व्याख्यान : 'मैं अपने लिए नहीं बोल रही हूं'
Author: समयांतर डैस्क Edition : August 2013
मलाला यूसुफजई का अपने 16 जन्मदिन पर 12 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र संघ में दिया भाषण
बहुत समय के बाद आज फिर भाषण देना मेरे लिए सम्मान की बात है। मेरे जीवन का यह अहम क्षण है, जब मैं इतने सम्मानीय व्यक्तियों के बीच में हूं और यह मेरे लिए गौरव की बात है कि आज मैं स्वर्गीय बेनजीर भुट्टो की शाल ओढ़े हुए हूं। समझ नहीं आता कि मैं अपनी बात कहां से शुरू करूं। मैं नहीं जानती कि आप मुझसे क्या सुनना चाहेंगे, लेकिन सबसे पहले उस खुदा का शुक्रिया, जिसकी नजरों में हम सब समान हैं और आप लोगों में से हर एक का धन्यवाद, जिसने मेरे शीघ्र स्वास्थ्य लाभ और नई जिंदगी के लिए दुआ की। लोगों ने मुझे इतना स्नेह दिया है कि मैं विश्वास नहीं कर सकती। विश्वभर से मुझे हजारों शुभकामनाओं से भरे पत्र और उपहार मिले हैं। उन सबके लिए धन्यवाद। उन बच्चों का धन्यवाद जिनके निश्छल शब्दों ने मुझे प्रेरणा दी। जिन बुजुर्गों की प्रार्थनाओं ने मुझे मजबूती दी उनका धन्यवाद। पाकिस्तान और ब्रिटेन के अस्पतालों की नर्सों, डॉक्टरों और कर्मचारियों तथा संयुक्त अरब अमीरात की सरकार का मैं शुक्रिया करना चाहूंगी, जिन्होंने मेरे बेहतर इलाज और तंदुरुस्ती के लिए मदद की।
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान-की-मून की वैश्विक शिक्षा की प्रथम पहल, संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक शिक्षा के विशेष दूत गार्डन ब्राउन और संयुक्त राष्ट्र महासभा के अध्यक्ष बुक जेरेमिक का मैं पूरी तरह समर्थन करती हूं। उनके सतत् नेतृत्व की मैं आभारी हूं। हम सबको वे कर्म की प्रेरणा देते रहते हैं। प्यारे भाइयो और बहनो! एक बात हमेशा याद रखना, मलाला दिवस मेरे लिए नहीं है। आज के दिन का संबंध हर उस महिला, उस बालक और बालिका से है जिन्होंने अपने हक के लिए आवाज उठाई है।
ऐसे सैकड़ों मानवाधिकार कार्यकर्ता और समाजसेवी हैं जिन्होंने केवल अपने अधिकारों के लिए ही आवाज बुलंद नहीं की, बल्कि शांति, शिक्षा और समानता का अपना लक्ष्य पाने के लिए भी संघर्ष कर रहे हैं। आतंकवादियों ने हजारों लोगों को मारा है और लाखों आहत हुए हैं। उनमें से मैं सिर्फ एक हूं। तो मैं यहां मौजूद हूं — बहुतों में से एक लड़की। मैं अपने लिए नहीं बोल रही हूं, बल्कि इसलिए कि जो बोल नहीं पाते उनका हक भी दिया जाए। जिन्होंने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया है — आराम से जीने का अधिकार, गरिमापूर्ण व्यवहार का अधिकार, अवसर की समानता का अधिकार, शिक्षा पाने का अधिकार।
प्यारे साथियो! 9 अक्तूबर, 2012 को तालिबान ने मेरे माथे पर बाईं ओर गोली मारी। मेरे साथियों पर भी उन्होंने गोलियां दागीं। वे समझते थे कि गोलियां हमें खामोश कर देंगी, पर वे गलत थे। उस खामोशी ने हजारों आवाजों को जन्म दिया। आतंकवादी समझते थे कि वे मेरे इरादे बदल देंगे और मेरी आकांक्षाओं पर पानी फेर देंगे, लेकिन (शारीरिक) कमजोरी के सिवा मेरी जिंदगी में कुछ नहीं बदला। (बल्कि) खौफ और नाउम्मीदी का खात्मा हो गया। उनकी जगह दृढ़ता, शक्ति और ऊर्जा ने ले ली। मैं वही मलाला हूं। मेरी आकांक्षाएं वही हैं, मेरी उम्मीदें वही हैं। और मेरे सपने वही हैं। प्यारी बहनो और भाइयो! मैं किसी के खिलाफ नहीं हूं और न ही मैं यहां तालिबान या किसी अन्य आतंकवादी गुट के खिलाफ किसी निजी बदले की भावना से कुछ कहने आई हूं। मैं हर एक बच्चे के लिए शिक्षा के अधिकार की मांग करने आई हूं।
मैं तालिबान के और सभी आतंकवादियों और उग्रवादियों के बेटों और बेटियों के लिए शिक्षा चाहती हूं। जिसने मुझ पर गोली चलाई उस तालिबान से मुझे (कोई) नफरत भी नहीं है।
अगर मेरे पास बंदूक होती और वह मेरे सामने खड़ा होता, मैं उस पर गोली नहीं दागती। दया के पैगंबर मुहम्मद, ईसा मसीह और भगवान बुद्ध से मुझे करुणा की यह सीख मिली है। मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला और मुहम्मद अली जिन्ना से मुझे यह अलग किस्म की विरासत मिली है। अहिंसा के इस फलसफे का ज्ञान मुझे गांधी, बादशाह खान और मदर टेरेसा से मिला है। और यही मुआफ करने की तालीम मुझे मेरे माता-पिता ने दी है। मेरी आत्मा की आवाज यही है : शांत रहो और हर एक से प्यार करो।
प्यारी बहनो और भाइयो, अंधेरे से रू-ब-रू होने पर ही हमें रौशनी की कद्र समझ आती है। बोलने पर पाबंदी से ही हमें आवाज की कीमत पता चलती है। इसी तरह जब हम उत्तरी पाकिस्तान के स्वात में रहते थे, बंदूकों के मुकाबिल होने पर हमें कलमों और किताबों की महत्ता का एहसास हुआ। वह समझ से भरी कहावत 'कलम तलवार से अधिक शक्तिशाली है' सही है। उग्रवादी किताबों और कलमों से डरते हैं। वे पढ़ाई की ताकत से घबराते हैं। वे महिलाओं से डरते हैं। वे महिलाओं की आवाज से डर जाते हैं। इसीलिए उन्होंने हाल ही में क्वेटा में एक वारदात में 14 मासूम विद्यार्थियों को हलाक कर दिया। और इसीलिए वे अध्यापिकाओं को मार देते हैं। क्योंकि हम अपने समाज में परिवर्तन और समानता लाना चाहते हैं, जिस कारण वे डरते थे और डरते हैं — इसीलिए वे हर रोज स्कूलों को उड़ा रहे हैं। मुझे याद है हमारे स्कूल में एक लड़का था जिससे एक पत्रकार ने पूछा था, 'तालिबान पढ़ाई के खिलाफ क्यों हैं। ' सहज ढंग से अपनी किताब की ओर इशारा करते हुए उसने बताया, 'एक तालिब को पता नहीं कि इस किताब में लिखा क्या है। '
वे सोचते हैं कि भगवान एक अदना, छोटा-सा कठमुल्ला है, जो बच्चों के सिर पर सिर्फ इसलिए बंदूकें तान देगा क्योंकि वे स्कूल जाते हैं। सिर्फ अपने निजी स्वार्थ के लिए ये आतंकवादी इस्लाम का नाम बदनाम कर रहे हैं। पाकिस्तान शांतिप्रिय और लोकतांत्रिक देश है। पख्तून अपने बेटे-बेटियों को पढ़ाना चाहते हैं। इस्लाम शांति, मानवीयता और भाईचारे वाला धर्म है। इसका यही संदेश है कि हर एक बच्चे को पढ़ाना (हमारा) फर्ज और जिम्मेदारी है। शिक्षित करने के लिए शांति (का माहौल) जरूरी है। दुनिया के बहुत से हिस्सों, खासकर पाकिस्तान और अफगानिस्तान में, आतंकवाद, युद्ध और फसादों की वजह से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। इन लड़ाइयों से हम वाकई आजिज आ गए हैं। दुनिया के बहुत से हिस्सों में महिलाएं और बच्चे बहुत सी परेशानियां झेल रहे हैं।
भारत में मासूम और गरीब बच्चे बाल मजदूरी का शिकार हो रहे हैं। नाइजीरिया में काफी स्कूलों को ढहा दिया गया है। उग्रवाद ने अफगानिस्तान में लोगों को क्षति पहुंचाई है। छोटी लड़कियों को घरों में बाल मजदूरी करनी पड़ती है और छोटी उम्र में उन्हें जबरन ब्याह दिया जाता है। पुरुषों और महिलाओं दोनों को गरीबी, अज्ञानता, अन्याय, नस्लवाद और मूलभूत अधिकारों से महरूम होने की मुख्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
महिलाओं का अधिकार और लड़कियों की शिक्षा का मुद्दा आज मैं इसलिए उठा रही हूं, क्योंकि वे सबसे ज़्यादा पीडि़त हैं। कभी महिला कार्यकर्ता अपने अधिकारों की आवाज उठाने के लिए पुरुषों को कहा करतीं थीं, पर यह अब हमें स्वयं ही करना है। मैं पुरुषों को महिलाओं के अधिकारों के पक्ष में बोलने से बरजूंगी नहीं, पर मेरी मंशा यह है कि स्त्रियां कोई बंदिश न महसूस करें और अपने लिए खुद संघर्ष करें। इसलिए भाइयो और बहनो, अपनी आवाज बुलंद करने का समय आ गया है। इसलिए आज हम आह्वान करते हैं कि विश्व के सभी नेता शांति और समृद्धि की खातिर अपनी योजनाबद्ध नीतियों में बदलाव लाएं। हमारा विश्व के सभी नेताओं से अनुरोध है कि सभी अनुबंध स्त्रियों और बच्चों के अधिकारों की रक्षा अवश्यमेव करें। स्त्रियों के अधिकारों का अहित करने वाली कोई भी बात मंजूर नहीं होगी।
हमारा सभी सरकारों से अनुरोध है कि तमाम विश्व में हर बच्चे के लिए मुफ्त, अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित की जाए। हम सभी सरकारों से आतंकवाद और हिंसा के विरुद्ध संघर्ष करने का अनुरोध करते हैं — बच्चों को किसी भी कू्ररता और क्षति से सुरक्षित रखने के लिए। हमारा विकसित देशों से अनुरोध है कि वे विकासशील देशों में बालिकाओं के लिए शिक्षा के अवसरों का प्रसार करने में मदद करें। हम महिलाओं के लिए स्वतंत्रता और समानता सुनिश्चित करने के लिए सभी समुदायों से प्रार्थना करते हैं कि वे सहनशील होकर जाति, पंथ, संप्रदाय, वर्ण, धर्म या किसी नीति पर आधारित किसी भी पक्षपाती रवैये को खारिज करें, ताकि महिलाएं अपना विकास कर सकें। हम सभी सफल नहीं हो सकते, क्योंकि हममें से आधों पर बंदिश है। दुनियाभर की अपनी बहनों से हमारी गुजारिश है कि वे हिम्मत करें, अपने भीतर की शक्ति बटोरें और अपनी तमाम क्षमता को पहचानें।
प्यारी बहनो और भाइयो! हम हर बच्चे के उज्ज्वल भविष्य के लिए स्कूलों और शिक्षा की मांग करते हैं। शांति और शिक्षा के अपने लक्ष्य की ओर हम अपना सफर जारी रखेंगे। हमें कोई रोक नहीं सकता। हम अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाएंगे और अपनी मंशा किसी और तरह से जाहिर करेंगे। हमें अपने शब्दों की शक्ति और दृढ़ता पर भरोसा है। क्योंकि शिक्षा के लक्ष्य के लिए हम एक साथ हैं, संगठित हैं इसीलिए हमारे शब्द तमाम विश्व में परिवर्तन ला सकते हैं। यदि हमें अपना लक्ष्य हासिल करना है, तो हमें ज्ञान की शक्ति से स्वयं को मजबूत करना होगा और एकता एवं संगठन से अपने को संरक्षित रखना पड़ेगा।
भाइयो और बहनो, हमें भूलना नहीं है कि लाखों लोग गरीबी, अन्याय और अज्ञानता से पीडि़त हैं। हमें नहीं भूलना है कि लाखों बच्चे (अपने) स्कूल से महरूम हैं। हमें नहीं भूलना है कि हमारी बहनें और भाई एक उज्ज्वल और निश्चिंत भविष्य की कामना कर रहे हैं।
इसीलिए आओ, अज्ञानता, गरीबी और आतंक के विरुद्ध हम एक उद्दात संघर्ष आरंभ करें। हम अपनी कलमें और किताबें उठाएं, क्योंकि वे ही सबसे शक्तिशाली शस्त्र हैं। एक बच्चा, एक अध्यापक, एक किताब और एक कलम दुनिया में बदलाव ला सकते हैं। शिक्षा ही एकमात्र समाधान है। (इसलिए) सबसे पहले शिक्षा।
अनु.: महावीर सरवर
No comments:
Post a Comment