हमें इन चीखों और सिसकियों का जवाब चाहिए
उत्तराखंड से अबकी सुधा राजे ने आवाज दी है,जो बहस तलब है
जब गली में चीखती आवाज़ें गूँजी तुम नहीं उठे ।
जब घर में सिसकने की आवाजें गूँजी तुम नहीं उठे
जब खुद तुम्हारे हृदय में चीखने के स्वर गूँजे तब भी तुम नहीं उठे!!!!!!
तो सुनो मेरी कोई पुकार तुम्हारे लिये नहीं है क्योंकि पुकारा सिर्फ़ जीवितों को जाता है और सुनकर सिर्फ वे ही दौङ कर आते हैं जो हाथ पाँव कान और आवाज रखते हैं दिमाग और दिल की धधक धङक के साथ जाओ तुम सो जाओ मैं तुम्हें नहीं किसी और को बुला रही हूँ अगर मेरी आवाज वहाँ तक पहुँचेगी तो वह जरूर उठेगा और मेरी आवाज थक गयी तो तो भी जिंदा लोग मेरी बात वहाँ तक पहुँचाते रहोगे ।
पलाश विश्वास
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Lenin Raghuvanshi
Baba saheb Dr.B.R.Ambedkar says," My final words of advice to you are educate, agitate and organize; have faith in yourself. With justice on our side I do not see how we can lose our battle. The battle to me is a matter of joy. The battle is in the fullest sense spiritual. There is nothing material or social in it. For ours is a battle not for wealth or for power. It is battle for freedom. It is the battle of reclamation of human personality."
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बहसतलब,राय दर्ज करें
उत्तराखंड से अबकी सुधा राजे ने आवाज दी है,जो बहस तलब है
जब गली में चीखती आवाज़ें गूँजी तुम नहीं उठे ।
जब घर में सिसकने की आवाजें गूँजी तुम नहीं उठे
जब खुद तुम्हारे हृदय में चीखने के स्वर गूँजे तब भी तुम नहीं उठे!!!!!!
तो सुनो मेरी कोई पुकार तुम्हारे लिये नहीं है क्योंकि पुकारा सिर्फ़ जीवितों को जाता है और सुनकर सिर्फ वे ही दौङ कर आते हैं जो हाथ पाँव कान और आवाज रखते हैं दिमाग और दिल की धधक धङक के साथ जाओ तुम सो जाओ मैं तुम्हें नहीं किसी और को बुला रही हूँ अगर मेरी आवाज वहाँ तक पहुँचेगी तो वह जरूर उठेगा और मेरी आवाज थक गयी तो तो भी जिंदा लोग मेरी बात वहाँ तक पहुँचाते रहोगे ।
धन्यवाद सुधा।इस बीच तमाम घटनाक्रम इतने तेज हो गये कि इस जरुरी बहस को समेट ही नहीं सके।कोलकाता से बाहर होने के कारण यह देरी हो गयी है।इसी बीच पहाड़ में हमारे सबसे प्रिय लोग शेखर पाठक,राजीव लोचन साह,शमशेर सिंह बिष्ट,कमला पंत,उमेश तिवारी और चिपको आंदोलन,उत्तराखंड आंदोलन समेत तमाम जनांदोलनों के साथी आप के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बहाने राजनीति में शामिल हो गये हैं।
परिप्रेक्ष्य तेजी से बदल रहे हैं सुधा,मगर जिन सिसकियों की चर्चा इन पंक्तियों में हैं,जिन चीखों की गूंज है,उसके जवाब में सिर्फ सन्नाटा और सन्नाटा ही दर्ज है और कुछ भी तो नहीं। मेरी एक लंबी कहानी डीएसबी की पत्रिका में 1978 में छपी थी, जिसकी प्रतिक्रिया में समाजशास्त्र की मैडम दीपा खुलबे ने अपने घर बुलाकर कहा था कि तुम्हारी हिंदी और अंग्रेजी दोनों अच्छी है।तुम लिखते रहो।
उन्होंने कहा था,मैं तुम्हारे लिए कुछ भी कर सकती हूं।तब मैं एमए अंग्रेजी का प्रथम वर्ष का छात्र था।कितनी ही यादें हैं,नैनीताल से और पहाड़ों से।हम तो तब से इन्हीं सिसकियों और चीखों के जवाब तलाशते हुए भटक रहा हूं।
एक तरफ अरविंद केजरीवाल हैं जिन्होंने रिलायंस साम्राज्य को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में पहलीबार कामयाबी हासिल की है और हमारे सारे पुराने साथी एक के बाद एक देशभर में उनके आंदोलन के साथ जुड़ रहे हैं।
दूसरी तरफ अपने इंडियन पीपुल्स फ्रंट के संयोजक पुरातन मित्र अखिलेंद्र प्रताप सिंह का जंतर मंतर पर अनशन है,जिसके मार्फत वे कारपोरेट और एनजीओ के भ्राष्टाचार पर सवाल दागते हुए तमाम जरुरी मुद्दों को फोकस करने में कामयाब रहे।
इसीके मध्य कश्मीर से कन्याकुमारी तक देश भर में विभिन्न अंबेडकरी संगठनों से जुड़े वे लोग हैं,जो अब कारपोरेट साम्राज्यवाद के खिलाफ अस्मिता,पहचान और सत्ता के दायरे से बाहर राष्ट्रव्यापी जनांदोलन की बात कर रहे हैं तो जमीन पर लड़ने वाले तमाम लोग हैं,जैसे देश भर के आदिवासी, मारुति उद्योग के मजदूर,शहरी करण और औद्योगीकरण से बेदखल लोग,डूब में शामिल तमाम जनपद,कुंड़न कुलम के ग्रामीण,कश्मीर और पूर्वोत्तर में सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार के विरुद्ध मानवाधिकार और लोकतंत्र की बहाली के लिए लड़ रहे लोग,इरोम शर्मिला हैं,सोना सोरी हैं,हिमांशु कुमार हैं,गोपालकृष्ण हैं।
दूसरे हजारों लाखों सक्रिय जाने अनजाने मशहूर गुमनाम लोग अपने अपने तरीके से जल जंगल जमीन आजीविका नागरिकता और मानवाधिकार की लड़ाई में पूरी ईमानदारी,आस्था और प्रतिबद्धता के साथ लड़
रहे हैं।
इतने सारे लोग।
सत्ता वर्ग में चट्टानी एकता है।उनका एजंडा एक है। उनमें नूरा कुश्ती के निरंतर प्रदर्शन के बावजूद अद्भुत अटूट समन्वय,संयोजन और रणनीतिक एकता है।उनकी सेनाएं निजी सेनाएं तकनीक विशेषज्ञ हैं।मारक हथियारों से लैस हैं।वे जनसंहार के विशेषज्ञ हैं तो मनोरंजन और विवाद परोसकर मस्तिष्क नियंत्रण के निराले कारीगर भी।
दूसरी तरफ हम सभी लोग अल अलग झंडों,अलग अलग पहचान,अलग अलग अस्मिता के दायरे में लड़ रहे हैं। पार्टीबद्ध पैदल सेनाएं हैं हम धर्मोन्मादी।हम वार करते हैं तो अपने ही लोग जख्मी होते हैं। हम हमला करते हैं तो अपनो के खिलाफ ही।हमारी सारी रणनीतियां नीतियां हमारे अपनों के विरुद्ध हैं।हम पर्दाफाश करते हैं तो सिर्फ अपनों का। हम मुद्दों और समस्याओं को स्पर्श भी नहीं करते।अपनी अपनी बूंदी सजाकर हम नकली किले की हिफाजत में नकली शहादत की आत्मरति मग्न लोग हैं निःशस्त्र।शत्रुपक्ष को हमारे विरुद्ध लड़ने की कोई जरुरत ही नहीं है क्योंकि हमारे शत्रु हम स्वयं हैं और अपने ही विरुद्ध युद्ध से हमें फुरसत नहीं है।
बस्तियों और मोहल्लों से प्रमोटर बिल्डर राज की वजह से बेदखल होते लोग, नागरिकता वंचित तमाम लोग,मातृभाषाओं से बेदखल लोग,रोज फर्जी मुटभेड़ों,दंगों और संघर्षों में सलवाजुड़ुम जैसे नाना अभियानों,गृहयुद्ध में मारे जा रहे लोग और उनके लहूलुहान परिजन,बोरोजगार छात्र युवाजन, उपभोक्ता बना दी जा रही स्त्रियां और जातीय,वर्गीय नस्ली व भौगोलिक बेदभाव के शिकार लोग जो अपने हक हकूक के लिए देश भर में अलग अलग लड़ रहे हैं,अराजनीति राजनीति के तहत।लेकिन इस राष्ट्रव्यापी जनआंदोलन के खंडित चेहरे का कोई मुकम्मल चरित्र नहीं है।
चीखें बदस्तूर जारी हैं। सिसकियां अनंत है।
यातनाओं के महासमुंदर में गोताखोरी कर रहे हैं हम लोग।
दमनतंत्र के औजार में तब्दील हैं हम लोग।
उत्पीड़न.अत्याचार के पक्ष में खड़े है हम लोग धर्मोन्मादी अंध राष्ट्रभक्त।जबकि देशबेचो महाब्रिगेड का किसी भी स्तर पर कोई प्रतिरोध हो ही नहीं रहा है।
इनके मध्य हम कहां हैं,मुझे अपना अवस्थान सही सही मालूम ही नहीं पड़ रहा है।आपको अपना अवस्थान और परिप्रेक्ष्य साफ साफ मालूम हो तो हमारी मदद जरूर करें।
क्या यह असंभव है कि ये तमाम लोग एक साथ संगठित करके इस देश की व्यवस्था ही बदल दें।
हम अपने मित्र आनंद तेलतुंबड़े से सहमत हैं जो लिखते हैंः
एक तरफ दलित आंदोलन को जाति के मसलों पर संघर्ष करते हुए खुद को वर्ग की लाइन पर लाना होगा तो दूसरी ओर वाम आंदोलन को इस तरह से निर्देशित किया जाना होगा कि वह जाति के यथार्थ को पहचान सके और संघर्षरत दलितों के साथ एकजुटता कायम करने की जरूरत को महसूस कर सके। यह पहल हालांकि वाम आंदोलन की ओर से ही पूरे वैचारिक संकल्प के साथ की जानी होगी जो उसकी ओर से अब तक बकाया है तथा इस क्रम में खुद को सही मानने की अपनी प्रवृत्ति को उसे छोड़ना होगा। जैसा कि मैंने अपनी पुस्तक एंटी इम्पीरियलिज्म एंड एनिहिलेशन ऑफ कास्ट्स में लिखा था, एक बार इस प्रक्रिया की शुरुआत हो गई तो यह एक ऐसे सिलसिले में तब्दील हो जाएगी जिसका अंत बहुप्रतीक्षित भारतीय क्रांति में ही होगा। मुझे कोई और विकल्प नहीं दिखाई देता।
हमने आंदोलन कम नहीं देखे हैं।
ढिमरी ब्लाक आंदोलन के मध्य हम आंदोलनकारियों के घर और गांव में जनमे।
कैशोर्य में नक्सली आंदोलन के मुखातिब हुए और संपूर्ण क्रांति की आग से भी झुलसे।
छात्र जीवन में ही चिपको में निष्णात हुए और फिर झारखंड और छत्तीसगढ़ तक विस्तृत भी हो गये।
पेशेवर पत्रकारिता कोयलांचल से शुरु किया तो झारखंड आंदोलन की तीव्रता और कोयलाखानों की भूमिगत आग के मध्य जनसंस्कृति मंच से लेकर इंडियन पीपुल्स फ्रंट का सफर देखा।बिहार के मुक्तांचलों को भी देखा।
फिर मंडल कंमंडल का जंग भी।
संपूर्ण क्रांति की कोख से जनतापार्टी की गैरकांग्रेसी सरकार निकली तो भ्रष्टाचतार विरोधी युद्ध के सिपाहसालार को प्रधानमंत्री बनते और मंडल में विसर्जित होते देखा।
उत्तर प्रदेश की युद्ध भूमि से कमंडल से निकली खून की महागंगा को भी देख लिया।
सिखों का जनसंहार देखा।
देखी भोपाल गैस त्रासदी और गुजरात के नरसंहार से लहूलुहान भी हुए।
माओवादी चुनौती के मुकाबले युद्धक्षेत्र बना दिये गये मध्यभारत के युद्धबंदी भूगोल और सशस्त्र सैन्य विशेषाधिकार कानून के शिकंजे में कश्मीर से लेकर पूर्वोत्तर में नस्ली भेदभाव के तहत कत्ल की जाती मानवता और मणिपुर के नग्न मातृत्व का दर्शन भी किया।
आतंक के विरुद्ध युद्ध और हिंदुत्व के पुनरुत्थान के दंश तो झेल ही रहे हैं लेकिन पिछले बीस साल से इस मुक्त बाजार में कारपोरेट अश्वमेध के खिलाफ नपुंसक आक्रोश के अलावा हमारा कोई जवाब नहीं है।
चीखें और सिसकियां रोज ब रोज तेज होती जा रही हैं और तेज होती जा रही हैं,हिमालय से कन्याकुमारी तक विस्तृत केदार आपदाओं की बारंबारता पुनरावृत्त हो रही हैं।
दसों दिशाओं में विकास के नाम तबाही का आलम है।देश मृत्युउपत्यका है ौर यह महादेश एक अखंड अनंत वधस्थल।
हम खुल्ला बाजार में नंगे खड़े हैं और अपने रिसते जख्म को चाट रहे हैं।अपना खून पी रहे हैं।अपनी ही हड्डियां चबा रहे हैं। इस स्वादिष्ट जायकेदार जश्न में दिलोदिमाग और इंद्रियां पूरी तरह विकल हैं।
हर बार यही हो रहा है। तेलंगना ,ढिमरी ब्लाक नक्सलाबाड़ी में जो हुआ। उत्तराखंड, छत्तीसगढ़ और झारखंड में जो हो रहा है। संपूर्म क्रांति का हश्र वहीं हुआ। विश्वनाथ प्रताप सिंह के भ्रष्टाचारविरोधी महाविद्रोह का भी वही हुआ। ममता बनर्जी के भूमि आंदोलन ताजा नजीर है। इनके साथ खड़े हो गये हैं अरविंद केजरीवाल। अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी आरक्षणविरोधी आंदोलन तीन धड़ों में बंटकर अलग अलग विकल्प पेश कर रहे हैं। तीनों विकल्प लेकिन कारपोरेट विकल्प हैं। मजा तो यह है कि सियासी बिसात में मेधा पाटेकर और अरविंद केजरीवाल एक तरफ है तो दूसरी तरफ है ममता बनर्जी।
सर्वहारा और सर्वस्वहारा के बीच घमासान है।
क्रांति का स्वर हाशिये पर है। भ्रांतियां वर्चस्व को मजबूती दे रही हैं।
हर बार जनता क्रांति के लिए उठ खड़ी हो ती है और हर बार प्रतिक्रांति हो जाती है।
हर बार मोहभंग होने तक हम स्वर्ण मृग के पीछे भागते रहते हैं। लक्ष्ममरेखा का उल्लंघन हो जाता है अनायास और सीता अपह्रत हो जाती है। लंकाकांड के बावजूद हाथ में मृगमरीचिका के अलावा कुछ नहीं आता।
हमारी सत्तर दशक की पीढ़ी आंदोलन की पीढ़ी रही है। जो आंदोलनकारी शहीद हो गये,अब हमें उनकी कुर्बानियां तक याद नही हैं।जो बच गये,उनमें सबसे ज्यादा तेज लोग न जाने कब व्यवस्था का विरोध करते करते व्यवस्था के अंग बन गये हैं। हम जैसे लोग जो न शहीद हो सकें और न व्वस्था में कहीं अपने को समायोजित कर पाये,पुरातन आंदोलनों और विचारधाराओं की जुगाली करते रहते हैं।जबकि राष्ट्रविरोधी तत्व रोज इस देश को खंडित कर रहे हैं।सन सैंतालीस से चालू देश विभाजन की इस प्रक्रिया को रिवर्स गीयर में डालने की तकनीक हम अब भी ईजाद नहीं कर पा रहे हैं।हम देश जोड़ नहीं पा रहे हैं। हमारी हर गतिविधि देश तोड़ने समाज बिखेरने जनता का सत्यानाश करने और जनपदों को श्मसान में तब्दील करने के लिए इस्तेमाल होती रही है और हमें इसका पता भी नहीं चल रहा है। कोई आत्मालोचना के लिए तैयार नहीं है।
आपातकाल के विरोध में देश एकजुट था। नक्सलबाड़ी आंदोलन के समांतर शांति पूर्ण तरीके से देश और व्यवस्था को बदलने के लिए छात्र युवाओं के उस जनांदोलन की पुनरावृत्ति अब भी होनी है। लेकिन नतीजा निकला, लोककल्याणकारी राज्य के अवसान और खुल्ला बाजार में तब्दील अमेरिकी उपनिवेश का निरंकुश जश्न।डिजिटल रोबोटिक बायोमेट्रिक यंत्रमानव में तब्दील होते होते हमने दिलोदिमाग को भी तिलांजलि दे दी और तब से लगातार देश धनपशुओं और बाहुबलियों के हवाले करते जा रहे हैं।तबस लगातार अबाध विदेशी पूंजी प्रवाह है।कालाधन है ।भ्रष्टाचार है।कारपोरेट राज है। विकास और कायाकल्प के नाम जनसंहार का निरंकुश लाइसेंस है।
फिर भ्रष्टाचार के विरुद्ध भारतीय इतिहास के सबसे बड़े ईश्वर का अवतरण हुआ।सत्ता में आते ही वे भ्रष्टाचार का राग अलापना भूल गये। वोट बैंक साधने लग गये। मंडल कमीशन लागू करने के कारण बाबासाहेब अंबेडकर के बाद सामाजिक परिवर्तन के मसीहा बनने के बजाय अपनी अदूरदर्शिता की वजह से अब तक खारिज हिंदू राष्ट्र की नींव उन्होंने डाल दी।तब से यह देश हिंदू राष्ट्र है। हिंदुत्व की अस्मिता के सिवाय सारी पहचान बेकार है।पक्ष विपक्ष से लेकर सारे विकल्प हिंदुत्व के हैं।नरम या गरम या छद्म हिंदुत्व के कारपोरेट विकल्प।
दूध का जला छाछ भी फूंककर पीता है।लेकिन बिना जांच पड़ताल के हम लोग अगिनखोर हैं।
जेएनयू में सन अस्सी में इलाहाबाद से निकलकर बजरिये उर्मिलेश हम पेरियर हास्टल में कवि गोरख पांडेय के कमरे में दाखिल हो गये थे। उस कवि के ख्वाबों को हमने दिलोदिमाग में खूब महसूस किया।पाश और अमरजीत सिंह चंदन से मिले बगैर उनकी कविताएं हमारे दिलों की धड़कनों में तब्दील हुई।कविता में तब हम लोग हर पौधे को बंदूक की ऊंचाई दे रहे थे।
गोरख जनता के आने के इंताजार में खुद ही दुनिया छोड़कर चले गये। क्यों गये,उसपर बहुत चर्चा हो चुकी है। जनसंस्कृति मंच और इंडियन पीपुल्स फ्रंट के गठन में गोरख पांडेय का अवदान भी बड़ा था।लेकिन गोरख पांडेय के अवसान के बाद उनके साथी,जिनमें अपने शमशेरदाज्यू भी थे,कौन कहां छिटक गये,क्यों बिखर गये बामसेफ की तरह किसी ने खबर तक नहीं ली।
हम तो हर वक्त जनता के लिए सिंहासन खाली बताते हैं और जुगाड़ लगाकर खुद उसपर काबिज होने की कवायद में स्मृतिभ्रंश के शिकार हो जाते हैं।
और नतीजतन फिर वहीं नजारा।
जैसा कि सुधा ने लिखा हैः
जब गली में चीखती आवाज़ें गूँजी तुम नहीं उठे ।
जब घर में सिसकने की आवाजें गूँजी तुम नहीं उठे
जब खुद तुम्हारे हृदय में चीखने के स्वर गूँजे तब भी तुम नहीं उठे!!!!!!
तो सुनो मेरी कोई पुकार तुम्हारे लिये नहीं है क्योंकि पुकारा सिर्फ़ जीवितों को जाता है और सुनकर सिर्फ वे ही दौङ कर आते हैं जो हाथ पाँव कान और आवाज रखते हैं दिमाग और दिल की धधक धङक के साथ जाओ तुम सो जाओ मैं तुम्हें नहीं किसी और को बुला रही हूँ अगर मेरी आवाज वहाँ तक पहुँचेगी तो वह जरूर उठेगा और मेरी आवाज थक गयी तो तो भी जिंदा लोग मेरी बात वहाँ तक पहुँचाते रहोगे ।
कोलकाता में भी पहाड़ी लोग बसते हैं।इनमें से एक विजय गौड़ कोलकाता में सिनेमा आफ रेसीसटेंस फेस्टिविल के मौके पर सपरिवार मिले तो पूछा उन्होंने कि कोलकाता में कब आये।जब मैंने कहा कि मैं तो तेईस साल से कोलकाता में हूं,उन्हें यकीन नहीं आया।बोले ,हम तो आपको अब भी पहाड़ में रहते हुए मान रहे हैं।
सही मायने में 1979 से पहाड़ छोड़े हुए होने के बावजूद अब भी मैं पहाड़ों, घाटियों, नदियों से घिरा हुआ हूं और मैदानों के रंग बिरंगे तिलिस्मों से बाहर हूं।लेकिन मैं न तो खांटी बंगाली हूं और न खांटी पहाड़ी।
हम नैनीताल में बृजमोहन शाह के नाटक त्रिशंकु का मंचन करते रहे हैं और हो सकते हैं तबसे अबतक खांटी त्रिशंकु ही बने हुए हैं।
कोलकाता में मैं और राजीव शायद ऐसे दो पहाड़ी रहते हैं जिन्हें पहाड़ में कोई पहाड़ी मानने को तैयार ही न हों। नागपुर से लौटते हुए मैं सविता के साथ घर पहुंचने के बजाये,नये कोलकाता में राजीव के घर चला गया।
कोलकाता में मिफ फिल्म फेस्टिवल के दौरान राजीव की सास और ताई का निधन हो गया।मीना भाभी अकेली मायके गयी थीं।लौट आयी हैं और सविता को उनसे तत्काल मिलना जरुरी लगा।
राजीव कोलकाता में फिल्म प्रभाग में बास हैं।हमारी दोस्ती नैनीताल डीएसबी और युगमंच के जमाने से हैं, जबकि तब नैनीताल में राजीव के पिता बड़े अफसर थे और हम तभ भी फटीचर ही थे।अखबारों में 35 साल की नौकरी के बावजूद हमारी फटीचरी जस की तस है।इसके बावजूद दोस्ती अब भी बनी हुई है।
जब मीना भाभी और सविता को एकांत में बतियाने का मौका देने हम दोनों बाहर निकले तो राजीव कालिकापुर में बन रहे केंद्रीय बसअड्डे की जगह मुझे ले गया।जहां अभी काम नहीं शुरु हुआ।
धान के खेत अब भी हैं।पानी में डूबा घास का मैदान हैं।तालाब है। छोटा सा एक जंगल भी है।सांप हैं और पक्षियां भी।तितलियां भी और उनकी उड़ान भी।
हमने वहां बहुत अरसे बाद धान के खेतों को स्पर्श किया।
पानी में डूबे घास के मैदानों में टहलते रहे।
कांटो को झेलते हुए जंगल में भटकते रहे।
और वहीं से भथुआ साग भी तोड़ लाये।
हमारी चारों तरफ बहुमंजिली कंक्रीट का जंगल हमारी मजाक उड़ा रहा था।
अब जब हम वहां जाये तब तक हो सकता है कि धान के खेत नये कोलकाता के दूसरे हिस्सों की तरह खत्म हो जायें और पक्षियों का नामोनिशान न हों।
हो सकता है कि नये बने बस स्टाप में तब हम अजनबी की तरह दिशाएं खोजते रहें।
राजीव हमारे प्रिय फिल्मकार भी हैं हालांकि वह इन दिनों कोई फिल्म बना नहीं रहा है और विशुद्ध प्रबंधकीय भूमिका में हैं।
हमारे दूसरे प्रिय फिल्मकार मित्र जोशी जोसेफ से हमारी वर्षों से मुलाकात नहीं है क्योंकि वे हमेशा कोई न कोई फिल्म बना रहे होते हैं।
मुबंई,दिल्ली और कोलकाता के मित्रों से वैकल्पिक सिनेमा के बारे में हमारी चर्चा होती रही है। लेकिन राजीव इन मुद्दों पर बोलने के बजाय इन दिनों कविता पर ही ज्यादा बातें करना चाहता है।
वह कविताएं लिख भी रहा है।नैनीताल में हमारे रूम पार्टनर कपिलेश भोज भी इन दिनों कविताएं लिख रहे हैं।
उत्तराखंड की दो कन्याएं गीता गैरोला और सुधा राजे बी खूब लिख रहीं हैं।लेकिन कविता में भी मुझे कठोर असुंदर गद्य की तलाश रहती है और मैं फिल्म की परंपरागत विधा को भी तोड़ने का इरादा रखता हूं।
हम देश भर के लोगों से जो संवाद करते रहते हैं,उसपर राजीव मुझे बतरसजीवी बंगाली कहते हुए गरियाता रहता है।लेकिन उसका मत है कि मुझे नैनीताल से सांसदीय या विधायकी का चुनाव जरुर लड़ना चाहिए और जीतना चाहिए।लेकिन मुझे बुनियादी मुद्दों का हल जिसतरह सत्तर के दशक में गिरदा से अविराम बहिसियाते हुए चुनाव और मौजूदा राज्यतंत्र में कहीं नजर नहीं आता,उसी तरह आज भी मैं इरोम शर्मिला के ना के साथ खड़ा हूं।
राजीव ने मुझे पहल का ताजा अंक दिखाया।फिर प्रकाशित होने के बाद मैंने पहल उठाकर देखी नहीं थी जबकि पहल में ही मेरी लंबी कहानी नई टिहरी पुरानी टिहरी छपी थी।
राजीव ने हमारे सामने कई लघु पत्रिकाएं पेश कीं,जिनमें कभी मैं निरंतर छपता रहा हूं और अब नहीं छपता।
आपातकाल के दौरान हमने जनवादी लेखकों की कोटा में दिवंगत सव्यसाची और दिवंगत शिवराम के तत्वाधान में हुई एक गुप्त बैठक में हम लोगों ने तब शपथ ली थी कि हम लोग व्यवसायिक लेखन नहीं करेंगे। नैनीताल डीएसबी में मोहन कपिलेश भोज और मैं तब बीए प्रथम वर्ष के छात्र थे।
देहरादून से आये धीरेंद्र अस्थाना और दिल्ली से आये कांति मोहन और सुधीश पचौरी,अलीगढ़ से तब बेहतरीन कविताएं लिख रहे मनमोहन आये थे।
मोहन की शादी तय हो गयी थी तभी और वह बेहद परेशान था।
हाल में कवि धूमिल की मौत हो गयी थी और हम सारे लोग तब धूमिल की कविताओं पर बात कर रहे थे।
हिंदी और भारतीय भाषाओं में सत्तर के दशक के दरम्यान लघुपत्रिका आंदोलन एक जमीन तोड़ घटना थी।नये पुराने सारे लिखनवाले एक साथ लघु पत्रिकाओं में लिख रहे थे।अब मुझे न वे पत्रिकाएं दिखती हैं और न वे प्रतिबद्ध संपादक रचनाकार कहीं नजर आते हैं।जो है ,वह नख से शिख तक व्यवसायिक कारपोरेट हैं।
हमें नहीं मालूम कि उत्तराखंड आंदोलन और चिपको आंदोलन के आंदोलनकारियों ने आप में निष्णात होने से पहले आपस में कोई संवाद किया है या नहीं।
जो नाम सामने हैं,उनके अलावा ढेरो लोग अब हाशिये पर हैं।
हमें नहीं मालूम कि शमशेरदाज्यू,राजीव दाज्यू,शेखर दाज्यू,कमला पंत ने उन लोगों से ,जिनमें अनेक अब भी सामाजिक जीवन में सक्रिय हैं,से कोई राय ली है या नहीं।
हम न आंदोलन के नेता रहे हैं और न मोर्चों के सिपाहसालार। हमसे नहीं पूछा तो उसकी वजह है। लेकिन नैनीताल समाचार,पहाड़ और उत्तरा में मुकम्मल टीमें हुआ करती थीं।आप में दाखिल होने से पहले थोड़ा सलाह मशविरा तो बनता था।
आपको याद होगा कि उत्तराखंड के नये मुख्यमंत्री बनने पर शमशेरदाज्यू ने उन्हें पहाड़ में जनांदोलन की पृष्ठभूमिवाला पहला मुख्यमंत्री बता दिया था।
इसपर हमने अपनी जानकारी न होने की बात लिखी थी।राजीव दाज्यू ने खुलासा किया कि पार्टीबद्ध होने से पहले बची सिंह रावत और हरीश रावत दोनों आंदोलनकारी थे।
आंदोलनकारियों की सूची बड़ी लंबी है,जाहिर है।
लेकिन शमसेरदाज्यू और राजीवदाज्यू के उस हालिये अवस्थान के बाद उन सबके आप में शामिल होने से मैं वैसे ही चौंका हूं जैसे प्रदीप टमटा की सांसदी से या फिर अपने प्रिय कवि बल्ली सिंह चीमा के आप में शामिल होने से।
अभी हमें पीसी तिवारी और जहूर आलम का अवस्थान मालूम है नहीं।हो सकता है कि वे भी आप में उत्तराखंड का कायाकल्प देख रहे हों।
अगर उनके इस फैसले से हिमालय और हिमालयी लोगों का भला होता है,तो स्वागत है।उनको हमारी शुभकामनाएं। लेकिन अब तक उनके हर फैसले को सर माथे रखने के बावजूद हम उनके इस फैसले के साथ नहीं हैं।
हम तो चुनावों के बारे में सोच ही नहीं रहे हैं,चुनावों के बाद सत्यानाश का जो नया सिलसिला शुरु होने वाला है,उसके बारे में सोच रहे हैं।
हम अपने नये पुराने साथियों के फैसले का सम्मान करते हैं और किसी भी सूरत में उनके विरुद्ध खड़ा होना नहीं चाहते क्योंकि राष्ट्रव्यापी जनपक्षधर मोर्चा में हमें सत्ता संघर्ष के नतीजे निकलने के बाद उनका इंतजार रहेगा।
हम अपने पुराने साथी अखिलेंद्र प्रताप सिंह के अनशन तोड़ने के मौके पर जो बयान जारी किया है,हम तहे दिल से उसका समर्थन करते हैं।हम उनका आभार व्यक्त करते हैं कि उन्होंने तमाम लोगों की अपील पर अनशन तोड़ दिया।आगे लंबी लड़ाई है और हम उम्मीद करते हैं कि जनपक्षधर राष्ट्रीय मोर्चा बनाने में उनकी भी भूमिका होगी और वे खुद सत्ता के गणित के मुताबिक काम नहीं कर रहे होंगे।
नई दिल्ली में 16 फरवरी 2014 को आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट (आइपीएफ) के राष्ट्रीय संयोजक अखिलेन्द्र प्रताप सिंह का दस दिवसीय उपवास पूर्व घोषणा के अनुसार दसवें दिन सीपीआई (एम) के महासचिव कॉमरेड प्रकाश करात ने जूस पिलाकर समाप्त कराया। इस अवसर पर कॉमरेड करात के अलावा, वयोवृद्ध कम्युनिस्ट नेता और सीपीआई के पूर्व महासचिव कॉमरेड ए0 बी0 वर्धन, सोशलिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष न्यायमूर्ति राजेन्द्र सच्चर, सीपीआई (एमएल) के पोलित ब्यूरों सदस्य कॉमरेड स्वपन मुखर्जी, प्रभात चौधरी, राष्ट्रीय उलेमा कौसिंल के राष्ट्रीय अध्यक्ष आमिर रसादी मदनी, भारतीय किसान यूनियन (अम्बावता) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ऋषिपाल अम्बावता, पूर्व सासंद एम एजाज अली, प्रो0 शिवमंगल सिद्धांतकर, अर्थशास्त्री जया मेहता समेत देश की विभिन्न प्रगतिशील लोकतान्त्रिक आन्दोलनों की ताकतों के नेतागण जुटे।
यह उपवास कॉरपोरेट घरानों को लोकपाल कानून के दायरे में लाने, रोजगार के अधिकार को संविधान के मूल अधिकार में शामिल करने, साम्प्रदायिक हिंसा निरोधक बिल को संसद से पारित कराने, कृषि योग्य भूमि के कॉरपोरेट खरीद पर रोक लगाने, कृषि लागत मूल्य आयोग को वैधानिक दर्जा देने समेत आम नागरिक की ज़िन्दगी के लिये महत्वपूर्ण सवालों पर किया जा रहा था।
इस अवसर पर आयोजित सभा में अखिलेन्द्र ने कहा कि इस उपवास को जिस तरह से देश की विभिन्न प्रगतिशील लोकतान्त्रिक धाराओं के व्यापक हिस्से का समर्थन हासिल हुआ है और जनता के वास्तविक मुद्दों को राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर सामने ले आने में सफलता हासिल हुयी है उससे यह विश्वास पुख्ता हुआ है कि इस देश में कॉरपोरेट राजनीति को शिकस्त मिलेगी और जनता की राजनीति की जीत होगी। उन्होंने कहा कि इस उपवास के दौरान बार-बार दमन के खिलाफ लोकतान्त्रिक अधिकारोंके लिये बारह वर्षो से उपवास पर बैठी इरोम शर्मिला याद आ रही। आज भी देश में महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे है, पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों पर बर्बर हिंसा हो रही है, कश्मीर के लोंगो को राजधानी में पत्रकार वार्ता तक नहीं करने दी जा रही है। इन हालातों को हर हाल में बदलना होगा और हर हिन्दुस्तानी नागरिक कों चाहें वह हिन्दी-ऊर्दू भाषी क्षेत्र का हो, दक्षिण, मध्य भारत, पूर्वोतर या कश्मीर का हों उसे सम्मान के साथ जीने का अधिकार हासिल दिलाने के लिये चौतरफा आन्दोलन चलाना होगा।
अखिलेन्द्र ने कहा कि नई आर्थिक-औद्योगिक नीति ने सवालों को हल करने की जगह और जटिल कर दिया है। जिस चालू खाते के संकट को दूर करने के लिये इन्हें लाया गया था वह आज और भी गहरा हो गया है। बेरोजगारी बड़े पैमाने पर बढ़ी है और कृषि विकास गतिरूद्ध ही नहीं ऋणात्मक स्तर पर जा रहा है। ठेका मजदूरों के दोनों रूप चाहे वह शारीरिक श्रम करने वाले राष्ट्रपति भवन से लेकर उद्योगों तक में काम करने वाले हो या बौद्धिक श्रम करने वाले मीडिया, माल, सर्विस सेंटर में कार्यरतकर्मी असुरक्षित जीवन जीने के लिये अभिशप्त है। इनका हर हाल में नियमितिकरण के सवाल को हल करना होगा।
इसी सिलसिले में आप की भूमिका के बारे में आप कृपया मेरे इससे पहले लिखे वक्तव्य पर भी गौर करें।
Bhaskar Upreti
"हर समय कुछ ऐसे लोग होते हैं जो शासक बनना नहीं चाहते. इनमें से कुछ लोग अपने समय के सर्वश्रेष्ठ लोग होते हैं और उन्हें शासन करना स्वीकार करना चाहिए. लेकिन वे अनिच्छुक होते हैं. ऐसे लोगों को शासक बनने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए. अगर वे इंकार करें तो उन्हें सजा दी जानी चाहिए. जनता को शासक के तौर पर ऐसे ही लोगों की जरूरत होती है. ये लोग जनता के हितों की पूर्ति करेंगे, अपनी नहीं. दूसरी तरफ समझदार लोगों को चाहिए कि वे ऐसे लोगों द्वारा शासित होने को ही महत्व दें." (सुकरात)
Bhaskar Upreti "शासक एक गड़ेरिये की तरह होते हैं जो अपनी भेड़ों को इसलिए मोटा करते हैं ताकि उनसे लाभ कम सके. लोगों के साथ लेन-देन में एक न्यायप्रिय व्यक्ति अन्यायी व्यक्तियों की तुलना में फिसड्डी होता है. उदाहरण आप चोरी करते हुए पकडे जाएँ तो आपको सजा मिलेगी. लेकिन अगर आप पूरी जनता को लूट लें, जैसा की अनेक शासक करते हैं, तो आपको भाग्यशाली कहा जाता है." (थ्रासिमुकस, सुकरात का शिक्ष्य)
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रिलायंस साम्राज्य की असलियत के खुलासे के लिए आप को बधाई। राजनीति है तो होगी,दूसरे भी कर रहे हैं। कारपोरेट राज के खिलाफ जिहाद की शुरुआत के लिए आभार।जिहाद असली है या नकली,साबित करें आप,लेकिन पर्दाफाश सौ टक्का सच है।हम इस सच के साथ है।जिहाद सच हुआ तो उसके साथ भी होंगे हम।
हम अपने आदरीणीय मित्र राजीव नयन बहुगुणा से सहमत है कि अगर आरोप के मुताबिक , केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजनीति में आने के लिए इस्तीफा दिया है , तो और अच्छा । हमें मारुती ८०० में चलने वाला , हमारी ही तरह खांसने वाला और मफलर टांगने वाला और अपने आवागमन के वक्त रास्ते जाम न करवाने वाला , रेड लाईट पर वेट करने वाला प्रधान मंत्री चाहिए । हमें मनमोहन सिंह जैसा अर्थ नीति और शशि थरूर जैसा विदेश नीति का निपुण नहीं चाहिए।हम राजीवनयन जी से सहमत है कि जी हाँ , जनता संविधान से भी ऊपर है । वह संविधान , सरकार , इतिहास , भूगोल सब कुछ बदलने का अधिकार और हैसियत रखती है।
हम इस बेहद सत्य सामाजिक यथार्थ से मुंह मोड़ लेते हैं,तो रोज संविधान और कानून तोड़कर जलसंहार व्यवस्था के तहत देश बेचो जनता मारो परंपरागत राजनीति की संवैधानिक मिथ्या दुहाई की मृगमरीचिका में ही फंसे होंगे। अगर अरविंद राजनीति कर रहे हैं तो बाकी लोग धर्म कर्म नहीं कर रहे हैं।अगर सत्ता के लिए सिखों का संहार,गुजरात नरसंहार और बाबरी विध्वंस से लेकर मुजफ्परनगर दंगा,संसद में मिर्च मसाला जायज है तो जनलोकपाल विधेयक के लिए आप सरकार की खिल्ली उड़ाने की नैतिकता पाखंड के सिवाय कुछ भी नहीं है।
अग्निपरीक्षा तो आप की है।हम कांग्रेस,भाजपा और उनके पिछलग्गू क्षत्रपों की रंग बिरंगी राजनीति सन सैंतालीस से झेल रहे हैं,पूरे दो दशक से आर्थिक सुधारों के तहत नरमेध यज्ञ बर्दाश्त कर रहे हैं।देश अमेरिकी उपनिवेश है। नागरिकता अप्रासंगिक है।कृषि और उत्पादन प्रणाली मृत है। मनुष्यता और प्रकृति की कीमत पर देश बेचो ब्रिगेड की कारपोरेट सत्ता है।इसके खिलाफ जिहाद की पहल की है आपने।अब आप लड़ें या नहीं,आवाम की बंद आंखें खुल गयी तो यह जिहाद होकर रहेगा।आप पर हमला करने के बजाय धर्मोन्मादी कारपोरेट राज के खिलाफ निनानब्वे फीसद जनता की गोलबंदी के लिए अस्मिताओं के हर तिलिस्म को ध्वस्त करके आइये,हम भारत जोड़कर एक नयी शुरुआत करें।
आप को करने दीजिये राजनीति।यकीन मानिये, वे नरेंद्र मोदी,राहुल गांधी और ममता बनर्जी की तुलना में कम आरक्षण विरोधी हैं और उनसे खराब प्रधानमंत्री नहीं होंगे।होंगे तो जनता की गोलबंदी हो गयी तो उसको भी वैसे ही उखाड़ दिया जायेगा,जैसा कि जनता बार बार कांग्रेस और भाजपा के साथ साथ गैरकांग्रेसी प्रयोग और वामपंथी,अंबेडकरी छद्म क्रांति को खारिज करती रही है।
अगर यह जोखिम है तो जोखिम उटाने की जरुरत है।
अरविंद ने जो कहा है,उस पर जरुर गौर करना चाहिए और उनके उठाये सवालों के जवाब तलाशने चाहिए।
हम लोग जो ऐसा सोच रहे हैं,उनमें से ज्यादातर लोग आप के समर्थक नहीं हैं लेकिन कारपोरेट राज के खिलाफ है और देश को देशी विदेशी कंपनियों का साम्राज्य बनते देख नहीं सकते।
मणिपुर की इरोम शर्मिला ने आप के टिकट पर चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है।मेधा पाटेकर के साथ जुड़े पच्चीस तीस लोग आप के टिकट पर या आप के समर्थन से राजनीतिक हस्तक्षेप के लिए लड़ेंगे।लेकिन हम अपनी असली लौहमानवी इरोम के साथ खड़े हैं।हम सोनी सोरी के साथ खड़े हैं। हम पूर्वोत्तर,गोंडवाना,कश्मीर और दक्षिण बारत के साथ खड़े हैं।हम उत्तर भारतीय धर्मोन्माद के खिलाफ उत्तर भारत की ही समावेशी लोक परंपराओं और विरासत के सात खड़े हैं।हम इस महादेश की तमाम रक्तनदियों की महासुनामी और प्राकृतिक आपदाओं के मध्य खड़े हैं और बदलाव के हालात बनाने की जंग लड़ रहे हैं।बदलाव कहीं से हो,हाताल ये बदलने ही चाहिए।हमारा किसी के प्रति कोई पूर्वग्रह नहीं है।
आज अगर अरविंद,प्रशांत भूषण या योगेंद्र तो क्या किसी भी संसदीय क्षेत्र की बहुसंख्य जनता भी संसदीय लड़ाई के रास्ते इस राज्यतंत्र में शामिल होने के लिए हमारे दरवाजे पर दस्तक दें,तो हम जो बदलाव चाहते हैं,उनमें से ज्यादातर लोगों का इरोम का ना ही होगा।
अब अरविंद को सड़क पर ही साबित करने की मोहलत और मौका जरुर दें कि उसकी लड़ाई कितनी असली है।
इससे पहले गौर करें ,उसपर जो इस्तीफे के वक्त अरविंद ने कहा है।
इन्होंने जनलोकपाल बिल गिरा दिया. ऐसा क्यों हैं? क्योंकि अभी तीन दिन पहले हम लोगों ने मुकेश अंबानी के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ की है. वीरप्पा मोइली के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज़ की है. मुकेश अंबानी वो सख़्श हैं जो इस देश की सरकार चलाते हैं. मकेश अंबानी ने कहा है कि कांग्रेस मेरी दुकान है मैं जब चाहूँ ख़रीद सकता हूँ. यूपीए की सरकार को पिछले दस साल से मुकेश अंबानी चला रहे थे और पिछले एक साल से मोदी जी को चला रहे हैं.
मोदी के पास इतना पैसा कहां से आता हैं. हेलीकॉप्टर से घूमते हैं, इतनी बड़ी बड़ी रैलियाँ करते हैं? पैसा आता है क्योंकि मुकेश अंबानी उनके पीछे हैं. जैसे ही हमने मुकेश अंबानी पर हाथ रखा ये दोनों एक हो गए. इन्होंने जनलोकपाल पास नहीं होने दिया क्योंकि इन्हें लगा कि अभी केजरीवाल के छोटी सी एसीबी है तो नाक में दम कर रखा है यदि जनलोकपाल आ गया तो आधे से ज़्यादा नेता जेल चले जाएंगे.
इसलिए दोनों पार्टियों ने मिलकर जनलोकपाल बिल गिरा दिया. इन्हें ये भी डर था कि यदि सरकार चलती रही तो अभी तो मुकेश अंबानी और मोइली को ही पकड़ा है थोड़े दिनों में शरद पवार की भी बारी आ सकती है. दोस्तों, मैं बहुत छोटा आदमी हूँ. मैं यहाँ कुर्सी के लिए नहीं आया हूँ. मैं यहाँ जनलोकपाल बिल के लिए आया हूँ. आज लोकपाल बिल गिर गया है और हमारी सरकार इस्तीफ़ा देती है.
मीडिया विशेषज्ञ जगदीश्वर चतुर्वेदी ने लिखा हैः
पूँजीपति को गाली देना या अपराधी ठहराने से मामला सिलट जाता और जनता नेता के पीछे उठ खड़ी होती तो कम्युनिस्टों की यह दुर्दशा न होती ।
अरविंद केजरीवाल जान लें वे पहले व्यक्ति नहीं हैं जो मुकेश अम्बानी पर हल्ला कर रहे हैं या आरोप लगा रहे हैं।
भाकपा सांसद गुरुद्वासदास गुप्त तो आम आदमी पार्टी के जन्म के पहले से मुकेश अम्बानी के ख़िलाफ़ आरोप लगा रहे हैं ।
क्या कभी आम आदमी पार्टी के किसी नेता ने उनके समर्थन में बयान दिया ?
क्यों नहीं बोले केजरीवाल पहले ? क्या पूँजीपतियों की लूट के ख़िलाफ़ अकेले जंग जीती जा सकती है ? मुकेश अम्बानी और गैस के दामों के मसले पर केजरीवाल को संयुक्त संघर्ष करने की बात ज़ेहन में क्यों नहींआती ? केजरीवाल को अकेले ही संघर्ष करेंगे की मानसिकता से बाहर निकलकर साझा दोस्तों का साझा मंच बनाकर साझा कार्यक्रम के आधार पर काम करना चाहिए । मुकेश अम्बानी को व्यक्तिवादी राजनीति से पछाड़ना संभव नहीं है ।
वह एक वर्ग है जिसकी सामूहिक वर्गीय शक्ति है । उसकी लूट तो वर्गीय लूट का हिस्सा है वह महज़ निजी लूट नहीं है । इसलिए मुकेश अम्बानी बनाम केजरीवाल की जंग बेमेल जंग है ।
हम जगदीश्वर जी से सहमत हैं।
हम अभिनव सिन्हा और सत्यनारायण जी के आकलन से भी सहमत है।
लेकिन वामपंथी राजनीति का पाखंड हम जान चुके हैं और वामपंथ के कायाकस्प बिना उसके नेतृत्व में भारत में अब बुनियादी किसी परिवर्तन की कोई गुंजाइश नहीं है।सच कहें तो हमें अरविंद केजरीवाल और आप से भी ज्यादा उम्मीद नहीं है।खास लोगों की पार्टी बनकर उभर रही आप की हमने जमकर आलोचना भी की है और दिल्ली में आप सरकार बनने पर हमने अरविंद को मोदी से ज्यादा खतरनाक माना था।लेकिन खुदरा कारोबार पर रोक कोई नारेबाजी नहीं और न रिलायंस और केंद्रीय मंत्री के खिलाफ एफआईआर सिर्फ राजनीतिक कवायद है। इसके जरिये अगर देश की बिखरी हुई जनपक्षधर ताकतों और सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी होती है,तो बुरा क्या है।फिर जिस निर्लज्जता के साथ कांग्रेस भाजपा ने कारपोरेट का साथ दिया और रिलायंस पर चर्चा न हो,इसके लिए संसद को मिर्चमसाला बना दिया,जिस मुस्तैदी के साथ अमेरिका नरेंद्र मोदी के साथ है और जिसतरह अमेरिकी समर्थन से ममता दीदी को तीसरे मोर्चे को फेल करने के लिए मोदी के फेल होने के हालात में वैकल्पिक प्रधानमंत्री बतौर तैयार किया जा रहा है, अरविंद केजरीवाल को सिरे से खारिज करना नमोमय भारत निर्माण की पहल ही साबित होगी।
जगदीश्वर न जाने क्यों दिल्ली के उपराज्यपाल के मंतव्य को अहमियत दे रहे हैं,जो दिल्ली की कांग्रेस सरकार के प्रतिनिधि होने के साथ कारपोरेट संबंधों के लिए चरचित है और जगदीश्वर जी लिखत हैंः
केजरीवाल सरकार के औचक निरीक्षण और मंत्रियों के हस्तक्षेप के कारण अस्पतालों और शिक्षा संस्थानों में जो अराजकता पैदा हुई थी उसकी ओर दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने कल राज्यपाल सम्मेलन में सही ध्यान खींचा है । केजरीवाल के मंत्रियों ने औचक निरीक्षण को बिना किसी प्रक्रिया के हस्तक्षेप का औज़ार बनाकर प्रशासनिक अक्षमता का प्रदर्शन किया है ।इस अर्थ में उनके प्रशासन के ४८दिन बुरे रहे। डर के मारे घूसखोरी कम हुई यह अच्छी बात रही । आटो चालकों की मनमानी होती रही। कारपोरेट बिजली कम्पनियों को पेमेंट मिला। ६४हजार एडहाॅक कर्मियों को परमानेंट नहीं कर पाए।
कुल मिलाकर बिजली कंपनियों को सैंकडों करोड़ रुपये का पेमेंट सरकारी ख़ज़ाने से करके केजरीवाल चले गए और यह उनकी कारपोरेट जंग नहीं कारपोरेट भक्ति है।
उनको बिजली कंपनियों के खाते की जाँच होने तक सरकार में रहना चाहिए था लेकिन वे सिर्फ़ बिजली कंपनियों को तक़रीबन ३००करोड़ रुपये से ज़्यादा का पेमेंट दिलाकर निकल लिए । यह जनता के ख़ज़ाने की सीधे लूट है।अब बिजली बिलों का क्या होगा ?
हम तो अब भी सुरेंद्र ग्रोवर जी के सवालों का जवाब मांग रहें हैं।देश की सबसे बड़ी कंपनी के खिलाफ घनघोर अभियोग।जो लोग खुलासा,स्टिंग और पर्दाफास,पैनल विशेषज्ञ हैं,उनकी फटी क्यों पड़ी है,कुछ समझ में आने वाली बात नहीं है।नैतिकता और पवित्रता का स्वांग रचकर देश औरक समाज को धर्मोन्मादी बना रहे दंगाई खामोश क्यों है,भ्रष्ट तंत्र पर परदा डालने की संसदीय नूरा कुश्ती से जो न समझ पाया,उसे गदहा जनम का अभिननंदन।
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना
नमोमय देश में हर शख्स दिवाना
खून चूं रहा है जिस्म से खूब
लहूलुहान है दिलोदिमाग भी
फिरभी हर शख्स दिवाना
भ्रष्टाचार विरोधी जंग हुई तीनफाड़
किरण हो गयी केशरिया देखो
आप की बहार भी देखो
गांधी जिसको मान रहा था देश
हुआ वह ममतामय,यह भी देखो
पहली से गैस होगी दोगुणी मंहगी
चाय पर चर्चा में उसकी गूंज नहीं कोई
रिलायंस के खिलाफ एफआईआफर से
विशुद्ध रक्त,नीला खून दोनों उबला खूब
संसद में नूरा कुश्ती का अखाड़ा देखो
हर शख्स इनदिनों बाजीगर देखो
अपनी डफली अपना राग जनता
का सफाया तय देखो,एसी हो गया
देश यह,वातानुकूलित नहीं है
जो जन गण उसका कत्लेआम देखो
सुरेंद्र जी के लिखे से मैं सहमत हूंः
मुझे भी लग रहा है कि जो नेतागण केजरीवाल को विधानसभा चुनावों से पहले कमतर आंक कर चल रहे थे, "आप" को अट्ठाईस सीटें मिलने पर हक्का बक्का रह गए.. अब कल केजरीवाल ने कांग्रेस और भाजपा को धोबी पछाड़ दाव से धरती पर सितारे दिखा दिए हैं, के चलते केजरीवाल की जान पर खतरा खड़ा हो गया है.. इन बेशर्म नेताओं और कॉरपोरेट्स का काकस किसी भी हद तक जा सकता है..
आप क्या कहते हैं?
हम अरविंद के इन सवालों का जवाब खोज रहे हैं।आप भी खोजिये,यह गुजारिस हमारी है।सही गलत जो भी जवाब हो आपका,जो भी मतामत है आपकी हम उसका स्वागत करते हैं।
हमारी लड़ाई उस निर्मायक संस्थागत लोकतंत्र और धम्म के लिए है,जहां आखिरी आदमी की सुनवाई हो।न कहीं कोई मूर्ति हो न मूर्ति पूजा हो।न कोई देव देवी हो और न कोई असुर,दैत्य,दानव,राक्षस,अछूत।
हम उस विकेंद्रीकरण के पक्षधर हैं जहां हर फैसले में सबकी भागेदारी बिना जातीय वर्गीय नस्ली भेदभाव के सुनिश्चत हो।भाषणबाजी के बजाय अनंत संवाद हो।हर किसी के लिए अवसर हो और संसाधनों का न्यायोचित बंटवारा हो।
यह लड़ाई हजारों साल से जारी है।हजारों सालों तक जारी रहेगी।
लेकिन इसी के मध्य एकाधिकार विरोधी वर्चस्व विरोधी आक्रमम विरोदी देशभक्त देशजोड़ो हर सकारात्मक पहल को हमारा पुरजोर समर्थन है।
इसके लिए किसी पार्टी में शामिल होना और सक्रिय राजनीति कोई जरुरी नहीं है।
सबसे जरुरी लेकिन है जनपक्षधर मोर्चा और जनप्रतिबद्धता। जिसके सबूत अरविंद केजरीवाल से भी हम बार बार मांगते रहेंगे।
देश में लोकसभा चुनाव आसन्न है।हर नेता डींगें हांककर मतदाताओं को हांक लेने के फिराक में हैं और संसद नूराकुश्ती के अखाड़े में तब्दील है।प्रतिष्ठित अखबारों में सबसे बड़ी खबर है कि बॉलीवुड की 'हॉट' एक्ट्रेस सनी लियोन अपनी अपकमिंग फिल्म 'रागिनी एमएमएस-2' के एक गाने 'बेबी डॉल' के लिए केज में बंद नज़र आईं।किसी भी जरुरी मुद्दे पर कामेडी नाइट विद कपिल का माजरा है।सिरे से स्त्री विरोधी।सिरे से मनुष्य विरोधी।सिरे से जनपद विध्वंसक।सिरे से सत्यानाशी।सिरे से प्रकृति और पर्यावरण के विरुद्ध।
पेट्रोलियम मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने आज कहा कि सरकार गैस मूल्य वृद्धि के निर्णय को वापस नहीं लेगी। देश में गैस उत्पादक कंपनियों को 1 अप्रैल से 2014 से बढ़ाने की अनुमति दी गई है जो मौजूदा मूल्य का दोगुना हो जाएगा।
मोइली ने गैस मूल्य बढ़ाने को लेकर अपने एवं कुछ अन्य के खिलाफ दिल्ली सरकार के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा दर्ज प्राथमिकी को 'असंवैधानिक' बताते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तीखी आलोचना की। मुख्यमंत्री ने इस संबंध में कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों की शिकायत पर यह प्राथमिकी दायर करने का निर्देश दिया था।
मोइली ने यहां एक कार्यक्रम के दौरान संवाददाताओं से कहा, 'इस पर (मूल्य बढ़ाने के निर्णय पर) रोक लगाने का सवाल ही कहां उठता है। यह (सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उत्पादकों दोनों के लिए गैस मूल्य बढ़ाने की अनुमति देने का निर्णय) एक सरकारी प्रक्रिया के जरिए की गई है। इस पर मंत्रिमंडल द्वारा दो बार विचार किया गया और दोबारा इसे मंजूरी दी गई है।'
नई दरें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा गठित समिति की सिफारिशों पर आधारित है और इस समिति का गठन मोइली के पूर्ववर्ती एस. जयपाल रेड्डी के अनुरोध पर प्रधानमंत्री ने किया था। नई दरें प्रति इकाई (एमएमबीटीयू) 4.2 डॉलर से बढ़कर 8-8.4 डॉलर हो जाएंगी।
इस सप्ताह की शुरूआत में केजरीवाल ने देश में गैस की कृत्रिम कमी पैदा करने और दाम बढ़ाने के लिए मोइली, रिलायंस इंडस्ट्रीज और इसके चेयरमैन मुकेश अंबानी के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज कराने के आदेश दिए थे
बाबा मुक्तिबोध सच कह गये हैं
महान मृतात्माएं इस नगर की
हर रात जुलूस में चलतीं,
परन्तु, दिन में
बैठती हैं मिलकर करती हुई षडयन्त्र
विभिन्न दफ्तरों- कारायालयों,केन्द्रोंमें,घरों में।
हाय ,हाय! मैंने उन्हें देख लिया नंगा,
इसकी मुझे और सजा मिलेगी।
अब तो हर गली ,हर चौराहे, हर गांव, हर खेत,हर नदी किनारे,हर घाटी शिखर में,रण में,जंगल में,रेगिस्तान में हर कहीं कोई न कोई कबीर चाहिए जो सच को सच और झूठ को झूठ कहने का जिगर रखें।
केंद्र सरकार की बल्ले बल्ले है और राजनीति स्साली इतनी कमीनी है कि जनादेश हो न हो, सत्ता हो या न हो,चलती उन्हीं की है जिनके हवाले रिमोट कंट्रोल है।इस वातानुकूलित,डिजिटल,बायोमेट्रिक,रोबोटिक देश में नागरिकता निषिद्ध प्रदेश है और मृत्यु उपत्यका में हर षड्यन्त्रकारी महा मसीहा है और गली चोराहों पर उन्ही की मूर्तियां।तमाम कर्मकांड में हम अपनी अपनी मृतात्मा को पूर्णाहुति देने वाले अमानुष समाज के यंत्रमानव हैं।
देश की सबसे बड़ी कंपनी के खिलाफ घनघोर अभियोग।जो लोग खुलासा,स्टिंग और पर्दाफास,पैनल विशेषज्ञ हैं,उनकी फटी क्यों पड़ी है,कुछ समझ में आने वाली बात नहीं है।नैतिकता और पवित्रता का स्वांग रचकर देश औरक समाज को धर्मोन्मादी बना रहे दंगाई खामोश क्यों है,भ्रष्ट तंत्र पर परदा डालने की संसदीय नूरा कुश्ती से जो न समझ पाया,उसे गदहा जनम का अभिननंदन।
अरविंद केजरीवाल की सरकार 'आप' ने मुकेश अम्बानी से जुड़ाव का खुलासा नहीं करने के लिए नजीब जंग की आलोचना की है।मीडिया का फोकस इसीपर है। जनता के सर्वनाश के क्या क्या इंतजामात हैं,उनका खुलासा न संसद में हो रहा है और न संसद के बाहर और न मीडिया में। प्रीमियम ट्रेनों के बहाने भारतीय रेल से आम जनता को बेदखल करने का काम निर्विरोध हो गया।संसद में मारामारी जो तेलंगाना अलग राज्य के सवाल पर हुई,वहां आज भी भारतीय संविधान लागू नहीं हैं और तमाम आदिवासी इलाकों में अब भी निजाम जमाने के कायदे कानून चलते हैं।
मौजूदा तेलमंत्री और पूर्व तेलमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई एक निर्वाचित राज्य सरकार की तरफ से। उस पर सन्नाटा है संसद में।देश की सबसे बड़ी कंपनी पर महासंगीन आरोप लगे हैं,उस पर खामोशी है संसद में। मीडिया को आर और अरविंद केजरीवाल का नमो परिप्रेक्षित भविष्य की चिंता है,लेकिन देश बेचो निरंकुश अभियान पर परदा डालने में कोई कोताही बरती नहीं जा रही है और जनता की अदालत में जो महामहिम युद्ध अपराधी समुदाय का न्याय होना चाहिए,उनके महिमामंडन का कोई अवसर कोई छोड़ नहीं रहा है।
आईपीएल घोटाले के तहत कैसिनो अर्थव्यवस्था के कायदे कानून रस्मोरिवाज को बेहतर तरीके से समझा जा रहा है।घोटाला और सट्टेबाजी के मुरजिम को आईसीसी चेयरमैन ही नहीं बनाया जा रहा है,खिलाड़ियों की नीलामी में भी खुल्ला घोटाला है। घोटालों पर फोकल न हो ,इसलिए आईपीएल विदेशी धरती पर खेला जायेगा जबकि भारत के क्रिकेट अपराध सरगना दुनियाभर के नस्लवादी जायनवादी तत्वों के साथ मिलकर क्रिकेट को ही बंधक बना रहे हैं।भारतीय राजनीति का प्रतीक इस देश के क्रिकेट प्रबंधन से कोई बेहतर नहीं है और हर राजनेता का चरित्रायन कोई न कोई सनी लियोन है।
गौरतलब है कि लोकसभा में तेलंगाना विधेयक का विरोध कर रहे कुछ सदस्यों ने भारी अफरातफरी की और एक सदस्य ने स्प्रे तक छोड़ा जिससे सदन में और उसकी दीर्घाओं में खांसी आना शुरू हो गई।संसद में बाहुबलियों और धनपशुओं को चुनकर भेजने का अंजाम इसके अलावा कोई और हो ही नहीं सकता।और यह सारा खेल संसद में जरुरी विधेयक बिना चर्चा पारित कराने और जनविरोधी अंतरिम रेल बजट के साथ जनसंहारक अंतरिम बजट पास की अश्लील आइटम संगीत है,जिसकी धुन पर पूरा देश लुंगी डांस करने लगा है। मुद्दे दरकिनार हो गये और जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही खत्म।
प्रीमियम ट्रेनों के शुरू होने से बहुत ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। हो सकता है कि इन ट्रेनों के किराये को सुन कर आपके होश उड़ जाएं। क्योंकि इन ट्रेनों के किराये बाजार से तय होंगे। दिल्ली और मुंबई के बीच प्रीमियम एसी स्पेशल ट्रेन की सफलता से उत्साहित रेलवे ने व्यस्त रूटों पर 17 और ऐसी ट्रेनें चलाने का फैसला किया है।
आखिर भारतीय रेल चलती किसके लिए है,बताइये। जिस जन गण का देश है यह,उसके लिए अनारक्षित डब्बे किसी ट्रेन में दो से ज्यादा नहीं है।आधी आबादी के लिए हर ट्रेन में फकत एक ही डिब्बा।आधे से ज्यादा डब्बे पहले से वातानुकूलित हैं।शयन यान के लिए आरक्षण तीन महीन कराइये।तत्काल के लिए तमाम सबूत पेश कीजिये।लेकिन बेरोजगार,बीमार कमजोर तबके के सफर पर निषेध हैं।पीपीपी माडल की बुकिंग के कारण अलग से जुर्माना भरिये।ट्रेन में चढ़ भी लिये तो कब बेपटरी होकर जान गवांयें,कब आग में स्वाहा हो जाये,ठिकाना नहीं।सकुशल हुए तो निजी कंपनियों से महंगा खाना,पानी खरीदकर चलते रहिये।अब प्रीमियम बहाने पूरी की पूरी ट्रेन एसी है। बंगाल जैसे खस्ताहाल राज्य में ग्यारह ट्रेनों में पांच प्रीमियम,एक एसी।
खबर है कि गैस प्राइस के मुद्दे पर दिल्ली की केजरीवाल सरकार के एफआईआर दर्ज कराने के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज सभी कानूनी रास्तों पर गौर कर रही है। सरकार ने कंपनी के चेयरमैन मुकेश अंबानी पर नामजद मुकदमा दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उन्होंने गैस की कीमतें बढ़वाने के लिए ऑइल मिनिस्टर से साठगांठ की। कंपनी मानहानि का मामला दर्ज कराने और क्षतिपूर्ति के रूप में भारी रकम का दावा ठोकने पर भी विचार कर रही है।
कानून का राज है और जाहिर है कि रिलायंस को भी आत्मपक्ष प्रस्तुत करने का हक है।लेकिन रिलायंस का बचाव करते हुए एक चुनी हुई सरकार के फैसले केखिलाफ खड़े लोग दरअसल किनका हित साध रहे हैं,समझने वाली बात है।
केंद्र और राज्य सरकारों के तमाम समामाजिक प्रकल्प एनजीओ के हवाले है।आपके सारे जनांदोलन एनजीओ के हवाले हैं।आप स्वयं एनजीओ हैं।ऐसे में आप के एनजीओकृत होने का आरोप लगाने के पाखंड का तात्पर्य भी समझिये।
कहा जा रहा है कि केजरीवाल का खेल खत्म है।दो चार घंटे का मेहमान हैं केजरीवाल। कहा जा रहा है कि सरकार न चला पाने की मजबूरी में शहादत का आयोजन में लगे हैं केजरीवाल। आज सुबह समयान्तर संपादक पंकज बिष्ट,जो संजोग से भारतीय भाषाओं के एक मूर्धन्य गद्यकार,उपन्यासकार और जनपक्षधर वैकल्पिक मीडिया के सिपाहसालार भी हैं, उस पंकजदा से आज सुबह फिर लंबी बातचीत हुई।दा को हमने बताया कि इकोनामिक टाइम्स में छपे ताजा सर्वे से साफ जाहिर है कि मोदी को दो सौ सीटों के आगे जाने के लिए अभी हिमालय लांघने और समुंदर छलांगने जैसे करिश्मे करने होंगे।अब सरकार रहे चाहे जाये,तयहै कि सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी और छात्र युवाजनों की अभूतपूर्व हस्तक्षेपी सक्रियता से तय हो गया है कि यह देश हर्गिज नमोमय बनने नहीं जा रहा है।सीटें भले उतनी न मिलें,लेकिन हर सीट पर लाख,दो लाख संघी वोट जरुर कटेंगे। हमने दा को बताया कि अब जबकि तीसरे मोर्चे की सरकार ख्वाब से हकीकत में बदलने लगी है,तभी दूसरी संपूर्ण क्रांति के भीष्म पितामह अन्ना हजारे केजरीवाल और किरण वीके के भाजपाई ब्रिगेड से अलग मोदी के विक्लप बतौर पीपीपी सम्राज्ञी ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाने की मुहिम में लग गयी है।ध्यान दें,राजनीति से अलग रहने की गरज से अपने गांव राले सिद्धि में मनुस्मृति व्यवस्था लागू करनेवाले अन्ना ने केजरीवाल के राजनीतिक हस्तक्षेप अभियान से पल्ला झाड़ लिया था।तो ममता को प्रधानमंत्री बनाने के इस महायज्ञ के पीछे कौन तत्व हैं,समझने वाली बात है।
पंकजदा ने कहा कि केजरीवाल का पतन तो तभी तय हो गया जब उसने दिल्ली में खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी विनिवेश पर रोक लगी दी थी।दादा से हम सहमत हैं।आपको समझ में नहीं आ रही यह दलील तो उस दिन के तमाम अंग्रेजी अखबारों का संपादकीय पढ़ लें।विडंबना यह है कि भ्कष्टाचार के खिलाफ,कालाधन और विदेशी पूंजी के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर स्वयंभू आंखों में भर लो पानी वाला देशभक्त कारपोरेट चाय पार्टी के लोगों को भयनक पेटदर्द हो रहा है केजरीवाल के कारपोरेट विरोधी अभियान से। याद करे कि खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी निवेश की खिलाफत में व्यापारी वोटबैंक के खातिर भाजपाइयों ने क्या क्या हंगामा नहीं बरपाये।खुदरा कारोबार में अमेरिकी कंपनियों और अमेरिकी सरकार का सबसे बड़ा दांव है, यह समझने के लिए कोई अमर्त्य विशेषज्ञ होने की जरुरत है नहीं।अब देखिये,वीसा देने से इंकार करने वाले अमेरिका के राजदूत नैंसी कैसे दुम हिलाती हिलाती नमो से मिलकर आयी और अमेरिकी सरकार का बयान जारी किया।
मजा तो बहुजन राजनीति का असली है और उन्हें इस कारपोरेट विरोधी अभियान के ढोंग से ज्यादा तकलीफ है।बहुजनों को हिंदुत्व की पैदल सेना बना देने के अपने किये का कोई पाप बोध है नहीं और ओबीसी अछूत कहकर मोदी के वोटबटेरु वक्तव्य में उन्हें नौटंकी नजर नहीं आती।
हाल में इकोनामिक टाइम्स में पहला पेजी एक्सक्लुसिव छपा कि अंबेडकरी विरासत का बामसेफ अगले लोकसभा चुनाव में गजब ढाने वाला है।पहली बात तो यह है कि बामसेफ अंबेडकर की विरासत है नहीं,वह मान्यवर कांशीराम की संतान है।दूसरी महत्वपूर्ण बात बतौर पार्टी चुनाव आयोग में बामसेफ का पंजीकरण नहीं हुआ।जो संगठन चुनाव लड़ ही नहीं रहा है,उसको हैरतअंगेज खिलाड़ी बताने का तात्पर्य क्या है,समझने वाली बात है।कहा गया है कि उसके दस हजार होलटाइमर हैं।चुनाव युद्ध में अपनी पार्टी उतारने से पहले दो सौ होलटाइमर भी नहीं थे।राजनीतिक भविष्य के लिए अब होल टाइमर बनने का सिलसिला कुछ तेज जरुर है। अगर बामसेफ वाले अपने दस हजार होलटाइमरों की सूची सार्वजनिक कर दें तो बहुजनों को गोलबंद करने में भारी मदद मिलेगी।
बहुजन बुद्धिजीवियों को अंग्रेजी राज वरदान लगता है। ग्लोबीकरण डायवर्सिटी का स्वर्गराज्य लगता है और कारपोरेट राज समता और सामाजिक न्याय का स्वर्णकाल। उनको ऐतराज है कि कहीं आरक्षण विरोधी लोग सत्ता में न आये।1999 से आरक्षण शून्य हैं।कोई आनंद तेलतुंबड़े से बात करें तो पूरा ग्राफिक डीटेल के साथ खुलासा कर देंगे।अब बताइये कि वीपीसिंह ने जब मंडल लागू किया तो देश पर कमंडल से खून की गंगा किन लोगों ने बहा दी।कौन लोग थे आरक्षण विरोधी आंदोलन में और फिर हिंदू राष्ट्र का आखिर एजंडा क्या है। तो आप के उत्थान में फंसे नमोमय भारत के असंपूर्ण निर्माण में कारसेवा करनेवाले लोगों को पहचान लेना भी जरूरी है, जो मोदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए सांसद कैप्टेन जयनारायण निसाद के दिल्ली स्थित संसदीय निवास पर वैदिकी यज्ञ के आयोजन के साथ ओबीसी गिनती के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान में तत्कालीन राजग संयोजक के साथ बवंडक खड़ा किये हुए थे। उन मूलनिवासियों को भी पहचान लेने की जरुरत है जो मायावती के किले ढहाने के अभियान में लगे हैं।
रिलायंस कंपनी के सूत्रों ने बताया कि रिलायंस की लीगल टीम तभी अपने काम में जुट गई थी, जब दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने आदेश दिया था कि अंबानी, ऑइल मिनिस्टर वीरप्पा मोइली और आरआईएल के संस्थापक धीरूभाई अंबानी के दोस्त पूर्व ऑइल मिनिस्टर मुरली देवड़ा के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए।
उधर, गवर्नमेंट ऑफिशल्स ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट सिविल केस की सुनवाई कर ही रहा है तो क्रिमिनल केस दर्ज करना कुछ अजीब है, जबकि दोनों ही मामलों में शिकायत करने वाले लोग एक ही हैं। ऑइल और लॉ मिनिस्ट्रीज के टॉप ऑफिशल्स के अलावा कांग्रेस के सीनियर लोगों के बीच इस मुद्दे पर चर्चा हुई। एक अधिकारी ने कहा कि सरकार कोशिश करेगी कि केजरीवाल को यह मामला फिर उछालने का मौका न मिले।
सूत्रों ने बताया कि जयपाल रेड्डी के ऑइल मिनिस्टर रहने के दौरान भी निशाने पर आई आरआईएल ताजा घटनाक्रम से काफी अपसेट है। कंपनी के करीबी एक सूत्र ने कहा कि गैस की प्राइस रंगराजन कमिटी की सिफारिशों पर आधारित है।
यह कमिटी जयपाल रेड्डी ने ऑइल मिनिस्टर रहते बनाई थी, लेकिन उनका नाम एफआईआर में नहीं है। मिनिस्ट्री से बातचीत कंपनी के अधिकारी करते हैं, न कि चेयरमैन। चेयरमैन का नाम इसमें कैसे आ गया?
बुरी खबर यह भी है कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने अपनी 3 वर्ष पुरानी नैशनल मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी के जरिए 2022 तक 10 करोड़ नौकरियां पैदा करने की योजना बनाई थी, जो अब नाकाम होती दिख रही है क्योंकि सरकार इसके तहत स्पेशल इनवेस्टमेंट जोन के अपने वादे को पूरा नहीं कर पाई है और न ही रोजगार बढ़ाने के प्रोत्साहन के लिए श्रम कानूनों में छूट दी गई है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इंडस्ट्री, पार्टी के सहयोगियों और मतदाताओं के साथ हाल की मुलाकातों में मैन्युफैक्चरिंग को मजबूत करने और पुराने हो चुके श्रम कानूनों में संशोधन से रोजगार बढ़ाने पर जोर दिया है।
कैबिनेट ने 2011 में नेशनल मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी को मंजूरी दी थी। इसका लक्ष्य इकॉनमी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी को 15 फीसदी से बढ़ाकर 2022 तक 25 फीसदी करने का था। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए लचीले श्रम कानूनों और आसान बिजनेस रेग्युलेशन्स के साथ नैशनल इनवेस्टमेंट ऐंड मैन्युफैक्चरिंग जोन (एनआईएमजेड) बनाने का प्रपोजल था।
कंपनियों का औपचारिक तौर पर कर्मचारियों को बहाल न करने का एक बड़ा कारण छंटनी की मुश्किल प्रक्रिया है। पॉलिसी में इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स ऐक्ट, 1947 में बदलाव कर जॉब लॉस इंश्योरेंस फ्रेमवर्क के साथ इन जोन में एंप्लॉयीज की छंटनी आसान बनाने की बात कही गई थी। इससे वर्कर्स को पर्याप्त मुआवजे या वैकल्पिक नौकरी की गारंटी मिलती।
इंडस्ट्री के एक प्रतिनिधि ने बताया, 'इंडस्ट्री और लेबर मिनिस्ट्री केवल एनआईएमजेड के लिए कानून में संशोधन करने के प्रस्ताव पर ट्रेड यूनियंस के साथ सहमति नहीं बना पाई। इसके लिए पिछले 2 वर्ष से बात हो रही है।' उनका कहना था कि इंडिया इंक को इस मोर्चे पर जल्द कोई कामयाबी मिलन की उम्मीद नहीं है।
कांग्रेस से जुड़ी इंडियन नैशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) सहित एंप्लॉयी यूनियंस ने इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स लॉ में प्रस्तावित संशोधनों को लेकर सवाल खड़े किए हैं। इनकी दलील है कि इससे कंपनियां अपनी मर्जी से जब चाहे 'हायर या फायर' कर सकेंगी।
एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को 70 कानूनों का पालन करने के साथ ही प्रतिवर्ष 100 रिटर्न भरनी होती हैं। पॉलिसी में कहा गया है कि इस बोझ को कम करने की जरूरत है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर नजर रखने वाले एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, 'अभी पॉलिसी को लेकर पूरा फोकस एनआईएनजेड पर है, जबकि देश भर में बिजनेस रेग्युलेशन्स को आसान बनाने और महत्वपूर्ण सेक्टर्स पर जोर देने के एजेंडे को अनदेखा किया गया है। अगर हम इन जोन में श्रम कानूनों में छूट देने को लेकर सहमति नहीं बना पाते और एनआईएमजेड के अलावा पॉलिसी के अन्य महत्वपूर्ण हिस्सों पर काम नहीं करते, तो 10 करोड़ नौकरियां पैदा करना मुश्किल है।' उनका कहना था कि इनमें से कोई भी जोन 2019 से पहले शुरू होने की संभावना नहीं है।
इंडस्ट्री मिनिस्ट्री ने पिछले महीने मौजूदा इंडस्ट्रियल कलस्टर्स को एनआईएमजेड का दर्जा देने के लिए गाइडलाइंस जारी की थी, लेकिन इनसे उम्मीद के मुताबिक बड़े स्तर पर नया इनवेस्टमेंट आना मुश्किल लग रहा है।
क्या है प्रीमियम ट्रेन : प्रीमियम ट्रेनें पूरी तरह से एसी होंगी और इनके कोच भी अपेक्षाकृत नए होंगे। प्रीमियम ट्रेनों में सामान्य ट्रेनों के मुकाबले ज्यादा किराया लिया जाता है और सीटें भरने के साथ ही इसके किराये में उसी तरह से इजाफा होता है, जिस तरह से हवाई जहाज के लिए किराया बढ़ता है।
नॉन स्टाप ट्रेन : प्रीमियम ट्रेनें नॉन स्टॉप होंगी यानी यह ट्रेन चालू होने के बाद आखिरी स्टेशन पर ही रुकेगी। इस तरह से यह ट्रेन उसी रूट पर चलने वाली दूसरी ट्रेनों के मुकाबले पैसेंजरों को उनके मुकाम तक जल्द पहुंचाएगी। हालांकि, रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अरुणेन्द्र कुमार का कहना है कि रेलवे इस बात पर भी विचार कर रही है कि क्या इन ट्रेनों के रूट में कोई ऐसा स्टॉपेज दिया जाए, जहां से रेलवे को और यात्री मिल सकें।
रूट का चयन : प्रीमियम ट्रेन के रूट तय करने से पहले रेलवे बोर्ड उस रूट पर पैसेंजरों की जरूरत को आंकता है। रेलवे का कहना है कि उसने उन रूटों पर प्रीमियम ट्रेनें चलाने का ऐलान किया है, जिन पर पूरे साल वेटिंग लिस्ट रहती है। इसके अलावा, प्रीमियम ट्रेन चलाने के लिए रेलवे बोर्ड ने दूसरी शर्त यह रखी है कि उस रूट पर दूसरी सामान्य ट्रेन जरूर होनी चाहिए ताकि अगर कोई पैसेंजर प्रीमियम ट्रेन का किराया नहीं दे सकता तो उसके लिए सामान्य श्रेणी की ट्रेन उपलब्ध रहे।
प्रीमियम ट्रेन में बुकिंग : प्रीमियम ट्रेन में सीटों की बुकिंग 15 दिन पहले शुरू होती है। रेलवे बोर्ड के अफसरों का कहना है कि यह सर्विस उन पैसेंजरों के लिए है, जिन्हें सफर के डेट से ऐन पहले अपनी यात्रा के बारे में योजना बनानी पड़ती है। ऐसे पैसेंजर ज्यादा किराया देकर इस ट्रेन में सफर कर सकते हैं। इस सिस्टम के तहत, शुरुआती किराया लगभग वही होगा, जो तत्काल का होता है। इसके बाद सीटें कम होती जाएंगी और डिमांड जिस रूप में बढ़ती जाएगी, उसी आधार पर इसका किराया बढ़ता जाएगा। हालांकि, प्रीमियम ट्रेन के लिए किराये की ऊपरी सीमा भी तय कर दी गई है, यानी एक सीमा से ज्यादा किराया नहीं बढ़ेगा।
वेटिंग लिस्ट नहीं : इस ट्रेन की खासियत यह होगी कि इसमें किसी तरह की वेटिंग लिस्ट नहीं होगी ,लेकिन आरएसी जरूर होगा। इसके अलावा , ट्रेन का टिकट बुक कराने के बाद उसे रद्द कराने की अनुमतिनहीं होगी। टिकट का रिफंड तभी मिलेगा , जब ट्रेन कैंसल होगी।
दूसरे पैसेंजरों को भी फायदा : रेलवे का कहना है कि प्रीमियम ट्रेनों की वजह से सामान्य श्रेणी की ट्रेनों केपैसेंजरों को भी फायदा होगा। दरअसल , प्रीमियम ट्रेन चलाने से सामान्य श्रेणी की ट्रेन पर भी लोड कमहोगा , क्योंकि जो पैसेंजर प्रीमियम ट्रेन का किराया दे सकते हैं , वे उसी में जाएंगे। इस तरह से सामान्यश्रेणी की ट्रेन के पैसेंजरों को ज्यादा सीटें मिलने की संभावना र हेगी।
साथ ही वह दिल्ली से चंडीगढ़ और आगरा के बीच 160 से 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली 'सेमी हाई स्पीड' ट्रेनें चलाने की संभावनाएं तलाशेगा। मुंबई जाने वाली प्रीमियम ट्रेन क्रिसमस और नववर्ष के दौरान यात्रियों की अतिरिक्त भीड़ को ढोती है।
इससे मुंबई राजधानी की तुलना में लगभग 48 फीसदी अधिक आमदनी हुई। इस ट्रेन के लिए किराया डायनेमिक किराया तंत्र स्कीम के तहत लिया जाता है जो एयरलाइनों द्वारा लिए जाने वाले किराए की तर्ज पर है।
रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खडगे ने अपने अंतरिम बजट भाषण में कहा कि इस तरह की डायनेमिक किराया दर का यात्रियों और मीडिया ने काफी स्वागत किया है। इस स्कीम को बड़े पैमाने पर चलाने के बारे में विचार किया जा रहा है।
उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों के लिए 17 ऐसी प्रीमियम ट्रेनें चलाने का ऐलान किया। खडगे ने कहा कि किसी सीजन या विशेष मौके पर कुछ ट्रेनों में यात्रियों की संख्या बेतहाशा बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में यात्री अधिक किराया देने को भी तैयार रहते हैं।
अधिकांश प्रीमियम ट्रेनें साप्ताहिक या सप्ताह में दो बार चलाई जाएंगी। ये ट्रेनें हावड़ा-पुणे, हावड़ा-मुंबई, कामाख्या-चेन्नई, मुंबई-पटना, निजामुद्दीन-मडगांव, सियालदह-जोधपुर, अहमदाबाद-दिल्ली सराय रोहिल्ला, त्रिवेन्द्रम-बेंगलूर आदि रूटों पर चलेंगी।
कटरा के लिए भी कुछ प्रीमियम ट्रेनें शुरू की जाएंगी। इस पवित्र नगरी में रेल संपर्क जल्द ही शुरू होगा। मंत्री ने 39 नई एक्सप्रेस ट्रेनों, 10 सवारी गाडिय़ों, चार मेमू और तीन डेमू ट्रेनें चलाने का भी ऐलान किया।
लोकसभा के इतिहास में गुरुवार काले दिन के रूप में दर्ज हो गया। अलग तेलंगाना राज्य का बिल जैसे ही ससंद के निचले सदन में पेश हुआ सीमांध्र से जुड़े कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी के सांसदों ने जमकर उत्पात काटा। लोकसभा में अखाड़ा जैसा नजारा देखने को मिला। सांसदों के बीच जमकर लात-घूंसे चले, एक सांसद ने सदन में मिर्च पाउडर स्प्रे कर दिया तो एक पर चाकू निकालने का आरोप लगा। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि मार्शलों को बीच-बचाव के लिए सामने आना पड़ा और ऐंबुलेंस तक बुलानी पड़ी। हंगामा करने वाले वाईएसआर कांग्रेस के जगनमोहन, कांग्रेस से निकाले जा चुके लगदापति राजगोपाल और टीडीपी के वेणुगोपाल समेत 16 सांसदों को 5 दिनों के लिए सस्पेंड कर दिया गया है।
सदन में विजयवाड़ा के सांसद लगदापति राजगोपाल ने सांसदों के ऊपर काली मिर्च का पाउडर स्प्रे कर दिया, जिससे कई सांसद खांसने लगे और उनकी हालत खराब हो गई। आरोप है कि हाथापाई के दौरान टीडीपी के सांसद वेणुगोपाल ने चाकू निकाल लिया, हालांकि वह इससे इनकार कर रहे हैं। उनका आरोप है कि कांग्रेस के सांसदों ने उनकी पिटाई की है और वह इसकी शिकायत लोकसाभा की स्पीकर मीरा कुमार से करेंगी। एक सदस्य ने स्पीकर मीरा कुमार के आसन पर रखे कागजों को छीनना शुरू किया और रिपोर्टर टेबल पर लगे माइक को तोड़ दिया। हंगामे और अव्यवस्था की स्थिति में स्पीकर ने सदन की कार्यवाही दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी और सदन को खाली करा दिया गया।
सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू होते ही तेदेपा के एक सदस्य ने अध्यक्ष के आसन पर रखे कागजो को छीनना शुरू किया और रिपोर्टर टेबल पर लगे माइक को तोड़ दिया।
तेदेपा सदस्य द्वारा कागज छीने जाने और माइक तोड़े जाने के बीच कांग्रेस के एल राजगोपाल ने पहले रिपोर्टर टेबल पर रखे बक्से को तोड़ दिया और उसके बाद जेब से स्प्रे निकालकर उसे चारों तरफ फेंकना शुरू कर दिया।
हंगामा कर रहे इन दोनों तेदेपा और कांग्रेस के सदस्यों को विभिन्न दलों के सदस्यों ने आकर रोकने का प्रयास किया लेकिन वह काबू में नहीं आ रहे थे। कई सदस्यों ने एल राजगोपाल के हाथ को कसकस के झटककर स्प्रे की बोतल छीनने का प्रयास किया और काफी देर बाद वह उनसे स्प्रे ले पाए।
स्प्रे छिड़कने से सदन में और दर्शक एवं पत्रकार दीर्घाओं में बैठे लोगों को खांसी आनी शुरू हो गई जिसके कारण एम्बुलेंस बुलानी पड़ी।
स्प्रे छिड़के जाने के बाद कई सदस्यों असहज महसूस करने लगे और सदन में तुरंत संसद के डाक्टर को बुलाया गया। स्प्रे से अधिक प्रभावित होने वाले कुछ सांसदों को एम्बुलेंस द्वारा राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया।
सत्ताधारी कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने मांग की है कि सदन के भीतर उत्पात मचाने वाले सांसदों की सदस्यता रद्द की जाए और इन्हें आपराधिक मामले के तहत गिरफ्तार किया जाए। संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि सरकार इन सांसदों की गिरफ्तारी और सदस्यता रद्द करने का प्रस्ताव लेकर आएगी, इस पर फैसला स्पीकर को करना है। सीसीटीवी फुटेज से उपद्रव मचाने वाले सांसदों की पहचान की जा रही है। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि बिल पेश हो गया है और संसद को शर्मसार करने वाले सांसदों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। मीरा कुमार ने कहा कि संसद में आज जो कुछ भी हुआ वह शर्मसार करने वाला है।
तेलंगाना बिल को लोकसभा पेश में किए जाने के मद्देनजर पहले से ही सदन के भीतर बवाल की आशंका थी। तेलंगाना समर्थन और विरोधी संसद के बाहर सुबह से जमा होने लगे थे। सदस्यों के भारी शोर-शराबे के कारण लोकसभा की कार्यवाही आज 11 बजे शुरू होने के कुछ ही देर बाद दोपहर 12 बजे तक स्थगित कर दी गई। सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सीमांध्र क्षेत्र के कांग्रेस, टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस के सदस्य एकीकृत आंध्र प्रदेश की मांग करते हुए अध्यक्ष के आसन के समीप आ गए। उनके हाथों में तख्तियां थीं, जिन पर लिखा था, 'आंध्र प्रदेश को एक रखें' और 'हम एकीकृत आंध्रा चाहते हैं।' स्पीकर ने सदस्यों से शांत रहने और प्रश्नकाल चलने देने की अपील की और एक प्रश्न को भी लिया, लेकिन सदस्यों का हंगामा जारी रहा। शोर-शराबा थमता नहीं देख अध्यक्ष ने कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।
दोपहर 12 बजे स्पीकर ने जैसे ही तेलंगाना बिल पेश करने के लिए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे का नाम लिया। सीमांध्र से जुड़े सांसदों ने हंगामा करना शुरू कर दिया और शिंदे के हाथ से बिल फाड़ने की कोशिश की। भारी अफरातफरी में वेणुगोपाल द्वारा कागज छीने जाने और माइक तोड़े जाने के बीच कांग्रेस के राजगोपाल ने पहले रिपोर्टर टेबल पर रखे बक्से को तोड़ दिया और उसके बाद जेब से स्प्रे निकालकर उसे चारों तरफ छिड़कना शुरू कर दिया, जिससे सदन और उसकी दीर्घाओं में लोग खांसने लगे। हंगामा कर रहे सदस्यों को विभिन्न दलों के सदस्यों ने आकर रोकने का प्रयास किया, लेकिन वे काबू में नहीं आ रहे थे। कई सदस्यों ने राजगोपाल के हाथ को झटककर स्प्रे की बोतल छीनने का प्रयास किया और काफी देर बाद वह उनसे स्प्रे ले पाए।
स्प्रे छिड़कने से सदन में और दर्शक एवं पत्रकार दीर्घाओं में बैठे लोगों को खांसी आनी शुरू हो गई, जिसके कारण ऐंबुलेंस बुलानी पड़ी। स्प्रे से अधिक प्रभावित होने वाले कुछ सांसदों को ऐंबुलेंस द्वारा राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया। चाकू निकालने के आरोप का सामना कर रहे वेणुगोपाल ने कहा कि उन्होंने चाकू नहीं निकाला था, बल्कि सिर्फ माइक तोड़ी है। वेणुगोपाल ने कहा कि मैंने सेक्रेटरी जनरल के सामने वाली माइक तोड़ी थी, जिसे चाकू बताया जा रहा है।
गौरतलब है कि इस अभूतपूर्व ड्रामे के बीच कांग्रेस ने अमेरिकी राजदूत नैंसी पावेल के साथ प्रधानमंत्री पद के भाजपा के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की मुलाकात को ज्यादा तरजीह नहीं दी और कहा कि अगर मोदी को अमेरिकी वीजा मिल गया तो उसे कोई दिक्कत नहीं होगी।
विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने सवाल किया, ''अगर उन्हें (मोदी को) वीजा नहीं मिला तो क्या हम जश्न मनाएं? अगर उन्हें वीजा मिल जाता है तो क्या हम अवसाद से ग्रस्त होने जा रहे हैं?''
नैंसी ने गांधीनगर में मोदी से मुलाकात की जिससे भाजपा नेता का अमेरिकी बहिष्कार समाप्त हो गया।
खुर्शीद ने कहा, ''जहां तक उनके :अमेरिका के: राजदूत या किसी अन्य राजनयिक का संबंध है, जैसा हम उनके देश में करते हैं, वे इस देश में गमन करने और सूचना जमा करने के लिए आजाद हैं जिससे उन्हें भारत को, भारतीय राजनीति की गत्यामकता को ज्यादा अच्छे से समझने में मदद मिले ।''
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि यह अमेरिका पर है कि वह मोदी पर अपना रूख बदले या नहीं बदलें
अमेरिका ने इसपर जोर दिया है कि वीजा के मामले में मोदी पर उसकी नीति नहीं बदली है।
तेलंगाना विरोध के भारी हंगामे के बीच लोकसभा में बुधवार को पेश किए गए अंतरिम रेल बजट में यात्री किराए और माल भाड़े की दरों में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया है। लेकिन 17 प्रीमियम गाड़ियों सहित 72 नई रेलगाड़ियां चलाने की घोषणा की गई। लोकसभा चुनाव में कुछ महीने ही शेष रह जाने के कारण इस बार सरकार ने पूर्ण बजट पेश नहीं किया है।
अलबत्ता चार महीने के लिए 2014-15 का अंतरिम रेल बजट पेश किया गया है। रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे पेश करते हुए कहा कि किराए को तर्कसंगत बनाने के लिए एक रेल भाड़ा प्राधिकरण का गठन किया गया है और एअरलाइन क्षेत्र की तर्ज पर टिकटों की गतिशील कीमतों के विस्तार संबंधी एक प्रस्ताव है। शेष साल का रेल बजट लोकसभा चुनाव के बाद नई सरकार लाएगी।
आने वाले साल में उन्होंने 17 नई प्रीमियम ट्रेनों, 39 एक्सप्रेस ट्रेनों और दस यात्री गाड़ियों को शुरू करने व जम्मू कश्मीर में कटरा से वैष्णोदेवी तक और पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश और मेघालय तक रेल संपर्क मुहैया कराने का भी एलान किया। आंध्र प्रदेश के सांसदों व चार केंद्रीय मंत्रियों के तेलंगाना के मुद्दे पर किए गए हंगामे और नारेबाजी और अशोभनीय व्यवहार के कारण रेल मंत्री अपना बजट भाषण पूरा नहीं कर पाए और उन्हें शेष भाषण बिना पढ़े ही सदन के पटल पर रखना पड़ा।
अंतरिम बजट में देश के सबसे विशाल परिवहन तंत्र के आधुनिकीकरण के प्रयासों के तहत निजी सेक्टर की भागीदारी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी योजनाओं पर विशेष जोर दिया गया है। रेल मंत्री ने और अधिक संख्या में तेज रफ्तार ट्रेनों की भी घोषणा की और कहा कि मंत्रालय कम लागत वाली 160 से 200 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार वाली कुछ सेमी तेज रफ्तार ट्रेनें चुनिंदा मार्गों पर चलाने की संभावनाएं भी तलाश रहा है। बजट भाषण में यात्री किराए और मालभाड़े में किसी तरह के बदलाव की कोई बात नहीं की गई। खड़गे ने बाद में कहा कि इस मद में किसी तरह की वृद्धि का प्रस्ताव नहीं था।
वार्षिक रेल योजना 64,305 करोड़ रुपए की है जिसमें 30,223 करोड़ रुपए का बजटीय समर्थन है। अग्रिम अल्पावधि आरक्षण के साथ दिल्ली-मुंबई सेक्टर पर चालू की गई प्रीमियम एसी स्पेशल कोच का जिक्र करते हुए खड़गे ने कहा कि राजधानी सेवाओं के तत्काल किराए में ऊपर से अलग-अलग प्रीमियम शामिल हैं। उन्होंने कहा कि रेल सेक्टर में घरेलू निवेशकों से निजी निवेश को आकर्षित करने के अलावा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी एक प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है ताकि विश्व स्तरीय रेल ढांचा बनाया जा सके।
खड़गे ने बताया कि अभी निजी भागीदारी (पीपीपी) से जिन परियोजनाओं पर रेलवे में काम चल रहा है उनमें रोलिंग स्टॉक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट, रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण, मल्टी फंक्शनल काम्प्लेक्स, लोजिस्टिक पार्क, प्राइवेट फ्रेट टर्मिनल, मालवाहक ट्रेनों का संचालन, उदारीकृत वैगन निवेश योजना और डेडिकेटिड फ्रेट कोरिडोर शामिल हैं। रेल मंत्री ने बताया कि मुंबई-अमदाबाद तेज रफ्तार कोरिडोर का पिछले साल दिसंबर में शुरू किया गया संयुक्त व्यवहार्यता अध्ययन 18 महीने में पूरा हो जाएगा। इसका वित्त पोषण रेलवे और जापान इंटरनेशनल कोरपोरेशन एजंसी करेगी।
उन्होंने बताया कि इसी कोरिडोर के लिए फ्रांसीसी रेलवे का शुरू किया गया कारोबार विकास अध्ययन इस साल अप्रैल में पूरा हो जाएगा। किराए और मालभाड़े की दरों को तय करने के लिए सरकार को सलाह देने के मकसद से रेल किराया प्राधिकरण का गठन किए जाने की जानकारी देते हुए खड़गे ने कहा कि किराया दरें अब पर्दे के पीछे की प्रक्रिया नहीं रहेगी। जहां रेलवे और अन्य इस्तेमालकर्ता गुपचुप तरीके से ही झांक सकते थे कि दूसरी ओर क्या हो रहा है।
उन्होंने कहा कि प्राधिकरण न केवल रेलवे की जरूरतों पर विचार करेगा बल्कि नए कीमत निर्धारण की पारदर्शी प्रक्रिया में सभी स्टेक होल्डर को भी शामिल करेगा। रेल बजट प्रस्तावों में पूर्वोत्तर को रेल संपर्क से जोड़े जाने की भी बात की गई है। इसमें चालू वित्त वर्ष में अरुणाचल प्रदेश को भी रेल मानचित्र पर लाया जाएगा और जल्द ही हरमती-नहारलागुन नई रेल लाइन शुरू की जाएगी। जो इसकी राजधानी इटानगर के करीब है। अगले महीने पूरी होने जा रही दुधनोई-मेहंदीपथार रेल लाइन के साथ ही मेघालय भी देश के रेल नक्शे में शामिल हो जाएगा।
It was a game changer for the Aam Aadmi Party (AAP) in Uttarakhand on Friday, when activists of the Chipko Andolan and the Uttarakhand Andolan and many prominent people joined hands with it.
AAP spokesperson Anand Kumar said: "We have been able to win the confidence of mass leaders and social activists. With all these prominent people on our side, a new chapter begins for the AAP, which will be a game changer [in the Lok Sabha elections in the State]."
At a press conference here earlier this year, the party's executive members announced that the AAP would contest all five Lok Sabha seats in the State.
Professor Kumar said the mass leaders would be requested to contest the polls from their respective regions. Within two weeks, the party would declare the names of the candidates.
Shamsher Singh Bisht, an active member of the Chipko Andolan and the Uttarakhand Andolan, said: "The AAP has come to the State as an element of alternative politics. We are people who have been a part of public movements like the Chipko Andolan. We believe that the AAP will grow like a public movement, and so it has our support."
At present, many projects were being built without the consent of gram sabhas, in violation of their powers to protect the rights of the people to forestland.
Rajiv Lochan Sah, a member of the Chipko Andolan and the Uttarakhand Andolan, said: "We have been fighting to make the government realise that it must respect the powers of gram sabhas and local bodies under the 73rd and 74th Amendments. Through the AAP, we will be able to bring this issue into the limelight."
Sudha Raje
अर्ररररे वाह!!!!
नयी कार!!!!!
नयी चेन!!!
हीरे की अंगूठी!!
नयी घङी!!!
नया लैपटॉप!!!
टाई कोट सूट!!!
अबे लॉटरी लग गयी क्या??
नहीं यार,,,,,, शादी हो गयी
तभी मैं कहूँ ये कौये को हंस के पंख कहाँ से मिले तेरी तो जिंदग़ी निकल जाती रगङते और बाप की औक़ात ही क्या थी!!!!!
©®सुधा राजे
Sudha Raje
स्वीट हार्ट आई लव यू डार्लिंग ""
सुनकर बङी चहक लहक के साथ इतराने लगी नई मेम साब।
और चट से बोल बङी ""मी टू लव यू हनी!! "
परंतु वहीं पोंछा लगाती फूलमती की समझ में नहीं आया ये सब क्या है ।
इतना तो वह भी जानती है पढ़े लिखे घरों में बीस बरस से काम जो करती है कि क्या है इन ज़ुमलों का मतलब लेकिन मतलब तो नहीं समझ में आया मतलब के पीछे के मतलब का ।
अभी कुछ ही महीनों पहले की ही तो बात है ।
!!!!!!
छोटे साब के लिये रोज रिश्ते आते और बङी मेम बङे साब तसवीरें छोटे साब को दिखाते ।
जब दरजन भर तसवीरों में से कोई तसवीर पसंद आती तो लङकी वालों के घर सूचना भेज दी जाती । लङकी के पिता भाई चाचा मामा आते और लंबी बातचीत के बाद दहेज पर मामला अटकने पर हताश होकर शर्मिन्दा लौट जाते ।
फिर नयी तसवीरे नये विवरण नयी मुलाकातें चलने लगतीं ।
कभी कभी बात लङकी देखने तक जा पहुँचती ।
किसी होटल मंदिर पार्क या घर में छोटे साब कभी छोटी बहिन कभी दोस्तों के साथ लङकी देखने पहुँच जाते लङकी वालों का जमकर खर्चा करवाते फिर घर आकर एक फोन कर देतीं बङी मेम साब कि लङकी पसंद नहीं आई ।
बस
इसी तरह सैकङा भर लङकियाँ गयीं दो तीन साल में ठुकराई।
पिछले साल बात सगाई तक जा पहुँची और तमाम तोहफे ले देकर अँगूठियाँ भी पहन लीं लङके वाले तो हमेशा ही लेते हैं सो हजारों के तोहफों से बिन मौसम दीवाली कर ली।
फिर कुछ दिन घूमे फिरे बतियाये और एक शाम लङकी को कार के मॉडल पर मना कर आये।
ये शादी भी लाखों की नहीं करोङों की बैठी है ।
तभी तो नई मेम साब अभी तक नखरों में ऐंठी ।
माना कि हनीमून भी हो लिया और मन गयी सुहागरात ।
लेकिन पचास लाख बीस तौला और
बीएम डब्ल्यू से शादी करने वाला लङका कैसे कह सकता है किसी लङकी से प्रेम होने की बात!!!!!!!
और कैसे कोई लङकी मान सकती है उस दैहिक उपभोग के रिश्ते को प्यार जब यही वाक्य किसी लङके ने पहले भी किसी लङकी से दुहराया हो बार बार!!!!!
कैसे कह सकती है खरीदे हुये बिस्तर के स्थायी सेवक गुलाम को कोई लङकी कि है प्रेम जबकि ये सारा रिश्ता तो है नीलामी की ऊँची बोली का ।
पैसा सोना मशीनों के लिये मोल तोल करके लङकी का दैहिक सहभागी बनने को तैयार होने वाला लङका तो स्थायी लुटेरा है परंपराओं की ठिठोली का।
सोचती है फूलमती छोटी मेम के शौहर से तो कई गुना ज्यादा प्यार करता है डोंगरदास उसको सोलह की थी तभी भगा लाया और हर सुख दुख में निभाया ।
कभी कभी कच्ची पीके खूब रोता है कहता है फूलो तुझे रानी बनाके रखता जो में सेठ होता ।
सोचती है फूलमती जा रूपयों की हुंडी से ज्यादा म्हारे डिग्गे को मुझसे मुहब्बत हती।
©®सुधा राजे
Sudha Raje
हाथापाई तोङफोङ मिर्च फेंकना शीशे तोङना चीखना अभद्र बोलना और बोलने न देना!!!!!
जी नहीं ये कहीं मछली बाजार की लूटपाट नहीं ।
महान संसद की काररवाही है ।
और
यही संसदीय आचरण!!!!
तेलंगाना बिल पर हंगामा और ।
नौनिहालों के कुतूहल
ये
नेता है?? इन्हीं की जयजय कार होती है चुनाव प्रचार में?
Unlike · · Share · 38 minutes ago ·
Sudha Raje
और आयेशामीर जैसी हस्तियाँ बयान देतीं हैं कि लङकियाँ अपने कपङों की वजह से पीङित होती हैं ।
और ये है राजधानी दिल्ली??????? जहाँ घर तक में अकेली लङकी सुरक्षित नहीं ।
और अपराध हो घटे तो पुलिस बजाय पीङिता की मदद के उलटे पीङित और परिवार को धमकाकर मामला दबाने की पूरी कोशिश करती है ।
धुक्कार ऐसी कुव्यवस्था को जहाँ नाबालिग बच्ची के रेप को छेङछाङ में दर्ज किया जाता है और पीङित लङकी को परिवार से दूर रखकर डरावने हालात पैदा कर दिये जाते है जिससे कोई फिर साहस ही ना कर सके शिकायत करने का!!!!!!
दिल्ली हाय हाय
दिल्ली पुलिस की वर्दी एक बार फिर दागदार हुई है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में एक 14 साल की लड़की से बलात्कार हुआ, दुष्कर्म करने वाला ना सिर्फ पहचाना गया, उसे इस घ...See More
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Mohan Shrotriya
जो ऐसे थे, वो वैसे हो गए !
जो वैसे थे, वो ऐसे हो गए !
कैसे-कैसे, कैसे-कैसे हो गए !
जिन्हें कहीं नहीं पहुंचना था, वे कहां से कहां पहुंच गए !
जो कहीं भी पहुंच सकते थे, वे चप्पलें चटकाते रह गए !
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Counter Currents
Condemn cultural fascist threat by BJP to block the screening of "Ocean of Tears" on violence against women in Kashmir by Bilal A Jan at VIBGYOR film festival, Thrissur tomorrow 5 30 PM at regional theatre. Uphold freedom of expression
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Ak Pankaj shared आदिवासी साहित्य - Adivasi Literature's photo.
सुशीला धुर्वे की महत्वपूर्ण पुस्तक
जय गोंडवाना
जय गोंडवाना
गोंड समुदाय के धर्म, भाषा और इतिहास पर
सुशीला धुर्वे की महत्वपूर्ण पुस्तक.
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Satya Narayan
जो राजनीतिक-सांस्कृतिक रूप से जागरूक व्यवस्था-विरोधी नागरिक हैं, उन्हें सोशल मीडिया के आभासी संसार को अपनी समस्त व्यक्तिगत आत्मिक-सांस्कृतिक गतिविधियों का मंच बनाने के बजाय केवल गम्भीर सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक विचार-विमर्श, पूँजी तंत्र द्वारा पार्श्व भूमि में धकेल दी गयी निर्मम-विद्रूप यथार्थ के उदघाटन , विश्व पूँजीवादी सांस्कृतिक-वैचारिक मशीनरी द्वारा इतिहास के विकृतिकरण के भण्डाफोड़ तथा जीवन के सभी क्षेत्रों की पूँजीवादी वैचारिकी की समालोचना के लिए ही इस माध्यम का इस्तेमाल करना चाहिए। जनता के जनवादी अधिकारों के मसले पर एकजुटता के लिए पारस्परिक संवाद के लिए इस मंच का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया के सभी अंगों-उपांगों का विज्ञान, तर्कणा और सही इतिहास बोध देने तथा जनता की कला-साहित्य-संस्कृति के प्रचार के लिए इस्तेमाल किया जाना चाहिए।
सोशल मीडिया के बहाने जनता, विचारधारा और तकनोलॉजी के बारे में कुछ बातें
Faisal Anurag
चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
FAIZ KO YAAD KARTE HUYE ......
चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
और कुछ देर सितम सह लें, तड़प लें, रो लें
अपने अजदाद की मीरास है माज़ूर हैं हम
जिस्म पर क़ैद है जज़्बात पे ज़ंजीरें है
फ़िक्र महबूस है गुफ़्तार पे ताज़ीरें हैं
अपनी हिम्मत है कि हम फिर भी जिए जाते हैं
ज़िंदगी क्या किसी मुफ़लिस की क़बा है जिसमें
हर घड़ी दर्द के पैबंद लगे जाते हैं
लेकिन अब ज़ुल्म की मीयाद के दिन थोड़े हैं
इक ज़रा सब्र कि फ़रियाद के दिन थोड़े हैं
अर्सा-ए-दहर की झुलसी हुई वीरानी में
हमको रहना है पर यूँ ही तो नहीं रहना है
अजनबी हाथों के बेनाम गराँबार सितम
आज सहना है हमेशा तो नहीं सहना है
ये तेरे हुस्न से लिपटी हुई आलाम की गर्द
अपनी दो रोज़ा जवानी की शिकस्तों का शुमार
चाँदनी रातों का बेकार दहकता हुआ दर्द
दिल की बेसूद तड़प जिस्म की मायूस पुकार
चंद रोज़ और मेरी जान फ़क़त चंद ही रोज़
ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था
गो सबको बहम साग़र-ओ-वादा तो नहीं था
ये शहर उदास इतना ज़ियादा तो नहीं था
गलियों में फिरा करते थे दो-चार दिवाने
हर शख़्स का सद चाक लबादा तो नहीं था
वाइज़ से रह-ओ-रस्म रही रिंद से सोहबत
फ़र्क़ इनमें कोई इतना ज़ियादा तो नहीं था
थक कर यूँ ही पल भर के लिए आँख लगी थी
सो कर ही न उट्ठें ये इरादा तो नहीं था
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Kamal Shukla
न्यायिक जांच होने पर कांकेर कलेक्टर , एसडीएम व जिला शिक्षा अधिकारी भी आश्रम की बच्ची के साथ हुये बलात्कार के मामले में साक्ष्य छिपाने के बनेंगे आरोपी
जिला प्रशासन ने दबाया था मामला , फिर भी विधान सभा में उठ गया मामला
जिले की महिला कलेक्टर श्रीमति अलरमेल मंगई डी के इशारे व कांकेर की महिला एसडीएम रेणुका श्रीवास्तव के निर्देश पर सुरेली में बलात्कार पीड़ित बच्ची को बिना चिकित्सक की सलाह लिए विक्षिप्त घोषित कर दी गयी , उसके साथ हुए दुष्कृत्य के लिए भी मेडिकल और रिपोर्ट दर्ज कराने की जरुरत इन निर्मम अधिकारीयों ने महसूस नही की बल्कि उल्टे पीड़िता को ही सजा देते हुये ६ फरवरी को उसे टीसी दे दी गयी थी । यह सब केवल इस लिए कि विधान सभा चालु है , कहीं यह मामला उठ ना जाये , पर धन्यवाद फेसबुक का कि शुरू से इस मामले में अख़बार वालों के दबाउ रवैये के बाद भी मामला तो विधान सभा में उठ ही गया । आदरणीय सत्य नारायण शर्मा के माध्यम से इस मामले को विधान सभा पहुँचाने के लिए मै सुरेश शुक्ला जी का व्यक्त करता हूँ ।
झलियामारी कांड के बाद शासन द्वारा महिला अधीक्षिका रखे जाने के निर्देश के बाद भी सुरेली के कन्या आश्रम का अधीक्षक पुरुष था । आश्रम की बच्ची के साथ चाकू की नोक पर बलात्कार हुआ पर अधीक्षक को पता ही नहीं चला , बच्ची ने अपने साथ हुए जानकारी स्कूल के एक शिक्षिका को दी । हमारे पास इस बात का साक्ष्य है कि इसी स्कूल की इस शिक्षिका ने बकायदा लिखित में इस बात की शिकायत विभाग के उच्चाधिकारियों के साथ ही उच्च प्रशासनिक अधिकारीयों को भी दी थी । इसके बाद इस मामले को शिक्षा अधिकारी बृजेश बाजपेयी व लक्षमण कावड़े और कलेक्टर कांकेर द्वारा दबाने की कोशिश शुरू हो गयी । पहले तो मामले की शिकायत करने बच्ची और इस मामले में उसका साथ दे रही स्कूल के शिक्षिका को डराया गया , लड़की के बाप को भी बदनामी का सबक पढ़ाया गया , लड़की के भाई के माध्यम से लड़की की पिटाई भी करायी गयी । सुरेली गांव में भी इस मामले को लेकर पंचायत बुलायी गयी जिसमे शिक्षकों को बुलाकर पूछा गया कि स्कूल में रोज बड़े अधिकारी क्यों आ रहे है ? तो आश्रम अधीक्षक ने झूठ बोल दिया कि कुछ भी नहीं हुआ है ।
कलक्टर के निर्देश पर ही रेणुका श्री वास्तव इस स्कूल में इस मामले की जांच के नाम पर पहुंची थी , उन्होंने बाकायदा पीड़ित का बयान भी लिया , पीड़िता ने उन्हें हुए अत्याचार की शिकायत भी की , पर महिला होने के बाद भी एसडीएम द्वारा बलात्कार के इस मामले को दबाने और छुपाने की कोशिश बाकायदा जिला प्रशासन के इशारे पर की गयी । उन्होंने मामले की शिकायत करने वाली शिक्षिका को धमकाया भी और उलटे बच्ची को बिना किसी डाक्टर कि सलाह के विक्षिप्त घोषित कर दिया । हमारे पास इसी स्कूल के एक शिक्षक का रिकार्डेड बयान है कि उक्त बालिका अपनी कक्षा कि सबसे होशियार लड़की थी , और इस घटना के घटित होने के बाद भी उसने गणतंत्र दिवस के सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लिया और " भाषण " देने के लिए उसे पुरूस्कार भी मिला ।
निर्मम और संवेदनहीन हो चुकी जिला प्रशासन ने विधानसभा से छुपाने की नियत से इस मामले को दबाने व साक्ष्य छुपाने के लिए शुरू से ही गैवाजिब व अपराधिक तरीका इस्तेमाल किया । २५ जनवरी को घटित इस घटना की जानकारी होने के बाद भी बीईओ लक्षमण कावड़े , जिलाशिक्षा अधिकारी ब्रजेश बाजपेयी , एसडीएम कांकेर रेणुका श्रीवास्तव व लीजे की कलेक्टर अलरमेल मंगाई डी ने इस अपराध की जानकारी होनी के बाद भी मामले की रिपोर्ट थाने में नहीं की , अतः वे सभी साक्ष्य छिपाने का दोषी है तथा इस मामले में सह आरोपी होंगे । इस मामले को जब मेरे द्वारा ब्लॉग में व फेसबुक में लगा दिया गया और विधान सभा तक पहुंचाने की कोशिश की गयी , तब स्वयं पुलिस ने अपनी ओर से पहल करते हुए पीड़िता के पिता के माध्यम से रिपोर्ट तो दर्ज कर ली पर इस मामले में साक्ष्य छिपाने के बड़े आरोपियों को लेकर कोई कार्यवाही नहीं की ।
मेडिकल जाँच में बच्ची के साथ दुष्कर्म साबित हो चुका है , झलियामारी कांड में इसी कलेक्टर के निर्देश पर जानकारी होने के बाद भी प्रतिवेदन देने में हुए के विलम्ब के आधार पर ही दो अधिकारीयों पर साक्ष्य छुपाने का आरोप लगाकर सह आरोपी बनाया गया था , जबकि इस मामले में वे स्वयं भी इसी आधार पर अपराधी बनती है । मैंने जब मामला अपने ब्लॉग और फेसबुक में अपडेट कर दिया पत्रिका को छोड़कर बाकी अख़बारों ने पहले तो प्रशासन के सुर में सुर मिलाते हुए बच्ची को ही विक्षिप्त करार दिया , बाद में जब फेसबुक और ब्लॉग में रिपोर्ट प्रकाशित हो गया और पुलिस ने मामला बना ही दिया तो अब यही पत्रकार बड़े लोगों को बचने के लिए इस मामले में घटना उजागर करने वाली शिक्षिका और केवल आश्रम के अधीक्षक को बाली का बकरा बनाने में लग गए हैं । अब देखना यही है कि प्रदेश सरकार के मुखिया रमन सिंह के दिल में एक आदिवासी बच्ची के साथ हुए इस अत्याचार और उसे दबाने की सरकारी कोशिश से ठेस पहुंची है कि नहीं । अगर यह सब उनके इशारे पर नहीं हुआ है और इन संवेदनहीन अधिकारियों से उनका कोई ख़ास सम्बन्ध नहीं है तो सार्थक और उचित कार्यवाही की घोषणा करने में उन्हें या सरकार को कोई शर्म महसूस नहीं होनी चाहिए ।
आदिवासी समाज केहित का ठेकेदार बने समाज के नेता भी इस मामले में एक्सपोज हुए हैं । जब झलियमारी कि घटना हुई तो यही लोग पुरे मामले को दबाने में लगे हुए थे , केवल इस लिए कि उस मामले के आरोपी आदिवासी ही थे । इस बार ये ठेकेदार केवल इसलिए सामने नहीं आ रहे कि इस मामले को दबाने में भिड़ा एक अधिकारी खुद भी समाज का नेता है ।समाज के नेताओं के सक्रीय ना होने व उलटा इस मामले को दबाने की कोशिशों के बाद भी मैं आदिवासी के समाज के उन युवाओं का आभार व्यक्त करूंगा जिहोने मुझ तक यह बात पहुंचाई , उनकी ही कोशिशों से यह मामला न्याय के रस्ते की ओर बढ़ चला है । कांकेर के विधायक शंकर ध्रुवा भी इस गाँव से होकर आ गए हैं , उन्होंने पीड़िता और उसके परिवार से भी भेंट की है उन्हें सच्चाई की जानकारी हो गयी है अतः वे भी इस मुद्दे में प्रश्न में भाग लेंगे । ज्ञात हुआ है कि इस मुद्दे को कांगेस विधायक दल के नेता और नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव के साथ मिलकर कल कांगेस के कई विधायक विधानसभा में जोर-शोर से उठाने वाले हैं । इस मामले में न्याय दिलाने के लिए लगे सभी का आभार
http://ghotul.blogspot.in/2014/02/blog-post_13.html
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Girish Pankaj, Vikram Singh Chauhan, Kamal Shukla and 23 others like this.
Bhaskar Halami Kamalji...thanks for providing authentic information every time...and thanks for your love and concern for deprived class.
4 hours ago · Like · 1
Kamal Shukla अगर प्रशासनिक अधिकारी बन कर ऐसी ही अमानवीय कृत्य में साथ देना या करना इस राजनीतिक व्यवस्था के तहत मजबूरी है तो फिर मै अपनी बच्ची से अब कलेक्टर बनने की अपेक्षा नहीं करूंगा ।
3 hours ago · Like · 10
Pran Chadha देर से मिला न्याय न्याय नहीं रहेगा ,,मुख्यमंत्री जी को संज्ञान ले कर तुरत आरोपियों के दण्डित करना चाहिए ..
3 hours ago · Like · 4
Javed Khan कमल जी आपसे सीखनी चाहिए पत्रकारिता क्या होती है …… बाकि भाइयो को तो फुर्सत ही नहीं इन अधिकारियो कि चाटुकारिता से ये लोग पत्रकारिता नहीं चाटुकारिता अच्छे से कर सकते है … आपके इस कार्य के लिए बधाई .....
2 hours ago · Like · 3
Javed Khan पर ये सच है कि इस घटना में इतने बड़े अधिकारियो पर कोई कार्यवाही होगी ये ये शंका का विषय है …… मैंने पहले भी ये कहा है - अंधेर नगरी चौपट राजा … टेक सेर भाजी टेक सेर खाजा
आपकी कोशिश कामयाब हो … शुभकामनाये
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2 hours ago · Like · 2
Mukesh Netam bahut hi sharmanak kand hai ye isse dabane wale bhi apradhi hai
about an hour ago · Like · 1
Rakesh Shukla आपकी इसी अदा पर तो सब फिदा हैं भैय्या................
about an hour ago · Like · 2
Kirtesh Kumar Trivedi KAMAL BHAI, HATS OFF TO YOU. SATH HI BHAI IN SAB OFFICIALS KE PHOTO BHI AGAR AAP LAGA SAKEN TO HUM LOG AAPKI IS MEHNAT MAI SHAMIL HO KAR KAM SE KAN BHARAT OR VIDESH KE JITNE BHI LOGON KO HUM IS BAAT KA ANDESHA DE SAKE WOH BEHTAR HOGA.
about an hour ago · Edited · Like · 1
Anurag Upadhyay ok .......sir .....
about an hour ago · Like · 1
Dinesh Dadsena जिला कलेक्टर और एस.डी.एम. दोनों के महिला रहते बच्ची के साथ हुए अन्याय की अनदेखी करना इनके लिए डूब मरने की बात है। जुकरबर्ग जिंदाबाद
about an hour ago · Like · 2
Gautam Lunkad Shukla ji aap jaise log hi patrakarita ko jinda rakhe hue hain.anytha kuch log to lekhni aur emaan bech kar patrakar bane hue hain.Bahut bahut badhai aapko ek beti ko nyay dilane ke liye.
about an hour ago · Like · 1
53 minutes ago · Like · 3
52 minutes ago · Like · 2
Dinesh Dadsena झलियामारी घटना मे मीडिया ने कलेक्टर के तारीफ मे कसीदे गढ दिए थे। मीडिया का तो समझ आता है कि विज्ञापन का वजन ज्यादा हो गया है लेकिन अब क्या हो गया कलेकटर को।
Kamlesh Sharma कहते है कि एक महिला ही महिला का दुःख जान सकती है लेकिन लगता है कि उच्च पदों पर बैठी महिला अधिकारी गण इससे परे है..
Rinku Shukla Thanks bhaiya aap ne achha kiya
Economic and Political Weekly
A preliminary study in the Tarai region of Uttarakhand has revealed a depleting water flow in the artesian wells used for agricultural purposes, due to over exploitation of the aquifers. This coupled with deforestation, global warming and unpredictable weather patterns could damage an otherwise sustainable and eco-sensitive agricultural practice.
http://www.epw.in/web-exclusives/will-flow-end.html
Like · · Share · 214 · 8 hours ago ·
Anuradha Mandal
कुछ लोगों को लगता है कि उनकी जीवन नैया धीमे चल रही है, वैतरिणी जाने कब पार कर पाएंगे. इसी ऊब में वे कुछ लोग इकट्ठे होकर अपनी सारी कुंठा, गुस्सा और बेसब्री झांझ, मजीरे और ढोलक और अपने गलों पर निकालते हैं. गाना आता हो या नहीं, सबसे तेज, बेसुरी आवाज में सबसे ऊंचे सुर में गाकर आनंदित, संतुष्ट होते है. फिर गाना बुड्ढा मिल गया, परदेसिया ये सच है पिया की पैरोडी हो या बड़ा मजा आए लड़ैया में, कोई फर्क नहीं पड़ता. अनिच्छुक, असुविधा में समय काट रहे आस -पड़ोस की कौन सोचता है.
Unlike · · Share · 3 hours ago ·
You, Ashok Kumar Pandey, Kailash Wankhede, DrKavita Vachaknavee and11 others like this.
Rajeev Thepra अनु अनु अनु अनु जी.....मेरा वैसा कोई ईरादा नहीं,मैं तो बस अपनी याद दिला रहा था......बिन बुलाये खुद की इम्पोर्टेंस बना रहा था....सच्ची....इससे ज्यादा कुछ नहीं.....बाकी कान पकड़ता हूँ जो आपसे ईर्ष्या की मैंने.....
2 hours ago · Like · 1
Swatantra Radhakrishnan I enjoy these translations by Bing !!!
2 hours ago · Like · 2
Anuradha Mandal शुक्र है झांझ मंजीरे चलना बंद हुए. 11 से 5! इतनी देर में तो एक डोज़ पेनकिलर खप जाती है.
about an hour ago · Like · 1
Swatantra Radhakrishnan I hope you are able to read these translations !!!!!!
Steinar Strandheim shared FEMEN International's photo.
Great Brave Women
NO=NO!
Like · · Share · 4 hours ago ·
Kamayani Bali Mahabal
Tata Tea under scanner for poor living condition and coercion of workers in Assam | Kractivism
Tata Tea under scanner for poor living condition and coercion of workers in Assam | Kractivism
Like · · Share · 2 hours ago ·
Sundeep Nayyar shared a link.
Real Story of the Ishrat Fake Encounter: Javed Sheikh @ Pranesh Pillai worked for Intelligence...
Like · · Share · about an hour ago ·
Tehelka
'I Think They Will Kill Me… Because The Truth Scares Them'
Soni Sori narrates her story, which is emblematic of the torturous lives of tribals living in the red corridor.
'I think they will kill me… because the truth scares them' | Tehelka.com
Like · · Share · 2016 · 3 hours ago ·
Status Update
By Sudha Raje
आप अपनी सोच किसी पर थोप नहीं सकते।
आप किसी को आदेश देने का हक़ जब तक नहीं रखते जब तक कि आप उसके सुख दुख आजीविका के जिम्मेदार नहीं ।
देखा ये जा रहा है कि लोग जो खुद को जरा सा भी ताकतवर समझते है किसी भी मायने में ओहदा पैसा बुद्धि शिक्षा या दैहिक बल वगैरह वगैरह वगैरह में
वे जैसे खुद को अपने से कमजोर सब लोगों पर जबरन सलाह और आदेश थोपने लगते है । यह करो यह ना करो ।यह सही है क्यों मैं ज्यादा जानता हूँ मैंने दुनियाँ देखी मेरे पास पावर है अनुभव है वगैरह वगैरह ।
हो
होगा
तो???????
आप दूसरे के निजी जीवन के ठेकेदार कैसे हो गये ??
कैसे आप दूसरे की सोच बदलने को तमाम फतवे संहितायें गढ़ने वाले हो गये???
किसी का वोट किसे देना है ये उसकी मरज़ी है ।
किसी को किस तरह के कपङे पहनना है ये उसकी मरजी है ।
किसी को क्या खाना है और किसके साथ रहना है ये भी उसकी मरजी है ।
कौन किस धर्म को माने या ना माने ये भी उसकी मरजी है ।
आप को भारतीय प्राचीन परंपराये प्रिय हैं आप रहिये आराम से घर में पूरा आर्यावत बनाकर
आपको वैश्विक ग्लोबलाईजेशन पसंद है तो आप भी अपने घर को होनोलुलू शंघाई लंदन शिकागो लेनिनग्राड बनाकर रहिये कौन रोकता है ।
रहा
प्रेम???
आपका प्रेम सेक्स तक ही सीमित है तो जो आपको पसंद करता है जाईये और ऐश कीजिये ।
और अगर आपका प्रेम मानसिक है देहिक नहीं तो आप अपने प्रिय के साथ अपने दुख सुख बतियाईये ।
किंतु
ये कहने का हक़ किसी को नहीं कि प्रेम केवल भौतिक होता है पदार्थ होता है मेटर है और सेक्स के परिणाम में बदलना ही मंजिल है बाकी सब बकवास है!!!!
उसी तरह जैसे वैचारिक आध्यात्मिक मानसिक प्रेमवादियों को यह कहने का हक नहीं है कि दैहिक संबंध गुनाह है पाप है और जो प्रेम की मंजिल आखिर दैहिक संबंध बना लेना मानते है वे सब पापी अज्ञानी और मूर्ख हैं ।
क्योंकि
यह संसार विविधता से ही सुन्दर है ।
कहीं विचार ही परम है कहीं पदार्थ ।
कुछ लोग किसी भी कीमत पर अपने प्रेमी को पा लेना चाहते है और घर से भागना आत्महत्या करना हत्या करना और प्यार न मिलने पर तेज़ाब फेंक देना या बलात्कार ब्लैकमेल करना उनको सही लगता है क्योंकि वे मानते है प्यार और युद्ध में सब जायज है ।
वहीं कुछ लोग अपने प्रेम को परिवार समाज और अपने कर्त्तव्यों पर कुरबान कर देते हैं कभी उजागर तक नहीं करते कि कभी किसी को चाहा और प्रेम किया और बिछुङ गये तो कभी बैर द्वेष इलजाम तक नहीं रखा ।
कर्म और विचार
पदार्थ और चेतना
ये दोनों ही तत्व जरूरी है ।चेतना पदार्थ में निवास करती है ।बिना चेतना के पदार्थ लाश की तरह सङने लगता है या क्षरित होता रहता है।कोई भी कितना भी प्रिय हो लाश के साथ दैहिक संबंध नहीं बना सकता जबकि ज़िस्म तो वह भी है!!!
इसीलिये सिर सबसे ऊपर है सबसे बाद में मरता है। और सिर बिगङने पर सारे स्वस्थ अंग विकृत हरकतें भर रह जाते हैं चेतना पदार्थ से पहले भी है बाद में भी।
जैसे एक वेश्यागामी के मन में कदाचित ही कभी उस वेश्या के प्रति प्रेम उमङता हो जिसको वह बिस्तर पर भोगता है और दैहिक सुख पाता है ।वह वेश्या जो रोज नये ग्राहक के साथ सोती हो कदाचित किंचिंत घृणा भी करती हो ।
जबकि एक ऐसा व्यक्ति जिसने कभी उस स्त्री को स्पर्श तक नहीं किया हो वह पूरा जीवन उस स्त्री से प्रेम करता रह सकता है और रह सकता है उसके लिये शुभ कामनायें करता मदद करता भी जबकि कभी वह भूल से भी नहीं चाहता कि वह स्त्री उसके करीब भी आये ।
पदार्थ यहाँ गौण है
और चेतना प्रधान ।
वहीं ऐसे भी व्यक्ति है जो पत्नी के साथ रहते हैं पत्नी के प्रति पूरे कर्त्तव्य निभाते हैं उसके लिये भोजन वस्त्र आहार दवा और घर आदि का पूरा पूरा इंतिज़ाम करते हैं पत्नी के साथ दैहिक संबंध भी रखते है संतान भी होती है और सामाजिक तौर पर एक आदर्श दंपत्ति भी ।
किंतु
प्रेम नहीं ।
ये प्रेम अभाव तब भी रहता है जबकि दोनों साथ है और प्रायः प्रसन्न और सुखी ।
दूसरी ओर एक ऐसा जोङा है जहाँ पति या पत्नी में से कोई किसी बीमारी दुर्घटना या प्राकृतिक विकलांगता या हादसे का शिकार हो गया ।
किंतु दूसरा साथी न तो उसे छेङकर चला गया ना ही कभी प्रताङना या उपेक्षा की
बल्कि प्रेम और बढ़ता रहा क्योंकि एक की अशक्ता दूसरे ने थाम ली और साथ रहते रहते प्रेम दैहिक कदापि नहीं रहा कभी संबंधों पर प्रेम पर ये शिकवा भारी नहीं पङा कि दैहिक विकलांगतावश दूसरा साथी अपने प्राकृतिक संबंध नहीं निभा पा रहा है या निभा पा रही है । कुछ मनोरोगी हो जाते हैं किसी हादसे में कुछ पागल तक किसी की याददाश्त चली जाती है किसी को फालिज मार जाता है कोई आँख हाथ पाँव खो देता है कोई संपत्ति नौकरी और मान सम्मान किंतु प्रेम है प्रेम बना रहता है प्रेम बढ़ जाता है और दुख अपने साथी के दुख का हो जाता है कि अपने साथी को विकलांगता निर्धनता कुरूपता या मानसिक विचलन का शिकार होकर दयनीय होने का अहसास तक नहीं होने दिया जाता और निभता है रिश्ता ये प्रेम है ।
इस प्रेम को व्यक्त करने के लिये जितने भी पर्व मनाये जायें कम हैं करवाचौथ होली वसंतोत्सव अक्षय तृतीया विवाह की सालगिरह और वेलेन्टाईन डे कम हैं ।
किंतु
जिस को जो भाये वही सुहाये ।
एक
व्यक्ति जो अकसर अपना बेड पार्टनर बदलता रहता है उसको लगता है बस यही प्रेम है ।
दूसरा जो एक के नाम पर सारा जीवन वैराग में काट देता है उसके लिये वही प्रेम है
तीसरा जो साथ साथ है और अपने बे वफ़ा साथी के प्रति भी पूरी तरह वफ़ादार है वह सोचता है
यही प्रेम है ।
चौथा जो अपने साथी की बेबसी बरबादी को चुपचाप ओढ़कर बाँटलेता है और मनोदशा के अनुरूप अपना तनहा सफर भी साथ निभाते हुये जारी रखता है उसे लगता है वही प्रेम है ।
पाँचवे को लगता है दोनों साथ है और बेडपार्टनर भी है होमपार्टनर भी है तो वही प्रेम है ।
ये प्रेम
बहुरूपिया है
आप कैसे एक याददाश्त गुम हो चुके फालिज के शिकार साथी के पार्टनर को उपदेश दे सकते है कि सेक्स ही प्रेम है? क्या वह चल देगा किसी स्वस्थ सुंदर पराये व्यक्ति के साथ रात बिताने अगर उसको लगता है उसका प्रेम सही है?
या आप कैसे समझा सकते है उस व्यक्ति को कि प्रेम आध्यात्मिक मानसिक वैचारिक और चेतना की अवस्था है जब देह मन हृदय बुद्धि भावना सब एकाकार होकर विस्मृत हो जाये स्व बिसर जाये और प्रिय याद रहे जब समाधिस्थ हो रहे मन तन विचार चेतना!!!!
"उसने कहा था" एक कहानी पदार्थ से चेतना की तरफ जाती है और "लेडी चैटर्लीज लवर्स "चेतना से पदार्थ की तरफ बढ़ती है ।
वस्तुत अपनी अपनी सोच है ।
कोई विवश नहीं कर सकता किसी को किसी से प्रेम करने के लिये ।
जिस पश्चिम को दुत्कारा जाता है भारतीय संस्कारों की दुहाई के नाम पर वहाँ भी पोर्शिया और ब्रूटस के प्रेम जैसे उदाहरण भरे पङे हैं ।
वैसे ही जैसे एक शराबखोर को शराब ही परमानंददायिनी लग सकती है वैसे ही ।
एक सात्विक आहारी को शहद और दूध दही परम रस ।
हो सकता है शराबी सोचता रहे कि ये डरपोक शराब खरीदने पीने की दम नहीं रखता और शराब को ललचाता होगा डर वश पीता नहीं ।
जबकि शायद ऐसे भी शाकाहारी हैं जिनके घर में मेहमानों के लिये एक से एक शराब मँगायी जाती हो किंतु उसे खुद शराब से घृणा और बदबू अरूचि और बुरी तरह परेशानी हो जो नाकाबिले बर्दाश्त हो ।
एक" स्पेस "का अर्थ समझने वाले दंपत्ति एक दूजे को एकान्त और प्रायवेसी प्रोवाईड कराते हैं जबकि कुछ पजेसिव जोङे रात दिन वाचडॉग की तरह हर पल हर हरकत पर पीछे पङे रहते है ।
अपना
अपना
सलीका
प्रेम कहीं बाँहों में साथी होने पर भी मन न मिलने का विरह है
तो कहीं दूर सियाचिन और गाँव के बीच जुङे मन के तार का चिरमिलन ।
ये
राग जिसने प्रेम नहीं किया वो भी कभी कभी इतना समझे कि जैसे आटे को रसोईया ।
ये राग कभी कभी प्रेम आकंठ डूबा प्रेमी तक इतना ना समझे जितना दिल का महारोगी महाधमनी महानाङी रक्तपरिसंचरण तंत्र को जैसे चिकित्सक की भाषा मेरठ के फेरीवाले को इजिप्शियन भाषा
©®सर्वाधिकार सुरक्षित रचना
सुधा राजे
DTA...BJNR... ।
Status Update
By Shabnam Hashmi
One Billion Rising Rally Feb 14
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On 14 February 2013, one billion people in 207 countries rose and danced to demand an end to violence against women and girls.
The ONE BILLION RISING FOR JUSTICE campaign was envisioned collectively by regional coordinators around the world, at a coordinators gathering in New York in April 2013. The focus on justice with education firmly alongside it to address roots of violence against women, stemmed from discussions on contexts of systematic and endemic global impunity, on a local, national and international scale – as the main cause of the perpetuation of all the different forms of violence being done to women – sexual, physical, emotional, mental, economic, political, cultural and social. Their shared voices – from regions around the world – came to a unanimous decision to focus on justice as an escalation of our demand to end violence against women and girls once and for all.
ONE BILLION RISING FOR JUSTICE is a global call to women survivors of violence and those who love them to gather safely in community outside places where they are entitled to justice – courthouses, police stations, government offices, school administration buildings, work places, sites of environmental injustice, military courts, embassies, places of worship, homes, or simply public gathering places where women deserve to feel safe but too often do not. It is a call to survivors to break the silence and release their stories – politically, spiritually, outrageously – through art, dance, marches, ritual, song, spoken word, testimonies and whatever way feels right.
Our stories have been buried, denied, erased, altered, and minimized by patriarchal systems that allow impunity to reign. Justice begins when we speak, release, and acknowledge the truth in solidarity and community. ONE BILLION RISING FOR JUSTICE is an invitation to break free from confinement, obligation, shame, guilt, grief, pain, humiliation, rage, and bondage.
The campaign is recognition that we cannot end violence against women without looking at the intersection of poverty, racism, war, the plunder of the environment, capitalism, imperialism, and patriarchy. Impunity lives at the heart of these interlocking forces.
It is a call to bring on revolutionary justice.
RALLY IN AHMADABAD
Rally in Ahmadabad began from Victoria garden at 11am and culminated at Sardar Bagh. People started collecting in the Victoria Garden from 9am. Thousands of students, activists, women, intellectuals joined the rally. Over 30 organizations came together..
The rally had colorful banners with messages of stopping violence against women, there were thousands of flags and placards. Most interesting part of the rally were 5 camel carts on which various groups sung and performed for women's movement for justice and equality. Those who performed included a group from Pune- Lokayat, Sahiyar cultural group from Baroda, Lok Kala Manch along with Hozefa, Keshubhai and Jayesh Sang together, on one camel carts was the Siddhi Goma group with its drums and tribal performers and one camel cart had the Angels group performing as well as young lawyers who spoke about the laws that are available in the country for women.
Activists not only raised the growing violence against women internationally but also pointed out how it has been on the increase in Gujarat. Between 2012-2013 incidents of rape have increased by 49.22%, , sexual harassment increased by 30%, domestic violence increased by 21.83%, dowry deaths increased by 74.49% and an overall increase of 39% was reported in the violence of against women during this period.
Ahmadabad had not seen such a big and creatively conceived rally for a very long and we hope it will leave an impact on the people of Gujarat. The rally was live webcast.
પ્રેસ રિલિઝ
ફેબ્રુઆરી 14, 2013ના રોજ, 207 દેશોમાં એક બિલિયન લોકો ઊભા થયા અને નૃત્ય કરીને મહિલાઓ અને છોકરીઓ પર થતી હિંસાનો અંત લાવવા માગ કરી.
વન બિલિયન રાઇઝિંગ ફોર જસ્ટિસ કેમ્પેનની કલ્પના વિશ્વભરના સ્થાનિક કાર્યકર્તાઓ દ્વારા, ન્યુયોર્કમાં એપ્રિલ 2013માં સંકલનકર્તાઓની એક મિટિંગમાં કરવામાં આવી હતી. શિક્ષણ સાથે ન્યાય પર ભારથી મહિલાઓ પર થતી હિંસાના મૂળને સંબોધવામાં મદદ મળી છે, સ્થાનિક, રાષ્ટ્રીય અને આંતરરાષ્ટ્રીય સ્તરે પદ્ધતિસર અને આમાંથી વૈશ્વિક રીતે બહાર આવવા માટેની ચર્ચાને વેગ પણ મળ્યો –કારણકે તે મહિલાઓ પર થતી દરેક પ્રકારની હિંસાના મુખ્ય કારણ તરીકે બહાર આવ્યુ છે – જાતીય, શારીરિક, ભાવનાકીય, માનસિક, આર્થિક, રાજકીય, સાંસ્કૃતિક અને સામાજિક. તેમના સંકલિત અવાજો – વિશ્વના વિવિધ વિસ્તારોમાંથી –એકજ અવાજ આવ્યો મહિલાઓ અને છોકરીઓ પર થતી હિંસાના કાયમી અંત માટે અમારી માગનું કેન્દ્ર ન્યાય રહેશે.
વન બિલિયન રાઇઝિંગ ફોર જસ્ટિસ એ એક વૈશ્વિક મંચ છે જ્યાં હિંસાનો ભોગ બનેલ મહિલાઓ અને જે તેમને પ્રેમ કરે છે તેમના માટે સમુદાયની બહાર એક સલામત સ્થળ છે જ્યાં તેમનો ન્યાયની ખાતરી મળે છે – ન્યાયાલ્ય, પોલીસ સ્ટેશન, સરકારી ઓફિસ, શાળાના વહીવટી મકાનો, કામના સ્થળ, પર્યાવરણીય ન્યાયિતાની જગ્યાઓ, મિલિટરી કોર્ટ, એમ્બસી, પ્રાર્થના સ્થળો, ઘરો, કે સામાન્ય જાહેર સ્થળો જ્યાં મહિલાઓને સલામતીનો અનુભવ થવો જોઇએ પણ જે મોટેભાગે થતો નથી. જે લોકો ભોગ બનેલા છે તેમને તેમનું મૌન તોડવા અને તેમની વાત કહેવા માટેનું મંચ છે – રાજકીય, આધ્યાત્મિક, અત્યાચારી રીતે – કળા, નૃત્ય, રેલી, પ્રથાઓ, ગીતો, શબ્દો, વાત અને તેમને જે પણ યોગ્ય લાગે તે રીતે કહેવા કે કરવા માટે.
આપણી વાતો પિતૃસત્તાક વ્યવસ્થાઓ દ્વારા દફનાવવામાં, નકારવામાં, ભૂસવામાં, પરિવર્તિત કરવામાં અને ઘટાડવામાં આવી છે જે રાજસત્તા માટે ઉત્તેજે છે. ન્યાયની શરુઆત ત્યારે થાય છે જ્યારે આપણે બોલીએ છીએ, જણાવીએ છીએ અને મજબૂત રીતે અને સામુદાયિક સ્તરે સત્યને કબુલીએ છે. વન બિલિયન રાઇઝિંગ ફોર જસ્ટિસ એ અપરાધ, બંધન, જવાબદારી, અપરાધ, દુખ, પીડા, અપમાન, ગુસ્સો અને ગુલામીમાંથી મુક્ત થવાનું આમંત્રણ છે.
કેમ્પેન એ વાતની માન્યતા છે કે આપણે મહિલાઓ પર થતી હિંસા ગરીબી, જ્ઞાતિવાદ, યુદ્ધના આંતરસંબંધો જે પર્યાવરણ, મૂડીવાદ, સામ્રાજ્યવાદ અને પિતૃસત્તાક વ્યવસ્થા સાથે જોડાયેલા છે તેને સંબોધ્યા વગર અટકાવવી શકીએ નહી. આ આંતરિક રીતે સંકળાયેલી બાબતો પર હિંસા માટેની ઉત્તેજનાનો આધાર છે.
આ માગ છે ક્રાંતિકારી ન્યાય માટેની.
અમદાવાદમાં રેલી
અમદાવાદમાં રેલીની શરુઆત થશે વિક્ટોરિયા ગાર્ડનથી સવારે 11 વાગ્યે અને તે પુરી થશે સરદાર બાગ પર. લોકો વિક્ટોરિયા ગાર્ડન પર સવારે 9 વાગે એક્ત્ર થવાનું શરુ કરશે. હજારો વિદ્યાર્થીઓ, કાર્યકરો, મહિલાઓ અને બૌદ્ધિકો રેલીમાં જોડાશે તેવું અપેક્ષિત છે. 30થી વધુ સંસ્થાઓ આ માટે એકત્ર થઇ છે.
રેલીમાં રંગીન બેનરો હશે જેના પર મહિલાઓ પર થતી હિંસા અટકાવવા માટેના સંદેશાઓ હશે, ઝંડાઓ અને પ્લેસકાર્ડ હશે. રેલીનો સૌથી મહત્વનો ભાગ છે કે રેલીમાં 5 ઊંટગાડીઓ હશે જેમાં યુવાન છોકરીઓ અને છોકરાઓ, પુરુષો અને મહિલાઓ બેસીને મહિલાઓના ન્યાય અને સમાનતાની ચળવળના ગીતો ગાશે અને તેના પર પર્ફોર્મન્સ કરશે. એ લોકો જેમણે પુને-લોકાયત, વડોદરાનું સહિયલ સાંસ્કૃતિક જૂથ, લોક કલા મંચ અને હોઝેફા, કેશુભાઇ અને જયેશ સાથે પર્ફોર્મ કર્યુ હતું. એક ઊંટ ગાડામાં સિદ્ધિ ગોમા જૂથ તેમના તબલા અને આદિવાસી કળાકારો સાથે હશે અને એક ઊંટ ગાડામાં એંજલ ગ્રુપ હશે અને યુવાન વકીલો હશે જે દેશમાં મહિલાઓ પ્રાપ્ય કાયદાઓ વિશે વાત કરશે.
કાર્યકરોએ આંતરરાષ્ટ્રીય સ્તરે મહિલાઓ પર થતી હિંસા કેવી રીતે વધી છે તે વિશે જ નહી પરંતુ ગુજરાતમાં પણ તે કેવી રીતે વધી રહ્યો છે તેની વાત કરી. 2012-2013માં બળાત્કારના કિસ્સાઓમાં 49.22%નો વધારો જોવા મળ્યો છે જ્યારે જાતીય સતામણીમાં 30%, મહિલાઓ પર થતી ઘરેલું હિંસામાં 21.83%,, દહેજના કારણે થતા મૃત્યુમાં 74.49%,અને મહિલાઓ પર થતી હિંસામાં સરેરાશ 39%, વધારો નોંધાયો છે.
અમદાવાદે આટલી મોટી અને રચનાત્મક રીતે કરવામાં આવેલી રેલી લાંબા સમયથી જોઇ નથી અને અમે આશા રાખીએ છીએ કે તે ગુજરાતના લોકોના માનસ પર અસર કરશે. રેલીનું લાઇવ (જીવંત)પ્રસારણ પણ કરવામાં આવેલ હતું.
On behalf of
One Billion Rising Organising Committee, Ahmedabad
obr.ahmd@gmail.com — with Shabnam Hashmi and Dev Desai
Shabnam Hashmi with Dev Desai
One Billion Rising Rally Feb 14
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Unlike · · Share · 3 hours ago ·
Mohan Shrotriya
आज का दिन भी खूब है !
#संस्कृति के नाम पर सारे #लंपट तत्व दिन भर लोगों को #सताने के बाद, शाम को दारू पीने बैठ जाएंगे ! और दिन भर की #उपलब्धियों का गर्व-मिश्रित बयान करेंगे, अपने #समानधर्माओं के बीच !
Unlike · · Share · 5 hours ago near Jaipur ·
You, Jagadishwar Chaturvedi, Surendra Grover, Nityanand Gayen and 63 others like this.
Chandrakanta Ck हमारी विरासत का आज की युवा तहजीबों को इतना सहज होकर देखना सुकून देता है ॥यह स्पेस हर उम्र और हर पीढ़ी में होना चाहिए ॥ आप जैसे बड़ों का आशीर्वाद हमारी पीढ़ी पर बना रहे ॥
प्रफुल्ल कोलख्यान लंपट तत्त्वों में कृत्रिम-युवाओं की तुलना में वास्तविक युवाओं का अनुपात बहुत कम होगा, मुझे यकीन है, मैं समझता हूँ आपको भी होगा। सर.. शाम को दारू पीने तो रोज बैठते होंगे.. आज तो ब्रह्म-मुहुर्त्त से ही लगे होंगे...
5 hours ago · Like · 2
कलीम अव्वल ये यथार्थ है !!
Bharat Doshi Sharabi hi love virodhi
चन्द्रशेखर करगेती
मैडम ने ही दिखाया दम ?
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इन दिनों मैडम की चर्चा दून से दिल्ली तक हो रही है । दरअसल हाल में जब प्रदेश का निजाम बदला तो उससे पहले एक बड़ी बैठक हुई। बड़े दरबार से आए खद्दरधारी ने सबका मन टटोलना चाहा । कुछ ने पक्ष में हाथ उठाए तो कुछ ने खुलेआम विरोध कर दिया । खिलाफत करने वालों में मैडम भी थीं । उन्होंने जब किसी भी सूरत में अपना सुर नहीं बदला तो बड़े दरबार के नुमाइंदे नाराज हो गए । उन्होंने कुछ ऐसी बातें बोल दीं जो मैडम को बर्दाश्त नहीं हुईं ।
फिर क्या था ? उन्होंने ऐसा अखाड़ा जोड़ा कि सब के सब दंग रह गए । मैडम को जो मनाने का प्रयास करे उसकी ही हजामत। नए निजाम के पक्षधरों की तो मैडम ने ऐसी हवा निकाली कि उनसे मुंह छिपाते नहीं बना ।
मैडम ने उन अपनों को भी नहीं छोड़ा जो हर कदम पर साथ देने का भरोसा देकर मैडम के साथ आए थे और बंद कमरे की बैठक में अचानक पाला बदल लिया था । उनकी तो मैडम ने वो गति की, जैसे किसी बिल्ली को बाथटब में डुबोकर बाहर निकाला गया हो !
मुखबिर की खबर तो यह है कि कुछ देर के लिए तो ऐसा लगा कि मैडम ने दून से लेकर दिल्ली तक सबका खेल खराब कर दिया । उनका यह रूप देखकर एक महानुभाव कह बैठे आखिर दम तो मैडम ने ही दिखाया ।
कारपोरेट का जिन्न ?
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कुछ दिन पहले अचानक सूबे की तस्वीर बदल गई। बदली तस्वीर को लेकर एक सवाल फिजा में तैरने लगा । सवाल यह कि आखिर किसके आशीर्वाद से यह सूरत-ए-हाल बदला है । मुखबिर की मानें तो इस सबके पीछे उसी कारपोरेट जगत का हाथ है, जिसने दो वर्ष पूर्व अवाम को एक बड़ा सा झटका धीरे से दिया था ।
खैर. हम वर्तमान में चलते हैं । तस्वीर बदलने के पीछे की ऑफ द रिकार्ड कहानी भी बता देते हैं। दरअसल यह सब एक बड़ी डील के तहत हुआ है । कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि इस डील में आठ सौ खोखे लगे हैं । यह भी बता दें कि यह कोई दानखाते में नहीं गया है । सियासी हवन में जिस कारपोरेटर ने इतनी बड़ी आहुति दी है उसे जल्द ही मनचाहा काम मिलने वाला है ।
खा गए ना झटका ।
एक और खुफिया बात बताते हैं । डील का एक छोटा सा हिस्सा उन महानुभावों तक भी गया है जो बात-बात में नए घोड़े की तरह अड़ जाते हैं । अड़ें भी क्यों नहीं। उन्हें पता है सियासी गाड़ी तभी तक चलनी है जब तक उनकी बैसाखी का सहारा है । आखिर उन्होंने कुर्सी के पाये को जो थाम रखा है । आपको याद होगा कि करीब पौने दो वर्ष पूर्व इसी तरह सूबे की तस्वीर बदली थी । उसमें करीब तीन सौ खोखे का इस्तेमाल हुआ था ।
यानी इस बार जो तस्वीर बदली है उसमें पुराने नुस्खे ही इस्तेमाल हुए हैं । फर्क इतना है कि पहले जो तस्वीर बदली थी वह पूरी तरह से कारपोरेट की तरह चलती थी । अब जो तस्वीर बदली है वह कारपोरेट के आशीर्वाद से चल रही है । यानी कारपोरेट का जिन्न अभी बोतल में बंद नहीं हुआ है ।
और अंत में फिर गुलजार हुआ दफ्तर ?
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साहब का भी जवाब नहीं । मौसम कोई भी हो, फिजा में कोई भी हवा बहे, अपना दफ्तर तो गुलजार रखना ही है । बुरा हो उन विरोधियों का जिन्होंने यह आस लगा रखी थी कि निजाम बदला है तो साहब के तेवर भी ढीले होंगे । पर उन्हें क्या पता कि साहब का दफ्तर तो एक रंगमंच की तरह है ।
यहां सिर्फ पात्र बदलते हैं । पर्दे भी वहीं रहते हैं और मंच भी वही होता है । कुछ दिन पहले इस दफ्तर में वे लोग हाजिरी लगाते थे जो पहले के निजाम के करीबी थी । निजाम बदला दो-तीन दिन सन्नाटा रहा और फिर से वही बहार । यह जरूर हुआ कि दफ्तर में भीड़ लगाने वाले चेहरे अब बदल गए ।
साभार : मुखबिर ऑफ दैनिक जनवाणी
Unlike · · Share · 3 hours ago ·
Afroz Alam Sahil
शकील और बशीर जैसे निर्दोष मुसलमानों को आतंकवाद के झूठे आरोपों में फंसा कर सरकारें हिंदुओं और मुसलमानों में दूरी पैदा करके अपनी जनविरोधी नीतियों के खिलाफ जनता के संयुक्त आंदोलनों को कमजोर करना चाहती हैं. ऐसे में अवध की धरती के इतिहास से हमें सबक सीखना होगा, जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ यहां के हिंदुओं और मुसलमानों ने बेगम हज़रत महल और मौलवी अहमदुल्ला शाह के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ी थी. आज फिर से हमें ऐसी ही तहरीक चलाकर साम्प्रदायिक और कारपोरेट परस्त खुफिया एजेंसियों और सरकारों से मोर्चा लेते हुये अपने देश की गंगा-जमुनी विरासत की रक्षा करनी होगी...http://beyondheadlines.in/2014/02/public-conference/
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Arumita Mitra shared Manipur Times's photo.
Thank God, she is not a buddhijibi nor a tollywood actress!
Impact TV Update
Irom Sharmila rejects AAP's ticket for upcoming Lok Sabha elections
Irom Sharmila turns down Aam Aadmi party's ticket for the upcoming Lok Sabh...See More
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Satya Narayan
Why Kashmiri people hates India ?
https://www.youtube.com/watch?v=foe-6ePl75I
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Satya Narayan आजाद भारत की पुलिस व फौज के बर्बर कारनामों के कुछ नमुने
• 22 मई 1987, मेरठ के हाशिमपूरा मोहल्ले से PAC के जवानो नें 42 मुस्लिम नौजवानों को अगवा किया व बाद में गोलियों से भुन कर नहर में डाल दिया। मई 2000 में इन जवानों ने आत्मसमर्पण किया पर जमानत पर छोड ...See More
5 hours ago · Like · 1
Muhammad Tarif कश्मिर को भारत का अभिन्न अँग कहने का क्या मतलब जब उसके साथ एक उपनिवेश से भी ज्यादा बुरा बर्ताव किया जाता हो ।
5 hours ago · Like · 1
Himanshu Srivastav the brutality of indian army in kashmir is tragedic event for kashmir as well as india ,and many truths are buried in past,good job by you to unveil one reality by this clip
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