रहें, अमर रहें






ALL India Union Of Forest Working People ( AIUFWP)


डा0 विनियन अमर रहें--अमर रहें, अमर रहें
इन्क़लाब जि़न्दाबाद--जि़न्दाबाद, जि़न्दाबाद
  

Invitation

 

On the eve of 7th death Annivarsary of Dr. Viniyan

Forest Resource Governance Conference in

Adhoura, District Kaimur, Bihar

 

 

18th August 2013

Dr. Viniyan Ashram, Adhoura, District Kaimur(Bhabhua), Bihar

 

Programme to be taken : Plantation of many indigenous trees and plants in memory of Dr. Viniyan at " Dr. Viniyan Upvan" by thousands of women

 

Dr. Viniyan was a great revolutionary who fought all his life against the eminent domain, feudal system and people's control over natural resources. He was a founder member of National Forum of Forest People and Forest Worker, Bharat Jan Andolan and was also associated with Jay Prakash movement of " Sapt kranti" in 70's. He also led a foot march against the fundamentalism and communal atmosphere that was created after the Babri Masjid demolition in 1992 from Jehanabad, Bihar to Ayodhya UP. This foot march was over a month in which large number of adivasi, dalit, progressive forces and other poor people participated. Though he was branded as hard core "naxalite" by the administration but all his life he propagated democratic values in the people's struggle and was a firm believer that only a democratic struggle can bring fundamental change in age old feudal, patriarchal and exploitative character of state. Hence he worked in very difficult areas of Bihar to build up people's democratic organization and was very much successful in his mission. One such difficult area that he choose was Kaimur region of Bihar, that is still one of the most difficult forest area where the struggle is going on under the banner of " Kaimur Mukti Morcha" and " Jan Mukti Andolan". He was also instrumental in waging a long struggle for the legislation of Forest rights in the country. It was quite unfortunate that he passed away just four months before the " Forest Rights Act" was enacted in Parliament in 2006. He left all of us on 18th August 2006, leaving a great legacy of his strong thoughts of people's struggle to change their situation through democratic struggle and people power. At present the forest rights movement is very strong in entire Kaimur region of Bihar, UP and Jharkhand where the forest resource governance has been initiated by the adivasis of this region in the leadership of women. In order keep the revolutionary thinking of Dr. Viniyan alive, the members of Kaimur region are organizing a day long programme on the " Forest Resource Governance" on 18 August 2013 to pay tribute to the great leader of this area.

All are cordially invited

 

How to reach Adhoura : From - Delhi to Mugul Sarai or Bhabhua Road ( Bhabhua Road is around 50km from Mugul Sarai)

From Bhabhua Road to Adhoura is another 55 km, buses are available but limited service. There are many trains from Delhi pl see the train schedule. From any direction pl take train to Mugul Sarai or Bhabhua Road. Pl intimate us before so that we can guide you properly. 

Contact nos : Roma – 09415233583, Ashok Chowdhury – 09412231276

Balkeshwar : 09471915418

डा0 विनयन एक प्रखर क्रान्तिकारी विचारक


डा0 विनियन एक क्रान्तिकारी प्रखर विचारक थे, जिन्होंने ज़मीनी स्तर पर जनसंघर्ष में शामिल रहते हुए अपने वैचारिक संघर्षों को लड़ा। महान क्रान्तिकारी और विचारक माओत्से तुंग ने अपना लेख ''सही विचार कहां से आता है'' इस उक्ति से शुरू किया था कि ''चीनी क्रान्ति में दो तरह के लोग हैं, एक तरह के वे लोग जो बखूबी तीर चला लेते हैं, लेकिन तीर कहां चलाना है इसके बारे में उन्हें मालूम नहीं होता, दूसरे वे लोग जिनको ये अच्छी तरह मालूम है कि तीर कहां चलाना है, लेकिन उनको तीर चलाना नहीं आता, वास्तविक ज्ञान इन दोनों जानकारियों को मिलाकर वर्ग संघर्ष के ज़रिये से ही आता है''। डा0 विनियन इस उक्ति की जीती जागती मिसाल थे। विचार, जनसंघर्ष और जनचेतना के आयाम ही उनके उनके जीवन की बुनियादी प्रेरणा शक्ति थे। उनके साथ हमारा सांगठनिक सम्बन्ध सन् 1994-95 में हुआ। उस व़क्त हम सभी ने मिल कर वनाश्रित श्रमजीवी समाज के साथ कार्यरत संगठनों के बीच तालमेल बनाने की प्रक्रिया शुरू की थी। लेकिन उनके साथ हमारे आंदोलन का संपर्क सन् 1986 में ही हो गया था। बिहार के अरवल कांड (जिसमें आम जनसभा में निहत्थे लोगों पर पुलिस ने गोली चलाई थी और 26 लोगों की मौत हो गई थी) के बाद दिल्ली में एक जन-ट्राईब्यूनल आयोजित किया गया था, जिसमें बहुत सारे संगठन और प्रगतिशील विचारधारा वाले लोग जुड़ गए थे। जनता के ऊपर किये जा रहे दमन के खि़लाफ इस तरह का ट्राईब्यूनल शायद पहली बार दिल्ली में आयोजित किया गया था। यह कार्यक्रम दिल्ली की कोंस्टीट्यूशन क्लब जैसी महत्वपूर्ण जगह पर आयोजित किया गया था। जिसमें न्यायविद्, वकील, पत्रकार, जनसंचार माध्यमों से जुड़े संगठन, व्यक्ति और अन्य सामाजिक संगठन भी जुड़ गए थे।  उस समय डा0 विनियन भूमिगत थे, लेकिन इस पूरे कार्यक्रम के केन्द्रबिन्दु डा0 विनियन ही थे। पूरे कार्यक्रम के साथ उनका संपर्क बना हुआ था। उनके बारे में बहुत सी कहानियां प्रचलित हो रहीं थी, जैसेः वे एक प्रतिबद्ध नक्सलवादी हैं। लेकिन सच ये था कि वे शुरुआती दौर से जनआंदोलन और जयप्रकाश नारायण जी के आंदोलन से जुड़े हुए थे, इसलिए उन्होंने जनवादी सिद्धांतों के तहत ही अपने आंदोलन को जारी रखा। उनके व्यक्तित्व के बारे में हमारे मन में भी बहुत से कोतुहल थे, जो कि उनसे मिलने के बाद हुई बातचीत से एकदम खत्म हो गये। अपनी बातचीत में न तो वो कहीं से नक्सलवादी लगे और न ही जयप्रकाश वादी। जनआंदोलन में उनकी अटूट आस्था थी और राजनैतिक मुद्दों पर उनके खुले दिमाग के विचारों ने हम सभी को प्रभावित किया। वो हर समय जनांदोलन को समाजवादी विचारों के साथ जोड़ कर देखते थे। एक तरह से वामपंथी जनांदोलनों में नए प्रवाह का स्वरूप उनके विचारों में स्पष्ट रूप से उभर कर आ रहा था। आज की परिस्थिति में जब जनआंदोलन एक बहुत ही चुनौतीपूर्ण दौर से गुज़र रहे हैं, उनकी अनुपस्थिति बहुत महसूस हो रही है। सांप्रदायिक मुददों पर भी उनका विचार बहुत स्पष्ट था और सेक्यूलयर विचारों को भी वे आम जनता के मुददों के साथ जोड़ कर देखते थे। इसी वजह से 90 के दशक में जब सांप्रदायिक तनाव अपने  चरम पर था, तब उन्होंने बाबरी मस्जिद विवाद के मुद्दे पर आम जनता को साथ लेकर जहानाबाद से अयोध्या तक लगभग 100 दिन की पदयात्रा की। उस दौर में यह एक बहुत साहसिक व प्रेरणा देने वाला प्रयास रहा।
जैसे-जैसे समय बीता  हमें उनके और नज़दीक आकर साथ काम करने का मौका मिला। समता मूलक समाज की स्थापना के लिए उनके गंभीर चिंतन और निष्ठा को हमने बहुत करीब से देखा जोकि अभूतपूर्व था। उनमें यह कला थी, कि वे अपने विचारों का अन्य साथियों में भी संचार करके उनका आत्मविश्वास व बल बढ़ाकर उनकी चेतना का विकास कर सकते थे।
राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच की स्थापना की प्रक्रिया के शुरूआती दौर से ही वो इसे बनाने की प्रक्रिया से जुड़े रहे। एक तरह से उन्होंने इस पूरी प्रक्रिया को मार्गदर्शन दिया और आखि़र तक इस संगठन को आगे बढ़ाने के लिये अगुआई की। ठीक इससे पहले आप ने पेसा कानून बनाने के आंदोलन में भी एक प्रभावशाली भूमिका निभाई। पेसा कानून बनाने के आंदोलन के सफल हो जाने के बाद उनका अगला क़दम राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच बनाने की प्रक्रिया को शुरू करना था। गौरतलब है कि पेसा कानून वनाधिकार कानून के आने के पूर्व की एक महत्वपूर्ण कड़ी थी। पेसा कानून केवल पांचवी अनुसूची के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र व अनुसूचित जनजातियों के लिये बनाया गया एक कानून है, लेकिन ज़रूरत यह थी कि इसको आगे बढ़ा कर एक सर्वभारतीय कानून बनाया जाए, जोकि सभी वनाश्रित समुदायों के लिए लागू हो और सभी वनक्षेत्रों के लिए बने। इस मुहिम को आगे ले जाने के लिए एक प्रभावी संगठन बनाना बुनियादी शर्त थी। इसी समझदारी के साथ वन-जन श्रमजीवी मंच की स्थापना की शुरूआत हुई। इसकी अगुवाई  डा0 विनियन ने अन्य साथियों के साथ मिलकर की।
दिसम्बर 1996 में देहरादून में इस विषय पर पहली बैठक आयोजित की गई, जिसमें डा0 विनियन ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच की विधिवत् स्थापना सितम्बर 1998 को रांची में हुई। लेकिन इन दो सालों की अवधि में बहुत सारी महत्वपूर्ण बैठकें और चर्चाऐं हुईं, जिनमें वनाश्रित श्रमजीवी समाज को सामाजिक, राजनैतिक दृष्टिकोण से परिभाषित करने की चर्चाऐं भी शामिल थीं। इसी दौर में राष्ट्रीय स्तर पर एक मांगपत्र बनाने की प्रक्रिया भी शुरू हुई। इस मांगपत्र में समग्र वनाधिकारों को लेकर एक नया कानून बनाने की मांग प्रमुखता से शामिल थी। हालांकि यह काम इतना आसान नहीं था, क्योंकि वनाश्रित समुदायों में भी तमाम तरह की विविधताऐं हैं, जिनके अपने ऐतिहासिक कारण हैं। वनाधिकार आंदोलन हमेशा बहुत सशक्त रहे, लेकिन क्षेत्रीय स्तर पर ही सीमित रहे। पहचान और मांगों में भी विविधता रही। इन सभी आंदोलनों को जोड़ कर एक व्यापक राष्ट्रीय स्तर पर सबको मिला कर एक मंच में शामिल करना व स्थापित करना एक बहुत बड़ा चुनौतीपूर्ण काम था, इसका नेतृत्व उन्होंने किया। खासकर भूमि अधिकार आंदोलन के साथ वनाधिकार आंदोलन को जोड़ना, सांगठनिक प्रक्रिया में सामाजिक न्याय की समझदारी को कारगर करने व महिलाओं के प्रभावी नेतृत्व को स्थापित करने में उन्होंने लगातार दस साल तक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मंच के आंदोलन में आज महिला शक्ति का व समुदाय के नेतृत्व का जो प्रभाव दिख रहा है, वह उनके इसकी स्थापना में व इसके बाद भी किये गये योगदान का ही फल है। जनसमुदाय में उनकी जो अटूट आस्था थी, वो आखिर तक रही। संकटकाल में भी उसपर वो तटस्थ रहे। आज सामाजिक आंदोलनों में समुदाय के नेतृत्व की भूमिका को लेकर एक अनिश्चितता बनी हुई है। ऐसे समय में उनकी कमी बहुत खल रही है। उनकी ज़बान यानि बोली और  सहज आचरण ने समुदाय और कार्यकर्ताओं के अंदर एक आत्मविश्वास पैदा किया था, जो आज भी संगठन की शक्ति का आधार है।
सन् 2004 की जनवरी में मुम्बई में विश्व सामाजिक मंच का आयोजन किया गया था। हमारे देश में इससे पहले  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इतने बड़े संघर्षशील आम जनता के समागम का आयोजन नहीं हुआ था, जिसमें देश और विदेश के इतने सारे आंदोलन इकट्ठा हुए थे। विश्व सामाजिक मंच में राष्ट्रीय वन-जन श्रमजीवी मंच व न्यू टेªड यूनियन इनिशिएटिव ने साथ मिल कर कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम किए। जिसमें वनाश्रित समुदाय के मुद्दों के अलावा तमाम श्रमजीवी समाज के आंदोलनों के मुददों पर भी कार्यक्रम आयोजित किए गए। वन-जन श्रमजीवी मंच के करीब पांच हज़ार प्रतिनिधियों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया, जिसमें डा0 विनियन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बिहार के पिछड़े इलाकों के प्रतिनिधियों के साथ वे आए थे और वे उनके साथ कैम्प में ही रहे। मंच में कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किए गए, जिनमें दूसरे देशों के अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया। ये सारी चर्चाऐं पर्यावरणीय न्याय और जलवायु परिवर्तन के राजनैतिक सवालों पर, अंतर्राष्ट्रीय श्रम अधिकार और विभिन्न देशों के खासकर दक्षिणी अमरीका के जनांदोलनों की रणनीति के बारे में बहुभाषीय स्तर पर हुईं। जिसमें हमारे गांव के आम समुदाय के साथियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसमें ब्राज़ील के एमएसटी, उरागूए देश के रेन फारेस्ट मूवमेंट, एशिया यूरोपीय देशों के संगठन फ्रेन्डस आफ दा अर्थ, अंतर्राष्ट्रीय किसान आंदोलन वीया कम्पेसीना, यूरोप के ट्रेड यूनियन आंदोलन इन सभी चर्चाओं में शामिल थे।
इन सभी बौद्धिक चर्चाओं में समुदाय के लेाग भी शामिल थे, डा0 विनियन इनमें एक महत्वपूर्ण कड़ी थे, जिन्होंने समुदाय के साथ उनका संवाद स्थापित करने के लिये साथ-साथ अनुवाद भी किए। उनके बगैर यह आपसी संवाद स्थापित होना संभव ही नहीं था। इसके बाद वनाधिकार आंदोलन में जो तेजी आई उससे उत्साहित होकर लोगों ने गांव-गांव में उन विचारों को फैलाया। जीवन के आखिरी दौर में वे बिहार, झाड़खंड़ व उत्तर प्रदेश की सीमा पर स्थित कैमूर क्षेत्र में मज़बूती से काम कर रहे थे। इस क्षेत्र में देखा जाए तो उनके आंदोलन ने वनाधिकार कानून को पारित होने से पहले ही लागू कर दिया था। इन तीनों राज्यों में कैमूर क्षेत्र में सैकड़ों की तादाद् में हज़ारों एकड़ भूमि पर आदिवासियों ने अपने खोये हुये राजनैतिक अधिकारों को पुनः स्थापित किया। यह आंदोलन उन आदिवासियों का था, जिनसे ऐतिहासिक काल में उनकी भूमि को छीना गया था। ज्ञात हो कि यह पूरा क्षेत्र माओवादी आंदोलन का भी आधार क्षेत्र था, लेकिन डा0 विनियन के जनवादी आंदोलन ने माओवादी आंदोलन पर भी काफी गहरा असर छोड़ा व इन क्षेत्रों में ज़्यादहतर आदिवासियों ने जनवादी आंदोलन का ही दामन थामा। आज यह आलम है, कि जनवादी आंदोलन की पकड़ इस क्षेत्र में सबसे अधिक है। डा0 विनियन ही एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होनें इस अति पिछड़़़े कैमूर क्षेत्र को पांचवी अनुसूची क्षेत्र व एक स्वायत्त क्षेत्र घोषित करने का संघर्ष निरंतर लड़ा और जारी रखा। अब उनके विचारों पर आधारित आंदेालन को जि़म्मेदारी के साथ आगे ले जाने के लिए उनकी कर्मभूमि कैमूर क्षेत्र में आदिवासी महिलाओं व पुरुषों की एक सशक्त टीम तैयार है, जो वनाधिकार कानून को लागू करने व जंगल बचाने की मुहिम में लगी हुई है। 
इस आंदोलन से वनाधिकार कानून बनाने की प्रक्रिया को मजबूत किया व लोगों में विश्वास था कि यह कानून जरूर बनेगा। लेकिन अफसोस कि इस कानून के पारित होने के महज चार माह पहले ही उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। यह बदलावकारी कानून 15 दिसम्बर 2006 को लेाकसभा में पारित किया गया।
जीवन के आख़री पड़ाव में डा0 विनियन जलवायु परिवर्तन पर इस मुददे से जुड़े दस्तावेज़ों को अनुवाद करने का गंभीर कार्य कर रहे थे। लेकिन अक्समात निधन होने के कारण वे यह काम पूरा नहीं कर पाए।
हर एक तबके के उस समाज में जो मौजूदा व्यवस्था से पीडि़त है, उनमें विशेष रूप से समस्त कैमूर क्षेत्र के आदिवासियों व अन्य गरीब तबकों में डा0 विनियन व्यक्ति के रूप में ही नहीं बल्कि विचार के रूप में आज भी अपने  शाश्वत रूप में जि़न्दा हैं। हम उनको अपने संघर्ष के ज़रिये से सलाम करते हैं।
संघर्ष ज़ारी है-डा0 विनियन अमर रहे
तेज़ रखना  सर-ए-हरख़ार को ऐ दश्त-ए-जुनूं
शायद  आ  जाये  कोई  आबला  पा  मेरे  बाद
                          -मीर तक़ी 'मीर'आज 18 अगस्त 2012 को राष्ट्रीय
                                                                                                                                                                                                  





NFFPFW / Human Rights Law Centre
c/o Sh. Vinod Kesari, Near Sarita Printing Press,
Tagore Nagar
Robertsganj,
District Sonbhadra 231216
Uttar Pradesh
Tel : 91-9415233583, 05444-222473
Email : romasnb@gmail.com
http://jansangarsh.blogspot.com




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