वातानुकूलित देश के लिए रेल,बाकी आम आदमी का सफर निषेध,गैस का दाम बढ़ाने का फैसला वापस नहीं होगा यथा मोइली उवाच।
वाक् युद्ध के साथ साथ हो गुत्थम गुत्था , हाथा पायी
फूट जाएँ दो चार खोपड़ी , टूट जाएँ दस बीस कलाई
-- काका हाथरसी
देश की सबसे बड़ी कंपनी के खिलाफ घनघोर अभियोग।जो लोग खुलासा,स्टिंग और पर्दाफास,पैनल विशेषज्ञ हैं,उनकी फटी क्यों पड़ी है,कुछ समझ में आने वाली बात नहीं है।नैतिकता और पवित्रता का स्वांग रचकर देश औरक समाज को धर्मोन्मादी बना रहे दंगाई खामोश क्यों है,भ्रष्ट तंत्र पर परदा डालने की संसदीय नूरा कुश्ती से जो न समझ पाया,उसे गदहा जनम का अभिननंदन।
पलाश विश्वास
आज का संवाद
वातानुकूलित देश के लिए रेल,बाकी आम आदमी का सफर निषेध
वाक् युद्ध के साथ साथ हो गुत्थम गुत्था , हाथा पायी
फूट जाएँ दो चार खोपड़ी , टूट जाएँ दस बीस कलाई
-- काका हाथरसी
Sudha Raje
मिरचहवा अँखिया भईल
"बनरहवा खौखिहान ।
"सुधा"भरल मुहवाँ जहर ।
संसद भर सिरिमान ।
©®सुधा राजे
Union Railway Minister Mallikarjun Kharge presents his first interim railway budget, amid protests by anti-Telangana MPs. Other important news of the day include the launch of 'chai pe charcha' campaign by Narendra Modi, BJP's PM candidate, Delhi CM Arvind Kejriwal, his Jan Lokpal and other controversies and MNS chief Raj Thackeray's state-wide street blockade in Maharashtra demanding "transparency" in road tax collection. Here is how the day unfolded and events as they happened.\
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दिवाना
नमोमय देश में हर शख्स दिवाना
खून चूं रहा है जिस्म से खूब
लहूलुहान है दिलोदिमाग भी
फिरभी हर शख्स दिवाना
भ्रष्टाचार विरोधी जंग हुई तीनफाड़
किरण हो गयी केशरिया देखो
आप की बहार भी देखो
गांधी जिसको मान रहा था देश
हुआ वह ममतामय,यह भी देखो
पहली से गैस होगी दोगुणी मंहगी
चाय पर चर्चा में उसकी गूंज नहीं कोई
रिलायंस के खिलाफ एफआईआफर से
विशुद्ध रक्त,नीला खून दोनों उबला खूब
संसद में नूरा कुश्ती का अखाड़ा देखो
हर शख्स इनदिनों बाजीगर देखो
अपनी डफली अपना राग जनता
का सफाया तय देखो,एसी हो गया
देश यह,वातानुकूलित नहीं है
जो जन गण उसका कत्लेआम देखो
देश में लोकसभा चुनाव आसन्न है।हर नेता डींगें हांककर मतदाताओं को हांक लेने के फिराक में हैं और संसद नूराकुश्ती के अखाड़े में तब्दील है।प्रतिष्ठित अखबारों में सबसे बड़ी खबर है कि बॉलीवुड की 'हॉट' एक्ट्रेस सनी लियोन अपनी अपकमिंग फिल्म 'रागिनी एमएमएस-2' के एक गाने 'बेबी डॉल' के लिए केज में बंद नज़र आईं।किसी भी जरुरी मुद्दे पर कामेडी नाइट विद कपिल का माजरा है।सिरे से स्त्री विरोधी।सिरे से मनुष्य विरोधी।सिरे से जनपद विध्वंसक।सिरे से सत्यानाशी।सिरे से प्रकृति और पर्यावरण के विरुद्ध।
पेट्रोलियम मंत्री एम. वीरप्पा मोइली ने आज कहा कि सरकार गैस मूल्य वृद्धि के निर्णय को वापस नहीं लेगी। देश में गैस उत्पादक कंपनियों को 1 अप्रैल से 2014 से बढ़ाने की अनुमति दी गई है जो मौजूदा मूल्य का दोगुना हो जाएगा।
मोइली ने गैस मूल्य बढ़ाने को लेकर अपने एवं कुछ अन्य के खिलाफ दिल्ली सरकार के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा दर्ज प्राथमिकी को 'असंवैधानिक' बताते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तीखी आलोचना की। मुख्यमंत्री ने इस संबंध में कुछ सेवानिवृत्त अधिकारियों की शिकायत पर यह प्राथमिकी दायर करने का निर्देश दिया था।
मोइली ने यहां एक कार्यक्रम के दौरान संवाददाताओं से कहा, 'इस पर (मूल्य बढ़ाने के निर्णय पर) रोक लगाने का सवाल ही कहां उठता है। यह (सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के उत्पादकों दोनों के लिए गैस मूल्य बढ़ाने की अनुमति देने का निर्णय) एक सरकारी प्रक्रिया के जरिए की गई है। इस पर मंत्रिमंडल द्वारा दो बार विचार किया गया और दोबारा इसे मंजूरी दी गई है।'
नई दरें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा गठित समिति की सिफारिशों पर आधारित है और इस समिति का गठन मोइली के पूर्ववर्ती एस. जयपाल रेड्डी के अनुरोध पर प्रधानमंत्री ने किया था। नई दरें प्रति इकाई (एमएमबीटीयू) 4.2 डॉलर से बढ़कर 8-8.4 डॉलर हो जाएंगी।
इस सप्ताह की शुरूआत में केजरीवाल ने देश में गैस की कृत्रिम कमी पैदा करने और दाम बढ़ाने के लिए मोइली, रिलायंस इंडस्ट्रीज और इसके चेयरमैन मुकेश अंबानी के खिलाफ पुलिस शिकायत दर्ज कराने के आदेश दिए थे
बाबा मुक्तिबोध सच कह गये हैं
महान मृतात्माएं इस नगर की
हर रात जुलूस में चलतीं,
परन्तु, दिन में
बैठती हैं मिलकर करती हुई षडयन्त्र
विभिन्न दफ्तरों- कारायालयों,केन्द्रोंमें,घरों में।
हाय ,हाय! मैंने उन्हें देख लिया नंगा,
इसकी मुझे और सजा मिलेगी।
अब तो हर गली ,हर चौराहे, हर गांव, हर खेत,हर नदी किनारे,हर घाटी शिखर में,रण में,जंगल में,रेगिस्तान में हर कहीं कोई न कोई कबीर चाहिए जो सच को सच और झूठ को झूठ कहने का जिगर रखें।
केंद्र सरकार की बल्ले बल्ले है और राजनीति स्साली इतनी कमीनी है कि जनादेश हो न हो, सत्ता हो या न हो,चलती उन्हीं की है जिनके हवाले रिमोट कंट्रोल है।इस वातानुकूलित,डिजिटल,बायोमेट्रिक,रोबोटिक देश में नागरिकता निषिद्ध प्रदेश है और मृत्यु उपत्यका में हर षड्यन्त्रकारी महा मसीहा है और गली चोराहों पर उन्ही की मूर्तियां।तमाम कर्मकांड में हम अपनी अपनी मृतात्मा को पूर्णाहुति देने वाले अमानुष समाज के यंत्रमानव हैं।
देश की सबसे बड़ी कंपनी के खिलाफ घनघोर अभियोग।जो लोग खुलासा,स्टिंग और पर्दाफास,पैनल विशेषज्ञ हैं,उनकी फटी क्यों पड़ी है,कुछ समझ में आने वाली बात नहीं है।नैतिकता और पवित्रता का स्वांग रचकर देश औरक समाज को धर्मोन्मादी बना रहे दंगाई खामोश क्यों है,भ्रष्ट तंत्र पर परदा डालने की संसदीय नूरा कुश्ती से जो न समझ पाया,उसे गदहा जनम का अभिननंदन।
अरविंद केजरीवाल की सरकार 'आप' ने मुकेश अम्बानी से जुड़ाव का खुलासा नहीं करने के लिए नजीब जंग की आलोचना की है।मीडिया का फोकस इसीपर है। जनता के सर्वनाश के क्या क्या इंतजामात हैं,उनका खुलासा न संसद में हो रहा है और न संसद के बाहर और न मीडिया में। प्रीमियम ट्रेनों के बहाने भारतीय रेल से आम जनता को बेदखल करने का काम निर्विरोध हो गया।संसद में मारामारी जो तेलंगाना अलग राज्य के सवाल पर हुई,वहां आज भी भारतीय संविधान लागू नहीं हैं और तमाम आदिवासी इलाकों में अब भी निजाम जमाने के कायदे कानून चलते हैं।
मौजूदा तेलमंत्री और पूर्व तेलमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई एक निर्वाचित राज्य सरकार की तरफ से। उस पर सन्नाटा है संसद में।देश की सबसे बड़ी कंपनी पर महासंगीन आरोप लगे हैं,उस पर खामोशी है संसद में। मीडिया को आर और अरविंद केजरीवाल का नमो परिप्रेक्षित भविष्य की चिंता है,लेकिन देश बेचो निरंकुश अभियान पर परदा डालने में कोई कोताही बरती नहीं जा रही है और जनता की अदालत में जो महामहिम युद्ध अपराधी समुदाय का न्याय होना चाहिए,उनके महिमामंडन का कोई अवसर कोई छोड़ नहीं रहा है।
आईपीएल घोटाले के तहत कैसिनो अर्थव्यवस्था के कायदे कानून रस्मोरिवाज को बेहतर तरीके से समझा जा रहा है।घोटाला और सट्टेबाजी के मुरजिम को आईसीसी चेयरमैन ही नहीं बनाया जा रहा है,खिलाड़ियों की नीलामी में भी खुल्ला घोटाला है। घोटालों पर फोकल न हो ,इसलिए आईपीएल विदेशी धरती पर खेला जायेगा जबकि भारत के क्रिकेट अपराध सरगना दुनियाभर के नस्लवादी जायनवादी तत्वों के साथ मिलकर क्रिकेट को ही बंधक बना रहे हैं।भारतीय राजनीति का प्रतीक इस देश के क्रिकेट प्रबंधन से कोई बेहतर नहीं है और हर राजनेता का चरित्रायन कोई न कोई सनी लियोन है।
गौरतलब है कि लोकसभा में तेलंगाना विधेयक का विरोध कर रहे कुछ सदस्यों ने भारी अफरातफरी की और एक सदस्य ने स्प्रे तक छोड़ा जिससे सदन में और उसकी दीर्घाओं में खांसी आना शुरू हो गई।संसद में बाहुबलियों और धनपशुओं को चुनकर भेजने का अंजाम इसके अलावा कोई और हो ही नहीं सकता।और यह सारा खेल संसद में जरुरी विधेयक बिना चर्चा पारित कराने और जनविरोधी अंतरिम रेल बजट के साथ जनसंहारक अंतरिम बजट पास की अश्लील आइटम संगीत है,जिसकी धुन पर पूरा देश लुंगी डांस करने लगा है। मुद्दे दरकिनार हो गये और जनप्रतिनिधियों की जवाबदेही खत्म।
प्रीमियम ट्रेनों के शुरू होने से बहुत ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है। हो सकता है कि इन ट्रेनों के किराये को सुन कर आपके होश उड़ जाएं। क्योंकि इन ट्रेनों के किराये बाजार से तय होंगे। दिल्ली और मुंबई के बीच प्रीमियम एसी स्पेशल ट्रेन की सफलता से उत्साहित रेलवे ने व्यस्त रूटों पर 17 और ऐसी ट्रेनें चलाने का फैसला किया है।
आखिर भारतीय रेल चलती किसके लिए है,बताइये। जिस जन गण का देश है यह,उसके लिए अनारक्षित डब्बे किसी ट्रेन में दो से ज्यादा नहीं है।आधी आबादी के लिए हर ट्रेन में फकत एक ही डिब्बा।आधे से ज्यादा डब्बे पहले से वातानुकूलित हैं।शयन यान के लिए आरक्षण तीन महीन कराइये।तत्काल के लिए तमाम सबूत पेश कीजिये।लेकिन बेरोजगार,बीमार कमजोर तबके के सफर पर निषेध हैं।पीपीपी माडल की बुकिंग के कारण अलग से जुर्माना भरिये।ट्रेन में चढ़ भी लिये तो कब बेपटरी होकर जान गवांयें,कब आग में स्वाहा हो जाये,ठिकाना नहीं।सकुशल हुए तो निजी कंपनियों से महंगा खाना,पानी खरीदकर चलते रहिये।अब प्रीमियम बहाने पूरी की पूरी ट्रेन एसी है। बंगाल जैसे खस्ताहाल राज्य में ग्यारह ट्रेनों में पांच प्रीमियम,एक एसी।
खबर है कि गैस प्राइस के मुद्दे पर दिल्ली की केजरीवाल सरकार के एफआईआर दर्ज कराने के बाद रिलायंस इंडस्ट्रीज सभी कानूनी रास्तों पर गौर कर रही है। सरकार ने कंपनी के चेयरमैन मुकेश अंबानी पर नामजद मुकदमा दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि उन्होंने गैस की कीमतें बढ़वाने के लिए ऑइल मिनिस्टर से साठगांठ की। कंपनी मानहानि का मामला दर्ज कराने और क्षतिपूर्ति के रूप में भारी रकम का दावा ठोकने पर भी विचार कर रही है।
कानून का राज है और जाहिर है कि रिलायंस को भी आत्मपक्ष प्रस्तुत करने का हक है।लेकिन रिलायंस का बचाव करते हुए एक चुनी हुई सरकार के फैसले केखिलाफ खड़े लोग दरअसल किनका हित साध रहे हैं,समझने वाली बात है।
केंद्र और राज्य सरकारों के तमाम समामाजिक प्रकल्प एनजीओ के हवाले है।आपके सारे जनांदोलन एनजीओ के हवाले हैं।आप स्वयं एनजीओ हैं।ऐसे में आप के एनजीओकृत होने का आरोप लगाने के पाखंड का तात्पर्य भी समझिये।
कहा जा रहा है कि केजरीवाल का खेल खत्म है।दो चार घंटे का मेहमान हैं केजरीवाल। कहा जा रहा है कि सरकार न चला पाने की मजबूरी में शहादत का आयोजन में लगे हैं केजरीवाल। आज सुबह समयान्तर संपादक पंकज बिष्ट,जो संजोग से भारतीय भाषाओं के एक मूर्धन्य गद्यकार,उपन्यासकार और जनपक्षधर वैकल्पिक मीडिया के सिपाहसालार भी हैं, उस पंकजदा से आज सुबह फिर लंबी बातचीत हुई।दा को हमने बताया कि इकोनामिक टाइम्स में छपे ताजा सर्वे से साफ जाहिर है कि मोदी को दो सौ सीटों के आगे जाने के लिए अभी हिमालय लांघने और समुंदर छलांगने जैसे करिश्मे करने होंगे।अब सरकार रहे चाहे जाये,तयहै कि सामाजिक शक्तियों की गोलबंदी और छात्र युवाजनों की अभूतपूर्व हस्तक्षेपी सक्रियता से तय हो गया है कि यह देश हर्गिज नमोमय बनने नहीं जा रहा है।सीटें भले उतनी न मिलें,लेकिन हर सीट पर लाख,दो लाख संघी वोट जरुर कटेंगे। हमने दा को बताया कि अब जबकि तीसरे मोर्चे की सरकार ख्वाब से हकीकत में बदलने लगी है,तभी दूसरी संपूर्ण क्रांति के भीष्म पितामह अन्ना हजारे केजरीवाल और किरण वीके के भाजपाई ब्रिगेड से अलग मोदी के विक्लप बतौर पीपीपी सम्राज्ञी ममता बनर्जी को प्रधानमंत्री बनाने की मुहिम में लग गयी है।ध्यान दें,राजनीति से अलग रहने की गरज से अपने गांव राले सिद्धि में मनुस्मृति व्यवस्था लागू करनेवाले अन्ना ने केजरीवाल के राजनीतिक हस्तक्षेप अभियान से पल्ला झाड़ लिया था।तो ममता को प्रधानमंत्री बनाने के इस महायज्ञ के पीछे कौन तत्व हैं,समझने वाली बात है।
पंकजदा ने कहा कि केजरीवाल का पतन तो तभी तय हो गया जब उसने दिल्ली में खुदरा कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी विनिवेश पर रोक लगी दी थी।दादा से हम सहमत हैं।आपको समझ में नहीं आ रही यह दलील तो उस दिन के तमाम अंग्रेजी अखबारों का संपादकीय पढ़ लें।विडंबना यह है कि भ्कष्टाचार के खिलाफ,कालाधन और विदेशी पूंजी के खिलाफ सबसे ज्यादा मुखर स्वयंभू आंखों में भर लो पानी वाला देशभक्त कारपोरेट चाय पार्टी के लोगों को भयनक पेटदर्द हो रहा है केजरीवाल के कारपोरेट विरोधी अभियान से। याद करे कि खुदरा कारोबार में विदेशी पूंजी निवेश की खिलाफत में व्यापारी वोटबैंक के खातिर भाजपाइयों ने क्या क्या हंगामा नहीं बरपाये।खुदरा कारोबार में अमेरिकी कंपनियों और अमेरिकी सरकार का सबसे बड़ा दांव है, यह समझने के लिए कोई अमर्त्य विशेषज्ञ होने की जरुरत है नहीं।अब देखिये,वीसा देने से इंकार करने वाले अमेरिका के राजदूत नैंसी कैसे दुम हिलाती हिलाती नमो से मिलकर आयी और अमेरिकी सरकार का बयान जारी किया।
मजा तो बहुजन राजनीति का असली है और उन्हें इस कारपोरेट विरोधी अभियान के ढोंग से ज्यादा तकलीफ है।बहुजनों को हिंदुत्व की पैदल सेना बना देने के अपने किये का कोई पाप बोध है नहीं और ओबीसी अछूत कहकर मोदी के वोटबटेरु वक्तव्य में उन्हें नौटंकी नजर नहीं आती।
हाल में इकोनामिक टाइम्स में पहला पेजी एक्सक्लुसिव छपा कि अंबेडकरी विरासत का बामसेफ अगले लोकसभा चुनाव में गजब ढाने वाला है।पहली बात तो यह है कि बामसेफ अंबेडकर की विरासत है नहीं,वह मान्यवर कांशीराम की संतान है।दूसरी महत्वपूर्ण बात बतौर पार्टी चुनाव आयोग में बामसेफ का पंजीकरण नहीं हुआ।जो संगठन चुनाव लड़ ही नहीं रहा है,उसको हैरतअंगेज खिलाड़ी बताने का तात्पर्य क्या है,समझने वाली बात है।कहा गया है कि उसके दस हजार होलटाइमर हैं।चुनाव युद्ध में अपनी पार्टी उतारने से पहले दो सौ होलटाइमर भी नहीं थे।राजनीतिक भविष्य के लिए अब होल टाइमर बनने का सिलसिला कुछ तेज जरुर है। अगर बामसेफ वाले अपने दस हजार होलटाइमरों की सूची सार्वजनिक कर दें तो बहुजनों को गोलबंद करने में भारी मदद मिलेगी।
बहुजन बुद्धिजीवियों को अंग्रेजी राज वरदान लगता है। ग्लोबीकरण डायवर्सिटी का स्वर्गराज्य लगता है और कारपोरेट राज समता और सामाजिक न्याय का स्वर्णकाल। उनको ऐतराज है कि कहीं आरक्षण विरोधी लोग सत्ता में न आये।1999 से आरक्षण शून्य हैं।कोई आनंद तेलतुंबड़े से बात करें तो पूरा ग्राफिक डीटेल के साथ खुलासा कर देंगे।अब बताइये कि वीपीसिंह ने जब मंडल लागू किया तो देश पर कमंडल से खून की गंगा किन लोगों ने बहा दी।कौन लोग थे आरक्षण विरोधी आंदोलन में और फिर हिंदू राष्ट्र का आखिर एजंडा क्या है। तो आप के उत्थान में फंसे नमोमय भारत के असंपूर्ण निर्माण में कारसेवा करनेवाले लोगों को पहचान लेना भी जरूरी है, जो मोदी के प्रधानमंत्रित्व के लिए सांसद कैप्टेन जयनारायण निसाद के दिल्ली स्थित संसदीय निवास पर वैदिकी यज्ञ के आयोजन के साथ ओबीसी गिनती के लिए राष्ट्रव्यापी अभियान में तत्कालीन राजग संयोजक के साथ बवंडक खड़ा किये हुए थे। उन मूलनिवासियों को भी पहचान लेने की जरुरत है जो मायावती के किले ढहाने के अभियान में लगे हैं।
रिलायंस कंपनी के सूत्रों ने बताया कि रिलायंस की लीगल टीम तभी अपने काम में जुट गई थी, जब दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने आदेश दिया था कि अंबानी, ऑइल मिनिस्टर वीरप्पा मोइली और आरआईएल के संस्थापक धीरूभाई अंबानी के दोस्त पूर्व ऑइल मिनिस्टर मुरली देवड़ा के खिलाफ भ्रष्टाचार निरोधक कानून की धारा के तहत मुकदमा दर्ज किया जाए।
उधर, गवर्नमेंट ऑफिशल्स ने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट सिविल केस की सुनवाई कर ही रहा है तो क्रिमिनल केस दर्ज करना कुछ अजीब है, जबकि दोनों ही मामलों में शिकायत करने वाले लोग एक ही हैं। ऑइल और लॉ मिनिस्ट्रीज के टॉप ऑफिशल्स के अलावा कांग्रेस के सीनियर लोगों के बीच इस मुद्दे पर चर्चा हुई। एक अधिकारी ने कहा कि सरकार कोशिश करेगी कि केजरीवाल को यह मामला फिर उछालने का मौका न मिले।
सूत्रों ने बताया कि जयपाल रेड्डी के ऑइल मिनिस्टर रहने के दौरान भी निशाने पर आई आरआईएल ताजा घटनाक्रम से काफी अपसेट है। कंपनी के करीबी एक सूत्र ने कहा कि गैस की प्राइस रंगराजन कमिटी की सिफारिशों पर आधारित है।
यह कमिटी जयपाल रेड्डी ने ऑइल मिनिस्टर रहते बनाई थी, लेकिन उनका नाम एफआईआर में नहीं है। मिनिस्ट्री से बातचीत कंपनी के अधिकारी करते हैं, न कि चेयरमैन। चेयरमैन का नाम इसमें कैसे आ गया?
बुरी खबर यह भी है कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने अपनी 3 वर्ष पुरानी नैशनल मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी के जरिए 2022 तक 10 करोड़ नौकरियां पैदा करने की योजना बनाई थी, जो अब नाकाम होती दिख रही है क्योंकि सरकार इसके तहत स्पेशल इनवेस्टमेंट जोन के अपने वादे को पूरा नहीं कर पाई है और न ही रोजगार बढ़ाने के प्रोत्साहन के लिए श्रम कानूनों में छूट दी गई है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने इंडस्ट्री, पार्टी के सहयोगियों और मतदाताओं के साथ हाल की मुलाकातों में मैन्युफैक्चरिंग को मजबूत करने और पुराने हो चुके श्रम कानूनों में संशोधन से रोजगार बढ़ाने पर जोर दिया है।
कैबिनेट ने 2011 में नेशनल मैन्युफैक्चरिंग पॉलिसी को मंजूरी दी थी। इसका लक्ष्य इकॉनमी में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की हिस्सेदारी को 15 फीसदी से बढ़ाकर 2022 तक 25 फीसदी करने का था। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए लचीले श्रम कानूनों और आसान बिजनेस रेग्युलेशन्स के साथ नैशनल इनवेस्टमेंट ऐंड मैन्युफैक्चरिंग जोन (एनआईएमजेड) बनाने का प्रपोजल था।
कंपनियों का औपचारिक तौर पर कर्मचारियों को बहाल न करने का एक बड़ा कारण छंटनी की मुश्किल प्रक्रिया है। पॉलिसी में इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स ऐक्ट, 1947 में बदलाव कर जॉब लॉस इंश्योरेंस फ्रेमवर्क के साथ इन जोन में एंप्लॉयीज की छंटनी आसान बनाने की बात कही गई थी। इससे वर्कर्स को पर्याप्त मुआवजे या वैकल्पिक नौकरी की गारंटी मिलती।
इंडस्ट्री के एक प्रतिनिधि ने बताया, 'इंडस्ट्री और लेबर मिनिस्ट्री केवल एनआईएमजेड के लिए कानून में संशोधन करने के प्रस्ताव पर ट्रेड यूनियंस के साथ सहमति नहीं बना पाई। इसके लिए पिछले 2 वर्ष से बात हो रही है।' उनका कहना था कि इंडिया इंक को इस मोर्चे पर जल्द कोई कामयाबी मिलन की उम्मीद नहीं है।
कांग्रेस से जुड़ी इंडियन नैशनल ट्रेड यूनियन कांग्रेस (इंटक) सहित एंप्लॉयी यूनियंस ने इंडस्ट्रियल डिस्प्यूट्स लॉ में प्रस्तावित संशोधनों को लेकर सवाल खड़े किए हैं। इनकी दलील है कि इससे कंपनियां अपनी मर्जी से जब चाहे 'हायर या फायर' कर सकेंगी।
एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट को 70 कानूनों का पालन करने के साथ ही प्रतिवर्ष 100 रिटर्न भरनी होती हैं। पॉलिसी में कहा गया है कि इस बोझ को कम करने की जरूरत है। मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर नजर रखने वाले एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, 'अभी पॉलिसी को लेकर पूरा फोकस एनआईएनजेड पर है, जबकि देश भर में बिजनेस रेग्युलेशन्स को आसान बनाने और महत्वपूर्ण सेक्टर्स पर जोर देने के एजेंडे को अनदेखा किया गया है। अगर हम इन जोन में श्रम कानूनों में छूट देने को लेकर सहमति नहीं बना पाते और एनआईएमजेड के अलावा पॉलिसी के अन्य महत्वपूर्ण हिस्सों पर काम नहीं करते, तो 10 करोड़ नौकरियां पैदा करना मुश्किल है।' उनका कहना था कि इनमें से कोई भी जोन 2019 से पहले शुरू होने की संभावना नहीं है।
इंडस्ट्री मिनिस्ट्री ने पिछले महीने मौजूदा इंडस्ट्रियल कलस्टर्स को एनआईएमजेड का दर्जा देने के लिए गाइडलाइंस जारी की थी, लेकिन इनसे उम्मीद के मुताबिक बड़े स्तर पर नया इनवेस्टमेंट आना मुश्किल लग रहा है।
क्या है प्रीमियम ट्रेन : प्रीमियम ट्रेनें पूरी तरह से एसी होंगी और इनके कोच भी अपेक्षाकृत नए होंगे। प्रीमियम ट्रेनों में सामान्य ट्रेनों के मुकाबले ज्यादा किराया लिया जाता है और सीटें भरने के साथ ही इसके किराये में उसी तरह से इजाफा होता है, जिस तरह से हवाई जहाज के लिए किराया बढ़ता है।
नॉन स्टाप ट्रेन : प्रीमियम ट्रेनें नॉन स्टॉप होंगी यानी यह ट्रेन चालू होने के बाद आखिरी स्टेशन पर ही रुकेगी। इस तरह से यह ट्रेन उसी रूट पर चलने वाली दूसरी ट्रेनों के मुकाबले पैसेंजरों को उनके मुकाम तक जल्द पहुंचाएगी। हालांकि, रेलवे बोर्ड के चेयरमैन अरुणेन्द्र कुमार का कहना है कि रेलवे इस बात पर भी विचार कर रही है कि क्या इन ट्रेनों के रूट में कोई ऐसा स्टॉपेज दिया जाए, जहां से रेलवे को और यात्री मिल सकें।
रूट का चयन : प्रीमियम ट्रेन के रूट तय करने से पहले रेलवे बोर्ड उस रूट पर पैसेंजरों की जरूरत को आंकता है। रेलवे का कहना है कि उसने उन रूटों पर प्रीमियम ट्रेनें चलाने का ऐलान किया है, जिन पर पूरे साल वेटिंग लिस्ट रहती है। इसके अलावा, प्रीमियम ट्रेन चलाने के लिए रेलवे बोर्ड ने दूसरी शर्त यह रखी है कि उस रूट पर दूसरी सामान्य ट्रेन जरूर होनी चाहिए ताकि अगर कोई पैसेंजर प्रीमियम ट्रेन का किराया नहीं दे सकता तो उसके लिए सामान्य श्रेणी की ट्रेन उपलब्ध रहे।
प्रीमियम ट्रेन में बुकिंग : प्रीमियम ट्रेन में सीटों की बुकिंग 15 दिन पहले शुरू होती है। रेलवे बोर्ड के अफसरों का कहना है कि यह सर्विस उन पैसेंजरों के लिए है, जिन्हें सफर के डेट से ऐन पहले अपनी यात्रा के बारे में योजना बनानी पड़ती है। ऐसे पैसेंजर ज्यादा किराया देकर इस ट्रेन में सफर कर सकते हैं। इस सिस्टम के तहत, शुरुआती किराया लगभग वही होगा, जो तत्काल का होता है। इसके बाद सीटें कम होती जाएंगी और डिमांड जिस रूप में बढ़ती जाएगी, उसी आधार पर इसका किराया बढ़ता जाएगा। हालांकि, प्रीमियम ट्रेन के लिए किराये की ऊपरी सीमा भी तय कर दी गई है, यानी एक सीमा से ज्यादा किराया नहीं बढ़ेगा।
वेटिंग लिस्ट नहीं : इस ट्रेन की खासियत यह होगी कि इसमें किसी तरह की वेटिंग लिस्ट नहीं होगी ,लेकिन आरएसी जरूर होगा। इसके अलावा , ट्रेन का टिकट बुक कराने के बाद उसे रद्द कराने की अनुमतिनहीं होगी। टिकट का रिफंड तभी मिलेगा , जब ट्रेन कैंसल होगी।
दूसरे पैसेंजरों को भी फायदा : रेलवे का कहना है कि प्रीमियम ट्रेनों की वजह से सामान्य श्रेणी की ट्रेनों केपैसेंजरों को भी फायदा होगा। दरअसल , प्रीमियम ट्रेन चलाने से सामान्य श्रेणी की ट्रेन पर भी लोड कमहोगा , क्योंकि जो पैसेंजर प्रीमियम ट्रेन का किराया दे सकते हैं , वे उसी में जाएंगे। इस तरह से सामान्यश्रेणी की ट्रेन के पैसेंजरों को ज्यादा सीटें मिलने की संभावना र हेगी।
साथ ही वह दिल्ली से चंडीगढ़ और आगरा के बीच 160 से 200 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली 'सेमी हाई स्पीड' ट्रेनें चलाने की संभावनाएं तलाशेगा। मुंबई जाने वाली प्रीमियम ट्रेन क्रिसमस और नववर्ष के दौरान यात्रियों की अतिरिक्त भीड़ को ढोती है।
इससे मुंबई राजधानी की तुलना में लगभग 48 फीसदी अधिक आमदनी हुई। इस ट्रेन के लिए किराया डायनेमिक किराया तंत्र स्कीम के तहत लिया जाता है जो एयरलाइनों द्वारा लिए जाने वाले किराए की तर्ज पर है।
रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खडगे ने अपने अंतरिम बजट भाषण में कहा कि इस तरह की डायनेमिक किराया दर का यात्रियों और मीडिया ने काफी स्वागत किया है। इस स्कीम को बड़े पैमाने पर चलाने के बारे में विचार किया जा रहा है।
उन्होंने देश के विभिन्न हिस्सों के लिए 17 ऐसी प्रीमियम ट्रेनें चलाने का ऐलान किया। खडगे ने कहा कि किसी सीजन या विशेष मौके पर कुछ ट्रेनों में यात्रियों की संख्या बेतहाशा बढ़ जाती है। ऐसी स्थिति में यात्री अधिक किराया देने को भी तैयार रहते हैं।
अधिकांश प्रीमियम ट्रेनें साप्ताहिक या सप्ताह में दो बार चलाई जाएंगी। ये ट्रेनें हावड़ा-पुणे, हावड़ा-मुंबई, कामाख्या-चेन्नई, मुंबई-पटना, निजामुद्दीन-मडगांव, सियालदह-जोधपुर, अहमदाबाद-दिल्ली सराय रोहिल्ला, त्रिवेन्द्रम-बेंगलूर आदि रूटों पर चलेंगी।
कटरा के लिए भी कुछ प्रीमियम ट्रेनें शुरू की जाएंगी। इस पवित्र नगरी में रेल संपर्क जल्द ही शुरू होगा। मंत्री ने 39 नई एक्सप्रेस ट्रेनों, 10 सवारी गाडिय़ों, चार मेमू और तीन डेमू ट्रेनें चलाने का भी ऐलान किया।
लोकसभा के इतिहास में गुरुवार काले दिन के रूप में दर्ज हो गया। अलग तेलंगाना राज्य का बिल जैसे ही ससंद के निचले सदन में पेश हुआ सीमांध्र से जुड़े कांग्रेस, वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपी के सांसदों ने जमकर उत्पात काटा। लोकसभा में अखाड़ा जैसा नजारा देखने को मिला। सांसदों के बीच जमकर लात-घूंसे चले, एक सांसद ने सदन में मिर्च पाउडर स्प्रे कर दिया तो एक पर चाकू निकालने का आरोप लगा। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि मार्शलों को बीच-बचाव के लिए सामने आना पड़ा और ऐंबुलेंस तक बुलानी पड़ी। हंगामा करने वाले वाईएसआर कांग्रेस के जगनमोहन, कांग्रेस से निकाले जा चुके लगदापति राजगोपाल और टीडीपी के वेणुगोपाल समेत 16 सांसदों को 5 दिनों के लिए सस्पेंड कर दिया गया है।
सदन में विजयवाड़ा के सांसद लगदापति राजगोपाल ने सांसदों के ऊपर काली मिर्च का पाउडर स्प्रे कर दिया, जिससे कई सांसद खांसने लगे और उनकी हालत खराब हो गई। आरोप है कि हाथापाई के दौरान टीडीपी के सांसद वेणुगोपाल ने चाकू निकाल लिया, हालांकि वह इससे इनकार कर रहे हैं। उनका आरोप है कि कांग्रेस के सांसदों ने उनकी पिटाई की है और वह इसकी शिकायत लोकसाभा की स्पीकर मीरा कुमार से करेंगी। एक सदस्य ने स्पीकर मीरा कुमार के आसन पर रखे कागजों को छीनना शुरू किया और रिपोर्टर टेबल पर लगे माइक को तोड़ दिया। हंगामे और अव्यवस्था की स्थिति में स्पीकर ने सदन की कार्यवाही दो बजे तक के लिए स्थगित कर दी और सदन को खाली करा दिया गया।
सदन की कार्यवाही दोबारा शुरू होते ही तेदेपा के एक सदस्य ने अध्यक्ष के आसन पर रखे कागजो को छीनना शुरू किया और रिपोर्टर टेबल पर लगे माइक को तोड़ दिया।
तेदेपा सदस्य द्वारा कागज छीने जाने और माइक तोड़े जाने के बीच कांग्रेस के एल राजगोपाल ने पहले रिपोर्टर टेबल पर रखे बक्से को तोड़ दिया और उसके बाद जेब से स्प्रे निकालकर उसे चारों तरफ फेंकना शुरू कर दिया।
हंगामा कर रहे इन दोनों तेदेपा और कांग्रेस के सदस्यों को विभिन्न दलों के सदस्यों ने आकर रोकने का प्रयास किया लेकिन वह काबू में नहीं आ रहे थे। कई सदस्यों ने एल राजगोपाल के हाथ को कसकस के झटककर स्प्रे की बोतल छीनने का प्रयास किया और काफी देर बाद वह उनसे स्प्रे ले पाए।
स्प्रे छिड़कने से सदन में और दर्शक एवं पत्रकार दीर्घाओं में बैठे लोगों को खांसी आनी शुरू हो गई जिसके कारण एम्बुलेंस बुलानी पड़ी।
स्प्रे छिड़के जाने के बाद कई सदस्यों असहज महसूस करने लगे और सदन में तुरंत संसद के डाक्टर को बुलाया गया। स्प्रे से अधिक प्रभावित होने वाले कुछ सांसदों को एम्बुलेंस द्वारा राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया।
सत्ताधारी कांग्रेस समेत कई पार्टियों ने मांग की है कि सदन के भीतर उत्पात मचाने वाले सांसदों की सदस्यता रद्द की जाए और इन्हें आपराधिक मामले के तहत गिरफ्तार किया जाए। संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने कहा कि सरकार इन सांसदों की गिरफ्तारी और सदस्यता रद्द करने का प्रस्ताव लेकर आएगी, इस पर फैसला स्पीकर को करना है। सीसीटीवी फुटेज से उपद्रव मचाने वाले सांसदों की पहचान की जा रही है। गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि बिल पेश हो गया है और संसद को शर्मसार करने वाले सांसदों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। मीरा कुमार ने कहा कि संसद में आज जो कुछ भी हुआ वह शर्मसार करने वाला है।
तेलंगाना बिल को लोकसभा पेश में किए जाने के मद्देनजर पहले से ही सदन के भीतर बवाल की आशंका थी। तेलंगाना समर्थन और विरोधी संसद के बाहर सुबह से जमा होने लगे थे। सदस्यों के भारी शोर-शराबे के कारण लोकसभा की कार्यवाही आज 11 बजे शुरू होने के कुछ ही देर बाद दोपहर 12 बजे तक स्थगित कर दी गई। सुबह सदन की कार्यवाही शुरू होते ही सीमांध्र क्षेत्र के कांग्रेस, टीडीपी और वाईएसआर कांग्रेस के सदस्य एकीकृत आंध्र प्रदेश की मांग करते हुए अध्यक्ष के आसन के समीप आ गए। उनके हाथों में तख्तियां थीं, जिन पर लिखा था, 'आंध्र प्रदेश को एक रखें' और 'हम एकीकृत आंध्रा चाहते हैं।' स्पीकर ने सदस्यों से शांत रहने और प्रश्नकाल चलने देने की अपील की और एक प्रश्न को भी लिया, लेकिन सदस्यों का हंगामा जारी रहा। शोर-शराबा थमता नहीं देख अध्यक्ष ने कार्यवाही दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।
दोपहर 12 बजे स्पीकर ने जैसे ही तेलंगाना बिल पेश करने के लिए गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे का नाम लिया। सीमांध्र से जुड़े सांसदों ने हंगामा करना शुरू कर दिया और शिंदे के हाथ से बिल फाड़ने की कोशिश की। भारी अफरातफरी में वेणुगोपाल द्वारा कागज छीने जाने और माइक तोड़े जाने के बीच कांग्रेस के राजगोपाल ने पहले रिपोर्टर टेबल पर रखे बक्से को तोड़ दिया और उसके बाद जेब से स्प्रे निकालकर उसे चारों तरफ छिड़कना शुरू कर दिया, जिससे सदन और उसकी दीर्घाओं में लोग खांसने लगे। हंगामा कर रहे सदस्यों को विभिन्न दलों के सदस्यों ने आकर रोकने का प्रयास किया, लेकिन वे काबू में नहीं आ रहे थे। कई सदस्यों ने राजगोपाल के हाथ को झटककर स्प्रे की बोतल छीनने का प्रयास किया और काफी देर बाद वह उनसे स्प्रे ले पाए।
स्प्रे छिड़कने से सदन में और दर्शक एवं पत्रकार दीर्घाओं में बैठे लोगों को खांसी आनी शुरू हो गई, जिसके कारण ऐंबुलेंस बुलानी पड़ी। स्प्रे से अधिक प्रभावित होने वाले कुछ सांसदों को ऐंबुलेंस द्वारा राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले जाया गया। चाकू निकालने के आरोप का सामना कर रहे वेणुगोपाल ने कहा कि उन्होंने चाकू नहीं निकाला था, बल्कि सिर्फ माइक तोड़ी है। वेणुगोपाल ने कहा कि मैंने सेक्रेटरी जनरल के सामने वाली माइक तोड़ी थी, जिसे चाकू बताया जा रहा है।
गौरतलब है कि इस अभूतपूर्व ड्रामे के बीच कांग्रेस ने अमेरिकी राजदूत नैंसी पावेल के साथ प्रधानमंत्री पद के भाजपा के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की मुलाकात को ज्यादा तरजीह नहीं दी और कहा कि अगर मोदी को अमेरिकी वीजा मिल गया तो उसे कोई दिक्कत नहीं होगी।
विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने सवाल किया, ''अगर उन्हें (मोदी को) वीजा नहीं मिला तो क्या हम जश्न मनाएं? अगर उन्हें वीजा मिल जाता है तो क्या हम अवसाद से ग्रस्त होने जा रहे हैं?''
नैंसी ने गांधीनगर में मोदी से मुलाकात की जिससे भाजपा नेता का अमेरिकी बहिष्कार समाप्त हो गया।
खुर्शीद ने कहा, ''जहां तक उनके :अमेरिका के: राजदूत या किसी अन्य राजनयिक का संबंध है, जैसा हम उनके देश में करते हैं, वे इस देश में गमन करने और सूचना जमा करने के लिए आजाद हैं जिससे उन्हें भारत को, भारतीय राजनीति की गत्यामकता को ज्यादा अच्छे से समझने में मदद मिले ।''
उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि यह अमेरिका पर है कि वह मोदी पर अपना रूख बदले या नहीं बदलें
अमेरिका ने इसपर जोर दिया है कि वीजा के मामले में मोदी पर उसकी नीति नहीं बदली है।
तेलंगाना विरोध के भारी हंगामे के बीच लोकसभा में बुधवार को पेश किए गए अंतरिम रेल बजट में यात्री किराए और माल भाड़े की दरों में किसी तरह का बदलाव नहीं किया गया है। लेकिन 17 प्रीमियम गाड़ियों सहित 72 नई रेलगाड़ियां चलाने की घोषणा की गई। लोकसभा चुनाव में कुछ महीने ही शेष रह जाने के कारण इस बार सरकार ने पूर्ण बजट पेश नहीं किया है।
अलबत्ता चार महीने के लिए 2014-15 का अंतरिम रेल बजट पेश किया गया है। रेल मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे पेश करते हुए कहा कि किराए को तर्कसंगत बनाने के लिए एक रेल भाड़ा प्राधिकरण का गठन किया गया है और एअरलाइन क्षेत्र की तर्ज पर टिकटों की गतिशील कीमतों के विस्तार संबंधी एक प्रस्ताव है। शेष साल का रेल बजट लोकसभा चुनाव के बाद नई सरकार लाएगी।
आने वाले साल में उन्होंने 17 नई प्रीमियम ट्रेनों, 39 एक्सप्रेस ट्रेनों और दस यात्री गाड़ियों को शुरू करने व जम्मू कश्मीर में कटरा से वैष्णोदेवी तक और पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश और मेघालय तक रेल संपर्क मुहैया कराने का भी एलान किया। आंध्र प्रदेश के सांसदों व चार केंद्रीय मंत्रियों के तेलंगाना के मुद्दे पर किए गए हंगामे और नारेबाजी और अशोभनीय व्यवहार के कारण रेल मंत्री अपना बजट भाषण पूरा नहीं कर पाए और उन्हें शेष भाषण बिना पढ़े ही सदन के पटल पर रखना पड़ा।
अंतरिम बजट में देश के सबसे विशाल परिवहन तंत्र के आधुनिकीकरण के प्रयासों के तहत निजी सेक्टर की भागीदारी और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी योजनाओं पर विशेष जोर दिया गया है। रेल मंत्री ने और अधिक संख्या में तेज रफ्तार ट्रेनों की भी घोषणा की और कहा कि मंत्रालय कम लागत वाली 160 से 200 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार वाली कुछ सेमी तेज रफ्तार ट्रेनें चुनिंदा मार्गों पर चलाने की संभावनाएं भी तलाश रहा है। बजट भाषण में यात्री किराए और मालभाड़े में किसी तरह के बदलाव की कोई बात नहीं की गई। खड़गे ने बाद में कहा कि इस मद में किसी तरह की वृद्धि का प्रस्ताव नहीं था।
वार्षिक रेल योजना 64,305 करोड़ रुपए की है जिसमें 30,223 करोड़ रुपए का बजटीय समर्थन है। अग्रिम अल्पावधि आरक्षण के साथ दिल्ली-मुंबई सेक्टर पर चालू की गई प्रीमियम एसी स्पेशल कोच का जिक्र करते हुए खड़गे ने कहा कि राजधानी सेवाओं के तत्काल किराए में ऊपर से अलग-अलग प्रीमियम शामिल हैं। उन्होंने कहा कि रेल सेक्टर में घरेलू निवेशकों से निजी निवेश को आकर्षित करने के अलावा, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश संबंधी एक प्रस्ताव पर सरकार विचार कर रही है ताकि विश्व स्तरीय रेल ढांचा बनाया जा सके।
खड़गे ने बताया कि अभी निजी भागीदारी (पीपीपी) से जिन परियोजनाओं पर रेलवे में काम चल रहा है उनमें रोलिंग स्टॉक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट, रेलवे स्टेशनों का आधुनिकीकरण, मल्टी फंक्शनल काम्प्लेक्स, लोजिस्टिक पार्क, प्राइवेट फ्रेट टर्मिनल, मालवाहक ट्रेनों का संचालन, उदारीकृत वैगन निवेश योजना और डेडिकेटिड फ्रेट कोरिडोर शामिल हैं। रेल मंत्री ने बताया कि मुंबई-अमदाबाद तेज रफ्तार कोरिडोर का पिछले साल दिसंबर में शुरू किया गया संयुक्त व्यवहार्यता अध्ययन 18 महीने में पूरा हो जाएगा। इसका वित्त पोषण रेलवे और जापान इंटरनेशनल कोरपोरेशन एजंसी करेगी।
उन्होंने बताया कि इसी कोरिडोर के लिए फ्रांसीसी रेलवे का शुरू किया गया कारोबार विकास अध्ययन इस साल अप्रैल में पूरा हो जाएगा। किराए और मालभाड़े की दरों को तय करने के लिए सरकार को सलाह देने के मकसद से रेल किराया प्राधिकरण का गठन किए जाने की जानकारी देते हुए खड़गे ने कहा कि किराया दरें अब पर्दे के पीछे की प्रक्रिया नहीं रहेगी। जहां रेलवे और अन्य इस्तेमालकर्ता गुपचुप तरीके से ही झांक सकते थे कि दूसरी ओर क्या हो रहा है।
उन्होंने कहा कि प्राधिकरण न केवल रेलवे की जरूरतों पर विचार करेगा बल्कि नए कीमत निर्धारण की पारदर्शी प्रक्रिया में सभी स्टेक होल्डर को भी शामिल करेगा। रेल बजट प्रस्तावों में पूर्वोत्तर को रेल संपर्क से जोड़े जाने की भी बात की गई है। इसमें चालू वित्त वर्ष में अरुणाचल प्रदेश को भी रेल मानचित्र पर लाया जाएगा और जल्द ही हरमती-नहारलागुन नई रेल लाइन शुरू की जाएगी। जो इसकी राजधानी इटानगर के करीब है। अगले महीने पूरी होने जा रही दुधनोई-मेहंदीपथार रेल लाइन के साथ ही मेघालय भी देश के रेल नक्शे में शामिल हो जाएगा।
The Economic Times updated their cover photo.
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The Economic Times
India Inc gives thumbs up to the interim Rail budget. What about you?http://ow.ly/txNUd
Like · · Share · 3872922 · 23 hours ago ·
BBC Hindi
BBC FACEBOOK INDIA BOL: संसद में तेलंगाना मुद्दे पर कुछ सांसदों ने मिर्च का स्प्रे फेंका और आपस में हाथापाई की. सवाल यह है कि विरोध के इस तरीक़े को आप कहां तक सही मानते हैं? इस तरह के बर्ताव से भारत के लोकतांत्रिक चरित्र पर क्या असर पड़ेगा और दुनिया में भारत की छवि क्या बनेगी? लिखिए अपनी राय
Like · · Share · 8 · 29 seconds ago ·
Ashok Dusadhआशुतोष गुप्ता (पूर्व एंकर ,वर्तमान आम आदमी पार्टी प्रवक्ता ) ने सवाल उठाया की रिलायंस में रहते हुए एल जी ने उनको नाजायज फायदा पहुँचाया इसलिए एलजी रिलायंस का आदमी हैं ,इस तर्क को आगे बढ़ाते हुए आशुतोष से पूछिये मिडिया में रहकर गलत और पूर्वाग्रह पूर्ण रिपोर्टिंग से आआप को फायदा पहुँचाया . दोनों आरोप सही हो तो बेसिक अन्तर क्या है ?
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Abhishek Srivastava, Parmeshwar Das, Vikash Mogha and 19 others like this.
Varun Kumar Jaiswal गुप्ता जी 2011 में पद पर रहते हुए ही
जय जन लोकपाल कर चुके हैं, अब तो
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एक बकवास किताब की रॉयल्टी भी...See More
about an hour ago · Like · 2
Palash Biswas http://antahasthal.blogspot.in/.../delhi-govt-orders-fir...
अंतःस्थल - कविताभूमि: अगर हम आम जनता के खिलाफ एकाधिकारवादी कारपोरेट राज के खिलाफ हैं तो रिला
antahasthal.blogspot.com
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अगर हम आम जनता के खिलाफ एकाधिकारवादी कारपोरेट राज के खिलाफ हैं तो रिलायंस के खिलाफ मुकदमे से हमें क्यों परेशान होना चाहिए?
46 minutes ago · Like · Remove Preview
Ashok Dusadh कोई परेशानी नहीं है Palash Biswas सर ,बस यह पोलिटिकल स्टंट और ड्रामा न हो .
27 minutes ago · Like
Palash Biswas Others are not speaking against Reliance which is the basic cause of oil and gas crisis.
BJP did launch a crusade against Reliance during Indira Rgeime.But they have been keeping silence.
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The left,Ambedkarites and socialist along with all regional parties never did take an initiative.
Everyone is playing dramatic politics.It is all about making fool of the majority people.
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Aam Aaadmi party is no exception.
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It may be a stunt.But it opened the flood gates.
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Why should we stand with anti national corpoaret raj?
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As far as reservation is concerned,mind you, Hindu Rashtra has no plce for equality and social justice.It banks on exclusion all on the name of inclusion and diversity.
Religious nationalism is the real time capital for all political parties.
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Then NGOs do engage themselve to make Namomaya India also.
The tea parties being arranged by NGOs. All social sector plans and projects are executed by NGOs in the centre as well states.
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NGOs led by Hazaare and Kiran Bedi have joined Modi camp.
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Thousands of saffron NGOs including the SALWA judum phenomenon enjoy NGO status and funded by BJP governemnets.
Moreever, all agitions and mass movemenyts are led by NGOs.NGOs already are decisive.
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We have to end the illuminati rule.
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Our people are divided and ruled.We must unite them.It should be our prime agenda.
Meanwhile we should also encash the contradictions exposed in the ruling hegemony.
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The Corporate raj is the regime omnipotent whosoever takes over the helm.
Hence, irrelevant are the dramatic elements and the scientific virtual effect.
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The FIR agaist DEORA andMoil is quite ground breaking.
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Why should we defend these people who continue the sale India in global zionist open market to subject our people for brute racial ethnic cleansing?
We should then demand to lodge FIR againd the ADHAAR Scam and all other companies involved in scams.
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If Kejriwal and party do play a game,the pressure to continue the game is only way to end their game.
Simply,I am against to make way for Modi who identifies with OBC and untouchables.
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It is greater drama and it would be resultatnt in complete mass destruction.
Just be aware.
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It is surprising ,the FIR causes more headache for BJP and Bahujan than the target the CONGRESS antipeople rule of mass destruction and the omnipotent corporate raj.
Why?
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For whom we do stand,please decide.
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a few seconds ago · Like
Highlights of interim railway budget 2014-15
Following are the highlights of the Interim Railway Budget 2014-15 presented in the Lok Sabha by Railway Minister Mallikarjun Kharge
2. No change in passenger fares and freight charges
3. 72 new trains to be introduced: These include 17 premium trains, 38 express trains, 10 passenger trains, 4 MEMU and 3 DEMU
4. Three trains will be extended and frequency of three other trains will be increased
5. Proposed outlay of Rs.64,305 crore with a budgetary support of Rs.30,223 crore
6. Gross traffic receipts targeted at Rs.1,60,775 crore with passenger earnings of Rs.45,255 crore, goods Rs.1,05,770 crore and other coaching and sundry earnings Rs.9,700 crore
7. 19 new lines to be taken up for survey in fiscal 2014-15
8. Surveys for doubling five existing lines will also be taken up during the year
9. Meghalaya and Arunachal Pradesh to be brought on railway map
10. Independent Rail Tariff Authority set up to advice on fares and freight
11. Gross traffic receipts pegged at Rs.1,60,775 crore
12. Working expenses pegged at Rs.1,10,649 crore, which is Rs.13,589 crore higher than the revised estimates for the current fiscal
13. Freight earnings target set at Rs.94,000 crore. Loading target raised to 1,052 million tonnes
14. Services on Udhampur-Katra section to start soon. It will take passengers to the foothills of Vaishno Devi shrine
15. Allowing Foreign Direct Investment (FDI) in railways is under consideration
16. Emphasis on attracting higher investments from private sector
17. Three new factories - Rail Wheel Plant in district Chhapra, Bihar; Rail Coach Factory at Rae Bareli in Uttar Pradesh; and Diesel Component Factory at Dankuni, West Bengal, have become functional and commenced production during 2013-14
18. Operating ratio budgeted at 89.8 percent
19. Fund balances pegged at Rs.12,728 crore
20. Pension outgo budgeted at Rs.27,000 crore in 2014-15 against Rs.24,000 crore in the current fiscal
21. Ordinary working expenses placed at Rs.1,10,649 crore, higher by Rs.13,598 crore from the current financial year
22. An independent Rail Tariff Authority to be set up to advise the government on fixing fares and freight charges
23. State governments of Karnataka, Jharkhand, Maharashtra, Andhra Pradesh, and Haryana have agreed to share cost of several rail projects in their respective areas.
24. Online booking of meals in trains.
Telangana both in Rajya Sabha and Lok Sabha
11.56 am: In Dahisar, a suburb of Mumbai, a group of hundred people led by MNS MLA Pravin Darekar began protesting near Dahisar toll plaza. But nobody was detained from the spot, police said. In Pune, about 25 MNS activists were rounded up by police when they tried to disrupt traffic at Chandani chowk along Pune-Mumbai highway in response to the 'rasta-roko'. Tyres of some heavy vehicles were deflated by the party workers, led by former MNS corporator Rajabhau Gorde, in the demonstration at Chandani chowk
11.50 am: Undeterred by the notice, Thackeray, whose supporters vandalised scores of toll plazas across the state over the last fortnight, said traffic on the state highways was stopped from 9 am
11.37 am: Raj Thackeray, who left his home in Dadar in central Mumbai at about 10 am, was stopped in Chembur and arrested by police while he was heading towards the Vashi toll booth. He had planned to lead the road blockade at the Vashi toll plaza. According to police, Raj was taken in a police van along with his party workers
11.22 am: Security has also been beefed up at the 145 toll collection booths across the state. In the past few weeks, activists purportedly of the MNS vandalized several toll booths in places like Kolhapur, Thane, Mumbai, Aurangabad and Pune. The latest round of anti-toll agitation started Jan 26 at a Navi Mumbai rally when Raj Thackeray urged people not to pay toll and last Sunday he announced the state-wide road blockade programme in Pune
11.11 am: Preparing for a defiant MNS, the police and the government machinery was geared up to handle the road blocks with security personnel deployed at sensitive locations, major roads, highways, junctions and entry-exit points to cities like Mumbai, Pune, Thane, Aurangabad, Nagpur and others
Satya Narayan
हिन्दुत्ववादी आतंकवादी असीमानन्द का साक्षात्कार भारत सरकार के आतंकवाद-विरोधी कानूनी प्रावधानों के हिसाब से भी मोहन भागवत को सलाखों के पीछे कर देने के लिए काफी है। फोरेंसिक जाँच से साक्षात्कार के टेप की प्रामाणिकता दो दिनों के भीतर जाँची जा सकती है। यदि टेप सही है तो तत्काल मोहन भागवत को भी जेल में डालकर असीमानन्द का सहअभियुक्त बनाइये, नहीं तो उक्त पत्रकार और 'कारवां' पत्रिका पर धोखाधड़ी का मुकदमा चलाइये। पर यह सरकार ऐसा कुछ भी नहीं करेगी। कारण एकदम साफ है।
भाजपा से चुनावी लड़ाई लड़ने में कांग्रेस और अन्य बुर्ज़ुआ संसदीय पार्टियाँ साम्प्रदायिकता की राजनीति को दो-चार गाली देते रहने का अनुष्ठान भले कर लें, इनमें से किसी में हिन्दुत्ववादी फासीवाद के विरुद्ध कठोर और फैसलाकुन कदम उठाने का दम नहीं है। किसी बुर्ज़ुआ संसदीय पार्टी से या बुर्ज़ुआ सत्ता से खासकर भारत जैसे सीमित चौहद्दी के बुर्ज़ुआ जनवाद वाले देश में फासीवाद के विरुद्ध निर्णायक या कठोर कदम की अपेक्षा नहीं की जा सकती। वैसे भी आज भारत जैसे देशों में राज्यसत्ता के व्यवहार में और सामाजिक ताने-बाने में बुर्ज़ुआ जनवाद और फासीवाद के बीच का फासला बहुत कम हो गया है।
भारतीय राज्यसत्ता या किसी भी बुर्ज़ुआ संसदीय पार्टी का चरित्र सच्चे अर्थों में सेक्युलर कभी नहीं रहा। बहुमतवाद (मेजारिटेरियनिज़्म) का शिकार कांग्रेस भी रही है। नरम केसरिया लाइन कांग्रेस भी अपनाती रही है। आर.एस.एस. से प्रतिबंध हटाना, रामजन्मभूमि का विवाद पैदा होने देना, फिर ताला खुलवाना और फिर उन्मादी फासिस्ट भीड़ द्वारा बाबरी मस्जिद का ध्वंस होने देना -- यह सब ''श्रेय'' तो कांग्रेसी सरकारों को ही जाता है। दंगों की चुनावी फसल सभी बुर्ज़ुआ पार्टियाँ काटती रही हैं। जो क्षेत्रीय पार्टियाँ जातिगत वोट बैंक के आधार पर खड़ी हैं, वे कभी भी साम्प्रदायिक फासीवाद की आमूलगामी विरोधी नहीं हो सकतीं, क्योंकि जातिवाद और साम्प्रदायिकता का आपस में जटिल बहुपरती सम्बन्ध है। इसलिए संसदीय राजनीति के दायरे में एक-दूसरे से चुनावी युद्ध से आगे जाकर, कोई भी कथित सेक्युलर पार्टी सरकार में आये, वह हिन्दुत्ववादी फासिस्टों के विरुद्ध कोई कठोर फैसलाकुन कदम नहीं उठा सकती। कोई भी भाजपा विरोधी गठबंधन सत्ता में आये, प्रचुर दस्तावेजी प्रमाणों के बावजूद न तो मोहन भागवत न ही हिंदुत्ववादी फासिस्टों का कोई सरगना जेल जायेगा, न ही आर.एस.एस. पर प्रतिबंध लगेगा।
वैसे भी संसद या राज्यसत्ता के बूते फासीवाद को शिकस्त नहीं दी जा सकती। फासीवाद को शिकस्त उसे कुचल कर ही दी जा सकती है और केवल संगठित मज़दूर वर्ग के नेतृत्व में व्यापक मेहनतकशों का संयुक्त मोर्चा ही फासीवाद को धूल चटा सकता है। जबतक मेहनतकश फासिस्टों को नहीं कुचलेंगे, तबतक फासिस्ट मेहनतकशों को कुचलने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगे। यह सच चाहे जितना भीषण और चुनौतीपूर्ण हो, यही ऐतिहासिक सच है।
Mass Layoffs Hit North America, Europe And Japan
By Kate Randall
http://www.countercurrents.org/randall070214.htm
A wave of layoff announcements over the past week has exposed the reality of the economic "recovery" touted by the Obama administration and governments worldwide. Deep-going job cuts are hitting the manufacturing, pharmaceutical, technology and retail sectors across North America, Europe and Japan
Lifting The Siege Of Yarmouk One Food Parcel & One Polio Vaccination At A Time
By Franklin Lamb
http://www.countercurrents.org/lamb070214.htm
Up to this morning, approximately 5,300 food parcels have been allowed into Yarmouk or an average of 800-1,000 food packages daily. Aid has been entering sporadically and sometimes chaotically, with perceptible but slight increases over the past week
Fukushima's Future
By Bob Stilger
http://www.countercurrents.org/stilger070214.htm
When communities are devastated by disasters like earthquakes and nuclear explosions, how can they recover? In Fukushima, Japan, transformation may be the only option
Oily Hijack: Corporate Hegemony And The Keystone Pipeline EIS
By Joanne Knight
http://www.countercurrents.org/knight070214.htm
The oil industry has corrupted the Keystone XL environmental assessment process just as it has hijacked the climate change debate and interfered with action on climate change. Reading the Department of State Environmental Impact Statement, it is clear whose interests are served by this report. The confluence of arguments presented in the report with the arguments of the American Petroleum Institute is stunning. Environment Resource Management, the company contracted to produce the report, is being investigated by the Department of State for conflict of interest in producing the EIS
Moving Beyond The Corporate Vision Of Sustainability
By Rajesh Makwana
http://www.countercurrents.org/makwana070214.htm
In light of ongoing global negotiations on pressing environmental issues, it's time for efforts to curtail the excessive influence of multinational corporations over public policy to be strengthened and scaled up at all levels – especially at the United Nations
The Deceptions And Falsehoods Of The GMO Lobby:
Acquiesce Or Europe Will Become " Museum of World Farming"
By Colin Todhunter
http://www.countercurrents.org/todhunter070214.htm
British Environment Secretary Owen Paterson is a staunch supporter of the GMO sector. Despite mounting evidence pointing to the deleterious health, social, ecological and environmental impacts of GMOs, Paterson has a blind spot that lets him ignore reality and allows him to lend unconditional support to the biotech conglomerates, the very concerns that regard Europe as a massive potential cash cow from which their GM crops have till now mostly been barred or restricted. Paterson recently told the Oxford Farming Conference that Europe is likely to become "the museum of world farming" because of its failure to embrace genetically modified crops
Mass Graves Discovery Gives A New Twist To The Issue Of Baloch Missing Persons
By Abdus Sattar Ghazali
http://www.countercurrents.org/ghazali070214.htm
Discovery of three mass graves in Khuzdar has given a new twist to the issue of the missing persons in Pakistan's Balochistan province. The Deputy Commissioner of Khuzdar Abdul Waheed Shah on Tuesday confirmed the discovery of the three mass graves
U.S. Continues War by Proxy: Playing the Al-Qaeda Card to the Last Iraqi
By Nicola Nasser
Global Research, February 12, 2014
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International, regional and internal players vying for interests, wealth, power or influence are all beneficiaries of the "al-Qaeda threat" in Iraq and in spite of their deadly and bloody competitions they agree only on two denominators, namely that the presence of the U.S.-installed and Iran–supported sectarian government in Baghdad and its sectarian al-Qaeda antithesis are the necessary casus belli for their proxy wars, which are tearing apart the social fabric of the Iraqi society, disintegrating the national unity of Iraq and bleeding its population to the last Iraqi.
The Iraqi people seem a passive player, paying in their blood for all this Machiavellian dirty politics. The war which the U.S. unleashed by its invasion of Iraq in 2003 undoubtedly continues and the bleeding of the Iraqi people continues as well.
According to the UN Assistance Mission to Iraq , 34452 Iraqis were killed since 2008 and more than ten thousand were killed in 2013 during which suicide bombings more than tripled according to the U.S. Deputy Assistant Secretary of State Brett McGurk's recent testimony before the House Committee on Foreign Affairs. The AFP reported that more than one thousand Iraqis were killed in last January. The UN refugee agency UNHCR, citing Iraqi government figures, says that more than 140,000 Iraqis have already been displaced from Iraq 's western province of Anbar .
Both the United States and Russia are now supplying Iraq with multi–billion arms sales to empower the sectarian government in Baghdad to defeat the sectarian "al-Qaeda threat." They see a casus belli in al–Qaeda to regain a lost ground in Iraq, the first to rebalance its influence against Iran in a country where it had paid a heavy price in human souls and taxpayer money only for Iran to reap the exploits of its invasion of 2003 while the second could not close an opened Iraqi window of opportunity to re-enter the country as an exporter of arms who used to be the major supplier of weaponry to the Iraqi military before the U.S. invasion.
Regionally, Iraq's ambassador to Iran Muhammad Majid al-Sheikh announced earlier this month that Baghdad has signed an agreement with Tehran "to purchase weapons and military equipment;" Iraqi Defense Minister Saadoun al-Dulaimi signed a memorandum of understanding to strengthen defense and security agreements with Iran last September.
Meanwhile Syria , which is totally preoccupied with fighting a three –year old wide spread terrorist insurgency within its borders, could not but coordinate defense with the Iraq military against the common enemy of the "al-Qaeda threat" in both countries.
Counterbalancing politically and militarily, Turkey and the GCC countries led by Qatar and Saudi Arabia, in their anti-Iran proxy wars in Iraq and Syria, are pouring billions of petrodollars to empower a sectarian counterbalance by money, arms and political support, which end up empowering al–Qaeda indirectly or its sectarian allies directly, thus perpetuating the war and fueling the sectarian strife in Iraq, as a part of an unabated effort to contain Iran's expanding regional sphere of influence.
Ironically, the Turkish member of the U.S.–led NATO as well as the GCC Arab NATO non–member "partners" seem to stand on the opposite side with their U.S. strategic ally in the Iraqi war in this tragic drama of Machiavellian dirty politics.
Internally, the three major partners in the "political process" are no less Machiavellian in their exploiting of the al-Qaeda card. The self–ruled northern Iraqi Kurdistan region, which counts down for the right timing for secession, could not be but happy with the preoccupation of the central government in Baghdad with the "al–Qaeda threat." Pro-Iran Shiite sectarian parties and militias use this threat to strengthen their sectarian bond and justify their loyalty to Iran as their protector. Their Sunni sectarian rivals are using the threat to promote themselves as the "alternative" to al-Qaeda in representing the Sunnis and to justify their seeking financial, political and paramilitary support from the U.S. , GCC and Turkey , allegedly to counter the pro-Iran sectarian government in Baghdad as well as the expanding Iranian influence in Iraq and the region.
Exploiting his partners' inter-fighting, Iraqi two–term Prime Minister Nouri (or Jawad) Al-Maliki, has maneuvered to win a constitutional interpretation allowing him to run for a third term and, to reinforce his one-man show of governance, he was in Washington D.C. last November, then in Tehran the next December, seeking military "help" against the "al-Qaeda threat" and he got it.
U.S. Continues War by Proxy
U.S. Secretary of State John Kerry has pledged to support al-Maliki's military offensive against al–Qaeda and its offshoot the Islamic State of Iraq and the Levant (ISIL).
24 Apache helicopter with rockets and other equipment connected to them, 175 Hellfire air-to-ground missiles, ScanEagle and Raven reconnaissance drones have either already been delivered or pending delivery, among a $4.7 billion worth of military equipment, including F-16 fighters. James Jeffrey reported in Foreign Policy last Monday that President Barak Obama's administration is "increasing intelligence and operational cooperation with the Iraqi government." The French Le Figaro reported early this week that "hundreds" of U.S. security personnel will return to Iraq to train Iraqis on using these weapons to confirm what the Pentagon spokesman, Army Col. Steve Warren, did not rule out on last January 17 when he said that "we are in continuing discussions about how we can improve the Iraqi military."
Kerry ruled out sending "American boots" on the Iraqi ground; obviously he meant "Pentagon boots," but not the Pentagon–contracted boots.
The Wall Street Journal (WSJ) online on this February 3 reported that the " U.S. military support there relies increasingly on the presence of contractors." It described this strategy as "the strategic deployment of defense contractors in Iraq ." Citing State Department and Pentagon figures, the WSJ reported, "As of January 2013, the U.S. had more than 12,500 contractors in Iraq ," including some 5,000 contractors supporting the American diplomatic mission in Iraq , the largest in the world.
It is obvious that the U.S. administration is continuing its war on Iraq by the Iraqi ruling proxies who had been left behind when the American combat mission was ended in December 2011. The administration is highlighting the "al-Qaeda threat" as casus belli as cited Brett McGurk's testimony before the House Foreign Affairs Committee on this February 8.
The Machiavellian support from Iran , Syria and Russia might for a while misleadingly portray al-Maliky's government as anti – American, but it could not cover up the fact that it was essentially installed by the U.S. foreign military invasion and is still bound by a "strategic agreement" with the United States .
Political System Unfixable
However the new U.S. "surge" in "operational cooperation with the Iraqi government" will most likely not succeed in fixing "Iraq's shattered political system," which "our forces were unable to fix ... even when they were in Iraq in large numbers," according to Christopher A. Preble, writing in Cato Institute online on last January 23.
"Sending David Petraeus and Ambassador (Ryan) Crocker back" to Iraq , as suggested by U.S. Sen. John McCain to CNN's "State of the Union " last January 12 was a disparate wishful thinking.
" Iraq 's shattered political system" is the legitimate product of the U.S.–engineered "political process" based on sectarian and ethnic fragmentation of the geopolitical national unity of the country. Highlighting the "al-Qaeda threat" can no more cover up the fact that the "political process" is a failure that cannot be "fixed" militarily.
Writing in Foreign Policy on this February 10, James Jeffrey said that the "United States tried to transform Iraq into a model Western-style democracy," but "the U.S. experience in the Middle East came to resemble its long war in Vietnam."
The sectarian U.S. proxy government in Baghdad , which has developed into an authoritarian regime, remains the bedrock of the U.S. strategic failure. The "al-Qaeda threat" is only the expected sectarian antithesis; it is a byproduct that will disappear with the collapse of the sectarian "political process."
Iraq is now "on the edge of the abyss," director of Middle East Studies at the Royal United Services Institute (RUSI), professor Gareth Stansfield, wrote on this February 3. This situation is "being laid at the door of Prime Minister Nouri al-Maliki," who "is now portrayed as a divisive figure," he said.
In their report titled "Iraq in Crisis" and published by the Center for Strategic and International Studies (CSIS) on last January 24, Anthony H. Cordesman and Sam Khazai said that the "cause of Iraq's current violence" is "its failed politics and system of governance," adding that the Iraqi "election in 2010 divided the nation rather than create any form of stable democracy."
On the background of the current status quo, Iraq's next round of elections, scheduled for next April 30, is expected to fare worse. Writing in Al-Ahram Weekly last August 14, Salah Nasrawi said that more than 10 years after the U.S. invasion, "the much-trumpeted Iraqi democracy is a mirage." He was vindicated by none other than the Iraqi Speaker of the parliament Osama Al Nujaifi who was quoted by the Gulf News on last January 25 as saying during his latest visit to U.S.: "What we have now is a facade of a democracy — superficial — but on the inside it's total chaos."
Popular Uprising, not al-Qaeda
Al-Maliki's government on this February 8 issued a one week ultimatum to what the governor of Anbar described as the "criminals" who "have kidnapped Fallujah" for more than a month, but Ross Caputi, a veteran U.S. Marine who participated in the second U.S. siege of Fallujah in 2004, in an open letter to U.S. Secretary Kerry published by the Global Research last Monday, said that "the current violence in Fallujah has been misrepresented in the media."
"The Iraqi government has not been attacking al Qaeda in Fallujah," he said, adding that Al-Maliki's government "is not a regime the U.S. should be sending weapons to." For this purpose Caputi attached a petition with 11,610 signatures. He described what is happening in the western Iraqi city as a "popular uprising."
Embracing the same strategy the Americans used in 2007, Iran and U.S. Iraqi proxies have now joined forces against a "popular uprising" that Fallujah has just become only a symbol. Misleadingly pronouncing al-Qaeda as their target, the pro-Iran sectarian and the pro-U.S. so-called "Awakening" tribal militias have revived their 2007 alliance.
The Washington Post on this February 9 reported that the "Shiite militias" have begun "to remobilize," including The Badr Organization, Kataib Hezbollah and the Mahdi Army; it quoted a commander of one such militia, namely Asaib Ahl al-Haq, as admitting to "targeted" extrajudicial "killings."
This unholy alliance is the ideal recipe for fueling the sectarian divide and inviting a sectarian retaliation in the name of fighting al-Qaeda; the likely bloody prospects vindicate Cordesman and Khazai's conclusion that Iraq is now "a nation in crisis bordering on civil war."
Al – Qaeda is real and a terrorist threat, but like the sectarian U.S.-installed government in Baghdad , it was a new comer brought into Iraq by or because of the invading U.S. troops and most likely it would last as long as its sectarian antithesis lives on in Baghdad 's so–called "Green Zone."
"Al-Maliki has more than once termed the various fights and stand-offs" in Iraq "as a fight against "al Qaeda", but it's not that simple," Michael Holmes wrote in CNN on last January 15. The "Sunni sense of being under the heel of a sectarian government ... has nothing to do with al Qaeda and won't evaporate once" it is forced out of Iraq , Holmes concluded.
A week earlier, analyst Charles Lister, writing to CNN, concluded that "al Qaeda" was being used as a political tool" by al–Maliki, who "has adopted sharply sectarian rhetoric when referring to Sunni elements ... as inherently connected to al Qaeda, with no substantive evidence to back these claims."
Al–Qaeda not the Only Force
"Al–Qaeda is "not the only force on the ground in Fallujah, where "defected local police personnel and armed tribesmen opposed to the federal government ... represent the superior force," Lister added.
The Washington-based Centre for Strategic and International Studies (CSIS) had reported that the "Iraqi insurgency" is composed of at least a dozen major organizations and perhaps as many as 40 distinct groups with an estimated less than 10% non-Iraqi foreign insurgents. It is noteworthy that all those who are playing the "al-Qaeda threat" card are in consensus on blacking out the role of these movements.
Prominent among them is the Jaysh Rijal al-Tariq al-Naqshabandi (JRTN) movement, which announced its establishment after Saddam Hussein's execution on December 30, 2006. It is the backbone of the Higher Command for Jihad and Liberation (HCJL), which was formed in October the following year as a coalition of more than thirty national "resistance" movements. The National, Pan-Arab and Islamic front (NAIF) is the Higher Command's political wing. Saddam's deputy, Izzat Ibrahim al-Duri, is the leader of JRTN, HCJL and NAIF as well as the banned Baath party.
"Since 2009, the movement has gained significant strength" because of its "commitment to restrict attacks to "the unbeliever-occupier," according to Michael Knights, writing to the Combating Terrorism Center (CTC) on July1, 2011. "We absolutely forbid killing or fighting any Iraqi in all the agent state apparatus of the army, the police, the awakening, and the administration, except in self-defense situations, and if some agents and spies in these apparatus tried to confront the resistance," al-Duri stated in 2009, thus extricating his movement from the terrorist atrocities of al-Qaeda, which has drowned the Iraqi people in a bloodbath of daily suicide bombings.
The majority of these organizations and groups are indigenous national anti-U.S. resistance movements. Even the ISIL, which broke out recently with al-Qaeda, is led and manned mostly by Iraqis. Playing al-Qaeda card is a smokescreen to downplay their role as the backbone of the national opposition to the U.S.-installed sectarian proxy government in Baghdad 's green Zone. Their Islamic rhetoric is their common language with their religious people.
Since the end of the U.S. combat mission in the country in December 2011, they resorted to popular peaceful protests across Iraq . Late last December al-Maliki dismantled by force their major camp of protests near Ramadi, the capital of the western province of Anbar . Protesting armed men immediately took over Fallujah and Ramadi.
Since then, more than 45 tribal "military councils" were announced in all the governorates of Iraq . They held a national conference in January, which elected the "General Political Council of the Guerrillas of Iraq." Coverage of the news and "guerrilla" activities of these councils by Al-Duri's media outlets is enough indication of the linkage between them and his organizational structure.
No doubt revolution is brewing and boiling in Iraq against the sectarian government in Baghdad , its U.S. and Iranian supporters as well as against its al-Qaeda sectarian antithesis.
Nicola Nasser is a veteran Arab journalist based in Bir Zeit, West Bank of the Israeli-occupied Palestinian territories.nassernicola@ymail.com
Copyright © 2014 Global Research
How NaMo Has 'Disappeared' Untouchability In Gujarat ?
By Subhash Gatade
12 February, 2014
Countercurrents.org
I.
It is a story attributed to a famous Saint from Middle Ages - a votary of the idea of Brahma Satya, Jagat Mithya (Brahma is the Only Truth, Rest is All Illusion). Once this gentleman was walking with his Shishya (disciple) on a road and suddenly a elephant appeared from nowhere and rushed towards this duo. Abruptly ending his discussion on Maya (illusion) the Guru instructed his Shishya to just run away to save himself. When both of them were at a safe place, the exasperated Shishya asked the Guru, why the Guru asked him to run knowing well that everything else is an 'illusion'. Without winkling his eyelid the Guru said ' Gajopi Mithya, Palayanopi Mithya' (The elephant was also an illusion and our running away was also an illusion).
One does not know whether the famous sage had visited Gujarat or not but his influence seems palpable there at least among the ruling elite. If the Guru could 'invisibilise' the elephant calling it an illusion, here in Gujarat an age old problem like untouchability could be similarly 'disappeared' by terming it a matter of 'perception'.
Appears unbelievable?
Perhaps you can have a look at a Gujarat government sponsored report titled "Impact of Caste Discrimination and Distinctions on Equal Opportunities: A Study of Gujarat", authored by Centre for Environment Planning and Technology University (CEPT) University scholars led by Prof R Parthasarathy, which calls caste discrimination a matter of "perceptions".
II.
In his blog 'True Lies' senior journalist Rajiv Shah (http://blogs.timesofindia.indiatimes.com/true-lies/entry/untouchability-and-modi-s-babus) has provided detailed critique of this study.
To put in a nutshell this CEPT report is a governmental response to an exhaustive study titled 'Understanding Untouchability' done by Ahmedabad based NGO 'Navsarjan Trust' with the help of Robert F Kennedy Center for Justice and Human Rights. (2009) which demonstrated with concrete data the wide prevalence of untouchability both in public and private spheres in interaction between scheduled castes (SCs) and non-scheduled castes (non-SCs), as well as within SCs: among the several jatis in rural Gujarat. This report covered around 1,600 villages in Gujarat, did complete survey of these villages based on few parameters ranging from temple entry to the use of common well, and similar other factors. According to 'Navsarjan' out of the villages covered 98 per cent still practised untouchability.
It is important to note that the results of the Navsarjan study were widely covered by the media e.g. Times of India carried out stories based on the study for three days ['No Temple Entry for Dalits in Gujarat' (December 7, 2009), 'Vibrant Gujarat? 98% Dalits have to Drink Tea in Separate Cups' (December 8, 2009), and 'Dalit Kids Shamed at Mid-day Meals' (December 9, 2009)]. The media also raised questions on the state government's tall claim of a 'vibrant Gujarat'. A Gujarati version of the report 'Aabhadchhet ni Bhal' was also published for wider circulation.
Although it was not a first study of its kind, looking at the comprehensive nature of the work undertaken the Gujarat Government could have accepted its findings or at least looked at it more sympathetically. Perhaps it could have been taken up as a wake-up call so that the tremendous hiatus between all talk of ' Swarnim Gujarat' and the actual situation on the ground could have become more explicit prompting the government as well as members of civil society to take up sincere efforts to ameliorate the situation.
We can see that things did not move the way any sane and just person would have imagined.
Looking at the fact that the ongoing debate had the potential of putting a spanner in the well cultivated image of a Samras(harmonious) Gujarat under Modi, a panicky government asked CEPT to review and verify Navsarjan's findings. In fact, the government seemed so keen to give a clean chit to itself that it adopted a two pronged approach to tackle the uncomfortable situation in which it found itself. Apart from commissioning the above mentioned study it constituted a committee under the chairmanship of the then minister for social justice, Fakirbhai Vaghela and secretaries of different concerned departments to refute the findings of the report. The government instructed its officers to get affidavits from scheduled caste village residents regarding non-existence of untouchability.
Commenting on the report Rajiv Shah says that
"[t]he nearly 300-page report, ..far from being a review of "Understanding Untouchability", is more of an effort to justify the evil practice."
As opposed to the survey of 1,589 villages done by Navsarjan, the CEPT team was made to survey just five villages, dig out a plethora of caste-wise data on agriculture, irrigation, employment and distribution of government schemes but were instructed not to collect any data on ""caste discrimination" - a term used by them in lieu of untouchability. Rajiv Shah has also provided details of the fight activists had to wage to get a copy of this government report. All their pleas to get a copy of the said report were trashed on trivial grounds like revealing facts on untouchability would lead to "a sharp rise in the incidence of enmity in the rural areas" or would "create "possibilities of hurdles in the process of dialogue between different castes" and harm "homogenous atmosphere". Ultimately the Gujarat Information Commissioner had to intervene so that activists could get a copy of the same.
The reluctance of the scholars to even mention the U(ntouchability) word can be gauged from the observations made by leading sociologist Ghanshyam Shah as well, who has also written a critique of the CEPT report 'Understanding or ignoring untouchability? How Gujarat government-sponsored study examines discrimination in a 'very casual way'' (in www.counterview.org, Nov 13, 2013) :
..[i]n the scholars' view (and that of the government) there is nothing wrong if the Dalits are forced to carry own vessels or are made to be served at fag end of the festivity. In fact, if the scholars are to be believed, Dalit elders advise the "younger ones" not to participate in village festivals like Navratri or Garba, celebrated in other localities, "for fear of possible quarrel with non-Dalits." The youth agree in order to maintain social peace and order. To quote from the report, "Those Dalit youth who go there, do so as spectators and not participate in Garba…"
He also adds :
"CEPT has completely ignored to study the practice of untouchability. Perhaps for them like the Government of Gujarat it is a non-issue. And, they have carried out mainly a socio-economic survey in five villages. The authors do not feel the need to argue why they have confined their study to socio-economic survey. Why have they not correlated socio-economic data with the presence or absence of untouchability?"
Leading scholars who supervised the study are expected to at least know discussion on discrimination (article 15 of the Constitution which prohibits discrimination on the grounds of religion, race, caste, sex, place of birth, or any of them) does not cover the issue of untouchability ( Constitution has a separate Article 17 dealing with the practice of untouchability, declaring such practice as an offence punishable by the law) and their limiting themselves to just socio-economic survey and some superficial discussion on discrimination conveys a clear message that unwittingly or so they have maintained a silence over a blatant fact of lives of millions of people which is also understood as 'apartheid of another kind'.
While the CEPT experts could not discover untouchability in the five villages covered, the Navsarjan team which toured these villages in June 2013 found how the dalits live under subjugation and a state of helplessness as they know that the government would not protect them if they assert for their rights. Ghanshyam Shah adds:
The CEPT study has failed to observe that in all these villages, it is obligatory for the Chamars and Valmikis to carry corpses of dead animals. In two villages Valmikis are not allowed to take water from the village well. They have to wait for others to pour water in their pots. In one village, SC members perceive that they experience discrimination in village panchayat and school. I wonder why Parthasarathy's team has ignored these spheres.
In fact, an important omission from the CEPT report is that of Valmikis themselves, who are considered lowest in the social ladder under a Varna cracy. As opposed to these worst victims of untouchability, the report focuses on the Vankars, a "socially acceptable" Dalit community, a weaving class.
The omission of Valmikis in a report commissioned by the government cannot be considered inadvertent. Their still remaining confined largely to the work of sweeping and cleaning ; collecting and handling dust, garbage and filth of the cities, towns and villages to make them livable for other dwellers and in the process facing daily humiliations and even deaths by 'accidents' or getting afflicted with occupational diseases is a reality which cannot be ignored anymore. Perhaps the scholars might have felt that their sheer presence in a governmental report was anachronous to the media propelled image of 'a best-governed state, occupying number one position in the country on 'development''.
And this is not the first time that the powers that be have tried to 'obliterate' the Valmikis out of their existence. Ghanshyam Shah tells us that
"..state government filed an affidavit before the Supreme Court in 2003 claiming there was no manual scavenging in Gujarat. This was despite the published evidences documented by Praful Trivedi[Gujaratni kashtakatha, Mathe melu Uchkavani Pratha. Ahmedabad: Janpath Prakashan, 1996.] as well as by Mari Mareel Thekaekara[Endless Fifth: The Saga of the Bhangis. Bangalore: Books for Change, 1999.] and documentary film 'Lesser Human' by K. Stalin. The government reiterated its stand in 2007 in response to a study by the Tata Institute of Social Sciences, which identified 12,000 manual scavengers in Gujarat]. In fact, the study was sponsored by the Gujarat Safai Kamdar Vikas Nigam (GSKVN), a Government of Gujarat Undertaking." (-do-)
Perhaps this omission could be also because of the way Narendra Modi, looks at this occupation, which finds mention in his book 'Karmyog' where he calls it as some kind of "spiritual experience".
Not very people know that it was the year 2007 when collection of Narendra Modi's speeches to IAS officials at various points of time were compiled in a book form named 'Karmyog' and were published by the Gujarat government. Gujarat State Petroleum Corporation, a top ranking PSU was roped in to fund 5,000 copies of the book. (http://blogs.timesofindia.indiatimes.com/true-lies/entry/modi-s-spiritual-potion-to-woo-karmayogis). Sample one of his speech, where talking about the Safai Kamdars Modi exhorts:
"I do not believe that they have been doing this job just to sustain their livelihood. Had this been so, they would not have continued with this type of job generation after generation….At some point of time, somebody must have got the enlightenment that it is their (Valmikis') duty to work for the happiness of the entire society and the Gods; that they have to do this job bestowed upon them by Gods; and that this job of cleaning up should continue as an internal spiritual activity for centuries. This should have continued generation after generation. It is impossible to believe that their ancestors did not have the choice of adopting any other work or business." (Page 48-49, Karmyog)
Later Modi's remark got published in the Times of India in mid-November 2007, which were translated and republished in few Tamil newspapers. There was a massive reaction of Dalits in Tamil Nadu for calling their menial job "spiritual experience". Modi's effigies were burnt in different parts of the state. Sensing trouble Modi immediately withdrew 5,000 copies of the book, but still sticked to his opinion. Two years later, addressing 9,000-odd safai karmacharis, (cleanliness workers) he likened the safai karmacharis' job of cleaning up others dirt' to that of a temple priest. He told them,
"A priest cleans a temple every day before prayers, you also clean the city like a temple. You and the temple priest work alike."
III .
With custodians of the state themselves having such regressive understanding it is not difficult to understand why untouchability is widely prevalent in Gujarat. While the Scheduled Caste and Scheduled Tribe (Prevention of Atrocities) Act, mandates a special court and a special public prosecutor to deal with atrocity cases, but the state government says that it does not have any money for this.
The 23-page confidential report of the social justice and empowerment department (SJED) of Gujarat government submitted to state chief secretary and legal department in year 2005 revealed a shocking conclusion: The rate of conviction of cases under the prevention of atrocity act is in Gujarat is an appalling 2.5 percent, while the rate of acquittal is around 97.5. (Express 15 September 2006)
In fact a detailed and systematic study of 400 judgements done by Vajibhai Patel, Secretary of Council for Social Justice compelled the government to work on this 23 page report. This report tells us that utterly negligent police investigation at both the higher and lower levels coupled with a distinctly hostile role played by the public prosecutors is the main reason for the collapse of cases filed under the atrocities act. It is worth noting that he has meticulously documented these judgments delivered under this act since April 1, 1995 in the Special Atrocity Courts set up in 16 districts of the state. The study also blasts the common perception is that the inefficacy of this law is due to false complaints being lodged or compromises between the parties, in actuality it is a complicit State that has rendered the Act toothless.
Under The Scheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act, 1989, it is the duty of District Superintendent of Police (DSP) to appoint an officer not below the rank of DySP as an investigating officer for the offenses registered under the same act.
On 16 April, 2004, a question was asked to chief minister Modi in Gujarat legislative assembly:
"Honorable chief minister [Home] may oblige us to tell, is it true that the DSP is responsible for the appointment of an officer not below the rank of DySP as investigating officer in the offenses under atrocities act? The answer of our chief minister was shocking. He said: "No, but there is a provision under rule 7 (1) of SC/ST act, 1995 to appoint officers not above the rank of DySP to inquire into all cases booked under atrocities act. It is not the responsibility of DSP."
Raju Solanki, a leading Dalit poet and human rights activist comments
"The officer not above the rank of DySP" means he may be a PSI or PI and in most of the atrocities cases courts acquit the accused because the investigation officer is either PSI or PI.
And he concludes
" ..Gujarat is pioneer in many things: Navnirman movement (1975), Anti-reservation agitation (1981), and state-sponsored genocide of minorities (2002). Now, Gujarat has earned one more distinction in maiming, defacing and disfiguring The Atrocities Act."
IV.
There are some protagonists of Hinduism who say that Hinduism is a very adaptable religion, that it can adjust itself to everything and absorb anything. I do not think many people would regard such a capacity in a religion as a virtue to be proud of, just as no one would think highly of a child because it has developed the capacity to eat dung, and digest it. But that is another matter. It is quite true that Hinduism can adjust itself... can absorb many things. The beef-eating Hinduism (or strictly speaking Brahminism which is the proper name of Hinduism in its earlier stage) absorbed the non-violence theory of Buddhism and became a religion of vegetarianism. But there is one thing which Hinduism has never been able to do – namely to adjust itself to absorb the Untouchables or to remove the bar of Untouchability.
- Ambedkar
'Invisiblising' of dalits is a continuous process which gets bolstered through caste ridden state institutions.
The case of Nathu Vadla, a small village with hardly 1000 population was much in news during Panchayat Elections held some time back. The elections were to be held on the basis of 2001 data. Although the population of Dalits in the village was at least 100 and one seat was to be reserved for them, since the census data was not modified, the government had decided to hold the elections on the basis of 2001 census itself, when the SC population was nil. Gujarat High Court had to intervene and stay the elections in the village saying that it is 'mockery of democracy'.
The question of no land even for burials rarely gets discussed. A report carried by 'Mail Today' in the first week of Feb, 2009 had thrown light on the issue. It tells us that dalits are not allowed to use common burial grounds and are often forced to use a part of waste land near the villages as burial grounds. Absence of any legal entitlement forces them to be pushed out of such lands by dominant upper castes.
A survey conducted by Gujarat Rajya Grampanchayat Samajik Nyay Samiti Manch found out that '[o]ut of 657 villages in Gujarat, 397 villages do not have any designated land allotted for burial for dalits. Out of the 260 villages where land has been formally allotted, 94 have seen encroachments by the dominant castes and in 26 villages it is a low-lying area and therefore the ground gets waterlogged.
It would not be an exaggeration to say that when the question of burying the deads comes up, dalits share a strange commonality with the Muslims. Muslims share similar predicament when they find their graveyards getting encroached by the dominant classes.
If the dead dalits have no place of dignity in the state which has the audacity of claiming that untouchability is just perception, one can just imagine the status of the living. One test could be househunting as a dalit in Ahmedabad - capital of 'Hindu Rashtra' in making.
The general experience is that if a Dalit approaches a upper caste builder for accommodation, he is either directly discouraged or tacitly denied. It is immaterial even if the Dalit belongs to a sound economic background. For the builders and real estate agents, selling property to even one Dalit family in a society becomes detrimental to sales. Perhaps it is a marker of the deeply entrenched Varna/caste mindset, which has supposedly received new lease of life after the 2002 carnage, one witnesses a unique trend in Ahmedabad where "only Dalit residential societies - around 300 of them" have come up in recent years. In a study done by the Express reporter he emphasised that it ".. not a matter of choice, but of compulsion." (A Dalit? Go find a Dalit society D P Bhattacharya Ahmedabad, June 17, 2007)"
V.
One can go on belching out statistics about Dalit's situation as it exists in the first 'Hindu Rashtra' in Secular- Democratic India. Definitely our aim here is not to present a data bank on this theme.
Our main concern is to raise two points.
- Why a section of dalits still feels enamoured about Hindutva ? Can it be said to be sign of its upward mobility within the Hindu religion or it is a marker of the hatred it had accumulated vis-a-vis the minority communities and getting ready to play out the Hindutva agenda on its own also.
- Why the near secondary status granted to the dalits has not become an important issue in the anti-communal movement ?
One sincerely feels that we need to address what Dilip Menon calls 'the general reluctance to engage with what is arguably an intimate relation between the discourses of caste, secularism and communalism.'(P2, The Blindness of Singht, Navayana 2006). He adds:
The inner violence within Hinduism explains to a considerable extent the violence directed outwards against Muslims once we concede that the former is historically prior. The question needs to be : how has the deployment of violence against an internal other (defined primarily in terms of inherent inequality), the dalit, come to be transformed at certain conjectures into one of aggression against an external other (defined primarily in terms of inherent difference), the Muslim ? Is communalism a deflection of the central issue of violence and inegalitarianism in Indian society? (do)
It needs to be emphasised here that all over Gujarat one finds thousands and thousands of boards put at prominent places by one of the affiliates of the Sangh Parivar that 'you are entering this or that locality of Hindu Rashtra' which is completely illegal and an open proclamation of 'secession' from the rest of the society.
At this juncture one thinks of Ambedkar's prognosis vis-a-vis Hindu Rajya. In his book 'Pakistan or Partition of India, page 358) written before partition of India, he clearly prophesises : "If Hindu Raj becomes a reality then it would be greatest menace to this country. Whatever may Hindus say, actually it does not make a difference that Hinduism is a danger to Independence, Equality and Brotherhood. Thus it is an enemy of democracy. We should make all out efforts to stop Hindu Raj from becoming a reality." ( Pakistan or Partition of India, Page 358)
Is anybody listening?
Subhash Gatade is the author of Pahad Se Uncha Aadmi (2010) Godse's Children: Hindutva Terror in India,(2011) and The Saffron Condition: The Politics of Repression and Exclusion in Neoliberal India(2011). He is also the Convener of New Socialist Initiative (NSI) Email : subhash.gatade@gmail.com
Obama Renews Threats As Syrian Talks Remain Deadlocked
By Mike Head
http://www.countercurrents.org/head120214.htm
As this week's second round of talks in Geneva remained at an impasse, US President Barack Obama yesterday renewed talk of possible military intervention against Syria, on the cynical pretext of "humanitarian" concern for the Syrian people
Preserving The Abu Ghraib Culture: The Harrowing Abuse Of Iraqi Women
By Ramzy Baroud
http://www.countercurrents.org/baroud120214.htm
"When they first put the electricity on me, I gasped; my body went rigid and the bag came off my head," Israa Salah, a detained Iraqi woman told Human Rights Watch (HRW) in her heartrending testimony. Israa (not her real name) was arrested by US and Iraqi forces in 2010. She was tortured to the point of confessing to terrorist charges she didn't commit. According to HRW's "No One is Safe" - a 105-page report released on Feb 06 – there are thousands of Iraqi women in jail being subjected to similar practices, held with no charges, beaten and raped
Playing Al-Qaeda Card To The Last Iraqi
By Nicola Nasser
http://www.countercurrents.org/nasser120214.htm
No doubt revolution is brewing and boiling in Iraq against the sectarian government in Baghdad, its U.S. and Iranian supporters as well as against its al-Qaeda sectarian antithesis
On Founders And Keepers Of Occupy Wall Street
By Justin Wedes
http://www.countercurrents.org/wedes120214.htm
Last week, a power struggle within an Occupy collective emerged into the public realm when one member took sole ownership of the @OccupyWallSt twitter handle and began to issue calls to action and reflections on the history of the movement. As the controversy ricochets across our still-vibrant networks, I write here to offer my own perspective on what immediate lessons can be learned from the debacle
The Purposely Confusing World Of Energy Politics
By Richard Heinberg
http://www.countercurrents.org/heinberg120214.htm
As energy issues become more critically important to society's economic and ecological survival, they become more politically contested; and as a result, they tend to become obscured by a fog of exaggeration, half-truth, omission, and outright prevarication
A Critical History Of The Olympics: Beyond Sochi
By Paul Gottinger
http://www.countercurrents.org/gottinger120214.htm
It's 2014 and once again the Olympics are underway. This time around Sochi, Russia is the host location for the games. In the run up to this Olympics there has been no shortage of criticism in the U.S. media for Russia's human rights abuses in Chechnya and Dagestan, the country's crackdown on civil society, and most visibly, Russia's recent laws criminalizing gays and lesbians. While the U.S. media is right to criticize these very serious human rights abuses, it has continually failed to scrutinize the Olympics when the games take place in a Western country, or in a country of a U.S. ally
Know And Punish US War Crimes
By Robert Barsocchini
http://www.countercurrents.org/barsocchini120214.htm
We need a mass movement in the USA to arrest and prosecute war criminals, so that US politicians and officials have something to be afraid of (namely jail) when they make their decisions. War crimes, genocide, and the like, would then have definite consequences and be sharply reduced
Black History Month, Zimbabwe Black Indigenization And Race, The Struggle Continues
By Tsungai Chipato
http://www.countercurrents.org/chipato120214.htm
This Black History Month keep this in mind, according to the rest of the world; black people and other ethnic minorities are free. Although we are economically impoverished from the legacies of slavery and colonialism we should at least be happy at the fact that we can vote and have seen the day that America had a Black President
How NaMo Has 'Disappeared' Untouchability In Gujarat ?
By Subhash Gatade
http://www.countercurrents.org/gatade120214.htm
You can have a look at a Gujarat government sponsored report titled "Impact of Caste Discrimination and Distinctions on Equal Opportunities: A Study of Gujarat", authored by Centre for Environment Planning and Technology University (CEPT) University scholars led by Prof R Parthasarathy, which calls caste discrimination a matter of "perceptions". In his blog 'True Lies' senior journalist Rajiv Shah has provided detailed critique of this study
On the Suicide Of Dr Khurshid Anwar, Director ISD
By Women Against Sexual Violence and State Repression
http://www.countercurrents.org/wss120214.htm
We are dismayed and deeply concerned at the content and tone of the discussions on Dr Anwar's death in social media and in various public forums, where aspersions have been cast on the complainant. Questions have also been raised about the role of feminists who have stood by the complainant and upheld the feminist principles evolved in the course of the long and ongoing struggle against sexual violence in our patriarchal and misogynistic society
Pulping Intellectual Freedom: Academics Will Not Bow Down To Vigilantism
By Jamia Teachers' Solidarity Association
http://www.countercurrents.org/jtsa120214.htm
It is an abject shame that Penguin will pulp Prof. Wendy Doniger's The Hindus: An Alternative History . That this decision was reached in a deal with the petitioners, with no consultation with the author compounds the folly
Myth Of Clean Chit: Gujarat Carnage And Narendra Modi
By Ram Puniyani
http://www.countercurrents.org/puniyani050214.htm
There has been some justice in few cases of Gujarat. And that is due to yeomen struggle for justice launched by the victims and human rights defenders. The process of justice needs to be pursued. The state of Gujarat has created all possible obstacles in the justice being given to the victims. The claims of clean chit hold no water, we need to look beyond the propaganda and the truth will show the blood tainted hands of Modi
Salt And Terror In Afghanistan
By Kathy Kelly
http://www.countercurrents.org/kelly050214.htm
Panic and revenge among far more prosperous people in the U.S. helped to drive the U.S. into a war waged against one of the poorest countries in the world. Yet, my Afghan friends, who've borne the brunt of war, long to rise above vengeance and narrow self-interest. They wish to pursue a peace that includes ending hunger
Cornering A Brave Palestinian Man Of Peace
By Nicola Nasser
http://www.countercurrents.org/nasser050214.htm
Unmercifully pressured by both Israeli negotiators and American mediators, the elusive cause of peace stands about to loose in Abbas a brave Palestinian man of peace-making of an historical stature whose demise would squander what could be the last opportunity for the so-called two-state solution
Making Iowa Into A War Zone - National Guard Poised To Attack From Des Moines Airport
By Brian Terrell
http://www.countercurrents.org/terrell050214.htm
Drone warfare is based on the lie that war can be made more exact, limited and humane through technology. Our civilian and military authorities, by bringing drones to Des Moines , are acting recklessly and in defiance of domestic and international law. They are acting without regard for the safety and wellbeing of our troops, of the people of Iowa or of people in faraway places who otherwise would mean us no harm. Rather than being an answer, drones perpetuate and multiply the horrors of war and bring them home into our communities
'Declaring Victory Wherever We Can'
By Robert Jensen
http://www.countercurrents.org/jensen050214.htm
An Interview With Cynthia Kaufman On Getting Past Capitalism: History, Vision, Hope
Edge-Dwelling: A Social Ecology For Our Times; Part 3: Middle School, Misfits, And The Milky Way
By Dianne Monroe
http://www.countercurrents.org/monroe050214.htm
This work of re-visioning our humanity and our place within the web of life (as part of rather than in control of) is already begun. Joanna Macy calls it The Great Turning. Thomas Berry calls it The Great Work. We each have only to add our unique voice to visioning and building the bridge that can bring us from now to the regeneration that can arise beyond our crumbling civilization's far edge
Boredom Is Counter-Revolutionary
By Mickey Z
http://www.countercurrents.org/mickeyz050214.htm
Imagine if the majority of us woke tomorrow morning and suddenly recognized all forms of life – including ourselves – as part of one collective soul. If so, how could we not defend that collective soul… by any means necessary? With all due respect to the Situationists, I'll let you in on the real secret: All our grievances and all our solutions are connected – and we are the ones the planet has been waiting for
Egypt's Dictatorship For The Digital Age
By Justin Podur
http://www.countercurrents.org/podur050214.htm
Seven months later, we have the new Egyptian dictatorship's answer to the internet: monitor its users, jail its journalists in Egypt, and use it to broadcast messages of hate and misinformation about political opponents. So far, it is working, but it won't work forever. Not because of the internet, but because of the people. Dictatorships are overthrown when people lose their fear, and the Egyptians have lost their fear more than a few times in recent years
The Global Elite Is Insane
By Robert J. Burrowes
http://www.countercurrents.org/burrowes050214.htm
As anyone who pays even the slightest realistic attention to the global elite already knows, the elite's efforts to maximise its political and economic clout, and hence its wealth, at the expense of everyone else and the Earth itself, are carefully crafted. And this is not going to change on our recommendation or because we talk to them, or even because we listen to them. Moreover, the reason is simple. The global elite is insane. And it is incredibly violent
O! Teacher Stop Teaching
By Mirza Yawar Baig
http://www.countercurrents.org/baig050214.htm
Our present methods of teaching which are inflicted on by far the vast majority of children the world over are the single biggest cause for killing the imagination that every child is born with and making them into square blocks which fit our own frightened, constrained and slavish worldview. Those who comply we 'pass' and those who challenge it and refuse to succumb, we 'fail'. The occasional among those we 'fail', go on to great fortune. The vast majority disappear, never to be heard from again. Destroyed by the education system they didn't deserve or ask for
The Lynching Of Nido Taniam
By Vidya Bhushan Rawat
http://www.countercurrents.org/rawat050214.htm
This is not the first incident of racial violence against the people from North East and Delhi is not the only state where such incidents are happening and despite all the media coverage and importance being given to the incident, this would not be the last of its kind as prejudices in our minds against those who do not look like us and have same kind of 'characteristics' are rampant. Frankly speaking, it is not just a law and order issue, it reflect the deep-rooted prejudices in our mind and need a long term solution
Documenting Causes
Acceptance speech By Anand Patwardhan
http://www.countercurrents.org/patwardhan050214.htm
Anand Patwardhan was awarded the V Shantaram Lifetime Achievement Award at the Mumbai International Film Festival today. Here is his acceptance speech
Reverencing The Past
By Anitha.S
http://www.countercurrents.org/anitha050214.htm
The crescent moon and the stars, the bats flying overhead, the feelings of all those who joined in the signature campaign all echoed one thing- Let this green lung be conserved for posterity, for children to play and learn, for the public to breathe in pure air and let us be a generation that has reverence to the past
We Want Peace: Condemnation Of The Protest Against Pakistani Band In Mumbai
By Aaghaz-e-Dosti
http://www.countercurrents.org/aed050214.htm
It has been reported that a group of 50 people hailing from political party Shiv Sena had barged into the press conference of Pakistani Sufi band Mekaal Hasan held in the Mumbai Press Club today and demanded that the musicians return immediately to their country. They were carrying placards with anti-Pakistani slogans and saffron flags
Arjun Sharma (friends with Dilip C Mandal) also commented on Jagadishwar Chaturvedi's photo. |
Arjun wrote: "आजकल यह फैशन हो गया है आत्मप्रचार पाने के लिए मोदी की निंदा करो.फिर मोदी समर्थक निंदा करने लग जाएँ तो समझो आप विश्व प्रसिद्धि पा गए." |
संघर्ष संवाद posted in All India Secular Forum
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MPs fume over Lok Sabha bedlam
JD(U) leader Sharad Yadav terms it an act of sedition, Jaswant Singh calls it disgraceful
Communist Party of India-Marxist leader Sitaram Yechury blamed the Congress for the ruckus.
"The Congress has not taken a reasonable decision on Telangana. Normal functioning of parliament is the sole responsibility of the government," he said.
Expelled from the Congress for opposing Telangana's formation, Rajagopal Thursday used pepper spray, causing serious discomfort to many MPs as well as officials besides journalists in the media gallery.
"What happened is disgraceful, unprecedented and unforgivable," said BJP parliamentarian Jaswant Singh. He too blamed the government for not controlling the daily chaos.
Coal Minister Sriprakash Jaiswal said: "This is very unfortunate for our democracy. The government will go ahead with the bifurcation of Andhra Pradesh."
Jaiswal said he feared for Speaker Meira Kumar's safety at one point.
"If the house allows this sort of things, then it will be difficult to run parliament."
18 MPs suspended for unruly mess in LS
Telangana Bill tabled in Lok Sabha amid protests; House adjourned after Andhra MP uses pepper spray, another MP was reportedly carrying a knife in the House
AP
New Delhi: Eighteen Lok Sabha MPs were Thursday suspended for protesting when the Telangana bill was introduced in Parliament. One of the MPs told the media that Speaker Meira Kumar took the action following unprecedented disturbances in the Lok Sabha when a member from Andhra Pradesh used pepper spray.
Under rules, members who are suspended remain suspended for five sittings or the rest of the Parliament session, whichever is less. Those suspended include L Rajagopal, expelled Congress member who had earlier sprayed pepper gas from a canister in the House, causing chaos. TDP member M Venugopala Reddy, who broke the mike, was also among the MPs suspended.
Others suspended MPs are: Sabbam Hari, Anantha Venkatarami Reddy, Rayapati Sambasiva Rao, SPY Reddy, M Sreenivasulu Reddy, V Aruna Kumar, A Sai Prathap, Suresh Kumar Shetkar, KRG Reddy, Bapi Raju Kanumuri and G Sukhender Reddy (all Cong), Niramalli Sivaprasad, Nimmala Kristappa, K Narayana Rao (all TDP), and Y S Jaganmohan Reddy and M Rajamohan Reddy (both YSR Cong).
Notwithstanding vociferous opposition, the government tabled the Telangana Bill in Lok Sabha on Thursday. However, unruly scenes were witnessed in the House as soon as the bill was tabled.
Vijayawada MP L Rajagopal spread pepper spray, forcing Lok Sabha to adjourn as some Andhra members fought in the Well. Lok Sabha Well turned into battle ground after clashes as pro-Telangana and Seemandhra MPs were prevented from creating disturbance. Some members were seen coming out of the House with watery eyes and seemed to be suffocating. The Well of the Lok Sabha turned into a battle ground as fisticuffs broke out between members from Seemandhra and others, including Raj Babbar, Azharuddin, Lal Singh (all Cong) and Saugata Roy (TMC), who wanted to prevent disruptions in the House.
Parliament doctor was rushed inside Lok Sabha after the spray incident. Three MPs were rushed to a hospital after they complained of choking and burning eyes following the pepper spray attack, while another MP was admitted for a heart condition after he collapsed during the fracas.
Meanwhile, TDP MP Venugopal Reddy broke the mike on Secretary General's table, Rajagopal smashed glass on the table, causing commotion. TDP MP C M Ramesh tried to pluck away mike of the Chair in Rajya Sabha in protest against Telangana.
Venugopal Reddy was reportedly carrying a knife inside the Parliament. Reddy, however, termed as a "lie" the allegation that he was carrying a knife inside the House.
Lok Sabha was adjourned till 2 pm.
The government had already obtained President's approval for introduction of the Bill in Lower House after initially planning to table the Bill in Rajya Sabha.
Since the separate statehood legislation is a Money Bill, it could not be tabled in the Upper House.
The government decided to go ahead with bifurcation of Andhra Pradesh notwithstanding the state Assembly's rejection of the Telangana Bill.
The Telangana issue continues to rock both Houses of Parliament and virtually no business was conducted in the extended Winter session that began on February 5.
Telangana Bill: 10 things to know
Both Houses of Parliament adjourned over the issue of creating a separate Telangana state
Reuters
New Delhi: Congress MPs from Seemandhra have issued a notice for a non-confidence motion against Prime Minister Manmohan Singh over plan to bifurcate Andhra Pradesh for creating a separate Telangana state.
Here's retracing the journey of Telangana bill so far.
1. Both Houses of Parliament were adjourned on Thursday over the creation of a separate Telangana state. The adjournments followed noisy scenes after some members from Andhra Pradesh raised slogans favouring a united state, forcing the presiding officers to ajourn the Houses.
2. Notwithstanding Andhra assembly's rejection of Telangana bill, a Group of Ministers clear draft legislation to be placed before the Union Cabinet on Thursday to pave the way for its tabling in Parliament.
3. Opposing the creation of Telangana, Andhra Pradesh chief minister Kiran Kumar Reddy brings his protest to the capital where he stages a sit-in and meets President Pranab Mukherjee to request him to stop bifurcation of the state.
4. On Wednesday, MPs from Seemandhra region, cutting across parties, stormed the Well of both Lok Sabha and Rajya Sabha as soon as Houses assembled for the day. The MPs carried placards saying 'Jai Samaikya Andhra Pradesh' (hail united Andhra Pradesh).
5. Telangana Rashtra Samithi chief K Chandrasekhara Rao is confident a separate Telangana state will come into existence. He predicts that elections would be held separately in Telangana and Andhra.
6. Last week, trouble broke out in AP assembly with chief minister Kiran Kumar Reddy's planning to move a resolution in the House seeking to return the AP Reorganisation Bill-2013 to the Centre, terming it "incomprehensive". The assembly sent back the bill seeking more than 9,000 changes.
7. Congress is likely to give a green signal to Bill after the Rajya Sabha poll results for the six Andhra seats are out on Friday, according to sources.
8. Both pro- and anti-Telangana leaders camps in the national capital. On Wednesday, supporters of both groups clashed outside Andhra Bhawan, the state's guest house in Delhi.
9. Once the Cabinet gives its assent to the bill, it will be sent to the President. It will then be voted on in Parliament.
10. Union human resource development minister M M Pallam Raju criticizes manner in which the Andhra Pradesh re-organisation Bill has been taken forward, and adds the Bill in its current form does not do justice to any region.
India Inc gives thumbs up to rail budget
India Inc says the focus is rightly on attracting investments to upgrade, modernise and expand railways as per aspirations of people and an attempt to bring in foreign direct investment
AFP
New Delhi: India Inc on Wednesday said the government's focus on modernization and expansion of the country's vast rail network without touching passenger fares and freight rates was a step in the right direction.
Expressing happiness on no populist measures being incorporated in the budget, PHD Chamber of Commerce president Sharad Jaipuria said: "The focus was rightly on attracting huge investments to upgrade, modernising and expanding railways as per aspirations of people and attempting to bring in foreign direct investment (FDI)".
Passenger fares and freight rates were left untouched in the interim rail budget, which talks about plans about involvement of private sector and FDI as part of efforts to modernise the largest transport network in the country.
"Increased private participation, as rightly noticed by the government, seems to be the way of future development. The increased efforts towards unlocking the value of railway assets would go a long way in achieving this objective," Assocham president Rana Kapoor said.
Presenting the interim budget for four months in the Lok Sabha, railway minister Mallikarjun Kharge said an independent Rail Tariff Authority is being set up to rationalize fares. he also said there was a proposal to expand dynamic pricing of tickets in line with the airline industry.
He announced the launch of 17 new premium trains, 39 express trains and ten passenger trains in the coming year and providing rail connectivity to Katra and Vaishnodevi in Jammu and Kashmir, and Meghalaya and Arunachal Pradesh in the Northeast.
Annual Rail Plan has been pegged at Rs 64,305 crore with a budgetary support of Rs 30,223 crore.
Ashok Dusadh
एक सौ इक्कीस करोड़ के प्रतिनिधियों ने बस २४ ००० का बिल माफ़ किया ,वह भी आधा ?नहीं नहीं एक सौ इक्कीस करोड़ नहीं ३२ लाख वोटर का भी ध्यान तो रख लेते . अब तो यह साबित हो गया की हज़ारो के भीड़ को लाखों में बताया जा रहा था .इस घोटाले के लिए और गलत विज्ञापन के लिए मतदाता को किस उपभोक्ता फोरम में जाना चाहिए . भाई साहब दिल्ली में तो सब से पहले राईट टू रिजेक्ट लागू होना चाहिए . पहले अन्ना को खोजो कहाँ है और चुप क्यों है राईट टू रिजेक्ट पर .
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जनज्वार डॉटकॉम
कई युवा और अधेड़ 'लेखक' अपने ब्लॉगों पर न सिर्फ़ दरियागंजी प्रकाशकों की सपरिवार गुलामी कर रहे हैं, बल्कि हिंदी पेन्ग्विन की निर्लज्ज चाटुकारिता और दलाली पर भी उतर आए हैं. बकौल ज्ञानरंजन जहाँ से आदमी की पूँछ झड़ चुकी है, वहाँ कृतकृत्य कर गुदगुदी अनुभव कर रहे हैं...http://www.janjwar.com/society/1-society/4776-hindu-ativadiyon-ke-samne-penguin-hua-natmastak-for-janjwar-by-vishnu-khare
Satya Narayan
अमेरिका है दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी!
भूमण्डलीय आतंकवादी के चुनिन्दा अपराध
अमेरिकी साम्राज्यवादी पूरी दुनिया के पैमाने पर आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध छेड़ने का दावा करते हैं। सच्चाई यह है कि स्वयं अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी देश है। आज जिन इस्लामी कट्टरपन्थियों से लड़ने के नाम पर इराक़, अफगानिस्तान और दुनिया के कई देशों में अमेरिका बमबारी, नरसंहार और सैनिक कब्ज़ों, का सिलसिला जारी रखे हुए है, वे उसी के पैदा हुए भस्मासुर हैं। अमेरिका आतंकवाद के नाम पर दुनिया की जनता के विरुद्ध युद्ध छेड़े हुए है। वह अपने साम्राज्यवादी वर्चस्व के लिए युद्ध और आतंक का क़हर बरपा कर रहा है। अमेरिकी सत्ताधारियों के चुनिन्दा ऐतिहासिक अपराधों की एक सूची इस लेख में दी जा रही है
http://www.mazdoorbigul.net/archives/4179
अमेरिका है दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी! - मज़दूर बिगुल
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Aam Aadmi Party
Anarchy in the Delhi Assembly. BJP & Congress MLAs have seized the agenda documents from the speaker and have torn them. They have broken the mike and are obstructing the entire session. NBT Delhi reported that the torn shreds of agenda were hurled on the face of Somnath Bharti. Dr. Hashvardhan & Arvinder Lovely have joined hands to oppose the Lokpal bill in the assembly.
These are the people who promised to provide constructive support. A strong Lokpal bill is not what they want. Their doublespeak on the issue of corruption is exposed. The house could not discuss & debate the Lokpal bill because of the pandemonium caused by BJP & Congress MLAs.
Like · · Share · 2,672468844 · about an hour ago ·
ohan Shrotriya
संसद का जो #भीतर है, अब वह भी सुरक्षित नहीं रहा. खुद सांसदों से !
मिर्च का #स्प्रे तो बस शुरुआत है ! कल प्रगति भी हो सकती है ! किसी दिन संसद के भीतर ही किसी का खून भी हो जाए, तो ताज्जुब मत कीजिएगा !
सब सावचेती बरतेंगे, तो हथियार भी लेकर आएंगे ही, अपने बचाव के लिए !
ये दिन भी देखने बदे थे, अपने इस महान लोकतंत्र में ! अच्छा है कि हम बाहर हैं, फिर चाहे अलग तरह से असुरक्षित क्यों न हों !
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Surendra Grover, Shree Prakash, Navneet Pandey and 46 others like this.
Mohan Kumar Nagar सर जी शायद यही लोक तंत्र है .. ये प्रतीक हैं कि आम आदमी अधमरा है इसलिये गुंडों का राज जारी है । ये आम जन के नुमाइंदे नहीं .. हकीकत में गुँडे हैं जो सड़क से लेकर संसद तक अपने अधिपत्य का ऐलान कर रहे हैं ।
5 hours ago · Like · 5
Mohan Shrotriya लीजिए, चाकू भी लहरा ही दिया गया ! अब ज़्यादा देर नहीं लगेगी, लोकतंत्र का काम तमाम करने में !
4 hours ago · Edited · Like · 1
बिल पास न होने का गम नहीं करते सांसद ,
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वो जो चाकू चलाने का हुनर जानते हैं.......
Prem Mohan Lakhotia हत्भाग्य! ये दिन भी देखने बदे थे, अपने इस महान लोकतंत्र में !
जनज्वार डॉटकॉम with Shalini Kumari
पिछले चुनाव में जगह-जगह से खबरें मिलीं कि लोगों के पास फोटो मतदाता पहचानपत्र तो थे, परन्तु सूची से उनके नाम नदारद थे. अकेले राजस्थान के डेगाना विधानसभा क्षेत्र में लगभग दस हजार ऐसे मतदाता वोट डालने से वंचित रह गए थे. हर विधानसभा क्षेत्र में हजारों लोग वोटर पहचान पत्र हाथ में लिए दिनभर अधिकारियों के पास घूमते रहे...http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/4777-voter-card-hath-men-soochi-se-name-nadarad-for-janjwar-by-jagmohan-thakan
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Gopal Rathi
भारतीय 'चाय' पार्टी ! दारू वाले निराश ना हो , चुनाव तक धैर्य रखें l
Like · · Share · 19 hours ago ·
Lalajee Nirmal
काली मिर्च का स्प्रे करने वाले सांसदों के निलम्बन का स्वागत है किन्तु प्रोन्नति में आरक्षण का बिल छीनने और फाड़ने वाले सांसदो को निलम्बित क्यों नही किया गया |
Like · · Share · 2 hours ago · Edited ·
Anita Bharti, Ashok Dusadh, Sudhir Ambedkar and 28 others like this.
Abhijeet Kumar यह हंगामा गलत है किन्तु ऐसा कोई विरोध बहुजन सांसदों ने क्यों नही किया ,जब आरक्षण बिल फाड़ा जा रहा था |
about an hour ago · Like · 4
रजक एकता जन चेतना prakash Gautam ji, बात ये नही है कि धोबी भड़वा है यहाँ तो सब ही भड़वा है इससे कोई भी अनुसूचित जाति का सांसद अछूता नही है फिर वो कोई क्यों ना हो ???? धोबी या चामर या पासवान या खटीक या फिर कोई और ??? सब एक ही ताली के बेगन हैं!!!ये वही काम करते हैं जो उनकी पार्टी की माता जी या बहन जी या उनके आका करने को कहते हैं ।
18 minutes ago · Edited · Like · 1
रजक एकता जन चेतना आखिर ये सांसद और विधायक सामाजिक न्याय की उसी धारा से तो आते हैं, जिसे स्थापित करने के लिये दलित-ओबीसी ने अपनी कुरबानियाॅं दी थीं। फिर सवाल उठता है कि दलित/ओबीसी वर्ग के ये प्रतिनिधि किनका प्रतिनिधित्व करते हैं? क्या इनका एकमात्र ध्येय अपना निजी भला करना ही है?
52 minutes ago · Like · 2
रजक एकता जन चेतना Prakash Gautam ji, इसलिये हमारे सामने आज यह सबसे बड़ा सवाल है कि दलित वर्ग के लोग आखिर कब तक ऐसे नाकारा लोगों को अपना प्रतिनिधि बनाते रहेंगे?
Navbharat Times Online
दो दिन पहले एक मॉडल मेघना पटेल ने नरेंद्र मोदी का प्रचार करने के लिए न्यूड फोटोशूट कराया था। अब कुछ ऐसा ही काम राहुल गांधी की एक दीवानी ने कर दिया है।
कौन हैं यह...http://nbt.in/CX8uPZ
Like · · Share · 3,2841,067560 · 2 hours ago ·
Economic and Political Weekly
As the Telangana bill gets introduced in Parliament today, EPW brings you articles on the Telangana movement and the wide ranging discussions and debates on it from our rich archives.
From the EPW Archives: Telangana - http://www.epw.in/archives.html?klk
Like · · Share · 19214 · 5 hours ago ·
The Economic Times
Narendra Modi at Chai Pe Charcha: 5-10% black money recovered from abroad will be used as incentive for honest tax payers, particularly salaried.
BJP managers term it as an out-of-the-box initiative, especially against the backdrop of the way electoral campaigning is traditionally conducted by political parties. What is you view? Read more at: http://ow.ly/tydhR
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Economic and Political Weekly
Violence is enmeshed in the literary culture of north-east India because of long standing oppressive binaries of militarism and militancy it has been subjected to. By responding to violence, several writers have not just emphasised the syncretistic nature of the different literary cultures but also rejected straight-jacketing of their expression as manifestations of their violence-prone existence alone.
http://www.epw.in/web-exclusives/violence-what-end.html
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Economic and Political Weekly
Repeated industrial accidents at the Bhushan Steel and Power Company in Odisha reveal not only the company's brazen disregard for human life and proclivity for flouting safety norms, but also the state government's indifference to its transgressions.
http://www.epw.in/web-exclusives/flouting-safety-norms-endangering-lives.html
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Swabhimani Milind Jagtap added a new photo.
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Sundeep Nayyar shared Sanjiv Bhatt's photo.
Every political phenomenon founded on hatred contains within itself the seeds of its own destruction.
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Arvind Kejriwal
Following yesterday's announcement by Delhi government on filing cases against cabinet ministers and Mukesh Ambani for RIL Gas Scam, this July 2013 Outlook article provides good background. It is highly unfortunate that this 'Great Gas Heist' plan was not opposed by leading opposition parties, except for few parliamentarians like Gurucharan Dasgupta who filed a PIL against it. This cozy relationship between ruling Congress and main opposition BJP is very dangerous for our nation.
The Great Gas Heist | Lola Nayar, Arindam Mukherjee, Madhavi Tata
One beneficiary, clear and corporate. How the UPA played for political positioning.
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BBC Hindi
'केजरीवाल लोगों को कमोबेश लगातार चौंका रहे हैं, मोदी खुद को चायवाला बता रहे हैं और राहुल के इंटरव्यू ने जितने सवालों के जवाब दिए, उससे ज्यादा सवाल उछाल दिए.' 2014 की चुनावी जंग में किसकी चाल किस पर पड़ेगी भारी. पढ़िए बीबीसी का विश्लेषण.
Navbharat Times Online
लोकसभा में आज एक सांसद ने मिर्च पाउडर स्प्रे का इस्तेमाल किया।
कौन हैं यह सांसद...http://nbt.in/m85MDa
Like · · Share · 201114 · 12 minutes ago ·
Pramod Joshi
संसद में सनसनीखेज हंगामा. सरकार के मंत्री उसके काबू से बाहर
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Vinayak Sharma स्थिति तो काबू में है ना .............
VK Joshi कभी लगता है कि चंद वर्षों में संसद शब्द शब्दकोश से हटा दिया जाएगा. जहां चाकू-छुरे और गालियाँ चले वही ...
As Raghunath सरकार के मंत्री की जगह कांग्रेसी मंत्री कहने में क्या परहेज! यूपीए सरकार में अन्य पार्टी के मंत्री भी है!
2 hours ago · Like · 1
Pb Verma Congress mein yah mrityu se poora ki bechaini hai.
Economic and Political Weekly
Railway Budget 2014: Mallikarjun Kharge said that maximum stress will be there on the safety of passengers.
EPW (1 February, 2014) editorial: Neglect of Rail Passenger Safety
http://www.epw.in/editorials/neglect-rail-passenger-safety.html
Like · · Share · 151 · 9 hours ago ·
BBC Hindi
तेलंगाना मुद्दे पर आज संसद के दोनों सदनों में सांसद आपस में भिड़ गए. लोकसभा में विजयवाड़ा के एक सांसद ने मिर्च का स्प्रे फेंका तो दूसरे सांसदों ने उन पर हमला कर दिया. पढ़िए क्या हुआ.
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Sundeep Nayyar shared Reuters India's photo.
Slideshow: Telangana chaos hits parliament http://reut.rs/1bOVt7i
(In picture: K Narayana Rao, a parliamentarian, is rushed to a hospital after he collapsed inside parliament in New Delhi February 13, 2014.)
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